Wednesday, December 26, 2018

खोलो मन के द्वार

खोलो मन के द्वार
आने दो प्रेम की बाढ़
सब विषाद बह जाने दो
खुशियों को लहराने दो
क्या रखा अकेले जीने में
घुट-घुट कर दर्द सहने में
बीत चली अब साल पुरानी
नई साल की करो अगवानी
नववर्ष की जब मचेगी धूम
बुरी बातों को जाना तुम भूल
द्वार दिल के रखना खोलकर
खुशियां न लौटे मुंह मोड़कर
देख दिल के बंद दरवाजे
किसी को भी नहीं लगते प्यारे
चलो मिटाएं मन से द्वेष
बना रहे सभी का मन प्रेम
 ***अनुराधा चौहान***

Monday, December 24, 2018

बर्बादी का मंजर


अरे सुनती हो!!हरीहर बड़ा खुश दिखाई दे रहा था। पत्नी शीला को आवाज लगाता हुआ घर में प्रवेश करता है।
शीला साड़ी के पल्लू से हाथ पोंछती हुई आती है,क्या हुआ दुर्गा के बापू? आ बैठ बताता हूं तनिक पानी और गुड़ लेकर आजा। शीला जल्दी से पानी और गुड़ लेकर आती है।
हरीहर बताता है आज दुर्गा का रिश्ता पक्का कर दिया उसने पास के गांव के जमींदार के यहां। दहेज में एक लाख रुपए और सब सामान देना है। कहां से लाओगे दुर्गा के बापू इतना सब? दुर्गा चुपचाप माँ-बाप की बातें सुन रही थी। अरे तू चिंता मत कर इस बार फसल बहुत अच्छी हुई है। अच्छा पैसा मिलेगा और कुछ कम पड़ा तो थोड़ा बहुत उधार ले लेंगे, दुर्गा कहां है? दुर्गा!!!आज मैं दुर्गा के साथ खाना खाऊंगा कुछ दिन में पराई हो जाएगी मेरी बिटिया।
शीला खाना निकालती है तीनों खाना खाकर सो जाते हैं। पर उनकी खुशियों पर पानी फिर जाता है।रात अचानक मौसम ख़राब हो गया,बड़े जोरों से बारिश होने लगती है। बेमौसम की बरसात से हरीहर की फसल चौपट हो जाती है आंखों में आंसू लिए पति-पत्नी अपनी बर्बादी का मंजर देख रहे थे सब खत्म हो गया था।
दुर्गा भी बेबस लाचार कभी माँ के तो कभी बाप के आंसू पोंछ रही थी। सबसे बड़ी चिंता दुर्गा की शादी की थी।अब पैसा कहां से आएगा।खेत तो पहले से गिरवी पड़े थे, सोचा था इस बार खेत भी छुड़ा लेगा।
शीला के कहने पर हरीहर जमींदार से शादी की बात करता है।कहता है धीरे-धीरे सब मांग पूरी कर देगा आप लोग समय पर बारात ले आना।
जमींदार भी दुर्गा का रिश्ता तोड़ देता है, वह हरीहर को बोलता है। पैसा नहीं तो शादी नहीं।हरीहर की बहुत कोशिश के बाद भी रिश्ता टूट जाता है। एक तरफ फ़सल चौपट दूसरी तरफ बेटी की शादी टूटने का ग़म हरीहर टूट जाता है।पर वह कोई ग़लत क़दम न उठाले दुर्गा अपने पिता के गले लग उसे समझाती है।हम फिर मेहनत करेंगे, फिर अच्छे दिन आएंगे। शीला और दुर्गा का साथ पाकर हरीहर का दुःख कम हो जाता है।पर तीनों जानते थे बहुत मुश्किल है,एक किसान का फिर से खड़ा हो पाना कैसे बीज लाएगा जब पहला ही कर्जा नहीं उतरा।
 ***अनुराधा चौहान***लघुकथा

Wednesday, December 19, 2018

झांसी की रानी

सन् सत्तावन का युद्ध हुआ
जली अलख आज़ादी की
सीने में देशप्रेम की ज्वाला ले
रणभूमि में उतरी रानी थी
मैं अपनी झांसी नहीं दूंगी
हुंकार लगाई रानी ने
खूब लड़ी मर्दानी थी वह
बिजली की तरह चमक उठी
बन काली कल्याणी वह
दुश्मन के ऊपर टूट पड़ी
तन से थी वह नार नवेली
सीने से फौलादी थी
काली कजरारी आंखों से
वह शोले बरसाती थी
थी बिजली सी तेजी उसमें
दुश्मन के छक्के छुड़ाती थी
रग-रग में देशप्रेम की भावना
हृदय वात्सल्य से भरा हुआ
पुत्र पीठ पर बांधकर अपनी
सेना में  अपनी जोश भरा
शीश काट दुश्मन के उसने
मातृभूमि को भेंट किया
लड़ते-लड़ते घायल हो गई
अंत समय तक युद्ध किया
अंत समय भी तन को अपने
दुश्मन के हाथ न लगने दिया
आजादी के लिए देकर प्राण
रानी ने एक इतिहास रचा
जीते-जी झांसी को अपनी
अंग्रेजों को छूने न दिया
खूब लड़ी मर्दानी थी वह
झांसी वाली रानी थी
शत् शत् नमन हम करते
वो वीर वीरांगना रानी थी
***अनुराधा चौहान***

Tuesday, December 18, 2018

दिसंबर घर जाने को तैयार

 
समेट कर वर्ष की चादर 
दिसंबर घर जाने को तैयार
खट्टे-मीठे अनुभव की दे याद
नववर्ष से कराकर साक्षात्कार
अगले वर्ष फ़िर आने के लिए
दिसंबर घर जाने को तैयार
सर्द हवा चले होले होले
फूलों पर जमे ओस की बूंदें
कोहरे की देकर घनी सौगात
दिसंबर घर जाने को तैयार
गुनगुनी धूप मन को लुभाए
ठंडी हवाएं ठिठुरन बढ़ाए
आने वाला वर्ष हो ख़ास
लेकर हमसे फिर एक साल
दिसंबर घर जाने को तैयार
दिन छोटे हुए रातें हुईं लम्बी
बीत गई साल फ़िर से जल्दी
वक्त की कितनी तेज रफ्तार
दिसंबर घर जानेे को तैयार
***अनुराधा चौहान***

Sunday, December 16, 2018

परवरिश संस्कारों की

चित्र गूगल से साभार

शालिनी जी एक संपन्न परिवार की प्रभावशाली व्यक्तित्व की महिला थी।समाज में उनकी बहुत इज्जत थी। चेहरे पर हमेशा पैसे का गुरूर स्पष्ट दिखाई देता था।दो बेटों की माँ घर में उनका कठोर अनुशासन चलता था।पति को कारोबार से फुर्सत नहीं मिलती थी।
शालिनी जी ने बड़े बेटे की शादी अपने हैसियत के अनुसार बड़े घर की बेटी मेघा से कर दी। बड़े घर की बेटी थी उसकी परवरिश नौकर चाकर की देखरेख में हुई थी,तो रुतबा शालिनी जी से कम कैसे होता। वहीं छोटे बेटे ने अपनी मर्जी से शादी कर ली। 
सुधा के पापा एक बैंक में मामूली क्लर्क थे, वो सुधा को सुख-सुविधा तो नहीं दे पाए। परवरिश में संस्कार भरपूर दिए।बेटे की ज़िद के आगे शालिनी जी हार गईं,और सुधा शालिनी जी के घर बहू बन कर आ गई।पर दिल तक नहीं पहुंच पाई। 
मेघा और शालिनी जी अक्सर सुधा को बेइज्जत करते थे। एक दिन शालिनी जी की गाड़ी दुर्घटनाग्रस्त हो जाती है। शालिनी बच तो जाती हैं,पर घायल होने के कारण कई महिनों के लिए बिस्तर पर पड़ जाती हैं। 
सुधा जी जान से शालिनी जी की सेवा करके उन्हें स्वस्थ कर लेती है।पर इस बीच में बड़ी बहू मेघा एक बार उन्हें देखने आई। और नौकरों को उनकी देखभाल करने को बोलकर चली गई। आज शालिनी जी को एहसास हुआ कि पैसे से ज्यादा जरूरी अच्छी परवरिश होती है।
सुधा का परिवार हैसियत में उनसे जरूर कम था पर उन्होंने सुधा को दहेज में संस्कार भरपूर दिए। इस तरह सुधा शालिनी जी की चहेती बहू बन जाती है।***अनुराधा चौहान***मेरी स्वरचित लघुकथा✍

Friday, December 14, 2018

कोहरा


चलती हैं सर्द हवाएं
छाया है घना कोहरा
बंधक बनी सूर्य किरण
धरती पर लगा पहरा

यह कोहरा तो है मौसमी
मिट जाएगा कुछ दिनों में
उस कोहरे को कैसे मिटाओगे
जिसने दिलों को घेरा

छिप गई कोहरे में कहीं
इंसानियत भी कुछ कुछ
जिसे ढूंढना है मुश्किल
दुनियां की हर गली में

छाया दिलों-दिमाग़ पर
अज्ञानता का कोहरा
जिसे मिटा सके जो
वो प्रकाश कैसे होगा

कभी तो वो दिन आएगा
जब इंसानियत हंसेगी
आशा की किरणों से ही
रोशन जहां यह होगा

***अनुराधा चौहान***

Sunday, December 2, 2018

जलने वालों की कमी नहीं

मोहनलाल बचपन से ही हर काम में बहुत तेज थे। कोई भी काम हो जल्दी ही सीख जाते थे। अभी कुछ दिन पहले ही रिटायर हो कर अपने शहर जोधपुर वापस आए थे। पिता जी मूर्तिकार थे बचपन में पिता के साथ सीखा करते थे,तो वो हुनर मोहनलाल को भी आता था।सो वापस आकर अपनी इस कला को मूर्त रूप देने लगे।
देवी कृपा समझो कि इतने वर्षों बाद भी हाथ की सफाई गई नहीं मूर्तियां सुंदर बन निकली तो बच्चों ने मोहनलाल को एक दुकान खुलवा दी।
मोहनलाल का शौक और आमदनी दोनों शुरू हो गई दुकान भी चल निकली।पर जलने वालों की दुनियां में कमी नहीं सो उनके बचपन के मित्र घनश्याम जो शुरू से ही इस पेशे से जुड़े हुए थे।मन ही मन जलने लगे।
घनश्याम मोहनलाल के मुंह पर उनकी बहुत तारीफ करते थे।पर पीठ पीछे लोगों से कहते फिरते,कि मोहनलाल नहीं बनाता मूर्ति वो तो बाहर से लेकर बनी-बनाई मुर्तियां अपने नाम से बेचता है।
मोहनलाल सुनकर मुस्कुरा उठते थे। बच्चों को यह सुनकर गुस्सा आता था पिता से कहते आप कुछ कहते क्यों नहीं। मोहनलाल बच्चों को समझाते दुनियां में जलने वालों की कमी नहीं किसी के कहने पर नहीं जाना चाहिए ।छोड़ो बेकार की बातें अपने आप को देखो बस और खुश रहो। मोहनलाल मुस्कुराते हुए ।अमर प्रेम फिल्म के गीत की पंक्तियां गुनगुनाने लगते।
कुछ तो लोग कहेंगे
लोगों काम है कहना
छोड़ो बेकार की बातों में
कहीं बीत न जाए रैना
और फिर अपने काम में व्यस्त हो जाते हैं।
***अनुराधा चौहान***

Sunday, November 25, 2018

राधा का क्या हुआ


यह पच्चीस साल पुरानी बात है। जब मेरी मुलाकात राधा के परिवार से हुई थी।वो मेरे घर के पीछे वाले घर में रहती थी। राधा की माँ मुन्नी बहुत ही भोली या कम दिमाग कह लीजिए कि उसे अपने मां के गांव का और ससुराल किस गांव में है वो तक नहीं पता बस इतना पता ट्रेन से जाते हैं फिर बस से फिर पैदल।अपने पति और तीन बेटियों के साथ रहती थी एक बेटा था वो भी न जाने कहां खो गया।
अक्सर मेरे कमरे के दरवाजे पर बैठ जाती थी।आदमी
बहुत दुष्ट था।बहुत मारता था मां बेटियों को बुरी तरह चिल्लाती मां बेटी कलेजा मुंह को आता था।पर मोहल्ले में सब अच्छे थे।दौड़ कर उसे रोक लेते थे मारने से,पर वो कहां मानता जब मौका मिलता शूरू हो जाता था।
आदमी की मार खा कर मुन्नी कुछ देर तो रो लेती फिर सब भूल कर आकर बैठ जाती मैं पूछती थी कभी-कभी। तुम कैसे सहती हो यह सब!जोर से हंस पड़ती अरे दीदी जी कैसी बात करे हो,पति है मारता है तो बुराई कैसी!!
तुम्हे बुरा नहीं लगता! नाही पर बिटिअन का बुरा लगता है उसके कम दिमाग का असर बच्चों में भी था। राधा को कोई भी पागल बना देता था। उससे थोड़ी सी तेज दूसरे नंबर की सुनीता थी। वो जल्दी से किसी की बातों में नहीं आती पर अच्छा बुरा कुछ नहीं समझती थी।तीसरी सीता वो तेज थी।जो पिता की अनुपस्थिति में इन लोगों का ध्यान रखती थी।एक दिन बंशी बीमार पड़ जाता है।तो सबको लेकर अपने गांव वापस चला जाता है।
एक दिन टीबी से मर जाता है। परिवार वाले मुन्नी से घर के कागजों पर अंगुठा लगवाकर कर सब अपने नाम कर लेते हैं।और अत्याचार का दौर शुरू हो जाता है।दिन भर काम और मार यही जिंदगी बन गई थी।
राधा चौदह वर्ष की थी। सुनीता बारह और छोटी सीता दस वर्ष की थी पर वो तेज थी।एक दिन सब भाग कर वापस मुंबई आने का निर्णय लेते हैं।पर पैसों की समस्या आ जाती है।तो छोटी अपने चाचा के पैसे निकाल कर छुपा लेती है।

सुबह हाहाकार मच जाता है बहुत मारा जाता है सबको राधा का पैर टूट जाता है।सब बहुत चोटिल हो जाते हैं और अपनी बदनसीबी पर बहुत रोते हैं।
फिर एक दिन सब भाग कर वापस आ जाते हैं राधा वहीं छूट जाती है सीता को इतनी समझ थी कि कौनसी ट्रेन पकड़नी है।बुरा वक्त आता है तो जल्दी जाता नहीं। मकानमालिक ने घर किसी और को भाड़े पर नहीं दिया था तो वापस दे दिया दया करके।पर मुन्नी को कैंसर हो गया। मोहल्ले वाले सब बारी बारी इलाज करा रहे पर लास्ट स्टेज पर था। तो एक महीने में वो भी चल बसी।
अब उसके घरवाले फिर आ गए। दोनों बेटियों को वापस लेने के लिए। दोनों को जबरन ले जाने लगे। लड़कियां भाग कर मेरे कमरे में छिप गई।उनकी रोना देखा नहीं गया। हम सब ने मिलकर निर्णय लिया। दोनों यहीं रहेंगी हमारी जिम्मेदारी पर।उस दिन से दोनों हमारे घर का हिस्सा बन गई।समय बीतता गया दोनों बड़ी हो गई।
उनके योग्य वर ढूंढ कर दोनों की शादियां कर दी। सुनीता के एक बेटी और सीता के एक बेटी और बेटा दोनों बहुत खुश हैं त्यौहार पर आती हैं।घर की बेटियों की तरह खुशियां मना कर चली जाती हैं। हमारे आस-पास कुछ ऐसा घटित हो जाता है जो लम्बे समय तक मन से जाता नहीं।
पर एक सवाल हमेशा मन में रहता है।राधा का क्या हुआ होगा!!वो जिंदा है तो किस हाल में और कहां है वो भी भागी थी पर पैर टूटा होने के कारण रास्ते में कहीं रह गई थी। कोई रिश्तेदार भी पास नहीं था जिससे उसका कुछ पता चलता।
खैर बात को सोलह साल हो चुके हैं।दो का जीवन संवर गया, दोनों बहुत खुश हैं यही बहुत है।वरना इनका भी बुरा हाल होता।  अनुराधा चौहान
सच्ची घटना पर आधारित जगह और पात्रों के नाम काल्पनिक है
(चित्र गूगल से साभार ✍)

Saturday, November 24, 2018

मैया कैसा तेरा कन्हाई


पनियां भरन मैं पनघट पे जाऊं
देखूं तुझे तो सुध बिसराऊं
करके शरारत मटकी फोड़ी
माखन की करते हो चोरी
फिर भी तेरी सब लेते बलाएं
गिरधर तू कैसी लीला रचाए
बाजे जब भी तेरी मधुर मुरलिया
नाचें सारी गोकुल नगरिया
काहे करते कान्हा तुम जोरा जोरी
पतली कलाई मोरी क्यों तूने मोड़ी
मैया यशोदा कैसा तेरा कन्हाई
मार कंकरिया मेरी मटकी गिराई
पनघट पर मेरा रस्ता रोके
पानी न भरने दे मटकी छीने
मुरलिया बजाए यमुना तीरे
तन-मन भिगोए अपने ही रंग में
बड़ा ही चितचोर है श्याम सलोना
गोपियों का चैन है छीना
जादू भरी उसकी मुरली है
छवि अलौकिक मन में बसी है
***अनुराधा चौहान***
(चित्र गूगल से साभार)
-----------------------

Thursday, November 22, 2018

नन्ही गौरैया


यह नन्हीं सी चिड़िया
नन्हा सा इसका बसेरा
आज यहां कल वहां
कब उठ जाए इसका डेरा
काट दिया उस पीपल को
जिस वृक्ष पर कभी यह रहती थी
टूटा घौंसला बिखरे सपने
चोटिल होकर रोती थी
हाथ बढ़ाया इसको छूने
झट हाथ पर मेरे बैठ गई
जैसे पूंछ रही हो मुझसे
यह किस गलती की सज़ा मिली
कल तक चहकती बच्चों सँग
उन सब से यह बिछड़ गई
अनकहा सा इक रिश्ता
मेरा इसके संग बन गया
उसकी आँखों का दर्द
मेरी आँखों से बह निकला
यूं ही कटते रहे वृक्ष तो
वजूद इनका मिट जाएगा
सिमट रहा अस्तित्व इनका
कल नाम भी इनका मिट जाएगा
क्यों मानव देता है सज़ा
इन निर्दोष पक्षियों को
छीनकर इनसे इनका बसेरा
क्या चैन मिलेगा तुमको भी
जब वृक्ष ही न बचेंगे धरती पर
तो जीवन कैसे संभव है
***अनुराधा चौहान***
(चित्र गूगल से साभार)

संघर्ष कठिन है करने

बनता नहीं घरौंदा
पानी के बुलबुलों पर
ख्वाबों को करने पूरा
संघर्ष कठिन है करने

नाकामियों से डर कर
संघर्ष से जो हार मानें
जीवन सफल न होगा
किस्मत भरोसे रह कर

मायूस होकर यूं ही
कभी जिंदगी कटे न
जीने मिला है जीवन
जीवन सफल किए जा

कब तक यह जिंदगी है
इसका न कोई भरोसा
कामयाबी कदम चूमे
संघर्ष तुम ऐसा करलो

कितना कठिन संघर्ष है
देश के वीर जवानों का
सुरक्षा हमारी करने 
तूफानों से हरदम लड़ते

उनसे सबक लेकर
भिड़ जाओ हर मुश्किल से
मुमकिन नहीं सभी को
महलों का सुख मिलें ही
***अनुराधा चौहान***

Wednesday, November 21, 2018

क्रौध की तपन


क्रौध की तपन से
न जलाओ तन और मन
जीवन सफल बनाओं
करके कुछ अच्छे कर्म
शीतल रखो वाणी
शीतल रखो मन
भरलो अपने जीवन में
तुम प्रेम के रंग
कौध की तपन से
जलते जीवन के रंग
दूर होते हैं रिश्ते
नीरस होता है मन
काटने को दौड़ता
केवल अकेलापन
क्रौध की तपन से
यूं न नष्ट करो जिंदगी
अच्छे कर्म के बदले
मिलती है यह जिंदगी
क्यों इस तपन में
खोते हो वजूद अपना
रह जाओगे अकेले
खुशियां बन जाएंगी सपना
करो प्रीत की बारिश
तपन मिटा दो मन की
गले लगा लो सबको
यही पूंजी है जीवन की
***अनुराधा चौहान***

Monday, November 19, 2018

स्मृतियां हमारी साथी

कुछ खट्टी
कुछ मीठी
स्मृतियां होती हैं
तन्हाइयों की साथी
कुछ स्मृतियां
मन को बहलातीं है
तो कुछ मन में
टीस जगाती हैं
अच्छी हों या बुरी हों
यह हमेशा
साथ निभाती हैं
कुछ स्मृतियां
बालपन की
मन को सुकून
दे जाती हैं
जो जिए थे
पल बचपन में
वह खुशियां
दे जाती हैं
कुछ स्मृतियां
मां के घर की
मन में हलचल
मचाती हैं
जिए थे पल जो
उस आंगन में
फिर से जीने की
चाह जगाती हैं
कुछ स्मृतियां
सखियों की
जो अब सब
बिछड़ गई
शादी करके सब
अपने अपने
नए जीवन में
जाकर रम गई
स्मृतियां हमारी
तन्हाइयों की साथी
अक्सर मन को
बहलाती है
कुछ खुशियां देती हैं
तो कुछ गम दे जाती हैं
***अनुराधा चौहान***

Friday, November 16, 2018

संयम

संयम टूटने लगता है
जब लोग झूठ को
लग जाते हैं सच
साबित करने में
संयम तब भी टूटने लगता है
जब आप ग़लत न हो
फिर भी ग़लत
ठहराए जाने लगते हो
संयम तब और टूट जाता है
जब आप किसी पर
अपने से ज्यादा
यकीन करते हो
वो यकीं तोड़ जाए
संयम तब भी खोने लगता है
जब अपनों से
मिलता धोखा है
तब टूटता है दिल
बहुत मायूस होता है
संयम बिखरने लगता है
जब कोई अनायास
आपको अकेले छोड़
किसी और का हो जाता है
संयम रखना पड़ता है
जब दिल व्यथित हो
अपनों की खुशियों के लिए
जबरन मुस्कुराना पड़े
***अनुराधा चौहान***

Tuesday, November 13, 2018

मिथ्या यह जीवन

मिथ्या यह जीवन
मिथ्या इसकी माया
जिसको अब तक
कोई समझ नहीं पाया
मिथ्या है यह काया
जो सबके मन भाया
मौत के सच को
कोई समझ नहीं पाया
व्यर्थ के झगड़ों में
क्यों जीवन को खोते
निकल गया समय तो
फिर रह जाओगे रोते
समय रहते करलो
कुछ कर्म तुम ऐसे
मिट जाए भले यह तन
फिर भी रहो जीते
जीवन की याद रखो
इस कड़वी सच्चाई को
बनी है यह काया 
पल में मिट जाने को
क्यों तेरे मेरे में
समय को हम खोते हैं
जब मिटने आता यह तन
फिर हम रोतें हैं
मिथ्या यह जीवन
स्वीकार करलो यह सच्चाई
करो अपने साथ
तुम औरों की भी भलाई
***अनुराधा चौहान***

Saturday, November 10, 2018

पर आवाज़ नहीं होती


आवाज़ ही पहचान है
हर भाव की हर घाव की
आवाज़ से पहचान है
हर किसी जज़्बात की
सुनाई दे जाती है हर आवाज़
जब कुछ टूट कर बिखरे
नहीं सुनाई देती है तो
जब दिल टूट कर बिखरे
तब दिल की आवाज़
दिल ही सुनता है
अपने घावों पर
खुद मरहम रखता है
कुछ अनकहे से दर्द
जब दे जातें हैं अपने
रोता है दिल जार जार
पर आवाज़ नहीं होती
बिखर जाते हैं मन के जज़्बात
पर आवाज़ नहीं होती
मृगमरीचका से रिश्तों के
पीछे हम जीवनभर भागते हैं
वोही छलावा निकल
दिल तोड़ जातें हैं
टूटा हो दिल भले मगर
पर आवाज़ नहीं होती
इशारों में होती है अलगाव की बातें
पर आवाज़ नहीं होती
***अनुराधा चौहान***

Thursday, November 8, 2018

गोवर्धनधारी तेरी महिमा बड़ी निराली

हे मुरलीधर हे गिरधारी
तेरी महिमा बड़ी निराली
गोकुल में लीला रचाई
रोक अहंकारी इंद्र की पूजा 
गोवर्धन की पूजा करवाई
देख कुपित हुए इंद्र अतिभारी
बरसा की फिर झड़ी लगा दी
लगी डूबने गोकुल नगरी
बहने लगे सबके घर द्वार
त्राहि-त्राहि मची गोकुल में
व्यथित हुए सब नर-नारी
देख इंद्र का कोप कृष्ण ने
फिर से एक लीला रचाई
उठा लिया छोटी उंगली पर
गोवर्धन पर्वत विशाल
आन बसा पर्वत के नीचे
पूरा गोकुल धाम
टूटा अंहकार इंद्र का
कर ली अपनी भूल स्वीकार
फैली हर और खुशी की लहर 
नाच उठी गोकुल नगरी
हे गोवर्धनधारी तेरी महिमा बड़ी निराली
***अनुराधा चौहान***

Tuesday, October 30, 2018

आदत

वो हमें रुलाने की वजह ढूंढते रहे
     हमने हंसना अपनी आदत बना ली
           वो हमें हराने के मौके ढूंढते रह गए
               हमने जिद में जीतने की आदत बना ली
                                   अनुराधा चौहान

Monday, October 29, 2018

तेरा इंतज़ार


गुमसुम गुमसुम सी
मेरी हर शाम है रहती
खोई खोई सी घर दरवाजे पर
हरपल तेरा इंतज़ार मैं करती रहती 

पल पल तेरी याद सताए
रातों को नींद भी न आए
अनहोनी हरपल सताए
हर आहट पर दिल घबराए

न चिट्ठी भेजी न कोई संदेशा
कब आओगे नहीं कोई अंदेशा
भेज दो लिख कर कोई पाती
रब से मांगती तुम्हारी सलामती

तुम बिन सूना हर एक कोना 
माँ को इक पल आए न चैना
बापू सूनी राहों को निहारे
आँंखों में अपनी नमी छुपाए

भेजी है मैंने तुमको पाती
उसमें सबका प्यार बसा कर
घर का पूरा एहसास बसा कर
भेजी है मैंने घर की याद
***अनुराधा चौहान***

Friday, October 26, 2018

परिश्रम सजग बनाता है

श्रम से सजे सुंदर जीवन
श्रम पर निर्भर है हमारा कल
श्रम से कुंदन बन चमके
हर स्वाभिमानी का व्यक्तित्व
परिश्रम सजग बनाता है
खुशहाली का सूरज लाता
उन्नति का मार्ग प्रशस्त कर
जीवन में सफल बनाता
मेहनत से मिट्टी भी सोना
आलस्य से सोना भी खोता
अंत में दुखों का दुखड़ा रोता
श्रम से रहते सदा प्रगतिशील
सपनों को करते वो साकार
श्रम से जीने की राह निकलती
भविष्य को हमारे उज्जवल करती
करते जो अथक परिश्रम
तो पर्वत से राह निकलती
कठिन नहीं डगर कोई भी
नहीं मुश्किल कोई मंज़िल
मेहनत से हर कुछ संभव है
ठान ली मन में कोई मंज़िल
मेहनत से न कोई कतराना
यह जीवन का है बड़ा खज़ाना
जिसने थामा श्रम का हथियार
उसके जीवन में सुख अपार
***अनुराधा चौहान***

Tuesday, October 23, 2018

अनमोल निधि


काजल सी काली आंखों में
चंचल मन के भाव लिए

फूलों से कोमल होंठों पर
झरने से सुंदर गीत सजे

नन्हें नन्हें पांवों से वो
जब इठलाकर चलती है

मेरे मन में ममता के
भावों की सरगम बजती है

नन्ही नाजुक कोमल सी
मेरे अंगना की परी है वो

सारे जग से बड़ी ही प्यारी
मेरी अनमोल निधि है वो
***अनुराधा चौहान***

Monday, October 22, 2018

मिट्टी के घड़े सी जिंदगी


करले पूरे कुछ काम अधुरे
यह सुबह कब बीत जानी है

मिट्टी के घड़े सी जिंदगी
पता नहीं कब फूट जानी है

हाड़-मांस का सुंदर संसार
कब मिट्टी में मिल जाए

पंछी बन जीवन की ज्योति
आसमान में उड़ जाए

पाप-पुण्य के खेल में
मत जीवन को घेर

मानवता सबसे बड़ा धर्म है
नहीं रखो किसी से बैर

क्यों तेरा-मेरा करने में
अपने जीवन को यूं खोते हो

जब समय हाथ से जाता है
फिर हाथ मलते क्यों रोते हो

करो बड़ो का आदर
छोटों से करो प्यार

चार दिन की जिन्दगी है
क्यों करते वक्त बर्बाद।
***अनुराधा चौहान***

Thursday, October 18, 2018

कुचलती आशाएं



बातें मर्यादा की बड़ी बड़ी
नियत में उनके खोट भरी
राम नहीं किसी को बनना
पर सीता की चाह है रखना
आंखों में जिनके मैल भरा
वो कहां देखते पावन चेहरा
मासूम सुमनों के खिलते ही
तोड़ने आ जाती यह दुनिया
नहीं सुरक्षित नारी जीवन
कलयुग के इन हैवानों से
कितने ही युग बीत गए
बीत गईं कितनी सदियां
नारीे जीवन का अभिशाप बनी
हर युग में रावण की दुनिया
कुचलती आशाएं बेरहम दुनिया
बांध के बंधन पैरों में
करने असुरों का फिर विनाश
आ जाओ मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम
फिर से तुम उद्धार करो
काट के बेड़ियां पैरों से
***अनुराधा चौहान***

Sunday, October 14, 2018

किस्मत


किस्मत पर किसी का बस न चले
किस्मत के आगे बेबस खड़े
क्यों रोते किस्मत का रोना
किस्मत का लिखा प्रभू को भी पड़ा सहना
राम ने खोया राजतिलक
वन-वन भटके चौदह वर्ष
जनकदुलारी सीता सुकुमारी
किस्मत में लिखी जुदाई अतिभारी
राधा कृष्ण का प्रेम अमर
किस्मत में होना था उनको अलग
सती से जुदाई की पीड़ा
महादेव को भी पड़ी सहना
किस्मत किसे कहां ले जाए
यह कोई कभी समझ न पाए
कौन रंक से राजा बने
कौन राजा से रंक बन जाए
किस्मत पर किसी का बस न चले
किस्मत के आगे बेबस खड़े
***अनुराधा चौहान***


चित्र गूगल से साभार

Saturday, October 13, 2018

तुझ से ही तुझ को चुरा लूं


हर लम्हे में तुझको बसा लूं

आ पलकों में अपनी छुपा लूं

गुम न हो जाए कहीं वजूद तेरा

तुझ से ही तुझ को चुरा लूं

उम्र का सफर अब गुजरने लगा

तेरे एहसास को सांसों में बसा लूं

मोहब्बत मोहताज नहीं उमर की

चल संग तेरे हसीन लम्हें बिता लूं
***अनुराधा चौहान***

Thursday, October 11, 2018

किस पर करें भरोसा

किससे करें शिकायत किस पर करें भरोसा

हमदर्द ही अपना जब दे जाए अगर धोखा

मासूम से चेहरे पर चढ़ा मतलब का मुखोटा

सच्चों को झूठों में भी सब सच ही है दिखता

चेहरे के ऊपर मुखोटा मुखोटे में विषधर

कौन है हमारा हमदर्द कौन जाएगा हमें डस
               ***अनुराधा चौहान***

Monday, October 8, 2018

जय हनुमान

भावों के मोती
🌸🌹🌸
केसरी नंदन राम दुलारे
भक्तों के तुम रखवाले
हे वीर प्रतापी शोर्यवान
दुष्ट सदा तुमसे भय खाते
पवनपुत्र वीर बजरंगी
राम-लखन के तुम हो संगी
राम मुद्रिका सीता को दे आए
श्री राम का संदेश सुनाए
विकट रूप जब तुमने रखा
क्षण में रावण की लंका दी जला
संजीवनी को समझ नहीं पाए
पूरा पर्वत संग ले आए
गदा तुम्हारे हाथ में सोहे
राम सिया सदा मन मोहे
दिल में छवि उनकी बसाए
तुम भक्त प्रिय राम सिया के
अंजनी मां के पुत्र तुम प्यारे
भूत पिसाच नाम से भागे
भानू को देख सदा मुस्कुराते
लीला था उन्हें मधुर फल जान के
चरणों में तेरे शीश झुकाते
प्रभू सबके तुम कष्ट मिटाते
श्रीराम की जो करते पूजा
उनके शीश पर हाथ है तेरा
पवनपुत्र श्री हनुमान
करते हम तुमको प्रणाम
***अनुराधा चौहान***

Sunday, October 7, 2018

माटी


      🌹
माटी का बना
पंचतत्व शरीरा
उसी में मिला
      🌹
माटी है शान
बोलते कर्मवीर
देते हैं जान
     🌹
पावन माटी
धन्य भारत देश
करें वंदना
    🌹
पग पखारे
विशाल समंदर
माटी वंदन
     🌹
माटी आंचल
सजग हिमालय
खड़ा विशाल
      🌹
माटी के लाल
जगत मशहूर
देश की शान
***अनुराधा चौहान*** 

Saturday, October 6, 2018

विदाई


मैं बाबुल की नन्ही गुड़िया
मैं नन्ही चिरैया मईया की
खेल कूद जिस संग बड़ी हुई
मैं छोटी बहना भईया की
आज विदाई इस आंँगन से
जिसमें खेली बड़ी हुई
मत रोना भईया मेरे
मैं अपने ससुराल चली
छोड़ चली माँ-पापा को
छोड़ चली घर का हर कोना
याद अगर  मेरी आए
दुःखी होकर कोई मत रोना
रोकर मुझे विदा करोगे
मैं कैसे सह पाऊँगी
दूर होकर तुम लोगों से
मैं कैसे रह पाऊंगी
बेटी तो होती है पराई
प्रभू ने यह रीत बनाई
इस घर में खेली बड़ी हुई
हो रही आज मेरी विदाई
तुम सब तो साथ रहोगे
मैं तो अकेली हो जाऊंँगी
नए रिश्तों में शायद मैं
खुद को ही भूल जाऊंँगी
हँस कर आशीर्वाद मुझे दो
मेरा जहान आबाद रहे
उस घर में जाकर रम जाऊंँ
इतना मुझे प्यार मिले
***अनुराधा चौहान***

Thursday, October 4, 2018

सफर जिंदगी का


जिंदगी के सफर में
न हो सच्चा हमसफर
बहुत मुश्किल होता है
जीवन का यह सफर
मिलते हैं सफर में फूल
तो मिलते हैं कांटे भी
मीत मिले मन का
तो सुख-दुख आपस में बांटे भी
खड़ी हो जाती है जिंदगी
सफर में दोराहे पर
कहां से शुरू हो फिर
जो पंहूचा दे मंजिल पर
हर डगर आसान मिले
यह तो जरूरी नहीं
टूट कर संभल जाना
जीवन की रीत यही
धूप छांव जीवन के
हर डगर पर मिलती है
जब तक जिंदगी जाकर
मौत से नहीं मिलती है
होता है सफर पूरा
छूट जाते है रिश्ते
सिर्फ कर्म ही इंसान के साथ है जाते
तय करो प्यार से सफर
जब तक है जिंदगी
बाद में तो सिर्फ इंसान के नाम ही रह जाते
***अनुराधा चौहान***

यह जरूरी तो नहीं


हर सफर आसान मिले यह जरूरी तो नहीं
हर ख्बावों को परवाज मिले यह जरूरी तो नहीं
रखना पड़ता है हौंसला ख्बाव पूरे करने के लिए
हर मुकाम आसान मिले यह जरूरी तो नहीं
         ***अनुराधा चौहान***

Tuesday, October 2, 2018

राष्ट्रपिता महात्मा गांधी (बापू)

सत्य अहिंसा और धर्म का
सबको पाठ पढ़ाने वाले
राष्ट्रपिता तुम भारत के
भारत का मान बढ़ाने वाले
कष्ट सहे बहुतेरे तुमने
पर शीश न तुमने झुकने दिया
हम सब की आजादी के लिए
अपना सब कुछ बलिदान किया
अभिमान चूर कर अंग्रेजों का
भारत को स्वतंत्र किया
कर्मवीर तुम भारत के
भारत माँ सच्चे लाल
अंग्रेजों से छीन कर देदी
आजादी हमको बिना हथियार
शत् शत् नमन बापू तुमको
याद रखें सब सदियों तुमको
***अनुराधा चौहान*** 

(चित्र गूगल से साभार)

भारत के लाल





कद छोटा
मन विशाल
भारत का
सपूत महान
दिया नारा
भारत को उसने
जय जवान जय किसान
लाल था प्यारा
भारत माँ का
लाल बहादुर शास्त्री
उनका नाम
कर्म प्रधान था
व्यक्तित्व उनका
तभी पाक भी युद्ध हारा था
सच्चाई से भरा हृदय
मन में देशप्रेम की
ज्वाला थी
द्वितीय प्रधानमंत्री
वो देश के
फिर भी जीवन
सीधा-साधा था
नहीं कामना मन में कोई
सदा देश की
खातिर वो जिए
ऐसे सच्चे लाल थे देश के
सदियों तक उनकी जय गूंजे
शत् शत् नमन
***अनुराधा चौहान***
चित्र गूगल से साभार

Monday, October 1, 2018

उजड़ा गुलशन

कैसा फिजाओं
में जहर घुला
मौसम भी
सहमा सहमा हुआ
कभी गूंजती थी
इस गुलशन में
किलकारियां
मासूम परियों की
अब सब उजड़ा उजड़ा  है
गुलशन में
उदासी का पहरा है
धुंआ धुंआ सी
होती जिंदगी
प्रीत कहीं
खोती सी दिखती
संवेदनाएं भी
दम तोड़ रही
अपने पराए की
मारामारी
भाईचारे ने
जान गंवा दी
कब लौटेंगी
फिर से बहारें
कब हंसी की
गूंजे आवाजें
अब कर्म
हमें ही करना है
इस गुलशन को
महकाना है
***अनुराधा चौहान***

Saturday, September 29, 2018

मौके नहीं मिलते

बातें जो दिल में है कह दो जरा
कहीं ज़िंदगी की शाम न ढ़ल जाए
कर लो कुछ मुलाकातें देर ना कर
गिले-शिकवे भुला दो गले लग कर
जिंदगी बार-बार धोखे नहीं देती
खुशियों पाने के रोज मौके नहीं देती
हर शख्स यहाँ धोखेबाज नहीं
एतबार करके देखिए तो सही
ज़िंदगी की हकीकत को पहचानिए जरा
गुजर गया वक़्त फिर नहीं आए लौटकर
नाज़ुक कांँच से यहाँ रिश्ते हैं सभी
टूट कर बिखर गए तो जुड़ते ही नहीं
कदम फूंक-फूंक कर रखो चाहें कितने
हर कदम पर मिलेंगे लोगों के मिजाज बदले
आजमा कर हर शख्स को देखना है जरूरी
ज़िंदगी नहीं चलती हर शख्स से रख दूरी
हर किसी शख्स से यहाँ धोखे नहीं मिलते
ज़िंदगी जीने के बार-बार मौके नहीं मिलते
***अनुराधा चौहान***

हायकु (जिंदगी)

चित्र गूगल से साभार
      (१)
जिंदगी खेल
दुनिया है सर्कस
जोकर मनु

       (२)
सुन आवाज़
जिंदगी सरगम
मौत विराम

     (३)
जीवन कश्ती
डूबती-उतरती
आशा की नदी

      (४)
बिबस मनु
बुढ़ापा असहाय
मांगता मृत्यु

     (५)
जीवन सत्य
कठिनाई से भरा
मज़िल पथ
***अनुराधा चौहान***

हायकु ( विराम )

 
ढलता सुर्य
बढ़ता अंधियारा
दिन विराम
 
युद्ध विराम
दशानन का अंत
जय श्री राम
 
अयोध्या लौटे
वनवास विराम
सीता के साथ

***अनुराधा चौहान*** 

Friday, September 28, 2018

कड़वे बोल


मत बोलो कड़वे बोल
यह बहुत नुकीले होते हैं
आंखों से नहीं दिखते
पर जख्म गहरे होते हैं
     अनुराधा चौहान

वर्ण पिरामिड (शहीद भगत सिंह )


थे
शेर
शहीद
सरदार
भगतसिंह
आजादी के थे
मतवाले महान

हे
तुम्हें
नमन
कोटि-कोटि
शीश झुकाते
वतन की शान
शहीदे ए आजम

***अनुराधा चौहान ***
प्रथम प्रयास वर्ण पिरामिड

Thursday, September 27, 2018

परमात्मा


क्यों रोकर खोई जाए
जीने को मिली जिंदगी
मिले न मिले कोई साथी
इसका न करो गम कोई
जितना भर सकते हो
भर लो जीवन में रंग
कोई साथ हो या न हो
परमात्मा तो है संग
***अनुराधा चौहान***

रिश्ते


शाख से टूट कर पत्ते नहीं जुड़ते

बिखर गए रिश्ते फिर नहीं संवरते

जी लो रिश्तों में जब तक है जिंदगी

चुप रहने से दिलों के फासले नहीं मिटते

अनुराधा (अनु )

Wednesday, September 26, 2018

मुलाकात


रात ख्बावों में उनसे मुलाकात हो गई

पहले जरा ठिठके फिर बात हो गई

इरादा तो कुछ कदम साथ चलने किया

मगर साथ चलते कि सुबह हो गई

     अनुराधा (अनु )

आगमन

कब होगा
आगमन मेघों तुम्हारा
तुम बिन तरसे
जीवन हमारा
बहती है आंखों से
असुंअन की धारा
करो आगमन
मेघों अब तुम
तपन मिटा कर
करो सुखमय जीवन
अनुराधा चौहान 

मौत महबूबा


शनै शनै बढ़ती उमर के
किस पड़ाव पर मिले खड़ी
मौत महबूबा है ऐसी
साथ न छोड़ें कभी

       अनुराधा (। अनु )

Tuesday, September 25, 2018

मन की तृष्णा

मेरे मन की तृष्णा
मुझको डुबो गई
यह यादें तेरी
दिल में मेरे
खंजर चुभो गई
तृष्णाएं मेरे मन की
कैसे बुझाऊं मैं
जितना भुलाऊं
तुझको उतनी
टूट जाऊं मैं
इतना ही था
शायद तेरे मेरे
साथ का बंधन
तूझे भूलने की
खातिर खुद
को भुलाऊं मैं
अनुराधा (अनु )

शुभ संध्या

लो सांझ ढल गई
रात ने अंगड़ाई ली
सूर्य भी प्रकाश लेकर
चल दिया अपनी गली
         अनुराधा (अनु )

Monday, September 24, 2018

सुप्रभात

सूरज की चंचल किरणों ने
डाला धरती पर अपना डेरा
रात भी चल दी सफर पर
समेट कर अपना बसेरा
डाली डाली चिड़िया चहकी
वन उपवन में खुशबू महकी
चली ठंडी पवन पुरवाई
देखो भोर सुहानी आई
धरती ने छोड़ा शबनमी आवरण
जीवन ने भी शुरू किया विचरण
ली ऊषा ने अंगड़ाई
लो भोर सुहानी आई
चटकती कलियां खिलते फूल
होती उन पर भंवरोें की गूंज
तितलियों की बारात है आई
देखो भोर सुहानी आई
सुर्य देव का रथ है आया
रश्मियाँ अपने साथ लाया
प्रकाशित हो वसुंधरा इठलाई
देखो भोर सुहानी आई
        ***अनुराधा चौहान***
   

आईना देखती हूं

आईना देखती हूं इक अक्स नजर आता है
दिल में छुपा इक शख्स नजर आता है
                     अनुराधा चौहान


चित्र गूगल से साभार

रात के मीत


रात में जागे थे रात में ही खो गए

यह मेरे ख्बाव थे जागते ही सो गए

रात भर सैर की सुबह घर हो लिए

रात के मीत थे रात के ही हो लिए

                 अनुराधा चौहान