Tuesday, April 30, 2019

जीत लो दुनिया सारी

 
स्पर्धा करो 
चुनौतियों से टकराने की
मुश्किलों से डरकर
हार मत मानना कभी
स्पर्धा करो
हौसलों को कायम रख
मंज़िल को पाने के लिए
नाकामियों से जीतने की
स्पर्धा करो 
अच्छाई को अपनी बचाकर
मानवता के लिए
बुराई को हराने के लिए
स्पर्धा करो
दिलों को जीतने के लिए
सबको अपना बनाकर
नफ़रत से विजय पाने के लिए
स्पर्धा कभी
रिश्तों से नहीं करना
यहाँ इंसान 
जीतकर भी हार जाता है
जीत लो 
ज़िंदगी से खुशियों को
ज़िंदगी मौत की स्पर्धा में
मौत ही सदा 
बाज़ी है जीतती 
जीत लो दिलों को प्यार से
मोहब्बत और नफ़रत
की स्पर्धा में
मोहब्बत 
नफ़रत पर भारी है
अपनों का कभी 
दिल मत तोड़ो
आज के दौर में 
मतलब रिश्तों पर भारी है
सच्चाई, प्रेम 
और ईमानदारी से
जिसने सबके 
दिलों में जगह बनाई
ज़िंदगी की स्पर्धा में 
उसने जीत ली दुनिया सारी
***अनुराधा चौहान***
चित्र गूगल से साभार

उफ़ आ गई गर्मी

लौटने लगी सारी रौनकें
रंग प्रकृति के साथ में लेकर
उफ़ आ गई गर्मी हुई हालत खराब
सूरज ने बदल लिए हाव-भाव
गर्मी से अब सब घबराएं
सूरज से अपने मुँह छुपाएं
सोचता सूरज यही बार-बार
क्यों उसका इतना तिरस्कार
क्रौध से तमतमाया सूरज
बरसाता अंबर से आग
धूप का बरसे जम कर कहर
चैन मिले बस रात्रि पहर
लगते "लू"के गरम थपेड़े
प्रकृति के नियम से मौसम बदले
पसीने से लथपथ सब बेहाल
गर्मी किया जीना मुहाल
चटकने लगी खेतों की धरती
पड़ने लगी जोरों की गर्मी
घटने लगा जल का स्तर
तड़पते प्यास से बेचारे नभचर
दिन प्रतिदिन बढ़ता पारा
खेतों में जूझता किसान बेचारा
कड़ी धूप में बहाए पसीना
मजदूरों का कष्टकारी है जीना
न एसी,कूलर न पंखा पास
न ढंग की छत न घर है पास
गर्मी करती हाल-बेहाल 
इसलिए बहार के जाते ही
सब करते बारिश का इंतजार
***अनुराधा चौहान***
चित्र गूगल से साभार

Thursday, April 25, 2019

परिवार का महत्व

रिश्तों को किनारे कर नहीं परिवार बनते हैं
धोखे और चालाकी से नहीं रिश्ते संवरते हैं

रखी हो प्रेम की नींव जहाँ वहाँ परिवार बसता है
भुलाकर भेदभाव सारे दिन-प्रतिदिन निखरता है

यह मूलमंत्र है जीवन का सेवा माँ-बाप की करना
औरत खुश रहे घर में ऐसा माहौल तुम रखना

हो कोई भी बहन-बेटी सदा सम्मान तुम करना
यही संस्कार आगे भी अपने परिवार को देना

तभी परिचित होगा भविष्य परिवार के महत्व को समझ
रखो प्रेम सदा दिल में चलो आदर्श पर अपने

इसी प्रेम से ही होते मजबूत परिवार के रिश्ते
रिश्तों से ही रौनक हैं जीवन में परिवार की

बुजुर्गो के आशीर्वाद से छत बनती परिवार की
किलकारियों की गूँज ही खनक भरती दिवालों में

चूड़ी की खनक पायल की छन-छन रंग भरती जीवन में
नींव होती घर की मजबूत आपसी प्रेम विश्वास से
***अनुराधा चौहान***
चित्र गूगल से साभार

Sunday, April 21, 2019

हम किन‌ आँखों से रोएंँ


                         हम किन‌ आँखों से रोएंँ
तेरे संग ज़ीने-मरने के
ख्व़ाब सज़ा इन आँखों में
हम रातों को भी न सोए
हम किन‌ आँखों से रोएंँ
आँसुओं में बह अरमां
ग़र हम याद में तेरी रोए
हम किन आँखों से रोएंँ
मखमली अहसास बुने
कुछ फूल पलाश चुने
रात से चुराकर अंँधेरा
इन आँखों में काजल सजे
बह न जाए अरमां सिंदूरी
हम किन‌ आँखों से रोएंँ
मत रखो मुझसे तुम दूरी
तुम बिन हर चाहत अधूरी
हर आहट पर दिल धड़के
बार-बार मेरी आँख फड़के
पलकों में सपने सजाए
कहीं बह न जाए सपने
हम किन आँखों से रोएंँ
रात गुजारूं तारे गिन-गिन
मेरी हर दुआ में तू शामिल
पायल खनके ले तेरा नाम
चूड़ियां की खनक भेजे पैगाम
नैनों में भरी इंतज़ार की घड़ियांँ
हम किन‌ आँखों से रोएंँ
***अनुराधा चौहान***
चित्र गूगल से साभार

Thursday, April 18, 2019

झील के किनारे

मेरी दुनिया बदल के रख दी
बस एक मुलाकात ने
जब हम तुम मिले थे
संग जीने के वादे किए थे
चाँद की चाँदनी में
झिलमिलाते तारों के साथ
सर्द हवाओं के झोंके
चलते थे हम हौले-हौले
झील के किनारे
छोड़ते कदमों के निशान
मुझे आज भी याद है 
ज़िंदगी के वो हसीं लम्हे
झील का किनारे
रिमझिम-सी बरसात में
हाथों में हाथ लिए
जाने कितने वादे किए
उमर दबे क़दम बढ़ती रही
संग तेरे नये ख्व़ाब बुनती रही
पीछे छूटे वो क़दमों के निशां
जो कभी थे हमारे प्यार के गवाह
संभाल कर रखें हैं आज भी मैंने
खूबसूरत वो पल ज़िंदगी के
अपने पास दिल के करीब
थोड़ी फ़ुरसत फिर से दे ज़िंदगी
उन लम्हों को फिर से जीने की
बदली जिन लम्हों ने मेरी ज़िंदगी
उन लम्हों को चलो फिर से जी लें
***अनुराधा चौहान***

Monday, April 15, 2019

जय वीर हनुमान

🌼🌼🌹🌼🌼
जय जय जय बजरंग बली की
हर लो विपदा प्रभू हम सबकी
हृदय में केवल एक ही नाम
जय जय जय जय हनुमान
अंजनी पुत्र तुम बदन विशाला
पवनपुत्र प्रभू केसरी के लाला
जय बोलो श्री हनुमान लला की
आरती गाएं तेरी करो कृपा जी
श्रीराम जी के भक्त तुम प्यारे
हाथ जोड़ हम खड़े तेरे द्वारे
जय जय जय बजरंग बली की
हर लो प्रभू विपदा हम सबकी
भूत प्रेत तुमसे थर-थर कांपे
नाम सुनत सब डर के भागे
करे आराधना सकल जग तेरी
सुन लो प्रभू विनती भक्तों की 
सूर्य को लीला जैसे फल जानकर
फेंक दो बुराई को भी जड़ से उखाड़
शांति का हो फिर से साम्राज्य
ले आओ प्रभू फिर से रामराज्य
ले जाओ संदेशा श्री राम के नाम का
बोलो फिर आकर करें अंत रावण का
बुराई का मिट जाए नामोनिशान
जय जय जय जय वीर हनुमान
हृदय में सियाराम की छवि बसाए
हनुमत राम के प्रिय भक्त कहलाए
राम नाम भक्त सुमिरन करलें
उस पर कृपा हनुमान जी करते
करलो सच्चे मन से आराधना
विघ्न दूर कर देंगे हनुमाना 
जय जय जय बजरंग बली की
हर लो विपदा प्रभू हम सबकी
***अनुराधा चौहान***

Friday, April 12, 2019

जलियांवाला बाग


13 अप्रैल 1919 का दिन
बैसाखी के पावन पर्व पर
कैसे भूलें जो दर्द मिला था
जलियांवाला बाग की धरती पर
मासूमों पर होता फायर
अंजाम दे रहा था दुष्ट जर्नल डायर
क्रूर कत्लेआम हुआ था 
जब चली थी गोलियां
गूंज रही थी चारों ओर
बस इंकलाब की बोलियां
काला दिन इतिहास का बना
जब निर्दोषों का खून बहा
लाशों पर लाशें बिछी थी
काँप रहा था आसमान भी
आज़ादी की आग दबाने
 मानवता का खून बहा
कई लाल सलोने गोदी में थे
कई भारत माँ की गोद गिरे
जाने कितनी लाशों के
कुए के अंदर ढेर लगे
लहुलुहान छाती लिए
भारत माँ चित्कार उठी
बस अब और नहीं सहना है
इंकलाब के नारे को
अब बुलंदियों को छूना है
यह आग ना अब बुझने देना
यह लहू नहीं मिटने देना
आजाद वतन मकसद अपना
यह कुर्बानी बेकार न जाने देना
जलियांवाला बाग़ का जख्म 
मेरे सीने से कभी नहीं मिट पायेगा
जलियांवाला बाग की चीखें
गूंजी हर जनमानस में मन में
इंकलाब की आग जल उठी
भारत के हर एक मन में
वीर शहीदों ने देकर कुर्बानी
वतन को देदी आज़ादी थी
सालों बीत गए लेकिन फिर भी
कोई नहीं भूला सका
 जलियांवाला बाग की कुर्बानी को
***अनुराधा चौहान***

Saturday, April 6, 2019

जय शेरा वाली माता


जय हो शेरा वाली माता
भक्तों की भाग्य विधाता
हर हर हर दुःख हर ले
भक्तों के दुःख माँ हर ले
चैत्र नवरात्रि आई
मैया का आशीष लाई
हम आएँ हैं तेरे द्वारे
मनचाही मुरादें पाने
आशाएं पूरी कर दे
भक्तों की झोली भर दे
जय हो शेरा वाली माता
भक्तों की भाग्य विधाता
अंधेरा भरा जीवन में
मार्ग न सूझे मन को
अंधों को आँखे देकर
जीवन को रोशन कर दे
जय हो मैया शेरा वाली 
सबके दुखड़े हरने वाली
हर हर हर दुःख हर ले
संकट सबके माँ हर ले
बाँझन को पुत्रवती कर दे
खुशियों से गोदी भर दे
माँ भोग प्रसाद स्वीकारो
आओ माँ घर में मेरे पधारो
नववर्ष करो मंगलमय
खुशियांँ भरें कण-कण में
सारे कलह-क्लेश मिटाकर
आशीष का हाथ रखो सिर पर
जय शेरा वाली माता
भक्तों की भाग्य विधाता
***अनुराधा चौहान***

Friday, April 5, 2019

पढ़ने की लगन


तेज बारिश हो रही थी और राजू पुस्तक की दुकान के बाहर खड़ा तेज बारिश में भीग रहा था। कल उसके बेटे की विज्ञान की परीक्षा है।
उसके लिए विज्ञान की पुस्तक खरीदने के लिए आज दिन भर कड़ी मेहनत करके जैसे-तैसे पैसे जमा किए थे।
पुस्तक बारिश में भीग न जाए, इसलिए पुस्तक दुकान में रख बारिश बंद होने का इंतजार करता था।
जैसे ही बारिश बंद हुई..राजू पुस्तक लेकर घर पहुँच गया। उसका बेटा दीपक पिता का बेसब्री से इंतज़ार कर रहा था।
यह ले बेटा..!देख कहीं भीगी तो नहीं..! दीपक पढ़ाई में बहुत तेज बच्चा था ‌और पिता की मजबूरी को बखूबी समझता था।
इसलिए पुरानी पुस्तकों से पढ़ाई करता था।इस बार उसके पास विज्ञान की पुस्तक नहीं थी जो आज ठीक परीक्षा के एक दिन पहले उसे प्राप्त हुई।
नहीं बाबा..!पुस्तक पाकर दीपक बहुत खुश हुआ उसने रात-भर कड़ी मेहनत की, भगवान की कृपा से उसका पर्चा बहुत अच्छा गया।
एक महीने बाद.. आज परीक्षाफल घोषित होने वाला था। दीपक राजू का हाथ कसकर पकड़े अपना परिणाम घोषित होने का इंतज़ार कर रहा था।
प्रिंसिपल सर कक्षा में प्रवेश करते हैं, एक-एक सबके परिणाम बताते हैं।
जैसे उन्होंने कहा, दीपक ने कक्षा में प्रथम स्थान प्राप्त किया है। तो राजू के आँखों से आँसू बहने लगे।
दीपक का एक ही लक्ष्य था उसे इंजीनियर बनना है। पुरानी पुस्तकों से पढ़ते हुए दीपक इंजीनियरिंग की पढ़ाई खत्म कर नौकरी के लिए शहर चला जाता है।
अपने साथ माँ-बाप को भी ले जाता हैअगर पढ़ने की सच्ची लगन हो,मन में कुछ कर दिखाने का जज़्बा हो तो,अभावों में भी लक्ष्य की प्राप्ति की जा सकती है।
***अनुराधा चौहान***©स्वरचित लघुकथा✍
चित्र गूगल से साभार