Tuesday, February 16, 2021

आशीर्वाद


 "नीरा बेटा आज का न्यूज पेपर कहाँ हैं..?"निर्भय सिंह की आवाज सुनकर नीरा चाय के साथ अखबार लेकर ससुर जी के कमरे की और दौड़ी।"यह लीजिए पापा जी आपकी चाय और आज का अखबार..!"

"हम्म रख दो ललित निकल गया..?"

"जी पापा जी..!" नीरा ने जवाब दिया।

"कुछ कहकर गया कब आएगा..?"

"नहीं कुछ नहीं..!" नीरा सिर झुकाए बोली।

"ठीक है जाने दे उसे, तुम्हें उसके आगे झुकने और उससे डरने की कोई जरूरत नहीं है..!"

"पर पापा जी..?"

"पर वर कुछ नहीं जाओ और कॉलेज जाने की तैयारी करो, तुम्हें हर हाल में पढ़ाई पूरी करनी है समझी..?"निर्भय नीरा को आदेश देकर अखबार लेकर पढ़ने लगे।

"जी पापा जी..!"

निर्भय सिंह शहडोल जिले के समीप एक छोटे-से कस्बे के हाईस्कूल में प्रिंसिपल थे।जीवनभर जो भी कमाया,बेटे का जीवन संवारने में लगा दिया। पत्नी कांता दस वर्ष पहले ही साथ परलोक सिधार गईं थीं।

नीरा उनके मित्र बलदेव सिंह की बड़ी बेटी थी। ललित से उसकी शादी ललित की ही गलती का नतीजा था।

बलदेव का घर दुल्हन की तरह सजा हुआ था।आज बेटी की बारात जो आनी थी।

"आओ निर्भय सिंह..!" बलदेव ने आगे बढ़कर निर्भय का स्वागत किया।

"ललित... बेटा यह तुम्हारे बलदेव अंकल, प्रणाम करो इन्हें..!" निर्भय सिंह ने आदेश दिया।

ललित ने झुककर पैर छुए तो बलदेव ललित को आशीर्वाद देते हुए कहा।"अरे बस बस खुश रहो.. कैसे हो? क्या कर रहे हो आजकल..? बहुत छोटे-से थे ,जब तुम्हें देखा था। 

"कल ही पढ़ाई पूरी करके लंदन से आया है।अब यही रहकर, कुछ दिन नौकरी फिर अपना कारोबार शुरू करने की सोच रहा है.."निर्भर बोले।

निर्भय भी अपने मित्र की शादी के इंतजाम देखने में मदद करने लगे। ललित को अनजान लोगों के बीच बड़ा अजीब लग रहा था।

शाम को तय समय पर शादी की रस्में शुरू हो गई थीं। सभी खुशी-खुशी बारातियों के स्वागत में लगे थे।तभी एक गलतफहमी पैदा हो गई।

दोस्तों के कहने में आकर दरवाज़े की रस्म में लड़के ने मजाक में कार की डिमांड कर दी। बलदेव सिंह यह सुनकर चौंक गए।

"यह कैसी शर्त है समधी जी..? हमारे बीच ऐसी कोई बात नहीं हुई थी। लेन-देन की सारी बातें तय करने के बाद यह अचानक..?"बलदेव आगे कुछ कह पाते ललित बीच में बोल पड़ा।

"अंकल जी हम लोग इन दहेज लोभियों की माँग आसानी से मान लेते हैं इसलिए ऐसे लोगों का लालच बढ़ता ही जाता है"आप इनके हाथ जोड़ने की जगह पुलिस में शिकायत कीजिए..!"

"तुम शांत रहो ललित.. निर्भय अपने बेटे को शांत करो.."समधी जी आइए हम बैठकर बात करते हैं। बलदेव हाथ जोड़ते हुए बोले।

"ललित चलो यहाँ से.."निर्भय सिंह ललित को वहाँ से ले जाने लगे।

"पर पापा यह तो गलत हो रहा है।यह देखकर भी आप लोग मुझे क्यों रोक रहे हो..? ललित हाथ छुड़ाते हुए बोला।

कुछ ग़लत नहीं है ललित, अपने यहाँ इस तरह के मौके पर नेग के लिए छोटी-मोटी ज़िद, हँसी-मजाक शादियों में होते रहते हैं।यह भी कुछ ऐसा ही है।तुम काफी समय से बाहर रहे हो इसलिए तुम्हारे लिए सब नया है..निर्भय बोले।

पर ललित का हस्तक्षेप करना लड़के वालों को पसंद नहीं आया।

"बलदेव सिंह जी अपने दरवाजे पर एक छोटे से मजाक के लिए इस तरह का अपमान..?यह लड़का कौन है जो हमें पुलिस की धमकी दे रहा है..?यह तय करेगा हम शादी कैसे करें..?"लड़के वाले नाराज होने लगे।

बात पर बात धीरे-धीरे वाद-विवाद में बदलने से पहले ही बड़े-बुजुर्गों ने बात संभालने की कोशिश शुरू की तभी ललित फिर बोल उठा।

"अंकल माफी क्यों माँगनी..?अगर यह एक मजाक था तो मुझे भी गलतफहमी हो गई थी। इतनी-सी बात का इश्यू बनाने की क्या जरूरत..?अगर इतना मन साफ है तो करलें बिना दहेज शादी..!!" ललित बोला।

"बिना दहेज क्या,अब अगर दरवाजे पर गाड़ी भी खड़ी करदो तो भी यह शादी नहीं होगी..!!बारात वापस ले चलो..!"बलदेव की लाख कोशिशों के बावजूद बारात वापस लौट गई।

"निर्भय सिंह तेरे बेटे के विदेशी संस्कार ने मेरी बेटियों की ज़िंदगी बर्बाद कर दी। बड़ी बहन की बारात लौट गई तो छोटी बेटियों से कौन शादी करेगा..?"बलदेव सिंह पकड़ कर बैठ गए।

"बलदेव मैं मानता हूँ कि ललित ने बहुत बड़ी गलती की है।अब गलती हुई है तो उसकी भरपाई भी वही करेगा..!"

"मैं..? कैसे..? ललित ने पूछा।

"इसी मंडप में नीरा से शादी करके...!" निर्भय ने अपना फैसला सुना दिया।

यह सुनकर सभी निर्भय की बात का समर्थन करने लगे। ललित की मर्जी के खिलाफ उसका विवाह नीरा के साथ सम्पन्न हो गया।

निर्भय जानते थे कि सर्वगुण संपन्न नीरा की पढ़ाई उसकी वैवाहिक जीवन की सबसे बड़ी बाधा है। ललित बारहवीं पास नीरा को कभी मन से नहीं अपनाएगा इसलिए उन्होंने शादी होते ही नीरा की पढ़ाई शुरू करवा दी।

समय पंख लगाकर उड़ता रहा।नीरा भी धीरे-धीरे ललित के मन में अपने लिए जगह बनाने में कामयाब हो गई।

"पापा जी मेरी एमबीए की डिग्री,मेरा आगे पढ़ने का सपना सिर्फ और सिर्फ आपके आशीर्वाद से ही संभव हो पाया है..!"निर्भय को डिग्री सौंपते हुए नीरा ने उनके पैर छुए।

निर्भय की प्रेरणा से नीरा ने बीकॉम करके एमबीए की डिग्री हासिल कर ली और शहडोल में ही एक अच्छी कम्पनी में नौकरी करने लगी।

"पापा आपके सटीक निर्णयों के कारण मेरा भविष्य मजबूत हुआ।मुझे नीरा जैसी समझदार और संस्कारी जीवनसाथी मिली। आपकी वजह से आज नीरा का भी सपना पूरा हुआ।सच कहते हैं सब कि बच्चों के सिर पर बड़े-बुजुर्गों का आशीर्वाद होना बहुत जरूरी है।..!"ललित ने कहा

"तुम दोनों को खुश देखकर मैं भी बहुत खुश हूँ। ललित आज भी समाज में बहू बेटी को लेकर हर किसी की सोच अलग है।कुछ आज भी उन्हें दबाकर रखना चाहते हैं तो कुछ उनकी तरक्की में बाधक बन जाते हैं।और कुछ लोग ऐसे भी हैं जो मेरी तरह उन्हें आगे बढ़ाना चाहते हैं इसलिए तुम दोनों भी एक बात मेरी हमेशा याद रखना...

"क्या पापा..?" ललित ने बीच में ही पूछा।

"कभी भी किसी भी घटना की पूरी वजह जाने बिना किसी की भी ज़िंदगी में हस्तक्षेप मत करना।हम भाग्यशाली हैं जो नीरा हमारे घर आई।यह कभी सोचा तुमने..? अगर उस समय तुम भी शादीशुदा होते तो सोचो बलदेव और नीरा उस परिस्थिति का कैसे सामना करते..?"निर्भय बोले।

"गलती तो हुई थी पापा..पर शायद ईश्वर भी यही चाहते थे कि मेरा और नीरा का रिश्ता जुड़े..!"ललित ने कहा।

"हम्म शायद..उस समय ना तुमने मौके की नज़ाकत को नहीं समझा और ना ही लड़के वालों ने बलदेव की विवशता और तुम्हारी नासमझी को, सबके दबाव डालने पर, हाथ जोड़ने पर यह शादी हो भी जाती तो नीरा को उस घर में कभी सम्मान नहीं मिलता..! निर्भय नीरा को देखते हुए बोले।

"आपकी बात सही है पापा..!"नीरा चाय का कप पकड़ाते हुए बोली।

ललित अब कभी आवेश में आकर ऐसा कुछ नहीं करना। ज़िंदगी में सदा नारी का सम्मान करना। तुम्हारी हर गलती पर हमेशा मैं बात संभाल सकूँ यह संभव नहीं..!"कहते हुए हँस पड़े निर्भय। उन्हें हँसता देख नीरा भी हँस पड़ी।

©® अनुराधा चौहान स्वरचित ✍️ 

चित्र गूगल से साभार