"कुछ साल पहले मुलाकात हुई थी उनसे..!"
"यही कोई पचास, पचपन की उमर थी..!"नाम था भरोसीलाल।
भरोसीलाल बहुत ही मेहनती और ईमानदार व्यक्ति था। दिन-रात मेहनत करता था। कॉलोनी का पूर्ण रूप से निर्माण नहीं हुआ था।
बस वही ईट-गारे का काम,शाम को मोटे-मोटे टिक्कड़ बनाकर रख लेता था।
सुबह से काम में लग जाता था। पापा हमेशा से बहुत दयालु किस्म के इंसान रहे हैं।
घूम-घूमकर मजदूरों के हालचाल पूछते रहते थे। किसी को रोटी दे आते। किसी को कपड़े।
जब भरोसी से मुलाकात हुई तो उसकी बातों से प्रभावित होकर उससे कहा।
"सुनो भरोसी..!"
"जी बाबूजी...!"
"कभी खाना न बना पाओ तो घर पर आकर खा जाना..!"
"अरे नहीं बाबूजी मैं आपके घर का काम थोड़े ही कर रहा हूँ..! मैं ऐसे कैसे कुछ ले सकता हूँ,मै ऐसे ही ठीक हूँ..! आपने पूछा मुझे बहुत अच्छा लगा..!"
"अरे मैं अपना समझकर कह रहा हूँ..! चाय-पानी जो चाहिए घर से ले लेना..! कोई मना नहीं करेगा..!"
"बाबूजी बहुत अच्छा लगा आपसे मिलकर, ठीक है मैं लेलूँगा..!पर आपको कुछ काम देना होगा..?"
"अरे यह कैसी शर्त है..?"
"बाबूजी माँग-माँगकर खाना होता तो यह मेहनत-मजूरी काहे करता..!"
"बदले में कुछ काम बता दो कर दूँगा..!"
"अच्छा बाबा ठीक है..! तुम सही हो,बाई जी से काम पूछ लेना..! और हाँ शाम को घर पे खाना खा जाया करना..!"
वो कहते हैं। जब भगवान हमें किसी से मिलवाते हैं,तो उससे जरूर कोई पिछले जन्म का नाता होता है।
शायद भरोसी से भी था। कॉलोनी में कई घर बन रहे थे।न जाने कितने मजदूर काम कर रहे थे।पर उन सब में भरोसी पापा के दिल को भाया था।
हम लोग भी उन्हें भरोसी बाबा कहकर बुलाने लगे थे।वो थे भी बहुत नेकदिल, शायद इसीलिए भगवान ने हमें उनसे मिलवाया था।
भरोसी बाबा घर के छोटे-मोटे काम, जैसे बाहर से कोई सामान लाना हो या कभी नल नहीं आए तो पानी भर देना।
अकेले रहते थे। शहर में खून-पसीना एक करके परिवार पाल रहा था।दिन भर काम करने के बाद रात को हिसाब करने बैठ जाता था।
धीरे-धीरे कॉलोनी के सभी घर बन गए। मजदूर अपने घरों को लौट गए।भरोसी बाबा की खुद्दारी से वहाँ कई लोग प्रभावित थे।
किसी ने उसे वहाँ से जाने नहीं दिया।वो वहीं रहकर दिन-रात लोगों के घरों की चौकीदारी करने लगे।
फिर उन्होंने अपना परिवार भी शहर में बुलाकर बसा लिया।वो और उनके बच्चे दौड़-दौड़कर सबका काम करते।
उसका परिवार भी भरोसी के पदचिन्हों पर चलने वाला निकला। समय बीतता गया उनके बच्चों ने कमाना शुरू कर दिया था।
अब भरोसी बाबा भी सत्तर साल से ऊपर हो गए थे। उन्होंने काम छोड़ दिया था। सिर्फ हमारे घर तक ही सिमट गए थे।
रोज सुबह आ जाते थे, पापा भी रिटायर थे।भरोसी बाबा अब बहुत कमजोर हो गए थे।पर हमारे घर का मोह नहीं छोड़ पाते थे।
समय बीतता गया।एक दिन एक दुर्घटना में घायल होकर भरोसी बाबा बिस्तर से लग गए ।
"यही कोई पचास, पचपन की उमर थी..!"नाम था भरोसीलाल।
भरोसीलाल बहुत ही मेहनती और ईमानदार व्यक्ति था। दिन-रात मेहनत करता था। कॉलोनी का पूर्ण रूप से निर्माण नहीं हुआ था।
बस वही ईट-गारे का काम,शाम को मोटे-मोटे टिक्कड़ बनाकर रख लेता था।
सुबह से काम में लग जाता था। पापा हमेशा से बहुत दयालु किस्म के इंसान रहे हैं।
घूम-घूमकर मजदूरों के हालचाल पूछते रहते थे। किसी को रोटी दे आते। किसी को कपड़े।
जब भरोसी से मुलाकात हुई तो उसकी बातों से प्रभावित होकर उससे कहा।
"सुनो भरोसी..!"
"जी बाबूजी...!"
"कभी खाना न बना पाओ तो घर पर आकर खा जाना..!"
"अरे नहीं बाबूजी मैं आपके घर का काम थोड़े ही कर रहा हूँ..! मैं ऐसे कैसे कुछ ले सकता हूँ,मै ऐसे ही ठीक हूँ..! आपने पूछा मुझे बहुत अच्छा लगा..!"
"अरे मैं अपना समझकर कह रहा हूँ..! चाय-पानी जो चाहिए घर से ले लेना..! कोई मना नहीं करेगा..!"
"बाबूजी बहुत अच्छा लगा आपसे मिलकर, ठीक है मैं लेलूँगा..!पर आपको कुछ काम देना होगा..?"
"अरे यह कैसी शर्त है..?"
"बाबूजी माँग-माँगकर खाना होता तो यह मेहनत-मजूरी काहे करता..!"
"बदले में कुछ काम बता दो कर दूँगा..!"
"अच्छा बाबा ठीक है..! तुम सही हो,बाई जी से काम पूछ लेना..! और हाँ शाम को घर पे खाना खा जाया करना..!"
वो कहते हैं। जब भगवान हमें किसी से मिलवाते हैं,तो उससे जरूर कोई पिछले जन्म का नाता होता है।
शायद भरोसी से भी था। कॉलोनी में कई घर बन रहे थे।न जाने कितने मजदूर काम कर रहे थे।पर उन सब में भरोसी पापा के दिल को भाया था।
हम लोग भी उन्हें भरोसी बाबा कहकर बुलाने लगे थे।वो थे भी बहुत नेकदिल, शायद इसीलिए भगवान ने हमें उनसे मिलवाया था।
भरोसी बाबा घर के छोटे-मोटे काम, जैसे बाहर से कोई सामान लाना हो या कभी नल नहीं आए तो पानी भर देना।
अकेले रहते थे। शहर में खून-पसीना एक करके परिवार पाल रहा था।दिन भर काम करने के बाद रात को हिसाब करने बैठ जाता था।
धीरे-धीरे कॉलोनी के सभी घर बन गए। मजदूर अपने घरों को लौट गए।भरोसी बाबा की खुद्दारी से वहाँ कई लोग प्रभावित थे।
किसी ने उसे वहाँ से जाने नहीं दिया।वो वहीं रहकर दिन-रात लोगों के घरों की चौकीदारी करने लगे।
फिर उन्होंने अपना परिवार भी शहर में बुलाकर बसा लिया।वो और उनके बच्चे दौड़-दौड़कर सबका काम करते।
उसका परिवार भी भरोसी के पदचिन्हों पर चलने वाला निकला। समय बीतता गया उनके बच्चों ने कमाना शुरू कर दिया था।
अब भरोसी बाबा भी सत्तर साल से ऊपर हो गए थे। उन्होंने काम छोड़ दिया था। सिर्फ हमारे घर तक ही सिमट गए थे।
रोज सुबह आ जाते थे, पापा भी रिटायर थे।भरोसी बाबा अब बहुत कमजोर हो गए थे।पर हमारे घर का मोह नहीं छोड़ पाते थे।
समय बीतता गया।एक दिन एक दुर्घटना में घायल होकर भरोसी बाबा बिस्तर से लग गए ।
फिर एक दिनइस दुनिया में चले गए।पर उनका आत्मसम्मान से भरा व्यक्तित्व आज भी उनकी याद दिलाता है।
***अनुराधा चौहान***
चित्र गूगल से साभार
चित्र गूगल से साभार