Saturday, July 9, 2022

सही निर्णय


 "प्रभा मौसम बहुत सुहाना हो रहा है और वीकेंड भी आ रहा है।आज रात को मैंने और मेरे कुछ दोस्तों ने घूमने का प्लान बनाया है। तुम फटाफट बैग्स पैक कर लो आज ही निकलेंगे..! विकास ने ऑफिस का बैग टेबल पर रखते हुए कहा।

"विकास आप बहुत भींगे हुए हो। पहले जल्दी से कपड़े चैंज कर आओ वरना ठंड लग जाएगी। मैं चाय बनाकर लाती हूँ ।फिर बात करते हैं...!प्रभा ने टॉवेल पकड़ाते हुए कहा।

"ओके माई डियर...! विकास कमरे की ओर चला गया।

"आज मौसम बहुत ठंडा हो रहा है।साथ में कुछ गरम खाने के लिए बना लेती हूँ। विकास को अच्छा लगेगा...!" प्रभा चाय के साथ पकोड़े तलने लगी।

"वाह पकोड़े...!!!!प्रभा तुम कैसे मेरे मन की बात समझ लेती हो यार? सच्ची आज ऑफिस से निकला तो यही सोचकर निकला था कि तुम्हारे लिए बाबूलाल की दुकान से गर्मागर्म पकौड़े ले जाऊँगा।पर यह कमबख्त बरसात तेज होती गई तो चुपचाप घर चला आया..!यह कहकर विकास पकोड़ों का आनंद लेने लगा।

"अच्छा? और इस तेज बारिश में आपको तो ऐसे मौसम में घूमने जाना है...?प्रभा व्यंग्य से हँसी और चाय की चुस्कियांँ लेने लगी।

"हाँ जाना है ना, इसमें हँसने वाली क्या बात है? बहुत दिनों बाद अकेले रहने का मौका मिला है तो कहीं एंजॉय करके आते हैं।तुम बैठी क्यों हो?अब चलो जल्दी से पैकिंग शुरू कर दो..!"विकास ने पूछा।

"सॉरी विकास..पर हम कहीं नहीं जा रहे‌।अभी बरसात बहुत तेज है जब बरसात कम होगी तब घूमने का सोचेंगे..!प्रभा ने कहा।डेढ़ साल भर पहले ही विकास की शादी हुई तभी घूमने गए थे। विकास को मौका मिला तो फिर से घूमने जाने का प्लान बना लिया।दो दिन के लिए प्रभा के सास-ससुर अपने किसी रिश्तेदार के यहाँ गए थे।

"तुम बहुत बोरिंग हो प्रभा..हुंहू! विकास ने गुस्सा होते हुए कहा।

"विकास आप बेकार ही नाराज होने लगे।जोर देखो बारिश का..? कम होता तो मौसम सुहाना लगता।ऐसी बरसात सिर्फ रुलाती है..!प्रभा बोली।

"अरे यार इस समय सभी लोग वाटरफॉल देखने और बारिश एंजॉय करने जाते हैं।हम अकेले नहीं, हमारे साथ आशीष और शशांक भी अपनी वाइफ को लेकर जा रहे हैं..!"

"वो जाते हैं तो जाने दो!मैं इतनी बारिश में न खुद जाऊँगी और ना आपको जाने दे सकती।विकास पापा जी कहकर गए हैं कि उनकी अनुपस्थिति में कहीं जाना नहीं।कभी कभी बड़े कुछ कहकर जाते हैं तो उसके पीछे कोई न कोई कारण अवश्य होता है..! हमें भी उनका कहा नहीं टालना चाहिए। वैसे भी सबसे ज्यादा दुर्घटनाएँ भी इसी समय बहुत होती हैं।बुरा वक्त कहकर नहीं आता। तुम देख रहे हो ना पिछले दो दिन से बहुत ज्यादा बरसात हो रही है?प्रभा बोली।

"पर मैंने उन्हें हाँ कर दी है..!

"तो क्या हुआ? कोई बहाना बनाकर मना भी तो किया जा सकता है..?या फिर सीधे सीधे कह दो मैंने आने से मना कर दिया है..!प्रभा ने कहा।

"ठीक है मना कर देता हूँ।पर आज के बाद कहीं चलने को मत कहना..! विकास ने फोन करके दोस्तों को मना कर दिया कि प्रभा इतनी तेज बारिश में वाटर फॉल्स देखने का रिस्क नहीं लेना चाहती।

"विकास आप बेकार ही नाराज हो रहे हैं। जोरदार बरसात देखने में अच्छी लगती है पर होती नहीं। आप समझदार हो फिर भी? मैं तो आपसे इतना ही कहूँगी घर पर बैठकर बरसात का आनंद लो घूमने का रिस्क नहीं।जब कम होगी तब चलेंगे...!

"मुझे अब कहीं नहीं जाना..! विकास रूठकर अंदर चला गया।

"लो अब बच्चों जैसे रूठ गए।खैर कोई नहीं मैं मना लूँगीं..!प्रभा मुस्कुराते हुए चाय के कप रखकर विकास की पसंद का खाना बनाने लगी।

"विकास आइए खाना लगा दिया है..!प्रभा ने आवाज लगाई। विकास...? प्रभा समझ गई विकास ऐसे नहीं आने वाला तो खुद कमरे में जाकर उसे मनाकर ले आई। खाना खाने के दौरान पूरे समय विकास चुप रहा और प्रभा ने भी कुछ नहीं कहा।

दूसरे दिन दोपहर में विकास अनमना सा बैठा टीवी देख रहा था।घूमने की बात से अभी तक उसका मूड खराब ही था।

विकास जरा न्यूज लगाओ देखें बारिश ने कहाँ कहाँ कहर बरपाया है...!प्रभा ने कहा।

विकास ने न्यूज लगाई वैसे ही उसके मुँह से "अरे बाप रे"निकल गया।

"क्या हुआ विकास..? प्रभा ने चौंककर पूछा।

टीवी में न्यूज थी। बरसात के मौसम मे वाटरफॉल में नहाने का लुत्फ उठाने गए पर्यटक अचानक से जलस्तर बढ़ जाने से फंस गए और कुछ तेज बहाव में बह गए। जिन्हें बचाने के लिए युद्धस्तर पर रेस्क्यू ऑपरेशन चल रहा है।"इस जगह ही हम सब जाने वाले थे प्रभा..?

"क्या.??ऐसी बारिश में घूमने का निर्णय ही बेवकूफी भरा था। देखा हो गया ना काण्ड ? इसलिए मैं जाने से मना कर रही थी। तुम्हारी जिद की वजह से आज हम भी पता नहीं किस हाल में होते?अब सोच क्या रहे हो?फोन करो आशीष वगैरह ठीक तो हैं..?

"सच्ची यार.. गुस्से में मैंने तुम्हें क्या कुछ नहीं कह दिया। आज तुम्हारे सही निर्णय के कारण ही हम घर पर सुरक्षित हैं। मैं अभी उन लोगों को कर पता करता हूँ। विकास ने फोन करके पता किया तो पता चला आशीष और शशांक के घरवालों ने भी प्रभा के मना करने पर उन्हें नहीं जाने दिया था इसलिए वो भी घर पर सुरक्षित थे और न्यूज देखकर प्रभा को धन्यवाद दे रहे थे।

"क्या हुआ सब ठीक है..? प्रभा ने पूछा।

"तुम्हारी वजह से आज हम सब सुरक्षित हैं प्रभा..!"

"मैं समझी नहीं..?"

"तुम्हारे मना करने पर आशीष और शशांक के घरवालों को भी एहसास हुआ कि यह घूमने का सही समय नहीं है। उन्होंने भी उन लोगों को मना कर दिया था..! विकास ने फोन पर हुई सारी बातें बताईं।

"थैंक गॉड..वो लोग भी सुरक्षित हैं।अब तो आप नाराज़ नहीं हो ना..? प्रभा ने मुस्कुराते हुए पूछा।

"नो डियर अब जब तक तुम नहीं कहोगी,हम कहीं घूमने का प्लान नहीं करेंगे..! विकास बोला।

"मैं नहीं पापा जी!वो ही कह गए थे कि बारिश में कहीं भी घूमने गए तो मुझसे बुरा कोई नहीं होगा और विकास को भी समझा देना...! प्रभा हँसते हुए बोली।

"क्या..? ओह तभी मैं सोचूं तुम इतनी समझदार कबसे हो गई..?यह सुनकर प्रभा हँसने लगी और उसे हँसता देख विकास भी हँसने लगा।

©®अनुराधा चौहान'सुधी'स्वरचित


Thursday, May 5, 2022

ज़िंदगी के बाईस बसंत



"रत्ना आज बहुत जोरों से भूख लगी है।चाय के साथ कुछ स्नैक्स भी ले आना..!"सौरभ ने ऑफिस से आते ही ऑफिस बैग रत्ना के हाथ में देकर टीवी ऑन किया और सोफे पर पसर गया।रत्ना बिना बोले चुपचाप अंदर चली गई।

"ऑफिस और आराम! मैं तो कहीं दिखती ही नहीं?आज मुझे सौरभ से बात करनी ही होगी..! रत्ना बड़बड़ाते हुए चाय और नाश्ता रेडी करने लगी।

"सौरभ चाय..!"

"हम्म रख दो..! रत्ना की ओर देखे बिना सौरभ ने जबाव दिया।

रत्ना ने चिढ़कर रिमोट उठाया और टीवी ऑफ कर दिया।

"यह क्या था..? सौरभ ने गुस्से से पूछा।

"तो क्या करूँ..? मैं पूरे दिन घर में अकेले बोर होती रहती हूँ इसी उम्मीद के साथ कि शाम को तुम आओगे तो हम दोनों कुछ वक्त साथ गुजारेंगे। मगर तुम हो कि तुम आते ही टीवी में नजरें गड़ा लेते हो।क्यों करते हो ऐसा..?

"कभी खुद को ठीक से देखा है..? नहीं देखी तो जाओ और आईने के सामने खुद को देखो ज़रा ?अस्त व्यस्त साड़ी,उलझे से बाल, मुस्कुराहट का तो कहीं नामोनिशान नहीं..? चेहरे पर जब देखो बारह बजे रहते हैं...!सौरभ चिढ़कर बोला।

"तो मेकअप करके बैठूँ..?घर में कौन सज-सँवर होकर बैठता है जरा बताना..?

"क्यों सजना सँवरना गुनाह है क्या..? मैं तुमसे मेकअप पोतने को नहीं कह रहा हूँ। थोड़ा तो खुद पर ध्यान दो। क्या तुम मेरे लिए चेहरे पर मुस्कान नहीं सजा सकती..? क्या वो औरतें नहीं जो ऑफिस से आने के बाद भी अपनी थकान भूलकर हमेशा चेहरे पर मुस्कान लिए रहती हैं ? 

"वही औरतें सज सँवर पाती हैं जिन्हें कोई काम नहीं होता।मैं घर के काम करूँ या शृंगार करूँ..?

"जानता हूँ कितना काम है..! सौरभ धीरे से बोला।

"कुछ कहा तुमने..?

"रत्ना इस बड़े से घर में हम दो ही प्राणी हैं फिर भी तुम्हें समय नहीं मिलता..? तुम्हारी इसी शिकायत पर माँ ने काम वाली भी लगा दी थी पर फिर भी..? छोड़ो जाने दो, तुमसे बहस में कोई नहीं जीत सकता..! सौरभ कपड़े चैंज करने के लिए उठकर कमरे में जाने लगा।

"कामवाली के अलावा भी घर में कई काम होते हैं सौरभ..!अब रत्ना झगड़े के मूड में आ गई थी।

"कहा ना..बात खत्म करो!तुम ही मेहनत करती हो। और जो घर और बाहर दोनों जगह काम करती हैं वो सिर्फ खुद को मेनटेन रखने का ही काम करती हैं।हम मर्दों को भी ऑफिस में काम का कितना प्रेशर रहता है । कभी कभी बॉस की गालियाँ भी सुननी पड़ती हैं।पर फिर भी चेहरे से जताते नहीं और एक तुम रोनी सूरत बनाए रहती हो। रत्ना पहले तुम्हारे चेहरे को देखकर ही सारी थकान दूर हो जाती थी और अब..! सौरभ कुछ सोचकर चुप हो गया।

"और अब क्या..?कह दो दिल में जो जहर भरा है..!रुँआसी रत्ना की आवाज भारी हो गई।

"रत्ना प्लीज़ रोना मत शुरू करना। मैंने जो सच है वही कहा है। पहले तुम्हें शिकायत थी मम्मी और शिल्पा के कारण तुम्हें खुद के लिए समय नहीं मिल पाता इसलिए तुम खुद पर ध्यान नहीं दे पाती।अब तो मम्मी भी नहीं है।शिल्पा की शादी हो गई, मुकुल हॉस्टल में रहकर पढ़ाई पूरी कर रहा है।अब क्या वजह है..? सौरभ ने पूछा।

"सौरभ बढ़ती उम्र के साथ तुम सठियाने लगे हो..? बाइस साल हो चुके हैं हमारी शादी को,याद है या नहीं..? रत्ना ने कहा।

"मुझे सब याद है रत्ना..! जिंदगी के यह बाइस बसंत मुझे पतझड़ से कम नहीं लगे..!

"पतझड़ से क्या मतलब..? क्या तुम इतने सालों से मजबूरी में यह रिश्ता निभा रहे हो सौरभ..? सीधे सीधे क्यों नहीं कहते कि अब मुझसे मन भर गया..? रत्ना रोने लगी।

"बस शुरू हो गया तुम्हारा रोना ..?बस इसलिए मैं कुछ नहीं कहकर खुद को व्यस्त रखता हूँ..!

"मैं ही हमेशा ग़लत होती हूँ क्या..?

मैंने कब कहा तुम ग़लत हो..? मैं तुमसे थोड़ा सा अटेंशन ही तो माँग रहा हूँ।रत्ना सच में मैं तुमसे बहुत प्यार करता हूँ। मैं चाहता हूँ तुम हमेशा फूलों की तरह खिली खिली रहो।

"ऐसे..यह ताने सुनकर..?

ताने नहीं मेरी ख्वाहिश है रत्ना..!अरे बढ़ती उम्र के साथ पति-पत्नि के रिश्ते की खूबसूरती दिन पर दिन निखरती जाती है।मैं हर दिन इसी उम्मीद से घर लौटता हूँ कि आज तुम मुस्कुरा कर मेरा स्वागत करोगी।पर तुम्हारा भावहीन चेहरा देखकर  चुपचाप टीवी देखने लगता हूँ।एक बार पिछले बाइस साल में लौटकर देखो रत्ना तुमने कुढ़न ने ज़िंदगी के कई सुनहरे लम्हों को खो दिया है...!इतना कहकर सौरभ अपने कमरे में चला गया।

"सौरभ..! रत्ना ने हाथ बढ़ाकर रोकना चाहा पर नहीं रोक पाई।आज पहली बार तो नहीं,यह बात सौरभ कई बार कह चुके हैं। क्या सच में मैं ही जिम्मेदार हूँ..? रत्ना बीते लम्हों में साथ बिताए खुशी के लम्हे ढूँढने लगी।

सौरभ और रत्ना की अरेंज मैरिज थी। सौरभ जब पहली बार रत्ना से मिला तो उसे देखते ही हाँ कर दी थी।

"इस रिश्ते के लिए मेरी हाँ है। और आपका मेरे बारे में क्या ख्याल है..?सौरभ ने पूछा।

जबाव में रत्ना ने शरमाते हुए हाँ में सिर हिला दिया।

"रत्ना मम्मी को अर्थराइटिस की प्रॉब्लम है। अभी तो शिल्पा है तो उन्हें सहारा मिल जाता है। तुम सब सँभाल लोगी ना..? मैं मम्मी और शिल्पा छोटी सी फैमिली है मेरी..! सौरभ ने धीरे से कहा।

"आपकी फैमिली अब से मेरी भी फैमिली है सौरभ जी..! रत्ना का जवाब सुनकर सौरभ ने बाहर आकर मम्मी के कान में अपना निर्णय बता दिया।

"सौरभ ने हाँ कर दी भाईसाहब,अब बिटिया से भी पूछ लीजिए..! मालती ने कहा।यह सुनकर रत्ना की माँ अंदर गईं और आकर सबको मिठाई खिलाने लगी।

यह लीजिए मुँह मीठा कीजिए समधिन जी। हमारी बिटिया ने हाँ कर दी..!बड़ो के आशीर्वाद के साथ रत्ना और सौरभ शादी के पवित्र बंधन में बँध गए।

अभी हँसी-खुशी छः महीने ही बीते थे कि रत्ना ने सौरभ को हर बात के लिए टोकना शुरू कर दिया।

"शिल्पा आज घर पर कैसे..?

भैया वो मम्मी का दर्द बढ़ गया था तो उन्हें डॉक्टर के पास ले जाने के लिए जल्दी घर आ गई..!

"ठीक है मैं भी चलूँ..?

"नहीं भैया आप आराम करो, मैं दिखा लाती हूँ..! शिल्पा मालती को लेकर अस्पताल के लिए निकल गई।सौरभ ने रत्ना को छेड़ने के लिए पीछे से जाकर रत्ना को बाँहों में जकड़ लिया।

"अरे अरे पागल हो गए हो क्या..? रत्ना ने सौरभ को दूर हटाते हुए कहा।

सौरभ रोमांटिक मूड में था तो रत्ना की बेरुखी अनदेखा कर फिर से अपने करीब खींचने लगा।

"सौरभ मुझे इसके अलावा भी कई सारे काम हैं। अभी यह लोग आते ही खाना माँगेंगे। सुबह से रात हो जाती पर काम ही नहीं खत्म होता। तुम शिल्पा से कहो अपना टिफिन खुद बनाया करें। मैं कोई नौकरानी नहीं जो सुबह जल्दी उठकर उसके लिए टिफिन बनाऊँ..!

"कैसी बातें कर रही हो रत्ना..?क्या हुआ अगर दो परांठे उसके लिए भी बना दिए..? मेरे लिए तो बनाती हो ना..? तुम से किसी ने कुछ कहा क्या..? सौरभ ने पूछा।

"सौरभ कोई क्यों कुछ कहेगा? सबकी जरूरत जो पूरी हो रही है..!

"रत्ना क्यों थोड़े से काम के लिए सबके मन में खटास पैदा करना चाहती हो। तुम्हें पता है ना दो महीने बाद शिल्पा की शादी है..?

"हाँ तो ..?ससुराल में तो उसे अपना काम खुद करना ही होगा।तो अभी से क्यों नहीं..? रत्ना और सौरभ की झड़प चालू थी।माँ की फाइल घर पर छूट गई थी। उसे लेने आई शिल्पा दोनों की बहस सुनकर चुपचाप चली गई।

"अच्छा अभी मूड मत खराब करो यार। मैं मौका देखकर बात करता हूँ शिल्पा से,अब खुश..? सौरभ रत्ना को गले लगाते हुए बोला।

"दूर हटो सौरभ,कहा ना अभी नहीं..! रत्ना रसोई में बर्तन साफ करने लगी। सौरभ चुपचाप टीवी देखने लगा। शिल्पा किसी से कुछ कहे बिना सुबह उठते अपना और सौरभ का टिफिन बनाने लगी।

"शिल्पा कुछ हुआ है क्या..?

"कहाँ माँ..?

"रत्ना की जगह आजकल तुम टिफिन बनाने लगी..?

"माँ लेट न हो जाऊँ इस चिंता में जल्दी नींद खुल जाती है तो टिफिन बना लेती हूँ। वैसे भी मेरे जाने के बाद तो भैया को भाभी के ही हाथ का बना टिफिन ले जाना है..!

"हम्म वो तो है..! शिल्पा की बात सुनकर मालती भावुक होकर बोली। रत्ना टिफिन का काम कम होने से फिर खुश रहने लगीं।दो महीने बाद शिल्पा भी शादी करके अपने ससुराल चली गई। रत्ना की फिर से सुबह उठकर वही दिनचर्या शुरू हो गई।

एक शाम किचन में आकर"रत्ना मेरे साथ कमरे में चलो ।मैं  तुम्हारे लिए कुछ लाया हूँ..! सौरभ ने रत्ना के गालों से चिपकी लट पीछे करते हुए कहा।

"मेरे पास अभी टाइम नहीं है।यह सिंक देखो,बस बर्तन बाहर गिरने ही वाले हैं। इन्हें साफ करूँ या तुम्हारे साथ चलूँ..? रत्ना तुनक कर बोली।

"अरे यार मूड मत खराब करो। एक बार चलो ना,सच गिफ्ट देखोगी सब थकान दूर हो जाएगी..! सौरभ ने शिल्पा की कमर में हाथ डालकर कहा।

"फिर वही बात..?कितनी बार कहा एक नौकरानी रख लो तो मेरा कुछ काम कम हो जाए पर नहीं..! रत्ना ने सौरभ को बिना देखे बर्तन साफ करने शुरू कर दिए। सौरभ ने कमरे में आकर रत्ना के लिए खरीदे झुमके और गजरा दोनों साइड टेबल पर रख दिए और कपड़े बदलकर मम्मी के पास बैठ गया।

"सौरभ क्या हुआ..? मालती सौरभ का उदास चेहरा देखकर सब समझ गई थी।

"कुछ नहीं मम्मी..बस थोड़ी थकान हो रही है..!

"अच्छा सुन..! मैं कई दिनों से नोटिस कर रही हूँ कि बहू काम के कारण तेरी ओर ध्यान नहीं दे पा रही इसलिए मैंने आज खन्ना जी की मेड से बात कर ली है ।कल से दोनों टाइम के बर्तन और झाड़ू पोंछा कपड़े सब कर जाया करेगी..!

"आप सब जानती हैं मम्मी ..? सौरभ ने चौंककर पूछा।

" हम्म मालती ने हाँ में सिर हिलाया। सौरभ वैसे भी रत्ना माँ बनने वाली है।उसे आराम की जरूरत है। मुझे तो यह दर्द न चैन से जीने देता है और न मरने, बच्चे के जन्म के समय बाई से मुझे सहारा हो जाएगा..!

"ठीक है मम्मी..!मालती की तकलीफ़ बढ़ती जा रही थी। घुटनों के दर्द की वजह से चलना दुश्वार हो रहा था। मुकुल के जन्म की खुशी ज्यादा दिन नहीं ठहरी। मुकुल के जन्म के छः महीने बाद रत्ना मायके गई थी। एक दिन बाई काम पर नहीं आई तो मालती अपने कपड़े धोकर सुखाने के लिए बाथरूम से निकली तो फिसलकर गिर पड़ी।

"सौरभ...!मालती जोरों से चिल्लाई पर घर में कोई नहीं था जो उनकी आवाज सुनता। सिर में गहरी चोट लगने से खून बहने लगा था।दर्द से कराहती मालती बेहोश हो गई।

"आज मम्मी पहली बार घर में अकेली हैं। मैं एक फोन कर लेता हूँ..! सौरभ लंच करने के बाद मालती का फोन ट्राई करने लगा। उसे क्या पता कि घर में मालती बेहोश पड़ी हुई है।

"मम्मी फोन नहीं उठा रहीं..? सौरभ मालती के फोन ना उठाने पर टेंशन में आ गया।"खन्ना आँटी को बोलता हूँ..!

"आँटी मम्मी आपके यहाँ हैं..?

"नहीं सौरभ.. मालती यहाँ नहीं आई। थोड़ी देर पहले मैं भी सरसों का साग और मक्के की रोटी लेकर गई थी तुम्हारे यहाँ पर शायद वो घर पर भी नहीं है..?

"नहीं आँटी मम्मी अकेले कहीं नहीं जाती। मैं अभी घर आ रहा हूँ ।देखता हूँ क्या बात है..!घर के मेन डोर तीन चाबियाँ थीं जिसमें से एक सौरभ घर में रखता था।एक अपने पास और एक रत्ना को मायके जाते समय दे दी थी।

"मम्मी...!ताला खोल सौरभ मालती के कमरे में आया तो खून से लथपथ मालती को देखकर उसकी चीख निकल गई।

"क्या हुआ सौरभ..? अरे यह क्या हुआ आँटी को ? सौरभ तुम आँटी को लेकर बाहर आओ मैं गाड़ी निकालता हूँ। विक्की ने कहा।

"मम्मी आपको कुछ नहीं होगा। मैं आ गया हूँ ना!बस अभी हम अस्पताल चलेंगे.. मम्मी आँखें खोलो.. सौरभ रोते हुए मालती को उठाकर बाहर भागा। विक्की ने तुरंत गाड़ी निकाली और दोनों मालती को अस्पताल के लिए लेकर निकल गए। मिसेज खन्ना ने शिल्पा को फोन कर सब बता दिया और शिल्पा ने रत्ना को फोन कर दिया।

"सौरभ हिम्मत रखिए.. मम्मी को कुछ नहीं होगा..! रत्ना ने सौरभ के कंधे पर हाथ रखते हुए कहा तो सौरभ फफककर रो पड़ा।

"मेरी ग़लती के कारण मम्मी की यह हालत हो गई रत्ना। आज मेड नहीं आएगी यह पता होने पर भी मैं उन्हें अकेला छोड़ ऑफिस चला गया। मम्मी का यह हाल मेरी ग़लती से हुआ है..! सौरभ ने रोते हुए कहा।

"भैया..!!

"शिल्पा तू..? शिल्पा को देखते ही सौरभ उठकर उससे लिपट गया।

"भैया खन्ना आँटी ने फोन कर सब बता दिया है। मम्मी ठीक तो हो जाएंगी ना भैया..?

"पता नहीं अंदर क्या चल रहा है..? मम्मी रिकवर कर रही हैं या नहीं..?मेरा दिल बैठा जा रहा है..! सौरभ ने कहा।

तभी आइसीयू का दरवाजा खुला और डॉक्टर बाहर निकल कर आए।"सॉरी हमने उन्हें बचाने का हर संभव प्रयास किए  पर खून अधिक बह जाने के कारण उन्हें बचा नहीं पाए।यह सुनते ही सौरभ और शिल्पा फूट-फूटकर रो पड़े। मालती के तेरहवी तिथि के बाद शिल्पा अपनी ससुराल लौट गई।अब रत्ना भी सौरभ को समय देने लगी थी।बस कुछ समय सौरभ और रत्ना के बीच सब ठीक रहा।

"रत्ना कहाँ चलीं ?चाय रखकर वापस जाती रत्ना का हाथ पकड़कर सौरभ बोला।"यार कभी तो मेरे पास भी बैठ लिया करो..!

"अभी नहीं सौरभ.!! अभी मुझे मुकुल का होमवर्क पूरा करवाना है।खाना भी बनाना है। उसे खाना खिलाकर समय पर सुलाना है..!

"बस पाँच मिनट यार!! अभी तो बस सात बजे हैं..? तुम्हारे साथ वक्त बिताना अच्छा लगता है रत्ना। सौरभ ने कहा।

"तो ट्यूशन लगा दो मुकुल की..? तुम्हें क्या पता उसे होमवर्क कराने में कितनी मेहनत करनी पड़ती है..?

"ट्यूशन..?अभी पाँचवी क्लास में है बच्चा और उस पर ट्यूशन की भी बोझ डाल दूँ..?जाओ मत बैठो, तुम होमवर्क कराओ जाओ..! सौरभ अखबार उठाकर पढ़ने लगा। ऐसे ही समय पंख लगाकर गुजरता रहा।कभी खुशी से तो कभी मजबूरी और कभी जबरदस्ती दोनों अपनी जरूरतें पूरी करते रहे।

"रत्ना यह देखो क्या लाया हूँ..!

"क्या है..? साड़ी अरे वाह..!

"रत्ना आज हमारी शादी को अठारह साल पूरे हो गए तो मैंने सोचा आज कहीं घूमने चलते हैं।सारा दिन साथ बिताएंगे और खाना भी बाहर खाएंगे..! सौरभ ने कहा।

"वाह कितनी सुंदर है। बाहर..? सौरभ मैं तो तुम्हारे साथ आज माँ के यहाँ बसंत नगरी जाने का प्लान बनाए थी।कल मुकुल हॉस्टल जा रहा है इसलिए माँ मुकुल के साथ कुछ समय बिताना चाहती हैं।मैंने माँ को फोन करके बता दिया था कि हम वहीं पार्टी करेंगे तो भाभी ने हमारी शादी की सालगिरह के सेलीब्रेशन के लिए बहुत सारी तैयारियाँ कर रखीं हैं..!

"रत्ना तुम जानती हो ना यह दिन मेरे बहुत खास है?इसे मैं सिर्फ तुम्हारे साथ बिताना चाहता था।तुम्हें एक बार तो मुझसे पूछना चाहिए था..! सौरभ धीरे से बोला।

"सॉरी सौरभ..अब मना कैसे करूँ..?चलो ना चलते हैं..! रत्ना सौरभ के गले में बाहें डालकर बोली। सौरभ को तो बस रत्ना का प्यार चाहिए था।वो उसकी प्यार भरी मनुहार ठुकरा नहीं सका और हाँ कर दी।

"कैसी लग रही हूँ..? रत्ना सौरभ की दी हुई साड़ी पहन कर तैयार हो गई।

"बहुत ज्यादा सुंदर..!!रत्ना मैं तुम्हें हमेशा ही इस रूप में देखना चाहता हूँ। तुम ऐसे ही बनठन कर रहा करो..! सौरभ खुश होकर बोला।

"ऐसे..? सौरभ घर के काम से फुर्सत कहाँ मिलती है..? अभी मुकुल आगे की पढ़ाई करने हॉस्टल जा रहा है।तब काम कम हो जाएगा तो तुम्हारी यह इच्छा भी पूरी कर दूँगी।चलें..?

"हम्म चलो..मुकुल क्लास से वहीं आने वाला है..?

"हाँ मैंने उसे सुबह ही बता दिया बस तुम्हें ही बताना भूल गई थी..! रत्ना ने दरवाजा लॉक किया और सौरभ ने गाड़ी बाहर निकाल ली, दोनों बसंत नगरी के लिए निकल गए।रात भर खूब एंजॉय किया। सौरभ मायके में रत्ना के चेहरे की चमक देखकर हतप्रभ था। मुकुल दूसरे दिन अपने मामा के साथ दिल्ली के लिए निकल गया।बेटे की याद में रत्ना उदास रहने लगी।

"रत्ना यह क्या शक्ल बनाए रहती हो..? मुकुल तो अब पहले की तरह हमारे साथ रहे,यह मुमकिन नहीं। तुम्हें खुद को बदलना होगा।अभी पढ़ाई, फिर नौकरी कहाँ ले जाए ?या फिर विदेश..? अरे यार खुश रहो, मुस्कुराओ,देखो ज़िंदगी कितनी खूबसूरत है..!

"आपको तो मेरी शक्ल से ही चिढ़ है..? मुकुल अपनी माँ को छोड़कर कहीं नहीं जाने वाला। देखना पढ़ाई पूरी होते ही यहीं नौकरी ढूँढेगा..! सौरभ कुछ नहीं बोला।

तभी डोरबेल बज उठी और उसकी आवाज से रत्ना ख्यालों से बात निकल आई। रत्ना ने उठकर दरवाजा खोला तो बाहर मिसेज खन्ना खड़ी थी।

"अरे आँटी आप ? आइए अंदर आइए।आप कहीं बाहर जा रही हैं क्या..? मिसेज खन्ना को तैयार देख रत्ना ने पूछा।

"नहीं क्यों..?

"वो आपको तैयार देखा बस इसलिए..!

"मैं तो हमेशा ही ऐसे ही रहती हूँ,कभी गौर नहीं किया क्या ? मैं यह प्रसाद देने आई थी। विक्की वैष्णो देवी के दर्शन करके आया है।

"पैंसठ साल की उम्र में खन्ना आँटी खुद को इतना मेनटेन रखती हैं तो मैं क्यों नहीं..? रत्ना ने खुद को जाकर आईने में निहारा।उलझे और अधपके बाल,अस्त व्यस्त साड़ी, खन्ना आँटी के मुकाबले अपने आप को देख पैंतालीस की उम्र में साठ वाली फीलिंग आने लगी।

"सही तो कहते हैं सौरभ, मैंने ज़िंदगी के बाईस बसंत कुढ़-कुढ़कर निकाल दिए।सच कैसी लगने लगी हूँ मैं..? मैंने ना तो अपने छोटे से परिवार को सही से सँभाला न कभी खुद की केयर की। रत्ना ने सौरभ का हेयर कलर उठाया और अपने बालों को कलर कर सूखने छोड़ दिया और रात का खाना बनाने लगी।

"खाना तो बन गया।अब बाल धोकर तैयार हो जाती हूँ फिर सौरभ को जगाऊँगी।सौरभ रत्ना की बहस से बचने के लिए कमरे में आकर सो गया था।

रत्ना ने बाल सुखाकर खुद को आईने में देखा तो अपने चेहरे में फर्क देखकर मुस्कुरा उठी। उसने बालों को सँवारकर जूड़ा लगाया और होंठों पर हल्की सी लिपस्टिक लगाकर साड़ी का पल्लू ठीक किया ही था कि "यह हुई ना बात.. वाह यह है मेरी असली रत्ना..! सौरभ ने आकर उसे बाहों में जकड़ लिया।

"सौरभ छोड़िए ना..! रत्ना शरमाते हुए बोली।

"बस यही छोटा सा बदलाव चाहता था रत्ना।देखो कोई है जो खूबसूरती में तुम्हें टक्कर दे सके..?लगता है इस बार बसंत समय से पहले ही अपनी महक बिखेरने लगा..!

"हाँ सौरभ मैं तुम्हारी बातों की सच्चाई समझ गई। मैं पिछले बाईस बसंत की भरपाई तो नहीं कर सकती पर अब आने वाला हर बसंत ऐसे ही महकेगा..! 

तय कर लिया है मैंने

सदा रंग प्रेम है रंगना

कभी ना लागे अब फीका

खुशियों का यह अँगना

रिश्ता तेरा मेरा..रिश्ता तेरा मेरा.. गुनगुनाते हुए रत्ना सौरभ के सीने से लग गई।

©® अनुराधा चौहान'सुधी'स्वरचित







Monday, April 11, 2022

माँ का दर्द

 

सुबह पाँच बजे घड़ी के अलार्म सुनते ही बिस्तर छोड़ते हुए रमा ने नीलू को प्यार भरी नजर से देखा और सिर पर हाथ फेरकर कमरे से बाहर निकल गई।

सास-ससुर और ननद अभी गहरी नींद सो रहे थे।रमा नहाकर सीधे रसोईघर में चली आई और सुबह का नाश्ता और सास-ससुर के लिए दोपहर का खाना बनाकर अपना और ननद नुपुर का टिफिन पैक करके सबको चाय देने लगी।

"नुपुर उठो चाय पी लो..!"

"हम्म भाभी रख दो..! नुपुर ने आँखें खोले बिना जबाव दिया।

"रख दो नहीं,जल्दी से उठ जाओ वरना लेट हो जाओगी..! मैं माँ पापा को चाय देकर निकल जाऊँगी। मैंने तुम्हारा टिफिन पैक कर दिया है तो लेती जाना..!

"ओके भाभी..! नुपुर ने उठते हुए कहा।

"माँ आपकी और पापा की चाय..! मैं जा रही हूँ,आप लोगों के लिए खाना बनाकर रख दिया है।

"हम्म रख दो और जाओ..! सुहासिनी धीरे से बोली।

"नीलू मेरा प्यारा बच्चा..उठ चल नानी के पास.. मम्मा को देर हो रही है।

"ओ नो मम्मा मुझे अभी और सोना है..! नीलू ठिनककर चादर में लिपट गई।

"प्लीज़ बच्चा.. मम्मा लेट हो गई तो उसे भी पनिशमेंट मिलेगी जैसे आपकी टीचर उधम मचाने वाले बच्चों को देती है।आज आपका टेस्ट भी है ना..?

"आज उसका मन नहीं तो रहने दो ना यहीं..! सुहासिनी ने बाथरूम की ओर जाते हुए कहा।

"माँ यहाँ रहेगी तो पूरा दिन आपको तंग करेगी।चल बच्चा देर हो रही है..!

"नहीं परेशान करूँगी मम्मा..! नीलू ने उठते हुए कहा।रमा ने नीलू की बात अनसुनी करते हुए स्कूल ड्रेस बैग में रखी और नीलू को गोद में लेकर निकल गई। सुहासिनी खिड़की में खड़ी उसे जाते देख बड़बड़ाने लगी।

"अब तो रमा के मायके में सब ठीक हो गया फिर यह रमा क्यों नीलू को मायके छोड़ जाती है। इसके कारण पूरे मोहल्ले में मेरी ही चर्चा रहती है कि कैसी सास है जो अपनी पोती को नहीं सँभाल सकती...!"सुहासिनी बड़बड़ाते हुए प्रकाश से बोली।

"भाभी की क्या ग़लती मॉम..? आपने ही नीलू को सँभालने के लिए मना किया था कि मेरी तबियत ठीक नहीं रहती,अपनी बेटी को अपनी माँ के यहाँ छोड़ो फिर ऑफिस देखो।क्यों डैड..?गलत कह रही हूँ ?यही कहा था ना मॉम ने..? नुपुर की बात पर प्रकाश ने कोई प्रतिक्रिया नहीं दी।

"डैड आप हर बार चुप क्यों हो जाते हो..? चुप रहने की जगह कभी तो माँ को समझाया कीजिए..? और मॉम आप? अब आपको ही उस नन्ही बच्ची को सँभालना भी पसंद नहीं। भैया के सामने तो नीलू पर जान लुटाती थीं आप ?

"देख नूपुर सुबह सुबह स्मुझसे बहस तो कर नहीं..! सुहासिनी उठकर गमलों में पानी डालने लगीं।

मॉम भैय्या जिंदा थे तब तो आप कितना प्यार करती थीं भाभी से और नीलू से,अब क्या हुआ..? पिछले दो साल से भाभी ही हम सबको इस घर का बेटा बनकर सँभाल रही हैं। आप भी तो दादी का फर्ज निभाइए..?

"तुझे आज ऑफिस नहीं जाना ?बोला न बहस मत करो।बड़ी आई भाभी की चमची।मेरी तो किस्मत ही खराब है जो इस कोरोना ने काल बनकर मेरा प्यारा बेटा छीनकर हमसे सारी खुशियाँ छीन ली और बेटी को अपनी माँ का दर्द नहीं दिखता।हमारा वंश ही मिट गया..!सुहासिनी की आँखों से आँसू छलक पड़े।

"नुपुर क्यों माँ को दुखी कर रही हो..?वो जैसी भी अच्छी है। तुम तो कम से कम अपने और उसके रिश्ते का लिहाज करो।वो माँ है तुम्हारी..! प्रकाश सुहासिनी को रोते देख चुप न रह सके। प्रकाश को नाराज होते देख नुपुर वहाँ से चुपचाप चली गई।

एक गली छोड़कर ही रमा की माँ का घर था।रमा और पियूष एक ही कम्पनी में काम करते थे। वहीं से उनकी पहचान हुई जो जो प्यार में बदल गई।बाद में दोनों ने परिवार वालों की सहमति से शादी कर ली। जिसमें सबकी सहमति थी सिवाय सुहासिनी के।उन्हें रमा नहीं अपनी भाभी की भतीजी अलका बहू के रूप में चाहिए थी।

"रमा मेरी माँ तुमसे ज्यादा देर तक नाराज़ नहीं रहेंगी।वो ऊपर से कड़क पर अंदर से बहुत नर्म दिल हैं। तुम्हें अपना भी लेंगी तो भी ऐसी ही रहेंगी। और एक बात,वो जल्दी अपने जज्बात किसी को दिखाती नहीं।

"पियूष माँ सिर्फ माँ होती है। तुम देखना जल्दी ही वो मुझे दिल से आशीर्वाद देंगी..!

"जरूर देंगी रमा..! तुम हो ही इतनी अच्छी, एक न एक दिन उन्हें भी यह एहसास हो जाएगा कि उनके बेटे ने उनके लिए हीरा चुना है..! पियूष ने रमा को गले लगाते हुए कहा।

शादी के बाद सब बहुत अच्छा चल रहा था।घर में एक नन्ही परी भी आ गई थी। सुहासिनी भी अपनी बहू और पोती के साथ ज़िंदगी का आनंद ले रही थीं। एक दिन पियूष बीमार हो गया। उसने खुद को क्वारंटाइन कर लिया क्योंकि तब तक कोरोना ने अपने पैर पसार लिए थे।

"पियूष प्लीज़ डॉक्टर से दवा ले लिजिए कहीं कोविड का इंफेक्शन तो नहीं हो गया..?रमा चिंतित होकर बोली।

"रमा तुम बेकार ही चिंता कर रही हो। मुझे कुछ नहीं हुआ बस मामूली बुखार है..!"पियूष के लगातार गिरते स्वास्थ्य को देखकर रमा मन ही मन डर रही थी।प्रकाश के समझाने पर भी पियूष नहीं माना तो रमा ने अपने छोटे भाई अमित को फोन करके पियूष की हालत के बारे में बताया।

"जीजू एक हफ्ते से बीमार हैं दी और आप हमें आज बता रही हो..? आप चिंता मत करो दी मैं और पापा अभी गाड़ी लेकर आ रहे हैं और उनके सारे टेस्ट करवाते हैं..! अमित और शर्मा जी पियूष को हॉस्पिटल ले गए और जिस बात का डर था वही हुआ।पियूष को कोविड ही हुआ था।

"दी जीजू को कोविड हुआ है..!

"क्या..? रमा यह सुनकर सिर पकड़कर बैठ गई। पियूष को कोविड..?यह बात जानकर सभी रोने लगे।घर के सभी लोगों का कोविड टेस्ट हुआ पर किसी को भी संक्रमण नहीं हो पाया था क्योंकि पियूष पहले ही क्वारंटाइन हो गया था।

"बहू घबराने की जरूरत नहीं, मैं हूँ ना!सुहासिनी प्लीज़ तुम तो हिम्मत से काम लो, हमारे पियूष को कुछ नहीं होगा। मैं अपनी सारी पूँजी लगा दूँगा पर अपने बेटे को कुछ नहीं होने दूँगा..!कोविड पॉजिटिव सुनकर खुद डरे हुए प्रकाश अपने परिवार को दिलासा दे रहे थे।

पियूष की हालत बिगड़ती जा रही थी।कोविड के कारण पियूष के फेफड़ों में बहुत अधिक संक्रमण फेल गया था जिस वजह से उसे साँस लेने में दिक्कत होने लगी थी। डॉक्टरों की लाख कोशिशों के बाद भी उसे बचाया न जा सका।रमा की खुशियों को कोरोना महामारी ने निगल लिया था।

अभी एक हफ्ता भी नहीं हुआ कि एक दिन.."क्या कह रही हो पीहू..? अमित और पापा भी संक्रमित हो गए ?हे भगवान यह सब हमारे साथ ही होना था क्या..?अभी पियूष की चिता की आग ठंडी भी नहीं हो पाई थी कि रमा के पिता और भाई भी हॉस्पिटल में एडमिट हो गए।

"क्या हुआ भाभी..? नुपुर रमा की आवाज सुनकर उसके कमरे में चली आई।

"नुपुर..रमा रोते हुए नुपुर से लिपट गई।

"भाभी आप रो रहे हो..?

"नुपुर पियूष को हॉस्पिटल ले जाने और एडमिट करने तक अमित और पापा पियूष के संपर्क मे थे।इस वजह से वो भी संक्रमित हो गए..!

"क्या..? नुपुर भी यह सुनकर घबरा गई।रमा का परिवार अभी इस संकट की घड़ी से उभरा भी नहीं था कि अमित और शर्मा जी के कोविड पॉजिटिव होने से फिर सब दुखी हो गए।

"मैं माँ के पास जाऊँ माँ..?रमा ने सुहासिनी से पूछा।

"नहीं कोई जरूरत नहीं..! पियूष की जरा-सी लापरवाही ने आज दोनों परिवारों को इतने बड़े संकट में डाल दिया।वो तो हमें ज़िंदगी भर का दर्द देकर चला गया।पर अब कोई लापरवाही नहीं, नीलू अभी तीन साल की छोटी-सी बच्ची है उसे देखो..!कड़क लहजे में इतना कहकर सुहासिनी अपने कमरे में चली गईं।

"मॉम सही ही कह रहीं हैं भाभी..! इतना कहकर नुपुर भी वहाँ से चली गई।इस विकट स्थिति में मायके वालों का सहारा न बन पाने की पीड़ा से रमा के आँसू छलक पड़े।पीहू और कांता जी को हल्के लक्षण थे तो दोनों जल्दी स्वस्थ हो गए पर अमित और शर्मा जी भी काल की भेंट चढ़ गए।रमा पर दुखों का पहाड़ टूट पड़ा। वहीं कांता किस्मत की दोहरी मार से डिप्रेशन में चली गईं।

रमा इस हालत में उन्हें अकेला नहीं छोड़ सकती थी तो उन्हें कुछ दिनों के लिए अपने घर ले आई।कांता की हालत देखकर सुहासिनी ने भी उसके फैसले पर कोई प्रश्न नहीं उठाया।

"बहू अब कैसे क्या होगा..? मेरी तो सेविंग भी खत्म हो गई..!रमा से बात करते हुए प्रकाश दुःखी हो रहे थे। अभी तो नीलू का भी एडमिशन कराना है।समधिन जी और पीहू की जिम्मेदारी, नुपुर के एम बी ए फाइनल इयर की फीस, उसके  फाइनल एग्जाम जो बाकी हैं..!

"पापा थोड़े दिन की तकलीफ़ है फिर सब ठीक हो जाएगा। पापा हम दोनों ने ही नीलू के जन्म के बाद से उसके भविष्य के लिए अलग से सेविंग शुरू कर दी थी।तीन साल की बचत में हमारे पास इतना बैलेंस है कि उसमें नुपुर की फीस भी भर जाएगी और नीलू की एडमिशन भी, फिर मेरी तनख्वाह तो है ही,आप चिंता मत करिए सब ठीक हो जाएगा..!

"बेटा तुम अकेले कैसे मैनेज करोगी..?"

"पापा अकेली कहाँ..?यह नुपुर का लास्ट सेमेस्टर है। उसके बाद उसे भी जल्दी ही अच्छी जॉब मिल जाएगी। फिर देखना सब ठीक हो जाएगा..!रमा ने प्रकाश को सांत्वना देते हुए कहा।

"दी..आपके साथ रहते हुए छः महीने हो गए।माँ अब पूरी तरह से ठीक हो चुकी हैं।अब हमें अपने घर चले जाना चाहिए..!

"क्यों यहाँ कोई तकलीफ़ है..?रमा ने पूछा।

 "नहीं दी..यहाँ कोई तकलीफ़ नहीं,अब स्थिति काफी हद तक सामान्य हो गई है।सोच रही हूँ अपनी पढ़ाई के साथ साथ ऑनलाइन ट्यूशन शुरू कर दूँ। आप कब तक हम सबको अकेले सँभालती रहेंगी.. ?

"क्यों बेटा होती तो नहीं सँभालती..?रमा बोली।

"बेटा पीहू सही कह रही है। फिर बेटी की ससुराल में हमेशा तो यह नहीं सकते। तेरी हिम्मत देखकर अब हमें भी हालात का सामना करने की हिम्मत आ गई है..! कांता ने कहा।

"माँ..?

"जाने दो बहू..जो सुकून इन्हें वहाँ मिलेगा वो यहाँ कहाँ? वैसे भी अपना घर अपना ही होता है।पीहू भी बड़ी है वो सब सँभाल लेगी।और फिर घर दूर कहाँ जाना है..? कभी कभी तुम भी चक्कर लगा आना..!सुहासिनी बोली तो रमा चुप हो गई। पीहू और कांता अपने घर रहने चले गए।

"मॉम दरवाजा बंद कर लो, मैं ऑफिस जा रही हूँ। नुपुर की आवाज सुनकर सुहासिनी सोच के दायरे से बाहर निकली और उठकर बालकनी में चली गईं।

                     " नानी..! नीलू दौड़कर नानी से लिपट गई।

"आ गई मेरी लाडो..!कांता ने पौधों में पानी डालना छोड़ नीलू को गोद में उठा लिया।

"नानी मैं भी डालूँ पानी..?"

"हाँ हाँ क्यों नहीं,जाओ मैं पानी चालू करती हूँ..!कांता ने नल धीमा चालू कर दिया और नीलू पौधों में पानी डालने लगी।

"माँ पीहू को कहना आज से नीलू के एग्जाम है तो इसे ड्रेस पहनाकर ऑनलाइन बैठाए। और इसमें इसका टाइमटेबल है तो..."अरे दीदी मुझे सब पता है। मैं ही दिन भर पढ़ाती और खिलाती हूँ..!रमा की आवाज सुनकर पीहू भी लॉन में आ गई थी।

"ओके बाबा सॉरी..चलती हूँ माँ..!"

"बेटा ऐसा कब तक चलेगा..?"

"मतलब..? मैं कुछ समझी नहीं..?

"बेटा गलत मत समझना।हम नीलू को सँभालने के विषय में नहीं कह रहे और न कह सकते हैं क्योंकि नीलू में हम लोगों की जान बसती है।पर जो लोग तेरी बच्ची नहीं संभाल सकते, उनके साथ रहने का क्या फायदा..? मैं तो कहती हूँ अपना सामान उठा और आजा मेरे पास..!

"माँ यह आप कह रही हो..? पियूष होते तो क्या तब भी आप मुझे घर छोड़ने को कहती..? नहीं ना..?माँ रिश्ते निभाना मैंने आपसे ही तो सीखा है। पापा तो नीलू को सँभालने को तैयार रहते हैं पर उनका बैकबोन का प्रॉब्लम बढ़ गया है इसलिए उन्हें रेस्ट की जरूरत है। आज तो माँ भी उसे घर छोड़ने को कह रही थीं।पर यह उन्हें परेशान कर डालेगी। मैं तो पूरे दिन के लिए चली जाती हूँ अब आप ही बताइए फिर कैसे इसे वहाँ छोड़ दूँ..?

"रहने दे रहने दे, ज्यादा अपनी सास की तरफदारी मत कर, मैं सब समझती हूँ।जब घर से काम करती थीं तब क्या..?तब भी उनके आराम में खलल न पड़े,इसे पूरा दिन यहाँ छोड़ना पड़ता था..! कांता चिढ़कर बोलीं।

"आपको भी तकलीफ़ है क्या..? अगर हाँ तो कल से नीलू को पालनाघर में छोड़ दिया करूँगी..!

"मेरे कहने का यह मतलब नहीं था रमा ।बेटा मेरी बात को गलत मत समझ, मैं तो बस यह कहना चाह रही थी कि सुहासिनी जी मेरी ही उम्र की हैं। फिर भी एक बच्ची को नहीं सँभाल सकती..?पांँच साल की हो गई नीलू, इतनी प्यारी बच्ची को देख पत्थर भी पिघल जाए और तेरी सास तो पता नहीं किस मिट्टी की बनी है। मैं तो कह रही हूँ सब छोड़कर आजा वापस..!

"माँ यह यहाँ आपको परेशान नहीं करती पर वहाँ बहुत उधम मचाती है। इस नटखट को सँभालने में माँ का ब्लडप्रेशर बढ़ जाता है और कुछ नहीं, वरना वो भी नीलू पर जान छिड़कती हैं।अच्छा चलती हूँ, अभी इन सब बातों के लिए मेरे पास समय नहीं है..!!रमा ऑटो पकड़कर ऑफिस के लिए निकल गई।

"दी रुको...! पीहू रमा को आवाज देते हुए बाहर आई तब तक रमा निकल गई।

"क्यों क्या हुआ..? कांता ने पूछा।

"दी जल्दी में सिर्फ ड्रेस दे गईं और बुक्स घर पर भूल गईं।अब कैसे पढ़ाऊँ..?

"तू ले आ जाकर,उस बेचारी को सुबह सुबह बहुत काम रहता है इसलिए भूल गई होगी ?यह छोटे छोटे काम सुहासिनी जी भी कर सकतीं हैं पर करेंगी नहीं..! कांता बड़बड़ाने लगी।

"ठीक है अभी कपड़े चैंज करके जाती हूँ..!यह कहकर पीहू अंदर चली गई।    

                  बाहर हवा अच्छी चल रही थी तो सुहासिनी दरवाजा खुला छोड़ बालकनी में आकर गार्डन में खेलते बच्चों को देखने लगी। प्रकाश भी कुर्सी लेकर उसके पास बैठ गए।

"सुहासिनी बहुत मिस करती हो ना नीलू को..?

"हाँ प्रकाश.. उसके बिना यह घर घर नहीं लगता।शाम को जब तक घर नहीं आ जाती तब तक मेरा दिल उसके लिए तड़पता रहता है।अब कांता जी पूरी तरह ठीक हो गईं हैं।अब रमा को उसे मायके ले जाना बंद कर देना चाहिए..!

"तो तुम कह क्यों नहीं देतीं..?"

"आज भी कहा उससे,पहले भी कई बार कह चुकी हूँ और कैसे कहूँ...?"

"नीलू को कांता जी के पास छोड़ने की बात के पीछे तुम्हारा कितना बड़ा त्याग है यह किसे पता? तुम रमा से मन की बात कहोगी नहीं तो उसे कैसे समझेगा सुहासिनी..? तुमने नीलू को सँभालने को क्यों मना किया,अभी भी यह बात बहू और उसके घरवालों से छुपाने की क्या जरूरत है..?

"क्योंकि मुझे महान नहीं बनना। आपको भी किसी को कारण बताने की कोई जरूरत नहीं कि मैंने कांता जी के अकेलेपन को दूर करने के लिए नीलू को सँभालने से मना किया था। प्रकाश मुझे फर्क नहीं पड़ता कोई मेरे बारे में क्या सोचता है। मैं बुरी तो बुरी सही,पर अब जिस उद्देश्य से मैंने यह निर्णय लिया था वो पूरा हो गया है।तो अब मुझे नीलू का दूर जाना अखरने लगा..!

"जानता हूँ सुहासिनी और तुम पर गर्व भी करता हूँ कि अपने बेटे का दर्द भुलाकर,अपनी लाड़ली पोती को खुद से दूर करके तुमने कांता जी को डिप्रेशन से बाहर आने में बहुत बड़ी मदद की है..!

"माँ हूँ ना..! एक माँ का दर्द दूसरी माँ नहीं समझे तो उसके माँ होने पर धिक्कार है। कांता जी यहाँ ज्यादा रहना नहीं चाहती थीं इसलिए मैंने भी उन्हें जाने से नहीं रोका था।पर अपने घर जाकर फिर से अपने पति और बेटे की याद में रो-रोकर फिर डिप्रेशन में ना चली जाएं इसलिए नीलू की जिम्मेदारी खुद लेने की बजाय उन पर डाल दी ताकि वो व्यस्त रहें..!

"जानता हूँ सुहासिनी..! तुम्हारे इस निर्णय से कांता जी नीलू को सँभालने में व्यस्त रहने लगीं। इससे उनका अकेलापन दूर हुआ और उनकी स्थिति में दिन प्रतिदिन सुधार होता गया और आज वो पूर्णतः स्वस्थ हो गईं हैं..!

"आँटी..!

"पीहू तुम..? इतनी सुबह कैसे..?सब ठीक है..?पीहू की आवाज सुनकर सुहासिनी चौंककर पीछे देखने लगी।

"सब ठीक है आँटी।वो दी आज जल्दीबाजी में नीलू की बुक्स यहीं भूल गईं हैं। मैं जाकर ले लूँ..?

"हम्म जाओ रमा के कमरे से जाकर लेलो..! सुहासिनी धीरे से बोली।

"थैंक यू आँटी..?पीहू सुहासिनी से लिपट गई।

"अरे अरे इसमें लिपटने वाली और थैंक यू कहने वाली क्या बात हो गई...? सुहासिनी इतने सालों में पहली बार पीहू को अपने गले लगने पर आश्चर्यचकित हो गई।

"मेरी माँ का दर्द समझने के लिए थैंक यू आँटी।पर एक बात नहीं समझी आँटी इसमें छुपाने वाली क्या बात थी..? यह बात आप सीधे सीधे दी को बता सकती थीं कि आपने नीलू को माँ के पास छोड़ने का निर्णय क्यों लिया..?

"पियूष के जाने की पीड़ा तो हम तीनों ही झेल रहे थे।पर एक दूसरे की हिम्मत बने रहने के लिए अपने दर्द को दिल में छुपाए थे।रमा तो ऑफिस के काम में व्यस्त हो जाती थी और हम दोनों अकेले पड़ जाते थे। ऐसे में अगर मैं सामने से उसे ऐसा करने को कहती तो वो उलझन में पड़ जाती कि माँ के अकेलेपन का सोचूँ या सास-ससुर के..? इसलिए मैंने ही अपने हाथ पीछे खींच लिए। तुम बताओ रमा सच जानकर क्या करती..?

"दी नीलू को आप लोगों से दूर नहीं रखती,भले ही माँ को ठीक होने में लम्बा वक्त लग जाता। थैंक यू सो मच ऑंटी और साथ में बड़ा वाला सॉरी। सॉरी इसलिए कि हम सब आपके बारे में ग़लत सोचते रहे । हममें से कोई नहीं जानता कि आप हम सबसे बहुत प्यार करतीं हैं..!कहते-कहते हुए पीहू की आँखें भर आईं।

"बस बस ज्यादा लाड़ नहीं..नीलू की क्लास का समय हो रहा है।जाओ कमरे से उसकी बुक्स लेकर और रिवीजन कराओ..! सुहासिनी मुस्कुराकर बोली।

थैंक्स आँटी..!पीहू बुक्स लेकर चली गई।

"किसी ने सच ही कहा है कि सच्चाई और अच्छाई ज्यादा दिन छुप नहीं सकती।सच में आज तुम्हारी अच्छाई सबकी नजर में आ ही गई सुहासिनी..!

"अब चने के झाड़ पर मत चढ़ाइए। मैं अपने चाय बनाने जा रही हूँ आप पियेंगे..? सुहासिनी ने हँसते हुए पूछा तो प्रकाश भी हँस पड़े।दो साल बाद सुहासिनी के चेहरे पर सुकून देख प्रकाश अंदर ही अंदर बहुत खुश हो रहे थे।

©® अनुराधा चौहान'सुधी'स्वरचित

चित्र गूगल से साभार


Monday, March 7, 2022

इतिहास के पन्नों से


एक सितंबर 1939 को जर्मनी की सेनाओं ने अचानक पोलैंड पर आक्रमण कर दिया। हिटलर की सेनाओं ने ये आक्रमण बिना किसी पूर्व चेतावनी के किया था।सवेरा होते ही जर्मन सेना के युद्धक विमानों ने पोलैंड पर हवाई हमले शुरू कर दिए।सुबह नौ बजे राजधानी वॉरसॉ पर हवाई बम बरसने लगे।इसके साथ ही द्वितीय विश्व युद्ध की शुरूआत हो गई।

द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान जर्मन तानाशाह हिटलर और सोवियत रूस के तानाशाह स्टालिन के बीच गठजोड़ हुआ। जर्मन अटैक के 16 दिन बाद सोवियत सेना ने भी पोलैंड पर धावा बोल दिया। दोनों देशों का पोलैंड पर कब्जा होने तक भीषण तबाही मची। 

इस भीषण युद्ध में हजारों सैनिक मारे गए और भारी संख्या में बच्चे अनाथ हो गए।तब 500 पोलैंड की महिलाओं और 200 बच्चों को जर्मनों के अत्याचार से बचाने के लिए एक जहाज पर बिठा दिया गया। पोलैंड के सैनिकों द्वारा जहाज को समुद्र में छोड़ते हुए कप्तान से कहा कि वे उन्हें किसी ऐसे देश में ले जाएं जहाँ उन्हें आश्रय मिल सके।उनका देशवासियों का आखिरी संदेश था "अगर हम जीवित रहे तो हम फिर मिलेंगे!"

जहाज के कप्तान 500 शरणार्थी पोलिश महिलाओं और 200 बच्चों से भरे जहाज को लेकर कई यूरोपीय बंदरगाहों,एशियाई बंदरगाहों पर गए,जहाँ उन्हें शरण देने से मना कर दिया गया।जहाज ईरान के बंदरगाह भी पर पहुँचा वहाँ भी उन्हें कोई रहने की अनुमति नहीं मिली।

इसी तरह समुद्र में भटकता-भटकता जहाज भारत पहुंचा और बंबई के तत्कालीन बंदरगाह पर आया तो ब्रिटिश गवर्नर ने भी जहाज को बंदरगाह पर जाने से मना कर दिया।

फिर यह जहाज गुजरात के जामनगर के तट पर जहाज़ रुका। वहाँ के राजा जाम दिग्विजयसिंह जाडेजा ने उनकी हालत देखकर व्यथित हो गए और उन्होंने जहाज को जामनगर के पास एक बंदरगाह पर रुकने की अनुमति दी। उन्होंने न केवल 500 महिलाओं को आश्रय दिया बल्कि उनके बच्चों के पालक पिता बनकर उनको बालाचिरी के एक आर्मी स्कूल में मुफ्त शिक्षा भी दिलवाई।

ये शरणार्थी नौ साल तक जामनगर में रहे। जाम साहब द्वारा उनकी अच्छी तरह से देखभाल की जाती थी। जो नियमित रूप से उनके पास जाते थे और उन्हें प्यार से बापू कहते थे।

राजा दिग्विजय सिंह जी ने उन्हें न केवल आश्रय दिया अपितु उनके बच्चों को आर्मी की ट्रेनिग दी, उनको पढ़ाया, लिखाया, बाद मे उन्हें हथियार देकर पोलेंड भेजा। उन्होंने जामनगर से मिली आर्मी की ट्रेनिग के बलबूते पर देश को पुनः स्थापित किया, आज भी पोलेंड के लोग उन्हें अन्नदाता मानते है।

इन शरणार्थियों के बच्चों में से एक बाद में पोलैंड के प्रधान मंत्री बने। आज भी उन शरणार्थियों के वंशज हर साल जामनगर आते हैं और अपने पूर्वजों को याद करते हैं।

पोलैंड में एक स्कूल का नाम जाम साहेब दिग्विजय सिंह जडेजा के नाम पर रखा गया है। इतना ही नहीं,पोलैंड की राजधानी में कई सड़कों के नाम महाराजा जाम साहब के नाम पर हैं।वहाँ उनके नाम पर पोलैंड में कई योजनाएं चलाई जाती हैं। पोलैंड के अखबार में हर वर्ष महाराजा जाम साहब दिग्विजय सिंह की महानता के बारे में लेख छपते हैं।

आज भी पोलेंड के लोग उन्हें अन्नदाता मानते है, उनके संविधान के अनुसार जाम दिग्विजयसिंह  उनके लिए ईश्वर के समान है। इसीलिए आज भी वहाँ के नेता उनको साक्षी मानकर संसद में शपथ लेते है।यदि भारत मे दिग्विजयसिंहजी का अपमान किया जाए तो यहाँ की कानून व्यवस्था में सजा का कोई प्रावधान नही लेकिन यही भूल पोलेंड में करने पर तोप के मुह पर बांधकर उड़ा दिया जाता है।

वर्ष 2013 में वॉरसॉ में फिर एक चौराहे का नाम 'गुड महाराजा स्क्वॉयर' दिया गया। इतना ही नहीं, महाराजा दिग्विजय सिंहजी जडेजा को राजधानी के लोकप्रिय बेडनारस्का हाई स्कूल के मानद संरक्षक का दर्जा दिया गया। पोलैंड ने महाराजा को अपने सर्वोच्च नागरिक सम्मान कमांडर्स क्रॉस ऑफ दि ऑर्डर ऑफ मेरिट भी दिया।

क्या आप जानते हो आज युक्रेन से आ रहे भारत के लोगो को पोलेंड अपने देश में बिना वीजा के क्यो आने दे रहा ?वो इसलिए कि आज भी पोलेंड जाम साहब के उस कर्म को नही भुला इसलिए आज इस संकट की घड़ी में भारत के लोगो की सभी प्रकार से मदद कर रहा है। 

यह आधुनिक समकालीन इतिहास का एक शानदार पृष्ठ था,जिसे भारत में आज भी बहुत कम लोग जानते हैं!


अनुराधा चौहान'सुधी'


नोट-राजा दिग्विजय सिंह जाडेजा के विषय में जानकारी और फोटो गूगल से ली गई है।