Sunday, November 25, 2018

राधा का क्या हुआ


यह पच्चीस साल पुरानी बात है। जब मेरी मुलाकात राधा के परिवार से हुई थी।वो मेरे घर के पीछे वाले घर में रहती थी। राधा की माँ मुन्नी बहुत ही भोली या कम दिमाग कह लीजिए कि उसे अपने मां के गांव का और ससुराल किस गांव में है वो तक नहीं पता बस इतना पता ट्रेन से जाते हैं फिर बस से फिर पैदल।अपने पति और तीन बेटियों के साथ रहती थी एक बेटा था वो भी न जाने कहां खो गया।
अक्सर मेरे कमरे के दरवाजे पर बैठ जाती थी।आदमी
बहुत दुष्ट था।बहुत मारता था मां बेटियों को बुरी तरह चिल्लाती मां बेटी कलेजा मुंह को आता था।पर मोहल्ले में सब अच्छे थे।दौड़ कर उसे रोक लेते थे मारने से,पर वो कहां मानता जब मौका मिलता शूरू हो जाता था।
आदमी की मार खा कर मुन्नी कुछ देर तो रो लेती फिर सब भूल कर आकर बैठ जाती मैं पूछती थी कभी-कभी। तुम कैसे सहती हो यह सब!जोर से हंस पड़ती अरे दीदी जी कैसी बात करे हो,पति है मारता है तो बुराई कैसी!!
तुम्हे बुरा नहीं लगता! नाही पर बिटिअन का बुरा लगता है उसके कम दिमाग का असर बच्चों में भी था। राधा को कोई भी पागल बना देता था। उससे थोड़ी सी तेज दूसरे नंबर की सुनीता थी। वो जल्दी से किसी की बातों में नहीं आती पर अच्छा बुरा कुछ नहीं समझती थी।तीसरी सीता वो तेज थी।जो पिता की अनुपस्थिति में इन लोगों का ध्यान रखती थी।एक दिन बंशी बीमार पड़ जाता है।तो सबको लेकर अपने गांव वापस चला जाता है।
एक दिन टीबी से मर जाता है। परिवार वाले मुन्नी से घर के कागजों पर अंगुठा लगवाकर कर सब अपने नाम कर लेते हैं।और अत्याचार का दौर शुरू हो जाता है।दिन भर काम और मार यही जिंदगी बन गई थी।
राधा चौदह वर्ष की थी। सुनीता बारह और छोटी सीता दस वर्ष की थी पर वो तेज थी।एक दिन सब भाग कर वापस मुंबई आने का निर्णय लेते हैं।पर पैसों की समस्या आ जाती है।तो छोटी अपने चाचा के पैसे निकाल कर छुपा लेती है।

सुबह हाहाकार मच जाता है बहुत मारा जाता है सबको राधा का पैर टूट जाता है।सब बहुत चोटिल हो जाते हैं और अपनी बदनसीबी पर बहुत रोते हैं।
फिर एक दिन सब भाग कर वापस आ जाते हैं राधा वहीं छूट जाती है सीता को इतनी समझ थी कि कौनसी ट्रेन पकड़नी है।बुरा वक्त आता है तो जल्दी जाता नहीं। मकानमालिक ने घर किसी और को भाड़े पर नहीं दिया था तो वापस दे दिया दया करके।पर मुन्नी को कैंसर हो गया। मोहल्ले वाले सब बारी बारी इलाज करा रहे पर लास्ट स्टेज पर था। तो एक महीने में वो भी चल बसी।
अब उसके घरवाले फिर आ गए। दोनों बेटियों को वापस लेने के लिए। दोनों को जबरन ले जाने लगे। लड़कियां भाग कर मेरे कमरे में छिप गई।उनकी रोना देखा नहीं गया। हम सब ने मिलकर निर्णय लिया। दोनों यहीं रहेंगी हमारी जिम्मेदारी पर।उस दिन से दोनों हमारे घर का हिस्सा बन गई।समय बीतता गया दोनों बड़ी हो गई।
उनके योग्य वर ढूंढ कर दोनों की शादियां कर दी। सुनीता के एक बेटी और सीता के एक बेटी और बेटा दोनों बहुत खुश हैं त्यौहार पर आती हैं।घर की बेटियों की तरह खुशियां मना कर चली जाती हैं। हमारे आस-पास कुछ ऐसा घटित हो जाता है जो लम्बे समय तक मन से जाता नहीं।
पर एक सवाल हमेशा मन में रहता है।राधा का क्या हुआ होगा!!वो जिंदा है तो किस हाल में और कहां है वो भी भागी थी पर पैर टूटा होने के कारण रास्ते में कहीं रह गई थी। कोई रिश्तेदार भी पास नहीं था जिससे उसका कुछ पता चलता।
खैर बात को सोलह साल हो चुके हैं।दो का जीवन संवर गया, दोनों बहुत खुश हैं यही बहुत है।वरना इनका भी बुरा हाल होता।  अनुराधा चौहान
सच्ची घटना पर आधारित जगह और पात्रों के नाम काल्पनिक है
(चित्र गूगल से साभार ✍)

Saturday, November 24, 2018

मैया कैसा तेरा कन्हाई


पनियां भरन मैं पनघट पे जाऊं
देखूं तुझे तो सुध बिसराऊं
करके शरारत मटकी फोड़ी
माखन की करते हो चोरी
फिर भी तेरी सब लेते बलाएं
गिरधर तू कैसी लीला रचाए
बाजे जब भी तेरी मधुर मुरलिया
नाचें सारी गोकुल नगरिया
काहे करते कान्हा तुम जोरा जोरी
पतली कलाई मोरी क्यों तूने मोड़ी
मैया यशोदा कैसा तेरा कन्हाई
मार कंकरिया मेरी मटकी गिराई
पनघट पर मेरा रस्ता रोके
पानी न भरने दे मटकी छीने
मुरलिया बजाए यमुना तीरे
तन-मन भिगोए अपने ही रंग में
बड़ा ही चितचोर है श्याम सलोना
गोपियों का चैन है छीना
जादू भरी उसकी मुरली है
छवि अलौकिक मन में बसी है
***अनुराधा चौहान***
(चित्र गूगल से साभार)
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Thursday, November 22, 2018

नन्ही गौरैया


यह नन्हीं सी चिड़िया
नन्हा सा इसका बसेरा
आज यहां कल वहां
कब उठ जाए इसका डेरा
काट दिया उस पीपल को
जिस वृक्ष पर कभी यह रहती थी
टूटा घौंसला बिखरे सपने
चोटिल होकर रोती थी
हाथ बढ़ाया इसको छूने
झट हाथ पर मेरे बैठ गई
जैसे पूंछ रही हो मुझसे
यह किस गलती की सज़ा मिली
कल तक चहकती बच्चों सँग
उन सब से यह बिछड़ गई
अनकहा सा इक रिश्ता
मेरा इसके संग बन गया
उसकी आँखों का दर्द
मेरी आँखों से बह निकला
यूं ही कटते रहे वृक्ष तो
वजूद इनका मिट जाएगा
सिमट रहा अस्तित्व इनका
कल नाम भी इनका मिट जाएगा
क्यों मानव देता है सज़ा
इन निर्दोष पक्षियों को
छीनकर इनसे इनका बसेरा
क्या चैन मिलेगा तुमको भी
जब वृक्ष ही न बचेंगे धरती पर
तो जीवन कैसे संभव है
***अनुराधा चौहान***
(चित्र गूगल से साभार)

संघर्ष कठिन है करने

बनता नहीं घरौंदा
पानी के बुलबुलों पर
ख्वाबों को करने पूरा
संघर्ष कठिन है करने

नाकामियों से डर कर
संघर्ष से जो हार मानें
जीवन सफल न होगा
किस्मत भरोसे रह कर

मायूस होकर यूं ही
कभी जिंदगी कटे न
जीने मिला है जीवन
जीवन सफल किए जा

कब तक यह जिंदगी है
इसका न कोई भरोसा
कामयाबी कदम चूमे
संघर्ष तुम ऐसा करलो

कितना कठिन संघर्ष है
देश के वीर जवानों का
सुरक्षा हमारी करने 
तूफानों से हरदम लड़ते

उनसे सबक लेकर
भिड़ जाओ हर मुश्किल से
मुमकिन नहीं सभी को
महलों का सुख मिलें ही
***अनुराधा चौहान***

Wednesday, November 21, 2018

क्रौध की तपन


क्रौध की तपन से
न जलाओ तन और मन
जीवन सफल बनाओं
करके कुछ अच्छे कर्म
शीतल रखो वाणी
शीतल रखो मन
भरलो अपने जीवन में
तुम प्रेम के रंग
कौध की तपन से
जलते जीवन के रंग
दूर होते हैं रिश्ते
नीरस होता है मन
काटने को दौड़ता
केवल अकेलापन
क्रौध की तपन से
यूं न नष्ट करो जिंदगी
अच्छे कर्म के बदले
मिलती है यह जिंदगी
क्यों इस तपन में
खोते हो वजूद अपना
रह जाओगे अकेले
खुशियां बन जाएंगी सपना
करो प्रीत की बारिश
तपन मिटा दो मन की
गले लगा लो सबको
यही पूंजी है जीवन की
***अनुराधा चौहान***

Monday, November 19, 2018

स्मृतियां हमारी साथी

कुछ खट्टी
कुछ मीठी
स्मृतियां होती हैं
तन्हाइयों की साथी
कुछ स्मृतियां
मन को बहलातीं है
तो कुछ मन में
टीस जगाती हैं
अच्छी हों या बुरी हों
यह हमेशा
साथ निभाती हैं
कुछ स्मृतियां
बालपन की
मन को सुकून
दे जाती हैं
जो जिए थे
पल बचपन में
वह खुशियां
दे जाती हैं
कुछ स्मृतियां
मां के घर की
मन में हलचल
मचाती हैं
जिए थे पल जो
उस आंगन में
फिर से जीने की
चाह जगाती हैं
कुछ स्मृतियां
सखियों की
जो अब सब
बिछड़ गई
शादी करके सब
अपने अपने
नए जीवन में
जाकर रम गई
स्मृतियां हमारी
तन्हाइयों की साथी
अक्सर मन को
बहलाती है
कुछ खुशियां देती हैं
तो कुछ गम दे जाती हैं
***अनुराधा चौहान***

Friday, November 16, 2018

संयम

संयम टूटने लगता है
जब लोग झूठ को
लग जाते हैं सच
साबित करने में
संयम तब भी टूटने लगता है
जब आप ग़लत न हो
फिर भी ग़लत
ठहराए जाने लगते हो
संयम तब और टूट जाता है
जब आप किसी पर
अपने से ज्यादा
यकीन करते हो
वो यकीं तोड़ जाए
संयम तब भी खोने लगता है
जब अपनों से
मिलता धोखा है
तब टूटता है दिल
बहुत मायूस होता है
संयम बिखरने लगता है
जब कोई अनायास
आपको अकेले छोड़
किसी और का हो जाता है
संयम रखना पड़ता है
जब दिल व्यथित हो
अपनों की खुशियों के लिए
जबरन मुस्कुराना पड़े
***अनुराधा चौहान***

Tuesday, November 13, 2018

मिथ्या यह जीवन

मिथ्या यह जीवन
मिथ्या इसकी माया
जिसको अब तक
कोई समझ नहीं पाया
मिथ्या है यह काया
जो सबके मन भाया
मौत के सच को
कोई समझ नहीं पाया
व्यर्थ के झगड़ों में
क्यों जीवन को खोते
निकल गया समय तो
फिर रह जाओगे रोते
समय रहते करलो
कुछ कर्म तुम ऐसे
मिट जाए भले यह तन
फिर भी रहो जीते
जीवन की याद रखो
इस कड़वी सच्चाई को
बनी है यह काया 
पल में मिट जाने को
क्यों तेरे मेरे में
समय को हम खोते हैं
जब मिटने आता यह तन
फिर हम रोतें हैं
मिथ्या यह जीवन
स्वीकार करलो यह सच्चाई
करो अपने साथ
तुम औरों की भी भलाई
***अनुराधा चौहान***

Saturday, November 10, 2018

पर आवाज़ नहीं होती


आवाज़ ही पहचान है
हर भाव की हर घाव की
आवाज़ से पहचान है
हर किसी जज़्बात की
सुनाई दे जाती है हर आवाज़
जब कुछ टूट कर बिखरे
नहीं सुनाई देती है तो
जब दिल टूट कर बिखरे
तब दिल की आवाज़
दिल ही सुनता है
अपने घावों पर
खुद मरहम रखता है
कुछ अनकहे से दर्द
जब दे जातें हैं अपने
रोता है दिल जार जार
पर आवाज़ नहीं होती
बिखर जाते हैं मन के जज़्बात
पर आवाज़ नहीं होती
मृगमरीचका से रिश्तों के
पीछे हम जीवनभर भागते हैं
वोही छलावा निकल
दिल तोड़ जातें हैं
टूटा हो दिल भले मगर
पर आवाज़ नहीं होती
इशारों में होती है अलगाव की बातें
पर आवाज़ नहीं होती
***अनुराधा चौहान***

Thursday, November 8, 2018

गोवर्धनधारी तेरी महिमा बड़ी निराली

हे मुरलीधर हे गिरधारी
तेरी महिमा बड़ी निराली
गोकुल में लीला रचाई
रोक अहंकारी इंद्र की पूजा 
गोवर्धन की पूजा करवाई
देख कुपित हुए इंद्र अतिभारी
बरसा की फिर झड़ी लगा दी
लगी डूबने गोकुल नगरी
बहने लगे सबके घर द्वार
त्राहि-त्राहि मची गोकुल में
व्यथित हुए सब नर-नारी
देख इंद्र का कोप कृष्ण ने
फिर से एक लीला रचाई
उठा लिया छोटी उंगली पर
गोवर्धन पर्वत विशाल
आन बसा पर्वत के नीचे
पूरा गोकुल धाम
टूटा अंहकार इंद्र का
कर ली अपनी भूल स्वीकार
फैली हर और खुशी की लहर 
नाच उठी गोकुल नगरी
हे गोवर्धनधारी तेरी महिमा बड़ी निराली
***अनुराधा चौहान***