मन के भाव लिखती हूँ,कविता लिखती हूँ,कहानी लिखती हूँ,यह भाव है मेरे मन के,अपनी मन की जुबानी लिखती हूँ। अनुराधा चौहान
Tuesday, February 26, 2019
Thursday, February 21, 2019
अविष्कार
का सौदंर्य
भांति-भांति के
रूप लिए
परिभाषित करती
मानव को
इसके किए कर्मो से
प्रेम की कला
से अभिभूत
यह सारा संसार है
कला से परिपूर्ण हैं
यहांँ हर इंसान
इंसान की कलाकारी ने
मूर्तियों से
कहानी लिख डाली
जा पहुंँचा चाँद पर
अब मंगल पर
इंसान की बारी
धरती पर इंसान ने
मशीनी दुनियाँ
रच डाली
किए नित
नए अविष्कार
अपनी पहचान
बना डाली
भौतिक सुख सुविधाएं
रचीं अपनी
विविध कलाओं से
गगनचुंबी इमारतें
छू रही आकाश
इनकी कलाओं से
बस नफ़रत
मिटाने की एक
कला आ जाती
ना होता खून-खराबा
स्वर्ग से भी ज्यादा
सुंदर यह दुनियांँ नजर आती
***अनुराधा चौहान***
चित्र गूगल से साभार
Monday, February 18, 2019
वक़्त की मार
वक़्त की मार
नहीं जीवन से हार
कंघी,धागे,छन्नी
ज़िंदगी से मेरी ठनी
है तारो वाला जूना
भीख नहीं काम को चुना
बेचता हूँ बालों की रबड़
तय करता ज़िंदगी का सफर
हैं बालों वाली चिमटी
ज़िंदगी इन सब में सिमटी
सुबह और शाम
नहीं जीवन में आराम
जिन औलादों को पाला
उन्ही ने घर से निकाला
अब काम मेरी मजबूरी
घर पर पत्नी है बूढ़ी
इस काम से होता गुजारा
जीवन का यही है सहारा
लेलो एक,दो कुछ कंघियां
तो घर में बन जाएं रोटियां
या फिर लेलो एक दो छन्नी
घर में नहीं खोटी अठन्नी
मुन्नी को लेलो चिमटी
तो जल जाए आज अंगीठी
जब तक जीवन है झेलूंगा
पर भीख कभी न मांगूंगा
ज़िंदगी मेहनत में गुजरी
मेहनत में ही जाए बीती
घूम रहा गली-गली
प्रभू ने ही किस्मत लिखी
औलाद होकर भी अकेला
ऊपर वाले का यह खेला
चलो कम पैसे ही देदो
पर कुछ सामान लेलो
ज़िंदगी का क्या कुछ ठिकाना
आज का पता नहीं कल किसने जाना
***अनुराधा चौहान*** चित्रलेखन
नहीं जीवन से हार
कंघी,धागे,छन्नी
ज़िंदगी से मेरी ठनी
है तारो वाला जूना
भीख नहीं काम को चुना
बेचता हूँ बालों की रबड़
तय करता ज़िंदगी का सफर
हैं बालों वाली चिमटी
ज़िंदगी इन सब में सिमटी
सुबह और शाम
नहीं जीवन में आराम
जिन औलादों को पाला
उन्ही ने घर से निकाला
अब काम मेरी मजबूरी
घर पर पत्नी है बूढ़ी
इस काम से होता गुजारा
जीवन का यही है सहारा
लेलो एक,दो कुछ कंघियां
तो घर में बन जाएं रोटियां
या फिर लेलो एक दो छन्नी
घर में नहीं खोटी अठन्नी
मुन्नी को लेलो चिमटी
तो जल जाए आज अंगीठी
जब तक जीवन है झेलूंगा
पर भीख कभी न मांगूंगा
ज़िंदगी मेहनत में गुजरी
मेहनत में ही जाए बीती
घूम रहा गली-गली
प्रभू ने ही किस्मत लिखी
औलाद होकर भी अकेला
ऊपर वाले का यह खेला
चलो कम पैसे ही देदो
पर कुछ सामान लेलो
ज़िंदगी का क्या कुछ ठिकाना
आज का पता नहीं कल किसने जाना
***अनुराधा चौहान*** चित्रलेखन
फोटो गूगल से साभार
जय मां शारदे
शारदे मां शारदे मां
शारदे मां वर तु दे
मिटे कलह क्लेष सब
ज्ञान का भंडार दे
शारदे मां शारदे मां
शारदे मां वर तु दे
कभी किसी बैर न हो
मन में ऐसी प्रीत दे
शारदे मां शारदे मां
शारदे मां वर तु दे
दुखियों के दुःख दूर कर
जीवन में नव हर्ष दे
शारदे मां शारदे मां
शारदे मां वर तु दे
कोयल सी चहके हर बेटी
ऐसा तु वरदान दे
शारदे मां शारदे मां
शारदे मां वर तु दे
अज्ञान का मिट जाए तम
रोशन धरा हो ज्ञान से
शारदे मां शारदे मां
शारदे मां वर तु दे
सुख की सुहानी भोर हो
मौसम सुहाना बसंत हो
शारदे मां शारदे मां
शारदे मां वर तु दे
***अनुराधा चौहान***
तिरंगे का दर्द
तिरंगा तड़प उठा
वीरों के तन से लिपट
क्यों अक्सर जवान
ताबूत में जाते सिमट
कब तक माताएं
अपने सपूतों को खोएंगी
बहनें रक्षाबंधन पर
अपने भाईयों को रोएंगी
पिता लगाकर तिरंगा
सीने से छुप-छुप रोएंगे
कब तक दुश्मन के हाथों
देश के सपूत शहीद होंगे
कब होगा अंत आतंक का
अंत मजहबी झगड़ों का
है आस तिरंगे को
एक दिन ऐसा भी आएगा
न होगा खून-खराबा कहीं
न होगी शहादत वीरों
हर मंगलसूत्र आबाद होगा
सिंदूर से सजेंगी माँग
हर राखी चहकेगी
बेटियां बाबुल की छांव तले
साजन के घर विदा होगी
जिस दिन अमन-चैन का
आलम में डूबा हिन्दुस्तान होगा
सबसे ज्यादा खुश तिरंगा
अपनी शान में होगा
***अनुराधा चौहान***
वीरों के तन से लिपट
क्यों अक्सर जवान
ताबूत में जाते सिमट
कब तक माताएं
अपने सपूतों को खोएंगी
बहनें रक्षाबंधन पर
अपने भाईयों को रोएंगी
पिता लगाकर तिरंगा
सीने से छुप-छुप रोएंगे
कब तक दुश्मन के हाथों
देश के सपूत शहीद होंगे
कब होगा अंत आतंक का
अंत मजहबी झगड़ों का
है आस तिरंगे को
एक दिन ऐसा भी आएगा
न होगा खून-खराबा कहीं
न होगी शहादत वीरों
हर मंगलसूत्र आबाद होगा
सिंदूर से सजेंगी माँग
हर राखी चहकेगी
बेटियां बाबुल की छांव तले
साजन के घर विदा होगी
जिस दिन अमन-चैन का
आलम में डूबा हिन्दुस्तान होगा
सबसे ज्यादा खुश तिरंगा
अपनी शान में होगा
***अनुराधा चौहान***
Thursday, February 14, 2019
पलाश के फूल
सूनी ठूठ-सी डालों पर
मखमली पलाश
झील में देख अपना
सुर्ख रूप खूबसूरती
पर है इठलाते
कलियाँ भी खिलकर
बन गई फूल
पेड़ भी अपने यौवन
पर इतराने लगे
खिल उठे सुर्ख
पलाश के फूल
लो ऋतुराज आया
बसंती हवाओं ने
मौसम महकाया
बिछ गई वृक्षों के नीचे
झरते फूलों की
मखमली चादर
दृश्य सुहाना सुखद
प्रीत ले आया मधुमास
मौसम गुजर जाएगा
संग यह रौनक ले
बहारों केे मौसम में जो
खिले दहकते
पलाश अंगारों जैसे
फिर एक दिन
टूट कर बिखरेंगे
सूने पड़े गलियारों में
फिर बेनूर हो जाएंगी
फूलों से सजी डालियाँ
***अनुराधा चौहान***
चित्र गूगल से साभार
मखमली पलाश
झील में देख अपना
सुर्ख रूप खूबसूरती
पर है इठलाते
कलियाँ भी खिलकर
बन गई फूल
पेड़ भी अपने यौवन
पर इतराने लगे
खिल उठे सुर्ख
पलाश के फूल
लो ऋतुराज आया
बसंती हवाओं ने
मौसम महकाया
बिछ गई वृक्षों के नीचे
झरते फूलों की
मखमली चादर
दृश्य सुहाना सुखद
प्रीत ले आया मधुमास
मौसम गुजर जाएगा
संग यह रौनक ले
बहारों केे मौसम में जो
खिले दहकते
पलाश अंगारों जैसे
फिर एक दिन
टूट कर बिखरेंगे
सूने पड़े गलियारों में
फिर बेनूर हो जाएंगी
फूलों से सजी डालियाँ
***अनुराधा चौहान***
चित्र गूगल से साभार
Monday, February 11, 2019
ज़हर का कहर
घुल रहा सांसों में जहर
जिम्मेदार तो हम ही हैं
खो रही रौनक फिज़ाएं
जिम्मेदार तो हम ही हैं
ज़हर भरी चलती हवाएं
क्यों करते अब परवाह
इंसान ही इंसान को मारे
मन में भरकर जहर
नौनिहालों का जीवन
नशा छीन रहा बन जहर
कारखानों से बहते जहर ने
लीला नदियों का जीवन
कल-कल कर बहती नदी
अब आती गंदी नाले सी नजर
रासायनिक मिलावट से हुआ
खाना-पीना भी अब ज़हर
आतंकवाद का जहर लीले है
मासूम लोगो का जीवन
मर रहा है हर आम इंसान
भ्रष्टाचार का जहर है ऐसा
इस जहर को मार सके
वो तोड़ अब कहाँ से लाएँ
इस जहर के कहर से तो
अब ऊपरवाला भी न बचाए
***अनुराधा चौहान***
चित्र गूगल से साभार
जिम्मेदार तो हम ही हैं
खो रही रौनक फिज़ाएं
जिम्मेदार तो हम ही हैं
ज़हर भरी चलती हवाएं
क्यों करते अब परवाह
इंसान ही इंसान को मारे
मन में भरकर जहर
नौनिहालों का जीवन
नशा छीन रहा बन जहर
कारखानों से बहते जहर ने
लीला नदियों का जीवन
कल-कल कर बहती नदी
अब आती गंदी नाले सी नजर
रासायनिक मिलावट से हुआ
खाना-पीना भी अब ज़हर
आतंकवाद का जहर लीले है
मासूम लोगो का जीवन
मर रहा है हर आम इंसान
भ्रष्टाचार का जहर है ऐसा
इस जहर को मार सके
वो तोड़ अब कहाँ से लाएँ
इस जहर के कहर से तो
अब ऊपरवाला भी न बचाए
***अनुराधा चौहान***
चित्र गूगल से साभार
Saturday, February 9, 2019
Saturday, February 2, 2019
पिरामिड (छलावा)
(1)
है
माया
जीवन
मिथ्या तन
मृत्यु अटल
दौलत छलावा
परोपकार धर्म
(2)
है
सत्य
ईश्वर
प्रेम श्रेष्ठ
नश्वर काया
सांसों की माया
जग एक छलावा
***अनुराधा चौहान***
नटखट कान्हा
🌺🌺🌺🌺🌺🌺
सांवली सूरत
लगता है प्यारा
नटखट नन्हा-सा
यशोदा का लाला
कान्हा का बालपन
है मन मोहने वाला
करके माखन की चोरी
बनाता सूरत भोली
गोपियों को नचाए
मधुर मुरलिया बजाए
हाथी, घोड़े नाचता बंदर
खिलोने पड़े घर के अंदर
वो तो खुद
जग का रखवाला
खिलौना उसका
यह जग सारा
मुरली की धुन पर
सबको नचाए
जीवन के अलबेले
खेल दिखाए
कहीं धूप कहीं छाया
सब है उसकी माया
***अनुराधा चौहान***
चित्र गूगल से साभार