Thursday, February 16, 2023

स्वार्थ की आँधी


 "उफ यह आँधी..! 


"काकी द्वार बंद करलो, बहुत तेज आँधी  आने वाली है..!"आवाज सुनकर कामना चौंक कर देखती है तो सामने की छत से कपड़े समेटती बंशीलाल की बेटी निर्मला चिल्ला रही थी।


"काकी कहाँ खोई हो? बहुत तेज आँधी आने वाली है। आसमान धूल से भर गया है।घर गंदा हो जाएगा ...!


"आने दे निर्मला,तू भीतर जा...!


"काकी मैं तो कपड़े लेकर भीतर ही जा रही थी।आपको आँगन में बैठा देख रुक गई।आप पहले द्वार तो बंद कर लो, फिर मैं चली जाऊँगी।देखो तेज हवाएं चलने भी लगीं..!


"यह हवाएं मन की आँधी से तो तेज ना होगी बिटिया..? 


"क्या कहा काकी..?"


"कुछ नहीं तू जा अंदर जा, कहीं कुछ उड़ उड़कर न लग जाए..!


"जा ही रही हूँ..!"निर्मला कपड़े समेट कर अंदर चली गई। कामना दरवाजा बंद करते हुए मन में सोचने लगी।"जब ज़िंदगी की खुशियों को ही स्वार्थ की आँधी उड़ा ले गई ,तो इस आँधी से कैसा डर..?


धूल का गुबार लेकर चलती हवाएं दरवाजे से टकराकर अजीब सी आवाजें पैदा कर रहीं थीं।


"यह आँधी तो कुछ समय की है।थम जाएगी।जाते जाते अपने निशा पीछे छोड़ जाती हैं।लोग उन्हें पहले की तरह करने की कोशिश में लग जाएंगे और कर भी लेंगे।पर मैं क्या करूँ?मैं कैसे अपने स्वप्न महल से स्वार्थ के निशान मिटाऊँ, कैसे?" बीते कल की बातें याद कर कामना की आँखों से आँसू बहने लगे।


"कामना बहू...!"


"आई माँजी..! कामना साड़ी के पल्लू से हाँथ पोंछती हुई आई।


"कामना बहू इनसे मिलो मेरे भाभी के दूर के रिश्तेदार बैजनाथ हैं। मुकुल के रिश्ते की बात करने आए हैं...!"


"जी नमस्कार ..! कामना हाथ जोड़कर बोलीं।


"यह बिटिया पूर्वी का फोटो, आराम से देख लेना और सबको दिखा देना। अभी इनके लिए जलपान की व्यवस्था करो..!


"जी माँजी..!जलपान की व्यवस्था करती कामना ने एक नजर पूर्वी की तस्वीर पर डाली। लड़की तो बहुत सुंदर है।जगवीर और मुकुल की हाँ हो जाए तो जल्दी ही चांद सी बहू घर आ जाए..!


"चलता हूँ बहन जी..जो भी निर्णय हो बताना..!चाय पीकर बैजनाथ उठ खड़े हुए।


"जी भाईसाहब.. नकुल के लिए भी कोई लड़की देखे रहना। जगवीर और बच्चे देख लें,तो बात आगे बढ़े।बहू मुकुल की फोटो हो तो दे दो,नहीं तो मोबाइल पर भिजवा देना नंबर मेरी डायरी में लिखा है..!


"अभी लाई..!कामना ने मुकुल की फोटो लाकर दे दी।मुकुल को पूर्वी बहुत पसंद आई। दोनों पक्षों की हाँ होते ही एक अच्छा सा मुहूर्त देखकर शादी की तारीख तय हो गई और पूर्वी बहू बनकर घर में आ गई।


"कामना बहू से भी काम कराया कर।यह क्या जब भी वो कुछ करने जाती है,तू मना कर देती है..!"


"माँ काम के लिए पूरी जिंदगी पड़ी है।बच्ची है,नई नई शादी हुई है। कुछ दिन आराम करले, फिर उसे ही सब करना है..!"


"अति हर बात की बुरी होती है। अभी तू आदत खराब कर रही है।बाद में देखना तेरा यही प्रेम इस स्वप्न महल की खुशियाँ लील जाएगा।नकुल भी यह सब देख रहा है।एक बार उसकी शादी होने दे तब तुझे पता चलेगा।काम को लेकर रोज घर में झगड़े होंगे...!"


"ऐसा कुछ नहीं होगा माँजी..! कामना बहू को बेटी की तरह लाड़ करती।पूर्वी ने भी अब काम करने की कोशिश करना बंद कर दिया।साल भर बाद ही नकुल की भी शादी हो गई।तारा घर में बहू बनकर आ गई।


"तुम दोनों मिलकर घर के काम संभालो।माँजी बीमार रहती हैं।मुझे उन्हें भी संभालना रहता है।अब मुझसे इतनी ज्यादा मेहनत नहीं होती..!"नकुल की शादी को अभी तीन महीने ही हुए थे। कामना ने बहुओं को काम करने के लिए कह दिया।


"माँ भाभी की शादी को एक साल हो गया।आप उनसे कहो कुछ दिन घर की पूरी जिम्मेदारी वो उठाएं।तारा को आए अभी तीन महीने ही हुए हैं।आपने भाभी को इतना आराम दिया तारा के साथ उपेक्षित व्यवहार क्यों..?"नकुल माँ का आदेश सुनते ही विरोध में बोला।


"नकुल मुझे तारा भी उतनी ही प्रिय है जितनी पूर्वी, तेरी दादी की तबियत और मेरी बढ़ती उम्र क कारण अब मुझसे उतना काम नहीं होता..! कामना नकुल के व्यवहार से दुखी होकर बोली।


"मेरी बातों को नजरंदाज करने का देखा नतीजा? पहली कामचोर हो गई और दूसरी को उसके पति ने भड़का दिया। तेरे बेटे मेरे जगवीर से नहीं ,जो मां का सुख देखें।देखे रंग? उन्हें माँ नहीं पत्नियों की ज्यादा चिंता है...! कामना क्या कहती,माँ सच ही तो कह रही थीं।


ऐसे ही समय गुजरता गया। पहले माया देवी फिर जगवीर इस दुनिया को अलविदा कह गए। कामना एक के बाद एक दो प्रियजनों को खो देने से टूट गई।


अब उससे जितना होता काम करती और बहुओं पर छोड़ देती। शादी के बाद नकुल की कही बातें तारा के हृदय में घर कर गईं थीं‌। वो कामना की हर बात का उल्टा जबाव देती थी।


"तारा मेरे सिर में बहुत दर्द है। क्या चाय बना दोगी..?"


"आपकी लाड़ली आराम कर रही है उससे बनवा लीजिए..!


"तुम्हें नहीं बनानी मत बनाओ, मुझे क्यों बीच में घसीट रही हो..? पूर्वी अपना नाम सुनते ही बाहर आई।


"कोई मत बनाओ, शांत रहो, मुझे नहीं चाहिए चाय!मेरी ही गलती जो तुम दोनों को बेटी बनाने चली थी..! कामना की बात सुनकर तारा उठी और अपने कमरे में चली गई।कामना चुपचाप लेट गई।


"मुकुल माँ से कहो घर का बँटवारा कर दें।तारा अपना हिस्सा संभाले और हम अपना हिस्सा। मैं अब और ताने नहीं सुन सकती..!


"अच्छा बाबा पहले तुम शांत हो जाओ।मैं  अभी जाकर माँ से बात करता हूँ..! मुकुल ने पूर्वी को समझाते हुए कहा।


"माँ सिर दर्द हो रहा है..? मुकुल माँ के सिरहाने बैठकर सिर दबाते हुए बोला।


"हम्म..!"


"पूर्वी माँ के लिए अदरक वाली चाय बना लाओ...!मुकुल ने पूर्वी को आवाज दी तो तारा के कान खड़े हो गए।


"जी अभी लाई...!पूर्वी ने जबाव दिया।


"माँ तुम्हारी बहुएँ काम को लेकर बे बात उलझती रहती हैं।आप भी कब तक इन दोनों की चिक चिक बर्दाश्त करोगी?


"अचानक से तुम्हें यह सब कैसे दिखाई देने लगा बेटा..?


"अचानक नहीं माँ, मैं आपकी तकलीफ देखकर कई दिनों से आपसे बात करने की सोच रहा था..! 


"ऐसी कौनसी बात है जिसे करने के लिए तुम्हें सोचना पड़ रहा है..? कामना ने कुछ सोचते हुए पूछा।


"माँ क्यों न घर का बँटवारा कर ले, नकुल भी अपनी गृहस्थी में खुश, मैं भी अपनी गृहस्थी में खुश,ना कोई झगड़ा होगा न बिना बात बहस होगी..!"मुकुल ने अपनी बात रखी।


"और मैं ? मैं किसकी गृहस्थी के हिस्से में आ रही हूँ बेटा..? कामना ने शांत लहजे में पूछा।


"आपका क्या माँ,जब तक मेरे पास रहना है तो हमारी होकर रहना।जब नकुल के पास रहो तब तक उनकी होकर रहना..!


"मतलब यह तुम्हारे साथ रहूँ तो छोटे से संबंध न रखूँ?उसके बच्चों से न बोलूँ? और उसके पास रहूँ तो तुमसे और तुम्हारे बच्चो से दूर रहूँ..?"कामना यह सुनकर हतप्रभ रह गई।


"आप तो बिना समझाए समझ गईं माँ.. मैं यही कहना चाह रहा था कि रोज रोज की वही बातें,वही किस्से अब खत्म हो, वही हम सबके लिए अच्छा है..!


"इस आर-पार वाले किस्से में मेरे हिस्से क्या आएगा...?


"आप नकुल के पास रहो या मेरे साथ, क्या फर्क पड़ता है?आप रहोगी अपने इसी घर में हमारे साथ, हमारे घर में..!" मुकुल ने कहा।


"बँटवारे की अवधि में एक बेटे के साथ रहकर दूसरे से अजनबी बनकर?अपनी ममता, अपने स्वाभिमान को मारकर टुकड़ों में ज़िंदगी मुझे नहीं जीना।बूढ़ी हूई हूँ, लाचार नहीं।जब मेरे बेटे ही पराए हो गए तो अपने स्वाभिमान की बलि चढ़ाकर खुश रहने का दिखावा क्यों करूँ ? 


"माँ आप हमें पराया कह रही हो। अपने बेटों को..?


"हाँ सही सुना,जो बच्चे अपने स्वार्थ के लिए माँ को बाँटे,वो पराए ही है। मैं भी परायों के साथ नहीं रहना चाहती और मेरे जीते जी मेरे स्वप्न महल का बँटवारा नहीं होगा।रही बात खर्चें की तो मेरा पति मेरे लिए अपनी पेंशन और  प्रॉपर्टी छोड़ गया है।मुझे तुम दोनों से वो भी नहीं चाहिए..!"


"रहने दीजिए मुकुल.. इन्हें इनकी संपत्ति का बहुत घमंड है,तो रहें अकेले।मैं अब  इस घर में नहीं रहूँगी।इन्हें अकेले इस घर में कुँडली मारकर बैठे रहने दो।अंत समय हम ही याद आएंगे..!"पुर्वी की हठ पर मुकुल अलग रहने चला गया।


"माँ भैया भाभी ने सही नहीं किया। आप दुखी मत हो! हम हैं ना,हम करेंगे आपकी सेवा। तारा अबसे माँ का ध्यान तुम्हें रखना है। और यह ध्यान रहे उन्हें कोई तकलीफ़ न हो..?"मुकुल के घर छोड़कर जाने के बाद नकुल ने कहा।


"अब से? क्यों बेटा इससे पहले तुम्हे माँ नहीं की तकलीफ नहीं दिखी?यह बदलाव अचानक कैसे ?


"माँ मुझे तो हमेशा ही आपकी चिंता रही है।आप ही हमेशा भैया भाभी के लिए मरती रहीं ..!"


"अच्छा तुम एक माँ की ममता पर प्रश्न चिन्ह लगा रहे हो?"


"माँ मेरे कहने का यह मतलब नहीं था। मैं तो बस सच कह रहा था..!"कामना ने बीच में ही टोक दिया।


"बस बेटा और दिखावा सहन नहीं होता।जो बहू माँगने पर भी एक कप चाय नहीं देती। वो मेरी सेवा करेगी?जो बेटा माँ की परेशानी नजरंदाज कर अपनी खुशियों को पहले रखे, उससे क्या आशा?रहने दो बेटा, तुम्हें जाना है तो तुम भी जाओ, मुझे अकेला छोड़ दो..!


"माँ आप हमें क्यों दोष दे रही हो?यह जो हो रहा है,उसके लिए हम नहीं आप ही जिम्मेदार हैं..!


"वाह बेटा यह सही कहा..!आज मेरा घर ही नहीं टूटा,दिल भी टूट गया।पाँच साल पहले जिस क्लेश का तुमने बीज बोया, उसके काँटे मुझे चुभ रहे हैं..!"


"गलत क्या कहा था माँ। तुमने भाभी को इतना आराम दिया और तारा को आते ही काम सौंप दिया...!"


"तुम्हें यह दिखाई दिया?दादी लकवाग्रस्त होकर पूरी तरह मेरे सहारे हो गईं,वो नहीं दिखाई दिया?मैं बहू को सुख देती या अपनी सास के प्रति अपनी जिम्मेदारी निभाती.. ? 


"वो मुझे नहीं पता,आप भाभी को भी तो काम के लिए कह सकती थीं..!


"माँ में और भाभी में फर्क होता है नकुल। मैंने जो पूर्वी के साथ किया,वो भला तारा के साथ कभी करती ? नहीं करती..!


"आप तो उन्हीं का पक्ष लेती रहीं और लेती रहोगी..!"


"मैं तुम्हें सफाई नहीं देना चाहती। मैं और तेरे पिता तुम लोगों की तरह स्वार्थी बेटा बहू नहीं थे।उस समय मैंने वही किया जो मुझे सही लगा।उस समय मेरी सास को मेरी सबसे ज्यादा जरूरत थी।मैंने उन्हें चुना...!


"देख लिया नकुल.. अभी भी अपने को ही सही ठहरा रहीं हैं।मुझे भी कोई शौक नहीं इनके साथ रहने का,तुम्हीं करो सेवा। इनके ऐसे एटिट्यूड से इनकी सेवा कौन करेगा..?


"सही कहा तारा... इनके साथ एडजस्ट करना बहुत मुश्किल है..! नकुल भी अलग रहने चला गया। अपने स्वाभिमान को जिंदा रखकर कामना उन्हें जाते देखती रही।


"काकी..!तभी दरवाजे पर दस्तक सुनकर कामना ख्यालों से बाहर निकली।


"निर्मला तू..?आँधी बंद हो गई..? कामना ने बाहर झाँका तो माटी की सौंधी महक उड़ रही थी।


"हाँ काकी ..बूँदाबाँदी हो गई।यह देखो कौन आया है..?


"कमला..? कामना खुश होकर अपनी छोटी बहन के गले लग गई।


"चलती हूँ काकी..! निर्मला चली गई।


"दीदी जैसे ही आपका फोन आया वैसे ही अटैची उठाकर चली आई।शायद आपकी सेवा के लिए इतने सालों से अकेले थी। मेरी किस्मत में तो सुख थे ही नहीं,पर आप की खुशियाँ को किसकी नजर लग गई..!"कमला बहन को देख रोने लगी।


"किसी की नजर नहीं लगी कमला.. मेरे बच्चों को ही में बोझ लगने लगी थी। मैंने ही उन्हें इस बोझ से आजाद कर दिया।तू अपनी सुना कैसी है..?


"आपको सब पता तो है दीदी..! कहते हुए कमला रो पड़ी।कमला की शादी आर्मी के कैप्टन रंजीत से हुई थी।शादी के छः महीने बाद ही एक आतंकी मुठभेड़ में उसके पति शहीद हो गए। ससुराल ने अपशगुनी कहकर घर से निकाल दिया।तब से मायके में रह रही थी।


"रो मत कमला..इस दुनिया में पूरी तरह सुखी कोई नहीं।तू ही देख लें, कहने को यह मेरा स्वप्न महल है। लेकिन आज अपने ही सपनों की लाश पर मेरी तरह यह भी अकेला तना खड़ा है।अपने स्वाभिमान के साथ..!"


"आप सही कह रही हैं दीदी..!"


"लोगों की नजर में मुझ जैसा सुखी कोई नहीं ।मेरे पास तो दो दो बेटे हैं । सच्चाई मैं ही जानती हूँ कि कितनी सुखी हूँ।स्वार्थ के आगे मेरी ममता हार गई कमला।अब हमें किसी की जरूरत नहीं।हम दोनों अपने स्वाभिमान को जिंदा रख एक दूसरे के सहारे जीवन बिता ही लेंगे..!


©® अनुराधा चौहान 'सुधी'स्वरचित 


चित्र गूगल से साभार 



12 comments:

  1. कटु सत्य कहती कहानी।

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    1. हार्दिक आभार ज्योति जी।

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  2. आपकी लिखी रचना  ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" रविवार 19 फरवरी 2023 को साझा की गयी है
    पाँच लिंकों का आनन्द पर
    आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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    1. जी हार्दिक आभार आदरणीया।

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  3. ओह!!
    बहुत ही मार्मिक कहानी पर आजकल यही सत्य है । रिश्तों में स्वार्थ... माँ की कौन सुने ।

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  4. बहुत बहुत सुन्दर मार्मिक कथानक | शुभ कामनाएं |

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    1. हार्दिक आभार आदरणीय

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  5. बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति l
    होली की हार्दिक शुभकामनायें l

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    1. हार्दिक आभार आदरणीय

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  6. बहुत ही अच्छी तथा मर्मस्पर्शी कथा प्रस्तुत की आपने अनुराधा जी।

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    1. हार्दिक आभार आदरणीय।

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