Wednesday, May 29, 2019

अब आ भी जाओ

गुनगुनाने लगी हैं हवाएँ
तेरे आने के पैगाम सुनाएँ
महकने लगी मेरे मन की बगिया
खिल उठी हों जैसे जूही की कलियां
बहका-सा आलम महकी फिज़ाएँ
तेरे प्यार की कहानी सुनाएँ
लो चमकने लगा चाँद अब आसमां पर
छेड़ती चाँदनी मुझे लहराकर आँचल
वो टूटा तारा तुमको भी दिखा क्या
जिससे माँगी थी मैंने यह दुआ जब
होती है हलचल तो मचलता है दिल
तुम फिर से न आए 
सोचकर डरता है दिल
देखो गुनगुनाने लगे हैं नज़ारे
कहीं बुझ न जाए दीप सारे
अब आ भी जाओ लौटकर घर वापस
घर जैसा सुख और कहीं न मिलेगा
***अनुराधा चौहान***
चित्र गूगल से साभार

बँटवारे का दर्द

बड़ा ही दुखदायी होता
जब बँटवारा सहना पड़ता है
तिनका-तिनका जोड़ा
बनाया सपनों का घरौंदा
जज़्बातों के रंग भरकर
हर एक ईंट को जोड़ा
अरमानों के दीप जलाकर
किया था उजाला घर में
प्यार की बारिश करके
दिल के टुकड़ों को सींचा
एक-एक कोने में रची-बसी
जीवन की अनमोल यादें
कब बेटों ने स्वार्थ में भुला दी
माता-पिता का तोड़कर दिल
घर के बँटवारे पर आ गए
टुकड़े-टुकड़े कर दिए रिश्ते
बँटा आँगन बँट गई दीवारें
प्यार से सींचा था जिसको
वो पेड़ खड़ा था आँगन में सहमा
माँ-बाप भी बँट गए
किस्मत के मारे दोनों बेचारे
बुढ़ापे में एक-दूसरे से दूर
बेटों के हाथों होकर मजबूर
आँसू भरी आँखों से रहे देखते
आँगन के बीच दीवार बनते
किसी के हिस्से में माँ आई
किसी के हिस्से में पिता
बड़ा ही दुखदायी होता
जब घर का बँटवारा होता
***अनुराधा चौहान***
चित्र गूगल से साभार

अंत ही आरंभ है

मौत से जूझकर
मुश्किल रास्तों से गुजरकर
ज़िंदगी का दरवाज़ा खुलता है
उस दरवाज़े से निकलकर ही मिलता है
जीवन का मार्ग जिसका अंत
मौत की दहलीज पर होता है
ज़िंदगी से मौत के बीच के मार्ग पर
हमको जीवन जीना पड़ता है
अपने कर्म करते हुए
अपने सपनों अपनों की ख्व़ाहिशें
सब पूरी करनी पड़ती हैं
मार्ग किसका कितना बड़ा
और किसका कितना छोटा है
यह सिर्फ विधाता ही जानता है
हमको जीने के लिए सिर्फ कर्म करने हैं
यही विधि का विधान है
उस विधाता की अनुपम रचना है
अंत में ही आरंभ का रहस्य छिपा है
हम जीवन-मृत्यु के
मार्ग पर चलते
जीवन के हज़ारों रंग देखते
विधाता की अनबूझ पहेली
सृष्टि के सृजनात्मक
शक्ति का अहसास लिए
जीवन के नये सृजन में योगदान करते
और महसूस करते
उस विधाता के अहसास को
जो जीवन का दाता और
सृष्टि का पालनहार है
***अनुराधा चौहान***
चित्र गूगल से साभार

Tuesday, May 28, 2019

राई का पहाड़

बचपन से सुनते आए
पहाड़ों के किस्से
कभी असली कभी नक़ली
पहाड़ थे कई किस्म के
कभी दुःख के कभी मुश्किल के
कभी राई का पहाड़ 
बहुत सुना सोचा-समझा
पर समझ नहीं आया
प्रश्नचिंह बन खड़ा हो जाता
राई का पहाड़ होता है कैसा
बड़े हुए तो अब यह जाना
कैसे छोटी-छोटी बातों का
 बहाना लेकर
बन जाते हैं पहाड़ राई के
जो बातों ही बातों में
इतने बड़े हो जाते
फिर कोई नहीं चाहता है
चढ़ कर उतरना
सब चढ़ने के लिए तैयार रहते
यह राई के पहाड़ ऐसे होते
मुसीबत बन कर टूट पड़ते
बदल जाते हैं तकरार के साथ
दुःख का पहाड़ बनकर
***अनुराधा चौहान***
चित्र गूगल से साभार

Monday, May 20, 2019

मत रोको बहने दो

मत रोको बहने दो
भावों के सुंदर झरने को
मत रोको बहने दो
सरगम सा यह गीत बने
सजनी की इसमें प्रीत जगे
चमकें सदा भावों के मोती
लेकर सदा ज्ञान की ज्योति
वाणी की मधुरता को
मत रोको बहने दो
भावों के सुंदर झरने को
मत रोको बहने दो
भावनाओं का जन्म न होता
सुंदर सरल गीत नहीं बनता
साहित्य की नदिया न बहती
जीवन में सरगम न रहती
मत रोको बहने दो
भावों के सुंदर झरने को
मत रोको बहने दो
इसके प्रवाह में बहकर ही
भावों के सुंदर हार बने
साहित्य के ऋतुराज की
यह अनुपम बहार है
मत रोको बहने दो
भावों के सुंदर झरने को
मत रोको बहने दो
बसंत-सी बहार लिए
रचनाओं का संसार सजे
तेज चमकता सूरज जैसे
भावों के सब मोती ऐसे
साहित्य की यह शान है
मत रोको बहने दो
भावों के सुंदर झरने को
मत रोको बहने दो
***अनुराधा चौहान***

हाइकु(गर्मी)

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तेज है घाम
पशु-पक्षी बेचैन
मिले न छाँव
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गर्मी से चूर
बढ़ रही बेचैनी
बारिश दूर
🏵
अग्नि के बाण
सूर्य करे प्रहार
बेचैन धरा
🏵
नौ तपा शुरू
जेठ की दुपहरी
बेचैन मनु
🏵
बढ़ी बेचैनी
उगलता सूरज
क्रौध में आग
🏵
घिरते मेघा
मन है बेकरार
वर्षा की आस
🏵
झूमती धरा
बारिश में भीगती
बेचैनी मिटा
🏵
बादल काले
घनघोर बारिश
मन हर्षाते
 ***अनुराधा चौहान***✍

Wednesday, May 15, 2019

दरकते रिश्ते

कंटीली झाड़ियों सी ज़िंदगी
तभी अपनों को चुभती रहती
किसी की कही बातों से
कभी किसी के विचारों के विरुद्ध
अपनों से ही द्वंद करती रहती
बातों से बार-बार 
अपनों पर चोट करती
नहीं होती है हर किसी की एक सोच
कोई कम तो कोई ज्यादा
अलग होता हर किसी का इरादा
बस धारणाएं ग़लत बनती जाती
अनजाने में ही सही 
दिल पर चोट करती जाती
दरकने लगते हैं रिश्ते अंदर ही अंदर
फिर पहले जैसी बात कहाँ रह जाती
बदल रहा है वक़्त बदल रही है सोच
हर कोई बदल रहा यह समय का है जोर
जाने-अंजाने में कही बातों को भूल
मत चुभाओ कभी भी
किसी को भी बातों के शूल
रिश्तों की अहमियत को समझकर
मत पालो किसी के लिए भी नफ़रत
नहीं तो रह जाएगी रिश्तों की लाश धरी
समय में न संभले तो हो जाएगी देरी
***अनुराधा चौहान***

Saturday, May 4, 2019

जीवन यात्रा

विधा-तांका(प्रथम प्रयास)

(१)
जीवन यात्रा
मानव राहगीर
मृत्यु मंज़िल
दुख-सुख है साथी
वक्त की रेलगाड़ी

(२)
मोक्ष चाहत
जीवन है सफ़र
सच्चाई मार्ग
मंगल की कामना
मंज़िल परमात्मा

***अनुराधा चौहान***स्वरचित✍ (एक प्रयास)