अरे सुनती हो!!हरीहर बड़ा खुश दिखाई दे रहा था। पत्नी शीला को आवाज लगाता हुआ घर में प्रवेश करता है।
शीला साड़ी के पल्लू से हाथ पोंछती हुई आती है,क्या हुआ दुर्गा के बापू? आ बैठ बताता हूं तनिक पानी और गुड़ लेकर आजा। शीला जल्दी से पानी और गुड़ लेकर आती है।
हरीहर बताता है आज दुर्गा का रिश्ता पक्का कर दिया उसने पास के गांव के जमींदार के यहां। दहेज में एक लाख रुपए और सब सामान देना है। कहां से लाओगे दुर्गा के बापू इतना सब? दुर्गा चुपचाप माँ-बाप की बातें सुन रही थी। अरे तू चिंता मत कर इस बार फसल बहुत अच्छी हुई है। अच्छा पैसा मिलेगा और कुछ कम पड़ा तो थोड़ा बहुत उधार ले लेंगे, दुर्गा कहां है? दुर्गा!!!आज मैं दुर्गा के साथ खाना खाऊंगा कुछ दिन में पराई हो जाएगी मेरी बिटिया।
शीला खाना निकालती है तीनों खाना खाकर सो जाते हैं। पर उनकी खुशियों पर पानी फिर जाता है।रात अचानक मौसम ख़राब हो गया,बड़े जोरों से बारिश होने लगती है। बेमौसम की बरसात से हरीहर की फसल चौपट हो जाती है आंखों में आंसू लिए पति-पत्नी अपनी बर्बादी का मंजर देख रहे थे सब खत्म हो गया था।
दुर्गा भी बेबस लाचार कभी माँ के तो कभी बाप के आंसू पोंछ रही थी। सबसे बड़ी चिंता दुर्गा की शादी की थी।अब पैसा कहां से आएगा।खेत तो पहले से गिरवी पड़े थे, सोचा था इस बार खेत भी छुड़ा लेगा।
शीला के कहने पर हरीहर जमींदार से शादी की बात करता है।कहता है धीरे-धीरे सब मांग पूरी कर देगा आप लोग समय पर बारात ले आना।
जमींदार भी दुर्गा का रिश्ता तोड़ देता है, वह हरीहर को बोलता है। पैसा नहीं तो शादी नहीं।हरीहर की बहुत कोशिश के बाद भी रिश्ता टूट जाता है। एक तरफ फ़सल चौपट दूसरी तरफ बेटी की शादी टूटने का ग़म हरीहर टूट जाता है।पर वह कोई ग़लत क़दम न उठाले दुर्गा अपने पिता के गले लग उसे समझाती है।हम फिर मेहनत करेंगे, फिर अच्छे दिन आएंगे। शीला और दुर्गा का साथ पाकर हरीहर का दुःख कम हो जाता है।पर तीनों जानते थे बहुत मुश्किल है,एक किसान का फिर से खड़ा हो पाना कैसे बीज लाएगा जब पहला ही कर्जा नहीं उतरा।
***अनुराधा चौहान***लघुकथा