"मनवा बड़ा बेचैन
नहीं आवे दिल को चैन
आजा पारो छनकाती पायल
मिले नैनों से नैन..."
वाह क्या बात है..!ऐसा लग रहा है हुजूर तो पूरे मजनू बन गए हैं.. सही कह रहा हूँ न शिवा।
अरे केशव!! अरे ऐसा कुछ नहीं..मैं.. वो.. मैं तो बस... यूँ ही...
हड़बड़ाकर बोला शिवा।
केशव से शिवा हर तरह की बातें किया करता था, वही एक हमराज है जिसे शिवा के दिल का हाल पता है।
और बता कहाँ तक बात पहुँची...पारो ने कुछ कहा तुझसे..?
नहीं कहा तो कह देगी.. आँखों में दिखाई देता है जो उसके मन में है।
सुन शिवा दुष्यंत पर नजर रखियो.. उसके ढंग सही न लग रहे पारो का पीछा करता फिरता है।हम्म..देखा है मैंने भी...मेरे होते हुए हाथ भी लगाकर देखें पारो को... उसकी सब हेकड़ी निकालूँगा.. होगा जमींदार का बेटा तो अपने लिए।
तभी पारो आती दिखाई देती है..लो आ गई अब दोनों मिलकर गीत गाओ मैं चलता हूँ। केशव पारो को देखकर चला जाता है।
क्या हुआ अचानक तेरा मूँह क्यों लटक गया..? अभी तो बड़ा बातें कर रहा था उस केशव से मुझे देखकर चुप हो गया।मेरा आना अच्छा नहीं लगा तो मैं वापस जा रही हूँ।
पारो वापस जाने के लिए मुड़ी वैसे ही दौड़कर शिवा ने उसे पकड़ लिया,अररे.. रुक तुझसे मिलने के लिए ही यहाँ आकर बैठता हूँ , और तू है कि मेरी बात सुने बिना ही चल दी।
तो बोल क्या हुआ..? वो दुष्यंत के बारे में कह रहा था केशव कल देखा उसने उसे तेरा रास्ता रोकते।
ओह यह बात है... अरे उसे मैंने ही रोका था...बस उससे बात करने का मन हुआ तो..पारो ने शिवा को छेड़ने के लिए झूठ बोला।
यह तू क्या कह रही है तूने क्यों रोका..? तुझे पता नहीं कितना
बेकार है वो... अरे वो तेरे लिए बेकार होगा.. मुझे तो वो बड़ा सुंदर लगता है।
लंबा है,गोरा है, पैसे वाला है पारो शिवा के चेहरे पर जलन के भाव देख बहुत खुश हो रही थी।
अच्छा ऐसी बात है तो यहाँ क्या करने आई है जा उसी के पास जा... वो लम्बे,गोरे के पास.. शिवा नम होती आँखों को छिपाने की कोशिश करता हुआ घूमकर खड़ा हो गया।
पारो को शिवा की आँखों में आँसू देखकर अपनी गलती का अहसास हुआ।अररे..अररे तुम तो बुरा मान गए..ऐ शिवा माफ कर दे.. शिवा कुछ नहीं बोला।
यह तो सही में गुस्सा हो गया पारो मन ही मन बोली।उसे खुद पर गुस्सा आने लगा था। फिर वो भी उसे मनाने के लिए गीत गुनगुनाने लगी।
"यूँ ही रूठे रहोगे तुम हमसे
जान निकल जायेगी तन से
हो गई है गलती कर दे माफ़
बिन शिवा पारो न रहे जिंदा।
शिवा पारो के मुँह पर हाथ रखकर कहता है श्श्श फिर से ऐसा मत कहना तुझसे पहले मेरी जान निकल जायेगी।
ओह शिवा...पारो शिवा के गले लग जाती है। मुझे माफ़ कर देना।
इधर कुंती शिवा से मिलने के बहाने ढूँढने लगी, कुछ सोचकर उसकी आँखों में चमक आ जाती है।
उसे याद आया शिवा बहुत मधुर बांसुरी बजाता है,हर जन्माष्टमी को मंदिर में शिवा ही बांसुरी बजाया करता है।
वो दौड़कर रामव्रत के पास गई,बापू.!!बापू मुझे बांसुरी बजाना सीखना है।
यह क्या नयी मांग लेकर आ गई कोई बांसुरी बजाना नहीं सीखना..घर के काम सीख माँ का हाथ बटाया कर घर के काम-काज में..रामव्रत के मना करने पर भी कुंती जिद्द लेकर बैठ गई।
क्रमशः
***अनुराधा चौहान***
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