Tuesday, September 29, 2020

मानव और प्रकृति


हम हमेशा भूल जाते हैं, हमारे ऊपर भी कोई दिव्य शक्ति है,जो हमें हमारी गलतियों की कभी भी सजा दे सकती है। प्रकृति के निरंतर दोहन से आज हमें सबसे भयंकर सजा मिल रही है। एक सूक्ष्म वायरस की चपेट में आकर मानव जीवन में हाहाकार मचा हुआ है।
प्रकृति से छेड़छाड़ और अपनी सभ्यता-संस्कृति भूलने और गलत खान-पान का नतीजा सामने है।नदियाँ दलदल बन रही हैं और हरी-भरी धरती बंजर।
आज हम खुद इस मौत के तांडव के जिम्मेदार बने हैं।मानव की सबसे समृद्ध बनने की लालसा ही आज सम्पूर्ण विश्व के समक्ष महामारी के रूप में तांडव कर रही है।
प्रकृति एक माँ की तरह हमें बहुत कुछ देती है और बदले में मानव से बस थोड़ा रख-रखाव और प्यार माँगती है।परन्तु जब क्रोधित होकर लेना शुरू करती है तो फिर होता है महाविनाश का आरंभ ।मानव सदा से ही संघर्षशील है,हर विपत्ति का सामना करने में सक्षम है। 
परंतु आज मानव ने हमारी हरी-भरी प्रकृति को इतना प्रदूषित कर दिया है कि प्रकृति के विध्वंसकारी रूप उभर कर सामने आने लगे हैं।यह किसी से छिपा नहीं है कहीं बाढ़ ज़िंदगियाँ तबाह कर रही तो कहीं भूकम्प और हवा में घुली विषैली गैसें जीवन में विष घोल रहीं है। 
जैसे मानव को जीने के लिए जल,हवा, हरियाली तीनों की जरूरत है वैसे ही प्रकृति को मानव की।मानव और प्रकृति के बीच बहुत गहरा सम्बन्ध है। दोनों एक-दूसरे के पूरक हैं।प्रकृति तो अपना धर्म निष्ठा से निभा रही है पर मानव सब कुछ भूल प्रकृति के मूल स्वरूप को ही बिगाड़ने पर आमादा है।मनुष्य जब तक प्रकृति को सहेजता रहा सुखी और सम्पन्न रहा प्रकृति से अनावश्यक खिलवाड़ किया तो उसका गुस्सा भूकम्प, सूखा, बाढ़, और कोरोना महामारी का रूप लेकर लोगों को काल का ग्रास बनाने लगा।
हमें शुरू से ही बताया गया है कि हरियाली के बिना प्रकृति मृत है और प्रकृति के बिना हम.! इसलिए स्वच्छ हवा पानी के लिए आम, आँवला, पीपल,वट वृक्ष और नीम के वृक्ष लगाने का महत्व बताया गया है।भारतीय संस्कृति में प्रकृति के कण-कण में देवताओं का वास माना गया है। इतना ही नहीं हमारी संस्कृति में वृक्षों को देवशक्तियों का प्रतीक मानकर सहेजना सिखाया गया है। विभिन्न प्रकार के तीज-त्योहार हमारी परंपरा का हिस्सा रहे हैैं।हिन्दू धर्म में प्रकृति पूजन की मान्यता सदियों से चली आई है।
सनातन धर्म में अनेकों उत्सव ऐसे हैं जो प्रकृति के अनुरूप मनाए जाते हैं वसंत पंचमी हो या एकादशी, हरियाली तीज हो या गंगा दशहरा और गोवर्धन पूजा,वट सावित्री,गणेश चतुर्थी व आँवला नवमी सभी पर्वों में पेड़-पौधों, नदी-पर्वत, ग्रह-नक्षत्र, अग्नि-वायु सहित प्रकृति के विभिन्न रूपों की पूजा-अर्चना की जाती है।
                 भाद्रपद माह की शुक्लपक्ष की चतुर्थी को गणपति बाप्पा की स्थापना और पूजा का पर्व महाराष्ट्र राज्य की सभ्यता और संस्कृति का एक अभिन्न अंग है।परंतु आज गणपति बाप्पा की स्थापना, पूजा और विसर्जन सिर्फ महाराष्ट्र तक सीमित न रहकर संपूर्ण देश में खूब धूमधाम के साथ मनाया जाता है।
चतुर्थी तिथि को' गणपति बाप्पा मोरया! मंगलमूर्ति मोरया! के उद्घोष के बीच बाप्पा की प्रतिमा की खूब धूमधाम के साथ स्थापना की जाती है।न सिर्फ बड़े बड़े पण्डालों में अपितु हर गली, हर घर में छोटे - बड़े सभी आकार की बाप्पा की प्रतिमा की स्थापना कर भक्तिभाव से पूजा की जाती है।वैसे तो बाप्पा चतुर्थी को हमारे मध्य विराजते हें और पूरे ग्यारह दिन हमारे बीच ,हमारे साथ रहकर अनंत चतुर्दशी के दिन वापस अपने धाम लौट जाते हैं।परंतु घर- घर में श्रद्धालु अपनी सुविधानुसार कभी डेढ़ दिन,तीन दिन, पाँच दिन और सात दिन में भी बाबा की विदाई कर देते हैं।
               परंतु अधिकांश बड़े- बड़े सार्वजनिक पण्डालों में ग्यारहवें दिन ही बाप्पा के विसर्जन की परम्परा देखने में आती है।'विसर्जन'-- ये संस्कृत भाषा का शब्द है जिसका अर्थ है---' पानी में विलीन होना।'ये एक सम्मानसूचक शब्द है,इसलिए पूजित प्रतिमाओं को ससम्मान विदाई देने के अर्थ में इस शब्द का प्रयोग होता है।
            गणपति स्थापना,पूजा और विसर्जन आज एक बहुत बड़ा संदेश हमें देते हैं।
              ईश्वर निराकार हैं।जब हम अपनी आस्था को मूर्त रूप देने के लिए प्रभु को एक आकार देते हैं तो उन्हें भी प्रकृति ( मिट्टी) का सहारा लेना पड़ता है।
             गणपति विसर्जन हमें ये सीख देता है कि जो हमने प्रकृति से लिया है उसे एक न एक दिन वापस लौटाना ही होगा।प्रकृति से निर्मित आकार अंततोगत्वा प्रकृति में ही विलीन हो जाना है।
                गणपति विसर्जन की जो मूल परंपरा है, पर्यावरण हित को ध्यान में रखकर ही उसकी नींव रखी गई है।मूर्ति के विसर्जन के साथ अनेकों ऐसे तत्व पानी में घुलते हैं जो पानी को शुद्ध करते हैं।हल्दी ,कुमकुम एंटीबायोटिक होते हैं जिनसे जल स्रोतों का पानी स्वच्छ होता है।लंबे समय से नदियों, तालाबों और पोखरों का रुका पानी भी विसर्जन में डाली जाने वाली सामग्री से शुद्ध हो जाता है।विसर्जन की प्रक्रिया में प्रचुर मात्रा में डाला जाने वाला अक्षत जलीय जीवों के भोजन की व्यवस्था करता है।धूप,चंदन आदि प्रयुक्त सामग्रियाँ पर्यावरण को स्वच्छ करने में अपना बहुत बड़ा योगदान देती हैं।
          गणपति बाप्पा मोरया,
        पुढच्या वर्षी लवकर आ।।
के नारे के बीच बाप्पा की विदाई ये संदेश देती है खाली हाथ आये थे और खाली हाथ ही जाना है।
       प्रकृति चक्र के अनुसार हर आकार को एक दिन प्रकृति में ही मिलना है।
         पर आज इस इतनी सुन्दर परंपरा का स्वरूप कुछ धनलोलुप लोगों ने विकृत सा कर दिया है।अधिक पैसा कमाने की चाहत में प्लास्टर ऑफ पेरिस से बनाई गई और कृत्रिम रंगों से रंगी गई मूर्तियाँ पर्यावरण को बहुत हानि पहुँचा रही हैं।हमें इस ओर ध्यान देना होगा।यदि प्रकृति को बचाना है तो गणपति विसर्जन के पुरातन परम्परागत स्वरूप को ही अपनाना होगा।
              मानव को शायद अभी भी अपनी गलतियों का अहसास नहीं ,तभी तो भौतिक विकास के पीछे पड़ा हुआ है। अति प्रगतिशील बनने की होड़ में दुनिया कहाँ पहुँच गई।आज ऐसा कोई देश नहीं है जो कोरोना संकट पर मंथन नहीं कर रहा हो। घरों में कैद भारतीय आज इसी बात से चिंतित हैं कि आखिर कब हम पहले की तरह अपने पर्वों को धूमधाम से मना पाएंगे?
प्रकृति को हमने हद से ज्यादा नुकसान पहुँचाने की गलती की पर फिर भी प्रकृति हमें नुकसान पहुँचाने की जगह आज भी हमें पूरी निष्ठा के साथ ज़िंदगी देने में लगी हुई है। प्राचीन काल से ही हमारे देश में प्रकृति के साथ संतुलन करके चलने के संस्कार मौजूद हैं। हमारे सनातन धर्म की हर परम्परा में कोई न कोई वैज्ञानिक रहस्य छिपा हुआ है।हमारे ऋषि-मुनियों ने अपने ग्रंथों में कहा है कि पृथ्वी का आधार जल और वन है। और शायद इसलिए ही हमारे त्योहार भी प्रकृति से संबंधित हैं। बड़े-बुजुर्ग हमेशा कहते थे कि अगर पीने के लिए जल चाहिए तो उसके लिए वृक्षों का होना जरूरी है और जल ही जीवन है। यही हमें बचपन से सिखाया गया कि यह प्रकृति हमारी माँ है जो हमें पालती पोसती है। अगर प्रकृति हरी- भरी रहेगी तो हम भी जीवन का सुख लेते रहेंगे।
*अनुराधा चौहान'सुधी'स्वरचित*
चित्र गूगल से साभार

Tuesday, September 22, 2020

नन्ही लिसिप्रिया


मणिपुर के बशिकहांग की 8 साल की लिसीप्रिया कंगुजम दुनिया की सबसे कम उम्र की क्लाइमेट चेंज एक्टिविस्ट हैं।
आठ साल की लिसिप्रिया ने जलवायु परिवर्तन के खिलाफ आवाज बुलंद कर दुनिया को नींद से झकझोरा है।मणिपुर की इस नन्ही पर्यावरण कार्यकर्ता ने स्पेन की राजधानी मैड्रिड में सीओपी25 जलवायु शिखर सम्मेलन में अपनी बात रख वैश्विक नेताओं से अपनी धरती और उन जैसे मासूमों के भविष्य को बचाने के लिए तुरंत कदम उठाने की गुहार लगाई।
लिसिप्रिया अपने भाषण में कहती है, सभी वैश्विक नेताओं से मेरा निवेदन है कि पर्यावरण को बचाने के लिए अति आवश्यक कदम उठाने का समय आ गया है।यह वास्तविक क्लाइमेट इमरजेंसी का समय है हम सभी को इस पर ध्यान देने की जरूरत है।इतनी छोटी उम्र में इतने अहम मसले पर प्रभावशाली तरीके से अपनी बात रखने के कारण लिसिप्रिया स्पेन के अखबारों की सुर्खियाँ बनी हैं।
लिसीप्रिया को वर्ष 2019 में उन्होंने डॉ A.P.J. अब्दुल कलाम चिल्ड्रन अवॉर्ड, विश्व बाल शांति पुरस्कार और भारत शांति पुरस्कार से सम्मानित किया गया था।
लिसिप्रिया अब तक 21 देशों का दौरा कर चुकी हैं और जलवायु परिवर्तन मसले पर विविध सम्मेलनों में अपनी बात रख चुकी हैं। वह दुनिया में सबसे कम उम्र की पर्यावरण कार्यकर्ता बताई जा रही हैं।
महज छह साल की उम्र में लिसिप्रिया को 2018 में मंगोलिया में आपदा मसले पर हुए मंत्री स्तरीय शिखर सम्मेलन में बोलने का अवसर मिला था।वो कहती है कि उस सम्मेलन के बाद उनकी जिंदगी बदल गई।
लिसिप्रिया कहती है कि मैं जब भी प्राकृतिक आपदा जैसे भूकंप,सुनामी व बाढ़ आदि की वजह से निर्दोष लोगों को मरते हुए देखती हूँ तो भयभीत हो जाती हूँ। छोटे-छोटे बच्चों को अपने माता-पिता से बिछड़ते देख मेरा दिल भर आता है।मैं समाज के जिम्मेदार लोगों से आग्रह करती हूँ कि वो दिल-दिमाग से पर्यावरण असंतुलन के प्रभावों को कम करने के लिये प्रयास करें ताकि हम एक बेहतर दुनिया का निर्माण कर सकें।
मंगोलिया से लौटने के बाद लिसिप्रिया ने पिता की मदद से 'द चाइल्ड मूवमेंट' नामक संगठन बनाया। वह इस संगठन के जरिये वैश्विक नेताओं से जलवायु परिवर्तन के खिलाफ कदम उठाने की अपील करती हैं।लिसिप्रिया के पिता केके सिंह कहते हैं,मेरी बेटी की बातों को सुनकर कोई यह अनुमान नहीं कर पाता कि वो अभी आठ साल की है‌।
लिसिप्रिया का जन्म इंफाल में हुआ,लेकिन वह अपने इस कार्य के कारण पूरे समय शहर से बाहर रहती हैं।वह ज्यादातर दिल्ली और भुवनेश्वर में रहती हैं।जलवायु परिवर्तन मसले पर अपने जुनून के चलते वह स्कूल नहीं जा पाती थीं।इस कारण उसने फरवरी में स्कूल छोड़ दिया। पूरे जी- जान से अपने कार्य में जुट गई।
लिसिप्रिया ने एपीएसी क्षेत्र के बच्चों का प्रतिनिधित्व करते हुए 140 देशों के नुमाइंदों और तीन हजार प्रतिनिधियों को संबोधित किया।तब उसके आने-जाने की खबर आई-गई हो गई किसी ने उस पर गौर नहीं किया।
उसने देश का ध्यान तब खींचा जब वह 21 जून को हाथ में पर्यावरण संरक्षण के नारे लिखी तख्ती लिये संसद भवन के बाहर प्रदर्शन करती नजर आईं।लिसिप्रिया जून महीने में संसद भवन के पास तख्ती लेकर पहुंची थीं।तख्ती पर लिखे नारों के जरिये उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से भी आग्रह किया।
संसद भवन के बाहर तख्ती लिये लिसिप्रिया कहती हैं,"प्रिय मोदी जी एवं सभी सांसद जन, जलवायु परिवर्तन के प्रति कानून बनाकर अपनी सजगता दिखाएं। प्रतिदिन समुद्र का जलस्तर बढ़ रहा है।धरती निरंतर गर्म हो रही है।हम सभी को भविष्य बचाने के लिये जल्दी ही समस्याओं की जड़ पर जल्दी ध्यान देना होगा।आप सभी जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए भी कानून बनाकर हमारे भविष्य को बचा लीजिए।
लिसिप्रिया कहती है कि पर्यावरण असंतुलन के कारण ही हमें कई बीमारियों और प्राकृतिक आपदाओं का सामना करना पड़ रहा है। हमें भी इस विषय पर ध्यान देना होगा।
वृक्ष लगाओ,जीवन सींचो यह बात बड़े-बुजुर्ग ऐसे ही नहीं कहते थे।लिसिप्रिया की जितनी उम्र नहीं उससे कई गुना ज्यादा वृक्ष लगा चुकी है।
वो अपने  ट्वीटर पर लिखती हैं, ‘मैं अभी 3,040 दिनों की हूँ यानी कि उम्र 8 साल, 4 महीने, 1 दिन की। और अभी तक मैंने 51,000 से ज्यादा पेड़ लगाए हैं यानी कि प्रतिदिन के सोलह वृक्षों का रोपण किया हैं ।
नन्ही लिसिप्रिया की सक्रियता को देख एक आश्चर्य होता है कि खेलने-खाने की नन्ही सी उम्र में वह दुनिया भर की फिक्र लिये घूमती रहती है।
इस उम्र में बच्चों को कहाँ दुनिया के गंभीर विषयों से जुड़ाव होता है।मगर,पर्यावरण के प्रति उसकी जो चिंताएं हैं यदि सभी बच्चे उसकी तरह अभी से प्रकृति के प्रति जागरूक होंगे‍ तभी तो हमारा कल सुधरेगा।
लिसिप्रिया की तुलना स्वीडन की सोलह वर्षीय पर्यावरण कार्यकर्ता ग्रेटा थनबर्ग से की जाने लगी है।जलवायु परिवर्तन पर काम कर रही है यह बच्ची अपने-आप में एक मिसाल है।
लिसिप्रिया कहती है कि जिंदगी बेहतर बनाने के लिए हम सबको सही कदम उठाने होंगे ताकि भविष्य को संवारा जा सके और आगे आने वाली पीढ़ियाँ साफ और स्वच्छ हवा में जी सकें।
अनुराधा चौहान'सुधी'
लिसिप्रिया के बारे में सभी जानकारी दैनिक ट्रिब्यून, जनसत्ता, एनडीटीवी के माध्यम से ली गई हैं।
चित्र गूगल से साभार

Thursday, September 3, 2020

बर्तन यूनियन (बाल कथा)


आशु! पैर से कोई बरतनों को ठोकर मारता है क्या। सरला अपने पांच वर्षीय बेटी को चिल्लाते हुए गुस्से से बोली😠।
ममा क्या इनको भी चोट लगती है, इनमें भी जान होती है🤔।ममा..ममा बोलो ना🤷?
पीछा छुड़ाने के लिए सरला ने कहा दिया,हाँ बर्तनों में भी जान होती है😬,अब पैर नहीं मारना कभी।चलो तुम्हें सुला दूँ।
आशु के नन्हे मन में कई सवाल उमड़ते-घुमड़ते रहे🙇, और सरला उसके सवालों के जवाब देते हुए थक गई🥴।
तभी उसे कुछ आवाज़ें सुनाई दी। कौन है वहाँ देखती हूँ। सरला रसोईघर का नज़ारा देख चौंक गई😳। और छुपकर बैठ गई।
कटोरी उछलकर सामने आई।हाँ तो भाइयों-बहनों क्या सोचा आप सभी ने🤔
सोचना क्या है 🤔हम सब एक-दूसरे के साथ 🤗 कदम से कदम मिलाकर अपना विरोध प्रकट करना है।
आखिर कब तक हम इंसानों के जुल्म सहेंगे😡। जिसका मन आता है वो हमें पटकता है, लोहे के तारों से घिसता है।😩 हमको एक होना होगा 🤝
बहन तुम्हारी पीड़ा तो यही तक सीमित है। हमें तो घंटों आग में जलाते हैं, यह लोग.. तवा बोला
देखो कितना चिकना चमकदार और सुंदर था 😊।आज रोता हूँ अपने हाल पर 😢
चम्मच खनकी । मेरी भी सुन लो व्यथा😔मेरा हाल तो बुरा है 😏सब बार-बार मुँह में डालकर दाँतो तले दबाते हैं,जी करता है एक-दो दाँत साथ ले आऊँ👿
ग्लास मुस्कुराते हुए बोला, मैं तो सुखी हूँ,सब ठंडा शीतल जल मुझमें डालते हैं तो आनंद आ जाता है।😌
सब अपनी ही कहते रहोगे या मेरी सुनोगे। कड़ाही जोर से नीचे कूदी।देखो मेरी गोरी चिकनी काया में करछुल से कितने छिद्र कर दिए गए😔।अब रगड़-रगड़ कर मुझे आधा भी नहीं रहने दिया 😢
फिर तो थाली प्लेटें,भगोने, डिब्बे सब निकल कर रसोई के फर्स पर जमा हो गए।
सब में जोरदार वार्तालाप चालू था। रसोई घर का हाल देख सरला का हाल खराब था😳
सबसे ज्यादा मजे तो इन लोगों के हैं🙄चमचे ने चीनी मिट्टी के बर्तन की ओर इशारा करते हुए कहा।
कोमल हाथों से🤗 इन्हें सहेजकर रखा जाता है।ध्यान रखा जाता है ।कहीं इन्हें चोट न लगे।
सही कहा.. चाकू उछलकर सामने आया और बोला।अब तक सहेंगे 😡 तीखी मिर्च काटकर कभी मुझे साफ़ नहीं करते 😔 कितनी जलन सहता हूँ,जी करता है उँगली काट दूँ😬
सही बताऊँ कई बार काटी भी है 😆🤭 थोड़ी देर के लिए माहौल हल्का-फुल्का हो गया।
सरला अपनी कटी उँगली देखने लगी।आज ही मिर्ची काटते हुए कट गई थी।
दूध का भगोना अपने मोटापे के कारण हिल नहीं पा रहा था। भाईयों मदद करो उफ़ यह मोटापा🥴
सब मिलकर उसे भी नीचे उतार लेते हैं।अब तुम्हारी क्या समस्या है भाई🤔
मेरी कोई समस्या नहीं है भाई😊 मैं तो अक्सर दूध बाहर गिराकर तुम लोगों की तकलीफों का बदला ले लेता हूँ😄
क्या बात करते हो भाई🙊 सच्ची कह रहे हो🤔 हाँ कल सुबह गैस बंद करते-करते कितना सारा दूध मैंने बाहर फेंक दिया।
यह सब तो ठीक है आगे क्या सोचा है🤔 सोचना क्या.. नहीं सुधरेंगे, तो हम भी सिनचैन👼 बनकर सताते रहेंगे😁
बर्तन यूनियन ज़िंदाबाद 📢चलो अब हमारा रंगारंग कार्यक्रम शुरू किया जाए।
सारे बर्तन आपस में टकराते हुए नाचने-गाने लगे💃‌।
है अगर दुश्मन,दुश्मन,
जमाना ,गम नहीं ,गम नहीं,
कोई आये कोई आये कोई...
हम किसी से कम नहीं,कम नहीं 
🥳यह देख फ्रिज में रखे फल सब्जियाँ भी मैदान में उतर आए।
सब्जियाँ🥕🥦🍆 नाचते हुए चॉपिंग बोर्ड पर चढ़ जाती।तो चाकू महाशय कूदकर उन्हें अपनी धार🔪 से कतरकर मुस्कुराते😜डांस करने लगते।
संतरे यह देख उछलकर गैस पर बैठ गए।चम्मच ने गैस चला दी 🔥तो संतरे 🍊उछलते🥴 हुए फिर से फ्रिज में घुस गए।
तभी कटोरी ने छलांग लगाई। और सीधी पहूँची क्रॉकरी के पास।यह देख सरला घबरा कर भागी,पर यह क्या उसके हाथ-पैर सब जाम थे😳
कटोरी नाच-नाच के छुरी-कांटे🍴 की सहायता से एक-एक करके सभी बरतन गिरा रही थी।खनाक-खन्न,खनाक-खन्न काँच से बिखरते टुकड़े देख सरला का हाल खराब हो गया 😢
अरे कटोरी रुक जा बहना..यह क्या कर रही है😳इन बेचारों की क्या गलती छोड़ दें बहना।🙏
क्यों रुक जाऊँ? आज यह सब टूटेंगे-फूटेंगे तभी हमारी कदर होगी।
ऐसा कुछ नहीं होगा, कल तुम फिर घिसी जाओगी स्क्रब लेकर।😐 हमारी ज़िंदगी जलने और घिस-घिसकर, और बाद में भंगार में जाकर खतम होनी है।😔
तुम चमचे लोग कभी अपना स्वभाव नहीं छोड़ोगे।चमचे हो चमचागिरी करते रहोगे 👿कटोरी तुनक कर बोली।
अब इसमें इसका क्या दोष,यह चमचागिरी की बात कहाँ से आ गई 😬दूध के पतीले ने बोला।
तुम तो कुछ बोलो ही नहीं..अब बारी थी कांटे-छुरी की। तुम्हें तो रोज मलाई मिल रही है,तो मक्खनबाजी करोगे👿😏
देखते-ही-देखते चमचा,करछी, कड़ाही चिमटा सब आपस में झगड़ पड़े।
यह देख टमाटर, गोभी हँस पड़े😆।अब मुश्किलों से टकराने की बारी थी टमाटरों की⚔️सभी गुस्से में 😠 दौड़ पड़े उनके पीछे।
थोड़ी देर में फर्श पर टमाटर चटनी बने पड़े थे।अब सरला की आँखों से मोटे-मोटे आँसू😭 बह निकले पड़े।
हे भगवान अस्सी रुपए किलो लाई थी टमाटर सब फोड़ डाले😭 यह मेरा सबसे प्रिय टी-सेट, मायके से मिला तोहफा था😭
रुक जाओ 🙏माफ़ कर दो कल से किसी पर जुल्म नहीं करूँगी🥴
कटोरी के समर्थन में थालियाँ मैदान में आ गई। तुम लोगों को अत्याचार सहना है सहो हम तो चले।
अरे-अरे रुको ✋पर एक-एक करके कटोरी और थालियाँ खिड़की से बाहर गिरने लगी।
सरला की आँखों के सामने उसके चमकदार स्टील के बर्तन रसोईघर से बाहर निकल गए😳😢
चमचा और पतीला चुपचाप अपने साथियों को जाते देख मायूस 🙄 हो रहे थे।
शुरू से ही चुपचाप बैठे प्रेशर कुकर ने 😠गुस्से से सीटी बजाई।यहाँ भी दल बन गए 🤔
कल तक हाथ थामकर 🤝 चलने वाले मैदान छोड़कर भाग गए 😬
अब तुमको चमचागिरी करनी है तो रुको 😏 मैं भी चला अपने साथियों के पास, अलविदा।
भाई तुम तो मेरे प्रिय मित्र हो🤗जहाँ तुम वहाँ मैं रुको✋ मैं भी आया।
पतीला भी चल दिया। नहीं-नहीं रुक जाओ✋ सरला जोर से रो पड़ी😭 अभी तो धनतेरस पर इतना मँहगा लेकर आई थी।हाय मेरा हॉकिन्स फ्युचरा, हाय मेरा प्यारा कुकर 😰
सरला जोरों से उठकर भागी। धड़ाम 🥵 पलंग से गिर गई🥴 हे भगवान यह सपना था 🤔मैं नींद में यह सब देख रही थी😴
सरला को यकीन नहीं हुआ 🙄 दौड़कर रसोईघर में जा पहुँची।
सुई गिरने की आवाज़ सुनाई दे जाए। रसोई घर में इतना सन्नाटा पसरा हुआ था😐
सरला ने टी-सेट निकाल कर देखा।🥰 मेरा प्यारा टी-सेट एक तू ही तो है जो दिनभर मायके का एहसास दिलाता है 😘 शुक्र है तुझे कुछ नहीं हुआ😊
सुबह सरला बड़े प्यार से बरतन चमका रही थी। सरला क्या हुआ 🤔आज घंटे भर से बरतन धो रही हो?
कुछ नहीं जी, इन्हें चोट न लगे इसलिए आराम से साफ कर रही हूँ,सरला अभी-भी रात के सपने में खोई थी।क्या🤔प्रकाश कुछ नहीं समझा नहीं ।बस आश्चर्य🤯 से सरला की गतिविधि को देख रहा था।
©®अनुराधा चौहान स्वरचित ✍️



Sunday, August 23, 2020

अन्नदाता नूरी कंवर

गायत्री आराम कुर्सी पर बैठी कोई पुस्तक पढ़ रही थी।पास में ही उनका मोबाइल रखा हुआ था।जिसे अभी कुछ महीने पहले ही बहू नेहा ने गिफ्ट किया था।

पुस्तक पढ़ने में मगन गायत्री को बरतन गिरने का स्वर सुनाई दिया। उठकर बाहर आई तो बहू उदास बैठी थी।बच्चों ने खाने की थाली फेंक दी थी।

बहू यह सब??

माँ अब आप ही इन्हें समझाइए।एक तो लॉकडाउन के चलते कोई सामान जल्दी नहीं मिल रहा है। ऊपर से इन दोनों की नई-नई फरमाइशें, यह नहीं खाना वो नहीं खाना। दिनभर ऑफिस और बच्चों की जिद के आगे नेहा रुआँसी हो गई।

अच्छा तुम जाओ मेरे लिए हल्दी वाला दूध ले आओ।इन्हें मैं समझाती हूँ।बड़े समझदार बच्चे हैं,प्यार से समझाओ तो सब समझ जाते हैं।

हर्ष! तुम और रूही चलो मेरे साथ आज मैंने न्यूज पेपर पर बेहद हृदयस्पर्शी खबर पढ़ी है।चलो तुम लोगों को भी सुनाती हूँ।

जी दादी माँ हम अभी चलते हैं।हर्ष रूही को साथ लेकर गायत्री के कमरे में आ गया।

दादी माँ जल्दी सुनाओ ना!आप किस खबर की बात कर रही हो?मचलते हुए हर्ष ने पूछा।

ठहरो तो जरा! मोबाइल उठाते हुए गायत्री बोली।जैसा कि तुम दोनों को पता है कि कोरोनावायरस के कहर से पूरी दुनिया में हाहाकार मचा हुआ है। कोरोनावायरस की चैन को तोड़ने के लिए हमारे प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी ने देश में लॉकडाउन लगा दिया है।

सभी लोगों के काम-काज बंद हो गए हैं।जिस वजह से रोज कमाने खाने वाले गरीब लोगों के जीवन पर रहने और खाने का संकट गहरा गया है।

हम्म वो तो हमें पता है पर आप यह बताइए,आप जिस खबर को बताने जा रही हैं,वो खबर आपको कहाँ से और कैसे पता चली।

मेरे मोबाइल से! मैं मोबाइल में ई न्यूज पेपर पढ़ा करती हूँ,उसी से पता चला।

आज मैं तुम्हें बड़ौदा शहर में रहने वाली किन्नर नूरी कंवर के बारे में बताने जा रही हूँ।आशा है नूरी कंवर के बारे में जानने के बाद तुम दोनों फिर कभी अन्न का अनादर नहीं करोगे!

तो सुनो नूरी कंवर की कहानी जो पूर्णतः सच्ची और सीख लेने लायक है।

गुजरात के बड़ौदा में रहने वाली किन्नर नूरी कंवर को एक दिन किसी बच्चे के रोने की आवाज सुनाई दी। पहले तो उन्होंने उस तरफ ध्यान नहीं दिया।

आमतौर पर बच्चे किसी न किसी बात पर जिद करके रोते ही है। लेकिन थोड़ी देर में उसे पीटने की आवाज और उसका करुण क्रंदन नूरी कंवर की आत्मा को भेदने लगा।
नूरी से रहा नहीं गया, उसने उस घर के सामने जाकर उस बच्चे की माँ से कहा।क्यों रुला रही है रे।कब से रोए जा रहा है तेरा बच्चा,चुप क्यों नहीं कराती।

यह सुनते ही बच्चे की माँ रो पड़ी और रोते-रोते उसने नूरी कंवर से कहा। कैसे चुप कराऊँ ? खाना माँग रहा है घर में खाने को कुछ भी नहीं और ना ही पैसा बचा।

कहते हुए वो औरत आँखों में आँसू लिए अपने बच्चे को पीटने लगी ताकि वो कैसे भी चुप हो जाए।

इस घटना ने नूरी कंवर के मन में हलचल मचा दी।उसका भावुक हृदय उस मासूम बालक की पीड़ा से व्यथित हो गया।
रुक जाओ बहन न मारो बच्चे को! जानती हूँ इस महामारी ने सभी लोगों की हालत खराब कर दी!बहन तुम चिंता मत करो यह लो कुछ पैसे! खाने की व्यवस्था करो, मैं जल्दी ही तेरे यहाँ राशन भिजवाती हूँ!

उन्होंने तुरंत उस परिवार की मदद की।घर वापस आकर सोचने लगी ऐसे और भी कई घर होंगे जहाँ बच्चे भूख से बिलख रहे होंगे।

नूरी कंवर सोच-विचार में लगी वो किस प्रकार से इन लोगों की मदद कर सकती है।लॉकडाउन के चलते रोज कमाने खाने वाले मजदूरों की रोजी-रोटी छिन गई थी।

ऐसे में इस घटना से बेचैन नूरी कंवर ने भूखे बेबस गरीबों की मदद करने का निर्णय लिया, और इस कार्य को पूरा करने में जुट गई।नूरी कंवर ने सबसे पहले इस बारे में अपनी बहनों से बात की।

बहनों आज एक मार्मिक दृश्य ने मुझे झकझोर कर रख दिया है। मुझे तुम लोगों का साथ चाहिए! क्या तुम लोग मदद के लिए तैयार हो? नूरी कंवर ने अपनी किन्नर बहनों से पूछा।

ऐसा क्या देख लिया आपने जो आप इतनी व्यथित हो रही हैं दीदी?

मैंने एक घर में बिलखते बच्चे की आवाज सुनी पूछने पर पता चला बच्चे ने दो दिन से कुछ नहीं खाया वो भूख से तड़प कर रो रहा था और उसकी माँ उसे चुप कराने के लिए पीट रही थी।उनके घर में खाने को अन्न का एक दाना भी न था।

यहाँ आस-पास पता नहीं और ऐसे कितने घर हैं, जिनके चूल्हा बुझा पड़ा है! क्या तुम लोग उन लोगों का पता लगा सकते हो? हमें उनके पास खाने की सामग्री पहुँचानी होगी!

ठीक है हम तो तैयार हैं! पर अभी लॉकडाउन में यह सब कैसे संभव होगा दीदी? लॉकडाउन में बाहर कैसे निकला जाए?

हम परमीशन लेकर ही सब काम करेंगे और लॉकडाउन के नियमों का पालन भी करेंगे!नूरी कंवर अपने और अपने साथियों के लिए ई-पास की व्यवस्था और सामान पहुँचाने के लिए रिक्शे की व्यवस्था कर लेती है।

उसके बाद नूरी कंवर ने अपनी किन्नर बहनों के साथ मिलकर घर-घर खाने की सामग्री पहूँचाने का काम शुरू कर दिया।शुरुआत के कुछ दिनों में उन्होंने पका हुआ खाना घर-घर पहुँचाया।पर रोज-रोज इतने लोगों को खाना पकाकर देना आसान नहीं था।

फिर क्या उन्होंने खाना देना बंद कर दिया दादी?हर्ष ने पूछा।

नहीं! ऐसा कुछ नहीं हुआ, आगे की कहानी सुनो! गायत्री ने कहा।

सुनो बहनों!रोज पका हुआ खाना देना संभव नहीं क्योंकि कोई लेता है कोई नहीं ऐसे बर्बादी होती है।!तुम सब एक काम करो एक महीने में एक परिवार को कितना राशन लगेगा,उस हिसाब से पैकेट बना लो!वो लोग अपने हिसाब से बनाएंगे और खाएंगे।

नूरी ने हर हाल में गरीबों की मदद करने का दृढ़ निश्चय कर लिया था।उसने दाल-चावल,आटा,शक्कर तेल मसाले आदि सामान के एक-एक महीने की सामग्री के पैकेट बनाए।

पास और परमिशन लेकर रिक्शे की मदद से किन्नर बहनों के साथ मिलकर जो पहली लिस्ट तैयार की थी। उसके अनुसार घर-घर जाकर जरूरतमंद लोगों को  महीने भर की खाद्य-सामग्री पहुँचाने लगी।

लॉकडाउन के कारण दुकानें बंद थीं। शादी-विवाह,सगाई, जन्मोत्सव, गोदभराई जैसे मांगलिक कार्यक्रमों में गा-बजाकर पैसे कमाने वाले किन्नर समुदाय की कमाई भी पूरी तरह से बंद थी।

हमेशा से हमारे देश में किन्नर समाज को तिरस्कृत नज़रों से देखा जाता रहा।आज वही किन्नर समाज गरीबों का अन्नदाता बनकर सामने आया और लोगों की उनके प्रति  क्या सोच है,इस बात की परवाह किए बिना अपने संकल्प को ईमानदारी से पूरा करने लगे।

बड़ौदा के इस किन्नर समाज के पास पैसों की तंगी होने लगी थी। भूखों का पेट भरने का संकल्प लिए नूरी ने अब अपने गहने को बेचना शुरू कर दिया।

गरीबों की अन्नदाता बनी नूरी कंवर ने जिस काम को करने का बीड़ा उठाया था।वह उस कार्य को किसी भी हालत में पूरा करना चाहती थी और उसके लिए बची हुई धनराशि काफी नहीं थी।

नूरी कंवर को सोने के गहनों का बड़ा शौक था। उन्होंने एक-एक करके अपने गहनों को गिरवी व बेचना शुरू कर दिया।

मदद के पहले चरण में अपने साथियों की मदद से ढूँढ़-ढूँढ़कर गरीब परिवारों की सूची बनाई गई ।उस सूची के अनुसार उन सभी पाँच सौ गरीब परिवारों तक राशन पहुँचाया गया।

धीरे-धीरे उनकी सूची बढ़ती गई और अब उनकी लिस्ट में एक हजार के करीब गरीब परिवार शामिल हो गए थे।नूरी कंवर अपनी बहनों के साथ मिलकर जरूरतमंदो की हरसंभव मदद करने की कोशिश में लगी हुई थी।

एक इंटरव्यू के दौरान नूरी कंवर से पूछा गया कि उन्होंने अपने गहने भी गिरवी रखे हैं? तो वे कहती हैं"हमारे सामने धन की कमी एक जटिल समस्या थी!लोगों की बेबसी,उनके आँसू भी हमसे देखे नहीं जा रहे थे।

क्या बात कर रही हो दादी?उन लोगों ने दूसरों को खाना खिलाने के लिए अपने गहने बेच दिए?रूही और हर्ष दोनों आश्चर्य से पूछने लगे।

हाँ मेरे बच्चों!हम लोग उन्हें पाँच रुपए देने में भी मुँह टेढ़े-मेढ़े करते हैं,उन्हें हिकारत से देखते हैं,इन सब बातों को परे रखकर नूरी कंवर और उनकी बहनें निस्वार्थ भाव से सेवा में लगीं थीं।

हाँ दादी आप सही कह रही हो!

आगे सुनो बच्चों!!

नूरी कंवर ने कहा हमारे पास पैसे जमा करने के लिए कोई दूसरा विकल्प ही नहीं था।हमें सिर्फ गहने ही दिखाई दे रहे थे। गहनों का क्या है, भगवान ने चाहा तो गहने हम बाद में भी बनवा लेंगे।

गहने हम किन्नर समाज के लिए बहुत मायने रखते हैं।यह गहने हम किन्नरों के बुढ़ापे का सहारा होते हैं। बुढ़ापे में हमको संभालने वाला कोई नहीं होता है,ऐसे में यह गहने ही हमारे काम आते हैं।

इस समय गहनों के प्रति लालच रखती तो अपने गरीब भाई-बहनों की मदद नहीं कर पाती।

कोई हमारे बारे में कुछ भी सोचता हो, हमें परवाह नहीं! हमें गरीब भाई-बहनों की परवाह है और रहेगी! हमारी आँखों के सामने कोई भूख से तड़प कर मर जाए तो हम कैसे भी सहन नहीं कर सकते। भूखें बच्चों का रोना सुनकर हम कैसे सुकून से दो वक़्त की रोटी कैसे खा सकते थे?

लॉकडाउन के कारण हमारी भी कमाई बंद हो गई है और परिस्थितियाँ ऐसी बन गई हैं, जिसे देखते हुए हमारे लिए सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण भूखों का पेट भरना था!

ऐसे समय में गहने बचाने से ज्यादा हमें गरीबों के लिए खाना जुटाने की चिंता थी।हम लोग यही प्रयास कर रहे हैं कि ज्यादा से ज्यादा लोगों की मदद कर सकें।

हमने उन गरीब परिवारों को अपने फोन नंबर भी दिए हैं। अगर कोई सामान खत्म हो जाए तो हमें पहले ही बता दें तो हम इंतजाम कर देंगे!

नूरी कंवर और उसके साथी उन सभी परिवारों को अपना फोन नंबर भी देते जा रहे थे ताकि जब उनके पास राशन-पानी खत्म होने लगे तो वो लोग फोन करके उन्हें पहले से बता दे।

नूरी कंवर और उसके साथियों ने अपनी इस मुहिम में लॉकडाउन के लिए सरकार द्वारा बनाए सभी नियमों का ईमानदारी से पालन करते हुए सामाजिक दूरी का पूरा ख्याल रख रहे थे।

नूरी कंवर के साथी लोगों को घर के अंदर ही रुकने की आवाज लगाते और राशन के पैकेट उनके दरवाजे पर रख देते थे।जिसे उनके जाने के बाद वो लोग उठा लेते थे।
नूरी कंवर ने बड़े ही चाव से गहने बनवाए थे और उन गहनों को गरीबों का पेट भरने के लिए बेच दिया।वो गहने उन्हें बेहद प्यारे थे।खासकर वो हार जिसे बनवाने के लिए उन्होंने बड़ी मेहनत से एक-एक पैसा जोड़ा था।

नूरी कंवर ने निस्वार्थ भाव से गरीब परिवारों तक भोजन पहुँचाकर समाज में मानवता की अद्भुत मिसाल कायम की,साथ ही साथ समाज को भी यह संदेश भी दिया, कुछ करने के लिए पैसा नहीं दिल बड़ा होना चाहिए।

आज जहाँ एक तरफ लॉकडाउन के चलते गरीब परिवार के लिए जीवनोपयोगी वस्तुएं जुटाना मुश्किल हो रहा था। वहाँ नूरी कंवर जैसे मानवता के फरिश्ते बनकर अपना सब-कुछ बेचकर उन गरीब परिवारों तक अपनी मदद पहुँचाकर उनका पेट भरने का प्रयास कर रहे हैं।

आज कोरोनावायरस के चलते देश में जो हालात बन गए हैं। ऐसे में वह इंसान बहुत भाग्यशाली है, जिसे घर बैठे पेट भर खाना खाने को मिल रहा है।

तुम दोनों को पता नहीं है! हमारे देश में कोरोना के चलते कितने गरीब परिवार दाने-दाने के लिए मोहताज हो रहे हैं।उनसे उनके काम छिन गए हैं।

कोरोनावायरस एक ऐसी महामारी है जिसका अभी तक कोई तोड़, कोई दवा नहीं मिल रही है।ऐसे में हमें पता नहीं आगे और भी विकट परिस्थितियों का सामना करना पड़ जाए?

ऐसे में समझदारी संभल कर चलने में है।जिस खाने को तुम लोग यह कहकर फेंक देते हो,वो तुम्हारी पसंद का नहीं बना है! उस खाने को पाने के लिए आज भी कितने घरों के बच्चे भूख से तड़प रहे हैं।

कुछ लोगों के पास न धन बचा न काम,वो क्या करें?हर किसी के पास तो नूरी कंवर जैसे फरिश्ते मदद के लिए नहीं पहुँच सकते?

इसलिए हम सबका फर्ज बनता है ना हम अन्न बर्बाद करें और ना करने दें! हम सभी को यह भी ध्यान रखना होगा कि हमारे आस-पास भी कोई भूखा न रहे।

दादी माँ हमें माफ़ कर दो।अब हमें खाने की अहमियत समझ आ गई है।हम समझ गए हैं कि अन्न के बिना जीवन संभव नहीं है। हमें आपकी कहानी का अभिप्राय भी समझ आ गया है।

हम लोग आज के बाद कभी भी अन्न का अनादर नहीं करेंगे।जो भी माँ बनाएगी प्यार से खाएंगे। और आज से यह भी कोशिश करेंगे कि हमारी जानकारी में अगर कोई परिवार भूख से बेहाल होगा तो उस तक भोजन पहुँचाएंगे।
***अनुराधा चौहान'सुधी'***

नोट-नूरी कंवर के सराहनीय कार्य के बारे में सभी जानकारी द बेटर इंडिया और दैनिक भास्कर ई न्यूज पेपर से लेकर अपने शब्दों में अलग रूप देकर ज्यादा से ज्यादा पाठकों तक पहुँचाने की छोटी-सी कोशिश है।

Sunday, June 28, 2020

नन्ही जन्नत

खूबसूरत वादियों, ऊँची-ऊँची पहाड़ियों से घिरी कश्मीर को धरती की जन्नत कहा जाता है।और कश्मीर का दिल कही जाने वाली डल झील की खूबसूरती कश्मीर आने वालों को हमेशा ही अपनी ओर आकर्षित करती है।

हर वर्ष लाखों की संख्या में सैलानी यहाँ आकर झील में मौजूद खूबसूरत हाउसबोटों में रहकर झील की खूबसूरती का आनंद उठाते हैं।

पिछले कई कुछ वर्षों से सैलानियों की बढ़ती संख्या, और हाउसबोटों से निकलने वाली गंदगी ने और डल झील पर सब्जियों की खेती करने की वजह से डल झील में प्रदूषण का स्तर बढ़ने लगा।

डल झील की बढ़ते प्रदूषण को देख, डल झील की सफाई का जिम्मा उठाया नन्ही-सी बच्ची जन्नत ने।जन्नत अभी सात साल की दूसरी कक्षा में पढ़ती है।

जन्नत ने जब इस कार्य की शुरूआत की थी।तब वह सिर्फ पाँच वर्ष की थीं और श्रीनगर के राजबाग स्थित लिंटन हॉल स्कूल में अपर केजी में पढ़ती थी।

अपने पापा को यह काम करते देख नन्ही जन्नत ने उनसे इसका कारण पूछा तो पिता ने बताया कि वो डल झील को स्वच्छ रखने के लिए यह कार्य करते है।

पिता की बात से नन्ही जन्नत के दिल पर गहरा प्रभाव पड़ता।बस तभी जन्नत ने कश्मीर की इस खूबसूरत डल झील से कचरा हटाने का दृढ़ निश्चय कर लिया।
जन्नत अपनी पढ़ाई के साथ इस कार्य को बड़ी मेहनत और लगन से करने लगी।इन दो वर्षों में जन्नत अपने आस-पास के लोगों के साथ-साथ अपने साथियों को भी इस मुहीम का हिस्सा बनने के लिए प्रेरित करती रहती है।

जन्नत डल झील से सटे गोल्डन डल इलाके में हाउसबोट में रहती है। जन्नत कभी अकेले तो कभी अपने पिता के साथ डल झील की सफाई करने निकल जाती है।जहाँ भी उसे कचरा दिखाई पड़ता है, उसे अपने शिकारे में जमा करती जाती है।

जन्नत डल झील से कचरा उठाकर अपनी किश्ती में जमा करती है उसे उसके पिता नगरनिगम तक पहुँचाने का काम करते हैं।

जन्नत के इस सराहनीय कार्य के लिए प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी जी ने भी ट्वीट कर खूब सराहा‌। उन्होंने मन की बात में जन्नत का जिक्र कर कहा कि सभी बच्चों को इस नन्ही बालिका से सीख लेनी चाहिए।

जन्नत एक इंटरव्यू में कहती है कि हर किसी को अपने आस-पास की साफ-सफाई के लिए आगे आना चाहिए। अपने आसपास सफाई रखना हम सबकी जिम्मेदारी है।


जन्नत अब सात वर्ष की हो चुकी है।पर उसके नियम वही है। वह आज भी स्कूल से आने के बाद अपनी छोटी सी किश्ती लेकर नियम से डल झील की सफाई करने में जुट जाती है।

जन्नत कहती है, मेरे पापा एक सामाजिक कार्यकर्ता हैं। और मेरी प्रेरणास्रोत भी। मैं अकसर पापा को झील से कचरा निकालते और फेंकती देखती थी। एक दिन मेरे मन में भी विचार आया कि मुझे भी यह काम करके अपनी इस सुंदर डल झील को साफ करना है।

जन्नत आने-जाने वाले जिस भी सैलानी मिलती है,वो उन्हें भी झील में कचरा न फैंकने की गुजारिश करती है।जन्नत कहती है लोगों को समझना चाहिए। वो लोग यहाँ घूमने आते हैं और गंदगी कर जाते हैं। यह हम सबकी जिम्मेदारी है।हम अपनी खूबसूरत डल झील को गंदा होते नहीं देख सकते हैं।

जन्नत ने अपने पिता के साथ मिलकर "जन्नतस मिशन डल लेक ए न्यू बिगनिंग"यह अभियान शुरू किया है।इस काम के लिए जन्नत के पिता तारिक अहमद पतलू ने डल झील को प्रदूषण मुक्त करने के लिए एक रोड मैप भी तैयार किया है। तारिक अहमद इस रिपोर्ट को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी जी को सौंपना चाहते हैं।

इंटरव्यू के दौरान जन्नत कहती है मुझे बाबा को यह काम करते देख लगा मुझे भी उनकी मदद करनी चाहिए। अपने पिता से प्रेरित होकर जन्नत दो साल से डल झील को साफ कर रही है।
जन्नत की इस सराहनीय पहल को हैदराबाद स्थित स्कूल के पाठ्यक्रम में भी शामिल कर लिया गया है।जन्नत के पिता तारिक अहमद को फोन करके इसकी जानकारी मिली तो एक पल के लिए उन्हें विश्वास नहीं हुआ था।बाद में सच्चाई जानकर उनकी आँखों में खुशी के आँसू छलक पड़े।

तारिक अहमद बड़े गर्व से कहते हैं ।उनकी बेटी बहुत ही प्रतिभाशाली और प्रकृति प्रेमी है। उसने केवल उनका ही नहीं, उनके साथ-साथ पूरे कश्मीर का नाम भी रोशन किया है।

खेल-कूद की उम्र में जन्नत डल झील को स्वच्छ बनाने में लगी है।जन्नत कहती है मुझे बहुत खुशी हो रही है कि सब मेरे काम की तारीफ करते हैं।और मेरे इस प्रयास को स्कूल की किताब में भी जगह मिली है।

मैं तो अपने साथियों से भी कहती हूँ,आप सब भी आगे आइए और अपनी डल झील को स्वच्छ बनाइए, और सिर्फ डल झील ही नहीं हमें अपने आस-पास भी साफ-सफाई रखना चाहिए।

नन्ही जन्नत की धरती के जन्नत को स्वच्छ बनाए रखने की यह मुहीम वाकई में काबिले तारीफ है। जिस उम्र में बच्चे खेलकूद में व्यस्त रहते हैं।उस उम्र में जन्नत अपने छोटे से शिकारे को लेकर डल झील को स्वच्छ बनाने में व्यस्त रहती है।

जन्नत के बारे में जब मैंने न्यूज में देखा और कुछ ई न्यूज पेपर में भी पढ़ा। गूगल पर उसके विडियो भी देखे तो मैंने सोचा नन्ही बच्ची के सराहनीय कार्य के बारे में ज्यादा से ज्यादा लोगों को पता होना चाहिए।जन्नत के इस कार्य से सभी को सीख लेनी चाहिए।
***अनुराधा चौहान'सुधी'***
चित्र गूगल से साभार

Thursday, June 25, 2020

बाबा हरभजन सिंह



टीवी पर न्यूज चल रही थी।गलवान घाटी में भारत और चीन की सेना के बीच हुई खूनी झड़प में और भारतीय वीर जवानों की शहादत देख कर हर्ष और रूही बहुत दुखी हो गए।

दादी माँ देखो! फिर से हमारे जवान शहीद हो गए। क्या मिलता है इन लोगों जो हमारे देश पर हमला करते हैं?इस बार हमला चीन की ओर से हुआ है।

हम्म.. बच्चों सच में ऐसी खबरें देखकर मन बहुत दुःख होता है। हमारे देश की खासियत है कि हमारी सेना कभी भी बिना वजह किसी को हानि नहीं पहुँचाती है पर कोई विश्वासघात करके हमें हानि पहुँचाने की कोशिश करने लगता है तो फिर तगड़ा सबक सिखाती है।

दादी माँ आज हमें वीर शहीदों की कहानी सुनाइए ना!

हाँ-हाँ क्यों नहीं पर पहले दूध खतम करो! आज मैं तुम लोगों को एक ऐसे वीर सैनिक की कहानी सुनाती हूँ जो अपनी मृत्यु के पश्चात भी देश की सेवा करते रहे हैं।

क्या? मरने के बाद!! यह कैसे संभव है दादी माँ?

माँ यह कैसे संभव है? गायत्री के बेटे और बहू भी टीवी बंद करके आ गए।

हाँ बच्चों एक बार सुनकर यह बात अविश्वसनीय लगती है हर कोई इस बात पर जल्दी विश्वास नहीं करता है।पर यह एक ऐसी सच्चाई है जिसे हमारी सेना भी महसूस कर चुकी है और इस बात को मानती भी है।

अच्छा तो फिर सुनाइए!

यह कहानी है बाईस वर्षीय शहीद बाबा हरभजन सिंह जी की जिन्हें नाथूला का नायक भी कहा जाता है। हरभजन सिंह बहुत कम उम्र में देश के लिए शहीद हो गए थे।

हरभजन का जन्म 30 अगस्त 1946 में जिला गुजरांवाला (वर्तमान पाकिस्तान में) के सदराना गांव में हुआ था।हरभजन सिंह ने सन 1955 में डी.ए.वी. हाईस्कूल, पट्टी से मैट्रिक की शिक्षा पूरी की थी।

उसने बाद हरभजन सिंह 30जून 1965 को भारतीय सेना के पंजाब में सिपाही के तौर पर भर्ती हुए थे।

यह उस समय की बात है जब पाकिस्तान ने अचानक ही भारत पर आक्रमण कर दिया था।तब हरभजन सिंह भी भारत की और से युध्द में शामिल हुए थे ।

उनकी वीरता और देश के प्रति सच्ची लगन को देखते हुए बाद में उन्हें 14वी राजपूत रेजीमेंट में ट्रांसफ़र कर दिया गया।

9 फरवरी 1966 को इनका स्थानांतरण 18 राजपूत रेजिमेंट के लिए कर दिया गया।1968 में उन्हें 23वें पंजाब रेजिमेंट के साथ पूर्वी सिक्किम में भेजा गया।

कहते हैं यही वो जगह थी जहाँ बाबा हरभजन सिंह एक हादसे का शिकार होकर असमय ही इस दुनिया से चले गए।

यह 4 अक्टूबर 1968 की बात है। एक दिन जब हरभजनसिंह घोड़े के काफिले पर रसद लेकर तुकु ला से डोंगचुई ले जा रहे थे।जिस रास्ते से वो जा रहे थे वो रास्ता बेहद खतरनाक और फिसलन भरा था।


जगह-जगह से बर्फ फिसल रही थी और अचानक पूर्वी सिक्किम के नाथू ला दर्रे के पास अचानक उनके घोड़े का पैर फिसल गया उन्होंने बहुत संभलने की कोशिश की पर वो गहरी घाटी में गिर गए।

खाई बहुत संकरी और गहरी थी।उस पर ऊँचाई बहुत थी और अत्याधिक ऊँचाई से गिरने से उनकी तत्काल मृत्यु हो गई और खाई में बहने वाले पानी के अत्याधिक तेज बहाव के साथ उनका शरीर वहाँ से बहता हुआ लगभग दो किलोमीटर दूर तक चला गया।

हरभजनसिंह उस समय इस यात्रा पर अकेले जा रहे थे।इस वजह से उनके साथ हुए हादसे का जल्दी ही किसी को पता नहीं चल पाया था। जिस समय खाई में गिरे थे उनकी उम्र मात्र बाईस साल थी।

तो फिर उनको किसी ने ढूँढा नहीं दादी? उनके घरवालों को उनके विषय में कैसे पता चला?

हाँ मां बताइए ना? हमारी भी उत्सुकता बढ़ती ही जा रही है। नेहा और राजीव बोले।

बताती हूँ ध्यान से सुनो!!देर रात तक जब हरभजन सिंह वापस नहीं आए तो उनके साथी सिपाहियों ने अनिष्ट की आशंका से उनकी खोज शुरू कर दी।हर जगह उन्हें बहुत ढूँढा गया पर हरभजनसिंह का कहीं भी कुछ पता नहीं चला।

दो दिन खोजने के बाद थक-हारकर सब चुप बैठ गए।इस

घटना को घटे दो-तीन दिन हो गए थे। बाबा हरभजन सिंह को लेकर उनके साथियों और अधिकारियों के बीच तरह-तरह की बातें होने लगी। कुछ किसी हादसे में शहीद समझ रहे तो कुछ साथी भगोड़ा समझकर कहने लगे कि वो जान-बूझकर कहीं चला गया होगा अब कभी वापस नहीं आएगा। 

फिर तीन दिन बाद एक रात हरभजन सिंह अपने सैनिक साथी प्रीतम सिंह के सपने में आए और आकर उन्हें अपने साथ घटित हुई घटना की जानकारी दी और कहा कि वो कहीं नहीं गए बल्कि वो अब इस दुनिया में ही नहीं है।

क्या??यह कैसे हो सकता है?

हुआ है बच्चों!उसी दिन से उनके चमत्कार शुरू हो गए थे। 

उन्होंने प्रीतम सिंह से सपने में आकर कहा कि कैसे उनका पैर फिसल जाने से वह गहरी खाई में गिर गए और उनका पार्थिव शरीर पानी के तेज बहाव में बहता हुआ करीब दो किलोमीटर दूर फलां-फलां जगह पर पड़ा हुआ है।तुम लोग सुबह ही जाओ और मेरे पार्थिव शरीर को लेकर आओ और यहीं मेरा अंतिम संस्कार करो यह मेरी इच्छा है। 

सुबह होते ही उन्होंने यह बात सभी साथियों को बताई तो उनकी बात पर किसी ने गौर नहीं किया उनसे कहा गया कि तुम उनके बारे में ज्यादा सोचते हो और रात को भी उन्हीं के बारे में सोचते हुए सो गए इसलिए ऐसा सपना आया है।

साथियों की बातें सुनकर प्रीतम सिंह बोले ढूँढने में हर्ज ही क्या है? माना हमने उन्हें कई जगह ढूँढ लिया है चलो एक बार वहाँ भी देख लेते हैं हो सकता है सपना सच हो? 

फिर यूनिट के साथियों ने प्रीतम सिंह की बताए हुए सपने के अनुसार नाथूला दर्रे के पास नीचे खाई में खोजबीन शुरू कर दी। जल्दी ही उन्होंने उस स्थान को खोज लिया जैसा सपने में बाबा हरभजनसिंह ने बताया था ठीक वैसे ही उनका पार्थिव शरीर उस जगह से दो किलोमीटर दूर उनकी राइफल के साथ पड़ा मिला।

वीर हरभजन जी को शहीद घोषित कर दिया गया और जैसी उनकी अंतिम इच्छा थी ठीक वैसे ही पूरे राजकीय सम्मान के साथ वही पर उनका अंतिम संस्कार किया जाता है।

हरभजनसिंह ने सपने में यह भी कहा था कि उनके शव का अंतिम संस्कार नाथू ला में ही किया जाए और अंतिम संस्कार करने के बाद उस जगह पर उनकी याद में एक मंदिर बनवा दिया जाए।

पहले तो सैन्य अधिकारिओं ने इस बात को कोरा अंधविश्वास कहकर टाल दिया पर जब बाबा ने वही बात उन लोगों के सपनों में आकर कही, और वहाँ कुछ ऐसी चमत्कारी घटनाएं घटने लगीं और उन्हें भी हरभजन की आत्मा की मौजूदगी पर विश्वास होने लगा।फिर उन्होंने बाबा की बात मानकर उनकी याद में वहाँ एक मंदिर बना दिया। 


बाबा हरभजन ने अपने अधिकारियों से कहा उनका शरीर नष्ट हुआ है पर आत्मा जिंदा है।रात के समय वो अभी भी अपनी ड्यूटी को पहले की तरह ही निभाएंगे।फिर बाबा हरभजन सिंह रात में नाथूला में अपनी ड्यूटी निभाने लगे।

और रात के समय सैनिकों को अपने आस-पास बाबा की मौजूदगी का अहसास होने लगा।रात को सैनिक बाबा की मौजूदगी में अपने आप को ड्यूटी पर पूरी तरह सुरक्षित महसूस करने लगे इतना ही नहीं बाबा हरभजन सिंह को जो सुविधा जीवित रहते हुए दी जाती थी वे सारी सेवाएं फिर जारी करनी पड़ी।

बाबा हरभजन को ड्यूटी पर तैनात सैनिक के रूप में जब फिर से हर महीने वेतन देने की शुरुआत हुई थी।सेना की इस बात का लोगों ने अंधविश्वास कहकर विरोध किया।तब सैनिक और अधिकारियों ने अपने एक दिन के वेतन से उनकी सैलरी निकालने की पेशकश की।

उनके बंकर की बाकायदा साफ-सफाई होने लगी।उनकी वर्दी प्रेस होना इनकी ड्यूटी का समय रात का तय कर दिया गया और बाकायदा उन्हें छुट्टियों पर भी भेजा जाने लगा था।15 सितंबर से 15 नवंबर से डिब्रूगढ़ अमृतसर एक्सप्रेस से उन्हें कपूरथला उनके घर ले जाया जाता। 

उनकी माँ को दिखाई नहीं देता था पर फिर भी उन्हें 15 सितंबर का बेसब्री से इंतजार रहता था।उस दिन सुबह से ही वो हरभजन सिंह की फोटो को सीने से लगाए बैठे रहती थीं।पुरे गाँव में उनके स्वागत की तैयारी शुरू हो जाती थी।

बाबा हरभजन सिंह जब छुट्टी पर जाते तो ट्रेन में उनके नाम से टिकट भी बुक किया जाता‌।दो सैनिक उन्हें लेकर उनके घर कपूरथला छोड़ने जाते। बाबा की फोटो को उनकी सीट पर रखा जाता था। जब सैनिक बाबा की फोटो और उनके सभी सामान को लेकर स्टेशन पहुँचते तो पूरा गाँव बाबा के जयकारों के साथ उनके स्वागत में मौजूद रहता और फिर वहाँ से सेना की गाड़ी उनकी फोटो और सामान उनकी मां को सौंप आते थे।

दो महीने बाबा हरभजन सिंह अपने गाँव में रहते और वहाँ के लोगों की समस्याएं सुनते,चमत्कार दिखलाते।दो महीने बाद फिर उसी तरह ट्रेन से उसी आस्था और सम्मान के साथ समाधि स्थल वापस लौट आते थे।

हरभजन सिंह जितने दिन वो छुट्टी पर रहते उतने दिन सेना हाइ अलर्ट पर रहती थी और सैनिकों की चौकसी बढ़ा दी जाती।उस समय किसी भी सैनिक को छुट्टी नहीं मिलती थी क्योंकि उस समय उनकी मदद करने के लिए बाबा वहाँ मौजूद नहीं होते थे।
 
बाबा हरभजन सिंह के छोटे भाई बताते हैं कि एक बार रात को उनके मन में आया कि सब कहते हैं बाबा गाँव आ गए हैं अब यहीं रहेंगे।क्या यह सच है? या लोगों के मन का भ्रम है?

वो चारपाई पर बैठे यही सोच रहे थे कि अचानक उन्हें पालतू जानवरों को चारा डालते हुए बाबा हरभजन नजर आए वो अपने भाई को देख मुस्कुराए और आकर उन्हें रजाई उड़ाते हुए बोले ठंड बहुत है ओढ़ ले "क्या सोच रहा है? ज्यादा परेशान मत हो मैं अभी यहीं हूँ" तब से उनमें उनकी आस्था बढ़ गई।

बाबा हरभजन सिंह को सेना से पहले की तरह सैलरी और सुविधाएं मिलती रही और जो नियम सैनिकों के लिए थे वो उन पर भी लागू किए जाते। जब सीमा पर तनाव की स्थिति होती तो उनकी भी छुट्टियाँ भी रद्द कर किसी और समय दी जाती थी और उनके घरवालों को इसकी सूचना दे दी जाती।सब-कुछ ठीक वैसे ही हो रहा था जैसा इनके शरीर छोड़ने से पहले होता था।

बाबा हरभजन के रोज नए चमत्कारों को देखकर सैनिकों में इस कदर आस्था बढ़ी कि उन्होंने एक बंकर को ही मंदिर का रूप दे दिया। बाद में जब उनके चमत्कार बढ़ने लगे और वो जगह विशाल जनसमूह की आस्था का केन्द्र हो गया।

जब भी किसी नए सैनिक की तैनाती होती तो वह सबसे पहले बाबा के दर्शनों को जाता और उनका आशीर्वाद प्राप्त करता है।

कहते हैं अगर आपको स्वास्थ्य संबंधी कोई समस्या है तो उनके मंदिर में तीन दिन तक पानी की बोतल रख दो। तीन दिन में उस पानी में चमत्कारी गुण आ जाते हैं और उस पानी का इक्कीस दिनों तक सेवन से स्वास्थ्य लाभ होने लगता है।

अविश्वसनीय माँ पर जब इतनी मान्यता है तो नकार भी नहीं सकते।

हाँ बेटा शायद इस चमत्कार के कारण ही उनके कमरे में नाम लिखी हुई बोतलें ही बोतलें दिखाई देती हैं।वहाँ एक कापी रखी रहती है जिसमें लोग अपनी परेशानी लिखते हैं और उनका मानना है कि बाबा उनकी समस्या का समाधान भी करते हैं।

भारतीय सैनिक के बड़े-बड़े अधिकारी भी यहाँ मंदिर में आकर दर्शन करते हैं।कोई विश्वास करे या न करें पर बाबा हरभजन सिंह के मंदिर में चीनी सेना भी सिर झुकाती है। 14 हजार फीट की ऊंचाई पर मंदिर बने हुए इस मंदिर में दूर-दूर से लोग यहां बाबा हरभजन सिंह की पूजा करने आते हैं।

उसके बाद आम जनता की सहुलियत को ध्यान में रखते हुए एक मंदिर बनाया गया। ये मंदिर गंगटोक में जेलेप दर्रे और नाथुला दर्रे में करीब 13 हजार फीट की ऊंचाई पर आज भी बना हुआ है।

कहते हैं कि मरने के बाद भी उनकी आत्मा एक घोड़े पर सवार भारत-चीन बॉर्डर की निगरानी करती है।यह सिर्फ भारतीय सैनिकों ने नहीं देखा बल्कि‌ चीनी सैनिकों का भी मानना है कि उन्होंने भी रात में बाबा हरभजन सिंह को घोड़े पर सवार होकर गश्त लगाते हुए देखा है।

वो कैसे दादी?

हुआ यूँ कि रात के समय बाबा हरभजन सिंह गश्त लगाते हुए अक्सर चीनी सीमा में घुस जाया करते थे।वो और किसी को दिखे न दिखे पर चीनी सैनिको को अपनी झलक दिखला देते ।इस बात के लिए चीनी सैनिको ने उनके बारे में चिट्ठी लिखकर भारतीय अधिकारियों से शिकायत भी की थी।

क्या बात है, अद्भुत..! नेहा बोली।

अद्भुत तो है बेटा!

फिर क्या हुआ..?


हाँ चीनी सैनिकों की चिट्ठी में लिखा था कि आपका कोई सैनिक सफेद घोड़े पर बैठकर अक्सर हमारी सीमा के अंदर तक गश्त करता है।आप जल्दी ही यह सब रोके वरना किसी दिन हालात बिगड़ भी सकते हैं।

हमारे अधिकारियों ने उन्हें कहा कि हमें नहीं पता कौन घुड़सवार है आप कहते हो तो उसे पकड़ कर दिखाओ।यह बात जब बाबा को बताई गई तो फिर बाबा हरभजन सिंह चीनी सैनिको को सपना देने लगे तब बाबा हरभजन सिंह की आत्मा के सच को चीनी सेना ने भी स्वीकार कर लिया था।

हरभजनसिंह रात को तैनाती के दौरान कई बार चीन की घुसपैठ के बारे में सपने में आकर भारतीय सैनिकों को जानकारियाँ देकर सतर्क भी किया करते थे और उनकी बात हर बार सच साबित हो जाती थी।

बाबा हरभजन सिंह के मंदिर में उनके जूते, कपड़े और भी सारी जरूरत सामान रखा गया है। बाबा को बाकायदा तीनों समय भोजन परोसा जाता है।शाम होते ही बाबा के मंदिर में किसी को भी नहीं जाने दिया जाता। भारतीय सेना के जवान उनके मंदिर की चौकीदारी करते हैं।

बाबा हरभजन के जूतों की रोज नियमित रूप से पॉलिश की जाती हैं।वहाँ पर तैनात सिपाहियों का कहना है कि आज भी रोज सुबह के समय उनके जूते भी गंदे मिलते हैं और उनके बिस्तर पर सलवटें पर ‌‌दिखाई पड़ती है।

क्या बात कर रही हो माँ..!यह तो सचमुच चमत्कार हो गया।अब तो मेरा भी मन बाबा जी के बंकर और मंदिर देखने को बेचैन हो रहा है।लॉकडाउन खतम हो जाए तो हम सब वहाँ जरूर जाएंगे।

हाँ नेहा ऐसे महान देशभक्त की समाधि पर पुष्प अर्पित करने का सुख कैसे छोड़ सकते हैं? हम जरूर चलेंगे।

सच कहा बच्चों उनकी मौजूदगी को हमारी सेना ही नहीं वहाँ मौजूद चीनी सैनिकों ने माना है और यही कारण है कि दोनों देशों की हर फ्लैग मीटिंग पर एक कुर्सी बाबा हरभजन के नाम की भी रखी जाती है और उस पर उनकी फोटो भी रखी जाती है।


बाबा हरभजन सिंह के साथ जब हादसा हुआ तो वो एक सिपाही के पद पर थे।सेना के नियमों के अनुसार ही उनको सेवा में मौजूद मानकर बाबा हरभजन सिंह को पदोन्नति भी दी गई। बाबा हरभजन सिंह अब सिपाही से कैप्टन बन गए थे।

उनकी मौत को 50 साल ज्यादा समय हो चुके हैं। बाबा हरभजन सिंह भी अब रिटायर होकर अपने घर लौट आए हैं। कहते हैं आज भी बाबा हरभजन सिंह की आत्मा भारतीय सेना में अपना कर्तव्य निभा रही है। इस कारण ही बाबा हरभजन सिंह को नाथू ला का हीरो भी कहा जाता है।

कुछ लोग इस बात को कोरा अंधविश्वास समझते हैं पर सच तो यह है कि आज भी बाबा हरभजन सिंह रात के समय पहरा देते समय अगर कोई सैनिक सो जाता है तो उसे थप्पड़ मारकर जगा देते हैं।यह बात सैनिकों ने खुद कबूली है।

वीर शहीद बाबा हरभजन सिंह की आत्मा को 38 वर्ष की सेवा के बाद 2006 में सेवानिवृत्ति दे दी थी। उसके बाद जब-तक उनकी माता जी जिंदा थी तब तक उनकी पेंशन उन्हें भेजी जाती रही। उनकी माता जी की मृत्यु के बाद यह सब बंद कर दिया गया। कहते हैं सेवानिवृत्ति के बाद भी वो देश सेवा में लगे हुए अपना एहसास करवाते रहते हैं।

बाबा जी का बंकर नाम से प्रसिद्ध मंदिर में लोग आज भी श्रद्धा से शीश झुकाते हैं और उनके पैतृक गाँव में भी उन्हें बड़े ही सम्मान से पूजा जाता है। उनके छोटे भाई ने अपने घर के एक हिस्से को बाबा का मंदिर बना डाला और बाबा हरभजन सिंह की सभी चीजों को हूबहू वैसे ही रखा गया हैं जैसे उनके बंकर में हैं।

सच माँ हमारे देश के वीर सैनिक देश के लिए जीते हैं और देश पर ही मर-मिट जाते हैं। बहुत पावन है हमारे देश की मिट्टी जिसमें ऐसे अदम्य से भरे महान वीर योद्धा जन्म लेते है।देश के इन सच्चे वीर सपूतों के चरणों में मेरा "शत् शत् नमन" नेहा और राजीव बोले।

जय हिन्द जय हिन्द की सेना, दादी माँ मैं भी बड़ा होकर एक सच्चा सैनिक बनूँगा और मैं भी दादी माँ..!जोश में भरकर हर्ष रूही दोनों एक साथ बोले।

बहुत अच्छी बात है बच्चों देशभक्ति से बड़ा कुछ नहीं!अब चलो जाकर सो जाओ,रात बहुत हो गई है, मुझे भी नींद आ रही है।कल फिर दूसरी कहानी सुनाऊँगी।"जी दादी माँ" हर्ष और रूही भी सोने चले गए।

***अनुराधा चौहान'सुधी'***
चित्र गूगल से साभार
बाबा हरभजन सिंह के विषय में"न्यूज चैनल"की रिपोर्ट देखी और फिर उस कहानी को अपने शब्दों में आप तक पहुँचाने की छोटी-सी कोशिश की है।

Thursday, June 18, 2020

कैप्टन मनोज कुमार पाण्डेय

यह कहानी है भारतीय सेना के वीर शहीद कैप्टन मनोज कुमार पाण्डेय की।

मनोज कुमार पाण्डेय कारगिल युद्ध के महान योद्धा थे।उनके युद्धकौशल और अदम्य साहस और उनकी शहादत को न देश भूला है न कभी भूलेगा।

मनोज कुमार पाण्डेय का जन्म 25 जून 1975 में उत्तर प्रदेश के सीतापुर जिले के रूधा गाँव में हुआ था।उनके पिताजी का नाम गोपीचन्द्र पाण्डेय तथा उनकी माता का नाम मोहिनी था।

मनोज की शिक्षा लखनऊ के सैनिक स्कूल में हुई थी इसी कारण उनमें अनुशासन के भाव तथा देश प्रेम की भावना कूट-कूटकर भरी हुई थी।

मनोज पाण्डेय बचपन से ही बहुत ही मेधावी छात्र थे। मनोज ने अखिल भारतीय स्तर की छात्रवृत्ति परीक्षा कड़ी मेहनत से पास कर सैनिक स्कूल में दाखिला लिया।स्कूल हो या कॉलेज हर जगह खेल-कूद  में  हमेशा आगे रहते थे।

मनोज जब छोटे थे तो उनकी माँ उन्हें वीर योद्धाओं की कहानियां सुनाया करती थीं। जिसे सुनकर उनमें भी देश के प्रति कुछ कर गुजरने का जुनून बढ़ता गया।

मनोज की माँ ही हमेशा उनकी प्रेरणाश्रोत रही थी। वह हमेशा उन्हें कुछ ऐसा काम करने के लिए प्रेरित करती थी कि लोग उन्हें याद करें तो सम्मान के साथ याद करें।

मनोज की माँ हमेशा ही उनका हौसला बढ़ाया करती थीं। उनकी दिली इच्छा थी,उनका बेटा जीवन के किसी भी मोड़ पर विकट से विकट चुनौतियों का सामना करने में घबराये नहीं और देश का नाम रोशन करे।

बारहवीं पास करने के बाद उनका सपना डॉक्टर या इंजीनियर बनना नहीं था।उनका सपना तो बस आर्मी जॉइन करना था।वह आईआईटी और एनडीए दोनों में अच्छे नंबरों से पास हुए।

मनोज कुमार को प्रतियोगी परीक्षा में सफल होने के बाद पुणे के पास खड़कवासला स्थित राष्ट्रीय रक्षा अकादमी में दाखिला मिल गया।

वहाँ प्रशिक्षण पूरा करने के पश्चात सेवा चयन बोर्ड ने उनका इंटरव्यू लेने के दौरान उनसे पूछा था,”आप सेना में क्यों शामिल होना चाहते हैं? मनोज ने जवाब दिया,"मैं परमवीर चक्र जीतना चाहता हूँ।"

मनोज कुमार पाण्डेय को न सिर्फ सेना में भर्ती किया गया बल्कि 1/11 गोरखा रायफल में भी कमिशन दिया गया था।सन् 1997 में मनोज कुमार पाण्डेय 1/ 11 गोरखा रायफल्स रेजिमेंट की पहली वाहनी के अधिकारी बने।

मनोज ने जो सपना देखा था वो सच हो गया था। वह बतौर एक कमीशंड ऑफिसर ग्यारहवां गोरखा राइफल्स की पहली बटालियन में पहुँच गए।

उनकी तैनाती कश्मीर घाटी में हुई। ठीक अगले ही दिन उन्होंने अपने एक सीनियर सेकेंड लेफ्टिनेंट पी. एन. दत्ता के साथ एक महत्वपूर्ण जिम्मेदारी को पूरा किया।

लेफ्टिनेंट पी.एन दत्ता एक आतंकवाडी गुट से मुठभेड़ में शहीद हो गए,और उन्हें अशोक चक्र प्राप्त हुआ जो भारत में युद्ध के अतिरिक्त बहादुरी भरे कारनामे के लिए दिया जाने वाला सबसे बड़ा इनाम है।

एक बार मनोज कुमार पाण्डेय को एक टुकड़ी लेकर गश्त के लिए भेजा गया था।और उन्हें वापस लौटने में बहुत देर हो गई थी। इस बात को लेकर सब बहुत चिंतित होने लगे थे।

दो दिन के बाद जब वह इस कार्यक्रम से वापस आए तो उनके कमांडिंग ऑफिसर ने उनसे इस देरी का कारण पूछा, तो उन्होंने जवाब दिया,"हमें हमारी गश्त में उग्रवादी मिले ही नहीं तो हम तब-तक आगे चलते ही चले गए, जब तक हमने उनका सामना नहीं कर लिया।"

इसी तरह, जब इनकी बटालियन को सियाचिन में तैनात होना था,तब मनोज युवा अफसरों की एक ट्रेनिंग पर थे। वह इस बात को लेकर परेशान हो रहे थे कि इस ट्रेनिंग की वजह से वह सियाचिन नहीं जा पाएँगे।

जब इस टुकड़ी को कठिनाई भरे काम को अंजाम देने का मौका मिला, तो मनोज ने अपने कमांडिंग अफसर को लिखा कि अगर उनकी टुकड़ी उत्तरी ग्लेशियर की ओर जा रही हो तो उन्हें 'बाना चौकी' दी जाए और अगर कूच सेंट्रल ग्लोशियर की ओर हो, तो उन्हें 'पहलवान चौकी' मिले।

यह दोनों चौकियाँ बहुत कठिन थी।यहाँ तैनाती वीरों से बहुत हिम्मत और अटल इरादों की माँग करतीं हैं। देशप्रेम से भरे मनोज कुमार पाण्डेय यही चाहते थे।आखिर उनका सपना पूरा हुआ। मनोज कुमार पांडेय को लम्बे वक्त के लिए 19700 फीट ऊँची 'पहलवान चौकी' पर डटे रहने का अवसर मिला।

यह चौकी जहाँ मौजूद थी, वहाँ की परिस्थितयां सहज नहीं थी।वहाँ की ठंड और बर्फीली हवाओं में ज्यादा देर तक खड़ा तक होना मुश्किल था।

मनोज के लिए यह एक कड़ी चुनौती थी, लेकिन मनोज घबराये नहीं, वह पूरे जोश, और जूनून के साथ अपनी पोस्ट पर तीन महीने तक अपने साथियों के साथ अपना कर्तव्य निभाते रहे।

सियाचिन की चौकी से मनोज कुमार पाण्डेय की टुकड़ी अभी वापस ही लौटकर आई थी कि तभी 3 मई 1999, को कारगिल युद्ध के संकेत मिलने लगे। मनोज पाण्डेय ने आराम की बात भूलकर देश के दुश्मनों को धूल में मिलाने के लिए तैयार हो गए।

मनोज कुमार पाण्डेय वो पहले अफसर थे जिन्होंने खुद आगे बढ़ कर कारगिल के युद्ध में शामिल होने की बात कही,अगर मनोज कुमार चाहते तो सियाचिन से हाल ही वापसी की वजह से उन्हें छुट्टी भी मिल सकती थी।

मनोज कुमार पाण्डेय के दिल में देश प्रेम की लहरें हिलोरें ले रही थीं।वो तो जैसे इस मौके के इंतजार में बैठे ही थे. उन्होंने आगे बढ़ कर नेतृत्व किया।

करीब दो महीने तक चले ऑपरेशन में कुकरथाँग, जूबरटॉप जैसी कई चोटियों को विरोधियों के कब्ज़े से आजाद कराया.

वो खुद इस युद्ध के लिए आगे आए और अपने जीवन के सबसे निर्णायक युद्ध के लिए 2/3जुलाई 1999 को निकल पड़े।

उनकी बटालियन की बी कंपनी को खालूबार फतह करने का जिम्मा दिया गया।वहाँ ऊँचाई पर दुश्मनों के बंकर बने हुए थे और नीचे हमारे वीर जांबाज।

दिन में चोटी पर चढ़ाई संभव नहीं थी, इसके लिए रात की रणनीति बनाई गई।रात को अंधेरा गहराते ही मनोज कुमार पाण्डेय की टुकड़ी ने पाकिस्तानी सेना पर हमला शुरू किया।

जैसे-जैसे ही उनकी कम्पनी आगे बढ़ रही थी। वैसे ही उनकी टुकड़ी को दोनों तरफ की पहाड़ियों से दुश्मनों की गोलियों की जबरदस्त बौछार का सामना करना पड़ रहा था।

वहाँ ऊपर दुश्मनों ने अपने बंकर बना रखे थे।संकरे रास्ते से होते हुए मनोज ‘जय महाकाली,आयो गोरखाली’ का नारा लगाते हुए दुश्मनों से जा टकराए।

चारों तरफ से फायरिंग हो रही थी।अब मनोज का पहला काम उनके बंकरों को तबाह करना था। जिसके लिए उन्होंने तुरंत हवलदार भीम बहादुर की टुकड़ी को आदेश दिया कि वह दाहिनी तरफ के दो बंकरों पर हमला करके उन्हें नाकाम कर दें।

मनोज पाण्डेय ने बाईं तरफ के चारों बंकरों को नष्ट करने का जिम्मा खुद अकेले पर ले लिया।मनोज ने निडर होकर हमला करना शुरू कर दिया था।

उन्होंने एक के बाद एक चार दुश्मनों को मार गिराया।पर इस जंग में एक गोली मनोज की कमर पर लग गई और दूसरी उनके कंधे पर फिर भी वह रुके नहीं,मनोज के हौसले फिर भी बुलंद थे।

अब उनका लक्ष्य तीसरा और चौथा बंकर था।मनोज एक के बाद एक बंकरों को तबाह करते हुए आगे बढ़ रहे थे। वे अपने घावों से बहते रक्त की परवाह किए बगैर वह चौथे  और अंतिम बनकर की ओर बढ़े।उन्होंने जोर से गोरखा पल्टन की जय का नारा लगाया और चौथे बंकर पर एक हैण्ड ग्रेनेड फेंक दिया।

उनके हाथ से फेंके हुए ग्रेनेड का अचूक निशाना ठीक चौथे बंकर पर जाकर लगा और एक क्षण में उसे तबाह कर गया लेकिन मनोज कुमार पाण्डेय भी उसी समय तक बुरी तरह घायल हो चुके थे।

दुश्मन की मशीन गन से निकली एक गोली मनोज कुमार के माथे पर लगी।घायल अवस्था में भी मनोज ने अपने पास रखी खुखरी निकाली और काल बनकर दुश्मन पर टूट पड़े।

मनोज कुमार ने अपनी खुखरी से ही चार पाकिस्तानी सैनिकों को वहीं मौत के घाट उतार दिया और उस बंकर पर कब्जा जमा लिया।

घायलावस्था में भी मनोज का अदम्य साहस देखकर उनकी टुकड़ी के अन्य सैनिकों का हौसला दुगना हो गया। और वे पूरे जोश के साथ पाकिस्तानी सेना पर हमला करने लगे थे ।

माथे पर गोली लगने से अत्याधिक खून बह जाने की कारण से मनोज कुमार अंतिम बंकर पर पस्त होकर गिर गए थे।पर फिर भी अपने साथियों से खुद को छोड़कर आगे बढ़ने के लिए कह रहे थे।

मनोज कुमार पाण्डेय की अगुवाई में उनकी टुकड़ी ने दुश्मन के 11 जवान मार गिराए थे।छह बंकर भारत के कब्जे में थे।

उसके साथ ही हथियारों और गोलियों का बड़ा जखीरा भी कैप्टन मनोज कुमार की टुकड़ी ने कब्जे में ले लिया था।उसमें एक एयर डिफेंस गन भी थी।

वह अपने साथियों से आखिरी दम तक कहते रहे थे। मेरी चिंता मत करो मैं ठीक हूँ। तुम लोग आगे बढ़ो किसी को भी छोड़ना नहीं, मनोज अपनी आँखों से अपने मिशन को पूरा होते हुए देखना चाहते थे।

कैप्टन मनोज की शहादत देख उनके साथी क्रोध से भर दुश्मन पर टूट पड़े। कैप्टन मनोज कुमार ने अपने साथियों का मरते दम तक साथ दिया।

उन्होंने एक बार फिर उसी हालत में भी बंदूक संभाली थी।पर उनके शरीर ने उनका साथ नहीं दिया।छह बंकर कब्जे में आ जाने के बाद खालूबार भारत की सेना के अधिकार में आ गया था।

आँखें बंद करने से पहले कैप्टन मनोज पाण्डेय खालुबार पोस्ट पर तिरंगा लहरा चुके थे।इस अविस्मरणीय अवसर की खुशी के साथ देश और उनके साथियों को अपने युुवा कैैैैैप्टन को शहीद होने का भी दुख था।

इस संघर्ष में विजयी भारत ने अपने चौबीस वर्षीय वीर कैप्टन मनोज कुमार पाण्डेय को हमेशा के लिए खो दिया था।

पाकिस्तान के साथ कारगिल युद्ध के सबसे कठिन मोर्चों में एक मोर्चा खालूबार का था। भारत ने इस युद्ध में विजय हासिल की और इतिहास के पन्नों पर इस वीर योद्धा का नाम स्वर्णिम अक्षरों में लिखा गया।

भारत के तिरंगे की शान को बुलंदी पर पहुँचाने के लिए देश के इस वीर योद्धा के अदम्य साहस को देखते हुए मरणोपरांत उन्हें सबसे बड़ा वीरता पुरस्कार परमवीर चक्र दिया गया।

कैप्टन मनोज कुमार पाण्डेय को डायरी लिखना बहुत पसंद था। वे युद्ध के बीच में भी डायरी लिखा करते थे। उनकी डायरी में लिखे विचारों में देश के प्रति प्रेम और सम्मान खूब झलकता था।

मनोज को बाँसुरी बजाना भी बहुत पसंद था।वो कहीं भी जाते पर बाँसुरी साथ रखा करते थे।जब मन करता, उसे बजा लेते, फिर वापस अपने सामान के साथ रख देते थे।

मनोज कुमार को पढ़ने का बड़ा शौक था।वो हर तरह की जानकारी रखने की चाहत रखते थे।यही वजह थी कि वे एस्ट्रोलॉजी और पामिस्ट्री के ज्ञाता भी रहे।

मनोज कैंप में फुरसत के क्षणों में अपने साथियों के हाथ देखकर भविष्य बताया करते थे।

उनके पिताजी ने एक इंटरव्यू में कहा था कि उन्हें मनोज की पढ़ाई पर ज्यादा खर्च नहीं करना पड़ा।उनका बेटा इतना मेधावी था कि स्कॉलरशिप हासिल करके अपना इंतजाम कर लेते था।
डायरी लिखने के शौकीन मनोज ने अपनी डायरी में लिखा था,"अगर मौत मेरा शौर्य साबित होने से पहले मुझ पर हमला करती है तो मैं अपनी मौत को ही मार डालूंगा।"

कारगिल युद्ध पर बनी फिल्म में सर्वोच्च वीरता पदक परमवीर चक्र से सम्मानित कैप्टन मनोज कुमार पाण्डेय का किरदार अजय देवगन ने निभाया। कैप्टन मनोज के शौर्य की कहानी, उनके जीवन से जुड़ी अहम बातें गूगल,ई न्यूज पत्रिका,यूटुयूब हर जगह मौजूद है।

वतन की शान की खातिर खुद को न्यौछावर करने वाले देश के महान योद्धा, वीर सपूत मनोज कुमार पाण्डेय की शहादत को मेरा नमन।जय हिन्द जय भारत।

***अनुराधा चौहान'सुधी'***

चित्र गूगल से साभार


Wednesday, May 6, 2020

यह कैसी ज़िद

सेंट पॉल कॉलेज का वार्षिकोत्सव समारोह चल रहा था।मंच पर बच्चे अपना हुनर दिखा रहे थे। कनक की कम्पनी के मालिक कॉलेज के ट्रस्टी थे। इसलिए कनक कॉलेज में चीफ गेस्ट बनकर आई थी।
तभी अनाउंस होता है,"अब आ रही हैं‌ हमारे कॉलेज की न्यू छात्रा "कनिका महेश्वरी!" कनिका एक गीत सुनाने वाली है।
कनिका नाम सुनते ही कनक की आँखों में नमी तैर गई।सोलह साल पहले उसके जीवन में घटी एक घटना उसे याद आने लगी।
विकास और कनक एक-दूसरे से बेहद प्यार करते थे।दोनों ने ही परिवार की मर्जी के विरुद्ध जाकर शादी कर ली थी।कनक  और विकास अपनी ज़िंदगी में बहुत खुश थे।
एक दिन विकास को खबर मिलती है उसकी माँ अब इस दुनिया में नहीं रही। दोनों सब-कुछ भूलकर चार साल की बेटी कनिका के साथ दिल्ली के लिए निकल दिए।
क्या सोच रहे हो विकास??कनक ने पूछा। खुद को कोस रहा हूँ!माँ मुझे देखने के लिए कितना तड़पी होगी? कितना याद करती होगी? एक मैं बदनसीब उसके अंतिम समय में उससे मिल भी न सका!
हम्म समझ सकती हूँ विकास! काश तुम्हारे घरवाले पहले सूचित कर देते तो मैं भी माँजी से मिल लेती!बुझे मन से कनक ने कहा।
दोनों एक-दूसरे का दुख बाँटने में लगे थे।ट्रेन सुबह आठ बजे दिल्ली स्टेशन पर थी। तुम कनिका को गोद में उठा लो कनक, यहाँ बहुत भीड़ रहती है।लगेज में संभालता हूँ, विकास ने कनक से कहा।
स्टेशन से आधा घंटे का सफर तय करने के बाद पूरे पाँच साल बाद विकास अपने घर के दरवाज़े पर दस्तक दे रहा था।
विकास कुछ अजीब नहीं लग रहा? कैसा अजीब कनक? देखो कल इतना बड़ा हादसा हुआ है और आज़ इतना सन्नाटा? मुझे कुछ अजीब लग रहा है।
कुछ अजीब नहीं है, ज्यादा मत सोचो! तभी दरवाजा खुलता है।अरे विकास बाबा आप.? मालकिन विकास बाबा आ गए!रामचरण चिल्लाता हुआ भागा।
रामचरण सुनो!! मालकिन? माँ तो? मालकिन पूजाघर में है विकास बाबा!आप यहीं रूको! मालकिन बोली हैं आपको अंदर न आने दिया जाए।
कनक और विकास आश्चर्य से एक-दूसरे को देखने लगे।माँ ठीक है तो फिर पापा ने झूठ बोला?कनक को यह झूठ कुछ अच्छा नहीं लग रहा था। कहीं इतने साल बाद इन लोगों की कोई नई चाल तो नहीं??
मन ही मन घबरा रही थी कनक।क्या सोचने लगी कनक? अरे डरो नहीं इकलौता बेटा हूँ!आखिर कब तक नाराज़ रहते माँ और पापा! वैसे बुलाते तो हम साथ नहीं आते, शायद इसीलिए ऐसे बुलाना भेजा गया है।
सुभद्रा आरती का थाल लेकर आ जाती है। औलाद के मोह में हमें भी झुकना पड़ा। तुम्हें तो हमारी याद भी नहीं आई होगी।
माँ कसम से एक पल भी ऐसा नहीं गया, जब आप और पापा को याद नहीं किया! बस-बस बातें न बना! सुभद्रा बड़े प्यार से गृह-प्रवेश की रस्म पूरी करा दोनों को अंदर आने के लिए कहती हैं।
आओ अंदर आ जाओ बहू! माँ यह सब क्या है? वैसे ही बुलाना भेजती,हम आ जाते,झूठ बोलकर मेरी तो जान ही निकाल दी थी आपने, विकास गुस्सा होते हुए बोला।
वैसे ही बुलाती तो तू अकेला आता, मेरी पोती को साथ न लाता। माँ!! एक बार कहा तो होता, मैं तेरे लिए सबकुछ छोड़कर आ जाता।
अच्छा!! ऐसा लगता तो नहीं सुभद्रा व्यंग्य से मुस्कुराते हुए बोली। कनक ने सास के पैर छुए तो बस-बस खुश रहो के आशीर्वाद के साथ फीकी सी मुस्कान मिली, जिसे देख कनक को अच्छा नहीं लगा।
रामचरण!! बहू रानी को उनका बेडरूम दिखा दो!जाओ तुम जाकर फ्रेश हो मुझे मेरी पोती के साथ खेलने दो।कनक रामचरण के पीछे चली गई।
कनिका भी कनक के पीछे जाने लगी तो,कनिका बच्चा! आप कहाँ जा रहे हो?आओ अपनी दादी के पास! अपनी दादी से दोस्ती नहीं करोगी?आओ मेरे साथ देखो! कितने सारे खिलौने मंगाए हैं मैंने आपके लिए!
सुभद्रा कनिका को उसके लिए तैयार कराए रूम में ले जाती है। एक बच्चे की क्या पसंद होती है उसको क्या चाहिए,इन सारी बातों को ध्यान में रखकर, सुभद्रा ने कनिका का रूम तैयार करवाया था।
ढेर सारे खिलौने देखकर कनिका खुश हो गई। दादी इतने सारे खिलौने किसके हैं? यह सब मेरी लाडो कनिका के लिए हैं!सच्ची दादी? हाँ बेटा आपको पसंद आए ना और चाहिए तो मँगा दूँ?अब आप अपनी दादी को छोड़कर तो नहीं जाएंगी ना?
नहीं दादी आइ लव यू दादी! सुभद्रा की आँखों से खुशी के आँसू छलक पड़े । तभी विकास पीछे से आकर बोला माँ हम लोग कुछ दिनों के लिए आए हैं!यह सब करने की क्या जरूरत है?
अब तुम कहीं नहीं जा रहे हो! सुना तुमने!आज के दिन आराम करो और कल से अपने पापा के साथ बिजनेस में हाथ बंटाओ! बहुत कर ली मनमानी,अब बुढ़ापे में अकेले मरने के लिए छोड़ोगे हमें?
माँ!! आप यह सब क्या कह रही हो! ठीक है नहीं जाएंगे पर अब फिर से मरने की बातें मत करना, विकास माँ को गले लगा लेता है ।
शाम को आदेश कम्पनी से आते हैं।विकास बाबा! मालिक आ गए हैं आपको और बहूरानी को बुला रहे हैैं।
पापा!! विकास ने डरते-डरते आदेश के पैर छुए।तो आदेश ने गले लगा लिया।इतना नाराज हो गए कि इतने साल हमारे मरने-जीने की खबर तक नहीं ली? अरे इकलौती औलाद हो हमारी! भला माँ-बाप कभी बच्चों से नाराज़ रह पाते हैं।
गलती हो गई पापा माफ़ कर दीजिए,कहता हुआ विकास फिर से आदेश के गले लग जाता है। कनक मेरे पापा से मिलो,कनक आगे बढ़कर आदेश के पैर छूकर आशीर्वाद लेती है।
हम्म खुश रहो! विकास कल से ऑफिस चलो सारा काम समझो और संभालो अपनी जिम्मेदारी।
जी जैसा आप कहें पापा! आपने मुझे माफ़ कर दिया,अब मैं आपको छोड़कर कहीं नहीं जाने वाला।
यह हुई न बात!सुभद्रा इसी बात पर मुँह मीठा तो कराओ।
जी मुँह भी मीठा हो जाएगा,आप फ्रेश होकर आ जाइए! मैं खाना लगवाती हूँ!
माँ मैं भी आपकी मदद करती हूँ! कनक सास के पीछे आती हुई बोली।
नहीं तुम्हें परेशान होने की जरूरत नहीं है!यहाँ हर काम के लिए नौकर-चाकर लगे हैं।
हरिया!! फटाफट खाना लगाना शुरू करो, साहब आ गए हैं। और हाँ! मूँग दाल का हलवा बनाया क्या? विकास को हलवा बहुत पसंद हैं।
कनक को सास के द्वारा अपनी हर बात एक अनदेखी के समान लग रही थी।उसे उनके साथ रहना अच्छा नहीं लग रहा था। विकास भी सुबह से माँ के इर्द-गिर्द ही घूम रहा था।
खाने की टेबल पर भी कनक खुद को अकेला महसूस करती रही और विकास माँ-बाप के प्यार में डूबता चला जा रहा था।
अरे वाह!मूँग दाल का हलवा! आपको अभी भी याद है? मुझे मूँग दाल हलवा पसंद है। माँ सच जबसे आपसे दूर हुआ हूँ, तबसे मूँग दाल का हलवा नहीं खाया।
क्यों ? कनक को मूँग दाल का हलवा नहीं आता? या उसे अभी तक तुम्हारी पसंद नहीं पता ?
नहीं माँ ऐसी बात नहीं है,कनक बहुत अच्छी कुक है! मैंने ही उसे कभी नहीं बताया कि मुझे क्या-क्या पसंद है।
कुछ बातें बिना बताए ही समझी जाती है विकास!खैर छोड़ो खाने का मजा लो।
कनिका बच्चा आपको हलवा नहीं खाना? आपके लिए क्या बनवाऊँ बताओ ?आप जो बोलोगी वो हरिया अंकल बना देंगे।
नहीं दादी मेरा पेट भर गया, मुझे और नहीं खाना।मम्मा मुझे नींद आ रही है।
सुभद्रा यह सुनकर बोली, चलो बेटा आज हम दोनों साथ सोयेंगे। मैं आपको अच्छी-अच्छी कहानियाँ भी सुनाऊँगी, आपको कहानी सुनना पसंद है।
माँ आप परेशान न हो! मैं सुला देती हूँ! इसे मेरे बिना नींद नहीं आती है...कनक बोली
रहने दो न कनक!माँ उसे अपने साथ सुलाना चाहतीं हैं तो ठीक है ना सुलाने दो!माँ तुमसे ज्यादा कनिका का ध्यान रखेंगी।तुम कनिका की चिंता मत करो।गुड नाइट माँ,गुड नाइट पापा।
रूम में आते ही,यह सब क्या है विकास? सुबह से देख रही हूँ माँ मुझे इग्नोर कर रही हैं। पापा ने भी मुझे देखकर
अनदेखा कर दिया! आशीर्वाद भी बिना देखे ही दे दिया जैसे कोई भिखारी हूँ।
यह तुम्हारी गलतफहमी है कनक!माँ-पापा ने हमें माफ़ कर दिया,इस बात से तुम्हें तो खुश होना चाहिए और तुम हो कि इसमें बुराई ढूँढने लगी।मेरे माता-पिता से मिलने का दुख लेकर बैठ गई विकास झुँझलाकर बोला।
मेरे कहने का यह मतलब नहीं था विकास!मुझे ऐसा महसूस हुआ इसलिए बोल दिया। तुम्हारा दिल दुखाने का इरादा नहीं था, मुझे माफ़ कर दो विकास।कनक ने बात बढ़ाना उचित नहीं समझा।
इसमें तुम्हारी कोई गलती नहीं है कनक! मैं भी सुबह से तुम पर ध्यान नहीं दे पाया। तुम्हारे लिए तो यहाँ सब नया है यह कहते हुए विकास ने कनक को खींचकर गले लगा लिया।
सुभद्रा की छोटी बहन की बेटी सपना सुभद्रा और आदेश के अकेलेपन का एकमात्र सहारा थी ।सपना देखने में बहुत खूबसूरत थी। विकास की गैर-मौजूदगी में सपना ने ही सुभद्रा को संभाला था।
सुबह-सुबह नाश्ते की टेबल पर, सपना!! जी मौसाजी कहिए? तुम कल से विकास को अपने प्रॉजेक्ट में शामिल कर लो। विकास सपना बहुत इंटेलिजेंट है, तुम्हें उसका पूरा सपोर्ट मिलेगा।
यह सुनकर कनक को बहुत बुरा लगा। उसने आदेश से डरते-डरते कहा, पापा अगर आप चाहें तो इस प्रोजेक्ट में विकास की मदद कर सकती हूँ हम दोनों की फील्ड एक ही है।
हमारे इस प्रोजेक्ट के लिए कौन ज्यादा सही है यह हमें अच्छे से पता है। तुम कम्पनी आना चाहती हो तो आ सकती हो।
विकास तुम्हे सपना से बहुत कुछ सीखने मिलेगा। हमें सपना पर पूरा भरोसा है आदेश बोले।ठीक है पापा! जैसा आप कहें, मैं ऑफिस के लिए तैयार होने जा रहा हूँ। विकास के पीछे कनक भी चली आई।विकास आपने कुछ कहा क्यों नहीं? किस बारे में कनक?यह प्रोजेक्ट हम दोनों साथ करेंगे,इस बारे में।
तुमने भी सुना नहीं, पापा क्या बोले? उन्होंने जो फैसला लिया है, बहुत सोच-समझकर लिया होगा। फिर मेरे लिए अभी प्रोजेक्ट को समझना बाकी है।
तुम समझ नहीं रहे हो या समझना नहीं चाहते? विकास क्या तुम्हें मेरी काबिलियत पर शक है?या तुम भी अपने पापा की तरह दकियानूसी सोच रखते हो?
क्या हो गया है तुम्हें कनक! देख रहा हूँ जबसे यहाँ आए हैं तुम खुश नहीं हो,क्या हुआ क्या है तुम्हें? माँ-पापा से इतने दिनों बाद मिला, उन्होंने सब भूलकर हमें माफ़ कर दिया, और क्या चाहिए?रही बात ऑफिस जॉइन करने की तो थोड़ा समय दो मुझे मैं पापा को मना लूँगा।
यही तो दुख है, उन्होंने अपने बेटे को माफ़ किया है।अपनी पोती को अपनाया है।कनिका भी दादी से लिपटी रहती है।माँ मुझसे खुश होकर बात नहीं करती।।मैं खुद को अकेला महसूस करने लगी हूँ विकास।
सब ठीक हो जाएगा कनक!मन के घाव अभी हरे है,थोड़ा सब्र से काम लो ,सब अच्छा ही होगा,अच्छा मैं चलता हूँ पापा इंतजार कर रहे हैं।
कनक विकास को जाते देखती रही।काश तुम वो देख पाते जो मैं देख रही हूँ विकास। मुझे तो यह कोई चक्रव्यूह लग रहा है। जिसमें हमारी प्यारी ज़िंदगी की मौत होती दिख रही है।
धीरे-धीरे समय गुजरने लगा, सुभद्रा मन की बुरी नहीं थी ‌।उसकी हरदम यही कोशिश रहती थी कि कनक और कनिका को किसी बात की कमी न हो।
बस कनक के कारण विकास का दूर होना भूल नहीं पा रही थी। शायद इसीलिए उन्होंने अपने दरमियान एक लक्ष्मण रेखा-सी खींच रखी थी ।
कनक इसे गलत ले रही थी।उसे यही लगता था कि सुभद्रा उसे और विकास को साथ नहीं रहने देना चाहती हैं। इसलिए उन्होंने विकास को वापस बुलाया है।इसी बात को लेकर उसमें और विकास में झगड़े बढ़ने लगे।
सुबह कनक ने नाश्ते के समय आदेश से कहा, पापा आप मुझे यह प्रोजेक्ट नहीं देना चाहते तो ठीक है। मैंने फैसला कर लिया है मैं किसी और कम्पनी में नौकरी के लिए अप्लाई करूँगी।
यह सुनते ही विकास सन्न रह गया।यह क्या बात हुई कनक ? पापा से इस तरह बात करने का मतलब ? तुम्हारी प्रॉब्लम क्या है। पहले तुम कहती थी, काश नौकरी करना मजबूरी न होता तो मैं कनिका को पूरा समय दे पाती।
अब जब समय ही समय है तो कनिका पर ध्यान देने की बजाय इस प्रोजेक्ट को करने की सनक,यह सब मेरी समझ से परे होता जा रहा है।
ठीक समझा विकास तुमने,कमी ही कमी है अब मेरे पास, कनिका पूरे समय माँ से लिपटी रहती है।तुम ऑफिस और उसके काम में,घर में भी कोई काम नहीं करने देता जैसे मैं अछूत हूँ।
मैं ऐसे घुट-घुटकर नहीं जी सकती विकास , मुझे मेरे हिसाब से जीना है। मैं पढ़ी-लिखी हूँ , कोई भी प्रोजेक्ट मेरे लिए मुश्किल नहीं है।अब अंतिम निर्णय पापा का है वो क्या चाहते हैं।
मैं मेरा निर्णय और नियम सिर्फ उन पर ही लागू करता हूँ जो मेरी सुनते हैं।तुम्हें लगता है तुम्हारे साथ गलत हो रहा है तो तुम जो चाहो वो करो कोई नहीं रोकेगा।
कल से ऑफिस आ सकती हो।सपना तुम्हें सब समझा देगी। कहकर आदेश वहाँ से चले गए। सुभद्रा भी उनके पीछे चली गई।
यह तुम ठीक नहीं कर रही हो कनक! तुमसे कहा थोड़ा समय लगेगा सब कुछ ठीक हो जाएगा। पापा को कितना बुरा लगा होगा यह सोचा है तुमने।खैर छोड़ो तुम जो चाहे करो,अब मैं भी नहीं रोकूँगा।
कनक अपनी ज़िद में आगे बढ़ती रही। उसने अपनी कम्पनी में न जाकर, एक छोटी सी कम्पनी में नौकरी जॉइन कर ली।
कनक तुम पागल हो गई हो..? पापा की इज्जत का जरा भी ख्याल नहीं है।सब बातें बना रहे हैं कि आदेश मल्होत्रा बहू को परेशान कर रहे हैं इसलिए बेचारी मजबूरी में नौकरी कर रही है।
लोगों का काम ही यही है।उनकी बेफिजूल की बातों के लिए मेरे पास समय नहीं है।यह कहकर कनक अपने ऑफिस के काम में व्यस्त हो गई।
तुम्हें क्या हो गया है कनक! तुम ऐसा व्यवहार क्यों कर रही हो!माँ-पापा कोई तुमसे नफ़रत नहीं करता है, सबने हमें दिल से अपनाया है। पापा ने कहा ना, ऑफिस आ सकती हो!
हाँ और सपना के नीचे काम करूँ.? क्यों मुझपर विश्वास नहीं है.? मैं उनकी बहू हूँ तो सारी जिम्मेदारी मुझे सौंपनी थी ना कि सपना को!
तुम हर बात का गलत मतलब निकालने में लगी रहती हो कनक!पता नहीं कैसी सोच हो गई है तुम्हारी, सपना बहुत इंटेलिजेंट है। मुझे भी कई बार उसकी सहायता लेनी पड़ती है तो इसमें बुराई क्या.? तुम तो ऐसे कह रही हो जैसे पहले कभी किसी की मदद नहीं ली।
विकास तुम बिना वजह बात बढ़ा रहे हो! मुझे सपना के अंडर काम नहीं करना है। मुझे यहाँ किसी लायक नहीं समझा जा रहा तो क्यों समय बर्बाद करूँ।
दोनों की बढ़ रही बहसबाज़ी सुनकर सुभद्रा आ जाती हैं। यह क्या लगा रखा है तुम लोगों ने.? कनक तुम सपना के बारे में कितना जानती हो.?सपना ने विकास के जाने के बाद हमें ही नहीं हमारे बिजनेस को भी संभाला है।
हाँ हम तुम्हारे रिश्ते के खिलाफ थे।पर थोड़ा समय तो दिया होता तो शायद हम दोनों कुछ निर्णय कर पाते। एक बार फैसला सुनाया, हमारी एक बार की ना सुनकर हमें छोड़कर चले गए और जाकर शादी कर ली।
तुम्हें क्या पता कितने दिन तुम्हारे पापा कम्पनी नहीं गए। कितने दिन मैं बिस्तर से लगी रही।उस समय सपना ने आकर घर और ऑफिस दोनों संभाला था। तुम लोगों का पता लगाया कि तुम लोग कहाँ हो।
विकास कनक को सपना के साथ काम करना पसंद नहीं तो कोई बात नहीं,जहाँ उसकी खुशी हो वहाँ नौकरी करे। तुम दोनों घर की सुख-शांति भंग मत करो। मैं नहीं चाहती यह सारी बातें सपना तक पहुँचे। सुभद्रा यह कहकर चली गई।
सुना विकास!माँ और पापा के लिए सपना सब-कुछ है हम कुछ नहीं, मैं अब यहाँ नहीं रहना चाहती। चलो ना विकास वापस चलते हैं हमारी छोटी सी दुनिया में,जहाँ हम बहुत खुश थे।
नहीं कनक मैं माँ-पापा को छोड़कर कहीं नहीं जाने वाला। बहुत दुःख दिया उनको,अब और नहीं। तुम भी यह बात समझ लो और कल से कम्पनी आना शुरू कर दो। चलो अब सो जाओ।
कनक विकास की बातों से सहमत नहीं थी।उसे तो वापस जाने की सनक सवार हो चुकी थी।अब वो वही करती जो विकास के घरवालों को पसंद नहीं होता।
विकास और कनिका दोनों कनक का यह रूप देखकर अचंभित हो रहे थे। उन्हें समझ नहीं आ रहा था आखिर कनक इस तरह से व्यवहार क्यों करने लगी।
सुभद्रा ने भी कई बार कनक को समझाने का प्रयास किया पर नाकाम रहीं। एक दिन उन्होंने विकास को अपने पास बुलाया।
माँ आपने बुलाया.?हाँ बैठो कुछ बात करनी है।देखो बेटा यह रोज-रोज का कलह अच्छा नहीं लगता। मैंने भी कई बार कनक को समझाने का प्रयास किया।पर वो कुछ बताने को तैयार नहीं है।
माँ उसकी जिद्द है सपना को कम्पनी से निकालकर उसे उस जगह पर बिठा दिया जाए तो वह यहाँ से जाने की जिद्द नहीं करेगी। मैं तो समझाकर थक गया। कनक ऐसी नहीं थी माँ, पता नहीं क्या हो गया।
धीरज रखो बेटा!सब ठीक हो जाएगा। तुम खुद को शांत रखो बस।उसे सपना को स्वीकार करना होगा।हम मतलब पूरा होते ही उसे कम्पनी से जाने के लिए कह दें। लोग क्या कहेंगे? मौसी ने बेटा-बहू के आते ही बेटी को निकाल दिया।
कोई बात कभी किसी से छिपी नहीं रहती।सपना को भी सच्चाई का पता चल गया। उसने भी कम्पनी छोड़ने का फैसला कर लिया।
मौसा जी मैं वापस हैदराबाद जाना चाहती हूँ।आप मेरी जगह कनक को प्रोजेक्ट की जिम्मेदारी सौंप दीजिए।कनक एक्सपीरियंस भी है जल्दी सीख जाएगी।
क्यों कुछ हुआ है क्या ?अचानक जाने का फैसला?आदेश ने पूछा। किसी ने कुछ कहा तुमसे ?
नहीं मौसाजी यह मेरे विचार हैं।वैसे भी अब विकास ने सब संभाल लिया है तो मेरे यहाँ रुकने की कोई वजह नहीं बनती।
नहीं तुम बीच में प्रोजेक्ट छोड़कर नहीं जा सकती सपना, मुझे समझ आ रहा है तुम ऐसा क्यों कह रही हो। तुम हमारे बीच की खट-पट के कारण कह रही हो ना..?
हाँ सीधे-सीधे कहो मेरी बातों का बुरा लगा है। मैं कुछ कहूँ तो गलत.. नहीं कहूँ तो भी ग़लत.. कनक तनतनाकर बोली।
कनक मुझे तुम्हारी किसी बात का बुरा नहीं लगा। तुम इस घर की बहू हो,तुम्हारा इस घर और बिजनेस पर पूरा हक है। वैसे भी मैं तो मौसाजी को सहारा देने आई थी,अब तुम लोग आ गए तो मेरी क्या जरूरत है।
नहीं तुम्हें कहीं जाने की जरूरत नहीं है मैं ही यहाँ से चली जाती हूँ।कनक गुस्से में अपना और कनिका का बैग तैयार कर लेती है।
कनक यह क्या कर रही हो.? देखो शांत हो जाओ और मेरी बात ध्यान से सुनो! गुस्से से बात बिगड़ती है। विकास कनक को समझाने का प्रयास करने लगा। कनिका यह देख रोने लगी।
चलो कनिका तुम्हारे पापा को हमारी जरूरत नहीं,हम यहाँ नहीं रहेंगे। विकास मुझे पता होता तुम ऐसे रंग बदलोगे तो मैं तुमसे कभी शादी न करती।
कनक ने कनिका का हाथ पकड़ा तो कनिका हाथ छुड़ा के सुभद्रा से लिपट गई। मैं नहीं जाऊँगी, मैं दादी और पापा के साथ रहूँगी।आप गन्दी हो सबसे झगड़ा करती हो।
वाह!! अब मेरी बेटी को भी मेरे खिलाफ भड़का दिया।यह दिखाई दिया तुम्हें विकास.? कैसे मेरी बेटी को मेरे पति को मुझसे दूर करने की साज़िश रची गई है।
कनक बेटा तुम ग़लत समझ रही हो, आदेश बोले। ऐसा कुछ भी नहीं है हम अपने बेटे की हँसती-खेलती ज़िंदगी क्यों खराब करेंगे।यह प्रोजेक्ट सपना का ड्रीम प्रोजेक्ट है। इसलिए मैं चाहता था इसे वहीं पूरा करे।
विकास को इसलिए इस प्रोजेक्ट के साथ जोड़ा था ताकि वो बिजनेस की बारिकियों को समझ लें।पर बेटा तुम्हें सपना नहीं पसंद तो तुम जो चाहती हो जैसा चाहती हो, वैसा ही होगा।यह प्रोजेक्ट अब तुम ही करोगी।
मुझे भीख नहीं चाहिए पापा जी। मैं पढ़ी-लिखी हूँ खुद को और अपने परिवार को संभाल सकती हूँ। चलो कनिका विकास आप आ रहे हो..?
सॉरी कनक न मैं जाऊँगा न मेरी बेटी तुम्हारे साथ जाएगी।इस बार तुम गलती कर रही हो। तुम कोई बात समझना नहीं चाहती हो तो इस समय तुम्हें समझाना बेकार है। मैं मेरे माँ-बाप नहीं छोड़ सकता।
विकास तुम ऐसा व्यवहार करोगे, मैंने सपने में भी नहीं सोचा था। तुम्हें मेरा साथ छोड़ना था तो मुझसे शादी क्यों की.?क्या यही तुम्हारा प्यार है.? कैसे भूल गए साथ निभाने का वादा.? मैंने भी तुम्हारे लिए अपने माँ-बाप छोड़े हैं।
ना ही मेरा प्यार कम हुआ है कनक ना ही मैं कुछ भूला हूँ। मैं तो सिर्फ इतना कह रहा हूँ,जब माँ-पापा ने सबकुछ भूलकर हमें अपना लिया तो हमारा फर्ज है उनकी खुशियों का ध्यान रखें।
अब तो पापा ने भी तुम्हारी जिद्द मान ली।सपना भी सब छोड़कर जा रही है तो प्रॉब्लम कहाँ है, मैं समझ नहीं पा रहा हूँ।
यही तो समस्या है विकास!जो तुम कुछ समझ नहीं रहे हो। अगर यह सब मुझे पहले ही मिल जाता तो मेरी खुशी दोगुनी हो जाती, मुझे भी लगता सबने मुझे स्वीकार कर लिया,पर अब जो मिल रहा है वो भीख की तरह मिल रहा है,जो मुझे मंज़ूर नहीं।
सपना का सपना उसे ही मुबारक, मैं वापस शिमला जा रही हूँ। मेरे अपने सपनों के घर, तुम नहीं आना चाहते तो ठीक है मैं मेरी बेटी को लेकर जा रही हूँ। और फिर कभी इस घर में वापस नहीं आऊँगी।
तुमने जाने का फैसला कर लिया है तो मैं रोकूँगा नहीं कनिका कहीं नहीं जाएगी।मैंने तुमसे प्यार किया है और करता रहूँगा और तुम्हारे वापस आने का इंतजार करता रहूँगा।
कनिका दौड़कर सुभद्रा के पीछे छुप गई। कनिका चलो! कनक गुस्से में आकर बोली। नहीं मम्मा मैं नहीं जाऊँगी, मैं यहीं पापा के साथ रहूँगी।
आप भी रुक जाओ ना मम्मा मेरे पास दादी के पास।हम साथ रहेंगे,वहाँ जाकर मुझे फिर से डे-केयर में रहना पड़ेगा आप तो नौकरी पर चली जाओगी। मैं फिर से डे-केयर में नहीं रहना चाहती।
 कनक रुक जाओ गुस्सा छोड़ दो बेटा सुभद्रा बोली। कोई ऐसे अपनी गृहस्थी छोड़ देता है क्या? विकास बेटा तुम और कनिका भी चले जाओ हमारे लिए अपनी बसी-बसाई गृहस्थी मत बर्बाद करो।
नहीं माँ अब यह संभव नहीं,यह जाना चाहती है तो इसे जाने दो,चार दिन में सही-गलत समझ आ जाएगा तो खुद लौटकर आ जाएगी।कनक वहाँ से चली जाती है। धीरे-धीरे दिन गुजरते गए।
विकास ने कई बार कनक से लौट आने को कहा।उसे लेने के लिए शिमला भी गया।
कनक चलो घर चलें!कब तक गुस्सा रहोगी हम सबसे.?माँ का फोन भी नहीं उठाती हो, आखिर उनकी क्या गलती है। इतना सब होने के बाद भी वो ही सामने से फोन करती हैं।
सॉरी विकास! तुम जिस घर में लौटने की बात कर रहे हो, वो तुम्हे और तुम्हारी बेटी को को मुबारक। तुम्हारे माता-पिता हमारी शादी के खिलाफ थे और उन्होंने हमें अलग करने के लिए ही यह सब नाटक रचा गया था।
कनक!!अब जिद्द छोड़ भी दो।मेरा नहीं तो कनिका का तो ख्याल करो।वो बच्ची है, कोई कितना भी प्यार दे,पर माँ तो माँ ही होती है।अक्सर छुप-छुपकर रोती है।
तो लौट आओ न विकास!हम फिर से पहले जैसी ज़िंदगी जिएंगे।हम, हमारी बेटी और कोई नहीं।
कनक तुम कितना बदल गई हो। तुम्हारे लिए हमारे प्यार की कोई कीमत नहीं रह गई। तुमने अपने हाथों से हमारी खुशियों को आग लगा दी।अच्छा चलता हूँ, जाते-जाते फिर कहूँगा,घर लौट आओ प्लीज! कहकर विकास लौट गया।
कनक नहीं आई,अब कनक के पास उसके माँ-बाप मिलने आने लगे थे। उन्होंने भी कनक को माफ कर दिया था। और कनक के वापस लौटने की सभी संभावनाओं पर विराम लगा दिया था।
हम पहले से ही जानते थे बेटा! विकास तेरे लायक नहीं है।ये रईसजादे ऐसे ही होते हैं, पर तूने हमारी एक न मानी अब भी कुछ नहीं बिगड़ा है। तुम अपनी ज़िंदगी अपने हिसाब से जियो,हम तुम्हारे साथ है।
कनिका अब बच्ची नहीं, बीस वर्ष की सुंदर नवयौवना हो गई थी। सुभद्रा की छत्रछाया में उसे बहुत सुंदर संस्कार मिले थे।आज सुभद्रा और आदेश दोनों ही इस दुनिया में नहीं थे।
विकास की सूनी आँखें आज भी कनक का इंतजार करती थी।कनक अपनी ज़िंदगी में बहुत आगे बढ़ गई थी।कनक मुंबई की एक नामी कम्पनी में सीईओ बने चुकी थी।
विकास,कनिका की जगह शौहरत कमाना उसकी ज़िंदगी का मकसद बन गया था।आज वो बॉस के कहने पर जिस कॉलेज में कम्पनी की और से चीफ गेस्ट बनकर आई थी। वहीं उसकी बेटी कनिका भी पढ़ती थी।
तभी तालियों की गड़गड़ाहट से कनक यादों के भँवर से बाहर निकल आई। कनिका कनक की ही कार्बन कॉपी लग रही थी।
कनक की आँखें कनिका को ढूँढ रही थीं। कनक भीड़ में कहीं गुम हो गई। कनक भी घर लौट गई और दूसरे दिन सुबह ही कॉलेज पहूँच गई।
कॉलेज के प्यून से,प्रिंसिपल सर से कहो कनक महेश्वरी उनसे मिलना चाहती हैं। थोड़ी ही देर में वो अंदर थी।
गुड मॉर्निंग वर्मा जी! गुड मॉर्निंग मैम! कोई काम था तो फोन कर दिया होता, आपने आने की तकलीफ़ क्यों उठाई।
जी जिस काम के लिए आई हूँ वो फोन पर नहीं हो सकता। मुझे उस लड़की से मिलना है कल उसने बेहद खूबसूरत गीत सुनाया था।कल देर हो रही थी तो मिल नहीं पाई, कनिका नाम है ना उसका।
जी हाँ कनिका नाम है। न्यू एडमिशन है,पर बहुत ही प्यारी होनहार,मृदभाषी लड़की है। बहुत ही अच्छे संस्कार दिए हैं उसकी माँ ने।यह सुनकर कनक चिढ़ गई।
बस-बस बातें नहीं बनाइए उसे बुला दीजिए। और हाँ मुझे उससे अकेले में बात करनी है।
जी क्यों नहीं आप मीटिंग रूम में चली जाइए।वो वहाँ है सामने जाकर बायीं तरफ, मैं उसे अभी भेजता हूँ।
कनक चली जाती है।मैं अंदर आ सकती हूँ सर ? तभी कनिका आ जाती है।
यस कनिका! आपसे कोई मिलना चाहता है इसलिए आपको बुलाया है।
पर सर मैं यहाँ किसी को नहीं जानती फिर कौन.?क्या पापा आए हैं.?
नहीं आपके पापा नहीं आए।कल हमारे फंक्शन में जो चीफ गेस्ट आईं थीं, उन्हें आपका गीत बहुत पसंद आया।वो आपसे मिलना चाहती हैं।वो मीटिंग रूम में आपका इंतजार कर रही हैं जाकर उनसे मिल लो।
जी सर!थैंक यू सर !मीटिंग रूम में कनिका कुछ ही देर में कनक के सामने थी। कनिका को अपने इतने करीब देखकर कनक का जी किया उसे खींचकर सीने से लगा ले।पर कुछ सोचकर रुक गई।
आपने बुलाया मैम.? हाँ बेटा!कल रात आपका मधुर गीत सुना, बहुत मीठी आवाज है आपकी। आपने गाना कहाँ से सीखा।
धन्यवाद मैम! मेरी दादी ने एक बार मुझे गीत गुनगुनाते हुए सुना तो उन्होंने मुझे संगीत की शिक्षा दिलवाने का निश्चय कर लिया।आज मैं जो कुछ भी हूँ अपनी दादी की वजह से ही हूँ।
सुभद्रा की तारीफ सुनकर कनक अंदर ही अंदर जल-भुन गई। फिर खुद को संभालते हुए बोली। यहाँ कहाँ पर रहती हो.? कौन-कौन हैं आपके घर में.?
मैम मैं हॉस्टल में रहती हूँ।माँ पहले ही साथ छोड़ गई थी। दादा-दादी के जाने के बाद अब मेरे परिवार सिर्फ मैं और पापा हैं।बस यही हमारी छोटी-सी दुनिया है।
तुम हॉस्टल में न रहना चाहो तो मेरे घर में रह सकती हो। मुझे बहुत खुशी होगी।
सॉरी मैम! मैं आपको नहीं जानती , फिर आपके साथ कैसे रहने आ सकती हूँ। धन्यवाद मैम! मैं यहाँ बहुत खुश हूँ। वैसे भी मेरी दादी ने मुझे हर परिस्थिति में जीना सिखाया है।
किसी और के घर नहीं कनिका बेटा, मैं तुम्हें अपनी घर पर चलने के लिए कह रही हूँ। तुमने मुझे नहीं पहचाना बेटा, मैं तुम्हारी माँ हूँ बेटा,तुम्हारी मम्मा हूँ तुम्हें अपने घर ले जाने आई हूँ, कनक कहते हुए भावुक हो गई।
सॉरी माँ मैं आपके साथ नहीं आ सकती। आपको क्या लगा मैंने आपको पहचाना नहीं ? नहीं मम्मा मैंने आपको कल ही पहचान लिया था।पर आपको आपकी बेटी को बेटी कहने में सोलह साल लग गए।
मम्मा आपने अपने गुरूर में आकर हमारा हँसता-खेलता घर बर्बाद कर दिया। दादाजी खुद को आपके घर छोड़कर जाने का कारण समझते रहे और इसी गम में हमें छोड़कर चले गए।
उनके जाने के बाद दादी भी पापा के अकेलेपन को दर्द को दूर न कर पाने की विवशता से अंदर ही अंदर टूटती रहीं। फिर एक दिन वो भी हमें अकेला और अनाथ करके चली गई।
अब मैं और पापा अपनी छोटी सी दुनिया में एक-दूसरे के सुख-दुख के साथी हैं। मेरी दुनिया पापा से शुरू और पापा पर खत्म होती है।मुझे किसी और सहारे की जरूरत नहीं है।माँ आपका कीमती वक्त देने के लिए धन्यवाद।
कनिका ऐसा मत कहो बेटा।क्या तुम्हारी ज़िंदगी में मेरे लिए कोई जगह नहीं है। आखिर मेरी गलती क्या थी.?क्या अपना अधिकार माँगना गुनाह है.?
किस बात का अधिकार माँ ? सब-कुछ आपका और पापा का ही था।आप कुछ नहीं भी करती तो भी सब आपका था।
मम्मा दादाजी को हमारे साथ कोई भेदभाव करना ही होता तो हमें वापस ही क्यों बुलाते। सब-कुछ तभी सपना बुआ को सौंप देते।पर आप अपनी ज़िद में कहाँ कुछ देख सकी,बस सबको दर्द देकर चली गईं,अब आपकी ममता जागी है।
आपने मुझसे ज्यादा पापा को दर्द दिया है। उन्होंने हर संभव प्रयास किया पर आप अपनी ज़िद पर अटल रहीं।वो आज भी आपको बेहद प्यार करते हैं। आपकी फोटो छुप-छुपकर देखा करते हैं।
ये सब देखकर मुझे बहुत तकलीफ़ होती है पर पापा का पता न चले इसलिए अनजान बनी रहती हूँ।यह कैसी ज़िद थी आपकी जिसने आपको जान से ज्यादा प्यार किया उसे ही दुख दे बैठी।
बहुत कष्ट होता मुझे, मैं उनके दर्द को कम करने के लिए कुछ नहीं कर सकती।पर हमने आपके बिना जीना सीख लिया है।
आपको आपकी बेटी चाहिए तो पापा को उनका खोया प्यार लौटाना होगा।चलती हूँ फिर मिलने नहीं आइएगा नहीं तो मुझे कॉलेज छोड़कर जाना पड़ेगा।
कनिका चली गई। कनक भी कॉलेज से निकलकर वापस घर लौट आई थी।आज कनिका ने उसकी आँखों पर पड़ा परदा हटा दिया था। पश्चाताप के आँसू बह-बहकर उसका दामन भिगो रहे थे।
काश मैंने ज़िद न की होती तो मुझे और विकास को यूँ एक-दूसरे से दूर न होना पड़ता‌।अब किस मूँह से विकास के पास जाऊँ, अगर उसने मुझे वापस लौट जाने को कहाँ तो.? नहीं-नहीं जाना ठीक नहीं।
फोन करूँ ? हाँ फोन ही करना ठीक रहेगा। बहुत हिम्मत करके कनक विकास को फोन लगाती है।हैलो विकास मैं कनक...
तुम्हें परिचय देने की जरूरत नहीं है कनक! मैं आज भी तुम्हारी आवाज़ भूला नहीं हूँ।कहो कैसे फोन किया ? विकास ने पूछा।
मुझे माफ़ कर दो विकास फफक कर रो पड़ी कनक। मेरी गलती से हमारी खुशियाँ को ग्रहण लग गया। मैं माँ-पापा की भी गुनाहगार हूँ।उनको सुख देने की बजाय दुख लेकर चली आई।
मैं कोई भी रिश्ता न निभा सकी! ना मैं अच्छी माँ बन पाई न अच्छी पत्नी और न ही अच्छी बहू। मुझे तो माफी माँगने का भी हक नहीं है। फिर भी माफी माँगती हूँ। विकास क्या तुम मुझे माफ़ करोगे ?
कनक मैंने तुम्हें कभी भी दोष नहीं दिया,उस तुम्हें जो सही लगा वो किया मुझे जो सही लगा वो मैंने किया। । मैं तुम्हें पहले भी कह चुका हूँ, तुम जब भी वापस आना चाहो आ सकती हो।
दुख इस बात का है कि हमारे अलग होने के कारण मेरे माता-पिता को जो तकलीफ़ हुई, मैं उसे नहीं भूल सकता। तुम अगर वापस आना चाहती हो तो खुशी की बात है, आ जाओ ये तुम्हारा ही घर है। इतना कहकर विकास ने फोन रख दिया।
मुझे पता है तुम अब भी नहीं आओगी कनक। तुम्हें तुम्हारा अभिमान नहीं आने देगा। तुम अब भी चाहती हो मैं सब-कुछ छोड़कर तुम्हारे पास आ जाऊँ, खैर हमने तुम्हारे बिना जीना सीख लिया है।
विकास का अनुमान ठीक था।कनक लौटना तो चाहती थी पर...यह क्या विकास! रुखे-रुखे कह दिया,आना चाहो तो आ सकती हो। खुद नहीं आ सकते हो। नहीं मैं उस घर में नहीं जाऊँगी।
क्या सोच रही हो बेटी ? कब चाय लाकर रखी थी, ठंडी हो गई। कनक की माँ पास बैठते हुए बोली।
माँ आज विकास से बात की थी। मैंने उससे उन गलतियों की माफी भी माँगी जो मैंने नहीं की।पर उसने यह कहकर फोन रख दिया,आना चाहती हो तो आ जाओ।
देख कनक तू अगर झुककर गई तो सारी ज़िंदगी उसकी बातें सुनती रहेगी। मैंने तो पहले ही कहा था उसे तेरी कोई परवाह नहीं है। मेरी बात मानकर रवि से शादी कर लेती तो सुखी रहती।
तू भी दिखा दे उसे, तूने भी उसके बिना जीना सीख लिया है। तुझे भी उसकी जरूरत नहीं।तू कहे तो रवि से बात करूँ वो भी अकेला है तू भी अकेली । विकास को डिवोर्स देकर उससे शादी करले।
हम्म माँ आप सही कह रही हो, मुझे झुकना नहीं चाहिए।पर मैं किसी और से शादी नहीं कर सकती । ज़िंदगी जैसी चल रही है वैसी चलेगी माँ कनक बोली।
मैं उस घर में तो कभी नहीं जाऊँगी यह मेरी ज़िद है।उस घर ने और वहाँ के लोगों ने मेरी खुशियाँ बर्बाद कर दी। कनक ने एक बार फिर अपने मन में पनपते हुए प्रेम पर माँ के कहने से अंहकार की मुहर लगा दी।
अनुराधा चौहान'सुधी'स्वरचित ✍️
चित्र गूगल से साभार