एक सितंबर 1939 को जर्मनी की सेनाओं ने अचानक पोलैंड पर आक्रमण कर दिया। हिटलर की सेनाओं ने ये आक्रमण बिना किसी पूर्व चेतावनी के किया था।सवेरा होते ही जर्मन सेना के युद्धक विमानों ने पोलैंड पर हवाई हमले शुरू कर दिए।सुबह नौ बजे राजधानी वॉरसॉ पर हवाई बम बरसने लगे।इसके साथ ही द्वितीय विश्व युद्ध की शुरूआत हो गई।
द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान जर्मन तानाशाह हिटलर और सोवियत रूस के तानाशाह स्टालिन के बीच गठजोड़ हुआ। जर्मन अटैक के 16 दिन बाद सोवियत सेना ने भी पोलैंड पर धावा बोल दिया। दोनों देशों का पोलैंड पर कब्जा होने तक भीषण तबाही मची।
इस भीषण युद्ध में हजारों सैनिक मारे गए और भारी संख्या में बच्चे अनाथ हो गए।तब 500 पोलैंड की महिलाओं और 200 बच्चों को जर्मनों के अत्याचार से बचाने के लिए एक जहाज पर बिठा दिया गया। पोलैंड के सैनिकों द्वारा जहाज को समुद्र में छोड़ते हुए कप्तान से कहा कि वे उन्हें किसी ऐसे देश में ले जाएं जहाँ उन्हें आश्रय मिल सके।उनका देशवासियों का आखिरी संदेश था "अगर हम जीवित रहे तो हम फिर मिलेंगे!"
जहाज के कप्तान 500 शरणार्थी पोलिश महिलाओं और 200 बच्चों से भरे जहाज को लेकर कई यूरोपीय बंदरगाहों,एशियाई बंदरगाहों पर गए,जहाँ उन्हें शरण देने से मना कर दिया गया।जहाज ईरान के बंदरगाह भी पर पहुँचा वहाँ भी उन्हें कोई रहने की अनुमति नहीं मिली।
इसी तरह समुद्र में भटकता-भटकता जहाज भारत पहुंचा और बंबई के तत्कालीन बंदरगाह पर आया तो ब्रिटिश गवर्नर ने भी जहाज को बंदरगाह पर जाने से मना कर दिया।
फिर यह जहाज गुजरात के जामनगर के तट पर जहाज़ रुका। वहाँ के राजा जाम दिग्विजयसिंह जाडेजा ने उनकी हालत देखकर व्यथित हो गए और उन्होंने जहाज को जामनगर के पास एक बंदरगाह पर रुकने की अनुमति दी। उन्होंने न केवल 500 महिलाओं को आश्रय दिया बल्कि उनके बच्चों के पालक पिता बनकर उनको बालाचिरी के एक आर्मी स्कूल में मुफ्त शिक्षा भी दिलवाई।
ये शरणार्थी नौ साल तक जामनगर में रहे। जाम साहब द्वारा उनकी अच्छी तरह से देखभाल की जाती थी। जो नियमित रूप से उनके पास जाते थे और उन्हें प्यार से बापू कहते थे।
राजा दिग्विजय सिंह जी ने उन्हें न केवल आश्रय दिया अपितु उनके बच्चों को आर्मी की ट्रेनिग दी, उनको पढ़ाया, लिखाया, बाद मे उन्हें हथियार देकर पोलेंड भेजा। उन्होंने जामनगर से मिली आर्मी की ट्रेनिग के बलबूते पर देश को पुनः स्थापित किया, आज भी पोलेंड के लोग उन्हें अन्नदाता मानते है।
इन शरणार्थियों के बच्चों में से एक बाद में पोलैंड के प्रधान मंत्री बने। आज भी उन शरणार्थियों के वंशज हर साल जामनगर आते हैं और अपने पूर्वजों को याद करते हैं।
पोलैंड में एक स्कूल का नाम जाम साहेब दिग्विजय सिंह जडेजा के नाम पर रखा गया है। इतना ही नहीं,पोलैंड की राजधानी में कई सड़कों के नाम महाराजा जाम साहब के नाम पर हैं।वहाँ उनके नाम पर पोलैंड में कई योजनाएं चलाई जाती हैं। पोलैंड के अखबार में हर वर्ष महाराजा जाम साहब दिग्विजय सिंह की महानता के बारे में लेख छपते हैं।
आज भी पोलेंड के लोग उन्हें अन्नदाता मानते है, उनके संविधान के अनुसार जाम दिग्विजयसिंह उनके लिए ईश्वर के समान है। इसीलिए आज भी वहाँ के नेता उनको साक्षी मानकर संसद में शपथ लेते है।यदि भारत मे दिग्विजयसिंहजी का अपमान किया जाए तो यहाँ की कानून व्यवस्था में सजा का कोई प्रावधान नही लेकिन यही भूल पोलेंड में करने पर तोप के मुह पर बांधकर उड़ा दिया जाता है।
वर्ष 2013 में वॉरसॉ में फिर एक चौराहे का नाम 'गुड महाराजा स्क्वॉयर' दिया गया। इतना ही नहीं, महाराजा दिग्विजय सिंहजी जडेजा को राजधानी के लोकप्रिय बेडनारस्का हाई स्कूल के मानद संरक्षक का दर्जा दिया गया। पोलैंड ने महाराजा को अपने सर्वोच्च नागरिक सम्मान कमांडर्स क्रॉस ऑफ दि ऑर्डर ऑफ मेरिट भी दिया।
क्या आप जानते हो आज युक्रेन से आ रहे भारत के लोगो को पोलेंड अपने देश में बिना वीजा के क्यो आने दे रहा ?वो इसलिए कि आज भी पोलेंड जाम साहब के उस कर्म को नही भुला इसलिए आज इस संकट की घड़ी में भारत के लोगो की सभी प्रकार से मदद कर रहा है।
यह आधुनिक समकालीन इतिहास का एक शानदार पृष्ठ था,जिसे भारत में आज भी बहुत कम लोग जानते हैं!
अनुराधा चौहान'सुधी'
नोट-राजा दिग्विजय सिंह जाडेजा के विषय में जानकारी और फोटो गूगल से ली गई है।
सादर नमस्कार ,
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (8-3-22) को "महिला दिवस-मौखिक जोड़-घटाव" (चर्चा अंक 4363)पर भी होगी।आप भी सादर आमंत्रित है..आप की उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ायेगी .
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कामिनी सिन्हा
हार्दिक आभार सखी।
Deleteइतिहास के छुपे पन्नों में कितना कुछ गौरवशाली है ।
ReplyDeleteबहुत सुंदर प्रस्तुति सखी ।
नमन ऐसे परमार्थी पुरुषों को।
हार्दिक आभार सखी।
Deleteउम्दा प्रस्तुति
ReplyDeleteहार्दिक आभार मनोज जी।
Deleteरोचक एवं ज्ञानवर्धक लेख।
ReplyDeleteहार्दिक आभार सखी।
Deleteअभिभूत और नतमस्तक हूँ इस अद्भुत प्रसंग को पढ़कर . पहलीबार जाना है यह सच . हर भारतीय को जानना चाहिये . वाह अनुराधा जी आनन्दित और गर्वित करने वाला आलेख
ReplyDeleteहार्दिक आभार आदरणीया।
Deleteअच्छी प्रस्तुति
ReplyDeleteहार्दिक आभार आदरणीय।
Deleteप्रत्येक भारतवासियों को यह जानना चाहिए और स्वयं में अपनाना चाहिए
ReplyDeleteसाधुवाद आपको इसे साझा करने के लिए
हार्दिक आभार आदरणीया दी।
Deleteबहुत सुंदर।
ReplyDeleteहार्दिक आभार ज्योति जी।
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