Monday, August 26, 2019

सांवला सलोना गोपाला

जनम लियो नंदलाला,
गोकुल में धूम मची।
सांवला सलोना गोपाला,
यशोमती मैया मुख चूम रही।

नन्हे हाथों में पहन कंगना,
घनश्याम खेलें नंद के अंगना।
ढुमक-ढुमक चले पहन पैंजनी,
रत्न जड़ित बंधी कमर करधनी।

सांवला सलोना गोपाला,
यशोमती मैया मुख चूम रही।

गले पहन माल बैजयंती,
तोड़न लागे माखन मटकी।
भोली सूरत कर माखन चोरी,
कहें मैया से नहीं मटकी फोड़ी।

सांवला सलोना गोपाला,
यशोमती मैया मुख चूम रही।

नटवर नागर कृष्ण कन्हैया,
नाच नचाएं बंशी बजैया।
बंशी की धुन पर झूमते-गाते,
सबके मन को कृष्ण रिझाए।

सांवला सलोना गोपाला,
यशोमती मैया मुख चूम रही।

नीलवर्ण पीताम्बर धारी,
रास रचाएं गोवर्धन धारी।
झूमे ब्रज झूमे बरसाना,
बड़ा नटखट नंद का लाला।

सांवला सलोना गोपाला,
यशोमती मैया मुख चूम रही।

***अनुराधा चौहान***

Wednesday, August 7, 2019

पारो भाग (4)

कुंती जबसे शिवा से मिलकर आईं थी बहुत बेचैन हो रही थी, उसका मन फिर से शिवा को देखने के लिए बेचैन हो रहा था। शिवा इस सब से बेखबर अपनी ज़िंदगी से खुश होकर गीत गा रहा था।साथ ही बड़ी मधुर बांसुरी बजा रहा था।
"मनवा बड़ा बेचैन
नहीं आवे दिल को चैन
आजा पारो छनकाती पायल
मिले नैनों से नैन..."
वाह क्या बात है..!ऐसा लग रहा है हुजूर तो पूरे मजनू बन गए हैं.. सही कह रहा हूँ न शिवा।
अरे केशव!! अरे ऐसा कुछ नहीं..मैं.. वो.. मैं तो बस... यूँ ही...
हड़बड़ाकर बोला शिवा।
केशव से शिवा हर तरह की बातें किया करता था, वही एक हमराज है जिसे शिवा के दिल का हाल पता है।
और बता कहाँ तक बात पहुँची...पारो ने कुछ कहा तुझसे..?
नहीं कहा तो कह देगी.. आँखों में दिखाई देता है जो उसके मन में है।
सुन शिवा दुष्यंत पर नजर रखियो.. उसके ढंग सही न लग रहे पारो का पीछा करता फिरता है।हम्म..देखा है मैंने भी...मेरे होते हुए हाथ भी लगाकर देखें पारो को... उसकी सब हेकड़ी निकालूँगा.. होगा जमींदार का बेटा तो अपने लिए।
तभी पारो आती दिखाई देती है..लो आ गई अब दोनों मिलकर गीत गाओ मैं चलता हूँ। केशव पारो को देखकर चला जाता है।
क्या हुआ अचानक तेरा मूँह क्यों लटक गया..? अभी तो बड़ा बातें कर रहा था उस केशव से मुझे देखकर चुप हो गया।मेरा आना अच्छा नहीं लगा तो मैं वापस जा रही हूँ।
पारो वापस जाने के लिए मुड़ी वैसे ही दौड़कर शिवा ने उसे पकड़ लिया,अररे.. रुक तुझसे मिलने के लिए ही यहाँ आकर बैठता हूँ , और तू है कि मेरी बात सुने बिना ही चल दी।
तो बोल क्या हुआ..? वो दुष्यंत के बारे में कह  रहा था केशव कल देखा उसने उसे तेरा रास्ता रोकते।
ओह यह बात है... अरे उसे मैंने ही रोका था...बस उससे बात करने का मन हुआ तो..पारो ने शिवा को छेड़ने के लिए झूठ बोला।
यह तू क्या कह रही है तूने क्यों रोका..? तुझे पता नहीं कितना
बेकार है वो... अरे वो तेरे लिए  बेकार होगा.. मुझे तो वो बड़ा सुंदर लगता है।
लंबा है,गोरा है, पैसे वाला है पारो शिवा के चेहरे पर जलन के भाव देख बहुत खुश हो रही थी।
अच्छा ऐसी बात है तो यहाँ क्या करने आई है जा उसी के पास जा... ‌‌‌वो लम्बे,गोरे के पास.. शिवा नम होती आँखों को छिपाने की कोशिश करता हुआ घूमकर खड़ा हो गया।
पारो को शिवा की आँखों में आँसू देखकर अपनी गलती का अहसास हुआ।अररे..अररे तुम तो बुरा मान गए..ऐ शिवा माफ कर दे.. शिवा कुछ नहीं बोला।
यह तो सही में गुस्सा हो गया पारो मन ही मन बोली।उसे खुद पर गुस्सा आने लगा था। फिर वो भी उसे मनाने के लिए गीत गुनगुनाने लगी।
"यूँ ही रूठे रहोगे तुम हमसे
जान निकल जायेगी तन से
हो गई है गलती कर दे माफ़
बिन शिवा पारो न रहे जिंदा।
शिवा पारो के मुँह पर हाथ रखकर कहता है श्श्श फिर से ऐसा मत कहना तुझसे पहले मेरी जान निकल जायेगी।
ओह शिवा...पारो शिवा के गले लग जाती है। मुझे माफ़ कर देना।
इधर कुंती शिवा से मिलने के बहाने ढूँढने लगी, कुछ सोचकर उसकी आँखों में चमक आ जाती है।
उसे याद आया शिवा बहुत मधुर बांसुरी बजाता है,हर जन्माष्टमी को मंदिर में शिवा ही बांसुरी बजाया करता है।
वो दौड़कर रामव्रत के पास गई,बापू.!!बापू मुझे बांसुरी बजाना सीखना है।
यह क्या नयी मांग लेकर आ गई कोई बांसुरी बजाना नहीं सीखना..घर के काम सीख माँ का हाथ बटाया कर घर के काम-काज में..रामव्रत के मना करने पर भी कुंती जिद्द लेकर बैठ गई।
क्रमशः
***अनुराधा चौहान***


Monday, August 5, 2019

पारो भाग ( 3)

शिवा पारो को जाते हुए देखता रहता है फिर खेतों में पिता की मदद करने लग जाता है।
दुष्यंत जिसे अपने से छोटे लोगों से हमेशा नफ़रत रही है स्कूल में भी उसका पारो से अक्सर झगड़ा हो जाता करता था।
तब उस अपने आस-पास शिवा और पारो कतई बर्दाश्त नहीं होते थे,पर अब उमर का तकाजा था सोलह बरस की उमर में लड़के-लड़कियों की एक-दूसरे के प्रति आकर्षक की भावनाएं जागने लगती हैं,वही तीनों के साथ हो रहा था।
दुष्यंत को पारो की सुंदरता अपनी और आकर्षित कर रही थी,वो उससे बात करने के लिए मिलने के मौके तलाश रहा था।
दुष्यंत जमींदार का बिगड़ैल लड़का था जो एक बार ठान लिया वो चाहिए ही चाहिए।वो पारो पर छुप-छुपकर निगाह रखने लगा।
कब और किस वक़्त उसे पारो अकेली मिलेगी।तो वह उससे बात कर सकें।
एक दिन पारो सुखिया को खाना देकर वापस आ रही थी और उस वक़्त शिवा अपने घर गया हुआ था, दुष्यंत ने पारो का रास्ता रोक लिया।
कहाँ जा रही है पारो...?जरा रुक जा..इतनी भी क्या जल्दी है जाने की..? कभी मुझसे भी बात कर लिया कर...दुष्यंत पारो से बेशर्मी से बोला।
कुए में गिरने जा रही हूँ तू चलेगा साथ...? और यह क्या रास्ता रोकने का का नया नाटक है तेरा... वैसे तो कभी बात नहीं करता था आज क्या हुआ..?
अरे अरे तू तो गुस्सा होने लगी मैंने तो बस यूँ ही पूछ लिया था तुझे बुरा लगा तो माफ़ कर दे ,बेशर्मी से हँसते हुए दुष्यंत ने कहा।
पारो वहाँ से चली गई। तेरी सारी हेकड़ी निकालूँगा एक दिन पारो..! दुष्यंत मन ही मन बड़बड़ाता हुआ वहाँ से जाने के लिए मुड़ता है।
और पीछे से अचानक उसके सामने कुंती आकर खड़ी हो जाती है। दोनों हाथ कमर पर रख कर दुष्यंत से पूछती है,यह सब क्या चल रहा है दुष्यंत...?"कहाँ कुछ भी तो नहीं"दुष्यंत सफाई से झूठ बोल गया।
तुम्हें क्या लगता है मैं अंधी हूँ..? मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा है देख दुष्यंत तेरे पर न सिर्फ मेरा हक है... ज्यादा चालाकी मत करना मुझसे... वरना बापू से सब बता दूँगी।
अरे अरे तू तो नाराज़ हो गई ऐसा कुछ भी नहीं है बापू के नाम से दुष्यंत घबड़ाकर बोला,तू तो मेरी अच्छी दोस्त है, तुझसे झूठ काहे बोलूँगा,अच्छा चलता हूँ एक जरूरी काम से जाना है,दुष्यंत झूठ बोलकर वहाँ से चला जाता है।
दुष्यंत के पिता बीरपाल और कुंती के पिता सागौन की लकड़ी बेचने का कारोबार करते हैं इस कारोबार में दोनों बराबर के हिस्सेदार हैं ।
कुंती के पिता के पास बीरपाल से कहीं ज्यादा संपत्ति थी। कुंती के पिता रामव्रत की पत्नी जानकी अपने माता-पिता की इकलौती संतान थी। इसलिए जानकी के माता-पिता की संपत्ति भी रामव्रत को मिली उससे वो बीरपाल से ज्यादा धनवान हो गया था।
कुंती भी अकेली संतान थी। दुष्यंत दो भाई एक बहन थे बड़ा विश्वजीत बहुत ही समझदार और पढ़ने में तेज था,शहर पढ़ने गया और एक दुर्घटना का शिकार होकर इस दुनिया से चला गया।
इसलिए दुष्यंत को बीरपाल ने शहर पढ़ाई करने नहीं भेजा था।बहन बड़ी थी उसकी शादी हो चुकी थी।
बीरपाल एक लालची किस्म का इंसान था इसलिए उसने बचपन में ही दुष्यंत और कुंती का रिश्ता पक्का कर दिया था, इसलिए कुंती उस पर अपना एकाधिकार समझती थी। और बात-बात में बापू की धमकी देकर दुष्यंत को दबाती थी।
बीरपाल की पत्नी सुगना ने दुष्यंत को समझा रखा था,अगर उसकी वजह से नाराज़ होकर रामव्रत ने यह रिश्ता तोड़ दिया तो उसके बापू उसे घर से निकाल देंगे।
यही कारण था दुष्यंत कुंती को देखकर सकपका गया था और सफाई से झूठ बोल कर वहाँ से निकल गया।
पर सही मायने में प्यार सिर्फ पारो और शिवा के बीच जन्म ले रहा था। कुंती तो पिता के द्वारा तय रिश्ते को ही प्यार समझ रही थी, दुष्यंत मतलब के लिए कुंती से अपनापन दिखा रहा था।
दुष्यंत कुंती को बहलाकर चला गया, कुंती गुस्से में बड़बड़ाती हुई वहाँ से घर के लिए चली और रास्ते में अचानक से शिवा से टकराकर गिरने लगी, तो शिवा ने संभाल लिया।
शिवा से आँखें मिलते ही कुंती एक क्षण के लिए सुध-बुध खो बैठी, अजीब से अहसास दिल में हिलोरें लेने लगे।
तुम ठीक हो..?चोट तो नहीं लगी..? शिवा की आवाज से कुंती हड़बड़ा गई, नहीं-नहीं चोट नहीं लगी..! मैं ठीक हूँ।
शिवा वहाँ से चला गया पर कुंती जब-तक शिवा आँखों से ओझल नहीं हो गया, उसे देखती रही।
यह कैसा अहसास हुआ मुझे, ऐसा लगा जैसे मन में तरंगें उठने लगी थी। दुष्यंत के साथ मुझे कभी ऐसा नहीं लगा, कुछ तो बात है शिवा में तभी पारो इसकी दीवानी हो रही है।
दुष्यंत पारो के पीछे पड़ा हुआ था,इधर कुंती के मन में शिवा का अहसास रोमांच जगाने लगा था
क्रमशः
***अनुराधा चौहान***

Sunday, August 4, 2019

पारो भाग (2)

 
इधर हरिया और सुखिया दोनों बच्चों को लेकर सपने संजोए बैठे हुए थे। उधर शिवा के मन में भी पारो को लेकर अहसास जाग रहे थे।
शिवा पारो को बुलाता रहा जाता है,वो उसे चिढ़ाकर हँसती हुई सुखिया के पास चली जाती है।
शिवा पारो को जाता देख मुस्कुरा उठता है,"पगली हमेशा बच्चों जैसी हरकतें ही करती रहेगी"और वहीं रुककर उसका इंतज़ार करने लगता है।
थोड़ी देर में पारो घर जाने के लिए लौटकर आती है तो शिवा को देखते ही,तू यहीं खड़ा है तबसे..?
हां..! तुझसे बात करनी है.... पर मुझे नहीं करनी घर पर माँ इंतज़ार कर रही है... मुझे पानी भरने जाना है, तेरी तरह काम से जी चुराकर किसी का पीछा नहीं करती।
अच्छा जी... बहुत बातें आने लगी तुझे..पता है तेरा काम अभी घर जाकर रेडियो चालू करके गाना सुनेगी और बेसुरी आवाज़ में गाना गाएगी।
मैं बेसुरी..!! तूने मुझे बेसुरी कहा...हाँ कहा..शिवा को पारो को छेड़ने में बहुत मज़ा आ रहा था।
रुक जरा..! पारो ने पास पड़ी लकड़ी उठाई और शिवा को मारने दौड़ी,शिवा आगे-आगे,पारो पीछे-पीछे शिवा अपने खलिहान के पीछे जाकर खड़ा हो गया।
बस थक गया..? रुक बताती हूँ कौन बेसुरा है... जैसे ही शिवा को मारने के लिए हाथ उठाया,शिवा ने हाथ पकड़कर अपनी ओर खींच लिया।
पारो को इसकी आशा नहीं थी इसलिए वो शिवा के खींचने से उसके ऊपर आ गिरी। शिवा की नजरों से नजर मिलते ही पारो को एक अजीब-सा अहसास हुआ,वो झटके से अलग होकर चुपचाप खड़ी हो गई।
शिवा भी चुपचाप खड़ा होकर पारो के चेहरे को देखने लगा फिर सकपका कर बोला,वो मैं.. मुझे.. मुझे तुझे कुछ दिखाना था।
क्या..? पारो के चेहरे से साफ मालूम पड़ रहा था कि अचानक शिवा के सीने से लग जाने की वजह से शर्म से लाल हो रही थी।
"आ मेरे साथ"शिवा उसे लेकर उस पेड़ के नीचे आता है जहाँ खेलकूद के बड़े हुए थे।"आँखें बंद कर"क्यों..?"सवाल मत कर"पारो आँख बंद कर लेती है।
तभी उसे कान के पास चूड़ियों के खनकने की आवाज़ सुनाई देती है।खोलूँ आँखें..?"नहीं रुक जरा"शिवा उसे चूड़ियाँ पहनाने लगता है।
तू चूड़ी लाया मेरे लिए..? मुझे देखनी हैं.. पारो बच्चों के जैसी जिद्द करने लगी। रुक पहना लेने दे...हाँ अब आँखें खोलकर बता कैसी हैं।
पारो आँखें खोलकर देखती है शिवा ने सही में बहुत ही सुंदर चूड़ियाँ पहनाई थी। बिल्कुल वैसी ही चूड़ियाँ थी जो सावन के मेले में चूड़ी बेचने वाले के पास देखकर वो माँ से लेने की जिद्द कर रही थी।
अरे वाह इत्ती सुंदर चूड़ियाँ...!तू मेरे लिए लाया..? नहीं मेरी माई के लिए बस तुझे पहनाकर देख रहा था, शिवा ने पारो को छेड़ते हुए कहा।
पारो यह सुनकर उदास होने लगती है तो शिवा हँस देता है। अरे पगली तेरे लिए ही लाया हूँ।ओह मेरे शिवा.. पारो शिवा के गले लग गई।
शिवा भी उसके भोले चेहरे को देखता रह गया, दिन पर दिन रूप निखर रहा था पारो का काजल लगी बड़ी-बड़ी आँखें कोई देखे तो दिवाना हो जाए।
अचानक पारो को अपनी गलती का अहसास हुआ तो शिवा से दूर होकर शरमाने लगी।
मैं घर जा रही हूँ..?हाँ तो जा ना किसने रोका तेरा ही मन नहीं है मुझसे दूर जाने का। धत् पागल..कहकर पारो भागी फिर रुक गई,माई चूड़ियों के बारे में पूछेगी तो क्या बोलूंगी शिवा.. पारो ने शिवा से पूछा।
अरे इसमें क्या चोरी है..बोल देना मैंने दिलाईं हैं... पहले भी तो कई बार लाया हूँ..माई कहाँ कुछ बोलती है।
पहले की बात और थी शिवा हम बच्चे थे और अब..हाँ बोल अब क्या..बोल न पारो अब क्या बदल गया हम दोनों के बीच? कुछ नहीं तू पागल का पागल ही रहेगा पारो भाग जाती है।
शिवा मंद-मंद मुस्कुराते हुए पारो को जाता देखता रह गया।
शिवा और पारो का प्रेम धीरे-धीरे परवान चढ़ रहा था, उनके इस मेल-मिलाप पर कोई पैनी नजर गढ़ाए था।
वो था गाँव के जमींदार का बेटा दुष्यंत जिसे पारो की सुंदरता अपना दिवाना बना रही थी।
क्रमशः
***अनुराधा चौहान***