कहीं ज़िंदगी की शाम न ढ़ल जाए
कर लो कुछ मुलाकातें देर ना कर
गिले-शिकवे भुला दो गले लग कर
जिंदगी बार-बार धोखे नहीं देती
खुशियों पाने के रोज मौके नहीं देती
हर शख्स यहाँ धोखेबाज नहीं
एतबार करके देखिए तो सही
ज़िंदगी की हकीकत को पहचानिए जरा
गुजर गया वक़्त फिर नहीं आए लौटकर
नाज़ुक कांँच से यहाँ रिश्ते हैं सभी
टूट कर बिखर गए तो जुड़ते ही नहीं
कदम फूंक-फूंक कर रखो चाहें कितने
हर कदम पर मिलेंगे लोगों के मिजाज बदले
आजमा कर हर शख्स को देखना है जरूरी
ज़िंदगी नहीं चलती हर शख्स से रख दूरी
हर किसी शख्स से यहाँ धोखे नहीं मिलते
ज़िंदगी जीने के बार-बार मौके नहीं मिलते
***अनुराधा चौहान***