Monday, January 28, 2019

कलम की जुबानी


कविता लिखतीं हूँ
कहानी लिखतीं हूँ
यह सब मैं कलम की
जुबानी लिखती हूँ
माँ की ममता लिखतीं हूँ
सजनी की प्रीत लिखतीं हूँ
दुश्मन का करों  संँहार
वीरों की हुंँकार लिखतीं हूँ
यह सब मैं कलम की
जुबान लिखतीं हूँ
यह कलम नहीं तलवार है
वीरों की ललकार है
आजादी का नारा है
विजय का जयकारा है
जो काम न हो बरछी भालों से
वो होता कलम की ताकत से
जनता की आवाज़ बनती
जनमानस की आग बनती
शहीदों के चरणों में
शत् शत् प्रणाम लिखतीं हूँ
यह सब मैं कलम की
जुबानी लिखतीं हूँ
***अनुराधा चौहान***

चित्र गूगल से साभार

संघर्ष ही जीवन है


मत रखो मन पर कोई बोझ
संघर्ष ही जीवन है रखो यह होश
जब पत्थर से हथौड़ा टकराए
तो पत्थर से पानी निकल आए
न निराश हो न थको तुम
ज़िंदगी के सच को समझो तुम
आग में तपकर कुंदन खरा होता
मेहनत से इंसान सफल होता
किस्मत को लेकर रोने से
समय को यूंँ ही खोने से
किसने भला सफलता पाई
मेहनत से ही दौलत पाई
नन्ही चींटी को तुम देखो
कितना बोझ ले चलती है
तिनका-तिनका चुनती है
चिड़िया तब घोंसला बुनती है
लहरों से जो डर जाओगे
खुद को कैसे पार लगाओगे
बुजुर्गो से सुना यह किस्सा है
सुख-दुख जीवन का हिस्सा है
जिसने इस सच को माना है
उसे संतोष का मिला खजाना है
जब मन में कर्म का जोश जगे
हर मुश्किल भी आसान लगे
तुम भी ऐसा कुछ कर जाओ
दुनियांँ को सदा ही याद आओ
***अनुराधा चौहान***

चित्र गूगल से साभार

Thursday, January 24, 2019

प्रभू मन में बसे हो तुम

मेरे मनमंदिर में हो तुम
जीवन के हर क्षण में हो तुम
सृष्टि के कण-कण में हो तुम
सांसों की हलचल में हो तुम
दिल की धड़कन में हो तुम
गीतों की सरगम में हो तुम
नयनों की ज्योति में हो तुम
हवा केे एहसास में हो तुम
जीवन की हर सांँस में हो तुम
फूलों की खुशबू में हो तुम
शूलों के चुभने में भी तुम
सौंदर्य की परिभाषा भी हो तुम
प्रेम की भाषा भी हो तुम
सृष्टि के रचयिता भी हो तुम
प्रभू मन में बसे हो तुम
हर कण में बसे हो तुम
गोपियों के श्याम हो तुम
सीता के राम भी हो तुम
यह जीवन तुम्हीं से है
जीवन की सच्चाई हो प्रभू तुम
***अनुराधा चौहान***

चित्र गूगल से साभार

Wednesday, January 23, 2019

पिरामिड लेखन

पिरामिड (सेना)
(१)

है
सेना
निर्भीक
वीरपुत्र
वतन शान
भारत महान
तिरंगे पर फ़िदा

(२)

है
धीर
निर्भीक
कर्मवीर
देश की शान
सैनिक महान
भारत की संतान

(३)  पिरामिड (सुभाषचन्द्र बोस)

था
धर्म
आज़ादी
देश शान
कर्म महान
दिल में जोश
सुभाषचंद्र बोस

(४)

थे
वीर
कर्मठ
देशप्रेमी
आजादी धर्म
महान नायक
सुभाषचंद्र बोस

***अनुराधा चौहान***स्वरचित✍

Saturday, January 19, 2019

शूरवीर महाराणा प्रताप

है अमर वो इतिहास पुराना 
विश्व में गूंँज़ती ख्याति है 
भारत का वह वीर पुत्र है 
दुश्मन की कांपती छाती है
शूरवीर,दृढ़ और साहसी 
राजपूत वह गौरवशाली
कर्तव्य देश हित सबसे पहले
शूरवीर वह सबसे हटकर
महाराणा प्रताप का जीवन संग्राम
युद्ध में मानी कभी न हार
वंशज थे राणा सांगा के, 
हाथ में लिए अजेय तलवार
क्षत्रिय वंश के हक़ की खातिर
करते रहे सदा संग्राम
चित्तौड़गढ़  में आज भी उनकी
वीरता के गाए जाते गीत
क्रांति के थे मतवाले 
मातृभूमि से रखते प्रीत 
अकबर ने छल से अपनी
चालें चली कई बड़ी विकट
महाराणा प्रताप को झुका न पाया
चंगुल में अपने फंँसा न पाया
राजपूत की शान अनूठी
अकबर ने खाई थी मुंह की
हल्दी घाटी का युद्ध हुआ
 प्रताप ने डाला डेरा था
अकबर की सेना ने उनको
चारों और से घेरा था
घनघोर छिड़ा था युद्ध वहांं 
तीर और तलवारों से
आसमां से बारिश होती थी
बरछी और भालों की
पल में यहां पल में वहां
शत्रू भी चकराता था
हवा के जैसी तेजी थी
ऐसा था वह स्वामिभक्ति बड़ा
घोड़ा था प्रताप का वफादार चेतक 
हर मुश्किल से टकराता था
इतिहास गवाही देता है
प्रताप की गौरवशाली गाथा का
युगों-युगों तक याद रहेगी
महाराणा प्रताप की अमर गाथा
व्यर्थ न जाया होती है
वीरों की मातृभूमि पर कुर्बानी
महाराणा प्रताप की वीरता के आगे
अकबर का भी शीश झुका 
सदियांँ बीती बीत गए युग
प्रताप की वीरता के आगे
ऐसा वीर धरती पर और कोई कहांँ होगा!!
***अनुराधा चौहान***

मन उड़ चला

उड़ चला मन मेरा
बादलों के पार चला
बादलों को देख कर
पल भर को ठिठक गया
बूंँदें गिरी बारिश की
खुशियों से झूम उठा
तभी किसी लम्हे को
दिल ने फिर याद किया
मन में एक तड़प उठी
तन्हा मेरी ज़िंदगी
चुपके से सिसक उठी
डूब गई यादों में
उन हसीं मुलाकातों में
बहने लगे बारिश संँग
मन के कोमल भाव भी
फिर से हरे हो उठे
मन के पुराने घाव भी
पुरवाई चलने लगी
मन को बहलाने लगी
यादें जो जागी थी
उनको भुलाने लगी
मन को समझा कर
यादों को भूलकर
उड़ने लगा मन फिर से
बादलों के संग झूमकर
***अनुराधा चौहान***
चित्र गूगल से साभार

Friday, January 11, 2019

पिरामिड

(१)       
हो
सत्य
प्रथम
हरपल
कर्म की राह
भगवत कृपा
जीवनगाड़ी चला
(२)
ये
पथ
दुर्गम
प्रतिपल
बढ़ा कदम
सत्य का सफर
जीवन चलाचल

(३)
है
भाव
सम्मान
मन प्रेम
हृदय जीते
आतिथ्य सेवा
भारत परम्परा

(४)
है
धर्म
विनम्र
हो आचार
सेवा के भाव
हमारे संस्कार
अतिथि देवो भव

(५)
दें
दान
अनाथ
पुण्य धर्म
पावन पर्व
मकर संक्रांति
सुखी सब जीवन

(६)
हो
धर्म
सफल
शुभ कर्म
जीवनदान
महान कल्याण
मानवता प्रसन्न

***अनुराधा चौहान***स्वरचित पिरामिड✍
चित्र गूगल से साभार

Thursday, January 10, 2019

बिखरता आशियाना

तिनका तिनका जोड़
इंसान बनाता आशियाना
ख्व़ाबों की खड़ी कर दीवारें
प्यार का रंग भरता
नींव जिसकी भरी समर्पण से
आशा के जलते दीप सभी
मौसम के साथ 
सब लगे रंग बदलने
रिश्तों के रूप यह कैसे
शीशे से हो गए दिल सबके
ठेस लगे तो लगे बिखरने
दिल पर पत्थर रख कर
हर दीवार को ढहते देखा है
मैंने पल में रिश्तों का
संसार उजड़ते देखा है
खिंच जाती हैं दीवारें
कब न जाने और कैसे
आंगन, गलियारे,छत
सब बट जाते हैं पल में
तेरा मेरा करने में बस
अब उमर बीतती जाती है
जो सुकून मिलता था
कभी अपनों के बीच
बस यादें ही रहती हैं बाकी
खड़ी हो जाती दीवारें
बिखर जाता आशियां भी
***अनुराधा चौहान***

हाइकु

प्रेम बढ़ाती
अतिथि देवो भव
प्रथा हमारी

अतिथि सेवा
रिश्तों का एहसास
प्रेम के साथ

रीत पुरानी
अतिथि का सत्कार
रिश्तों में प्यार

जीवन कला
परिवार है पला
प्यार की छांव

Tuesday, January 8, 2019

आहट

यह कैसी है आहट
मन को डराए
कहीं दूर पेड़ों के
हिलते हैं साए
सर्द हवाएंँ
कुछ कहती हैं देखो
महकती फिजाओं में
खुशबू के जैसे
कटती नहीं
ज़िंदगी कब तेरे बिन
सुनाई देती नहीं
तेरे कदमों की आहट
घरौंदों में पंछियों का
देखकर बसेरा
याद आता है
तेरे साथ का सबेरा
कलियांँ चटककर
फूल बनने लगी
बदलने लगी हैं
रुख अपना हवाएंँ
आ जाओ अब
कहीं उम्र बीत न जाए
टूट जाए यह दिल 
और आवाज़ न आए
***अनुराधा चौहान***
चित्र गूगल से साभार