चाची मेरी सफेद रंग की शर्ट नहीं मिल रही,जरा ढूँढ दो.!सूरज चिल्लाते हुए बोला।
"खुद ढूँढ लो,मैं छोटू को दूध पिला रही हूँ।सारे दिन कोई बहू तो कोई चाची करके काम बताता रहता है। ऊपर से शीला दीदी अपनी फरमाइश लेकर आ जाती हैं जैसे मैं इंसान नहीं मशीन हूँ...!"रमा बड़बड़ाने लगी।
"राघव पहन गया तेरी शर्ट सूरज..आज से उसकी परीक्षा शुरू हो गई है। सुबह सुबह ड्रेस की शर्ट पर कौवे ने बीट कर दी, मुझे दूसरी मिली नहीं तो तेरी पहना दी..! शीला ने आँगन से चिल्लाकर कहा।
"क्यों दीदी.. आज बस राघव की परीक्षा है। सूरज की परीक्षा नहीं है ? आपने एक बार भी नहीं सोचा वो क्या पहनकर जाएगा..?"सीमा यह सुनते ही चिढ़कर बोली।
"मुझे पता है सूरज की भी परीक्षा है।मैंने सोचा वो दोपहर में जाएगा,तब तक तो मैं राघव की शर्ट धोकर सुखा दूँगी। वैसे उसकी दूसरी शर्ट भी मिल गई है।तुम वो सूरज को पहना सकती हो.!"
"कहाँ राघव कहाँ सूरज?सूरज की शर्ट उसको कहाँ बनी होगी? आपने पूछने की भी जरूरत नहीं समझी।बेचारा बच्चा कसे कपड़ों में कैसे तीन चार घंटे निकाल रहा होगा? उसकी दूसरी गन्दी पड़ी है, नहीं तो पहना देती..!सीमा बड़बड़ाई।
"तुम्हारे कहने का मतलब मेरा राघव मोटा है?" शीला चिढ़कर बोली।
"मैंने तो ऐसा नहीं कहा..!
"मैं सब समझती हूँ सीमा. तुम मुझे नीचा दिखाने का एक मौका नहीं छोड़ती। तुम मेरे बेटे को तो ताने मत दो..!शीला ने आँसू बहाने शुरू कर दिए।
"आपको सही हमेशा ही गलत लगता है दीदी। मैंने कुछ भी ऐसा नहीं कहा जो रोना धोना शुरू कर दिया।आप हर बात का उल्टा ही मतलब निकालती हो..!
"मैं सब समझती हूँ, पागल नहीं हूँ..!"
"ठीक है अब आपको जो समझना हो समझती रहो ।चल सूरज इस क्लेश में तेरी परीक्षा छूट जाएगी हुंह..! सीमा मुँह बिचकाकर चली गई।
"एक सीमा दीदी ही हैं इस घर में जो शीला दीदी की दादागिरी का मुँहतोड़ जवाब देतीं हैं।वो जब से यह यहाँ आईं हैं,हम सबका जीना हराम कर रखा है। पता नहीं कौनसी घड़ी में इनसे पीछा छूटेगा..!रमा कमरे से सारा वार्तालाप सुन मन ही मन बोली।
"अब चुप क्यों हो अम्मा..तुम्हारी बहू रोज किसी न किसी बहाने से मुझे चार बातें सुनाती है।और तुम चुपचाप बैठी रहती हो।जब मेरी सास मुझे कुछ कहती थी तब तो तुम रोज मुझे ज्ञान देतीं थीं। ऐसा कर, वैसा कर,अब तुम्हारा ज्ञान कहाँ गया..!
"क्या कोहराम मचा रखा है घर में? दीदी तुम अपना घर तो सँभाल नहीं पाईं,हमें तो चैन से रहने दो।
"वाह बलदेव तुम भी मुझे ही दोष दे रहे हो ? तुमने सुना? अभी अभी सीमा मेरे राघव को मोटा बोलकर गई है..!"शीला तेज आवाज में बोली।
"सब सुना दीदी..सीमा ने ऐसा कुछ भी नहीं कहा जो आप क्लेश करने लगो? आपने अपना घर तो बर्बाद कर दिया अब हमारे घर की शांति को क्यों ग्रहण लगा रही हो..?
"शांत हो जा बलदेव..जा जाकर खाना खाले..! यमुना ने बीच में रोकते हुए कहा।
"ऐसे क्लेश में कौर भी गले से न उतरेगा अम्मा। मेरा खाना तुम दुकान पर ही खाना भिजवा देना। और हाँ दीदी अब यह शोर वहाँ तक न आए,ध्यान रहे। तमाशा बना दिया मोहल्ले में हमारा..!"बलदेव घर का झगड़ा देख गुस्से से तमतमाता वापस चला गया।
"देख लो अम्मा..जोरू का गुलाम हो गया है तुम्हारा बेटा। एक बार भी नहीं कहा कि सीमा ने जो कहा गलत कहा।तू भी अब कैसे अनजान बनी बैठी हो, जैसे तुमने कुछ किया ही नहीं...!
"तूने जो कहा वही मैंने सुना और माना।सच क्या, झूठ क्या,यह तो तू जाने शीला?तू मुझे क्यों दोष दे रही है..?
"तुझे नहीं दू तो किसे दूँ दोष?तू ही तो रोज एक एक घंटे मुझे फोन पर नया ज्ञान देती थीं..!
"तू ही रोज सास की बुराई,ननद की शिकायतों का पिटारा खोल कर बैठ जाती थी। मैंने तो बस उनसे निपटने के तरीके बताए थे। मैंने तो तुझसे कभी नहीं कहा कि घर छोड़कर चली आ और यहीं रहो..? शीला की माँ यमुना बोली।
"वाह अम्मा पहले चिंगारी लगाओ फिर कहो कि हमने क्या किया? अम्मा तुमने पहले दिन से मेरे कान भरने शुरू किए। शुरू से मेरे मन में सास के खिलाफ जहर भरा। रत्ना तो कुछ भी नहीं कहती थी फिर भी तुमने मुझे उसमें गलतियाँ दिखाई और कह रही हो मैंने क्या किया..?"
"अम्मा ने कहा सो कहा दीदी..आपका दिमाग कहाँ गया था..? चप्पल उतारते सीमा बोली। फिर राघव को अंदर भेजते हुए कहा "जाओ छोटी मामी से खाना लेलो..!"सीमा रोज स्कूल में सूरज को छोड़कर राघव को साथ लेकर आती थी।
"क्या कहा, फिर से कहना सीमा..? शीला ने पूछा।
"दीदी आपकी और हमारी शादी एक साल के अंतर से हुई।हम चार लोग,रमा तीन, अम्मा बाबू और दो जने आप,हम लोग तो इतना बड़ा परिवार देख मायके जाकर नहीं बैठे..?आपके घर हर सुविधा, हमें सब काम हाथों से करना पड़ता है फिर भी घर छोड़कर नहीं गए..? अपने सुखों को चिंगारी आपने लगाई है..!"सीमा गुस्से से बोली।
"चार दिन मायके में क्या बैठ गई, मैं तुम सबको बोझ लगने लगी। अभी मेरे अम्मा बाबू जिंदा है और मैं उनके दम पर हूँ यहाँ..!
"उसके बाद?उसके बाद क्या करोगी ,यह सोचा आपने..? दीदी यह रोज रोज का कलह हमारे रिश्तों में कड़वाहट बढ़ा रहा है..!
"कड़वाहट तुम लोगों के दिल में भरी हुई है। तुम दोनों ने मेरे भाइयों को मेरे खिलाफ भड़काया और अम्मा को भी न जाने कौनसी पट्टी पढ़ा दी जो बेटी बोझ लगने लगी..!
"आपको सभी गलत क्यों लगते हैं दीदी?
कभी अकेले में खुद की गलतियों पर सोचा आपने? दीदी महेश जी अभी भी आपको बार बार बुला रहे हैं..!
"मैंने कहा ना कि जब तक वो मेरी शर्तें नहीं मानते, मैं वापस नहीं जाऊँगी..!"
"मत जाओ..हमें क्या,कल को उन्होंने भी मुँह मोड़ लिया तो फिर रहना जीवन भर अकेली और राघव को भी हर चीज के लिए तरसाना।मेरी मानो अभी भी कुछ नहीं बिगड़ा,लौट जाओ अपने घर दीदी..?"सीमा कहते हुए अंदर चली गई।
"अम्मा तुमने तो बड़ी ठसक से कहा था कि मेरी बेटी हम पर भार नहीं,हम उसे जीवन भर खिला सकते हैं।आज सीमा इतना कुछ सुना गई फिर भी तुम चुप बैठी हो..?
"बेटी जब अपने भाईयों की खुशी पर ग्रहण लगाए तो माँ को अपना फैसला बदलना पड़ता है शीला। सीमा की बात मानकर चली जा वापस..!
"यह तू कह रही है अम्मा..?माँ के बर्ताव से दुखी हो शीला कमरे में जाकर फूट फूटकर रो पड़ी।उसे आज अपने घर की याद आने लगी।
"महेश मेरी हर छोटी बड़ी ख्वाहिश पूरी करते थे। मेरे परिवार ने मुझे दिल से अपनाया और मैंने उस सुख को ठोकर मार दी,यह कहकर कि रत्ना घर में रहेगी तो मैं नहीं रहूँगी..!"अब जब मेरे भाई भाभी मुझे रखने को तैयार नहीं।तब मुझे रत्ना की पीड़ा समझ आ रही है..!
शीला की ननद रत्ना का पति शराब की लत से असमय काल की भेंट चढ़ गया था। बेटे की इस गलत आदत को उसकी मौत का जिम्मेदार न मान ससुराल वाले रत्ना को दोषी मानकर मायके छोड़ गए कि उनकी बेटी के पैर पड़ते ही उन्होंने अपना बेटा खो दिया।
"मैं उस मासूम लड़की को घर से निकालने की ज़िद ठानकर अपना घर छोड़कर आज सबकुछ होते हुए इनकी दुत्कार सुन रही हूँ।आज मेरे कारण राघव सबकुछ होते हुए भी यहाँ सबका उपेक्षित व्यवहार सह रहा है।बस अब नहीं, अपने सुखों को मैंने चिंगारी लगाई और मेरी माँ ने उसे हवा दिया। अब उस आग में मेरी खुशियाँ पूरी तरह स्वाहा हो, उससे पहले मुझे माँजी से, महेश से अपने किए की माफी माँगनी होगी..! काफी देर तक रोने के बाद शीला ने कुछ सोचते हुए आँसू पोंछ लिए और अपने पति महेश को फोन लगा दिया।
"हैलो...!
"महेश...!"शीला महेश की आवाज सुनकर रोने लगी।
"क्या हुआ शीला..रो क्यों रही हो? राघव कैसा है?घर पर सब ठीक है...?"
"मुझसे बहुत बड़ी गलती हो गई जो अपना घर छोड़कर चली आई। मुझे माफ कर दो महेश..! शीला सिसकते हुए बोली।
"क्यों किसी ने कुछ कहा क्या?घर पर किसी से झगड़ा हुआ है क्या..?"महेश ने पूछा।
"नहीं महेश आज मेरा हकीकत से सामना हुआ है।अब मुझे यहाँ नहीं रहना,मुझे अभी अपने घर आना है महेश। तुम मुझे आकर ले जाओ। मैं समझ गई कि शादी के बाद लड़की की इज्जत उसके ससुराल में रहने से होती है।मायका तो फेरे होते ही पराया हो जाता है..!
"तो फिर देर किस बात की, अटैची उठाओ और बाहर आ जाओ। मैं अम्मा के पास बैठा हूँ..!
"तुम यहाँ ?शीला ने खिड़की से झाँका तो महेश अम्मा के साथ चाय पी रहा था और सीमा राघव को खाना खिला रही थी।
"तुम यहाँ कब आए..?
"जब आप रोते हुए अंदर चली गईं तो मैंने इन्हें फोन करके बुला लिया था। मुझे समझ आ गया था कि आज आपको सही गलत समझ आ गया है।
"तो यह सब तुम लोगों की चाल थी..?शीला ने पूछा।
"दीदी चाल नहीं,बस आपको यह अहसास दिलाना था कि अब यह घर आपका नही बल्कि जहाँ आपका पति वो घर आपका है। दीदी हमारी बदतमीजियों को क्षमा कर देना..! हमें आपको आपकी गलतियों का अहसास करवाना था। दीदी आप बुरी नहीं बस आपके देखने का नजरिया गलत था..!
"हाँ बिटिया सीमा बहू के समझाने पर मुझे भी अपनी गलतियों का अहसास हुआ। मुझे समझ आ गया कि बिटिया को ससुराल वालों के खिलाफ भड़काना, उसके सुख में चिंगारी लगाने जैसा है..!
"अम्मा.. तुम ही नहीं,गलत तो मैंने भी किया है। मैंने रत्ना के दुख को नहीं समझा।अब जब खुद को एक एक चीज के लिए भाईयों के आगे हाथ फैलाने की बारी आई तो मुझे अहसास हुआ कि मेरी तो ऐसी कोई मजबूरी नहीं,रत्ना की तो मजबूरी है।महेश मुझे मेरी गलती समझ आ गई। अब मैं रत्ना को कभी कुछ नहीं कहूँगी..!
"दीदी हम लोगों से जो भी गलती हुई माफ कर देना।तीज-त्यौहारों पर हक से आते रहना..!रमा ने पैर छुते हुए कहा तो शीला ने रमा और सीमा को गले से लगा लिया।
"मैं बड़ी होने का फर्ज भूल गई थी।आज मेरी छोटी भाभियों ने सही मायने में ज़िंदगी का पाठ पढ़ा दिया। मैं तुम दोनों की सदैव आभारी रहूँगी।चलती हूँ अम्मा..! शीला को गृहस्थ जीवन में फिर से प्रवेश करते देख यमुना की आँखों से खुशी के आँसू बहने लगे।
*©® अनुराधा चौहान'सुधी'स्वरचित
आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" पर मंगलवार 28 फ़रवरी 2023 को लिंक की जाएगी ....
ReplyDeletehttp://halchalwith5links.blogspot.in पर आप सादर आमंत्रित हैं, ज़रूर आइएगा... धन्यवाद!
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जी हार्दिक आभार आदरणीय।
Deleteज़िन्दगी के पाठ पढ़ ही लिए जाने चाहिए चाहे अपने आप चाहे किसी और के पढ़ाए। इसी से ज़िन्दगी बेहतर बन सकती है। बहुत अच्छी रचना है यह आपकी अनुराधा जी।
ReplyDeleteहार्दिक आभार आदरणीय
Deleteसुंदर संदेशप्रद लाजवाब कहानी ।
ReplyDeleteहार्दिक आभार सखी।
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