"अब कब आओगे अशोक..?" अशोक के जाने की खबर से सुरभि उदास हो गई थी।
"कुछ पता नहीं सुरभि.. आने जाने का सारा खेल तो छुट्टी के ऊपर है...!"दोनों की दोस्ती स्कूल टाइम से थी, जो अब प्यार में बदल गई थी। सुरभि और अशोक दोनो इंजीनियरिंग की पढ़ाई कर रहे थे।अशोक का कैंपस सिलेक्शन हो गया तो वह पूना चला गया। सुरभि भोपाल की ही एक कंपनी में जॉब करने लगी।
"अशोक घर में मेरी शादी की बातें चल रही हैं। मुझे बहुत डर लगता है कहीं ऐसा ना हो कि हम अलग हो जाए..!" सुरभि ने कहा।
"इसी डर से तो तुम्हारी जुगाड़ लगवाई थी मैंने अपनी कंपनी में, पर तुमने आने से मना कर दिया।क्यों सुरभि क्यों नहीं आ जाती पूना..!" अशोक ने जोर देकर कहा।
"मुझे नौकरी की परमिशन घरवालों की शर्तों पर मिली,यह बात तुमसे छुपी नहीं है अशोक। उन्होंने पहले ही कहा था कि जॉब करना तो भोपाल में ही करना,अन्यथा घर बैठना। तुम पूना आने की बात कर रहे हो?तुम यह बताओ, तुमने हमारे रिश्ते के बारे में क्या सोचा? हम कब तक यूँ मिलते रहेंगे? सुरभि ने सवाल किया।
"तुम इस बारे में अपनी मां से बात करने वाली थी क्या हुआ..? अशोक ने पूछा।
"यही सवाल मैं तुमसे करूँ तो?अशोक मुझे डर लगता है।तुम करो ना पहले अपने घर में बात? या फिर तुम्हें भी डर लग रहा है बोलो ? अगर प्यार एक्सेप्ट करने की हिम्मत नहीं तो सच बता दो ताकि मैं इसे अपनी बदकिस्मती समझकर आगे बढ़ सकूँ....!"
"आगे बढ़ सकूँ का क्या मतलब? मैंने घरवालों से बात नहीं की तो तुम मुझे छोड़ किसी और से शादी कर लोगी..? अशोक ने प्रश्न किया।
"तो क्या करूँ अशोक तुम बताओ, रोज कितने रिश्ते ठुकराऊँ ?रोज नया बहाना कहाँ से लाऊँ?अशोक तुम लड़के हो, तुम्हें फर्क नहीं पड़ता है लेकिन मेरे मां-बाप को पड़ता है।मुझे पड़ता है। उनतीस की हो गई हूँ। रिश्तेदार तरह-तरह की बातें बनाने लग गए,जिसे सुनकर माँ पापा दुखी रहने लगे हैं।मैं अपने माँ पापा को अब और दुखी नहीं कर सकती...!"सुरभि आज कोई ठोस निर्णय लेने के मूड में दिखाई दे रही थी।
"ठीक है सुरभि मैं जल्दी ही घरवालों से बात करता हूँ।अब खुश!हम लोग एक ही बिरादरी के है। मुझे नहीं लगता कोई विवाद उत्पन्न होगा। तुम निश्चित रहो,अब तुम्हें ज्यादा इंतजार नहीं करना पड़ेगा।यह मेरा तुमसे वादा है,हम जल्दी मिलेंगे..!
"हम्म देखते हैं कब तक..?"सुरभि ने कहा। अशोक चला गया और सुरभि बोझिल कदमों से अपने घर लौट आई।
अशोक को गए एक महिना हो गया था। एक दिन.."सुरभि दी ओ सुरभि दी..!"सुनिधि की आवाज सुनकर सुरभि चौंकी।
"किन ख्यालों में खोई हुई हो दी ?सुना नहीं माँ कब से आपको बुला रही है..! सुनिधि बोली।
"माँ बुला रही? ओह नहीं मैंने नहीं सुन पाया, बोलो क्या हुआ..?" सुरभि हड़बड़ाकर पूछने लगी।
"यह तो माँ ही बताएगी। बहुत बड़ी खुशखबरी है। चलो चलो जल्दी चलो... !"सुनिधि मचलते हुए सुरभि का हाथ पकड़कर खींचने लगी।
"अरे अरे रुक जा जरा.. मुझे स्लीपर तो पहनने दे..!"सुरभि स्लीपर डालते हुए बोली। दोनों नीचे उतरकर आ गईं।
"लो आ गई लाडो..माधवी मेरी लाडो का मुँह मीठा कराओ..!" सुरभि को देखते ही विजयपाल खुश होकर मिठाई निकालकर सुरभि को पकड़ा देते हैं।
"मुँह मीठा? पापा आपको प्रमोशन मिला है क्या...? "सुरभि ने मिठाई मुँह में डालते हुए पूछा।
"नहीं बेटा...आज मैं बहुत खुश हूँ और यह खुशी प्रमोशन से भी बड़ी है..!"विजयपाल सुरभि के सिर पर हाथ रखकर बोले।
"अब बता भी दो क्यों पहेलियाँ बुझा रहे हो? मैं बता दूँ क्या..?" माधवी ने हँसकर कहा।
"बताइए ना पापा..माँ आप ही बता दो क्या हो हुआ है? क्यों सस्पेंस क्रिएट कर रहे हो आप लोग..!"सुरभि ने पूछा।
"सुन सुन सुन दीदी
तेरे लिए एक रिश्ता आया है।
सुन सुन सुन दीदी
तेरे लिए...दी आपका रिश्ता पक्का हो गया। सुनिधि सुरभि से लिपट गई।उसका रिश्ता पक्का सुनते ही सुरभि के चेहरे का रंग उड़ गया।
"रिश्ता पक्का..? कौन है लड़का ? क्या करता है? मुझसे बिना पूछे, मेरे बिना देखे रिश्ता कैसे पक्का हो गया? माँ यह मजाक कर रही है ना..? सुरभि ने हड़बड़ाकर कई प्रश्न कर दिए।
"सुनिधि मजाक नहीं कर रही,यह सच है सुरभि। एक बहुत अच्छे और सम्मानित परिवार का लड़का है। इंजीनियर है, सुंदर है,अच्छा पैकेज है और क्या चाहिए..? माधवी बोली।
"तेरी पसंद देख ली बेटा..पाँच साल से हम तुझे लड़के दिखा दिखाकर हम थक गए। तुझे हर किसी में कोई न कोई कमी दिखाई दे जाती है।तूने अभी तक एक भी लड़के को हाँ नहीं की और तेरे कारण आज सुनिधि सत्ताइस साल की हो गई..! विजयपाल बोले।
"तेरे पापा सच कह रहे हैं सुरभि। तुम्हें तो लड़के पसंद नहीं आने से रहे।हमे सुनिधि के लिए भी एक अच्छा लड़का मिला है इसे भी पसंद आ गया। उन्हें भी सुनिधि पसंद है।हम एक दो दिन में इन दोनों की मीटिंग करवाने वाले हैं।बात तय होते ही तुम दोनों की सगाई एक साथ ही कर देंगे...! माधवी कड़े स्वर में बोलीं।
"माँ यह गलत है..! सुरभि ने विरोध किया।
"अच्छा यह गलत है तो तेरी वजह से सुनिधि के लिए हाथ आए अच्छे रिश्ते निकलते जा रहे हैं वो सही है बोल..? क्या चाहती है हम कन्यादान किए बिना मर जाए और सुनिधि भी मन मारकर तेरे विवाह होने का इंतजार करें...?माँ की बात सुनकर सुरभि चुप हो गई।
"बेटा अपने माँ पापा पर विश्वास कर, हमने तेरे और सुनिधि के लिए अच्छा ही घर-वर ढूँंढ़ा है।हम तुम दोनों की भलाई ही चाहते हैं।हमारे लिए न सही सुनिधि के लिए मान जा, तुम दोनों की शादी की उम्र निकली जा रही है...! विजयपाल बोले।
सुरभि क्या बोलती? चुपचाप हथियार डालकर कमरे की और बढ़ गई।कमरे में आकर अशोक को फोन करना चाहा फिर फोन बेड पर फेंक दिया।"तुम यही चाह रहे थे अशोक..! सुरभि के गालों पर आँसू की बूँदे चमकने लगीं।तभी फोन की घंटी बजी तो देखा अशोक है। उसने पहले सोचा रिसीव करूँ? फिर कुछ सोचकर नंबर ब्लॉक कर दिया।
"सॉरी अशोक अब हमारे रास्ते और रिश्ते दोनों ही बदलने वाले हैं। तुमने बहुत देर कर दी। मैं अपने माँ पापा को तुम्हारे कारण और दुखी नहीं कर सकती..?सुरभि की आँसू पोंछ लिए।
"दी आप खुश नहीं हो..? "सुनिधि ने कमरे में आते ही पहला प्रश्न किया।
"क्यों ऐसा क्यों पूछ रही हो निधि..? सुरभि उसे प्यार से निधि कहती थी।
"वो आप चुपचाप अंदर चले आए तो सब टेंशन में हैं। पापा भी खाना खाने से मनाकर कमरे में चले गए।माँ रुँआसी होकर चुपचाप सोफे पर बैठी है...!"सुनिधि ने बताया।
"और तू ?तू भी खुश नहीं..?" सुरभि ने पूछा।
"दी मेरी खुशी तो आपकी खुशी से है। आपको और ऑप्शन देखने हैं देख लीजिए।यह रिश्ता नहीं हुआ तो क्या हुआ? मुझे कोई न कोई अच्छा लड़का मिल ही जाएगा। मैं तो माँ-पापा की खुशी में खुश हूँ...!इतना कहकर सुनिधि चली गई।
"निधि भी तो पापा के बताए लड़के से शादी करने को तैयार है।फिर मैं क्यों इतना सोच रही हूँ? अशोक में अपने पेरेंट्स से बात करने की हिम्मत नही, उससे क्या उम्मीद करूँ?माँ पापा मान भी गए तो अशोक पीछे हट गया तो?तब कैसे सामना करूँगी..? सुरभि उठकर माँ के पास आकर बैठ गई।
"सॉरी माँ मुझे ऐसे रिएक्ट नहीं करना चाहिए था।आप जहाँ कहेंगी मैं शादी कर लूँगी,बस आप दोनों मुझसे नाराज मत होना..!यह सुनते ही माधवी के चेहरे की रौनक लौट आई।
"अजी सुनते हो..? आप जल्दी सगाई की डेट निकलवा लीजिए, सुरभि ने हाँ कर दी..!"यह सुनते ही विजयपाल बाहर आ गए और सुरभि को गले से लगा लिया।
"माधवी इसे लड़के की फोटो और नाम बता दो,वो कौन है और कहाँ से है..! विजयपाल बोले।
"माँ रहने दो मुझे कुछ नहीं जानना।पापा आप लोगों ने अच्छा ही देखा होगा? मुझे आपकी पसंद, पसंद है...! सुरभि ने फोटो देखने और लड़के की पहचान जानने में दिलचस्पी नहीं दिखाई।वो तो सबको खुश देखकर अपना दुख दबा गई।
सुनिधि और अविनाश की हाँ होते ही।सगाई की डेट निकाल ली गई।दस दिन बाद का मुहूर्त था।सब बहुत खुश थे सिवाय सुरभि के,जो ऊपर से खुश और मन ही मन रो रही थी।
सगाई की बेला आ चुकी थी।सुरभि और सुनिधि हल्के गुलाबी गाऊन में परी की तरह खूबसूरत लग रही थीं।तभी दो हैंडसम नौजवान चेहरे पर पार्टी नकाब लगाकार आते दिखाई दिए।
"दी वो दोनों आ गए..! सुनिधि धीरे से बोली।
"इन्होंने आधा चेहरा क्यों कवर किया है..? उन्हें ऐसे देख देख सुरभि असमंजस में पड़ गईं।
"दी आपके लिए एक सरप्राइज प्लान किया है अविनाश और मैंने,बस यह उसी का एक हिस्सा है। दोनों पास आ गए थे।एक ने सुनिधि और एक ने सुरभि का हाथ पकड़ा और स्टेज पर ले गए। सुरभि की कजिन्स सगाई की अँगूठियाँ ले आईं।
सुरभि के साथ खड़े लड़के ने अंँगूठी हाथ में ली और "विल यू मैरी मी सुरभि" घुटने के बल बैठकर जैसे ही सुरभि से कहा। सुरभि आवाज सुनकर चौंक गई।
"अशोक? सुरभि आवाज सुनकर मन ही मन बुदबुदाई। अशोक के ख्याल से सुरभि को रोना आ गया पर सिचुएशन देख उसने खुद पर काबू कर लिया।
"कुछ कहोगी नहीं? बैठे बैठे घुटने दर्द करने लगे हैं यार..! अशोक ने नकाब हटाते हुए अपने अंदाज में कहा।
"तुम..?माँ पापा आप लोगों को सब पता था?वो आश्चर्यचकित होकर बोली। अशोक को सामने देख आँखों से खुशी के आँसू छलक उठे।
"पूना जाने से पहले अशोक अपने पापा के साथ मुझसे मिलने आया था। तुम ऑफिस में थीं तो तुम्हें इसकी जानकारी नहीं थी। हम शाम को तुम्हें बताने वाले थे तो सुनिधि ने मना कर दिया, बोली दी को सरप्राइज़ देंगे।पर तुमने फोटो देखने से ही मना कर दिया..! माधवी बोली।
"शैतान की बच्ची..! सुरभि ने सुनिधि का कान पकड़कर कहा।
"आहहह दी मेरा मेकअप मत खराब कर देना..!" उसकी बात सुनकर सभी हँस पड़े।
"तुम तो मुझे बता सकते थे अशोक..?
"कैसे बताता? तुमने नंबर ब्लॉक कर दिया।मैं भी सुनिधि के खेल में शामिल हो गया कि अब सगाई पर ही तुम्हें सरप्राइज देंगे..!
"चलो चलो शिकवे शिकायतें बाद में,सगाई का शुभ मुहूर्त निकला जा रहा है।आप दोनों हमारी तो सगाई होने दो..!" अविनाश ने कहा। उसकी बात सुनकर सभी हँसने लगे।
"अविनाश मेरा कजिन है सुरभि..! सुनिधि के लिए हमने ही उसे सजेस्ट किया। हमारी सुनिधि को बहुत प्यार देगा।बहुत प्यारा बंदा है।यह सुन सुरभि और भी कई खुश हो गई कि सुनिधि उसकी ही देवरानी बनकर आ रही है।
"अशोक यह सब सच है मुझे अभी भी विश्वास नहीं हो रहा..!"एक अच्छा मुहूर्त देखकर शादी की डेट फाइनल हो गई और जल्दी ही दोनों बहनें विवाह बंधन में बँधकर विदा हो गईं।
"अशोक मैं डरती रही कि माँ पापा से बात की तो वो नाराज हो जाएंगे , उल्टा उन्होंने तो बेटी की खुशी को ही सबसे ऊपर रखा और तुरंत हाँ कर दी..!
"हाँ सुरभि..काश सभी प्रेमियों को ऐसे पेरेंट्स मिलें और उनका प्यार शादी जैसे खूबसूरत रिश्ते में बदल जाए..!.
"हम्म..!"कहते हुए सुरभि ने अशोक के कँधे पर सिर रख लिया।
©® अनुराधा चौहान'सुधी'स्वरचित
काश सभी प्रेमियों को ऐसे पेरेंट्स मिलें
ReplyDeleteआमीन,,
सुंदर रचना