"मैं बहुत थक गया हूँ मंगल.. अब नहीं दौड़ा जाता। तुम दोनों भाग जाओ ट्रेन का समय हो गया..!"इन तीनों में विपुल सबके छोटा और कमजोर था।
"ऐसे कैसे छोड़ दें..? मंगल कुछ दूर मैं पीठ पर लेता हूँ, कुछ दूर तुम.. क्यों ठीक है..?"पिछले तीन बरसों से दुख सहते और भीख माँगने को मजबूर रमन ने आज हिम्मत करके भीख मँगवाने वाले कालू भंडारी का सुरक्षा घेरा भेदकर अपने साथ मंगल और विपुल के साथ भाग खड़ा हुआ।
"उसकी जरूरत नहीं पड़ेगी।वो देख दो-तीन बसें रुकी हुई हैं।लगता है सब कहीं तीर्थयात्रा पर जा रहा है।जय शिव शंभू जयकारे? लगता है किसी शिव मंदिर दर्शन के लिए? जब तक यह लोग नाश्ता करते हैं हम सब बस की छत पर छुप जाते हैं।अगले स्टॉप पर सोचेंगे क्या करना है।
"ठीक मंगल..चल विपुल..!"तीर्थयात्री कुछ देर के लिए रुके और अपने खाने के लिए फल आदि लेकर फिर आगे बढ़ गए। तीनों इस मौके का फायदा उठाकर बस के छत पर चढ़कर लेट गए।
बारिश का मौसम था इसलिए बस के ऊपर सामान नहीं था और ना ही तन जलाने वाली धूप, जैसे ही ठंडी हवा लगी विपुल सो गया।
"सो गया बेचारा.. मंगल तुझे तो तेरे शहर का नाम पता है,हम लोग कहाँ जाएंगे..?"रमन ने पूछा।
"रमन एक बार शहर पहुँच जाएं फिर सोचते हैं..!"बारह साल के थे मंगल और रमन दस साल का,विपुल छोटा पाँच साल का नाज़ुक सा बच्चा था।
"मंगल हम तीनों तो भाग लिए, अब बाकी लोगों का क्या होगा..?"
"उन्होंने इस तकलीफ़ को स्वीकार कर लिया है रमन।अब शायद हमारे भागने के बाद,उनको भी थोड़ी हिम्मत आ जाए..!"शाम गहराने लगी थी।रमन भी सो गया था।बस चलती चली जा रही थी।ऐसी ही एक बस यात्रा में छः महीने पहले मंगल अपने परिजनों से बिछड़ गया था।
"क्या हुआ बेटा..?आप रो क्यों रहे हो? आपके घरवालें कहाँ हैं...?भीखू ने प्यार से सिर सहलाते हुए पूछा।
"वो लोग चले गए..!"मंगल रोते हुए बोला।
"चले गए..कहाँ..?"भीखू ने पूछा।
"हम सब यहाँ घूमने आए थे। मैं पापा के साथ बस में जाकर बैठ गया।माँ उस दुकान से कुछ खाने-पीने का सामान लेने लगी।तभी मैंने देखा माँ की बस में चढ़ते समय यह पायल गिर गई। पापा को बताया तो वो पापा फोन पर बात करने में व्यस्त थे।बस मैं पायल उठाने के लिए उतरा और बस चल दी,और..!" मंगल फिर से रोने लगा।
"ना बेटा रोते नहीं हैं।कितनी देर हो गई उन्हें गए..?" भीखू ने पूछा।
"थोड़ी देर पहले ही बस गई है।दुकान वाले अंकल बोले यही बैठो शायद ढूँढते हुए वापस आ जाएं..?"मंगल ने रोते हुए कहा।
"कहाँ से आए हो..?"
"वाराणसी.. शंकर भगवान के मंदिर हमारे घर से थोड़ी दूर पर ही है।पापा का नाम शंकरलाल मिश्रा वहीं मंदिर के पास पूजा सामग्री की दुकान लगाते हैं..!"मंगल ने बताया।
"अरे फिर तो मैं उन्हें जानता हूँ..!"
"सच्ची अंकल..?"
"हाँ बेटा.. मैं हर महीने महादेव के दर्शन को वाराणसी जाता हूँ। मैं परसों फिर जाने वाला हूँ,मेरे साथ चलो, मैं तुम्हें सही-सलामत उनके पास पहुँचा दूँगा..!"भीखू की मीठी-मीठी बातों में मंगल फंसता चला गया।
"सच्ची अंकल..?आप मुझे ले जाओगे..?"मंगल खुश हो गया।
"हाँ सच्ची..आओ गाड़ी में बैठो..!"मंगल को साथ में लेकर भीखू अपने अड्डे पर चला आया।
"अंकल यह कैसी जगह है..?"मंगल वहाँ पर कुछ गंदे मिट्टी में सने बच्चे और कुछ विकलांग बच्चों को देखते ही समझ गया कि वो बच्चे चोरी करने वाले गिरोह के हाथ लग गया। जिनके बारे में उसके चाचा बताते रहते थे।
"अब तुझे यहीं रहना है समझे..?रमनवा इसे यहाँ के बारे में सब समझा देना,समझे..?"
"जी उस्ताद आप बेफिक्र होकर जाइए..!"रमन दस साल का लेकिन बहुत चालाक था।भीखू का बेहद खास था।भीखू चला गया तो रमन कुछ मैले-कुचैले कपड़े ले आया ।
"लो पहन लो जो बने..!"
"छी मैं नहीं पहनता यह गंदे कपड़े..!मेरे चाचा जी पुलिस में हैं।देखना वो और मेरे पापा कितनी जल्दी मुझे ढूँढते हुए आ जाएंगे..! मंगल ने कहा।
"ओय..ज्यादा चूँ चा मत करिओ यहाँ कोई न आने वाला।पहन ले शांति से नहीं तो उस टीम में शामिल हो जाएगा।वो सब तेरे जैसे ही थे।अब देखो, बेचारे कैसे हो गए..!"रमन ने विकलांग बच्चों की ओर इशारा करते हुए कहा।
"नहीं..!"मंगल ने डरकर गंदे कपड़े पहन लिए।
"ले यह कालिख अच्छी तरह पूरे शरीर में मलकर अब मेकअप भी करलो।आज से तेरी ट्रेनिंग शुरू..!"यह कहकर रमन चला गया और कुछ देर बाद विपुल को लेकर लोटा।
"अरे तू अभी तक बैठा है..?"रमन ने कहा।
"यह भी भीख माँगता है..?"नन्हें विपुल को देखकर मंगल को बहुत खराब लगा।
"भीखू का कहा तो मानना ही पड़ेगा भाई, वरना वो तेरा यह हाल कर देगा..?"रमन ने विकलांग बच्चों की ओर इशारा किया।अपने हाथ से मंगल के शरीर में कालिख मल दी।बस उसी दिन से मंगल उन दोनों के साथ भीख माँगता और जो कुछ मिलता शाम को भीखू को सौंप देता।
एक दिन "रमन तुझे अपने मम्मी-पापा की याद नहीं आती ?तू यहाँ कैसे आया..?"
"आती है ना बहुत याद आती है।वो लोग मुझे रोज शाम को गार्डन में खेलने ले जाते थे।एक दिन उनके साथ ही गार्डन में खेल रहा था। मैं बॉल उठाने झाड़ियों के पीछे गया और वहाँ किसी ने मेरा मुँह दबोचकर गाड़ी में डाल दिया।मम्मी पापा के जब तक पता चला होगा तब तक तो मैं बहुत दूर यहाँ चला आया..!"रमन की आँखें छलक पड़ी।
"तेरा घर कहाँ है..?"मंगल ने पूछा।
"पता नहीं..? मैं जब यहाँ आया तब विपुल जितना बड़ा था।बस यह याद है कि मेरे घर के सामने हनुमान जी की बहुत बड़ी मूर्ति दिखाई देती थी..!"रमन बोला।
"ओह.. तुमने यहाँ से भागने की कोशिश नहीं की..?"
"ओय पागल है क्या.? ऐसा सोचना भी नहीं।अँधे, लूले लंगड़े होने से ऐसे ही सही..!"रमन बोला।
"यह विपुल कब से यहाँ..?
"दो साल का था जब यहाँ आया। मैंने नाम रखा है इसका,अच्छा है ना..?"रमन ने विपुल का सिर सहलाते हुए कहा।
"मैंने फ़ैसला कर लिया है..!"मंगल बोला।
"कैसा फैसला..?"
"मैं एक दिन भीख माँगते समय मौका देखकर यहाँ से भाग जाऊँगा। मैं अक्सर रेलवे स्टेशन पर भीख माँगता हूँ। गाड़ियों के आने-जाने का समय पता कर लिया है।एक दिन किसी गाड़ी के शौचालय में छिप जाऊँगा और दो-तीन स्टेशन निकलने पर उतर के वाराणसी कौन-सी गाड़ी जाती है।यह पता करके वाराणसी अपने घर चला जाऊँगा..!"मंगल के चेहरे पर उमंग भरी चमक दिखाई दे रही थी।
"वाह बड़ा दिमाग चलता है तेरा..?खैर छोड़ो अभी चलो वापस अड्डे पर,तुझे घर पता है।भागने मिल गया तो घर चला जाएगा।हम दोनों को तो मजबूरी में यहीं रहना है..!"रमन बोला।
"नहीं रमन मौका मिला तो तीनों साथ जाएंगे। मेरे चाचा तेरे मम्मी-पापा को ढूँढ लेंगे।हम विपुल को भी साथ ले जाएंगे।तू बस मेरा साथ दे देना..!"
भीखू रोज सबके भीख माँगने की जगह बदल देता था।आज तीन दिन बाद स्टेशन के पास बने मंदिर में भीख माँगने का मौका मिला तो मंगल इसे गँवाना नहीं चाहता था।भागते समय मंदिर की सीढियों पर विपुल गिर गया और उसे चलने में तकलीफ़ होने लगी।
उस दिन मंगल की किस्मत साथ दे रही थी। तीर्थयात्रा की बस देखते ही वो रमन के साथ विपुल को लेकर बस की छत पर चढ़कर लेट गया। मंगल अपने कल के बारे में सोच रहा था कि नीचे अचानक से जयकारे गूँजने लगे।
"हर-हर महादेव,जय शिव शंभू" रमन भी शोर सुनकर उठ गया।"क्या हुआ मंगल..?"
"रमन यह बस अब यहीं से वापस जाएगी।चल उतर जल्दी। विपुल उठ..!"तीनों फटाफट बस से नीचे उतर गए।सावन का महीना था हल्की-हल्की बूँदा-बाँदी शुरू हो गई थी।
"अंकल कुछ खाने को दो ना ...?बहुत भूख लगी है। विपुल एक यात्री से खाना माँगने लगा।
"विपुल नहीं..माफ करना अंकल.. इसने बहुत देर से कुछ खाया नहीं इसलिए बस..!"मंगल उसे और रमन को लेकर भीगने से बचने के लिए एक दुकान के शेड के नीचे खड़ा हो गया।
"मंगल यह कौन-सी जगह है..?"
"जरा बारिश रुकने दे फिर देखता हूँ।अँधेरा है पर फिर भी सब मुझे पहचाना सा लग रहा है .!" अचानक मंगल बस से उतरे यात्री से पूछता है।
"अंकल हम लोग वाराणसी पहुँच गए..?"मंगल ने हवा में तीर छोड़ा।सीधे जगह का नाम पूँछकर वो फिर से किसी के चंगुल में नहीं फंसना चाहता था।
"हाँ पहुँच गए..हम बस स्टैंड पर हैं अभी। उसने मंगल को बिना देखे जवाब दिया।
"रमन हम वाराणसी पहुँच गए।वाराणसी मेरे घर..!अब मैं बारिश रुकने का इंतजार नहीं कर सकता।चलो हम पैदल घर के लिए चलते हैं आओ मेरे साथ..!"मंगल को बारिश में भीगना मंजूर था पर रुकने का इंतजार करना मुश्किल हो रहा था।
तीनों उत्साह से भरे बारिश में भीगते हुए चल दिए। वैसे ही जैसे पंछी पिंजरे से निकलकर आजाद पंछी मस्तमौला बनकर नभ में बिचरने लगता है।शिव जी के जयकारे जोर से सुनाई देने लगे थे। मंगल ऐसे आश्चर्य जनक तरीके से वाराणसी पहुँचा जैसे भोलेनाथ अपनी नगरी के नन्हे बालक को लेने खुद पुरानी दिल्ली गए थे।
"रमन मेरे पापा की दुकान..!!वो देख!! मंगल ने दोनों का हाथ पकड़ा और दौड़ पड़ा।
"पापा..!!!!"
"शंकरलाल चौंककर दुकान से निकलकर मंगल को देखने लगे।कालिख लगा शरीर फटे कपड़े देख एक बार को धोखा खा गए शंकरलाल।
"पापा..!" मंगल उनसे लिपट गया।
"मंगल मेरे बच्चे..तू कहाँ चला गया था मेरे लाल।यह? यह तेरी यह हालत..?महादेव तुम्हारी लीला अपरम्पार है। मंगल यह दोनों कौन हैं..?"
"पापा बाद में, अभी बहुत भूख लगी है। सुबह से हमने कुछ नहीं खाया..!"
"हे भगवान.. क्या हालत हो गई मेरे बच्चे की..!लो यह खाओ तीनों बैठकर..!" शंकरलाल ने तुरंत दोने लेकर प्रसाद के पेडे बच्चों को दिए और पानी की बोतल निकाली।
"दूबे जी.. शंकरलाल ने पड़ोसी दुकान वाले को आवाज लगाई।
"बोलो शंकरलाल.. क्या काम आने पड़ा। और यह क्या अब भिखारियों की आवभगत करने लगे..?"तीनों बच्चों को देखकर दूबे जी बोले।
"दूबे जी यह मंगल है और दो उसके साथी, शंभूनाथ की कृपा से मंगल हमें वापस मिल गया।जरा प्रभात को फोन करके पांच साल,दस साल, और मंगल के लिए एक एक जोड़ी कपड़े मँगा दो जल्दी फिर भोलेनाथ को जाकर माथा टेके..!"
"मंगल..? दूबे जी ने गौर से मंगल को देखा।हे शिव शंभू क्या हालत हो गई इस बच्चे की..?हम अभी फोन करके कपड़े मँगाते है..!"दूबे जी अपने बेटे को फोन लगाते हुए दुकान में चले गए।
"पार्वती हमारा बेटा मिल गया..!"शंकरलाल की खुशी संभाले नहीं संभल रही थी।
"क्या..? सच्ची कह रहे हो जी..?कहाँ है मंगल?कहाँ है वो..?"
"दुकनिया पर अपनी..!"
"हम अभी आवत है उसके चाचा के संग..! पार्वती भी दुकान पर आ गई थी।
"मम्मी..!"मंगल माँ से लिपट गया।
"ओ मोरी मैया..यह क्या हुआ? कितना कमजोर हो गया है मेरा बच्चा। हाड़ दिखाई देने लगे। दुष्टों ने क्या हालत कर दी मेरे राजदुलारे बेटे की..! पार्वती रोते हुए मंगल को बार-बार सीने से लिपटाए जा रही थी।
शंकरलाल ने प्रभात से कपड़े लेकर "पार्वती संभाल अपने को, अभी बच्चे बहुत थके हुए हैं। पहले नहला धुलाकर साफ कपड़ा पहना दे, फिर चल बोले बाबा के दर्शन कर लें..!"
"चलो तीनों मेरे साथ..!"पार्वती बच्चों को साथ लेकर घर चली गई।
भईया अपने मंगल का हाल देखकर लगता है किसी भिखारी गैंग के हाथ लग गया था..?"मंगल के चाचा शिवानंद ने कहा।
"हाँ लगता तो यही है।अभी बच्चों से कुछ भी पूछना ठीक नहीं? उनको भोलेनाथ के दर्शन कराकर सुला देते हैं।कल देखते हैं क्या करना है..? शंकरलाल ने कहा।
दर्शन करने के बाद पार्वती ने रमन और विपुल को भी मंगल के कमरे में ही सोने के लिए भेज दिया।
"धन्यवाद मंगल तेरी हिम्मत के कारण,भले ही यह तेरा घर है।पर हम आज फिर से घर में होने का सुख उठा रहे हैं..!"रमन ने कहा।
"चल अब भूल जा पुरानी बातें रमन..शिव जी की कृपा से तुझे भी तेरा घर मिल जाएगा।आ विपुल हम सब साथ में सोएंगे..! मंगल ने सबको अपने बैड पर लिटा लिया।
"मंगल अगर मेरे और विपुल के मम्मी-पापा का पता नहीं चला तो फिर हम लोग कहाँ जाएंगे..? क्या फिर से हमें.. मंगल बीच में बोल पड़ा।
"नहीं रमन ऐसा हरगिज नहीं होगा।घर नहीं मिलेगा तो तुम दोनों मेरे पास रहोगे। मैं पापा से बात कर लूँगा,वो मना नहीं करेंगे..!"तीनों बात करते-करते सो गए।
"सूखकर काँटा हो गया मेरा बेटा। विपुल तो कितना प्यारा और मासूम है। जरूर किसी बड़े घर का बच्चा होगा..?"पार्वती बोली।
"हम्म लगता तो है भाभी।अब बड़े घर का हो या छोटे घर का, उनके पेरेंट्स के बारे में जानकारी निकालनी होगी..!"
"सही कहा देवर जी..अब आप भी सो जाइए..!"
"हम्म गुड नाईट..!"शिवानंद सोने चला गया। दूसरे दिन से रमन के बताए अनुसार शिवानंद बड़ी हनुमान जी की मूर्ति कहाँ-कहाँ है, पता लगाने लगा।
"भैय्या एक बड़ी तो दिल्ली में ही है।रमन के अनुसार वो उस समय विपुल जितना बड़ा यानि चार-पाँच साल का रहा होगा। मैं कल दिल्ली जा रहा हूँ।वहाँ पता करता हूँ चार पाँच या उससे एक साल पहले कितने बच्चे गायब होने की रिपोर्ट दर्ज कराई गई है..?"
"ठीक है शिवानंद..!"शिवानंद को जल्दी ही इस मामले में कामयाबी हासिल हो गई। कुछ बच्चे उस टाइम पीरियड में गायब हुए थे।उसमें एक बच्चे की तस्वीर हूँबहूँ रमन से मिलती थी। पता करने पर पता चला कि वो लोग उसके बाद आगरा शिफ्ट हो गए। उनसे जब पूछा गया कि उनका बच्चा कैसे गायब हुआ तो उन्होंने वही स्टोरी बताई जो रमन ने बताई थी।
पुलिस ने फिर भी डीएनए टेस्ट करवाया। टेस्ट मैच होने रमन को उसके माँ बाप को सौंप दिया।
"मंगल मुझे भूल तो नहीं जाओगे..?रमन मंगल के गले लगते हुए बोला।
"नहीं कभी नहीं,यह लो मेरा फ़ोन नम्बर,हम रोज बात किया करेंगे!"मंगल ने अपना फोन नंबर दे दिया।
"बेटा जैसा तुम्हारा नाम है मंगल,वैसा ही तुमने हमारे जीवन में सब मंगल कर दिया। चलो चिंटू..?"रमन की माँ ने पूछा।
"चिंटू..?"मंगल ने आश्चर्य से पूछा।
"मम्मी मुझे प्यार से चिंटू ही बुलातीं थी। मैं इतने दिनों में अपना यह नाम भूल ही गया था..!"रमन जाने लगा तो विपुल रोकर लिपट गया। तीन बरसों से रमन ही उसका ख्याल रखते आया था।
"विपुल रोते नहीं हैं।सुन मेरे भाई, तुम्हारे मम्मी-पापा नहीं मिले तो मैं तुम्हें अपने पास बुला लूँगा। क्यों मम्मी आप रख लेंगी ना विपुल को..?"
"हाँ बिल्कुल बच्चे..पर अभी जाने दो,रमन की दादी के बार-बार फोन आ रहे हैं..!"विपुल आँसू पोंछता हुआ मंगल से लिपट गया।
छः महीने और बीत गए। आखिरकार विपुल के माता-पिता का पता भी चल गया। विपुल दिल्ली के ही रईस परिवार का बेटा था।जिसे पैसों के लिए किडनैप किया और पैसे लेकर किडनैपर बच्चे को सौंपे बिना भाग गए। पुलिस ने किडनैपर तो पकड़ लिए पर तब तक विपुल भीखू के हाथ लग गया था।बच्चा बोल नहीं पाता था ऊपर से कालिख पुता बदन, फटेहाल भिखारी के रूप में दिल्ली में होते हुए भी तीन साल तक उसका कोई पता नहीं चल पाया।
कानूनी कार्यवाही के साथ विपुल को उसके माँ बाप को सौंप दिया। मंगल की हिम्मत की हर ओर वाहवाही हुई। मंगल की हिम्मत और उसके द्वारा बताई जगह पर छापे मारकर कई बच्चों को पुलिस ने अपने कब्जे में लेकर अनाथालय भेज दिया। और उनके परिवार की तलाश शुरू कर दी।
बारिश का मौसम फिर लौट आया था।सभी बच्चे भीखू के चंगुल से आजाद हो गए,यह खबर सुनते ही मंगल छत पर बारिश के मजे लेकर नाचने लगा।इस आशा के साथ, देर-सवेर ही सही पर उन सबको भी एक दिन उनका परिवार जरूर मिलेगा।
©® अनुराधा चौहान'सुधी'✍️
चित्र गूगल से साभार