Tuesday, January 10, 2023

नई उम्मीद



सुबह के छः बजे थे। पूजा घर से आती घंटी की आवाज सुनकर शगुन ने अपने आँसूँ पोंछे और चादर से मुँह ढककर सोने का अभिनय करने लगी।

"शगुन बेटा उठो छः बज गए।आज तुम्हें आठ बजे इंटरव्यू के लिए जाना है ना..?"

"जी मम्मा बस पाँच मिनट...!"

"ओके जल्दी आजा, मैं तेरे लिए चाय बनाती हूँ..!"माँ के जाते ही शगुन उठकर तैयार होने चली गई।

"रात भर रो रही थी क्या...? शगुन की आँखें रोने की वजह से सूजी हुई दिखाई दे रहीं थीं।शगुन ने कोई जवाब नहीं दिया चुपचाप नाश्ता करने लगी।

"तुम अब भी उसी के बारे में सोच रही हो? उसने एक महीने में एक भी फोन नहीं किया। अब तो सच को स्वीकार कर लो..!

"उसे शांति से नाश्ता करने दो सरला..!"विजय का तेज स्वर सुनकर सरला चुप बैठ गई।

"मम्मा अन्वी को दूध पिला दिया है।वो अभी एक घंटे और सोएगी आप तन्वी उठे तो उसे भी दूध पिलाकर दवा पिला देना।हो सकता है मुझे आने में देर हो जाए।पापा यह उसकी फाइल,आप देख लेना कौन-सी दवा कितनी और कब देनी है सब इसमें लिखा है...!

"तुम बच्चों की चिंता छोड़ दो और इंटरव्यू पर फोकस करो।इन दोनों का ख्याल रखने के लिए अभी हम दोनों फिट हैं... क्यों सरला...?"

"तेरे पापा सही कह रहे हैं शगुन।आज तू सारी टेंशन बाहर फेंक आ।बेटा ज़िंदगी धूँप-छाँप से भरा रास्ता है।खुशी और ग़म रास्ते के मुसाफिर जैसे।तू सब भुलाकर अब फिर से खुश रहना सीख ले...!"

"कोशिश तो कर रही हूँ मम्मा....!" शगुन अपना पर्स लेकर बाहर निकल गई।

"हमेशा चहकने वाली बच्ची अब कैसी गुमसुम हो गई विजय? काश शगुन ने हमारा कहा माना होता...!"

"बीती बातें भूलकर आगे की सोचो सरला तभी शगुन की मदद कर पाओगी।जो हुआ वो शगुन की नादानी थी।अब उसे नई उम्मीद के साथ जीवन जीने के लिए तैयार करना हमारी समझदारी होगी....!" विजय आहूजा एक बड़ी मल्टीनेशनल कंपनी के सीईओ थे। सरला भी पढ़ी लिखी महिला थी। उन्हें महिलाओं का पढ़-लिखकर घर बैठना पसंद नहीं था इसलिए वो भी साइंस कॉलेज में प्रोफेसर थीं ।

"आज पीछे मुड़कर देखती हूँ तो हमें शगुन की कम हमारी गलती ज्यादा दिखाई देती है विजय..!"शगुन अपने माँ-बाप की इकलौती संतान थी। 

"बच्चों से अत्यधिक प्रेम कभी-कभी विष का रूप लेकर उनका जीवन नष्ट कर देता है सरला। शगुन के साथ यही हुआ।जो चाहा हाजिर, नहीं मिले तो घर सिर पर उठा लेना...! मातापिता की लाडली शगुन हर हाल में अपनी जिद मनवा ही लेती थी।

"हम्म..आप सही कह रहे हो विजय। आपको याद है? जब शगुन ने शशांक के साथ जीवन बिताने का फैसला लिया तो हमने उसे कितना समझाया था।

"सरला..उस पल को कैसे भूल सकते हैं ...!"बच्चियाँ अभी भी सो रही थीं। सरला और विजय पुरानी बातें लेकर बैठे थे।

"शगुन तेरे लिए इतने अच्छे रिश्ते आ रहे हैं और तुम्हें यह शशांक पसंद आया..?

"पापा अब तो शशांक ही मेरी ज़िंदगी है और उसके बिना मैं कुछ नहीं...!

"शगुन.. क्या तुम्हें शशांक की फैमिली के रहन सहन के बारे में तुम्हें पता है ? 

"फैमिली से मुझे क्या करना पापा..? शशांक ने कहा है कि हम दोनों शादी के कुछ दिनों बाद अलग शिफ्ट हो जाएंगे।

"फिर भी शगुन तुम्हें पता होना चाहिए।वो एक ऐसे रूढ़िवादी ब्राह्मण परिवार से ताल्लुक रखता है।जहाँ आज भी पुराने नियम फॉलो किए जाते हैं। हर किसी को चार बजे बिस्तर छोड़ने पड़ते हैं।बिना नहाए कोई रसोईघर में कुछ छू नहीं सकता।इसलिए वहाँ चाय भी जल्दी नहीं बनती।यहाँ तुम्हें बेड टी न मिले तो सुबह नहीं होती।ऐसे परिवेश में जीवन बिताना कैसे आसान होगा बच्चे..?

"वो हम दोनों मैनेज कर लेंगे पापा। मुझे शशांक ने यह सब पहले ही बता दिया है।उसने कहा है वो मेरी आदतें जानता है। उसने सबको मेरी आदतें बता दी हैं।वो मुझे कभी कोई तकलीफ़ नहीं होने देगा..!

"यह सब झूठ है बेटा।पहले सब बड़ी बड़ी बाते करते हैं। यह तो बाद में पता चलेगा उस संयुक्त परिवार में तुम्हें कितना स्पेशल ट्रीटमेंट मिलेगा..!

"नहीं चाहिए उनका स्पेशल ट्रीटमेंट। मुझे कौन सा उस घर में रहना है। मैं और शशांक तो अपनी नई दुनिया में खुश रहेंगे..! मैं अपने फैसले पर अटल हूँ,आप अपनी कहो ?

"क्या कहें ? तुम्हें तो हमारी सुनना ही नहीं,अब शशांक हमसे प्यारा हो गया..?"सरला दुखी होकर बोली।

"मम्मा अब आप मत शुरू हो जाना।आप दोनों इस शादी के लिए नहीं माने तो मैं हमेशा के लिए घर छोड़कर चली जाऊँगी..!"

"जब तुमने निर्णय ले लिया तो तुम्हें हमारी परमीशन की क्या जरूरत ?अब तुम्हारे लिए हम कुछ भी नहीं..! विजय बोले।

"मम्मा पापा ऐसा आप दोनों सोचते हैं। मेरे लिए आप लोग जितने ही प्यारे हो उतना शशांक, फिर कैसे उसे छोड़ किसी और को चुनूँ..?नहीं हो पाएगा मम्मा। मैं शशांक के अलावा किसी और से शादी नहीं कर सकती..!

"यह तेरा आखिरी फैसला है..?

"यस मम्मा मेरी खुशी शशांक है‌‌। मैं आप दोनों के बिना भी खुश रह नहीं सकती। आप लोगों की जिद से दोनों ही रूप में मेरी खुशी की बलि चढ़ रही है ...!

विजय और सरला बेटी की खुशी के आगे मजबूर हो गए। शगुन और शशांक परिणय सूत्र में बंध गए। शगुन ढेरों सपने सजाए ससुराल चली आई।

"शशि बहू से कहना सुबह चार बजे का अलार्म लगा लें ताकि पाँच बजे पूजा के समय तैयार हो जाए। उसे यह सब अच्छे से समझा देना कि तुम्हारी बड़ी अम्मा को नियम में ढील मंजूर नहीं..!

"जी माँ में उसे समझा दूँगा..!"इतना कहकर शशांक कमरे में चला आया।

"क्या समझा दोगे शशांक..? तुम तो सबसे बात कर उन्हें बता चुके थे ना कि मुझे इस सब कि आदत नहीं, बोलो ?"

"शगुन मैंने सबको समझाने की बहुत कोशिश की पर वो इसी शर्त पर राजी हुए कि तुम नौकरी छोड़कर इस घर के सभी नियमों का कड़ाई से पालन करोगी। क्या करता? तुम्हारे बिना जी नहीं  सकता तो मैंने सारी शर्तें मान ली..!

"शर्तें मान ली मतलब..?"

"हाँ शगुन कुछ दिनों के लिए ही सही पर यहाँ इस घर में यही तुम्हारी ज़िंदगी है। तुम्हें जॉब छोड़नी होगी। इस सच को अब स्वीकार कर लो...!

"तुमने मुझे चीट किया शशि..? शगुन रो पड़ी उसे अपने सपने काँच की तरह टूटकर बिखरते नजर आ रहे थे।

"चीट नहीं शगुन मैंने तो सिर्फ तुमसे प्यार किया है। तुम भी तो हमारे प्यार की खातिर अपने मातापिता के विरुद्ध गई।अब हमारे प्यार के लिए इतना त्याग तो कर ही सकती हो..?"

"शशि यह जॉब मेरा सपना है..?"

"और मैं..? क्या मैं तुम्हारे सपने के आगे कुछ नहीं..?"

"दोनों बातें अलग हैं शशि..!"

"अलग हैं तो तुम बताओ क्या सही है? मैंने तुमसे कहा था ना जब तक हम यहाँ रहेंगे तब तक तुम्हें यह सभी नियम मानने होंगे ..?

"पर जॉब का क्या..? तुमने यह कब कहा था कि जॉब छोड़नी होगी..?"

"यह बता देता तो क्या तुम शादी के लिए राजी नहीं होती...?

"नहीं..कभी नहीं शशि.. मैं मेरी ज़िंदगी मेरे ढ़ंग से जीने में विश्वास रखती हूँ‌। मैं अपनी जॉब नहीं छोड़ सकती।वो मेरा सपना है...!"

"यह घर या सपना..आज तुम दोनों में से किसी एक को चुन लो शगुन।मेरा क्या,मैं अपने टूटे दिल के साथ किसी तरह जी ही लूँगा। तुम अपने निर्णय लेने के लिए आजाद हो...! शशि ने आँखों में आँसू भरकर कहा।

"शशि...इस तरह मुझे मजबूर मत करो..! शशि की आँखों में आँसू देख तड़प उठी शगुन।

"मजबूर तो मैं इस दिल के हाथों हो गया शगुन।यह बात सुनकर तुम कभी इस रिश्ते के लिए तैयार नहीं होती इसलिए मैंने तुमसे यह बात छुपाई। तुम नहीं जानती मैं कितना मजबूर महसूस कर रहा था।हो सके तो मुझे माफ कर देना..! शशि ने हाथ जोड़े।

"शशि प्लीज..!" शगुन ने शशांक के हाथ पकड़ लिए।

"आइ एम सॉरी शगुन... मैं जल्दी कहीं और रहने की व्यवस्था कर लूँगा..! शशि ने कहते हुए शगुन को गले से लगा लिया।

"चार बजे उठना जरूरी है शशि..?"

"हाँ शगुन घर में यदि कोई बीमार भी होता है तो उसे भी आरती के समय बिस्तर पर बैठना पड़ता है। बड़ी अम्मा कहती हैं हमें जीवन के हर नए दिन के लिए ईश्वर का धन्यवाद करना चाहिए। उसके लिए सबसे उपयुक्त समय ब्रह्म मुहूर्त है। चलो सो जाते हैं वरना बातों में सुबह हो जाएगी..!"

शगुन के रहन सहन में और पुरोहित परिवार के रहन सहन में जमीन आसमान का फर्क था। मॉर्डन परिवार की शगुन जी जान से उनके नियमों को फॉलो करने की कोशिश करती पर दिन में दसियों बार उसकी ग़लती पकड़कर बवाल मच जाता।

"शशि यह कैसी दकियानूसी सोच है। पीरियड मैं अपने कमरे में ना होकर वहाँ उस रूम में चटाई पर सोऊँ वो भी इस ठंड में ? नहीं मैं यही इसी बेड पर सोऊँगी।मेरी सहनशक्ति अब जवाब दे रही है।तुम सोच लो तुम्हें क्या जवाब देना है..!शगुन रजाई ओढ़कर सो गई।

"शगुन..माँ, भाभी सभी इन दिनों अलग रहती हैं। तुम इस समय तो सबकी बात मान लो ?"

"नहीं शशि बस बहुत हुआ अब सारे नियम बंद..!"इस तकलीफ भरे समय में जमीन पर सोने के ख्याल से शगुन बहुत गुस्से में थी।इस बात पर शशांक और शगुन में बहस हो गई। बड़ी अम्मा ने शशांक को कमरे से बाहर सोने का हुकुम सुना दिया।

"शशि तू उसके पास जाकर पूरे घर में नहीं घूम सकता।आज से पाँच दिन बैठक में सो फिर कमरे को शुद्ध करके उसमें जाना..!"

"जी बड़ी अम्मा..!समय गुजरता गया।इस क्लेश भरी ज़िंदगी की डोर पकड़े शगुन दो बेटियों की माँ बन चुकी थी। एक दिन तन्वी सुबह के तीन बजे जोर जोर से रोने लगी। उसकी आवाज सुनकर अन्वी भी रोने लगी। शशि उसे संभालने की जगह उठकर बाहर सोने चला गया।बहुत प्रयास के बाद भी जब चुप नहीं हुई तो शगुन ने घबराकर माँ को फोन लगा दिया।

"मम्मा तन्वी बहुत रो रही है। मम्मी जी को जगाया तो वो बोली बच्चे तो ऐसे ही रोते हैं चुप हो जाएगी।दूध भी नहीं पी रही, मुझे समझ नहीं आ रहा क्या करूँ..?"

"पेट दर्द हो रहा होगा। गुनगुने पानी में हींग मिलाकर नाभि में और पूरे पेट पर लगा दे, तुरंत आराम मिल जायेगा...!"

"शगुन ममता के हाथों मजबूर होकर बिना नहाए पानी गर्म करने रसोई में चली गई।हींग लगाने से तन्वी को आराम मिला और वो तो सो गई।पर बिना नहाए रसोई छूने पर घर में कोहराम मच गया।

"मैं तुम्हें समझा समझाकर तंग आ गया। एक तुम हो जो कभी कुछ सुनना नहीं चाहती। बिना नहाए रसोई में क्यों गईं , क्या इमरजेंसी आ गई थी ?तुम्हें हर समय उल्टी हरकतें करने की आदत सी हो गई है..!"

"आदत..!यह मैंने जानबूझकर नहीं किया। तुम्हें पता नहीं तन्वी कितनी बुरी तरह रो रही थी ? उसे देख अन्वी भी रोने लगी।तुम तो  तकिया उठाकर निकल लिए..!"

"सुबह चार बजे उठो, दिनभर ऑफिस में मरो और रात को बच्चे भी संभालने लगूँ... तुम यही चाहती हो..?"

"नहीं..मैं बस यह कह रही हूँ कि तुम रात को अन्वी को चुप करा सकते थे। तन्वी को तो मैं संभाल ही रही थी..!"

"माँ को जगा लेतीं..!"

"उन्होंने मना कर था। वैसे भी तुम सबको मेरी बेटियों के आने की खुशी कम ग़म ज्यादा है।बेटे होते तो सारा घर सेवा में लग जाता..!"

"यह तुम्हारी सोच है..!"

"और तुम्हारी..? परसों तुमने ही कहा था कि भगवान दो नहीं एक ही बेटा दे देते, दोनों बेटियाँ देकर मेरा बोझ बढ़ा दिया। तुम्हें अभी से दोनों बेटियाँ बोझ लगने लगी। कैसी सोच है तुम्हारी छी:..!"बाहर बड़ी अम्मा के चिल्लाने की आवाज आ रही थी।

"शशि की बहू के कारण आज कितना नुक़सान हो गया।राधा यह सब तू अपने घर ले जा।अम्मा नौकरानी को बोल रहीं थीं।शारदा रवि की बहू से कहो गंगाजल छिड़क दें..!

"जी अम्मा..वो तो अच्छा है सारा राशन भंडारघर में रहता है नहीं तो वो भी धोना पड़ता..!"

"देख लो.. अपनी नादानी से माँ भाभी के लिए कितना काम बढ़ा दिया तुमने..!"

"तुम्हें यह सब तो दिखाई दे रहा है शशि। तन्वी ठीक है या नहीं,वो क्यों रो रही थी, क्या हुआ था, किसी ने भी पूछने की जरूरत नहीं समझी..!

"क्या पूछना उसमें..? तुम्हारे ही अनोखे बच्चे हुए जो सारा घर हाल-चाल लेने आए। वैसे भी बेटियों को कुछ नहीं होता। बेटा होता तो चिंता भी की जाती..! शारदा ने अंदर आते हुए कहा।

"माँ मैं भी यही बात इसे कबसे समझा रहा हूँ । मैं तो तंग आ गया इस ज़िंदगी से...!"

"हम लोगों ने तुम्हें पहले ही चेतावनी दी थी।तुम नहीं माने तो भुगतो अब।इस लड़की के आने से घर में सिर्फ क्लेश ही हो रहा है..!"

"क्या करूँ बुद्धि जो भ्रष्ट हो गई थी तब मेरी..! 

शशि...?शशांक की यह बात सुनकर शगुन ने धीरज खो दिया और अपने पिता को उसे ले जाने के लिए मेसेज कर दिया। और सामान पैक करने लगी। शशांक ने भी रोकने की कोशिश नहीं की। उसके हाव-भाव से लग रहा था कि वो यही चाह रहा था।

"पापा...!" पिता को सामने देख शगुन फफककर रोने लगी।

"यह तो होना ही था बेटा।रो मत..चल..घर चल,हम घर चलकर बात करेंगे..!विजय ने सामान ले लिया। सरला ने अन्वी को गोद ले लिया। तन्वी शगुन के सीने से चिपकी हुई थी। शगुन ने मुड़कर शशि की ओर देखा तो उसने लैपटॉप में आँखें गड़ा लीं। शगुन के प्यार का आखिरी भ्रम भी चूर हो गया।

"इतनी ठसक से ले जा रहे हो बिटिया तो वापस मत भेजना आहूजा...!"

"चिंता न करो अम्मा.. मेरी बिटिया रास्ता भटककर तुम्हारे यहाँ आ गई थी।अब वो सही राह पर जा रही है।अब वो इस घर की ओर कभी मुड़कर नहीं देखेगी। जल्दी डिवोर्स पेपर आपके पास होंगे..!

"हमें उस समय जिद करके उसे रोकना चाहिए था।पर ममता के हाथों मजबूर हो गए। अब जो हुआ उसे तो बदल नहीं सकते विजय...!

"इस एक महीने में एक बार भी शशांक ने बेटियों की खबर नहीं ली। चलो देर से ही सही शगुन को समझ तो आया कि हर प्यार कामयाब नही होता....! तन्वी और अन्वी जाग गई थीं। सरला और विजय बच्चों के साथ समय बिताने लगे।

"लगता है शगुन आ गई..? डोरबेल सुनकर सरला डोर खोलने लगी।शाम हो आई थी। दरवाजे पर शगुन चेहरे पर चिरपरिचित मुस्कुराहट के साथ खड़ी थी।

"तेरी मुस्कराहट बता रही है,तुझे जॉब मिल गई..?"

"हाँ मम्मा... मुझे जॉब मिल गई। पापा...! शगुन पिता के गले लग गई।

"ऐसे ही मुस्कुराती रहे मेरी बच्ची..! विजय ने शगुन के सिर पर प्यार से हाथ फेरा।

"यस पापा अब मैं सिर्फ़ बेटी नहीं एक माँ भी हूँ।अब मुझे अपनी एक अलग पहचान बनानी है। अपनी बेटियों को उनके हिस्से की खुशियाँ देनी है।उनकी माँ भी मैं और पिता भी मैं...! एक नई उम्मीद के साथ नई ज़िंदगी के ढेरों सपने शगुन की आँखों में झिलमिलाने लगे।

"यह हुई न बात...! विजय आहूजा की बेटी कभी हार नहीं सकती..!"विजय की बात पर सब खिलखिलाकर हँसने लगे।

"यह देखो.. कैसे खिलखिलाने लगी दोनों जैसे सब समझ रही हैं..! तन्वी और अन्वी सबको हँसते देखकर हाथ पैर हिलाकर किलकारियाँ मारने लगी थीं। शगुन उन्हें देखकर शशि के बारे में सोचने लगी।

"शशि तुमने इन बेटियों को छोड़कर जीवन का सबसे बड़ा सुख खो दिया। इन्हें खोकर तुम कभी सुखी नहीं रह सकते...!"


"क्या बात है सरला... बाहर तक खिलखिलाने की आवाजें आ रही हैं। आज सब किस बात पर इतना खुश हो रहे हैं?" एक बुजुर्ग महिला ने अंदर आते हुए पूछा।
"अरे नंदा काकी...आइए बैठिए..!सरला ने आदर से उठते हुए कहा।

"काकी माँ मुझे जॉब मिल गई..! शगुन ने चहकते हुए कहा।

"अरे वाह..!!तो ऐसे कोरे कोरे खबर सुनाएगी गुड़िया? मिठाई नहीं लाई..? नंदा काकी शगुन को प्यार से गुड़िया कहकर बुलाया करती थीं।

"ओह हांँ.. सॉरी काकी माँ खुशी में भूल गई..!"

 "कोई बात नहीं गुड़िया हम आज गुड़ से काम चला लेंगे...!

"काकी गुड़ क्यों ?आप तो मिठाई खाइए।आज एक महीने बाद जब शगुन ने अपने पिछली ज़िंदगी के दुखों को झटककर आगे बढ़ने का फैसला लिया तो विजय को विश्वास हो गया था कि शगुन आज नहीं तो कल ऑफर लेटर ले ही आएगी इसलिए उन्होंने मिठाई लाकर रखी थी...!"

"पापा..?"

"तेरी काबिलियत पर तो मुझे सदा से ही भरोसा रहा है बेटा..!

"पापा...!"शगुन पिता से लिपटकर भावुक हो गई।

"यह आँसू तो तू अपनी बेटियों की विदाई के लिए बचाकर रख हमें तो तेरी प्यारी सी स्माइल चाहिए। क्यों काकी..?"

"हाँ गुड़िया तेरी यह स्माइल ही पुरोहित परिवार को कीमती हीरा खोने का अहसास करवाएगी..!"नंदा काकी खुश होकर बोली।

"बच्चियाँ खेल रही हैं शगुन।जा तू फ्रेश होकर आ तब तक मैं तेरे लिए चाय बनाती हूँ। काकी बैठना जाना नहीं..! नंदा काकी को चाय के लिए रुकने को कहकर सरला किचन में चली गई।

"अरे अरे रे आजा मेरी सोन परी...! तन्वी शगुन को जाते देख ठुनकने लगी तो नंदा काकी ने उसे पुकारते हुए गोद में उठा लिया।

"कैसे जालिम लोग हैं वो जो इतनी प्यारी फूल सी बच्चियों को छोड़ दिए। इन्हें देखकर तो पत्थर भी पिघल जाए। इन्हें अपने से दूर करते हुए जल्लादों को जरा भी दया नहीं आई..?"

"छोड़ो काकी.. उनको याद करके मन खट्टा मत करो।आज बहुत खुशी का दिन है। आप तो यह सोचकर खुश रहो ,अपनी बच्ची सही सलामत है।हम सब के साथ खुश हैं।यह दोनों भी हमारे साथ बहुत खुश रहेंगी।यह अकेली कहाँ ?हम और आप हैं ना इनके के साथ...!"

"सो तो है विजय...करम फूटें है करमजलों के....!"

"किसके करम फूटें हैं काकी माँ..?"

"अरे हैं हमारा एक रिश्तेदार..तू वो सब छोड़ आ यहाँ बैठ...!"शगुन को देख काकी ने बात बदल ली। शगुन जॉब करने लगी तो सरला ने बच्चियों का ध्यान रखने के लिए समय से पहले रिटायरमेंट ले लिया।नंदा काकी के दोनों बच्चे विदेश में रहते थे। वो भी दिन में अपना अकेलापन दूर करने के लिए बच्चों के साथ समय बिताने लगीं।

ब्लू साइन जॉइन करे शगुन को अभी चार महीने ही हुए थे कि उसे पता चला शशांक किसी और के साथ रिलेशनशिप में है। वो लड़की और कोई नहीं शगुन की सहयोगी निकली।

"मेरी बात सुनकर तुम अचानक क्या सोचने लगी शगुन..?" 

"कुछ नहीं मिताली..बस तुम्हें तुम्हारे हिस्से की खुशियाँ मिलें यही दुआ कर रही थी..!"

"शशांक बहुत अच्छा इंसान है शगुन। मैं भाग्यशाली हूँ मुझे इतना केयरिंग, इतना प्यार करने वाला दोस्त मिला।वो मेरा बहुत ख्याल रखता है...!"

"शादी का क्या ख्याल है...?"

"निकट भविष्य में शगुन...बस शशांक के कुछ जरूरी काम अटके हुए हैं। उनसे निपटने के बाद हम दोनों शादी कर लेंगे...!"शशांक और शगुन के डिवोर्स का केस अपनी लास्ट डेट का इंतजार कर रहा था। शशांक शादी में कोई अड़चन नहीं चाहता था इसलिए मिताली से काम का बहाना बनाकर डिवोर्स होने का इंतजार कर रहा था।

"तेरे डिवोर्स का क्या हुआ। तूने उसके बारे मुझे कभी नहीं बताया...? मुझे भी तो पता चले वो कौन बंदा है जो हीरे को ठोकर मारकर चला गया..!

"शायद इस डेट पर छुटकारा मिल जाए।तू उसके बारे में जानकार क्या करेगी।मुझे तो उसके विषय में बात करना ही पसंद नहीं..!शगुन तो स्वयं ही इस बंधन से आजाद होने के लिए बेचैन हो रही थी।

"शशांक ने अपने काम के बारे में तुम्हें कुछ नहीं बताया मिताली...?"

"नहीं मैंने पूछा नहीं...!"

"मिताली मेरी एक सलाह मानोगी..?"

"कैसी सलाह...?"

"शशांक से शादी का फैसला करने से पहले सारी बातें क्लियर कर लेना। कहीं ऐसा न हो आगे चलकर तुम्हें भी पछताना पड़े...!"

"शशांक ऐसा नहीं है शगुन।वो मुझे कभी भी धोखा नहीं देगा...!"मिताली का शशांक पर अंधा विश्वास देख शगुन को अपना पास्ट याद आ गया।

"एक समय ऐसे ही मैं भी उस शख्स पर ऐसे ही भरोसा कर रही थी....!"ऑफिस का टाइम खत्म हो गया था। शगुन बैग उठाकर घर के लिए निकल गई।

"मम्मा.. काकी माँ मैं कॉफ़ी बनाने जा रही हूँ।आप पियेंगी..?"शगुन अपने लिए कॉफी बनाने किचन में जा रही थी।

"कुछ हुआ है शगुन..?"

"नहीं मम्मा कुछ नहीं हुआ..!"

"कुछ तो है बेटा..तू जब अधिक परेशान होती है तभी कॉफी पीने की बात करती है...!"

"मम्मा शशांक किसी के साथ रिलेशनशिप में है..!"

"तुझे उससे क्या करना..? रिलेशनशिप में रहे या शादी करे। तुझे तो इसी पंद्रह तारीख को उससे छुटकारा मिल जाएगा...!"

"काश काम बन जाए।मम्मा वो मेरे साथ काम करती है।सोचती हूँ उसे सच बता दूँ...?"

"जब तक डिवोर्स नहीं होता,तू किसी को कुछ नहीं कहेगी शगुन...!

"क्यों मम्मा..?"

"समझले इसी मैं तेरी भलाई है बेटा..!"

"उन लोगों से कुछ माँगा है बिटिया के लिए सरला..?"

"हाँ काकी उनसे शगुन के लिए सबसे कीमती चीज माँगी है काकी। उसके लिए विजय ने वकील से कुछ पेपर्स भी बनवा लिए हैं।इसी पंद्रह तारीख को उनपर उनके साइन लेने है। फिर उनका रास्ता अलग हमारा अलग...!"

"कैसे पेपर मम्मा ? और कौनसी कीमती चीज माँगी है? मुझे उस घर की कोई चीज नहीं चाहिए...!"

"इन बच्चियों की कस्टडी के पेपर बनवाए हैं शगुन। वैसे भी उन्हें बच्चियों में इंटरेस्ट नहीं तो अभी गर्मागर्मी में वो लोग साइन भी कर देंगे।अभी चूक गए तो कहीं वो तलाक के बाद इन बच्चियों पर अपना हक जमाने आ गए तो तू क्या करेगी शगुन ...? 

"मैं इन दोनों के बिना नहीं जी पाऊँगी मम्मा...!

"इसलिए बेटा अभी किसी से कुछ नहीं कहना है। नहीं तो बातों पर बात बनेगी। उन्हें नई बात मिल जाएगी। फिर कहीं उन्होंने हमारे कस्टडी वाले पेपर्स साइन करने से मना कर दिया और अपनी ओर से कस्टडी के लिए केस फाइल कर दिया तो..?"

"मैं मेरी बेटियाँ उन्हें कभी नहीं दूँगी मम्मा।वो लोग मेरी बच्चियों से प्यार ही नहीं करते...!"

"वो तो हम लोग जानते हैं। इस परिवार के किसी भी सदस्य ने एक बार भी दोनों मासूमों की खबर नहीं ली यह बाहर वालों को क्या पता ? इसलिए कह रही हूँ कि पहले अपना पक्ष क्लियर हो जाए फिर उस लड़की को सारी सच्चाई बता देना। मैं भी नहीं चाहती कोई और मासूम उसके जाल में फंसे...!"

"जी मम्मा..!"धीरे धीरे समय गुजरता गया।शगुन और शशांक अब कानूनी तौर पर एक दूसरे से अलग हो गए थे। मिताली और शशांक ने शादी करने का फैसला कर लिया था।

"शगुन हमने शादी का फैसला कर लिया है...!"

"ओ वाऊ..कब की डेट निकली...?"

"दस मार्च...!"

"दस मार्च... यानि अपने जन्मदिन को यादगार बना रहा है शशांक...!"

"अरे मैंने तो तुम्हें बताया भी नहीं फिर तुम्हें कैसे पता उस दिन उसका जन्मदिन है। ..?"

"उसका जन्मदिन मुझे नहीं पता होगा तो किसे पता होगा? दो साल तक रिलेशनशिप और फिर डेढ़ साल का शादीशुदा जीवन, साढ़े तीन पुराना साथ था हमारा...!"

"होगा शगुन पर वो और कोई शशांक होगा। इत्तेफाक से दोनों की जन्म डेट और नाम मैच कर रहे हैं।मेरा शशांक तो बहुत इनोसेंट है।वह मुझसे कभी झूठ नहीं बोल पाता वो भला इतनी बड़ी बात क्यों छुपाएगा...?"मिताली शगुन की बात सुनकर थोड़ा एग्रेसिव होने लगी।

" रिलेक्स मिताली.... सॉरी मुझे ऐसे शशांक पर शक नहीं करना चाहिए था। शायद मैं ही गलत हूँ। तेरी बात सच ही है यह वो नहीं कोई और होगा तेरा शशांक नहीं होगा।मुझे जिसने चीट किया वो यह शशांक था..!शगुन ने अपनी शादी के कुछ फोटोग्राफ मिताली के हाथ में थमाए।

"यह...!" शशांक और शगुन की वैवाहिक रस्मों वाली फोटो देख मिताली के हाथ से सारी फोटोग्राफ छूटकर बिखर गईं।

"सॉरी मिताली में तुम्हें इस तरह हर्ट नहीं करना चाहती थी..!" शगुन ने उसका हाथ कसकर पकड़ लिया। 

"यह सच है शगुन...?"

"सौ प्रतिशत सत्य है मिताली इसलिए मैं अपनी आँखों बंद करके यूँ तुम्हारा जीवन बर्बाद होते हुए नहीं देख सकती...!शगुन शशांक के साथ बिताए डेढ़ साल का कच्चा चिट्ठा खोलकर रख देती है।

"मैंने परिवार का सुख नहीं ले पाया शगुन ।पर कहते हैं बड़े बुजुर्ग जो नियम बनाकर गए हैं। उनके पीछे कुछ न कुछ विशेष कारण छुपा होता है।पर उन नियमों की आड़ लेकर इंसान इंसानियत भूलने लगे तो वहीं नियम हमें बुरे लगने लगते हैं शगुन..!

"सही कहा मिताली... मैंने खुद को उनके हिसाब से ढालने की बहुत कोशिश की पर फिर भी अलग कल्चर से आई लड़की उनके दिलों से उतरी रही। इसलिए तुम शांति से विचार करो कि अब शशांक का क्या करना है..!

"मुझे शशांक के तलाकशुदा होने से कभी प्रॉब्लम नहीं होती। दुःख इस बात से है कि उसने मुझसे झूठ कहा कि वो अभी तक सिंगल हैं।मैं उसकी ज़िंदगी में आने वाली पहली और आखिरी लड़की हूँ। इतना बड़ा झूठ, उसने मुझे बताया है तो क्या पता तुम्हें भी ऐसा ही कोई झूठ दिखाय हो? तुमने उसे कैसे सह लिया?अब तुम देखो शगुन मैं शशांक को कैसे सबक सिखाती हूँ..?

"तुम ऐसा क्या करोगी।और क्या कहोगी अपने मातापिता से...?"

"मैं एक अनाथ हूँ शगुन... मातापिता बचपन में ही गुजर गए थे। रिश्तेदारों ने कुछ दिन में ही किनारा कर लिया। पड़ोसी अनाथाश्रम में छोड़ गए। अनाथाश्रम की सुपरवाइजर मैडम की छत्रछाया में थोड़ी बहुत ममता मिली थी।वो भी पिछले साल छोड़कर चली गई।मैं शशांक को पाकर बहुत खुश थी कि अब मेरी भी फैमिली होगी...!"

"ओह तुम्हारे बारे में जानकार बहुत दुख हुआ।आज से तुम अकेली नहीं,मैं और मेरी फैमिली तुम्हारी फैमिली है। मेरी फैमिली में मेरी छोटी बहन का दिल से स्वागत है मिताली...! शगुन ने मिताली का हाथ पकड़ा।

"थैंक्स शगुन...!" मिताली ने शशांक से कुछ नहीं कहा। शशांक के घर शादी की तैयारियाँ जोरों शोरों से चल रही है। मिताली के दिमाग में कुछ और चल रहा था। आखिर दस मार्च का दिन आ गया।

बाहर बाराती डांस करने में मगन थे। दुल्हन का जोड़ा पहने मिताली शशांक का इंतजार कर रही थी। द्वार पर स्वागत का थाल लिए सरला को देखते ही घोड़ी पर बैठे शशांक के पसीने छूट गए।

"शगुन की मॉम...?रवि ने उन्हें देख बैंड बंद करा दिया।

"अरे बैंड क्यों रोक दिया।बजाओ,बजाओ। अरे कोई मेरे दूल्हे को तो नीचे उतारो। मुझे भी डांस करना है...!" मिताली ने सामने आकर कहा।दो तीन लोगों ने आगे बढ़कर शशांक को नीचे उतार लिया।

"अरे तुम लोगों क्या चुपचाप खड़े होने के लिए बुलाया है...? मिताली विजय के साथ खड़े कैमरे वालों से बोली।वो कोई साधारण कैमरे वाले नहीं मिताली की पहचान के कुछ रिपोर्टर थे। मिताली ने शशांक का झूठ उजागर करने के लिए बुलाया था।

"तो मिलिए मेरे होने वाले दूल्हे शशांक पुरोहित ।यह बहुत ही इनोसेंट एक पत्नीव्रत धारण करने वाला बड़ा ही प्यारा इंसान है। इतना प्यारा कि इसका बोला झूठ सच को शरमाने पर मजबूर कर दे...!"मिताली मीडिया के सामने शशांक के झूठ की परतें खोलती गई और मीडिया वाले उस सच को पूरे शहर में वायरल करने लगे।

"बस कर मिताली,रोक दे यह सब...!"शगुन ने धीरे से मिताली का हाथ पकड़ कर अपनी ओर खींचा।

"तुझे क्यों खराब लग रहा है..!"

"मिताली उसको उसके किए की सजा मिल गई।अब छोड़ जाने दे यार..!"

"ताकि कल कोई और शगुन या मिताली उसके प्यार में पागल होकर उससे शादी करले और फिर वही सब भुगते जो तूने भुगता...?"

"ऐसा जरूरी नहीं मिताली। मम्मा कहती हैं हर प्यार कामयाब नही होता।मेरा प्यार भी वैसा ही था नहीं कामयाब हुआ। तुम मेरी छोटी बहन जैसी थी इसलिए तुम्हें सच बताना मेरा फर्ज था।हो सकता है शशांक को कोई ऐसा मिल जाए जो उसके घरवालों की कसौटी पर खरा उतर जाए। उसे वो लोग उतनी तकलीफ न दे जितनी मुझे दी...!"

"तेरा दिल कितना बड़ा है शगुन।मेरा दिल इतना बड़ा नहीं जो ऐसे झूठे इंसान को माफ कर दूँ।जो अपनी नन्ही बच्चियों का नहीं उससे कैसी सहानुभूति रखें शगुन..?"मिताली की आँखे डबडबा आईं।

"वो कैसा भी है पर एक सच तो यह भी है कि वो मेरी बच्चियों का बाप है।हाँ यह बात और है कि उसने और उसके घरवालों ने इन दोनों से कोई रिश्ता नहीं रखा।हाँ उसने मुझसे झूठ बोला। मुझे चीट किया पर मैंने तो उससे प्यार ही किया था। मैं इस सत्य को कैसे झुठला दूँ..? शगुन की आँखें छलक आईं।

"तुझे छोड़कर शशांक ने अपनी ज़िंदगी की सबसे कीमती चीज खो दी।चल तेरे लिए यह सब रोक देती हूँ..! मिताली ने रिपोर्टरों को वापस जाने को कह दिया।यह देख शशांक और उसके घरवालों को अपने किए पर बेहद शर्मिंदगी महसूस हो रही थी।

"शगुन मुझे माफ कर दो।मैं अपने किए पर बेहद शर्मिन्दा हूँ...! शशांक हाथ जोड़कर बोला।

"मम्मा पापा घर चलें ?चलती हूँ मिताली..! शशांक की बात का जवाब दिए बगैर शगुन ने अपने कदम घर की ओर बढ़ा दिए।

"शगुन...!!रुको मेरी बात सुनो प्लीज... शगुन..! शशांक अपनी गलतियों पर पछताता हुआ आवाज देता रह गया। शगुन ने उसे देखना भी जरूरी नहीं समझा।

"शगुन एक बार मेरी ओर देखना भी गँवारा नहीं तुम्हें...!"जिस तरह शशांक ने उससे मुँह फेरा था। अपनी ज़िंदगी के कड़वे सच को पीछे छोड़ शगुन उसी अंदाज में आगे बढ़ती चली गई।

*अनुराधा चौहान 'सुधी'स्वरचित*
गूगल फोटो 

Thursday, January 5, 2023

शब्दों की मार

अरे सिस्टर तुमने इसमें आज की तारीख क्या लिखी है..? रवि ने स्नेहा सामने एक पेपर रखते हुए बोला।

12 दिसंबर लिखी डॉक्टर..?कहती हुई स्नेहा पास के बेड पर लेटे पेशेंट का बीपी चैक करने लगी।

"नहीं तुमने जल्दबाजी में बारह दिसंबर की जगह बारह नवंबर लिख दिया था मैंने सही कर लिया यह तुम सँभालो..!

ओके थैंक्स..! स्नेहा ने पेपर फाइल में लगा दिया।

रवि सिटी हॉस्पिटल के डायलिसिस सेंटर में जूनियर डॉक्टर था और स्नेहा वहाँ नर्स का काम करती थी।आज12 दिसंबर है। यह सुनते ही पास के बेड पर लेटी दीक्षा की आँखें भर आईं।

"आपको क्या हुआ दीक्षा..?आप तो इस वार्ड की सबसे हिम्मती पेशेंट हो।फिर आँख में आँसू कैसे?कहीं दर्द हो रहा है..? मौसी गरम पानी की थैली लेकर आओ।बस एक घंटा और फिर आपका डायलिसिस खत्म।

"नहीं सिस्टर गरम पानी की जरूरत नहीं है। मुझे कहीं तकलीफ नहीं..!

"फिर आँखों में नमी कैसी..?

"12 दिसंबर सुनकर कुछ यादें ताजा हो गईं बस और कुछ नहीं...!"

"सच में कोई तकलीफ नहीं दीक्षा..!

"हाँ सिस्टर सच कोई तकलीफ नहीं है..!

"दीक्षा पिछले पाँच सालों से तुम्हारा मुस्कुराता चेहरा देखने की आदत हो गई है।यहाँ मौजूद हर पेशेंट हर बार डायलिसिस के समय कभी दर्द तो कभी कुछ तकलीफ तो कभी ज़िंदगी से मायूस होकर टूटता नजर आता है।पर तुम हर बार इस तकलीफ को झेल ज़िंदगी की डोर कसकर पकड़ लेती हो। कैसे कर लेती हो ऐसा...?

"सिस्टर यह जंग अपने लिए नहीं अपने बेटे के लिए लड़ रही हूँ। ईश्वर कृपा से वो अपने पैरों पर खड़ा हो जाए। फिर यह साँसे रुकें तो रुक जाए..! चिरपरिचित मुस्कुराहट के साथ दीक्षा बोली।

"ऐसा मत सोचो दीक्षा.. ईश्वर तुम्हें ऐसे ही हिम्मत देता रहे...!

"सिस्टर जरा उन्नीस नंबर बेड के पेशेंट को देखो शायद उसका बीपी डाउन हो रहा ...!रवि एक न्यू पेशेंट को चैक करते हुए बोला।

"यस डॉक्टर ...! सिस्टर उन्नीस नंबर बेड के पेशेंट को चैक करने चली गई। 

"मौसी इनके पैरों के नीचे गरम पानी की थैली लगाकर सिकाई करो।डरो मत आपकी पहली डायलिसिस है इसलिए थोड़ी तकलीफ़ होगी फिर सब आदत में आ जाएगा।

"मेरी बेटी को बहुत तकलीफ़ हो रही है। मैं उसे ऐसे नहीं देख सकती। आप जितना जल्दी हो उसे मेरी किडनी लगा दीजिए डॉक्टर ताकि वो जल्दी ठीक हो जाए ..!

"मैडम किडनी ट्रांसप्लांट के लिए बहुत लंबा प्रोसेस करना पड़ता है।तब तक हमारे पास  सिर्फ डायलिसिस एकमात्र विकल्प है। थोड़ी हिम्मत तो रखनी होगी..!

"पर डॉक्टर...?

"उधर देखिए..!"नए पेशेंट को सांत्वना देते हुए डॉ रवि ने दीक्षा की और इशारा किया।उस पेशेंट जैसा बनो।वो खुद भी हँसती रहती है और सभी से सकारात्मक बातें कर उन्हें हिम्मत देती रहती है..!

"उसे कितना समय हो गया डॉक्टर..?

"पाँच साल....!यह सारे मरीज कोई पाँच साल तो कोई छः और कुछ पिछले कुछ सालों से यहाँ डायलिसिस करा रहे हैं।वो तो मात्र तेरह साल का बच्चा है और बदकिस्मती से उसकी माँ कैंसर पेशेंट है और पिता शराबी है।उसे भी कोई डोनर नहीं मिला।अब हर किसी को आपकी बेटी की तरह समय पर किडनी डोनर मिलता फिर भी देखिए सब ज़िंदगी के लिए अपनी अपनी किस्मत से लड़ रहे हैं..! आप भी हिम्मत रखिए सब ठीक हो जाएगा..!

"डॉक्टर ट्रांसप्लांट के बाद मेरी बेटी ठीक तो हो जाएगी..? पेशेंट की माँ ने पूछा।

"जरूर स्वस्थ होगी। उसके लिए समय पर दवा और परहेज कराना आपकी जिम्मेदारी है।ऑपरेशन के डर से लड़ने का काम इन्हें ही करना है..!"

"यह लोग सब मरीजों को मेरा एग्जाम्पल क्यों देते हैं।  मेरे पास क्या अलादीन का चिराग है जो जिन्न निकल मेरी तकलीफ दूर कर देता है?यह क्या जाने ?कैसे अपना दर्द को छुपाने के लिए मैं हँसती रहती हूँ। किसे पता इस तकलीफ से निकलने के लिए मैं भी ईश्वर से लड़ाई लड़ रही हूँ...! दीक्षा ने घड़ी देखी अभी भी डायलिसिस प्रोसेस खत्म होने में एक घंटे का समय था।वो गहरी साँस लेकर आँखे बंद कर अपनी ज़िंदगी के उतार चढ़ाव याद करने लगी। 

"सुरेश..सुनो,उठो.. सुरेश...!" लगभग हाँफती सी दीक्षा अपने पति सुरेश को जगाने का प्रयास कर रही थी।

"क्या है..?सोने क्यों नहीं देती..? सुरेश ने झल्लाकर कहा और करवट बदल ली।

"सुरेश्श.मुझे साँस लेने को नहीं हो रहा..! बड़ी मुश्किल से दीक्षा ने कहा।

"साँस नहीं ले पा रही..?अच्छा है मर जाओ।रोज रोज की परेशानी एक बार में खत्म,जब देखो यह हो रहा है। वो हो रहा,यहाँ दर्द वहाँ दर्द.. मैं तंग आ गया तुमसे और तुम्हारे बहानों से..!"

दीक्षा की हालत बिगड़ रही थी। वो कैसे भी करके उठी और अपने ससुर के कमरे तक पहुँचकर उन्हें पुकारने लगी।

"बाबूजी..!जीतू..!"

"बहू..? तुम इस वक्त..? क्या हुआ..?ऐ जीतू उठ देख माँ को क्या चाहिए..?पोते को जगाते हुए रमाकांत ने कमरे की लाईट जलाई।

"आओ यहाँ बैठो। इतना हाँफ क्यों रही हो..? क्या हुआ? सुरेश ने झगड़ा किया क्या..?"

"माँ  आपको इतना पसीना.. जीतू ने तुरंत एसी ऑन किया और दौड़कर पानी ले आया।

"बाबूजी पता नहीं साँस लेने में दिक्कत हो रही है..!"

"अरे बाप रे..! जीतू तू बहू को लेकर आ, मैं तब तक गाड़ी निकालता हूँ। रमाकांत ने शर्ट पहनी पर्स पेंट में रखा और घर से निकल गए।

"चलो माँ..!जीतू ने माँ को सहारा दिया और पीछे पीछे चल दिया ।रात के एक बज रहे थे। जीतू के पुकारने के बावजूद सुरेश अभी भी दीक्षा की चिंता छोड़ गहरी नींद में सो रहा था।

दीक्षा की हालत देखकर डॉक्टर ने सबसे पहले उसे आईसीयू में भर्ती करके ऑक्सीजन लगाने को कहा। ऑक्सीजन लगते ही दीक्षा को चैन आ गया।

"अब कैसा लग रहा है..?"

"बहुत आराम मिला डॉक्टर..!"

"आपको पहले भी ऐसा हो चुका है..?"

"ना डॉक्टर साहब, पिछले कुछ दिनों से बार बार बुखार आ जाता है। पैरों में भी दर्द रहने लगा है और कमजोरी महसूस होती रहती है..!"

"और यह साँस लेने में दिक्कत कबसे..?"

"वो आज ही अचानक होने लगी..!"

"ओके आप आराम कीजिए। हमें आपके कुछ टेस्ट करने होंगे, तभी पता चलेगा इस तकलीफ की वजह क्या है।..!"डॉक्टर ने नर्स को कुछ टेस्ट करवाने के लिए लिखकर दे दिए और बाहर आकर रमाकांत से बात करने लगे।

"हार्ट की और अस्थमा जैसी तो कोई समस्या नहीं है। फिर भी उनका ऑक्सीजन लेवल डाउन ही हो रहा है।अभी तो हमने ऑक्सीजन लगा दिया है।और उन्हें आराम भी मिल गया।पर यह समस्या क्यों हुई इसलिए हमने दीक्षा के कुछ टेस्ट किए हैं। एक घंटे में रिपोर्ट आ जाएगी फिर देखते हैं क्या करना है..?

"धन्यवाद डॉक्टर साहब..! रमाकांत चिंतित दिखाई देने लगे।

"दादू टेंशन न लो,माँ ठीक है। जरूर पापा ने कोई टेंशन दिया होगा इसलिए एकदम से तबियत बिगड़ गई..!"

"कैसे गधे की तरह घर पर सो रहा है।यहाँ मेरी बहू इतनी सीरीयस है।क्या करूँ सुरेश का..? रमाकांत गुस्से में दोनों हाथों को रगड़ते हुए बोले। 

"दादू शांत हो जाइए।आप बीमार हो गए तो माँ का इलाज कैसे होगा..? पापा से तो कोई उम्मीद नहीं कर सकता और मैं अभी किसी में भी नहीं..!

रमाकांत जितने सीधे और सुलझे इंसान थे। सुरेश उतना ही जिद्दी और गुस्सैल स्वभाव का था।उसे दीक्षा की तकलीफ से कभी कोई फर्क नहीं पड़ता था।उसे तो उसका हर काम समय पर और हर वस्तु हाथ में चाहिए रहती थी।

"दीक्षा के साथ आप लोग हैं..?तभी वार्डबॉय ने आकर पूछा।

"जी हाँ कहिए..?"

"सर ने आपको अपने केबिन में बुलाया है। पेशेंट की रिपोर्ट आ गई है..!

"ईश्वर करे रिपोर्ट अच्छी आए।चल जीतू..! रमाकांत ने जीतू का हाथ कसकर पकड़ लिया।

"आइए बैठिए..!" डॉक्टर ने बैठने का इशारा किया।

"डॉक्टर साहब रिपोर्ट सही है ना..?"

"नहीं...!"

"नहीं..? क्यों डॉक्टर ऐसा क्या निकल आया..?

"रिपोर्ट के मुताबिक दीक्षा की किडनी खराब हो रही हैं...!

"क्या..? रमाकांत कुर्सी से उठ खड़े हुए।

"प्लीज बैठिए..!" डॉक्टर ने टोका।

"इनकी तबियत कब से खराब है…..?"

"आज अचानक बिगड़ गई डॉक्टर। इससे पहले तो कुछ दिनों से कमजोरी और पैरों मे दर्द की शिकायत सुनी थी।वो भी मेरे पोते ने बताया तब, वो तो मुझे पता ही नहीं चलने देती। अगर स्थिति उसके काबू में होती तो आज भी नहीं पता चलता..!"

"उनको क्रोनिक किडनी डिजीज की प्रॉब्लम हो गई है। उनका क्रिएटिनिन लेवन फाइव प्वाइंट सिक्स पहुँच गया है।पोटेशियम लेवल भी बहुत हाई है जिसके चलते उन्हें साँस लेने में दिक्कत होने लगी। आप लोगों की किस्मत अच्छी थी जो समय रहते समस्या पता चल गई नहीं तो कुछ भी हो सकता था..!"

"डॉक्टर साहब दीक्षा ठीक तो हो जाएगी..?"

"देखिए अब यह बीमारी पूरी तरह से ठीक होने वाली नहीं,हाँ हम इसे सही खानपान और दवाईयों से कंट्रोल कर सकते हैं।आप लोगों को उनके खाने-पीने, और आराम का ध्यान रखना होगा...!

"दीक्षा का आहार कैसा हो,वो भी आप समझा दीजिए डॉक्टर साहब..!

"अब वो किडनी पेशेंट हैं। ऐसे में उन्हें ऐसा आहार मिले जिसमें सोडियम, पोटेशियम, प्रोटीन आदि की मात्रा कम रहे।भोजन सादा और कम मसाले का हो तो हम इस समस्या को कंट्रोल में रख सकते हैं। थोड़ी सी चूक हुई तो हमारे पास डायलिसिस के अलावा कोई विकल्प नहीं..! 

"डायलिसिस..?" जीतू यह सुनकर घबरा गया।

"हाँ आप सभी को अब इसके लिए मन मजबूत करके रखना होगा। भगवान न करे यह स्थिति जल्दी आए।पर एक न एक दिन आनी ही है।पर जब भी आए तो उन्हें संभालने के लिए आप लोग मजबूत रहें..!

"जी डॉक्टर..!"रमाकांत थके कदमों से बाहर निकल आए।

"दादू माँ को कुछ हो गया तो मेरा क्या होगा..?सत्रह साल का जीतू रुँआसा होकर पूछने लगा।

"कुछ नहीं होगा बच्चे.. मैं हूँ ना..! दीक्षा अभी भी सो रही थी। शायद दवा का असर था। सुबह के चार बजने वाले थे। जीतू बैंच पर अधलेटा सो रहा था। रमाकांत सुरेश को फोन लगाने लगे।

तीन-चार बार ट्राई करने पर सुरेश ने फोन उठाया तो रमाकांत गुस्से से बरस उठे और तमाम खरी-खोटी सुना डाली।

"बाबूजी मुझे चार बातें सुनाकर आपकी बहू ठीक हो जाएगी क्या..?यह सब उसके कर्मों का फल है जो वो भुगत रही है।रोज कहीं सिरदर्द तो कहीं पैरदर्द,वो अब सही में भगवान न बीमारी दे दी।कल मरती है तो आज ही मर जाए, मैं तो तंग आ गया इस मरीज से...! इतना कहकर सुरेश ने फोन कट कर दिया।

"मैं इस नालायक का बाप हूँ यह सोचकर आज मुझे खुद पर शर्म आ रही है..!"रमाकांत की आवाज से जीतू जाग गया था।

"दादू शांत हो जाइए। इतना गुस्सा आपकी सेहत के लिए ठीक नहीं,आपका बीपी बढ़ जाएगा। आपको कुछ हो गया तो मैं और माँ..!कहते कहते जीतू दादू से लिपटकर भावुक हो उठा।

"तेरी माँ को कुछ नहीं होगा। मैं उसका इलाज बड़े से बड़े हॉस्पिटल में करवाऊँगा..!

"दादू आप घर चले जाइए।माँ के पास सुबह सात बजे से पहले किसी को जाने नहीं देंगे तो मैं यहाँ बैठता हूँ..!"

"नहीं मैं ठीक हूँ। डॉक्टर से मिलकर ही जाऊँगा।देख लूँ वो क्या कहते हैं..? शाम तक दीक्षा की रिपोर्ट पहले से बेहतर आई।दो दिन बाद दीक्षा घर आ गई। 

"आज खाना नहीं मिलेगा क्या..?" दीक्षा को सोते देख सुरेश चिल्लाने लगा।

"मुझे बहुत चक्कर आ रहे हैं सुरेश।थोड़ा आराम कर लूँ फिर बनाती हूँ..!"

"आराम ही तो करती हो। आराम के अलावा तुम्हें और कुछ आता ही कहाँ है..?

"पापा आप माँ पर क्यों चिल्ला रहे हो..?माँ खाना बन गया है आप आराम करो। मैं पापा की थाली लगा देता हूँ..!

"किसने बनाया खाना..?"

"मैंने माँ..आज कॉलेज की छुट्टी थी तो मैंने जो समझ आया बना लिया..!दवाईयों का हैवी डोज और बदले हुए खानपान से दीक्षा कमजोरी महसूस करने लगी थी।घर के कामकाज और खाना बनाने के लिए रमाकांत ने फुलटाइम कामवाली रख ली।जो सुरेश को पसंद नहीं आया।

"मैं इस कामवाली के हाथ का बना खाना नहीं खाने वाला। तू उठ बहुत आराम कर लिया चल मेरे लिए कचौरियाँ बनाकर ला..! सुरेश ने देखा रमाकांत घर पर नहीं है तो मौके का फायदा उठाकर दीक्षा पर चिल्लाने लगा। 

जीतू के बारहवीं के एग्जाम चल रहे थे। घर में क्लेश न हो इस डर से दीक्षा ने हिम्मत करके आलू की कचौरियाँ बनाईं तो सुरेश ने खीर की फरमाइश कर दी।

"इसके साथ मेरे लिए खीर भी बना दे तो कचौरी खाऊँगा..! 

"सुरेश अब मुझसे सच में काम नहीं हो पाता नहीं तो खीर बना देती।जिद मत करो ऐसे ही खालो प्लीज। तुम मेरी तकलीफ समझते क्यों नहीं..?

"ले रख अपनी कचौरी मुझे नहीं खाना..!" दीक्षा ने मना किया तो उसने कचौरी भी खाने से मना कर दिया और बाहर चला गया।यह देख दीक्षा रोने लगी।

"माँ आपको कचौरी बनाना ही नहीं चाहिए था। उन्हें तो बस आपको सताने का मौका चाहिए और आप भी उन्हें इतना महत्व क्यों देती हो..?

"तो क्या करूँ..?यह सब बातें तो मेरी ज़िंदगी का हिस्सा बन चुकी हैं। मेरी किस्मत जो उनसे जुड़ी है..!" दीक्षा की हालत दिन पर दिन गंभीर हो रही थी। सुरेश उसकी तकलीफ नजरंदाज कर उसे उतनी अधिक मानसिक यातना दे रहा था।

"ईश्वर से तो डरो सुरेश।इस तरह किसी कमजोर को सताना मर्दानगी नहीं होती। मैं मौत के कगार पर खड़ी आज भी बस थोड़े से प्यार के लिए तरस रही हूँ। तुम मुझसे प्यार भरे शब्द नहीं कह सकते तो जहर तो न उगलो..!

"प्यार और तुझसे..? चेहरा देख अपना,जरा सा काम क्या कहो तुरंत बीमारी का चोला ओढ़ लेती हो और प्यार चाहिए इसे..! मेरी तो किस्मत फूटी थी जो तुझसे शादी की..!

"मेरे बीमार मन को शब्दों की मार न मारो सुरेश। ईश्वर न करे कहीं मेरे दुखी मन की हाय तुम्हें लग जाए..! कहते कहते दीक्षा रो पड़ी।दीक्षा का क्रिएटिनिन लेवल अत्यधिक बढ़ जाने से आज वो पहली बार डायलिसिस कराकर आई थी जिस वजह से उसे चक्कर और पैरों में असहनीय पीड़ा हो रही थी।

"तेरी हाय हा हा हा..तू मुझे हाय लगाएगी..?तू हा हा हा हा..." सुरेश ठठाकर हँसा।"अरे तुझे तो मेरी हाय लगी है। अभी तो तू जाने क्या क्या भुगतेगी देखती रह...! सुरेश शराब की बोतल मुँह से लगाकर पीने लगा।

"बिना पानी शराब मत पियो सुरेश।लीवर खराब हो जाएगा।कल तुमने जिद में कितनी मिठाई खाई। इस बार तुम्हारा शुगर लेवल कितनी बढ़ा आया।यह सब कितना घातक है, पता है ना तुम्हें..?" 

"तूने क्यों नहीं कर लिया परहेज..?यह सब सुरेश कहाँ सुनने वाला था।जब भी कभी रमाकांत बाहर जाते सुरेश नशे में चूर होकर हर वो काम करता जो उसे नहीं करने चाहिए थे।

"तुम अपना ज्ञान अपने पास रखो। तुम्हारे ज्ञान की जरूरत तुम्हें है ..? मैं तेरी तरह मरीज नहीं जो कुछ हो जाएगा..! सुरेश की नहीं सुनने और अनाप-शनाप खाने पीने वाली आदत के चलते एक दिन सुरेश का शुगर लेवल हाई हो गया और उसे पैरालिसिस का अटैक पड़ गया। 

"जीतू जल्दी आओ...! कमजोर दीक्षा सुरेश को दशा देख घबरा गई।

सुरेश बेहोश हो गया।उसे फौरन अस्पताल में भर्ती कराया गया। रिपोर्ट में पता चला कि ज्यादा पीने से और शुगर लेवल हाई हो जाने से लीवर और किडनी दोनों पर बुरा असर हो गया है।एक तो पैरालाइज्ड ऊपर से उसका डायलिसिस होगा ?यह सुनते ही सुरेश सदमे में चला गया।

"यह सब इसी का किया धरा है। इसने जरूर मुझे खाने में कुछ दे दिया इसलिए इसकी बीमारी मुझे लग गई।मुझे डायलिसिस नहीं करानी। मुझे हॉस्पिटल में नहीं रहना मुझे घर जाना..! सुरेश हठ पकड़कर बैठ गया था।

"दीक्षा को हर बात का दोष देना बंद करो सुरेश।यह उसने नहीं तुम्हारी बुरी आदतों और जिद का नतीजा है।अब तो अपनी हठ छोड़ दो। क्यों इन बुढ़ी हड्डियों को जिम्मेदारी के बोझ से दबा रहा है...!

रमाकांत की डाँट से सुरेश चुप बैठ गया।उसे बार बार दीक्षा की कही बात याद आ रही थी।'कहीं मेरे दुखी दिल की हाय तुम्हें न लग जाए सुरेश'!सबके कहने पर सुरेश डायलिसिस के लिए तैयार हो गया।

"मैं भी साथ चलूँगी..!" हॉस्पिटल जाते समय दीक्षा भी जिद करके साथ हो ली थी।डायलिसिस के लिए जाते समय भी अपनी आदत से मजबूर सुरेश ने दीक्षा को तंज कसा।"दीक्षा आज सच में मुझे तुम्हारी हाय लग गई..!

"सुरेश ऐसा न कहो..!" तड़पकर दीक्षा बोली।"उस दिन गुस्से और दर्द की वजह से मेरे मुँह से वो शब्द निकल गए थे।मैं कभी सपने में भी तुम्हारे लिए बुरा नहीं सोच सकती। मेरी ईश्वर से यही प्रार्थना है कि वो तुम्हें मेरी बची उम्र दे दे और तुम जल्दी स्वस्थ हो जाओ..!"

"डायलिसिस की प्रक्रिया शुरू भी नहीं हुई थी कि सुरेश को दिल का दौरा पड़ गया।उसे फौरन आईसीयू में शिफ्ट किया गया। डॉक्टर्स के सारे प्रयास विफल हो गए।

"आइ एम सॉरी..हम सुरेश को नहीं बचा पाए..! जैसे ही डॉक्टर ने आकर कहा तो रमाकांत ने लड़खड़ाकर जीतू को पकड़ लिया।

"सारे दुख सारी तकलीफें सिर्फ मेरे हिस्से क्यों प्रभु..? सुरेश सही कह रहा था कि उसे मेरी ही हाय लग गई..?यह सोचकर दीक्षा और टूट गई।वो ईश्वर से अपने लिए मुक्ति माँगते हुए रो पड़ी।

"माँ शांत हो जाइए। आप हिम्मत खो देंगी तो मेरा क्या होगा ? मैं तो अनाथ हो जाऊँगा..! कहते हुए जीतू रोने लगा।जीतू को रोते देख दीक्षा ने खुद को संभाल लिया पर सुरेश के अंतिम शब्दों की मार उसे तिल तिल मार रही थी।

"दीक्षा... दीक्षा..क्या सोच रही हो...?स्नेहा की आवाज से दीक्षा सोच के दायरे से बाहर निकल आई।

"ना नहीं कुछ नहीं..!हो गया डायलिसिस..?"

"हाँ हो गया..!स्नेहा बगल वाले बेड के पेशेंट के पास चली गई।

"मैं हूँ ना तेरे पास..डर मत कुछ नहीं होगा।बस हिम्मत करके चुपचाप लेटी रहो..!यह सुनकर दीक्षा ने बगल वाले बेड की और देखा।वहाँ अभी अभी कोई नई लेडी पेशेंट आकर लेटी थी।उसका पति उसके पैरों को सहलाते हुए उसे हिम्मत दे रहा था।यह देखकर दीक्षा को सुरेश की याद आ गई।वो ठंडी साँस भरकर बड़बड़ाई ।"काश कभी मेरे हिस्से ऐसा प्यार आया होता..?

"माँ कहाँ खोई हो...?घर चलें..! जीतू दीक्षा को लेने आ गया था।

"हम्म..चलो..! मैं ही ऐसी फूटी किस्मत लिखाकर आईं हूँ।मेरे पति ने मुझे कभी नहीं समझा और अंतिम समय में भी अपने शब्दों की मार से ऐसे घाव दे गया जो आज भी नासूर बन चुभते हैं ।

क्यों सुरेश क्यों..? क्यों इतनी नफरत थी मुझसे..?आज बारह दिसंबर आज ही के दिन हमारी शादी हुई थी। मुझे हमेशा याद रहा पर तुम्हें जब जब याद आया तब तब एनिवर्सरी पर मुझे थप्पड़ ही उपहार में मिले। दिल में उठती कसक से दीक्षा के आँसू बहने लगे।

"आज बहुत दर्द हो रहा है माँ..?"

"यह दर्द कभी कम हुआ जो अब होगा ?"

"मतलब..?"

क्या मतलब समझाती दीक्षा।"तू घर चल तुझे भूख लगी होगी..!" इतना कहकर दीक्षा ने अपनी आँखें मूँद ली और कार की सीट से टिककर बैठ गई।

अनुराधा चौहान 'सुधी'स्वरचित