Saturday, January 9, 2021

वीर सैनानी कनाईलाल दत्त


दादी माँ..!! आप क्या कर रही हो..? हर्ष और रूही गायत्री के कमरे में प्रवेश करते हुए बोले।

कुछ नहीं बेटा..बस अकेली बैठी बोर हो रही थी तो बस कुछ पुरानी तस्वीरें देखने लगी..!पर तुम दोनों इस समय..?

दादी माँ हमें नींद नहीं आ रही, मम्मी पापा से कहानी सुनाने के लिए कहा तो उन्होंने मना कर दिया..!

ओह..दिन भर ऑफिस में काम करके दोनों बहुत थक जाते हैं।आओ मेरे पास लेट जाओ,आज भारत के वीर सपूत कनाईलाल दत्त के बारे में बताती हूँ..!

वीर सपूत..?वो क्या होता है दादी माँ..?

वीर सपूत अपनी मातृभूमि की रक्षा के लिए अपना जीवन कुर्बान कर देते हैं पर अपनी भारत माता पर कोई आँच नहीं आने देते। अच्छा अब दोनों चुपचाप कहानी सुनो..!

यह कहानी है आजादी के मतवाले वीर कनाईलाल दत्त की..!

देश की आज़ादी के लिए मात्र उन्नीस वर्ष की आयु में हँसते-हँसते फाँसी के फंदे पर झूलने वाले खुदीराम बोस को तो सभी जानते हैं। खुदीराम बोस की तरह ही देश की आजादी के लिए सबसे कम उम्र में फाँसी पर चढ़ने वाले आज़ादी के दूसरे सिपाही थे कनाई लाल दत्त..! 

अंग्रेजी हुकूमत से अपने देश को आजाद कराने के लिए न जाने कितने युवक-युवतियों,बच्चे बूढ़े इन सभी ने अपने प्राणों को न्यौछावर कर दिया।आज हम चैन से जी पा रहे हैं तो इन्हीं वीरों के बलिदान के कारण..!

कनाई लाल दत्त भी उन्हीं वीरों में से एक थे। कनाईलाल का जन्म 30 अगस्त, 1888 को बंगाल में हुगली ज़िले के चंदन नगर में हुआ था।उनके पिता चुन्नीलाल बम्बई में ब्रिटिश सरकार के नौसेना विभाग में एकाउंटेंट थे और इस वजह से वह अपने परिवार को भी बम्बई ले आए‌। कनाईलाल दत्त की प्रारम्भिक शिक्षा बम्बई में हुई थी। 

बम्बई कहाँ है दादी माँ..?

मुंबई ही बम्बई है बच्चों,पहले हमारे मुंबई शहर को बम्बई नाम से जाना जाता था।कनाई लाल अपनी प्रारंभिक शिक्षा आर्य शिक्षा सोसाइटी स्कूल में पूरी करने के बाद वापस चंदन नगर लौट आए।वापस आकर उन्होंने हुगली के कॉलेज में दाखिला ले लिया।उसी दौरान उनकी मुलाक़ात प्रोफेसर चारूचंद्र रॉय से हुई।

प्रोफेसर चारूचंद्र रॉय से मुलाकात के बाद कनाईलाल दत्त की विचारधारा बदलने लगी।उनके क्रांतिकारी विचारों का प्रभाव कनाई पर भी पड़ने लगा और उनके मन में ब्रिटिश हुकुमत को जड़ से उखाड़ फेंकने की लालसा ने जन्म ले लिया। 

कनाईलाल दत्त युगांतर पार्टी से जुड़ने के बाद और भी बहुत से क्रांतिकारियों के संपर्क में आए।वह दौर‘बंगाल विभाजन’ का दौर था।अंग्रेजी हुकुमत ने बंगाल को बाँटने का फरमान जारी किया तो उनके इस फैसले के खिलाफ युवा क्रांतिकारियों ने आन्दोलन शुरू कर दिया।

कनाई लाल ने भी चंदननगर से आंदोलन का मोर्चा निकाला।कनाई लाल की क्रान्तिकारी गतिविधियो को देखते हुए कॉलेज ने उन पर ग्रेजुएशन की डिग्री रोकने का दबाव बनाया पर फिर भी वो रुके नहीं, अपने इरादों को मजबूत आगे बढ़ते गए।

कनाईलाल कोलकाता में बारीन्द्र कुमार घोष के घर में रहते थे। इसी घर में यह क्रान्तिकारी अपने हथियार और गोला-बारूद भी रखते थे।

हथियार और गोला-बारूद..? दादी माँ वो क्यों..?

अंग्रेजी हुकूमत के जुल्मों से अपने देश को आजाद कराने के लिए इन सब चीजों की कब जरूरत पड़ जाए इसलिए..!

ओह अच्छा..!

30 अप्रैल 1908 को खुदीराम बोस और उनके साथी प्रफुल्ल चंद्र चाकी ने मुज़फ्फरपुर में किंग्सफ़ोर्ड पर बम फेंक दिया।उस घटना से ब्रिटिश सरकार की नींदें उड़ गई। गुस्से से तिलमिलाई ब्रिटिश सरकार क्रान्तिकारियों को गिरफ्तार करने के लिए जगह-जगह छापेमारी करने लगी।उसी दौरान पुलिस को कनाई और उनके साथियों की गतिविधियों पर शक हो गया।

2 मई 1908 को पुलिस ने बारीन्द्र घोष के घर पर भी छापा मारा और उन्हें उस घर में एक बम फैक्ट्री और काफी मात्रा में हथियार मिले।इसके बाद अंग्रेजों ने अरविन्द घोष, बारिन्द्र कुमार घोष, सत्येन्द्र नाथ (सत्येन) व कनाई लाल समेत 35 क्रान्तिकारियों को गिरफ्तार कर लिया। 

कन्हाई लाल दत्त के साथ-साथ उसके प्रेरक प्रोफ़ेसर चारु चन्द्र राय भी बन्दी बनाये गये थे। सब पर अभियोग चला किन्तु चारू चन्द्र राय को फ्रांसीसी सरकार की बस्ती का नागरिक होने के कारण रिहा कर दिया गया।

सभी क्रान्तिकारियों को गिरफ्तार कर अलीपुर जेल में रखा गया और सब पर विद्रोही होने का मुकदमा चलाया गया।गिरफ्तार होने वाले लोगों में, कनाईलाल दत्त का सहयोगी नरेंद्र नाथ गोस्वामी भी था।उन सभी से उनकी योजनाओं और साथियों का सच उगलवाने के लिए पुलिस ने कठोर यातनाएं दीं, परंतु किसी ने अपना मुँह नहीं खोला।

कनाईलाल के सहयोगी नरेन्द गोस्वामी ब्रिटिश सरकार की यातना के डरकर और जेल से छूटने के लालच में अपने साथियों के साथ गद्दारी कर पुलिस को क्रांतिकारियों के ठिकानों की जानकारी देना शुरू कर दी।

फिर क्या हुआ दादी माँ..सब पकड़े गए..?

बताती हूँ..आगे सुनो..! नरेन्द्र गोस्वामी से सूचना पाकर पुलिस ने उनके गुप्त ठिकानों पर छापे मारना शुरू कर दिया और भी बहुत सारे क्रान्तिकारियों को पकड़ लिया गया। उसके बाद नरेन्द्र गोस्वामी ने इन क्रान्तिकारियों के और भी कई सारे राज उजागर कर दिए। 

कनाईलाल दत्त और उनके साथियों को अपनी सभी योजनाओं पर पानी फिरता दिखाई देने लगा।उन्होंने मन ही मन ठान लिया कि हमारी मातृभूमि के साथ दगा करने वाले को सबक सिखाना ही होगा ताकि और कोई इस तरह की गद्दारी न कर सके।

नरेंद्र गोस्वामी को क्रान्तिकारियों के गुस्से से बचाने के लिए पुलिस ने विशेष सुरक्षा प्रदान की और उसे उन सब से अलग जेल में रखा। ताकि उसे इन लोगों से किसी प्रकार का खतरा न रहे।

कन्हाई लाल और सत्येन्द्र अपनी योजना पर तेजी से कार्य कर रहे थे।उन्होंने सबसे पहले जेल के पहरेदारो से घनिष्टता बढाई और अपनी बातों से उन्हें बहुत हद तक प्रभावित कर लिया।फिर साथियों के सहयोग से जेल के भीतर लाये जाने वाले कटहल- मछली के भीतर छुपाकर लाई गईं दो पिस्तौल प्राप्त करने में सफल हो गये।

अब उनका अगला लक्ष्य था नरेंद्र तक पहुँचना,नरेन्द्र अपने अगले बयान में क्रान्तिकारियों के अन्य ठिकानों का पर्दाफाश करें उससे पहले कनाईलाल और सत्येन ने एक योजना बनाई।सत्येन अचानक बीमार होने का नाटक करने लगे,यह देख उन्हें जेल के अस्पताल में पहुँचा दिया गया।

उनके बाद कनाईलाल दत्त ने भी पेट में अत्याधिक पीड़ा का नाटक शुरू कर दिया। सत्येंद्र तो पहले ही बीमारी का बहाना बना कर अस्पताल पहुँच चुके थे और उन्होंने पुलिस के मुखबिर बनने की बात मानकर नरेन्द्र से मिलने की इच्छा जाहिर कर दी। इधर भयंकर पेटदर्द का बहाना बनाकर कनाईलाल भी अस्पताल में भर्ती हो गए थे।

सत्येंद्र के मुखबिर बनने की खबर सुनकर नरेन्द्र भी खुश हो गए और उनसे मिलने अस्पताल जा पहुँचे। नरेन्द्र इस बात से पूरी तरह अनजान थे कि वह कनाईलाल और सत्येंद्र के बनाए चक्रव्युह में फस चुके हैं। जैसे ही नरेन्द्र उनसे मिलने आए वैसे ही अचानक सत्येन्द्र ने उन पर फायर कर दिया।

नरेन्द्र जान बचाकर भागने लगे तो दर्द का बहाना कर बिस्तर पर लेटे कनाईलाल ने बड़ी फुर्ती से नरेन्द्र का पीछा कर पिस्तौल की सारी गोलियाँ उनके जिस्म में उतारकर भारत माता से की गई गद्दारी का बदला ले लिया।

अंग्रेजों का सुरक्षा कवच भी उस गद्दार के जीवन को नहीं बचा पाया।अंग्रेजी हुकूमत के सामने ही कनाईलाल ने अपने सहयोगी सत्येन बोस के साथ मिलकर गवाही से पहले ही नरेन्द्र की हत्या कर दी।

कनाईलाल के इस कारनामे से ब्रिटिश सरकार गुस्से से तिलमिला उठी। आनन-फानन में उन्होंने उन्हें फाँसी की सजा सुना दी।पूरे मुकदमे के दौरान कनाईलाल जरा भी विचलित नहीं हुए।जब जज ने उनसे इस घटनाक्रम के बारे में पूछा तो उन्होंने कहा कि वह देश का गद्दार था, उसे मारने का उन्हें कोई अफसोस नहीं है।।सजा के बाद जब अपील का प्रश्न उठा तो कनाई ने अपील करने से साफ़ मना कर दिया।

फाँसी की सजा सुनकर कनाईलाल के चेहरे पर मुस्कान तैर गई।जिसे देखकर अंग्रेज वार्डन ने चिढ़कर कहा कि अभी मुस्करा रहे हो, कल जब फाँसी का समय आएगा तब तुम्हारे चेहरे का रंग उड़ जाएगा।

फाँसी के दिन जब जेल के कर्मचारी उन्हें लेने के लिए उनकी कोठरी में पहुँचे, उस समय कनाईलाल दत्त गहरी नींद में सोये हुए थे। फाँसी पर चढ़ने से कुछ ही देर पहले कनाईलाल ने मुस्कुराते हुए उसी अंग्रेज वार्डन से पूछा “ जरा बताइए अभी मैं आपको कैसा लग रहा हूं।” उस वार्डन के पास कनाईलाल के इस सवाल का कोई जवाब नहीं था।

10 नवंबर 1908 को भारत माता के वीर सपूतों को फाँसी पर चढ़ा दिया गया। कनाईलाल के परिवार वाले जब उनका पार्थिव शरीर लेने गए तो उन्हें खुद पर काबू करना मुश्किल हो रहा था तब उसी वार्डन ने प्रोफेसर चारू से कहा कनाईलाल जैसे सौ वीर और जन्म ले लें तो भारत ज्यादा दिनों तक गुलाम नहीं रह सकता। 

कनाई के बड़े भाई अपने भाई का शव देखकर रोने लगे तो वार्डन ने कहा वीर कभी मरा नहीं करते,आप धन्य हो कि कनाईलाल जैसे वीर ने आपके घर जन्म लिया।साथ आए सभी लोग यह देखकर चकित थे कि उस अंग्रेज वार्डन की आँखें भी कनाईलाल के बलिदान से नम हो गई थी।

कनाईलाल के मुख से चादर हटाई गई तो मृत्यु पश्चात भी उनके मुखमंडल पर मरने की पीड़ा किंचित मात्र भी नहीं था,बस एक हल्की-सी मुस्कान तैर रही थी।जेल में पिस्तौल कैसे पहुँची यह जानने की ब्रिटिश सरकार ने बहुत हाथ-पैर पटके पर जेल के अंदर एक देशद्रोही को उसके अंजाम तक पहुंचाने के लिए कनाईलाल और सत्येंद्र के पास हथियार कैसे पहुँचे..?यह राज पता नहीं कर पाई।

इस घटना ने पूरे देश में तहलका मचा दिया कि कैसे दो क्रांतिकारियों ने ब्रिटिश पुलिस की नाक के नीचे इतना बड़ा कारनामा कर दिखाया, उनके सामने उनके गवाह की हत्या कर दी गई और वो कुछ न कर पाए। 

कनाईलाल दत्त बीस वर्ष की आयु में खुदीराम बोस के बाद सबसे कम उम्र में फाँसी के फंदे पर झूलने वाले दूसरे क्रांतिकारी थे। फाँसी के बाद उनकी अंतिम यात्रा में आज़ादी के इस परवाने के अंतिम दर्शन करने के लिए हजारों की संख्या में लोगों की भीड़ जमा हो गई थी।। 

कोलकाता का कालीघाट लोगों से भर गया था और हर कोई अंतिम बार इस महान क्रांतिवीर के दर्शन करना चाहता था। चारों तरफ ‘जय कनाई’ कनाईलाल की जय के नारे गूँजते नारे ब्रिटिश सरकार को भारत से उखाड़ फेंकने का आगाज कर रहे थे।

कनाईलाल दत्त जैसे वीरों की कुर्बानी से आज हम आजाद भारत से चैन से रह रहे हैं।कनाईलाल दत्त जैसे वीरों की शहादत को शत् शत् नमन।

हम भी शत-शत नमन करते हैं दादी माँ..!


अब जाओ, दोनों चुपचाप सो जाओ..!

जी दादी माँ.. शुभ रात्रि..!


©® अनुराधा चौहान'सुधी'स्वरचित ✍️

चित्र और जानकारियाँ गूगल से साभार


22 comments:

  1. बहुत ही देशभक्ति पूर्ण कहानी..खासतौर से आपने बाल सुलभ मन को जिस तरह से क्रान्तिकारियों एवं देश के अमर सपूतों से जोड़ने की कोशिश की वह बहुत ही सराहनीय है..सादर नमन..

    ReplyDelete
    Replies
    1. हार्दिक आभार आदरणीया।

      Delete
  2. देशभक्ति का जज्बा जगाने वाली सार्थक पोस्ट।
    मरा नमन।
    विश्व हिन्दी दिवस की बधाई हो।

    ReplyDelete
    Replies
    1. हार्दिक आभार आदरणीय।
      आपको भी विश्व हिन्दी दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं।

      Delete
  3. बहुत सुंदर प्रस्तुति।

    ReplyDelete
  4. प्रेरणास्पद कथा...

    ReplyDelete
  5. प्रेरणादायक प्रस्तुति - - प्रभावशाली लेखन।

    ReplyDelete
    Replies
    1. हार्दिक आभार आदरणीय

      Delete
  6. प्रेरणादायक और सार्थक पोस्ट

    ReplyDelete
    Replies
    1. हार्दिक आभार आदरणीय

      Delete
  7. प्रेरणादायक प्रस्तुति व प्रभावशाली लेखन।

    ReplyDelete
    Replies
    1. हार्दिक आभार आदरणीया

      Delete
  8. सुन्दर सार्थक रचना

    ReplyDelete
    Replies
    1. हार्दिक आभार आदरणीय

      Delete
  9. सुन्दर और भावपूर्ण प्रेरक कथा ।

    ReplyDelete
  10. सुन्दर और भावपूर्ण प्रेरक कथा ।

    ReplyDelete
  11. Replies
    1. हार्दिक आभार आदरणीय

      Delete