Sunday, November 24, 2019

सपनों की दुनिया


आज बड़ा सुहाना मौसम था। शीतल हवाओं के झोंके, पेड़ों के पत्तों के संग संगीत सुना रहे थे।
मैं भी सुबह से अपनी खूबसूरती पर इठला रहा था।तभी हवा के साथ एक खुशबू का झोंका आया।
उफ़ इतनी खूबसूरत लड़की,वो मुझे देख मुस्कराई, मैं अपनी जवानी पर इठलाया। वह मेरे करीब आकर खड़ी हो गई।
मैं उसे देख कर मंत्रमुग्ध हो रहा था।उसने बड़े प्यार से मुझे छुआ,मैं अपनी खूबसूरती पर इतराने लगा।तभी अचानक मुझे एक झटका लगा,मेरी चीख निकल गई ।मैंने डर के मारे अपनी आँखें बंद कर ली।
थोड़ी देर बाद आँख खोली तो देखा वह बड़े प्यार से अपने गालों से मुझे लगाए हुई थी। मैं अपनी किस्मत पर घमंड करने लगा।कभी हाथों से सहलाती,कभी प्यार से चूमती।
कभी सीने से लगाए, तो कभी सामने सजाए पूरा दिन मेरे इर्द-गिर्द घूमती रही।साँझ ढ़ली तो बड़े प्यार से अपने पास लेकर सो गई।
मैंने भी बड़े खुश होकर अपनी आँखें मूँद ली। सुबह किसी ने गिराने से मुझे तेज पीड़ा हुई,आँख खुली तो देखा आसपास गंदगी,कचरे का ढेर था।
वो सामने खिड़की में मुस्काते हुए नया पुष्प लिए खड़ी थी।मैं कराह उठा, मैं कहाँ हूँ ? कल-तक इतना प्यार, आज ऐसा तिरस्कार।
तभी पास पड़े मेरे जैसे दूसरे साथी ने बोला, किन सपनों में खोए हो भाई,यही तो हमारी किस्मत है।यहाँ जो काम का है, उसे ही पूछते हैं लोग।
सच्चाई में जीना सीखो, सपनों की दुनिया से बाहर निकलो। हमारा काम है खिलना, खुशियाँ बिखेरना,और फिर मिट्टी में मिल जाना। वास्तविकता की जिंदगी जीना सीखो, अगर सपनों में जियोगे तो दुःख के सिवा कुछ नहीं मिलेगा।
मैं भी समझ गया था अपने वजूद को, मैं ज़िंदगी से कुछ ज्यादा ही आस लगाए बैठा था। तभी किसी फूल को अपने पैरो तले रौंदकर,यह किस्सा ही खतम कर दिया।
***अनुराधा चौहान*** स्वरचित ✍️
चित्र गूगल से साभार

Saturday, November 9, 2019

मासूम स्वप्न


कीर्ति बहुत खुश थी। खुश क्यों न हो,आज बड़े दिनों बाद उसे उसकी मनमर्जी से घूमने की इजाजत जो मिली थी।
कीर्ति,सोनल, रिया,रूपा सब झील के किनारे बैठे हुए थे।
आज मैं बहुत खुश हूँ कीर्ति बोली।क्यों आज क्या खास है? अरे माँ ने मुझे पिकनिक मनाने के लिए भेज दिया यही तो खास बात है।
वरना हर साल की तरह इस बार भी मैं अकेली घर में रहती और तुम सब मजे करते।
हाँ यह बात तो सही है, आठवीं कक्षा में आकर तुझे पिकनिक मनाने का अवसर मिला।
अरे लड़कियों वहीं बैठी रहोगी क्या?आओ बोट भर जाएगी।आए दीदी सारी लड़कियाँ बोट की तरफ दौड़ पड़ती है।
तभी कीर्ति को धक्का लगता है, वो गिर जाती है। उसके सिर पर कोई कसकर हाथ मारता है।कहाँ ध्यान है, तेरा पूरा दूध गिरा दिया।
ओह यह स्वप्न था। मैं तो घर में ही हूँ.. पिकनिक का आनंद तो मेरी सहेलियाँ उठा रही है। और मैं पिकनिक की कल्पना में खुश थी।
कीर्ति!! क्या हुआ?कहाँ ध्यान रहता है तेरा.. कौनसी दुनिया में खोई रहती है यह लड़की।
कुछ नहीं माँ कुछ नहीं हुआ.....बस थोड़ी देर बाद बुलाया होता तो मैं झील की सैर भी कर आती।
कीर्ति उदास चेहरा लेकर उठकर कमरे में चली गई।
अब इसे क्या हुआ? कीर्ति की उदासी समझने की जगह सुमित्रा बड़बड़ाते हुए फैला हुआ दूध साफ करने लगी।
*अनुराधा चौहान*

चित्र गूगल से साभार