Tuesday, April 18, 2023

दबा हुआ दर्द

 "मम्मा मैं डॉक्टर बन गई...!!"रिजल्ट घोषित होते हैं वैभवी दौड़कर माँ के गले लग गई।

"वाह कांग्रेचुलेशन माय बेबी,बस वैभव का इंजीनियरिंग का रिजल्ट और अच्छा आ जाए तो सीने पर रखा एक बोझ कम हो जाए...!"प्रतिज्ञा ने प्यार से वैभवी का माथा चूम लिया।

"मम्मा विभु तो टॉप ही करने वाला है।बस डॉक्टरी की पढ़ाई से उसे चिढ रही, नहीं तो उसे उसकी फील्ड में आज तक कोई पीछे नहीं कर पाया...!"

"हम्म..!"

"मैं पापा को अपना रिजल्ट बताकर आती हूँ..!"वैभवी दौड़ती अनिरुद्ध के कमरे में चली गई।

"आज मेरी आधी तपस्या हो गई। पूरी विभु के रिजल्ट के साथ हो जाएगी। फिर न मुझे इस घर से मतलब न इस बोझ बने रिश्ते से,जिसकी लाश न चाहते हुए भी इन बच्चों के उज्जवल भविष्य के लिए बीस वर्षों से ढोती रही हूँ...!"यह सोचते प्रतिज्ञा ने ठंडी साँस भरी और फिर अपनी यादों की गठरी खोलकर बीती बातें याद करने लगी।

"देवरानी तो तू बहुत सुंदर खोजकर लाई है प्रतिज्ञा...!" बुआ सास बलैया लेती हुई बोलीं।

"धर्मराज भाईसाहब और रजनी जिज्जी ने पिछले जन्म में बहुत पुण्य कर्म किए होंगे तभी प्रतिज्ञा जैसी बहू मिली..!"छोटी चाची ने कहा।

"सही कहा विशनपुर वाली... सास-ससुर के जाने के बाद भी ज़िम्मेदारियों से मुँह नहीं मोड़ा। पहले धूमधाम से अपनी ननद दिव्या की शादी एक अच्छा घर देखकर कर दी और अब देवर प्रद्युम्न के लिए सुंदर बहू ढूँढ लाई..!ताई जी ने समर्थन करते हुए कहा।

"आप लोग क्यों बढ़ाई कर रहे हो मेरी? यह सब तो आप बड़ों के आशीर्वाद से ही संभव हुआ है।मैंने तो सिर्फ अपना कर्तव्य निभाया है...!"

"वही तो बड़ी बात है बिटिया....यह दोनों बच्चे कॉलेज में पढ़ रहे थे जब तू ब्याह कर आई। शादी के बाद धर्मराज और रजनी अपने समधी समधन के साथ चार धाम की यात्रा के लिए ऐसे निकले की फिर कभी लौटकर ही नहीं आए...!"बुआ आँसू पोछते हुए बोली।

प्रतिज्ञा के पिता किसानी करते थे।  धर्मराज नगर निगम में कार्यरत थे। एक दिन उनका दौरा किसनी गाँव में हुआ।जून का महीना सिर पर आग बरसाता सूरज...पंखे -कूलर में रहने वाले धर्मराज धूप में चक्कर खाकर गिरने वाले थे कि पीछे से जयकरन ने उन्हें सँभाल लिया।

"संभालकर साब जी...?"

"धन्यवाद..बहुत तेज धूप है भाई, मैं थोड़ी देर कहीं रुकना चाहता हूँ। क्या यहाँ कोई रेस्टहाउस..?

"हा हा हा साब जी रेस्टहाउस हमारे गाँव में नहीं मिलेगा। बुरा न मानो तो वो सामने हमारी छोटी सी झोपडी है।आइए सभी थोडा सा विश्राम कीजिए...!"जयकरन उन्हें घर ले आए।

"आप लोग यहीं रुकिए मैं इस पेड़ के नीचे खाट डाल देता हूँ....साब जी आप अंदर मूढ़े पर बैठ जाओ..!"धर्मराज उम्रदराज थे उन्हें घर में बैठा जयकरन साथ आए दोनों सहायकों के लिए पीपल के नीचे खाट डालने चला गया। तब तक रजनी ने जीरे के तड़के वाली ठंडी छाछ तैयार कर दी।

"बाबूजी छाछ..!"प्रतिज्ञा ने ग्लास आगे करते हुए कहा।

"अरे वाह...सच में बेटा आज तो इसकी बहुत जरूरत थी। क्या नाम है तुम्हारा..?"

"प्रतिज्ञा...!"

"पढ़ाई कर रही होगी..?"

"अरे कहाँ साहब.. इस गाँव में दसवीं तक ही स्कूल है। उल्टी-सीधी खबरे सुनकर इसे आगे की पढ़ाई के लिए बाहर भेजने की हिम्मत नहीं हुई।ला बेटा बाहर बाबू लोगों को भी छाछ दे आता हूँ...!"

"ओह... धर्मराज जी ने अफसोस जाहिर किया। बातों बातों में जयकरन के परिवार से धर्मराज की कोई पुरानी पहचान निकल आई।

"अरे तुम उन दलवीर सिंह जी के बेटे हो? अरे उन्हें तो मैं अच्छे से जानता हूँ। बाबू जी के अच्छे संबंध थे उनसे।वो जब भी शहर आते तो बाबूजी से मिलने घर पर जरूर आते थे...!"पहचान निकलने पर जयकरन ने प्रतिज्ञा के लिए एक अच्छा सा घर वर बताने की रिक्वेस्ट की।

"हाँ हाँ जरूर जयकरन मैं तो इसे अपनी बहू बनाकर ले जाऊँ,पर आजकल के युवा अपनी पसंद से ही शादी करते हैं। तुम मुझे बिटिया की फोटो देदो, मैं प्रयास करता हूँ..!"

                    धर्मराज गाँव का सर्वे करके शहर लौट आए।"रजनी मेरा बस चले तो अपने बेटे से इसकी शादी कर दूँ..पर इसकी एजुकेशन को लेकर कंफ्यूज हूँ कि अनिरुद्ध से बात करी तो वो मना ही करेगा..!"

"लड़की तो बहुत सुंदर है। एक बार पूछ लेने में हर्ज ही क्या है....? रजनी प्रतिज्ञा की फोटो अनिरुद्ध को दिखाती है। प्रतिज्ञा की खूबसूरती देखकर अनिरुद्ध का मन डोल गया। उसने एकबार के पूछने पर ही शादी के लिए हाँ कर दी। इस तरह प्रतिज्ञा गाँव की झोपड़ी से निकलकर महलों में आ गई।

"बहू यह तुम्हारी ननद दिव्या और यह मेरा छोटू, तुम्हारा देवर प्रद्युम्न है..!"रजनी ने सबसे परिचय कराया तो प्रतिज्ञा ने सभी को दिल से अपनाया।अनिरुद्ध और प्रद्युम्न दोनों एक-दूसरे के विपरित थे।अनिरुद्ध माँ की तरह गोरा चिट्टा गबरु जवान था तो प्रद्युम्न गहरा साँवला,देखने में अपने पिता धर्मराज की तरह दिखता था।

"तुम फोटो में इतनी सुंदर नहीं लग रही थीं जितनी अब लग रही हो।सच में तुम फोटो से भी ज्यादा खूबसूरत हो प्रतिज्ञा...!"सुहाग सेज पर उसका घूँघट खोलते हुए अनिरुद्ध ने कहा तो शर्म की लाली ने गालों की खूबसूरती और बढ़ा दी।अनिरुद्ध ने उसे बांहों में जकड़ लिया।तो प्रतिज्ञा ने भी समर्पण कर दिया।

कुछ दिन बीते तो प्रतिज्ञा ने अनिरुद्ध से पूछा"मैं तो पढ़ी-लिखी भी नहीं फिर आपने कैसे हाँ कर दी..?"

"पापा की तुम्हें बहू बनाने की प्रबल इच्छा थी। मुझे भी तुम पसंद आ गई।खूबसूरत जीवनसाथी की चाह मुझे हमेशा से थी प्रतिज्ञा ,पर यह बात घर में किसी को नहीं पता थी फिर मैंने भी सोचा मैं तो अच्छा- खासा कमा रहा हूँ।तुम ज्यादा नहीं पढ़ी तो क्या?अनपढ़ भी तो नहीं हो..!"

"बधाई हो आप दादी बनने वाली हैं..!" एक महीने बाद ही रजनी को यह खबर मिली तो घर में खुशी की लहर दौड़ गई। समय भागता रहा और प्रतिज्ञा की गोद में पहले वैभवी और एक साल बाद विभु खेलने लगा।

"जयकरन जी..अब मैं भी रिटायर हो गया हूँ।अनिरुद्ध का परिवार भी पूरा हो गया है।तो क्यों ना हम लोग ईश्वर का धन्यवाद करने के लिए चारों धाम की यात्रा पर जाएं?

"क्यों नहीं धर्मराज जी... इकलौती बिटिया अपने घर में सुख-सुविधाओं से संपन्न है तो धन्यवाद तो बनता है..!"

"ठीक है तो मैं हम चारों की टिकट बुक कर लेता हूँ..!"उस यात्रा पर गए दोनों ही परिवार के मुखिया जिस बस में सवार थे वो बस बद्रीनाथ हाइवे पर पहाड़ धसकने से खाई में चली गई और बारिश के चलते किसी को भी बचाया न जा सका। प्रतिज्ञा और अनिरुद्ध ने अपना फर्ज निभाते हुए पहले बहन फिर भाई दोनों की शादी खूब धूमधाम से की थी।

रचना प्रतिज्ञा से भी अधिक सुंदर और गदराए बदन की नवयौवना थी। उसकी शादी को अभी एक महीना हुआ था। एक दिन रचना आँगन में मौसम की पहली बारिश का मजा ले रही थी।

"भाभी आओ ना कितना मजा आ रहा है..!"

"हा हा हा तुम उठाओ मजे, अभी तुम्हारी उम्र है। एक बार गृहस्थी की जिम्मेदारियाँ बढ़ीं सारे मजे फीके लगते हैं।

"भाभी प्लीज..!"

"मुझे बच्चों को लेने जाना है बस आती होगी बाय..!"प्रतिज्ञा ने दरवाजा खोला तो सामने अनिरुद्ध कार से उतर रहा था।

"अरे आप..?"

"हाँ आज तबियत कुछ नरम सी लग रही है इसलिए जल्दी आ गया। तुम..?"

"बच्चों की बस आने वाली है..!"

"मैं ले आता हूँ..!"

"नहीं आप आराम कीजिए, मैं आकर चाय बनाती हूँ..! प्रतिज्ञा बच्चों को लेने चली गई।

अंदर घुसते ही अनिरुद्ध की निगाह आँगन में बूँदों से अठखेलियाँ करती रचना पर पड़ी। बारिश में भीगकर कपड़े शरीर पर चिपके हुए थे जिससे उसका हर अंग स्पष्ट झलक रहा था। अनिरुद्ध पहले तो दबे कदमों से अपने कमरे में चला आया।पर मन आँगन में नहाती रचना पर रुक गया फिर न चाहते हुए भी वो खुद को रोक नहीं पाया और खिड़की के पीछे से रचना को देखने लगा।

"बस करो रचना क्यों सालों पहले सोए अनिरुद्ध को जगा रही हो।कॉलेज के समय से खूबसूरत लड़कियाँ मेरी कमजोरी रही हैं। बहुत दिनों से कंट्रोल मन का तुम्हें देख कंट्रोल खोता जा रहा है।हाय यह गोरा बदन उस प्रद्युम्न के हिस्से..!"तभी बच्चों की आवाज सुनकर वो बिस्तर पर लेटकर सोने की एक्टिंग करने लगा।

"श्श्श वैभवी विभु बोला ना, चिल्लाना नहीं पापा घर में आराम कर रहे हैं उनका सिर दुख रहा है..!"

"भैया..?हाय वो कब आए?आपने बताया नहीं, मैं तो बेशर्मों की तरह भीग रही थी।

"बाहर निकली तो मिल गए।बस आने वाली थी इसलिए बताने के लिए नहीं आ पाई..!"अब अनिरुद्ध जब भी रचना को देखता तो उससे किसी न किसी बहाने बात करता,उसकी तारीफ में एक दो शब्द कह देता।पहले तो रचना को यह सब अटपटा लगा,पर जब अपनी तारीफ सुनती तो फूलकर कुप्पा हो जाती।

"प्रतिज्ञा मैं क्या सोच रहा था।अब तुम्हारे पास काम कम हो गया है।बच्चे भी दिन में स्कूल चले जाते हैं।उस खाली वक्त में तुम कुछ नया क्यों नहीं करतीं..?"

"जब उम्र थी तो किया नहीं अब क्या करूँगी..?"

"अब बूढ़ी हो गई हो क्या? पैंतीस साल में तो लोग शादी करने का विचार करते हैं।अब रचना को ही देखो, छब्बीस साल की हुई है। फिर सीखने की कोई उम्र होती है क्या?

"पर करूँगी क्या, यह बताओ..?"

"तुम कहती थीं ना.. तुम्हें पेंटिंग का बहुत शौक है।मैंने पेंटिंग की एक क्लास देखी है।नयी खुली है और ज्यादा दूर नहीं है। तुम वहाँ से छूटने के बाद बच्चों को भी ले सकती हो। कहो तो तुम्हारा नाम लिखवा दूँ। दिन में तीन घंटे बस..!"

"तुम इतना कह रहे हो तो ठीक है, मैं तैयार हूँ..!"प्रतिज्ञा क्लास जाने लगी।तो उसकी पीठ पीछे अनिरुद्ध किसी न किसी बहाने घर आने लगा। रचना भी अनिरुद्ध से खुलकर बात करने लगी थी।

"रचना एक बात पूछूँ..?"

"जी भइया..!"

"तुम्हें प्रद्युम्न एक नजर में पसंद आ गया था। या तुम्हारे ऊपर प्रेशर बनाकर यह रिश्ता करवाया गया था..?"

"यह कैसा सवाल है भइया..?"

"भइया कहती हो और बात करने में हिचकिचाती हो.. क्यों? अरे मैं किसी से कुछ कहने नहीं जा रहा। फिर भी नहीं बताना है ना बताओ..!"

रचना कुछ पर मौन रही फिर बोली।"आप किसी को कहोगे तो नहीं..?"

"ना बिल्कुल नहीं..!"

"आपका भाई मुझे जरा भी पसंद नहीं था।सच कहूँ तो आज भी पसंद नहीं है। मैं शुरू से ही एक सुंदर गठीले बदन वाला जीवनसाथी चाहती थी।

"मेरे जैसा..! अनिरुद्ध ने दाँव फेंका।

"हाँ आपके जैसा..जोड़ तभी सही लगता पर पिताजी को उनकी नौकरी अच्छी लगी और कसमें देकर यह शादी करा दी। एक तो पति दिखने में अच्छा नहीं,दूसरा मुझे अपने साथ न ले जाकर यहाँ अकेला छोड़ गया। शादी के बाद भी अकेले रहना था तो शादी क्यों की..?"रचना ने अपने मन की भड़ास निकाली।

"ऐसी बात नहीं है रचना।वो कहकर गया है ना,जब घर की व्यवस्था कर लेगा तो तुम्हें साथ ले जाएगा।वो जानबूझकर नहीं नौकरी के कारण बाहर रहता है..!"

"जब तक घर की व्यवस्था नहीं होगी, मैं तब तक यूँ ही तड़पती रहूँगी?छः महीने हो गए उसे गए..?"रचना के आँसू बहने लगे।

"अरे अरे तुम तो रोने लगी? सॉरी रचना मैं तुम्हें दुखी नहीं करना चाहता था। सॉरी चुप हो जाओ..?"अनिरुद्ध ने आगे बढ़कर उसके कंधे को सहलाया तो रचना ने उसे ऐसा करने से नहीं रोका।

"मैं तुम्हारी तड़प समझ सकता हूँ रचना।यह खूबसूरती यूँ हीं तड़पने के लिए नहीं है। मैं प्रद्युम्न की जगह होता तो तुम्हें कभी अकेले नहीं छोड़ता..!"कहते हुए अनिरुद्ध ने उसे गले लगा लिया।अनिरुद्ध की बलिष्ठ  भुजाओं में जकड़ते ही रचना के जज्बात मचलने लगे। उसने उस बंधन से छूटने की कोशिश नहीं की। अनिरुद्ध अपने मकसद में कामयाब हो गया।दो मासूमों के विश्वास की बलि चढ़ाकर अब तो रोज ही मर्यादा के बाँध टूटने लगे।

"अनिरुद्ध कल लीला काकी मिलीं थीं।वो कह रही थीं कि अब तुम रोज दिन में आने लगे हो..?"

"इन आस-पड़ोस वालों को दूसरे के घर में झाँके बिना चैन नहीं पड़ता? प्रतिज्ञा पास की ब्रांच में एक प्रॉजेक्ट चल रहा था।आज खत्म हुआ है।पास में था तो सोचा ठंडा खाना खाने से बेहतर घर जाकर गर्म खाना खाऊँ..!"

"हाँ भाभी भइया सही कह रहे हैं।आप तो मुझे मिलवाओ कौनसी लीला काकी हैं जो प्रपंच रच रही हैं..?"

"मैंने ऐसा तो कुछ नहीं कहा..?"रचना को अनिरुद्ध का समर्थन करना प्रतिज्ञा को खटक गया।दूसरे दिन वो घर की दूसरी चाबी लेकर क्लास के लिए निकली और अनिरुद्ध के लंच टाइम में घर वापस आ गई और बेल बजाने की जगह ताला खोलकर चुपचाप अंदर चली आई। रचना के कमरे में आपत्तिजनक हालत में दोनों को देख वो देखकर गिर ही पड़ती पर कैसे भी हिम्मत बटोर कर अपने कमरे में चली आई।

रचना के कमरे से कभी हँसी की,तो कभी भावनाओं के आवेग की आवाजें प्रतिज्ञा के ह्रदय में शूल चुभो रहीं थीं।काफी देर बाद जब यह खेल थमा तो अनिरुद्ध कपड़े पहनकर जाने लगा तो पीछे से आवाज आई।

"तो यह था तुम्हारा गर्म खाना..?"

"तुम..?"

"हाँ मैं..! तुम्हें क्या लगा,कल तुम दोनों ने जो बहाना बनाया वो मुझे बेवकूफ बनाने के लिए काफी था..? पंद्रह साल दिए हैं इस घर को मैंने, कौन कब झूठ बोल रहा है साफ समझ जाती हूँ। रचना तुम अपना सामान पैक करो, तुम्हारे पापा तुम्हें लेने आ रहे हैं।अगले महीने प्रद्युम्न भी आ रहा है।वो तुम्हें अचानक आकर सरप्राइज देना चाहता था मगर तुमने मुझे ही सरप्राइज दे दिया..?"

"भाभी मुझे माफ कर दो .. मुझसे बहुत बड़ी ग़लती हो गई। पता नहीं कब कैसे यह सब हो गया।आप पापा को कुछ मत कहना प्लीज भाभी...वो मुझे जिंदा गाड़ देंगे भाभी...! रचना रोने लगी।

"एक शर्त पर..!"शांत सपाट लहजे में प्रतिज्ञा बोली।

"कैसी शर्त..?"तुम चाहती हो कि तुम्हारी यह शर्मनाक हरकत राज रहे तो तुम अब प्रद्युम्न के आने पर ही आना।वो सिर्फ एक रात के लिए आ रहा है। चुपचाप उसके साथ जाओ और फिर कभी उस बच्चे को धोखा देने के बारे में सोचना भी नहीं। तुम्हें लगा होगा,मैं आम औरतों जैसे रोऊंगी, चिल्लाऊँगी? नहीं रचना मेरे ससुर धर्मराज जी इस पूरे इलाके के सबसे इज्जतदार व्यक्ति थे। मैं उनके बेटे की करतूत पर तमाशा करके उनका नाम खराब नहीं करना चाहती..!"

"प्रतिज्ञा मुझसे...

"मेरी बात अभी खत्म नहीं हुई अनिरुद्ध। दिव्या जो इसी इलाके में अपनी ससुराल में सम्मान से रह रही है।यह बात बाहर निकली तो लोगों के ताने उसे जीने नहीं देंगे।मेरे दो नहीं चार बच्चे हैं। मैंने इस घर को दिल से अपनाया है। मैं मेरे घर में तमाशा नहीं चाहती।तुम्हारा फैसला मैने कर दिया है रचना। और अनिरुद्ध तुम भी सुन लो..! प्रतिज्ञा सीधे आप से तुम पर आ गई।

"तुम आज से मेरे लिए एक अजनबी हो। तुम अब उस कमरे में रहोगे जहाँ बाबूजी रहते थे।मेरे बच्चे पढ़ाई में, खेल-कूद में हर बात में अव्वल हैं। तुम्हें तलाक देकर तुम्हें नहीं मैं मेरे बच्चों को सजा दूँगी इसलिए...

"थैंक्स प्रतिज्ञा..!"

"थैंक्स किसलिए?तुम्हें तलाक न देकर मैं तुम्हें माफ नहीं कर रही अनिरुद्ध..!"मैंने यह फैसला बच्चों के उज्जवल भविष्य के लिए लिया है। तुम्हें तलाक दूँगी तो तुम तुरंत दूसरी शादी कर लोगे जो मैं नहीं चाहती। मैं अब अच्छी तरह से समझ गई कि औरत तुम्हारी कमजोरी है। और मैं नहीं चाहती समाज मेरे बच्चों को अय्याश बाप की औलाद का ताना मारे,उनका जीना हराम करे..!"

"मुझे इतनी बड़ी सजा मत दो प्रतिज्ञा।बस एक बार बस एक बार माफ कर दो..?"

"अब माफी नहीं अनिरुद्ध... अब हम कानूनी तौर पर अलग होंगे पर बच्चों के कुछ बन जाने के बाद।तब तक तुम्हें मेरे हर फैसले को मानना होगा।नहीं तो मैं तुम्हें तुम्हारे रिश्तेदारों, बच्चों और पूरे समाज के सामने नंगा कर दूँगी।सब मुझे अच्छी तरह समझते हैं और तुम्हे भी अनिरुद्ध..तभी तो कल काकी ने स्पष्ट इशारा किया था। और तुम भी रचना.. मेरी यह बात याद रखना और वही करो जो मैं कह रही हूँ ।जाओ बैग पैक करो..!"

"जी...!"रचना अपने कमरे में चली गई और पैकिंग करने लगी। उसके पापा आए तो प्रतिज्ञा ने उन्हें किसी बात की भनक नहीं लगने दी। रचना ने इस कांड को सबक मानकर प्रद्युम्न को दिल से अपना लिया और जल्दी अपने जैसी खूबसूरत बेटी की माँ बन गई ।

          अनिरुद्ध ने कई बार प्रतिज्ञा के करीब आने की उसे मनाने की कोशिश की पर प्रतिज्ञा ने अपनी प्रतिज्ञा नहीं छोड़ी। बच्चे क्लास दर क्लास आगे बढ़ते रहे। बच्चों के सामने हँसने-खिलखिलाने वाला कपल पीठ पीछे अजनबियों की तरह जी रहा था।आज वैभवी के रिजल्ट ने उसके गले में लिपटी रस्सी की एक गाँठ ढीली कर दी दूसरी खोलने के लिए छटपटाती प्रतिज्ञा बार बार घड़ी की ओर देख रही थी।

"मम्मा..!!! मम्मा क्या सोच रही हो..?"

"अरे तू कब आया..?"

"मम्मा यह देखो...इस बार भी टॉप ...!!माँ याद है ना मुझे एक तारीख को मुम्बई भी रवाना होना है।वैभव का मुंबई में एक मल्टीनेशनल कंपनी में कैंपस सिलेक्शन हो गया था।तीन तारीख को उसे जॉब जॉइन करनी है।

"हाँ हां याद है बेटा....वहाँ तेरे फूफा जी ने एक टू बीएचके फ्लैट भी देख लिया है और रेंट भी दे दिया।उन्होंने वैभवी के लिए भी बात कर ली है।वो भी वहीं रहकर प्रेक्टिस करेगी। मैं भी तुम दोनों का ख्याल रखने के लिए साथ चल रही हूँ।

"आप और फिर पापा...?"

"मैंने छः महीने पहले तलाक की अर्जी दी थी। कोर्ट का दिया छः महीने का वक्त निकल गया।कल फाइनली हमें तलाक मिल जाएगा..!"प्रतिज्ञा ने बिना रिएक्शन अपनी बात रखी।

"तलाक..??? मम्मा तलाक किसलिए?यह अचानक आप कैसी बात करने लगीं? तलाक क्यों चाहिए आपको मम्मा? बोलो मम्मा तलाक की कोई वजह भी तो होनी चाहिए..?"वैभव ने पूछा।

"वजह बीस साल पुरानी और अब इतनी वजनी हो गई है विभू कि कुछ दिन बाद शायद मेरा दम ही घुट जाए..!"कहते हुए प्रतिज्ञा रोने लगी फिर एक एक करके उसने अनिरुद्ध और रचना की हरकतों का कच्चा चिट्ठा खोलकर रख दिया।

"अब बोलो... मैं गलत कर रही हूँ..?"

"नहीं मम्मा आप एकदम सही कर रही हो। आपको तो यह फैसला बहुत पहले ले लेना चाहिए था। आप रुकी क्यों रहीं..?"

"तुम दोनों को उस उम्र में मैं क्या समझाती? इसलिए तुम्हारे भविष्य के लिए बच्चों चुप रह गई.. मैं तुम्हें या वैभवी को लेकर उस समय अलग हो जाती तो तुम दोनों के साथ और भी कई ज़िंदगियाँ तबाह हो जातीं।यह दबा हुआ दर्द मेरे लिए किसी हलाहल से कम नहीं था।जो मैंने तुम सबकी भलाई के लिए पिया।अब नहीं पी सकती। मैं जल्दी ही इस कैद से आजाद होना चाहती हूँ..!"

"मैं तुम लोगों के बिना कैसे रहूँगा..!

"जैसे अभी तक रहे अनिरुद्ध। मुझमें कोई फीलिंग बाकी नहीं जो तुम्हारी किसी बात से फर्क पड़े? मैं तो तब भी खोखली हो गई थी और आज भी खोखली ही हूँ।हाँ मुझे एक बात की तसल्ली रहेगी कि अब तुम्हारी इस झुकती काया से मेरी पीठ पीछे भी कोई आकर्षित नहीं होगा।अब तो समझ आ रहा होगा कि कुछ पल की मौज ने बीस साल सिर्फ दर्द ही दिया है..!"

"तलाक मंजूर होते ही प्रतिज्ञा अपने बच्चों के साथ खुली हवा में साँस लेने के लिए उड़ गई। अनिरुद्ध उस खाली घर में अपनी गलतियों को याद करके रोता रहा गया।

©® अनुराधा चौहान'सुधी'स्वरचित ✍️

चित्र गूगल से साभार


2 comments:

  1. बहुत सुंदर कहानी प्रतिज्ञा की प्रतिज्ञा ने कमाल कर दिया । ऐसे लोगों को यही सबक मिलना चाहिए ।

    ReplyDelete