Friday, January 22, 2021

पुरानी यादें


राधा तूने सायली के लिए आया इतना अच्छा रिश्ता क्यों ठुकरा दिया..? जानती नहीं कितने बड़े लोग हैं वो,बड़ा कारोबार है उनका, उन्हें घर संभालने वाली बहू चाहिए थी। बिना लेन-देन के शादी के लिए तैयार थे वो लोग,सायली को नौकरी के लिए भटकना नहीं पड़ता,वहाँ जाकर राज करती राज..! ममता ने अपनी छोटी बहन से कहा।

अरे दी..आप भी कहाँ-कहाँ से रिश्ते ढूँढकर भेजती रहती हो.. मैं आपसे पहले ही कह चुकी हूँ, मैं किसी कारोबारी के घर अपनी बेटी नहीं ब्याहने वाली, मेरी बेटी सपने साकार करने के लिए पैदा हुई है दी, घुट-घुटकर मरने के लिए नहीं..!

राधा यह सिर्फ मन बहलाने वाली बातें हैं।पैसा है तो सब-कुछ है।बेटी की ज़िंदगी संवर जाएगी समझी..!जरा सोच,तू ढूँढकर ला पाएगी ऐसा लड़का..? और फिर तेरे पास दहेज देने के लिए क्या है..? ममता ने पहले थोड़ा समझाते और बड़ी बहन के हक से डाँटते हुए कहा।


राज करने के लिए तो मेरा भी ब्याह बड़े कारोबारी से किया था दी..? क्या हुआ फिर यह तो सब आप जानती ही हैं..?अगर पिताजी ने पढ़ाई पूरी करने दी होती तो आज परिस्थिति कुछ और होती..!


राधा तू पुराने दुखड़ा मत सुनाया कर,यह सब तो नसीब का खेल है।जो तेरे साथ हुआ जरूरी नहीं सायली के साथ हो..? उस बात को लेकर सोने जैसा लड़का ठुकरा रही है..!


मेरी बेटी एक हीरा है दी अपनी ज़िंदगी खुद रोशन कर सकती है।हमेशा पढ़ाई में अव्वल रही और नौकरी भी उसे बहुत अच्छी कम्पनी में मिली है। पैसे से सुख नहीं मिलता दी आपसी प्रेम और समझ-बूझ से मिलता है।सायली को लड़का भले ही छोटी नौकरी करने वाला मिले, दोनों मिलकर साथ कमाएंगे तो ज़िंदगी अपनी मर्जी की जियेंगे..! राधा बोली।


ऐसी ज़िंदगी में क्या सुख है राधा जरा बता..? और फिर घर और ऑफिस संभालना आसान नहीं होता राधा।तू खुद सायली की कमाई पर जी रही है।पर शादी के बाद तेरा क्या होगा, कुछ सोचा है..?


सोचना क्या है दी..जब संघर्ष करते ज़िंदगी बीती है तो आगे की भी बीत जाएगी..!


जैसी तेरी मर्जी, मुझे क्या..आज देवेन्द्र जी होते तो बेटी यूँ घर न बैठी होती। मैं फोन रखती हूँ ,जब तू सायली की शादी तय कर लेना तो बुलावा भेज देना..!


अरे दी..हेलो हेलो दी..?हो गई नाराज..!यह दी भी ना..जानती नहीं क्या मेरे साथ क्या क्या हुआ था..? कितने सपने लेकर ससुराल आई थी।सब कहते थे पैसे वाले लोग हैं,राधा राज करेगी‌..!क्या खाक राज किया..हुंहहू राधा मुँह टेढ़ा कर बीते दिनों को याद करने लगी।


देवेन्द्र अब सारा काम राधा कर लेगी, तुम नौकरानी का हिसाब कर दो,चार लोगों के लिए नौकरानी की क्या जरूरत..?माता जी ने मातृभक्त बेटे को आदेश दिया।
जी माता जी..कल ही हिसाब कर देता हूँ.. देवेन्द्र ने जवाब दिया।


बड़े घर में राज जो शुरू हो गया था।मेरे आते ही नौकरानी गायब,ऊपर से देवर जी की फरमाइशें, भाभी जी यह चाहिए वो चाहिए। कपड़े पर कैसी इस्त्री की है..?आने दो भईया को उनको दिखाता हूँ आप कैसा व्यवहार करती हो.. नागेन्द्र की उद्दंडता पर माता जी चुप रहती थी।


देवर जी इतना चिल्लाने की जरूरत नहीं है। मुझे जैसी बनी मैंने कर दी, आपको नहीं पसंद तो बाहर करा लीजिए..!राधा के इतना कहने पर माता जी ने घर छोड़कर जाने की धमकी दे डाली। फिर जो तांडव मचा, उसने राधा के होंठ सी दिए।


चुपचाप घरवालों की गुलामी करती राधा को खुद के लिए जीने का समय नहीं मिलता था..!देवेन्द्र अपने कारोबार की सारी कमाई माता जी को सौंप अपना धर्म निभाते रहे। 
नागेन्द्र की पढ़ाई पूरी होते ही नागेन्द्र भी कारोबार में हाथ बंटाने लगे। देवेन्द्र की पहचान के कारोबारी  की लड़की से नागेन्द्र की शादी हो गई। राधा सोचती रह गई कि देवरानी के आने से उसका भार कम होगा,पर बड़े घर की बेटी पर माता जी के कृपा दृष्टि पड़ चुकी थी।


देवेन्द्र आप अब कुछ पैसे सायली के लिए भी जमा किया कीजिए,आगे उसकी पढ़ाई और शादी में काम आएंगे..!
क्यों कुछ कमी है तुम्हें, सायली की जरूरतों पर मैं ध्यान नहीं दे रहा..?या माता जी सब ठीक से मेनेज नहीं कर पा रही हैं क्या..? बोलो..? अगर ऐसा है तो मैं अभी उन्हें कह देता हूँ, तुम्हें घर की मालकिन बना दें.…! देवेन्द्र उखड़े अंदाज में बोले।


मेरा वो मतलब नहीं था।बस सायली के भविष्य की चिंता सता रही थी।आपको जो सही लगे कीजिए, मैं अब नहीं बोलूँगी।अगर आप कुछ पैसे तो अलग से दे सकें तो?सायली छोटी बच्ची है, स्कूल जाते समय कुछ माँग देती है तो और फिर स्कूल में रोज कुछ न कुछ खर्च लगा रहता है। माता जी को बार-बार परेशान करना अच्छा नहीं लगता..!


देवेन्द्र को यह बात समझ आ गई तो चुपचाप राधा को हर महीने सायली की फीस और स्कूल में होने वाले ऊपरी खर्चों के लिए राधा को दस हजार रुपए देने लगे। देवेन्द्र ने इस बात का जिक्र घर में नहीं किया और ना ही राधा ने किया।


राधा बचे पैसों को जमा करती रही।देवेन्द्र सब-कुछ माता जी को सौंपकर बेटी और पत्नी और अपने भविष्य को नजरंदाज करते रहे, अंत में मिला क्या..? देवेन्द्र के जाते ही देवर ने सारा कारोबार अपने कब्जे में कर लिया।


फिर वहीं हुआ जिसके लिए राधा हमेशा ही टोकती थी।मालिक बनते ही देवर का व्यवहार बदल गया। तिजोरी की चाबी अब देवरानी के साथ आ गई थी।उसे राधा और माता जी बोझ लगने लगे थे, घर में दो वक्त की रोटी भी शांति से नसीब नहीं थी।


पैसे चाहिए क्यों भाभी..?सायली की पूरे साल की फीस तो हम भर ही चुके हैं, स्कूल यूनिफॉर्म आ गई, पुस्तकें आ गईं अब और क्या चाहिए..?आपको पैसे की क्या जरूरत है.? नागेन्द्र ने कहा।


ज़िंदगी में सिर्फ यही जरूरत नहीं होती देवर जी।कई बातें बोली नहीं जा सकतीं और फिर मैं तुमसे कहाँ कुछ माँग रही हूँ।यह बिजनेस मेरे पति ने खड़ा किया था यह तो हमारा हक है।अब राधा की सहनशक्ति जवाब देने लगी थी।


तो लो संभाल लो बिजनेस..दो दिन में डूब जाएगा और तुम रास्ते पर आ जाओगी।यह लो पैसे पाँच हजार की गड्डी सामने फेंक नागेंद्र चला गया। माता जी की आँखें छलछला आईं।
राधा बहू मेरा बक्सा उठा लाओ..!


जी माता जी.. राधा अंदर से माता जी का बक्सा ले आई।यह लीजिए माता जी..!


माता जी को राधा हमेशा ही बड़े कठोर हृदय का समझती थी क्योंकि वो सुलूक ही ऐसा करतीं थीं।माता जी ने बक्सा खोलकर अपने जेवर राधा को दिए,इसे सायली के लिए रख लो बहू,अब सब कुछ बदल गया, मेरे हाथ में कुछ नहीं रहा..! मेरा देवेन्द्र तो राम था..! और यह पेपर संभालकर रख लो।यह हमारे पुराने घर के पेपर हैं जो मैंने नागेन्द्र के रंग देखकर देवेन्द्र के नाम कर दिया था।यह सिर्फ मैं और देवेन्द्र ही जानते थे..!


राधा की आँखें भर आईं.. आपने मुझे सिर पर छत दे दी वही बहुत है माता जी..! माता जी के पैरों में सिर रखकर सिसकने लगी।


रोज-रोज के क्लेश से आहत माता जी भी चल बसीं। माता जी के जाते ही राधा ने भी वो घर छोड़ दिया और पुराने घर में रहने चली आई।अब नागेन्द्र ने सायली की पढ़ाई के लिए पैसे देने बंद कर दिए।राधा ने जो भी जमा पूंजी और कुछ अपने गहने गिरवी रखकर सायली को पढ़ाया।


सायली ने भी कभी निराश नहीं किया कॉलेज में स्कॉलरशिप मिल गई तो राधा का बोझ हल्का हो गया।सायली के जॉब लगते ही राधा की परिस्थिति में सुधार होने लगा था। मेरी सायली ऐसे घर में नहीं जाएगी जहाँ उसे किसी की गुलामी करनी पड़े,नहीं-नहीं बिल्कुल नहीं..राधा बड़बड़ाई।


माँ तू किस सोच में डूबी है..?सायली ने घर में घुसते ही पूछा।
अरे तू कब आई..?


अभी आई माँ..पर तुझे मेरी फिक्र कहाँ..?माँ की गोद में सिर रखकर लेटते हुए सायली ने कहा।बता क्या हुआ..? इतना टेंशन क्यों..?


तेरी मौसी ने एक रिश्ता भेजा था। बहुत ही पैसे वाले लोग थे। बिना दहेज शादी के लिए तैयार थे।पर शादी के बाद बहू से नौकरी करवाना उनकी शान के खिलाफ था.. मैंने ऐसे रिश्ते के लिए मना कर दिया तो मौसी नाराज हो गईं।


हो जाने दे माँ.. कुछ दिन की नाराज़गी है सब ठीक हो जाएगा। हमने पापा के जाने के बाद जो सहा वो किसी को कैसे महसूस होगा..? अगर आप मेरी पढ़ाई के लिए पैसे जोड़कर न रखतीं तो शायद मैं पढ़ भी ना पाती..तू चिंता मत कर माँ सब अच्छा हो जाएगा..सायली राधा से लिपटते हुए बोली।


सायली की बातों से राधा का मन हल्का हो गया।चल तू हाथ-मुँह धोकर आ, मैं खाना गरम करती हूँ.. राधा रसोई में जाते हुए बोली।


जी माँ..सायली कमरे में चली गई। राधा भी पुरानी यादों को झटककर किचन में खाना गरम करने लगी।
©® अनुराधा चौहान स्वरचित ✍️
चित्र गूगल से साभार


Saturday, January 9, 2021

वीर सैनानी कनाईलाल दत्त


दादी माँ..!! आप क्या कर रही हो..? हर्ष और रूही गायत्री के कमरे में प्रवेश करते हुए बोले।

कुछ नहीं बेटा..बस अकेली बैठी बोर हो रही थी तो बस कुछ पुरानी तस्वीरें देखने लगी..!पर तुम दोनों इस समय..?

दादी माँ हमें नींद नहीं आ रही, मम्मी पापा से कहानी सुनाने के लिए कहा तो उन्होंने मना कर दिया..!

ओह..दिन भर ऑफिस में काम करके दोनों बहुत थक जाते हैं।आओ मेरे पास लेट जाओ,आज भारत के वीर सपूत कनाईलाल दत्त के बारे में बताती हूँ..!

वीर सपूत..?वो क्या होता है दादी माँ..?

वीर सपूत अपनी मातृभूमि की रक्षा के लिए अपना जीवन कुर्बान कर देते हैं पर अपनी भारत माता पर कोई आँच नहीं आने देते। अच्छा अब दोनों चुपचाप कहानी सुनो..!

यह कहानी है आजादी के मतवाले वीर कनाईलाल दत्त की..!

देश की आज़ादी के लिए मात्र उन्नीस वर्ष की आयु में हँसते-हँसते फाँसी के फंदे पर झूलने वाले खुदीराम बोस को तो सभी जानते हैं। खुदीराम बोस की तरह ही देश की आजादी के लिए सबसे कम उम्र में फाँसी पर चढ़ने वाले आज़ादी के दूसरे सिपाही थे कनाई लाल दत्त..! 

अंग्रेजी हुकूमत से अपने देश को आजाद कराने के लिए न जाने कितने युवक-युवतियों,बच्चे बूढ़े इन सभी ने अपने प्राणों को न्यौछावर कर दिया।आज हम चैन से जी पा रहे हैं तो इन्हीं वीरों के बलिदान के कारण..!

कनाई लाल दत्त भी उन्हीं वीरों में से एक थे। कनाईलाल का जन्म 30 अगस्त, 1888 को बंगाल में हुगली ज़िले के चंदन नगर में हुआ था।उनके पिता चुन्नीलाल बम्बई में ब्रिटिश सरकार के नौसेना विभाग में एकाउंटेंट थे और इस वजह से वह अपने परिवार को भी बम्बई ले आए‌। कनाईलाल दत्त की प्रारम्भिक शिक्षा बम्बई में हुई थी। 

बम्बई कहाँ है दादी माँ..?

मुंबई ही बम्बई है बच्चों,पहले हमारे मुंबई शहर को बम्बई नाम से जाना जाता था।कनाई लाल अपनी प्रारंभिक शिक्षा आर्य शिक्षा सोसाइटी स्कूल में पूरी करने के बाद वापस चंदन नगर लौट आए।वापस आकर उन्होंने हुगली के कॉलेज में दाखिला ले लिया।उसी दौरान उनकी मुलाक़ात प्रोफेसर चारूचंद्र रॉय से हुई।

प्रोफेसर चारूचंद्र रॉय से मुलाकात के बाद कनाईलाल दत्त की विचारधारा बदलने लगी।उनके क्रांतिकारी विचारों का प्रभाव कनाई पर भी पड़ने लगा और उनके मन में ब्रिटिश हुकुमत को जड़ से उखाड़ फेंकने की लालसा ने जन्म ले लिया। 

कनाईलाल दत्त युगांतर पार्टी से जुड़ने के बाद और भी बहुत से क्रांतिकारियों के संपर्क में आए।वह दौर‘बंगाल विभाजन’ का दौर था।अंग्रेजी हुकुमत ने बंगाल को बाँटने का फरमान जारी किया तो उनके इस फैसले के खिलाफ युवा क्रांतिकारियों ने आन्दोलन शुरू कर दिया।

कनाई लाल ने भी चंदननगर से आंदोलन का मोर्चा निकाला।कनाई लाल की क्रान्तिकारी गतिविधियो को देखते हुए कॉलेज ने उन पर ग्रेजुएशन की डिग्री रोकने का दबाव बनाया पर फिर भी वो रुके नहीं, अपने इरादों को मजबूत आगे बढ़ते गए।

कनाईलाल कोलकाता में बारीन्द्र कुमार घोष के घर में रहते थे। इसी घर में यह क्रान्तिकारी अपने हथियार और गोला-बारूद भी रखते थे।

हथियार और गोला-बारूद..? दादी माँ वो क्यों..?

अंग्रेजी हुकूमत के जुल्मों से अपने देश को आजाद कराने के लिए इन सब चीजों की कब जरूरत पड़ जाए इसलिए..!

ओह अच्छा..!

30 अप्रैल 1908 को खुदीराम बोस और उनके साथी प्रफुल्ल चंद्र चाकी ने मुज़फ्फरपुर में किंग्सफ़ोर्ड पर बम फेंक दिया।उस घटना से ब्रिटिश सरकार की नींदें उड़ गई। गुस्से से तिलमिलाई ब्रिटिश सरकार क्रान्तिकारियों को गिरफ्तार करने के लिए जगह-जगह छापेमारी करने लगी।उसी दौरान पुलिस को कनाई और उनके साथियों की गतिविधियों पर शक हो गया।

2 मई 1908 को पुलिस ने बारीन्द्र घोष के घर पर भी छापा मारा और उन्हें उस घर में एक बम फैक्ट्री और काफी मात्रा में हथियार मिले।इसके बाद अंग्रेजों ने अरविन्द घोष, बारिन्द्र कुमार घोष, सत्येन्द्र नाथ (सत्येन) व कनाई लाल समेत 35 क्रान्तिकारियों को गिरफ्तार कर लिया। 

कन्हाई लाल दत्त के साथ-साथ उसके प्रेरक प्रोफ़ेसर चारु चन्द्र राय भी बन्दी बनाये गये थे। सब पर अभियोग चला किन्तु चारू चन्द्र राय को फ्रांसीसी सरकार की बस्ती का नागरिक होने के कारण रिहा कर दिया गया।

सभी क्रान्तिकारियों को गिरफ्तार कर अलीपुर जेल में रखा गया और सब पर विद्रोही होने का मुकदमा चलाया गया।गिरफ्तार होने वाले लोगों में, कनाईलाल दत्त का सहयोगी नरेंद्र नाथ गोस्वामी भी था।उन सभी से उनकी योजनाओं और साथियों का सच उगलवाने के लिए पुलिस ने कठोर यातनाएं दीं, परंतु किसी ने अपना मुँह नहीं खोला।

कनाईलाल के सहयोगी नरेन्द गोस्वामी ब्रिटिश सरकार की यातना के डरकर और जेल से छूटने के लालच में अपने साथियों के साथ गद्दारी कर पुलिस को क्रांतिकारियों के ठिकानों की जानकारी देना शुरू कर दी।

फिर क्या हुआ दादी माँ..सब पकड़े गए..?

बताती हूँ..आगे सुनो..! नरेन्द्र गोस्वामी से सूचना पाकर पुलिस ने उनके गुप्त ठिकानों पर छापे मारना शुरू कर दिया और भी बहुत सारे क्रान्तिकारियों को पकड़ लिया गया। उसके बाद नरेन्द्र गोस्वामी ने इन क्रान्तिकारियों के और भी कई सारे राज उजागर कर दिए। 

कनाईलाल दत्त और उनके साथियों को अपनी सभी योजनाओं पर पानी फिरता दिखाई देने लगा।उन्होंने मन ही मन ठान लिया कि हमारी मातृभूमि के साथ दगा करने वाले को सबक सिखाना ही होगा ताकि और कोई इस तरह की गद्दारी न कर सके।

नरेंद्र गोस्वामी को क्रान्तिकारियों के गुस्से से बचाने के लिए पुलिस ने विशेष सुरक्षा प्रदान की और उसे उन सब से अलग जेल में रखा। ताकि उसे इन लोगों से किसी प्रकार का खतरा न रहे।

कन्हाई लाल और सत्येन्द्र अपनी योजना पर तेजी से कार्य कर रहे थे।उन्होंने सबसे पहले जेल के पहरेदारो से घनिष्टता बढाई और अपनी बातों से उन्हें बहुत हद तक प्रभावित कर लिया।फिर साथियों के सहयोग से जेल के भीतर लाये जाने वाले कटहल- मछली के भीतर छुपाकर लाई गईं दो पिस्तौल प्राप्त करने में सफल हो गये।

अब उनका अगला लक्ष्य था नरेंद्र तक पहुँचना,नरेन्द्र अपने अगले बयान में क्रान्तिकारियों के अन्य ठिकानों का पर्दाफाश करें उससे पहले कनाईलाल और सत्येन ने एक योजना बनाई।सत्येन अचानक बीमार होने का नाटक करने लगे,यह देख उन्हें जेल के अस्पताल में पहुँचा दिया गया।

उनके बाद कनाईलाल दत्त ने भी पेट में अत्याधिक पीड़ा का नाटक शुरू कर दिया। सत्येंद्र तो पहले ही बीमारी का बहाना बना कर अस्पताल पहुँच चुके थे और उन्होंने पुलिस के मुखबिर बनने की बात मानकर नरेन्द्र से मिलने की इच्छा जाहिर कर दी। इधर भयंकर पेटदर्द का बहाना बनाकर कनाईलाल भी अस्पताल में भर्ती हो गए थे।

सत्येंद्र के मुखबिर बनने की खबर सुनकर नरेन्द्र भी खुश हो गए और उनसे मिलने अस्पताल जा पहुँचे। नरेन्द्र इस बात से पूरी तरह अनजान थे कि वह कनाईलाल और सत्येंद्र के बनाए चक्रव्युह में फस चुके हैं। जैसे ही नरेन्द्र उनसे मिलने आए वैसे ही अचानक सत्येन्द्र ने उन पर फायर कर दिया।

नरेन्द्र जान बचाकर भागने लगे तो दर्द का बहाना कर बिस्तर पर लेटे कनाईलाल ने बड़ी फुर्ती से नरेन्द्र का पीछा कर पिस्तौल की सारी गोलियाँ उनके जिस्म में उतारकर भारत माता से की गई गद्दारी का बदला ले लिया।

अंग्रेजों का सुरक्षा कवच भी उस गद्दार के जीवन को नहीं बचा पाया।अंग्रेजी हुकूमत के सामने ही कनाईलाल ने अपने सहयोगी सत्येन बोस के साथ मिलकर गवाही से पहले ही नरेन्द्र की हत्या कर दी।

कनाईलाल के इस कारनामे से ब्रिटिश सरकार गुस्से से तिलमिला उठी। आनन-फानन में उन्होंने उन्हें फाँसी की सजा सुना दी।पूरे मुकदमे के दौरान कनाईलाल जरा भी विचलित नहीं हुए।जब जज ने उनसे इस घटनाक्रम के बारे में पूछा तो उन्होंने कहा कि वह देश का गद्दार था, उसे मारने का उन्हें कोई अफसोस नहीं है।।सजा के बाद जब अपील का प्रश्न उठा तो कनाई ने अपील करने से साफ़ मना कर दिया।

फाँसी की सजा सुनकर कनाईलाल के चेहरे पर मुस्कान तैर गई।जिसे देखकर अंग्रेज वार्डन ने चिढ़कर कहा कि अभी मुस्करा रहे हो, कल जब फाँसी का समय आएगा तब तुम्हारे चेहरे का रंग उड़ जाएगा।

फाँसी के दिन जब जेल के कर्मचारी उन्हें लेने के लिए उनकी कोठरी में पहुँचे, उस समय कनाईलाल दत्त गहरी नींद में सोये हुए थे। फाँसी पर चढ़ने से कुछ ही देर पहले कनाईलाल ने मुस्कुराते हुए उसी अंग्रेज वार्डन से पूछा “ जरा बताइए अभी मैं आपको कैसा लग रहा हूं।” उस वार्डन के पास कनाईलाल के इस सवाल का कोई जवाब नहीं था।

10 नवंबर 1908 को भारत माता के वीर सपूतों को फाँसी पर चढ़ा दिया गया। कनाईलाल के परिवार वाले जब उनका पार्थिव शरीर लेने गए तो उन्हें खुद पर काबू करना मुश्किल हो रहा था तब उसी वार्डन ने प्रोफेसर चारू से कहा कनाईलाल जैसे सौ वीर और जन्म ले लें तो भारत ज्यादा दिनों तक गुलाम नहीं रह सकता। 

कनाई के बड़े भाई अपने भाई का शव देखकर रोने लगे तो वार्डन ने कहा वीर कभी मरा नहीं करते,आप धन्य हो कि कनाईलाल जैसे वीर ने आपके घर जन्म लिया।साथ आए सभी लोग यह देखकर चकित थे कि उस अंग्रेज वार्डन की आँखें भी कनाईलाल के बलिदान से नम हो गई थी।

कनाईलाल के मुख से चादर हटाई गई तो मृत्यु पश्चात भी उनके मुखमंडल पर मरने की पीड़ा किंचित मात्र भी नहीं था,बस एक हल्की-सी मुस्कान तैर रही थी।जेल में पिस्तौल कैसे पहुँची यह जानने की ब्रिटिश सरकार ने बहुत हाथ-पैर पटके पर जेल के अंदर एक देशद्रोही को उसके अंजाम तक पहुंचाने के लिए कनाईलाल और सत्येंद्र के पास हथियार कैसे पहुँचे..?यह राज पता नहीं कर पाई।

इस घटना ने पूरे देश में तहलका मचा दिया कि कैसे दो क्रांतिकारियों ने ब्रिटिश पुलिस की नाक के नीचे इतना बड़ा कारनामा कर दिखाया, उनके सामने उनके गवाह की हत्या कर दी गई और वो कुछ न कर पाए। 

कनाईलाल दत्त बीस वर्ष की आयु में खुदीराम बोस के बाद सबसे कम उम्र में फाँसी के फंदे पर झूलने वाले दूसरे क्रांतिकारी थे। फाँसी के बाद उनकी अंतिम यात्रा में आज़ादी के इस परवाने के अंतिम दर्शन करने के लिए हजारों की संख्या में लोगों की भीड़ जमा हो गई थी।। 

कोलकाता का कालीघाट लोगों से भर गया था और हर कोई अंतिम बार इस महान क्रांतिवीर के दर्शन करना चाहता था। चारों तरफ ‘जय कनाई’ कनाईलाल की जय के नारे गूँजते नारे ब्रिटिश सरकार को भारत से उखाड़ फेंकने का आगाज कर रहे थे।

कनाईलाल दत्त जैसे वीरों की कुर्बानी से आज हम आजाद भारत से चैन से रह रहे हैं।कनाईलाल दत्त जैसे वीरों की शहादत को शत् शत् नमन।

हम भी शत-शत नमन करते हैं दादी माँ..!


अब जाओ, दोनों चुपचाप सो जाओ..!

जी दादी माँ.. शुभ रात्रि..!


©® अनुराधा चौहान'सुधी'स्वरचित ✍️

चित्र और जानकारियाँ गूगल से साभार