Sunday, June 6, 2021

हादसा


ज़िन्दगी का सफ़र 

है ये कैसा सफ़र 

कोई समझा नहीं 

कोई जाना नहीं....

श्रुति कान में हेडफोन लगाए आँखें बंद किए गाना सुनने में मगन थी।सुधांशु और नील आपस में गप्पे मार रहे थे। नील सुधांशु बचपन के दोस्त थे। सुधांशु कोई भी काम नील की जानकारी के बिना नहीं करता था।
श्रुति को मगन देख सुधांशु बोला। "इसका काम सही है..पूरा सफर गाने सुनने में निकाल देगी..!"
"सही है यार..! वैसे भी अँधेरे में बाहर कुछ दिखाई तो दे नहीं रहा, सुनने दे उसे..!"
सुधांशु के जरिए नील की मुलाकात श्रुति से हुई और दोनों जल्दी अच्छे दोस्त बन गए।श्रुति सुधांशु की बिजनेस पार्टनरशिप थी।अपने नए प्रोजेक्ट के सिलसिले में दोनों शहर से दूर कंचनपुर गाँव के पास काली पहाड़ी की जमीन देखने आए तो दोनों नील को साथ ले आए थे।
"सुधांशु हम बहुत लेट हो गए,रात होने वाली है।क्यों न हम लोग यहीं पास के गाँव में रहने की जगह देख लेते हैं। क्यों श्रुति तेरा क्या विचार है..?"नील ने पूछा।
"क्यों..? तुझे भूतों का डर लग रहा है क्या..?" सुधांशु हँसकर बोला।
"हँसने की बात नहीं है सुधांशु।नील सही ही कह रहा है।हम जिस रास्ते से आए वो एकदम वीरान है।वहाँ आस पास कोई बस्ती भी नहीं है। ऊपर से चारों ओर घना जंगल,ऐसे में रात को कहीं गाड़ी खराब हो गई तो क्या करेंगे..?"
"हाँ सुधांशु तू भले भूत-प्रेत पर विश्वास न करे,पर मैं तो करता हूँ। मैंने नानाजी के गाँव जाते समय बचपन में एक बार ऐसा कुछ देखा कि दुबारा कभी वहाँ गया ही नहीं..!"
"मेरा ऐसा कोई अनुभव नहीं पर फिर भी मैं इन सब बातों में विश्वास करती हूँ और अब रात भी होने आई है तो..?" श्रुति ने नील की बात का समर्थन किया।
"तो क्या हुआ..?चिंता मत करो श्रुति।मैं तुम लोगों को यहाँ लाया हूँ तो सुरक्षित घर पहुँचाने की जिम्मेदारी भी मेरी,हम दूसरे रास्ते से चलते हैं..अब चलें..?"सुधांशु ने कहा।
"सुधांशु दूसरा कोई रास्ता नहीं मैंने पता कर लिया। थोड़ी देर पहले सेवाराम कह रहा था कि शहर आने- जाने का यही एक रास्ता है..!"नील बोला।
"ओके फिर इसी से चलते हैं..आओ बैठो..!"सुधांशु ने गाड़ी का दरवाजा खोला।
"अगर रात को गाड़ी में कहीं कोई गड़बड़ हो गई तो..? मुझे तो दिन में ही वहाँ का सन्नाटा डरा रहा था।क्यों ना आज रात हम लोग कंचनपुर में ही रुक जाएं..?कल सुबह जल्दी शहर के लिए निकल लेंगे,क्यों नील..?" श्रुति बोली।
"हाँ यही ठीक रहेगा सुधांशु..!" नील बोला।
"यार तुम दोनों सच्ची बड़े डरपोक हो।श्रुति तेरी तो नयी गाड़ी है फिर भी डर रही हो..?यह बात तुम कल ही कह देतीं तो मैं अकेला ही यहाँ आ जाता, हा हा हा हा हा...!"सुधांशु हँसने लगा।
"हँसने की कोनहुँ बात नहीं है बाबूजी। मेमसाब और नील साहब सच्ची ही तो कह रहे हैं।रात के समय जाने में कौनऊ समझदारी नाही..!"सेवाराम ने कहा।
"अब तुम शुरू हो गए..?"
"झूठ नहीं बोलेंगे साब हमाई ज़िंदगी इस गाँव में बीती है। बचपन से बहुत कुछ सुने ऊ जंगल के बारे में,साँची कहत हैं हम साब‌।ऊ रस्ता दिन के लिए ठीक है,वहाँ से रात को जाना ठीक नहीं...!"
"चलो तुम अपना काम करो।हम हमारा देख लेंगे..!"यह कहकर सुधांशु ड्रायविंग सीट पर बैठ गया।
सच्ची कहत हैं साब, रात को वहाँ से हम गाँव वाले भी नहीं जाते।बात मान लेओ,हम गाँव में ही तोहार लोगन की सोवे की व्यवस्था करवाए देत हैं।भुरारे उठतई तुम ओंरे निकल लेना..!"सेवाराम बोला।
"नहीं उसकी कोई जरूरत नहीं है सेवाराम।यार अभी तो सिर्फ आठ बजे हैं।हम लोग अभी निकलेंगे तो सुबह तीन बजे तक शहर पहुँच जाएंगेे..!"सुधांशु बोला।
सेवाराम की बातें सुनकर श्रुति और भयभीत हो रही थी।"क्क्या क्या सुना उस रास्ते के बारे में? हमें बताओ सेवाराम..!" श्रुति हकलाते हुए बोली।
"मेमसाब बहुत समय पहले यहाँ कुछ बहुत गलत हुआ था।इस काली पहाड़ी की जमीन खरीदने में कौनउ समझदारी नहीं है।यहाँ शहर वालों का कोई कारोबार शुरू नहीं होता..!"
"क्यों सेवाराम..?"श्रुति बोली।
बहुत लंबी कहानी है यह,यहाँ सिर्फ कंचनपुर, मधुपुर, मानपुर और एक दो और छोटे कस्बे हैं,बस वहाँ के लोग ही कारोबार कर पाते हैं। किसी भी बाहर वाले का कोई भी प्रॉजेक्ट आजतक शुरू नहीं हुआ..!"
क्या बात कर रहे हो..?ऐसा क्या है यहाँ,जो कोई प्रॉजेक्ट सफल नहीं होता..?नील ने पूछा।
सुधांशु साहब को हम पहले ही हिंट दिए थे कि यहाँ जो भी आया है,बर्बाद हुआ है।यहाँ के बारे में अच्छी तरह पता करलें।उसके बाद ही कोई निर्णय लें..!"सेवाराम कुछ कहता उससे पहले उसकी बात काटते हुए सुधांशु चिल्ला पड़ा। 
"कभी तो चुप रहा करो सेवाराम, तुम बहुत बोलते हो... और जाओ यहाँ से..!हम हमारा देख लेंगे, वैसे भी इन बेकार की बातों के लिए समय नहीं है।हम लोग अभी वापस जाएंगे..!"
"नहीं सुधांशु हम सेवाराम की बातें इग्नोर नहीं कर सकते..?"नील और श्रुति बोले।
"ठीक है तो तुम दोनों गाँव की बस सुबह-शाम चलती है।उससे आ जाना, मैं अकेला चला जाता हूँ..!" सुधांशु गाड़ी स्टार्ट करने लगा।
"ठीक है तुम नहीं मानते तो हम भी चलते हैं।साथ आए हैं तो परेशानी हो या सुख साथ भोगेंगे..!
"जइसन आपकी मर्जी साहब,हमार फर्ज हम पूरा कर दिए, आगे तोहार लोगन की किस्मत, ईश्वर रक्षा करें,चलत हैं हम..!" सेवाराम चला गया।
तुमने बेचारे सेवाराम को क्यों भगा दिया।वो तो हमारे भले की बात कह रहा था..?"..नील सुधांशु के ऊपर गुस्सा होने लगा।
"सुधांशु ऐसा क्या है वहाँ?क्या छुपा रहे हो तुम?सच अब तो यह जगह देखकर तो हमें भी निगेटिव फीलिंग आने लगी है..!"श्रुति ने फिर पूछा।
"कुछ भी नहीं..इन गाँव वालों का काम ही अफवाह फैलाना है..!"सुधांशु बोला।
"अभी भी वक्त है सुधांशु, एक बार औ विचार कर ले..?"
"हाँ नील मुझे भी कुछ ठीक नहीं लग रहा‌। चलो रात हो रही है, हम कंचनपुर चलते हैं..?"
"सच बताऊँ तो मुझे अब इस काली पहाड़ी के प्रॉजेक्ट में कोई दिलचस्पी नहीं रही।हम सुबह जल्दी शहर के लिए वापस निकल लेंगे..!"श्रुति बोली।
"सुधांशु मुस्कुराया और गाड़ी स्टार्ट करके आगे बढ़ा दी।"वैसे तुम लोगों को बेवकूफ बनाना बहुत आसान है।यह आज प्रूफ हो गया..!"
"बेवकूफ..और हम,वो कैसे..?"नील और श्रुति बोले।

अरे यार तुम लोग बात ही बेवकूफी भरी कर रहे हो।नील।श्रुति पहले मेरी बात समझो।यह गाँव वाले बड़े ही सीधे-सादे होते हैं।शहर वालों से दूर रहने में अपनी भलाई समझते हैं इसलिए बेकार की बातें करके शहरी लोगों को डराते हैं ताकि कोई शहरी उनके गाँव में प्रवेश न करे...!"सुधांशु बोला।

"हम्म शायद तुम सही कह रहे हो..?"नील बोला।

एक बात बताओ..?यह जो फेक्ट्री लगी हैं।यह सब क्या गाँव वालों ने लगाई होंगी..?हो ही नहीं सकता..! क्या पता रात को हमे यहाँ रोककर डराने का प्लान हो?चलो अब चलते हैं,समय से निकलेंगे तो समय से पहुँच जाएंगे..!

हम्म तेरी बात सही है सुधांशु,कुछ भी हो सकता है।चल श्रुति अब और देर करने में कोई फायदा नहीं,तू आराम से पीछे बैठ जा।मैं आगे बैठ जाता हूँ..!"नील ने श्रुति को समझाते हुए कार की पीछे की सीट पर बैठा दिया। श्रुति ने इयरफोन लगाए और आँख बंद करके मोबाइल पर गाना सुनने लगी।

"यह गाँव वाले भी बड़े अजीब होते हैं ना सुधांशु..?सच बताऊँ,सेवाराम की बातें सुनकर मैं भी डर गया था।अब तो लगता है इस जगह के लिए किसी और पार्टी से इसे ज्यादा कमीशन मिल रहा होगा..?"

"हाँ नील यही बात होगी..? तभी तो मैंने कहा कि इन बातों पर विश्वास मत करो ,यह अफवाहें हैं बस..!"

तभी गाने सुनने में मगन श्रुति को अहसास हुआ कि किसी ने उसके पैरों को छुआ,उसे लगा शायद नील ने छुआ होगा।

"क्या बात है नील..छुआ क्यों..?"

"कहाँ क्या हुआ..?तुमने कुछ कहा श्रुति..?"नील ने गर्दन घुमाकर पूछा।

"तुमने मुझे क्यों छुआ..?" श्रुति बोली।

"मैंने..? नहीं तो..?तू सोई थी क्या..? मैं और सुधांशु तो कबसे बातें करते जा रहे हैं, तूने देखा नहीं..पूछ सुधांशु से..!"नील ने कहा।

"श्रुति लगता है,तू और तेरा दिमाग अभी भी वहीं गाँव में ही घूम रहे हैं..!" हाहाहाहाहा सुधांशु हँसा।

"हम्म शायद..?" श्रुति ने फिर आँखें बंद करके सोने की कोशिश की तो फिर एक सरसराहट अपने समीप महसूस की, चौंककर देखा तो कुछ भी नहीं था।

"नहीं यह मेरा भ्रम नहीं है नील.. कुछ तो है जो मुझे अजीब लग रहा है नील..प्लीज तुम पीछे आ जाओ मैं अकेले नहीं बैठूँगी नील.. !"

"जा भई तू उसके साथ ही बैठ, नहीं तो यह ऐसे ही डरती रहेगी..!" सुधांशु ने बीच जंगल में गाड़ी रोक दी।

नील उतरकर श्रुति के साइड का गेट खोलने लगा।रात के बारह बज रहे थे।चारों ओर घना अँधेरा और जंगल से अजीब सी डरावनी आवाजें और हवा की सरसराहट सिरहन पैदा कर रही थी। 

गाड़ी से बाहर खड़े नील को मन ही मन डर लग रहा था।"श्रुति यार लॉक तो खोल..गेट खुल नहीं रहा तो मैं अंदर कैसे आऊँ..?" नील झल्ला उठा।

"लॉक तो खुला है नील?रुको मैं अभी अंदर से भी गेट खोलती हूँ..!" श्रुति गेट खोलने की कोशिश करने लगी पर कार का दरवाजा जरा भी टस से मस नहीं हो रहा था।

"अरे यार रात यहीं बितानी है क्या..? क्या कर रहे हो तुम दोनों..? कोई लॉक नहीं लगा, मैं सब चैक कर चुका हूँ..!"

सुधांशु ने अंदर से सारे सिस्टम चैक करके देखकर बोला "लगता है किसी कारण से गेट तो जाम नहीं हो गया?नील एक काम कर, तू अंदर आ और अपनी सीट को थोड़ा झुकाकर अंदर से ही पीछे चला जा बेकार में देर हो रही है..!"

"ओके यही ठीक रहेगा..!" नील अपनी सीट पर बैठने के लिए गेट ओपन करने लगा।"अरे यह क्या..?अब यह भी नहीं खुल रहा सुधांशु..ऐसा कैसे हो सकता है..?"

"क्या..?"सुधांशु चौंका।

"जरूर कुछ गड़बड़ है सुधांशु, मुझे लगता है सेवाराम सही कह रहा था..? नयी गाड़ी में ऐसी समस्या हो ही नहीं सकती..!"गाड़ी के दरवाजे खोलने की कोशिश में नील के पसीने छूटने लगे।

"क्या कुछ भी अनाप-शनाप बोल रहे हो नील..? तुम दोनों खुद डर के मारे दरवाजा भी नहीं खोल पा रहे..? और बेकार की बातें और करने लगे, हद्द है यार...!" सुधांशु चिल्लाया।

"सुधांशु माँ कसम, मैं झूठ नहीं कह रहा हूँ। अच्छा तू देख तेरी तरफ का दरवाजा खुल रहा है क्या..?" नील ने कहा।

"हाँ मेरा तो खुल रहा है यह देखो। सुधांशु ने सीट पर बैठे ही दरवाजा खोलकर दिखाया। एक काम करो, तुम यहाँ से अंदर आओ,मैं बाहर निकलता हूँ। चलो जल्दी अब देर मत करो..!"सुधांशु जैसे ही बाहर निकला वैसे ही वो भी गेट खट् से बंद हो गया।

"अरेरेरे यह कैसे बंद हुआ..?यह कैसे हो सकता है..?" अब तो सुधांशु के भी पसीने छूट गए।उसे भी अनहोनी की आशंका सताने लगी थी।

"श्रुति तेरी गाड़ी में पहले भी ऐसी समस्या हो चुकी है क्या..?"नील ने पूछा।

"नहीं नील गाड़ी तो एकदम नयी है।हाँ पहली बार इतनी दूर लेकर आए हैं।पर उससे तो कोई समस्या नहीं होनी चाहिए..?फिर यह कैसे हो रहा है मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा..?"

"समझ में तो हमारे भी कुछ नहीं आ रहा है श्रुति..!यह क्यों नहीं खुल रहे..!" सुधांशु सिर पर हाथ रखकर बोला।

"उफ़ एक तो घनघोर अँधेरा ऊपर से यह डरावनी आवाजें,नील.. सुधांशु.. कुछ करो मुझे बहुत डर लग रहा है।गाने सुनने के कारण मेरे मोबाइल की बैटरी डिस्चार्ज हो गई है। मुझे तुम लोग भी दिखाई नहीं दे रहे हो..!"श्रुति रोने लगी।

"श्रुति रो मत,हम दोनों कोशिश कर रहे है ना.. एक काम कर तू आगे आकर गाड़ी की सभी लाइट्स ऑन कर दे, रोशनी हो जाएगी।तब तक हम गाड़ी के लॉक खोलने की कोशिश करते हैं।तू चैक करके देख कहीं गलती से गाड़ी लॉक तो नहीं हो गई..?"नील बोला।

"हम्म यह हो सकता है श्रुति, नील सही कह रहा है, तू आगे जाकर लॉक खोलने की कोशिश कर..!"

"नील अपने मोबाइल से श्रुति को जरा रोशनी दिखा मेरा फोन गाड़ी के अंदर ही रह गया..?" सुंधाशु जेब टटोलते हुए बोला।

"मेरे मोबाइल की बैटरी तो शाम को ही डिस्चार्ज हो गई थी सुंधाशु..!"

"मैं क्क् कोशिश करके देखती हूँ,पर मुझे बहुत डर लग रहा है नील।हमें रात वहीं रुक जाना चाहिए था..!"श्रुति लड़खड़ाती जबान से बोली।वह डर के मारे बुरी तरह काँप रही थी।

अँधेरा इतना घना था कि कार के अंदर श्रुति भी नहीं दिख रही थी।सितम्बर का महीना था तो चाँद भी बदली में छुपा हुआ था।

श्रुति उठने लगी तो अचानक...घर्र घर्र की आवाज के साथ कार अपने-आप स्टार्ट हो गई,यह देख श्रुति की चीख निकल गई।"यह क्कैसे..नील.. सुधांशु मुझे बचाओ.. !"श्रुति डर से चीखने लगी और एक झटके से गाड़ी स्टार्ट होकर तेज रफ्तार के साथ आँखों से ओझल हो गई।

"हे भगवान यह सब क्या हो गया।हम सेवाराम की बात मान लेते तो सही रहते सुधांशु।अब हम श्रुति को कैसे ढूँढेंगे..?"नील सिर पकड़कर बैठ गया।

"वो तो हमारे साथ आ ही नहीं रही थी। तेरे कहने पर उसे साथ में लेकर आया था।अब उसके भाई को क्या जवाब दूँगा..?"

"अब क्या करेंगे, और क्या बताएंगे श्रुति के भाई को सुधांशु..?"

"तू सही कह रहा है नील, श्रुति की गाड़ी उसे लेकर अपने-आप गायब हो गई, इस बात पर कौन विश्वास नहीं करेगा..?"

चररड़..मररड़..सूखे पत्ते चरमराने की आवाज आने लगी। ऐसा आभास हुआ जैसे कोई उनकी और चला आ रहा है।

"इस बारे में हम बाद में सोचेंगे नील।पहले तो अपनी सुरक्षा की सोचो।सुनो सूखे पत्ते की आवाज से लग रहा है कि कोई इधर आ रहा है।तेज हवाओं के कारण पेड़ों की डालियाँ से किरर्र करर्र की डरावनी आवाजें आ रही थीं।

"अब क्या करें..?"

"आग जला लेते हैं।हाँ यही सही होगा..!"तुरंत दोनों ने आसपास की सूखी टहनियाँ और पत्ते जमा किए और सुधांशु ने अपना रुमाल को सिगरेट लाइटर से आग लगाई और उस ढेर को आग लगा दी।

नील आँखें मल मलकर चारों ओर देखने की कोशिश कर रहा था ‌पर हर और सिर्फ़ अँधेरा और घना जंगल ही नजर आ रहा था।"सुधांशु यहाँ इतने पेड़ हैं पर ऊपर चढ़ने लायक एक भी नहीं कि हम उस पर चढ़कर यह देख सकें कि आसपास कोई बस्ती में रोशनी दिख जाए और हमें कोई मदद मिल सके..?"

पत्तों के खड़खड़ाने की आवाज बंद हो गई थी।"यह तो शायद हवा की आवाज थी..?अब बंद हो गई..!"

"हम्म शायद..?"

"हुँऊऊऊऊऊ..." भेड़ियों के रोने की आवाज से दिल की धड़कन तेज होने लगी।

"अरे बाप रे यहाँ भेड़िए भी हैं..?"नील घबराया।

"डर मत आग से कोई पास नहीं आएगा।बस इसे बुझने नहीं देना।इसके सहारे हमें रात यहीं बितानी है।अँधेरे में इधर-उधर भटकने से कोई फायदा नहीं नील।हम सुबह होते ही सबसे पहले गाँव वालों की सहायता से श्रुति को ढूँढने की कोशिश करते हैं..!"

"कौन है..?कौन है वहाँ..?तभी नील को कोई दौड़ता महसूस हुआ।

"बचाओ... मुझे बचाओ..!"छपाक के स्वर के साथ किसी महिला की पानी में हाथ-पैर मारने की आवाज आने लगी।

"चल देखते हैं कोई मुसीबत की मारी लगती है। वरना इस अँधेरे जंगल में इतनी रात को क्या करने आती...?" सुधांशु उठकर जाने लगा।

"चुपचाप बैठे रहो.. क्या पता कोई छलावा..?"

"यह भी हो सकता है..!" सुधांशु फिर आग के समीप बैठ गया।दोनों खामोशी से से हाथ में मजबूत टहनियाँ लिए बैठे थे।

"देख आवाज बंद हो गई। मैंने सही कहा था यह छलावा हो सकता है..!"नील बोला।

"पर तुझे कैसे समझा..?"

"नानाजी के गाँव में ऐसा ही कोई चक्कर था।वो अक्सर सबसे कहा करते थे कि सुनसान जगह पर कोई पीछे से आवाज दे तो कभी मुड़कर मत देखना..!"

"क्यों भला..? कोई अपना भी तो किसी काम से बुला सकता है..?"सुधांशु ने पूछा।

"सुधांशु तुम कभी गाँव नहीं गए या वहाँ से कोई संबंध नहीं..? नानाजी कहते थे कि निगेटिव एनर्जी किसी भी रूप और आवाज में धोखा दे सकतीं हैं।इसलिए यह जरूरी नहीं आवाज लगाने वाला अपना ही हो..!"

"क्या बात कर रहा है..? मैं नहीं मानता..!"

"तेरे इस नहीं मानने के चक्कर में तो आज हम मुसीबत में घिर गए हैं..!"नील ने चारों ओर अग्नि का घेरा बना लिया था और बीच-बीच में आग में सूखी टहनियाँ और पत्ते डालकर उसे बुझने से बचा रहा था। चिंता और डर से नींद आँखों से उड़ी हुई थी।

"नील मैंने नहीं सोचा था कि सच में भी ऐसा होता है..? सेवाराम ने मुझे यह कहा था कि यह जगह शहर वालों के लिए ठीक नहीं,आप यहाँ प्रॉजेक्ट लगाने का विचार छोड़ दो।पर यहाँ तो किसी निगेटिव एनर्जी का चक्कर लगता है..!

तूने उसे बताने से पहले ही चुप करा दिया होगा? पहले भी डाँटकर पूरी बात ही नहीं सुनी होगी..?सुनता तो पूरी बात बताता..?पर फिर भी तुझे विश्वास नहीं होता और यह सब होता ही..!"नील बोला।

तभी उन्हें कुछ बातें करते लोगों के आने का आभास हुआ। हाथों में टार्च दिखाई दे रही थीं।

"श्श्श्श चुप नील वो देख उधर..लगता है उस औरत को ढूँढ रहे हैं..?हम भी उनके साथ निकल लेते हैं।उन लोगों ने आग जलती देख ली शायद..?"इसलिए हमारी मदद को आ रहे हैं..!"

"सुधांशु अभी भी रात ढली नहीं, यह भी कोई छलावा हो सकता है। याद नहीं सेवाराम ने क्या कहा था..?गाँव वाले शाम के बाद इधर नहीं आते..!"नील ने कहा।

"एक बुजुर्ग और उसके साथ शायद उसका बेटा था। तुम लोग यहाँ क्या कर रहे हो..?शहरी लोग हो लगता? तुम लोगों को किसी ने बताया नहीं कि रात में यहाँ आना मना है..?"बुजुर्ग ने कहा।

"वो हम यहाँ..!"सुधांशु कुछ कहता उससे पहले नील ने पूछा।"पहले आप बताओ कि यहाँ कोई खतरा है तो आप यहाँ क्या कर रहे हो..?"

"मेरा नाम दीना और राजू मेरा बेटा। हम अपनी बहू को ढूँढने आएं हैं। आपने देखा उसे..?वो झगड़ा करके इधर ही भागी थी..!"बुजुर्ग बोला।

"नहीं हमने ..!"नील कुछ और बोलता उससे पहले सुधांशु बोल उठा।

"हाँ इधर से किसी औरत की आवाज आई थी। जैसे वो पानी में कूदी हो..!"

"बाबू चलो हमारे साथ, हमें बताओ किधर से आवाज आ रही थी। कहीं गुस्से में वो कुछ कर न बैठे..!"राजू बोला।

"हम यहाँ से कहीं नहीं जा रहे।आप लोग यहीं के रहने वाले हो, आप तो यहाँ का चप्पा-चप्पा पता होगा" फिर हमारे मार्गदर्शन की क्या जरूरत..?उधर से आवाज आई थी तो जाकर देख लो..!"नील ने कहा।

"कैसी बात करते हो नील..? हमारी मदद से इनकी बहू मिल जाए तो अच्छा है ना..?चलिए मैं चलता हूँ आपके साथ..!"सुधांशु उठ खड़ा हुआ।

"नहीं सुधांशु हम कोई रिस्क नहीं ले सकते,तू नहीं जाएगा.. नील ने गौर किया कि वो दोनों इस तरह खड़े थे की आग का धुआँ भी उन्हें टच न करें।

"तू डर के मारे पागलपन की बातें कर रहा है नील। कुछ नहीं होगा,मैं अभी आया..!"उससे पहले वो उठकर घेरे से बाहर निकलता,नील ने एक जलती हुई टहनी उठाई और बाप-बेटे के ऊपर फेंक दी, नील सही था वो कोई छलावा ही था।

"ओ माई गॉड, यह तो गायब हो गए..?"

"कहा ना मैंने इस समय बस हनुमान चालीसा का पाठ करो और कोई चारा नहीं है हमारे पास सुधांशु..!"सुबह होते ही कंचनपुर जाएंगे और उनकी मदद से श्रुति को ढूँढने की कोशिश करेंगे..!"

"हम्म तुम सही कह रहे हो..!"

रह-रहकर सन्नाटे को चीरती आवाजों के बीच तभी सुधांशु उठकर बाहर जाने लगा।

"तू कहाँ चला..?"

"बस आया यार,इमरजेंसी है। सुबह पता नहीं कब होगी?हम काफी समय से निकले हुए हैं..!"

"नहीं यह गलती मत करना सुधांशु लेने के देने पड़ जाएंगे..!"

"तो क्या करूँ..?यार इतना भी नहीं डरा जाता। वैसे भी अभी कोई हलचल नहीं, लगता है सुबह होने वाली है..?"

"नहीं,जहाँ तक मेरा अंदाज है दो या ढ़ाई बज रहे होंगे..? एक-दो घंटे रुक जा।चार बजे के बाद कोई डर नहीं..!"

"सॉरी नहीं रुक सकता..!"सुधांशु चला गया।

"सुधांशु यार तू भी..!"नील रोकता रह गया।

"हे बजरंगबली रक्षा करना।जय हनुमान ज्ञान गुन सागर जय कपीश...," नील जोर-जोर से हनुमान चालीसा गाने लगा। तभी सुधांशु के चीखने की आवाज सुनाई दी।

नील बचाओ मुझे...!!आहहहह बचाओ जल्दी!! मैं  नीचे गिरा जा रहा हूँ..!"

"सुधांशु..?"अब क्या करूँ..? मैं बाहर निकला और मेरे साथ भी कुछ...? लगता है आज हम तीनों की कहानी इस जंगल में खो जाएगी? नील ने हाथ में पकड़ी मोटी टहनी में अपनी जैकेट को अच्छी तरह बाँधा और उसे जलाकर सुधांशु की ओर भागा।

"मैं आ रहा हूँ सुधांशु..आहहहह!"अचानक उसका पैर फिसला। उसने बहुत संभलने की कोशिश की पर फिर भी काफ़ी दूर तक सरकने के बाद वो किसी चीज से टकराकर रुक गया। उसकी कोहनी छिल गई पर उसने जलती हुई टहनी नहीं छोड़ी।

"यह..? रोशनी में गौर से देखा तो चौंक गया। हमारी गाड़ी..? श्रुति!!कहाँ है तू..?"रोशनी पर्याप्त नहीं थी कार के अंदर दिखाई नहीं दे रहा था।

"नील..!! सुधांशु चिल्लाया।

"आग कहीं बुझ न जाए,पहले सुधांशु को देखूँ फिर श्रुति को ढूँढता हूँ। आया सुधांशु...!"नील आवाज की दिशा में भागा।

सुधांशु एक पेड़ की जड़े पकड़े लटका हुआ था।" तू इधर कैसे गिरा..?" 

"पता नहीं यार,ऐसा लगा जैसे किसी ने मुझे जोर से धक्का दिया। कौन था..?अँधेरे के कारण मुझे कुछ दिखाई नहीं दिया वह तो यह जड़ें पकड़ में आ गई और मैं हनुमानजी का नाम लेते हुए तुझे बुलाने लगा..!"

आ हाथ दे अपना..!"नील की मदद से सुधांशु बाहर आ गया।

"उफ़ यार पहले पता होता यहाँ इतनी गड़बड़ है तो मैं कभी इस प्रॉजेक्ट के बारे में नहीं सोचता..!"वह जमीन में बैठकर हाँफने लगा।

"तेरा सिगरेट लाइटर कहाँ है सुधांशु..?"

"मेरी जेब में, क्यों..?"

"यह अब ज्यादा देर नहीं जलने वाली, हमें एक और मजबूत लकड़ी ढूँढकर मशाल बनानी होगी।हमारी कार भी मिल गई ,चल श्रुति को ढूँढते हैं..!"

"कार..कहाँ..?"

"तू चल मेरे साथ..!"नील सुधांशु का हाथ पकड़े उस तरफ दौड़ा जहाँ कार देखी थी।

"लाइटर जला सुधांशु..यह आग बस बुझने ही वाली है..?"

"नहीं बुझेगी मुझे लकड़ी मिल गई,यह देखो..!"

"ओह यह गीली है..!"रुक तू यह पकड़ जरा..!"नील ने अपनी शर्ट उतारकर उसके सिरे पर अच्छी तरह बाँधकर आग लगा दी।

"वाह नील तुझे बहुत आइडिया है। मेरे जैसा इंसान तो कब का मर चुका होता..!"

"हम्म चल अब श्रुति को ढूँढते हैं..!"नील सुधांशु को लेकर कार तक पहुँच गया।

"यह रही हमारी गाड़ी..!"

"यह तो बिल्कुल सही-सलामत है नील..? भगवान करे श्रुति भी ठीक-ठाक हो..?"सुधांशु ने आगे बढ़कर गेट खोलने की कोशिश की तो वो आराम से खुल गया।

"लो दरवाजा भी आराम से खुल गया..!" गाड़ी की लाइट चालू करके देखा तो अंदर श्रुति नहीं थी।

"श्रुति..? नील श्रुति गाड़ी में नहीं है..!"

"क्या..? ऐसा कैसे हो सकता है..? श्रुति कहाँ हो तुम..? नील ने आवाज लगाई।

सुधांशु ने कार से अपना मोबाइल निकालकर समय देखा।"नील तीन बजने वाले हैं..!"

"हम्म" नील ने और कोई जवाब देकर चुपचाप सूखे पत्ते जमा करके आग जलाई।

"क्या हुआ तू मौन क्यों हैं..?"सुधांशु ने पूछा।

"मौन नहीं यार,अब यह टहनी बुझने वाली थी तो पहले आग की व्यवस्था कर रहा था।तू अपनी अच्छे से पकड़े रहना।आग से निगेटिव एनर्जी दूर रहती है..!"

"ओके..!"सुधांशु बोला।

"मोबाइल दिखा..!"नील ने सुधांशु के मोबाइल की टार्च जलाकर गाड़ी की सीट के आस-पास अच्छी तरह देखा।"श्रुति गाड़ी में तो नहीं है।कहाँ जा सकती है..?"

"डिक्की देख नील.. शायद डरकर उसमें छुप गई हो..?"

"हाँ हो सकता है..!"नील ने डिक्की खोली तो श्रुति उसमें बेहोश पड़ी थी।

श्रुति..!आँखें खोल, श्रुति...!!इसे तो होश ही नहीं आ रहा है।अब क्या करें..?"

"पानी नील.. गाड़ी में पानी की बोतल है..!"सुधांशु ने तुरंत पानी की बोतल निकाली।नील ने श्रुति के मुँह पर पानी के छींटें मारने शुरू कर दिया। छींटें पढ़ते ही श्रुति के शरीर में हलचल होने लगी।

"छोड़ो मुझे... नहीं..!! चीखकर उठी तो नील और सुधांशु को देखा तो नील से लिपट गई।

"नील.. तुम लोग आ गए..!"

"क्या हुआ तेरे साथ और डिक्की में कैसे..?"नील ने पूछा।

"अचानक गाड़ी रुकी और दरवाजा भी आराम से खुल गया।मैं डरते हुए उतरी सोचा आगे बैठकर गाड़ी स्टार्ट करके तुम लोगों के पास ले जाऊँ।घने अँधेरे में कुछ दिखाई नहीं दे रहा था। जैसे ही गाड़ी से उतरी किसी के हाथों का दबाव क्षण भर के लिए मेरे गले पर महसूस हुआ लेकिन एक चीख के साथ वो साया दूर होकर गायब हो गया।मैं डर के मारे डिक्की में जाकर छुप गई और कैसे बेहोश हुई पता नहीं..?"

"नील एक बात नहीं समझी..?उसने श्रुति को मारने की कोशिश की, फिर चीखकर भागा क्यों..?"

"उसका कारण यह है..!" नील ने श्रुति के गले में पड़ा देवी की मूर्ति का लॉकेट आगे किया।उसने इसे मारने की कोशिश की पर इससे टच होते ही वो चीखकर गायब हो गया..!"

"चलो अब सब ठीक है तो वापस चलते हैं।गाड़ी में बैठो आओ..!"सुधांशु बोला।

"नहीं सुधांशु अभी भी रात है। अभी भोर का प्रथम प्रहर शुरू नहीं हुआ।इस समय हमारी सुरक्षा यह अग्नि कर सकती है।आओ यहीं बैठते हैं, आधे घंटे बाद हम वापस कंचनपुर चलेंगे..!"

"कंचनपुर क्यों..?"दोनों बोले।

"यह सब क्या चक्कर है,जानना है मुझे..!"

"पर अब हमें इस प्रॉजेक्ट में ही कोई इंटरेस्ट नहीं है तो फिर क्यों..?"

"कोई असमय मृत्यु को प्राप्त व्यक्ति या कोई ऐसा व्यक्ति जिसके मरने का कारण तो पता है पर उसका विधिवत अंतिम संस्कार न होने से वो इस तरह अपना बदला लेने की कोशिश करती हैं और समय के साथ निगेटिव एनर्जी बलवान होती जाती है। हमें यह कारण पता करके इस काम को अंजाम देना होगा..!"

"नहीं कर पाओगे तुम कुछ,हा हा हा मारे जाओगे सब..मारे जाओगे सब..!" अचानक से अट्टहास भरी आवाजें सुनाई देने लगी और कुछ परछाईंयाँ भी जो उनके चारों ओर घूम रहीं थीं।

"नील..,"श्रुति डरकर नील से लिपट गई।डरो नहीं श्रुति..बस सब जाप करते रहो और अग्नि जलाए रखने की कोशिश जारी रखो..,अब बस सुबह होने ही वाली है।फिर यह लोग हमारा कुछ नहीं बिगाड़ पाएंगे।थोड़ी देर में चिड़ियों के चहचहाने का स्वर सुनाई देने लगा।

"मार्निंग हो गई नील..?"

"हम्म टाइम क्या हुआ सुधांशु..?"

"मेरा मोबाइल अब बंद हो गया है नील..!"

"रुक जाओ फिर, जंगल में जल्दी उजाला दिखता है।इन हालात में रोशनी के अलावा और कुछ सच नहीं हो सकता, उजाला होते ही निकलते हैं..!"

"जैसा तुम कहो..!"तुम्हारी हर बात सही साबित हो रही है नील..!"थोड़ी देर में आसमान लाल रंगत के साथ दिखाई देने लगा।

"अब सुबह हो गई,चलो बैठो सब..!"तीनों गाड़ी में बैठकर कंचनपुर की ओर निकल गए।

कंचनपुर पहुंचकर वह सीधे सेवाराम के घर का पता पूछते-पूछते उसके घर पहुंच गए।

"सेवाराम जी घर पर हैं..?"घर के चबूतरे पर झाड़ू लगाने वाली स्त्री शायद सेवाराम की पत्नी थी।

"हाँ घरइ हैं, अभी बुलात हैं..!"कहकर वो अंदर चली गई और थोड़ी देर में अंदर से सेवाराम कुर्ता पहनता हुआ बाहर आया।

"अरे साब जी आप लोग..? आप लोग शहर नहीं पहुँचे का..? और ई का..?नील बाबू आपके कपड़े कहाँ गए?लगता है कौनउ हादसा घट गयो...?"क्या हुआ साब सब ठीक तो है..?"

"सेवाराम पहले तो हमारे रुकने और खाने-पीने की कुछ व्यवस्था करवा दो, बहुत थक गए हैं। फुर्सत से तुमसे जरूरी बात करनी है..!"सुधांशु बोला।

"एक काम करो साब, भीतर चल के चाय पियो तब लो हम मुखिया जी से गेस्ट हाउस की चाबी ले आत हैं।रे भागवान साब लोगन ने चाय पिला..!"

"सेवाराम ऐसे तुम्हारे घर..?"नील सकपकाया।

"साब बाजार खुलने में समय है। अगर बुरा नहीं मानो तो?हमाई बुस्शर्ट पहन लो एकदम नई है। सासरे गोमती की विदा करान गओ तो सास दिए रहीं..!"

"हम अभी लावत हैं..!"गोमती शर्ट लेने अंदर चली गई।

"बुराई की कोई बात नहीं सेवाराम यह तो तुम्हारा प्रेम है..!"नील ने सेवाराम की शर्ट पहन तो ली पर लंबाई में छोटी पड़ गई।

"ओह यह तो आपके.. सेवाराम की बात काटते हुए नील बोला।

"कोई बात नहीं सेवाराम..शहर में कई लोग फैशन के चलते ऐसी शर्ट पहनते हैं। और फिर बाजार खुलने पर नई ले लूँगा..!"

"ठीक है आप चाय पियो हम चाबी लावत हैं।गाँव में कभी-कभी सरकारी अफसर आते थे तो उनके रुकने के लिए गेस्ट हाउस बना हुआ था और चाबी मुखिया जी पर रहती थी।

गोमती ने चाय बनाकर मठरी के साथ दी। नमकीन मठरी के साथ चाय पीकर तीनों को थोड़ा अच्छा लगा।

"चलो साब चाबी ले आया हूँ..!"सेवाराम लौट आया।गेस्ट हाउस में उसने दो कमरे खोलकर चाबी नील के हाथ में दी।"साब मुखिया जी दो कमरों की चाबी दिए हैं।आप दोनों एक कमरे में हो जाओ और मेमसाब को एक कमरा दे दो..!"

"धन्यवाद सेवाराम इतना ही काफी है।आप हमारे खाने की व्यवस्था करवा दो बहुत भूख लगी है।पैसे की चिंता मत करना।हम लोग तब तक मोबाइल चार्ज कर लेते हैं।बाजार कब खुलेगा..?"

"गाँव का हाट है दस बजे तक खुलत है और पाँच बजे बंद हो जात है। क्या कुछ खरीदे का है..?"

"हाँ सेवाराम एक-एक जोड़ी कपड़े,तभी तो फ्रेश हो पाएंगे..? नहा लें तो थकान मिटे..!"नील ने कहा।

"आप लोगन जैसे फैशन वाले तो नहीं,पर हम लोगन जैइसन कपड़े मिल जाएंगे।चलो अबई गंगा की दुकान खुलवाए देत हैं।ओ तो घरई में दुकनिया खोल रखी है..!"

"जै बात सेवाराम...चलो फिर..!"सुधांशु ने सेवाराम की टोन में कहा तो नील श्रुति हँस पड़े।

गंगा की दुकान में नील और सुधांशु ने साधा पेंट और कुर्ते खरीदें, श्रुति ने सिंपल सलवार सूट लिया। साधारण पर आरामदायक कपड़े थे।

तीनों गेस्ट हाउस लौट आए और नहा-धोकर तैयार हो गए। सेवाराम ने ढाबे का नंबर दे दिया था तो नील ने खाना ऑर्डर कर दिया। तीनों खाना खाकर आराम करने लगे। ग्यारह बजे सेवाराम मुखिया जी के साथ मिलने चला आया।

"साब मुखिया जी..!"

"नमस्ते मुखिया जी..!"

"साब अब बताइए रतिया के क्या हुआ रहा..?"

नील सारी बातें बताता है।

"बहुत समझदारी से काम लिया बाबूजी।नहीं तो जो रात में वहाँ फंसा वो मरा ही मिलता है।वो तीनों बुरी आत्माएं बन गए हैं। पहले तो गाँव वालों को कोई नुक़सान नहीं पहुँचाते थे।पर अब उन्हें भी नहीं बख्शते..!"मुखिया बोले।

"तीनों कौन ?आप जानते हैं उनके बारे में ?बताइए हमें भी..!"

"दीना उसका बेटा राजू और उसकी पत्नी झुमरी उन तीनों की आत्माएं रात के समय आतंक मचाए हुए हैं...!"मुखिया बोले।

"जहाँ तक मैं जानता हूँ।जिनकी मृत्यु असमय हुई हो ?और उनकी आत्मा की शांति के लिए किसी प्रकार का पूजन नहीं हो?उनकी आत्माएं परेशान करतीं हैं..?"

"कोई बचा ही कहाँ उनके परिवार में,जो उनके लिए कुछ करता..!"

"हुआ क्या था उनके साथ..?"

"साब हमारे गाँव के कुछ पढ़े-लिखे लोगों ने शहरों में ट्रेनिंग ली और लोन लेकर यहाँ अपने छोटे-छोटे कारखाने लगा लिए,गाँव के लड़कों को ट्रेनिंग देने लगे। कारखाने से जो भी उत्पादन होता है,उसे शहर में ले जाकर बेच देते हैं।हम लोगों की तरक्की के लिए इतना ही बहुत था।पर.,"मुखिया जी कहते-कहते रुक गए।

"पर क्या मुखिया जी..?"

"कुछ साल पहले,आप ही की तरह कुछ शहर के लोगों ने यहाँ एक बड़ा प्रोजेक्ट शुरू किया था।यह एक दवाइयाँ बनाने वाला प्रोजेक्ट था।तब दीना के परिवार ने उनकी बहुत मदद की थी।यहाँ गाँव वालों ने तो साथ देने से मना कर दिया तो वो लोग पास के गाँव से मजदूर ढूँढकर लाते थे..!"

दवाइयों का प्लांट..? सेवाराम ऐसा कोई प्लांट तो तुमने नहीं दिखाया..?"

"पूरा बनता तो दिखाते..!"मुखिया जी बोले।सेवाराम तुम बताए नहीं..?यहाँ बाहरी लोगों के प्रोजेक्ट पूरे नहीं होते..!"

"मुखिया जी हम बहुत कोशिश किए पर साब सुनव

ही नहीं करे।उन्होंने तो ट्रेन से जाते समय यह जगह देखी तो हम यहाँ जगह बतात हैं पता करके हमार नंबर खोज लिए..!"

"इसकी वजह..? ऐसा क्या हुआ था..?"

"प्रोजेक्ट तो सिर्फ बहाना था।वो लोग मानव अंगों की तस्करी करते किया करते थे।उन लोगों ने गाँव से दूर जंगल में बँगला बनाया तो हम सबको तभी शक हो गया कि कुछ गड़बड़ है। नहीं तो यहीं बँगला न बनाते..?"

"फिर..?"

"फिर क्या,हम अपने गाँव वालों को अपनी बातों से विश्वास दिला दिए कि यह शहरी लोग का काम कर सब मुसीबत में घिर जाओगे,यह तो मान गए पर वो तीनों नहीं माने,काहे की उनसे उन्हें मोटी रकम जो मिल रही थी।

"मानव अंगों की तस्करी..?यह आपको कैसे पता चला..?"

"वो ऐसे कि जो भी मजदूरी करने आता उसको वो यहाँ से जाने नहीं देते और परिवार वालों बुलाने आते तो कहते काम पूरा होते ही भेज देंगे। फिर उनको पगार देकर घर भेज देते..!"

"भोले-भाले गाँव वाले क्या जाने, उनके बच्चे क्या झेल रहे हैं।वो उनसे मिलते तो उनके पहरेदार साथ रहते तो वो सच नहीं बता पाते।वो लोग उनके गुर्दे निकालकर बेच रहे थे और जो मर जाते उनकी बाकी के अंग निकालकर उन्हें भी जंगल में दफन कर देते और माँ-बाप से कहते कि वो घर लौट गए..!"

"किसी ने पुलिस कम्पलेंट नहीं की..?"

"कितनों ने की,पर चोर चोर मौसेरे भाई गाँव वालों को ही डाँट कर भगा दिया जाता।हम लोगों ने दीना के परिवार को गाँव से निकाल दिया और आसपास के गाँवो में लोगों को अपने बच्चों को उसके साथ भेजने से मना कर दिया..!"

"फिर..एक दिन मधुपुर का बिरजू घायल अवस्था में कैसे भी गाँव तक पहुँचा और सच्चाई बयां कर दी।सच सुनकर गाँव वालों ने शोर मचा दिया। पुलिस को भी कार्रवाई करनी पड़ी।सबको गिरफ्तार करके जेल भेज दिया।

"और यह तीनों..?

"गाँव वालों ने बँगले को आग लगा दी।यह तीनों जान बचाने के लिए भागे।गाँव वालों को पीछे आता देख झुमरी तालाब में कूद गई और डूबकर मर गई। दीना और उसके बेटे को पीट-पीटकर मार डाला।बस एक गलती सबसे हुई कि उनके शरीर को वहीं जंगल के छोड़ दिया..!"

"इसलिए आत्माएं भटक रहीं हैं..!"नील बोला।

"बाबूजी भटक ही नहीं रही बल्कि शहर वाला यहाँ कुछ करने आए तो उसके पीछे पड़कर अपनी मौत का बदला लेती हैं।अगर गाँव वाला कोई गलती से रात को जंगल में मिल जाए तो डरा-डरा के पागल कर देती थी लेकिन अब मार देती हैं..!"

"साब इसलिए कहे थे यहाँ कुछ करने की मत सोचो ।हम सब तो सीमा मंत्र-तंत्र से सील करवाए हैं।तो गाँव के अंदर सुरक्षित हैं..!"

"सेवाराम यह समस्या का समाधान नहीं है।कभी न कभी तो गाँव का सुरक्षा घेरा कमजोर होगा तब क्या करोगे..?"सुधांशु भी अब इन बातों पर विश्वास करने लगा था।

सुधांशु की बात सुनकर नील बोला।"हाँ मुखिया जी ऐसे तो इन आत्माओं की शक्ति दिन प्रतिदिन बढ़ती नहीं जाएगी..?मैंने नानाजी के यह बात सुनी थी कि अगर अतृप्त आत्माओं का सही से अंतिम संस्कार किया जाए तो वह फिर परेशान नहीं करती।अगर ऐसा नहीं करते तो आगे चलकर प्रेत योनि में प्रवेश कर जाती हैं,तब वो सबके लिए बहुत घातक सिद्ध हो सकती हैं..!"नील ने कहा।

"तो फिर हमें क्या करना चाहिए..?"मुखिया ने प्रश्न किया।

"यह तो कोई तंत्र मंत्र का जानकर ही बता सकता है।आप लोग किसी ऐसे व्यक्ति को जानते हो तो फिर चलो मिलकर पूछते हैं।वही कोई समाधान बताएंगे..!"

"अगर कोई गड़बड़ हुई तो..?"

"तो इस डर से आप निर्दोषों को मरते हुए देखते रहोगे।कल को गाँव वालों के साथ ही अप्रिय घटना घटने लगी तब भी आप हाथ पर हाथ रखकर बैठे रहोगे..?"

"मुखिया जी इन लोगों की बात काफ़ी हद तक सही है।अब वो आत्माएं गाँव वालों को भी नुकसान पहुँचाने लगीं हैं।

"ठीक है फिर.. पहले गाँव वालों से इस विषय पर चर्चा करनी होगी।उनको साथ लेकर ही कुछ करना संभव होगा..!"

मुखिया जी शाम को पंचायत में अपनी बात रखते हैं। अधिकतर लोगों की राय नील के पक्ष में थी कुछ लोग अभी भी डर रहे थे।

"हम तो सालों पहले ही बोले रहे कि इन्हन का अइसे मत छोड़ो वरना भूत बनकर सतावेंगे।हमाईं बतिया सच हो गई। चलों पहाड़ी वाले बजरंग बाबा के पास,वही तोड़ ढूँढेंगे..!"भीड़ में से एक बुजुर्ग बोला।

"चलो..!"सब मिलकर काली पहाड़ी पर बने बजरंग बाबा के आश्रम पहुँच गए। और उन्हें सारी समस्या से अवगत कराया।

समस्या जानकार बजरंग बाबा बोले। बात इस हद तक बढ़ गई तब समझ आई यह बात..?"पहले ही कहा था गाँव की सीमाओं का बंधेज करके कुछ नहीं होगा मेरी बात मानकर अंतिम संस्कार कर आत्मा शांति का पूजन कर दो...!"

"आप यह सब जानते थे तो फिर आपने ही कुछ क्यों नहीं किया..?यूँ चुपचाप अपने तंत्र साधना क्यों करते रहे..?"नील ने पूछा।

"बेटा जंगल में कहाँ क्या कांड हुआ,यह मैं कैसे जानूँ..? इन्होंने जो कहा,जो बताया,उस आधार पर मैंने तंत्र मंत्र से सीमाएं बाँध दी। फिर भी कहा था कि यह काफी नहीं है।पर इन्हें लगा शायद दक्षिणा के लालच में मै यह सब कह रहा हूँ..!"

"गलती हो गई बाबा जी..! पर अब आप ही कोई उपाय बताएं...?"मुखिया जी बोले।

"मैं क्या उपाय बताऊँ..?पहले से ही कह रहा हूँ कि उनके कंकाल ढूँढों और फिर विधिवत दाह संस्कार विधि सम्पूर्ण करो।उनकी आत्मा की शांति के लिए पाठ करवाओ तभी मुक्ति मिलेगी..!"

"पर इस काम को करने में कोई खतरा पैदा हुआ तो..?अगर उन आत्माओं ने नुकसान पहुँचाने की कोशिश की तो..?"

"मुखिया तू पहले यह तय कर कौन इस काम के लिए तैयार हैं..!"

"मुखिया जी दो तो हम लोग हैं। बाकी आप देख लो..!"नील सुधांशु बोले।

"मुखिया जी हम भी तैयार हैं..!"भीड़ में से दो तीन लोग और बोले।

"ठीक है,फिर वह लोग भी सामने आएं, जिन्होंने इस काम को अंजाम दिया था।सही जगह वही बता सकते हैं..!"

नील और सुधांशु को मिलाकर गाँव से आठ लोग  लोग तैयार हो गए। बजरंग बाबा ने उन सबकी कलाई पर अभिमंत्रित धागा बाँध दिया।

मुखिया तुम कुछ लोगों को और साथ में लेलो।और हाँ गंगाजल,घी और कुछ जलती हुई मशालें साथ में रखना..!"

सुबह होते ही पच्चीस लोगों की भीड़ जंगल के लिए निकल गई।जो अच्छे तैराक थे उन्हें तालाब के तल में झुमरी का कंकाल ढूँढने के लिए काफी मेहनत मशक्कत करनी पड़ी।बहुत कोशिशों के बाद उनकी मेहनत रंग लाई और उन्हें झुमरी का कंकाल मिल गया।

"मुखिया जी झुमरी का कंकाल मिल गया..!"गुलाब सिंह चिल्लाया।

"कैसे पता यह झुमरी है..?"मुखिया जी बोले।

"भूल गए मुखिया जी? झुमरी का दाया हाथ टूट गया था।तुम्ही तो दीना के साथ उसे शहर में भर्ती कराए थे और उसके हाथ में हड्डी की जगह सरिया पड़ा बताए रहे..?"

"ओह हाँ फिर तो यह झुमरी ही है।यह देखो सरिया उसी हाथ में है..!"

समय के साथ आँधी-बारिश और धूल मिट्टी के नीचे दीना और राजू के कंकाल दफन हो गए थे। काफी खोदने पर उनके भी कंकाल मिल गए।

एक विशाल घेरे के अंदर तीनों कंकालों को चिता पर रखकर बजरंग बाबा ने मंत्र पढ़ना शुरू किया और उन कंकालों के ऊपर गंगाजल छिड़का, वैसे ही जंगल में चारों ओर से भयानक से आवाज आने लगी। हवाएं जोर-जोर से चलने लगी।

सब घेरे के अंदर आ जाओ।जल्दी करो,कोई भी बाहर ना रहे।मुखिया मशालें जलाओ..! बजरंग बाबा चिताओं के चारों ओर चक्कर लगाकर मंत्र पढ़ते रहे।भर्राती हुई, चीखती हुई आवाजें भयभीत कर रहीं थीं।

अचानक धूल भरी आँधी चलने लगी।"चिताओं को आग लगाओ,क्षण भर भी देरी मत करो..!" बजरंग बाबा का मंत्र पढ़ना बंद हो गया था।उनका आदेश सुनते ही चिता को आग लगा दी गई।

"हुंहुंहुहुहुं, आहहहहह, ईईईईईईई, नहीं बचोगे, नहीं बचोगे..की चीखें धीरे-धीरे शांत होने लगी थीं। धूल छट गई,हवा भी हल्की बहने लगी। झुमकी,दीना और राजू की आत्मा को शांति मिल गई थी।

"चलो छुटकारा मिला..!"मुखिया बोले।

"नहीं मुखिया.. अभी कुछ और बाकी है। बजरंग बाबा बोले।

"क्या बाबाजी..?'

"यह जो घेरा बना देख रहे हो?इसको चारों और यह अभिमंत्रित कीलें ठोक दो।कल सुबह इन अस्थियों को पास की नदी में प्रवाहित कर देना।बस फिर सब शांति हो जाएगी..!"

सब गाँव लौट आए।

"अब हमें इजाजत दीजिए मुखिया जी..!"

"ऐसे कैसे इजाजत दे दें..? इतना बड़ा काम कराए हो,तो खातिरदारी का मौका तो देओ..!"मुखिया ने एक दिन और रुकने के लिए मजबूर कर दिया।

"नील अब हमें चलना चाहिए..!"दूसरे दिन सुधांशु ने कहा।

"नहीं फिर से शाम होने वाली है।मैं इस समय चलने के लिए तैयार नहीं..!'श्रुति डरते हुए बोली।

"अरे अब सब ठीक हो गया है श्रुति। और देख अब हमारे सबके हाथ में अभिमंत्रित धागा भी है। और देख गाड़ी को.. बजरंग बली की छोटी सी मूर्ति,वो गोमती भाभी ने दी है।अब जब बजरंगी साथ है तो फिर डर कैसा..?"

नील की बात सुनकर श्रुति मुस्कुरा उठी।

"चलो तुम नहीं मानोगे,पर क्या करूँ उस दिन का हादसा भुलाए नहीं भूलता..!"

"नील पहले ही पीछे बैठ जा। कहीं फिर से जंगल में गाड़ी रोकनी पड़ी तो..?"

"सुधांशु..!"श्रुति चिल्लाई।

"मजाक कर रहा हूँ बाबा,बैठो अंदर..!"

"अभी प्रोजेक्ट का क्या सुधांशु..?"नील ने पूछा।

"छोड़ याररर इस बात को,पता नहीं और क्या क्या राज छुपे हों इस जंगल में..?हम अपने शहर में भले, क्यों श्रुति..?"

"हाँ सच्ची.. मैं तो अब कभी नहीं आऊँगी..!"गाँव वालों से विदा लेकर तीनों अपनी मंजिल की ओर निकल पड़े।

©® अनुराधा चौहान'सुधी'✍️ सर्वाधिकार सुरक्षित

चित्र गूगल से साभार