Sunday, November 24, 2019

सपनों की दुनिया


आज बड़ा सुहाना मौसम था। शीतल हवाओं के झोंके, पेड़ों के पत्तों के संग संगीत सुना रहे थे।
मैं भी सुबह से अपनी खूबसूरती पर इठला रहा था।तभी हवा के साथ एक खुशबू का झोंका आया।
उफ़ इतनी खूबसूरत लड़की,वो मुझे देख मुस्कराई, मैं अपनी जवानी पर इठलाया। वह मेरे करीब आकर खड़ी हो गई।
मैं उसे देख कर मंत्रमुग्ध हो रहा था।उसने बड़े प्यार से मुझे छुआ,मैं अपनी खूबसूरती पर इतराने लगा।तभी अचानक मुझे एक झटका लगा,मेरी चीख निकल गई ।मैंने डर के मारे अपनी आँखें बंद कर ली।
थोड़ी देर बाद आँख खोली तो देखा वह बड़े प्यार से अपने गालों से मुझे लगाए हुई थी। मैं अपनी किस्मत पर घमंड करने लगा।कभी हाथों से सहलाती,कभी प्यार से चूमती।
कभी सीने से लगाए, तो कभी सामने सजाए पूरा दिन मेरे इर्द-गिर्द घूमती रही।साँझ ढ़ली तो बड़े प्यार से अपने पास लेकर सो गई।
मैंने भी बड़े खुश होकर अपनी आँखें मूँद ली। सुबह किसी ने गिराने से मुझे तेज पीड़ा हुई,आँख खुली तो देखा आसपास गंदगी,कचरे का ढेर था।
वो सामने खिड़की में मुस्काते हुए नया पुष्प लिए खड़ी थी।मैं कराह उठा, मैं कहाँ हूँ ? कल-तक इतना प्यार, आज ऐसा तिरस्कार।
तभी पास पड़े मेरे जैसे दूसरे साथी ने बोला, किन सपनों में खोए हो भाई,यही तो हमारी किस्मत है।यहाँ जो काम का है, उसे ही पूछते हैं लोग।
सच्चाई में जीना सीखो, सपनों की दुनिया से बाहर निकलो। हमारा काम है खिलना, खुशियाँ बिखेरना,और फिर मिट्टी में मिल जाना। वास्तविकता की जिंदगी जीना सीखो, अगर सपनों में जियोगे तो दुःख के सिवा कुछ नहीं मिलेगा।
मैं भी समझ गया था अपने वजूद को, मैं ज़िंदगी से कुछ ज्यादा ही आस लगाए बैठा था। तभी किसी फूल को अपने पैरो तले रौंदकर,यह किस्सा ही खतम कर दिया।
***अनुराधा चौहान*** स्वरचित ✍️
चित्र गूगल से साभार

Saturday, November 9, 2019

मासूम स्वप्न


कीर्ति बहुत खुश थी। खुश क्यों न हो,आज बड़े दिनों बाद उसे उसकी मनमर्जी से घूमने की इजाजत जो मिली थी।
कीर्ति,सोनल, रिया,रूपा सब झील के किनारे बैठे हुए थे।
आज मैं बहुत खुश हूँ कीर्ति बोली।क्यों आज क्या खास है? अरे माँ ने मुझे पिकनिक मनाने के लिए भेज दिया यही तो खास बात है।
वरना हर साल की तरह इस बार भी मैं अकेली घर में रहती और तुम सब मजे करते।
हाँ यह बात तो सही है, आठवीं कक्षा में आकर तुझे पिकनिक मनाने का अवसर मिला।
अरे लड़कियों वहीं बैठी रहोगी क्या?आओ बोट भर जाएगी।आए दीदी सारी लड़कियाँ बोट की तरफ दौड़ पड़ती है।
तभी कीर्ति को धक्का लगता है, वो गिर जाती है। उसके सिर पर कोई कसकर हाथ मारता है।कहाँ ध्यान है, तेरा पूरा दूध गिरा दिया।
ओह यह स्वप्न था। मैं तो घर में ही हूँ.. पिकनिक का आनंद तो मेरी सहेलियाँ उठा रही है। और मैं पिकनिक की कल्पना में खुश थी।
कीर्ति!! क्या हुआ?कहाँ ध्यान रहता है तेरा.. कौनसी दुनिया में खोई रहती है यह लड़की।
कुछ नहीं माँ कुछ नहीं हुआ.....बस थोड़ी देर बाद बुलाया होता तो मैं झील की सैर भी कर आती।
कीर्ति उदास चेहरा लेकर उठकर कमरे में चली गई।
अब इसे क्या हुआ? कीर्ति की उदासी समझने की जगह सुमित्रा बड़बड़ाते हुए फैला हुआ दूध साफ करने लगी।
*अनुराधा चौहान*

चित्र गूगल से साभार

Monday, September 30, 2019

माँ का दिव्य स्वरूप


मेरी माँ का देखो दिव्य स्वरूप
अद्भुत,अनुपम,अलौकिक रूप
माँ दुर्गा हैं कष्ट निवारणी
निराकार है माँ की ज्योति
नेत्र माँ के अमृत रस बरसाते
असुरों पर अंगार गिराते
माँ शक्ति है बड़ी ही अलौकिक
ऋषि, मुनियों को यह वर देती
अन्नपूर्णा यह जग की माता
दुखियों की यह भाग्य विधाता
अष्टभुजाएं शस्त्र से शोभित
माँ दुर्गा हैं सिंह पर आसित
नौ-नौ अद्भुत रूप हैं माँ के
दर्शन कर सब पाप मिट जाते
असुरों पर है रूप प्रलयंकर
भक्तो के हर लेती संकट
शुंभ,निशुंभ को मार गिराया
धरती से हरो अब पाप की छाया
पाप बढ़े धरा पे बहुतेरे
खोल दे माँ बंद त्रिनेत्र तेरे
मिटे अधर्म का घनघोर अंधेरा
खुशियों भरा हो नया सबेरा
मेरी माँ का देखो दिव्य स्वरूप
अद्भुत,अनुपम,अलौकिक रूप
***अनुराधा चौहान***
चित्र गूगल से साभार

Friday, September 13, 2019

हिन्दी


सदियों पुरानी बात है।माँ भारती अपने सभी बेटों(धर्म) और अपनी समस्त बेटियों (भाषाओं) के साथ अपने विशाल घर(सम्पूर्ण भारत) में सुख-शांति से रहती थीं।
माँ भारती नख से शिखर तक सोने-चाँदी, हीरे-जवाहरात से सुसज्जित थी।धन्य-धान की कमी नहीं थी,स्वर्ग से उतरी गंगा, यमुना, कृष्णा, कावेरी, गोदावरी आदि नदियों के जल से माँ भारती के बच्चों की जीवन अमृत मिला करता था।
एक दिन इंग्लिश घायल अवस्था में लड़खड़ाते कदमों से माँ भारती से टकरा गई।उसकी दुर्दशा देखकर माँ भारती को दया आ गई उन्होंने उसे अपने आँगन में जगह दे दी।हर किसी का स्वागत करना तो हमारे संस्कार थे।
अंग्रेजी को अपनी दशा सुधारने का मौका मिला तो उसने माँ भारती के प्यार का ग़लत इस्तेमाल किया।अंग्रेजी ने विष बोना शुरू कर दिया। माँ भारती के पुत्रों को आपस में लड़वाकर उनसे उनका साम्राज्य छीन लिया और अपना राज स्थापित कर लिया।
माँ भारती को गुलामी की बेड़ियों में कस दिया गया। अपने पुत्रों के रक्त से रंगी माँ भारती चित्कार उठी। भारत माँ की पीड़ा को महसूस कर सभी बेटे(धर्म) बेटियाँ(भाषाओं) एकजुट होकर की रक्षा करने का संकल्प लेकर मैदान में कूद पड़े।
फिर क्या था आजादी पाने  के लिए जगह-जगह युद्ध छिड़ गए।सदियाँ बीतने लगी पर माँ भारती की संतानें अपने अधिकारों के लिए लड़ती रही।
एक दिन खुशियों भरे दिन लौट आए माँ भारती फिर से मुस्कुरा उठी और हर तरफ खुशियाँ लहलहा उठी पर जाते-जाते अंग्रेजी अपने विषबेल (संस्कार) पीछे छोड़ गई।आज भी आजाद भारत अंग्रेजी की विषबेल में उलझा संस्कृति का बलि चढ़ा रहा है और हिन्दी की उपेक्षा करने में अपनी शान समझता है।
क्या मैं सही नहीं कह रही? हमारे ही देश में हिन्दी में बोलने वाले को उतना सम्मान नहीं जितना इंग्लिश भाषा के व्यक्ति को मिलता है।
हम सभी एक दिन हिन्दी को महिमा को याद करते हैं कि हमें गर्व है हिन्दी भाषी हैं और हिन्दी की महिमा गाते-गाते बीच में अंग्रेजी बोल ही देते हैं।
क्यों..? क्योंकि इंग्लिश में शान महसूस होती है इसलिए तो आजकल बच्चे को भी जन्म से ही इंग्लिश बोलने की आदत डाली जाती हैं।माना इंग्लिश जरूरत बन गई है पर जहाँ जरूरत है वहीं इस्तेमाल करना चाहिए।
हम घर, दोस्तों के बीच साधारण बोलचाल में तो हिन्दी को प्राथमिकता दे ही सकते हैं?हिन्दी हमारी मातृभाषा है और इसका सम्मान करना हमारा कर्तव्य है।
तो फिर शरमाइए मत आज़ से अभी से शान से हिन्दी बोलिए और लिखिए यह हमारी मातृभाषा है। हमारा मान-सम्मान और पहचान है।

माँ भारती के भाल की बिंदी
हम सबकी पहचान है हिन्दी
देव-वाणी, ग्रंथों की भाषा
हिन्दी की उत्तम परिभाषा
लेखक का अभिमान हिन्दी
हम सबका स्वाभिमान हिन्दी
माँ की ममता-सी हिन्दी
रामायण गीता है हिन्दी
हमारी मातृभाषा है हिन्दी

***अनुराधा चौहान*** स्वरचित ✍️

Tuesday, September 10, 2019

छलावा

बेचैन मन को चैन नहीं,
तो जग अंधियारा दिखता है।

चिंता-फिकर का रोग लगा,
मधुवन भी उजड़ा दिखता है।

डला आँखों पे झूठ का परदा,
अब अपनापन कहाँ दिखता है।

राग-द्वेष को मन में बसा लिया,
फिर मन का प्रेम कहाँ दिखता है।

चैन की बंशी अब कहाँ बजे,
जब भाग्य ही रूठा दिखता है।

पल दो पल का जीवन मेला,
इंसान खिलौने-सा यहाँ नचता है।

रिश्तों का बंधन रिक्त हो रहा,
सिर्फ दिखावा सिर उठाए चलता है।

सच्चाई से मुँह मोड़कर इंसान,
चादर झूठ की ओढ़े फिरता है।

किसी की बात न सुनना "अनु" तुम,
यहाँ हर कोई छलावा-सा दिखता है।
***अनुराधा चौहान***

Tuesday, September 3, 2019

पधारो प्रथम पूज्य गणेश

 

पधारो प्रथम पूज्य गणेश
पधारो.....
मूषक पर होकर सवार
सजा है घर में दरबार
बैठे थे मन में आस लिए सारे
लम्बोदर पीताम्बर घर में पधारे
विघ्न हरो है विघ्नहर्ता
भक्तो के तुम हो दुखहर्ता
पधारो प्रथम पूज्य गणेश
पधारो...

मोदक मिश्री भोग लगाएं
रिद्धी-सिद्धी शुभता को रिझाएं
एक दंत,दयावंत 
करते हैं सभी नमन
ढोल-ताशे उड़े गुलाल 
घर पधारे गौरी के लाल
पधारो प्रथम पूज्य गणेश
पधारो...

हे विघ्न-विनाशक,गजनना हे
हे गौरी तनया भाल चन्द्र हे
सुन लो विनय संताप हरो हे
कष्ट मिटाओ मोरेश्वर हे
कर रहे विनती बारम्बार
पधारो प्रथम पूज्य गणेश
पधारो....

सुन लो शिव सुत विनती मेरी
भोग चढ़ाऊँ मोदक, मिश्री
लड्डु लाऊँ भर-भर थाली
फैले चहुँओर फिर खुशहाली
कृपा करो हे सिद्धीविनायक
जल्दी न जाना अबकी बरस
सजे है रंगोली घर-द्वार
पधारो प्रथम पूज्य गणेश
पधारो....
***अनुराधा चौहान***

गणपति बप्पा मोरया

लड्डुओं का भोग लगाएं
आए बप्पा मोरया
मोदक रच-रच बनाएं
आए बप्पा मोरया
जय श्री बप्पा मोरया
जय-जय बप्पा मोरया
पान चढ़े, फूल चढ़े
मेवा भरपूर चढ़े
रच-रच भोग लगाएं
आए बप्पा मोरया
श्री गणपति बप्पा मोरया
जय-जय बप्पा मोरया
एकदंत,दयावंत
कृपा बरसाने आ गए
पीताम्बर पहनकर
विघ्न मिटाने आ गए
लड्डु भर-भर चढ़ाओ
आए बप्पा मोरया
श्री गणपति बप्पा मोरया
जय-जय बप्पा मोरया
छवि है निराली
मूषक की सवारी
लम्बोदर पीताम्बर
कृपा बरसाने आ गए
चरणों में शीश झुकाओ
आए बप्पा मोरया
श्री गणपति बप्पा मोरया
जय-जय बप्पा मोरया
***अनुराधा चौहान***

Monday, August 26, 2019

सांवला सलोना गोपाला

जनम लियो नंदलाला,
गोकुल में धूम मची।
सांवला सलोना गोपाला,
यशोमती मैया मुख चूम रही।

नन्हे हाथों में पहन कंगना,
घनश्याम खेलें नंद के अंगना।
ढुमक-ढुमक चले पहन पैंजनी,
रत्न जड़ित बंधी कमर करधनी।

सांवला सलोना गोपाला,
यशोमती मैया मुख चूम रही।

गले पहन माल बैजयंती,
तोड़न लागे माखन मटकी।
भोली सूरत कर माखन चोरी,
कहें मैया से नहीं मटकी फोड़ी।

सांवला सलोना गोपाला,
यशोमती मैया मुख चूम रही।

नटवर नागर कृष्ण कन्हैया,
नाच नचाएं बंशी बजैया।
बंशी की धुन पर झूमते-गाते,
सबके मन को कृष्ण रिझाए।

सांवला सलोना गोपाला,
यशोमती मैया मुख चूम रही।

नीलवर्ण पीताम्बर धारी,
रास रचाएं गोवर्धन धारी।
झूमे ब्रज झूमे बरसाना,
बड़ा नटखट नंद का लाला।

सांवला सलोना गोपाला,
यशोमती मैया मुख चूम रही।

***अनुराधा चौहान***

Wednesday, August 7, 2019

पारो भाग (4)

कुंती जबसे शिवा से मिलकर आईं थी बहुत बेचैन हो रही थी, उसका मन फिर से शिवा को देखने के लिए बेचैन हो रहा था। शिवा इस सब से बेखबर अपनी ज़िंदगी से खुश होकर गीत गा रहा था।साथ ही बड़ी मधुर बांसुरी बजा रहा था।
"मनवा बड़ा बेचैन
नहीं आवे दिल को चैन
आजा पारो छनकाती पायल
मिले नैनों से नैन..."
वाह क्या बात है..!ऐसा लग रहा है हुजूर तो पूरे मजनू बन गए हैं.. सही कह रहा हूँ न शिवा।
अरे केशव!! अरे ऐसा कुछ नहीं..मैं.. वो.. मैं तो बस... यूँ ही...
हड़बड़ाकर बोला शिवा।
केशव से शिवा हर तरह की बातें किया करता था, वही एक हमराज है जिसे शिवा के दिल का हाल पता है।
और बता कहाँ तक बात पहुँची...पारो ने कुछ कहा तुझसे..?
नहीं कहा तो कह देगी.. आँखों में दिखाई देता है जो उसके मन में है।
सुन शिवा दुष्यंत पर नजर रखियो.. उसके ढंग सही न लग रहे पारो का पीछा करता फिरता है।हम्म..देखा है मैंने भी...मेरे होते हुए हाथ भी लगाकर देखें पारो को... उसकी सब हेकड़ी निकालूँगा.. होगा जमींदार का बेटा तो अपने लिए।
तभी पारो आती दिखाई देती है..लो आ गई अब दोनों मिलकर गीत गाओ मैं चलता हूँ। केशव पारो को देखकर चला जाता है।
क्या हुआ अचानक तेरा मूँह क्यों लटक गया..? अभी तो बड़ा बातें कर रहा था उस केशव से मुझे देखकर चुप हो गया।मेरा आना अच्छा नहीं लगा तो मैं वापस जा रही हूँ।
पारो वापस जाने के लिए मुड़ी वैसे ही दौड़कर शिवा ने उसे पकड़ लिया,अररे.. रुक तुझसे मिलने के लिए ही यहाँ आकर बैठता हूँ , और तू है कि मेरी बात सुने बिना ही चल दी।
तो बोल क्या हुआ..? वो दुष्यंत के बारे में कह  रहा था केशव कल देखा उसने उसे तेरा रास्ता रोकते।
ओह यह बात है... अरे उसे मैंने ही रोका था...बस उससे बात करने का मन हुआ तो..पारो ने शिवा को छेड़ने के लिए झूठ बोला।
यह तू क्या कह रही है तूने क्यों रोका..? तुझे पता नहीं कितना
बेकार है वो... अरे वो तेरे लिए  बेकार होगा.. मुझे तो वो बड़ा सुंदर लगता है।
लंबा है,गोरा है, पैसे वाला है पारो शिवा के चेहरे पर जलन के भाव देख बहुत खुश हो रही थी।
अच्छा ऐसी बात है तो यहाँ क्या करने आई है जा उसी के पास जा... ‌‌‌वो लम्बे,गोरे के पास.. शिवा नम होती आँखों को छिपाने की कोशिश करता हुआ घूमकर खड़ा हो गया।
पारो को शिवा की आँखों में आँसू देखकर अपनी गलती का अहसास हुआ।अररे..अररे तुम तो बुरा मान गए..ऐ शिवा माफ कर दे.. शिवा कुछ नहीं बोला।
यह तो सही में गुस्सा हो गया पारो मन ही मन बोली।उसे खुद पर गुस्सा आने लगा था। फिर वो भी उसे मनाने के लिए गीत गुनगुनाने लगी।
"यूँ ही रूठे रहोगे तुम हमसे
जान निकल जायेगी तन से
हो गई है गलती कर दे माफ़
बिन शिवा पारो न रहे जिंदा।
शिवा पारो के मुँह पर हाथ रखकर कहता है श्श्श फिर से ऐसा मत कहना तुझसे पहले मेरी जान निकल जायेगी।
ओह शिवा...पारो शिवा के गले लग जाती है। मुझे माफ़ कर देना।
इधर कुंती शिवा से मिलने के बहाने ढूँढने लगी, कुछ सोचकर उसकी आँखों में चमक आ जाती है।
उसे याद आया शिवा बहुत मधुर बांसुरी बजाता है,हर जन्माष्टमी को मंदिर में शिवा ही बांसुरी बजाया करता है।
वो दौड़कर रामव्रत के पास गई,बापू.!!बापू मुझे बांसुरी बजाना सीखना है।
यह क्या नयी मांग लेकर आ गई कोई बांसुरी बजाना नहीं सीखना..घर के काम सीख माँ का हाथ बटाया कर घर के काम-काज में..रामव्रत के मना करने पर भी कुंती जिद्द लेकर बैठ गई।
क्रमशः
***अनुराधा चौहान***


Monday, August 5, 2019

पारो भाग ( 3)

शिवा पारो को जाते हुए देखता रहता है फिर खेतों में पिता की मदद करने लग जाता है।
दुष्यंत जिसे अपने से छोटे लोगों से हमेशा नफ़रत रही है स्कूल में भी उसका पारो से अक्सर झगड़ा हो जाता करता था।
तब उस अपने आस-पास शिवा और पारो कतई बर्दाश्त नहीं होते थे,पर अब उमर का तकाजा था सोलह बरस की उमर में लड़के-लड़कियों की एक-दूसरे के प्रति आकर्षक की भावनाएं जागने लगती हैं,वही तीनों के साथ हो रहा था।
दुष्यंत को पारो की सुंदरता अपनी और आकर्षित कर रही थी,वो उससे बात करने के लिए मिलने के मौके तलाश रहा था।
दुष्यंत जमींदार का बिगड़ैल लड़का था जो एक बार ठान लिया वो चाहिए ही चाहिए।वो पारो पर छुप-छुपकर निगाह रखने लगा।
कब और किस वक़्त उसे पारो अकेली मिलेगी।तो वह उससे बात कर सकें।
एक दिन पारो सुखिया को खाना देकर वापस आ रही थी और उस वक़्त शिवा अपने घर गया हुआ था, दुष्यंत ने पारो का रास्ता रोक लिया।
कहाँ जा रही है पारो...?जरा रुक जा..इतनी भी क्या जल्दी है जाने की..? कभी मुझसे भी बात कर लिया कर...दुष्यंत पारो से बेशर्मी से बोला।
कुए में गिरने जा रही हूँ तू चलेगा साथ...? और यह क्या रास्ता रोकने का का नया नाटक है तेरा... वैसे तो कभी बात नहीं करता था आज क्या हुआ..?
अरे अरे तू तो गुस्सा होने लगी मैंने तो बस यूँ ही पूछ लिया था तुझे बुरा लगा तो माफ़ कर दे ,बेशर्मी से हँसते हुए दुष्यंत ने कहा।
पारो वहाँ से चली गई। तेरी सारी हेकड़ी निकालूँगा एक दिन पारो..! दुष्यंत मन ही मन बड़बड़ाता हुआ वहाँ से जाने के लिए मुड़ता है।
और पीछे से अचानक उसके सामने कुंती आकर खड़ी हो जाती है। दोनों हाथ कमर पर रख कर दुष्यंत से पूछती है,यह सब क्या चल रहा है दुष्यंत...?"कहाँ कुछ भी तो नहीं"दुष्यंत सफाई से झूठ बोल गया।
तुम्हें क्या लगता है मैं अंधी हूँ..? मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा है देख दुष्यंत तेरे पर न सिर्फ मेरा हक है... ज्यादा चालाकी मत करना मुझसे... वरना बापू से सब बता दूँगी।
अरे अरे तू तो नाराज़ हो गई ऐसा कुछ भी नहीं है बापू के नाम से दुष्यंत घबड़ाकर बोला,तू तो मेरी अच्छी दोस्त है, तुझसे झूठ काहे बोलूँगा,अच्छा चलता हूँ एक जरूरी काम से जाना है,दुष्यंत झूठ बोलकर वहाँ से चला जाता है।
दुष्यंत के पिता बीरपाल और कुंती के पिता सागौन की लकड़ी बेचने का कारोबार करते हैं इस कारोबार में दोनों बराबर के हिस्सेदार हैं ।
कुंती के पिता के पास बीरपाल से कहीं ज्यादा संपत्ति थी। कुंती के पिता रामव्रत की पत्नी जानकी अपने माता-पिता की इकलौती संतान थी। इसलिए जानकी के माता-पिता की संपत्ति भी रामव्रत को मिली उससे वो बीरपाल से ज्यादा धनवान हो गया था।
कुंती भी अकेली संतान थी। दुष्यंत दो भाई एक बहन थे बड़ा विश्वजीत बहुत ही समझदार और पढ़ने में तेज था,शहर पढ़ने गया और एक दुर्घटना का शिकार होकर इस दुनिया से चला गया।
इसलिए दुष्यंत को बीरपाल ने शहर पढ़ाई करने नहीं भेजा था।बहन बड़ी थी उसकी शादी हो चुकी थी।
बीरपाल एक लालची किस्म का इंसान था इसलिए उसने बचपन में ही दुष्यंत और कुंती का रिश्ता पक्का कर दिया था, इसलिए कुंती उस पर अपना एकाधिकार समझती थी। और बात-बात में बापू की धमकी देकर दुष्यंत को दबाती थी।
बीरपाल की पत्नी सुगना ने दुष्यंत को समझा रखा था,अगर उसकी वजह से नाराज़ होकर रामव्रत ने यह रिश्ता तोड़ दिया तो उसके बापू उसे घर से निकाल देंगे।
यही कारण था दुष्यंत कुंती को देखकर सकपका गया था और सफाई से झूठ बोल कर वहाँ से निकल गया।
पर सही मायने में प्यार सिर्फ पारो और शिवा के बीच जन्म ले रहा था। कुंती तो पिता के द्वारा तय रिश्ते को ही प्यार समझ रही थी, दुष्यंत मतलब के लिए कुंती से अपनापन दिखा रहा था।
दुष्यंत कुंती को बहलाकर चला गया, कुंती गुस्से में बड़बड़ाती हुई वहाँ से घर के लिए चली और रास्ते में अचानक से शिवा से टकराकर गिरने लगी, तो शिवा ने संभाल लिया।
शिवा से आँखें मिलते ही कुंती एक क्षण के लिए सुध-बुध खो बैठी, अजीब से अहसास दिल में हिलोरें लेने लगे।
तुम ठीक हो..?चोट तो नहीं लगी..? शिवा की आवाज से कुंती हड़बड़ा गई, नहीं-नहीं चोट नहीं लगी..! मैं ठीक हूँ।
शिवा वहाँ से चला गया पर कुंती जब-तक शिवा आँखों से ओझल नहीं हो गया, उसे देखती रही।
यह कैसा अहसास हुआ मुझे, ऐसा लगा जैसे मन में तरंगें उठने लगी थी। दुष्यंत के साथ मुझे कभी ऐसा नहीं लगा, कुछ तो बात है शिवा में तभी पारो इसकी दीवानी हो रही है।
दुष्यंत पारो के पीछे पड़ा हुआ था,इधर कुंती के मन में शिवा का अहसास रोमांच जगाने लगा था
क्रमशः
***अनुराधा चौहान***

Sunday, August 4, 2019

पारो भाग (2)

 
इधर हरिया और सुखिया दोनों बच्चों को लेकर सपने संजोए बैठे हुए थे। उधर शिवा के मन में भी पारो को लेकर अहसास जाग रहे थे।
शिवा पारो को बुलाता रहा जाता है,वो उसे चिढ़ाकर हँसती हुई सुखिया के पास चली जाती है।
शिवा पारो को जाता देख मुस्कुरा उठता है,"पगली हमेशा बच्चों जैसी हरकतें ही करती रहेगी"और वहीं रुककर उसका इंतज़ार करने लगता है।
थोड़ी देर में पारो घर जाने के लिए लौटकर आती है तो शिवा को देखते ही,तू यहीं खड़ा है तबसे..?
हां..! तुझसे बात करनी है.... पर मुझे नहीं करनी घर पर माँ इंतज़ार कर रही है... मुझे पानी भरने जाना है, तेरी तरह काम से जी चुराकर किसी का पीछा नहीं करती।
अच्छा जी... बहुत बातें आने लगी तुझे..पता है तेरा काम अभी घर जाकर रेडियो चालू करके गाना सुनेगी और बेसुरी आवाज़ में गाना गाएगी।
मैं बेसुरी..!! तूने मुझे बेसुरी कहा...हाँ कहा..शिवा को पारो को छेड़ने में बहुत मज़ा आ रहा था।
रुक जरा..! पारो ने पास पड़ी लकड़ी उठाई और शिवा को मारने दौड़ी,शिवा आगे-आगे,पारो पीछे-पीछे शिवा अपने खलिहान के पीछे जाकर खड़ा हो गया।
बस थक गया..? रुक बताती हूँ कौन बेसुरा है... जैसे ही शिवा को मारने के लिए हाथ उठाया,शिवा ने हाथ पकड़कर अपनी ओर खींच लिया।
पारो को इसकी आशा नहीं थी इसलिए वो शिवा के खींचने से उसके ऊपर आ गिरी। शिवा की नजरों से नजर मिलते ही पारो को एक अजीब-सा अहसास हुआ,वो झटके से अलग होकर चुपचाप खड़ी हो गई।
शिवा भी चुपचाप खड़ा होकर पारो के चेहरे को देखने लगा फिर सकपका कर बोला,वो मैं.. मुझे.. मुझे तुझे कुछ दिखाना था।
क्या..? पारो के चेहरे से साफ मालूम पड़ रहा था कि अचानक शिवा के सीने से लग जाने की वजह से शर्म से लाल हो रही थी।
"आ मेरे साथ"शिवा उसे लेकर उस पेड़ के नीचे आता है जहाँ खेलकूद के बड़े हुए थे।"आँखें बंद कर"क्यों..?"सवाल मत कर"पारो आँख बंद कर लेती है।
तभी उसे कान के पास चूड़ियों के खनकने की आवाज़ सुनाई देती है।खोलूँ आँखें..?"नहीं रुक जरा"शिवा उसे चूड़ियाँ पहनाने लगता है।
तू चूड़ी लाया मेरे लिए..? मुझे देखनी हैं.. पारो बच्चों के जैसी जिद्द करने लगी। रुक पहना लेने दे...हाँ अब आँखें खोलकर बता कैसी हैं।
पारो आँखें खोलकर देखती है शिवा ने सही में बहुत ही सुंदर चूड़ियाँ पहनाई थी। बिल्कुल वैसी ही चूड़ियाँ थी जो सावन के मेले में चूड़ी बेचने वाले के पास देखकर वो माँ से लेने की जिद्द कर रही थी।
अरे वाह इत्ती सुंदर चूड़ियाँ...!तू मेरे लिए लाया..? नहीं मेरी माई के लिए बस तुझे पहनाकर देख रहा था, शिवा ने पारो को छेड़ते हुए कहा।
पारो यह सुनकर उदास होने लगती है तो शिवा हँस देता है। अरे पगली तेरे लिए ही लाया हूँ।ओह मेरे शिवा.. पारो शिवा के गले लग गई।
शिवा भी उसके भोले चेहरे को देखता रह गया, दिन पर दिन रूप निखर रहा था पारो का काजल लगी बड़ी-बड़ी आँखें कोई देखे तो दिवाना हो जाए।
अचानक पारो को अपनी गलती का अहसास हुआ तो शिवा से दूर होकर शरमाने लगी।
मैं घर जा रही हूँ..?हाँ तो जा ना किसने रोका तेरा ही मन नहीं है मुझसे दूर जाने का। धत् पागल..कहकर पारो भागी फिर रुक गई,माई चूड़ियों के बारे में पूछेगी तो क्या बोलूंगी शिवा.. पारो ने शिवा से पूछा।
अरे इसमें क्या चोरी है..बोल देना मैंने दिलाईं हैं... पहले भी तो कई बार लाया हूँ..माई कहाँ कुछ बोलती है।
पहले की बात और थी शिवा हम बच्चे थे और अब..हाँ बोल अब क्या..बोल न पारो अब क्या बदल गया हम दोनों के बीच? कुछ नहीं तू पागल का पागल ही रहेगा पारो भाग जाती है।
शिवा मंद-मंद मुस्कुराते हुए पारो को जाता देखता रह गया।
शिवा और पारो का प्रेम धीरे-धीरे परवान चढ़ रहा था, उनके इस मेल-मिलाप पर कोई पैनी नजर गढ़ाए था।
वो था गाँव के जमींदार का बेटा दुष्यंत जिसे पारो की सुंदरता अपना दिवाना बना रही थी।
क्रमशः
***अनुराधा चौहान***

Wednesday, July 24, 2019

आओ फिर एक बार आजाद


भारत को आजाद कराने
आज के दिन जन्मे आजाद
माता इनकी देवी जगरानी
पिता थे पंडित सीताराम

मध्य प्रदेश में जन्म लिया
रहने वाले थे भाबरा गाँव
बचपन से ही दृढ़ निश्चयी
स्वाभिमानी बालक थे आजाद

देशभक्ति से ओतप्रोत थे
दिल में क्रांति की ज्वाला थी
अंग्रेजों के गले की फांस बन गए
आजादी उनका जुनून बन गई

आजाद जिएंगे आज़ाद मरेंगे
नारा सदा यह बुलंद किया
भारत की आजादी के लिए
तन-मन अपना वार दिया

देश सुरक्षा सबसे पहले
बाँध कफ़न अंग्रेजों से भिड़ गए
आखिरी दम तक न मानी हार
करते रहे महासंग्राम

खाई थी कसम आजाद रहूँगा
भारत माता को आजाद करूँगा
धरती की गोद में त्यागे प्राण
आज़ाद थे मरते दम तक आजाद रहे

आजाद भारत की खातिर
शहीदों ने दी कुर्बानियाँ
खुशहाली का आशीर्वाद दिया
खुद ने सही जल्लादियाँ

आओ फिर एक बार आजाद
जात-पात के झगड़े मिटाने
बढ़ रहा है देश फिर से
आपसी टकराव की ओर

आओ फिर एक बार आजाद
भ्रष्टाचार को जड़ से मिटाने
जिसकी गुलामी में जकड़ा भारत
कर रहा है त्राहिमाम

बेटियों के ऊपर बढ़ रहे
इंसानी भेड़ियों के अत्याचार
आओ फिर एक बार आजाद
इस डर से करो उन्हें आजाद

***अनुराधा चौहान***
शत् शत् नमन 🙏

Saturday, July 20, 2019

जीवनभर का रोना

प्यार में पागल दिल
क्यों भूल जाता है
माँ-बाप की ममता
उनका त्याग-बलिदान
उनका मान-सम्मान
जो दिन-रात देखे सपने
क्या कोई मोल नहीं है
जो पल भर में टूटकर
बिखर जाते ज़मीं पर
रह जाते सिर झुकाए
अपनी संतान की जिद्द पर
उस हर एक पल को याद करते
जब चोट लगी बच्चों को
तब उनके दर्द में रोए
अपने सपने ताले में बंद कर
बच्चों के सपनों में खोए
करते रहे ज़रूरतें पूरी
छोड़कर अपनी जरूरतें अधूरी
सब छलनी होकर बिखर जाता
जब बच्चों से मिलता धोखा
प्यार में यह कैसी मजबूरी
माँ-बाप से बढ़ जाती दूरी
झुकाकर सिर समाज में उनका
पूरा कर लेते अपना सपना
अपने स्वार्थ के कारण
देते जीवनभर का रोना
***अनुराधा चौहान***
चित्र गूगल से साभार

Friday, July 12, 2019

अनकहे दर्द भाग (2)

प्रज्ञा के कमरे में जाने के बाद विक्रम उठकर बाहर लॉन में झूले पर बैठ गया।
नवंबर का महीना था हल्की-सी ठंड बदन में सिहरन पैदा कर रही थी विक्रम पुरानी यादों में खो जाता है।
मॉडल कॉलेज में आज़ विक्रम का पहला दिन... बीएससी प्रथम वर्ष... कॉलेज लाइफ को लेकर बहुत उत्साह में था।
जी सुनिए....क्या आप बता सकती हैं बीएससी प्रथम वर्ष की क्लासेस किस फ्लोर पर हैं।
आवाज़ सुनकर उसने पलटकर देखा तो कुछ पल के लिए विक्रम उसे देखता रह गया।
धानी कलर की ड्रेस पहने थी मेकअप के नाम पर कानों में लंबे-लंबे इयररिंग्स गले में पतली सोने की चेन,बला की खूबसूरत थी।
न्यू स्टूडेंट... उसने विक्रम तरफ देखते हुए पूछा...हाँ....वो...मैं. क्लास.... जैसे मेरी चोरी पकड़ी गई हो मैं घबराकर बोला वो क्लासरूम जानना था।
हाय...मेरा नाम सुगंधा. ... बीए प्रथम वर्ष... आप...मैं भी नयी हूँ... चलो स्टाफ रूम में किसी सर या मैडम से पूछ लेते हैं।
क्लासरूम पता करने के बाद वो अपनी क्लास में दूसरी मंजिल पर मैं पहली मंजिल पर।
मैं उसे जाते देख रहा था तभी अचानक उसने मुड़कर देखा, सुनो... तुमने अपना नाम नहीं बताया.. जी विक्रम।
अच्छा नाम है... अब तो मिलना-जुलना लगा रहेगा। कॉलेज की लाइफ एक अलग ही लाइफ थी एक साल कैसे गुजर गया पता नहीं चला।
कई अच्छे दोस्त मिले जतिन,प्रिया,रोहन, नेहा पर सबसे अलग थी सुगंधा।
बच्चों जैसी हरकतें वैसी ही शरारतें बहुत हँसमुख स्वभाव की थी सबसे बड़े ही प्यार से बोलने बाली बड़ी ही प्यारी लड़की थी सुगंधा ।
कॉलेज में सबसे उसकी दोस्ती थी पर उसका एक ही बेस्ट फ्रेंड था विक्रम जिससे वो हर तरह की बातें करती थी। कभी जींस-टॉप कभी सलवार-सूट कभी गाउन वो जो भी पहनती बहुत सुंदर दिखती थी।
क्या किताबी कीड़े बने रहते हो चलो न कहीं घूमने चलते हैं... नहीं यार एग्जाम सिर पर है मुझे पढ़ाई करनी है... जैसे मेरे तो एग्जाम ही नहीं होते.... हुहह..जा रही हूँ तुम पढ़ो।
अरे-अरे रुको न... तुम बेकार ही बुरा मान गई तुम्हारी बीए की पढ़ाई में बीएससी की पढ़ाई में बहुत अंतर है वैसे भी सब मेरे सिर के ऊपर से जाता है।
हम्म तभी टॉपर बने हो है ना.. शायद तुम्हें मेरा साथ ही नहीं पसंद है इसलिए बहाने करते हो...एक मैं तुम्हारे साथ वक़्त बिताने के बहाने ढूँढा करती हूँ।
मैं जा रही हूँ...पलट कर जाने लगी कुछ दूर जाकर.. मैं जा रही हूँ... तुम्हें फर्क नहीं पड़ता तो अब तुम्हें परेशान नहीं करूँगी..मुझे मुस्कुराते हुए देख गुस्से में गोरा चेहरा लाल हो गया था।
बहुत हँसी आ रही है ना एक दिन तरसोगे हँसने के लिए। सुगंधा रूठकर चल दी विक्रम रूठी सुगंधा को मनाने उसके पीछे-पीछे चल दिया।
अच्छा बाबा माफ़ कर दो...गलती हो गई...कहाँ चलना है.. बोलो...आज जहाँ कहोगी वहाँ चलेंगे।
सच्ची... बच्चों की तरह खुश होते हुए गले से लिपट गई... तो चलें मूवी देखने..हम्म चलो.. और कौन-कौन आ रहा है... कोई नहीं सिर्फ हम दोनों।
एक बात पूछूँ .... प्यार करती हो मुझसे...प्यार और तुमसे...हा हा हा हा....हँसी क्यों...? मैं सीरियसली पूछ रहा हूँ...ऐसा समझ भी मत लेना यह प्यार-व्यार बड़ा सिरदर्द है..तुम्हारा साथ अच्छा लगता है इसलिए फ्री होती हूँ तो तुम्हारे साथ रहना चाहती हूँ।
सच्ची प्यार नहीं करती.. ना नहीं... चलें अब.. चलो.. विक्रम सोचने लगा कैसी पहेली है यह सुगंधा... समझने की कोशिश में उलझकर रह जाता हूँ... क्रमशः
***अनुराधा चौहान***







Thursday, July 11, 2019

अनकहे दर्द भाग (१)

एक दशक पहले मिला था उससे मेरे साथ ही कॉलेज में पढ़ाई करती थी। उसके बाद कुछ महीने पहले उसे वाराणसी के घाट पर बैठे देखा, एक बार में उसे पहचान नहीं सका पहचानता भी कैसे हर समय मुस्कान का आवरण ओढ़े रहने वाली आज इतनी शांत.. भावहीन चेहरा।
पूछा था उससे.. क्या हुआ.. कैसे हुआ..  पर कुछ जवाब देना उचित नहीं समझा उसने आँखों में नमी लेकर लौट गई थी। यहीं किसी विधवाश्रम में रह रही थी शायद।
फिर भी मैंने हिम्मत नहीं हारी छुप-छुपकर उसे देखता उसके बारे में जानने की कोशिश करता।उसे भी अहसास हो गया था शायद मेरी हरकतों का।
एक दिन.. सुनो...क्या जानना चाहते हो क्यों पीछा करते हो दिखाई दे रहा है न मैं एक विधवा हूँ एक सामाजिक अपराधी जिसका कोई गुनाह नहीं फिर भी अपराधियों जैसी ज़िंदगी...क्या जानना है क्यों हुआ कैसे हुआ कब हुआ... मैं चुप था शायद उसके जख्मों को कुरेदने का गुनाह जो किया था मैंने।
माफ़ करना तुम्हारा दिल दुखाने का मेरा इरादा नहीं था।तुम मेरे साथ कॉलेज में पढ़ी हो तुम्हारी मुस्कान ही तुम्हारी पहचान थी यही वजह थी तुम्हारे बारे में जानना चाहा।
तुम नहीं बताना चाहती कोई बात नहीं दो दिन रुकूँगा यहाँ कुछ काम से आया था।अगर दिल करे तो फोन करना यह मेरा फोन नंबर...अपना कार्ड देकर बिना जबाव सुने मैं वहाँ से चला आया था।
फोन किया उसने..... नहीं.... और आपने...आप उसे मन ही मन चाहते थे..?हाँ.. और वो..... शायद हाँ वो हमेशा मुझसे मिलने के बहाने ढूँढा करती थी।उसे मेरा साथ बहुत पसंद है कहा करती थी छुट्टियों में घर गई थी फिर लौटी नहीं।
आपने ढूँढा नहीं पता नहीं किया.... अयोध्या गया था कई बार पर वो लोग कहीं और रहने लगे थे और वहाँ कभी-कभार ही आते थे।
ठीक है बाबा आप आराम करो प्रज्ञा विक्रम को सोने के लिए कहकर अपने कमरे में चली गई उसके हाथ में सुगंधा की तस्वीर थी जो विक्रम ने वाराणसी से आते समय चुपचाप खींच ली थी।
आज यही तस्वीर देखकर प्रज्ञा विक्रम से सवाल कर बैठी थी।मात्र पंद्रह साल छोटी है प्रज्ञा विक्रम से एक अनोखा रिश्ता बाप-बेटी का जो खून का नहीं दिल का रिश्ता था।
पंद्रह साल की थी प्रज्ञा जब एक हादसे में माँ-बाप की मौत के बाद विक्रम उसे लेकर उसके रिश्तेदारों के पास गया पर किसी ने भी जिम्मेदारी लेने से इंकार कर दिया था।
तब कानूनी तौर से विक्रम ने प्रज्ञा को गोद ले लिया था।अब बाईस वर्ष की हो गई थी,प्रज्ञा विक्रम के अनकहे दर्द को समझ रही थी।
क्रमशः
***अनुराधा चौहान***

Tuesday, July 9, 2019

कालिंदी (सम्पूर्ण कहानी)

कालिंदी ने दहलीज से क़दम बाहर निकाला ही था कि पिताजी के कराहने की आवाज़ सुनकर ठिठक कर रुक गई।
कालिंदी!! क्या बात है रुक क्यों गई? चलो जल्दी हमें कोई देखे उससे पहले ही निकल जाए। कालिंदी की आँखों से मोटे-मोटे आँसू बहने लगे, उसने कुछ सोचकर कदम पीछे ले लिए।
नहीं गगन मुझे माफ़ कर दो मैं नहीं चल पाऊँगी, मुझसे नहीं हो पाएगा हो सके तो मुझे भूल जाना आँखों में तैरती गहरी उदासी लिए कालिंदी ने गगन को घर से भागने को मना कर दिया।
ऐसा मत कहो कालिंदी मैं नहीं जी सकता तुम्हारे बिना सब ठीक हो जाएगा एक बार शादी हो जाए माँ मान जायेगी हम मिलकर सारी समस्या सुलझाने का प्रयास करेंगे।
पर बाबा का क्या गगन.. इस असहाय अवस्था में इतना बड़ा दुःख,मेरी दोनों बहनों की ज़िंदगी,सब तबाह हो जायेगा। नहीं- नहीं इतना बड़ा पाप मुझसे नहीं होगा।जाओ गगन अपनी नयी दुनिया बसाना हो सके तो मुझे भूल जाना।
कहकर कालिंदी वापस अंदर आकर पिता के कराहने की आवाज़ सुनकर पिताजी के पास आकर बैठ गयी। राजवीर जाग रहे थे।
कालिंदी की मनोदशा को बखूबी समझ रहे थे राजवीर पर शरीर से लाचार हो बिस्तर पर पड़े थे। कुछ चाहिए बाबा आप सोए नहीं अभी तक? राजवीर के आँसू बहने लगे वो जानते थे कालिंदी और गगन एक-दूसरे से बहुत प्यार करते हैं।
राजवीर को भी गगन बहुत पसंद था पर गायत्री को गगन बिल्कुल नहीं भाता था।
राजवीर ने सोच रखा था कि गायत्री को समझा-बुझाकर वो कालिंदी और गगन शादी करवा देंगे ।पर उच्च रक्तचाप के कारण वो लकवाग्रस्त होकर बिस्तर पर गिर पड़े और हालात कुछ ऐसे बन गए थे कि कालिंदी और गगन भागकर शादी करने वाले थे।
पर दहलीज पार करते ही राजवीर के कराहने की आवाज़ सुनकर कालिंदी ने कदम रोक लिए और बाबा के पास आकर बैठ गई।
सो जाओ बाबा बहुत रात हो गई, पिता को चादर उड़ा कर कालिंदी सीधे छत पर आ गई सोचने लगी, मैं अपनी खुशी के लिए क्या करने जा रही थी आज़ अगर चली जाती तो माँ का क्या होता एक ओर बाबा की बीमारी दूसरी ओर दो जवान बहनें सब तबाह हो जाता है।
पर गगन की क्या गलती गगन का ख्याल आते ही कालिंदी फूट-फूटकर रोने लगी रोते-रोते छत पर ही सो गई।
बाईस वर्ष की कालिंदी बेहद खूबसूरत थी जो भी उसे देखता वो देखता रह जाता अपने माता-पिता और दो जुड़वां बहनों जो उससे उम्र में तीन साल ही छोटी थी उनके साथ झाँसी में रहती थी
कालिंदी!! सुबह-सवेरे माँ की आवाज़ सुनकर कालिंदी की आँख खुली।झटपट वो नीचे आती है क्या बात है माँ क्या हुआ?
यह क्या तेरी आँखों को क्या हुआ यह लाल कैसे हो रही सोई नहीं थी क्या? कुछ नहीं माँ कुछ चला गया था रात को इसलिए।
अच्छा सुन जयंत आने वाला है दीदी के साथ तो नहाकर अच्छे से तैयार हो जा और हाँ वो ग्रीन वाला सूट पहनना तुम पर बहुत अच्छा लगता है।
माँ तुम यह सब क्यों कर रही हो तुम जानती हो न मैं..हाँ-हाँ जानती हूँ तुझे वो फटीचर पसंद है जिसके पास खुद का एक घर नहीं और मास्टरी करके कितना कमाएगा उतना ही जितना तेरा बाप कमाता रहा न ढंग का खाना न ढंग के कपड़े...माँ..!आपने फिर बाबा को ताना मारा मुझे यह सब अच्छा नहीं लगता है।
तो और क्या कहूँ जयंत दीदी का देवर है अच्छा घर अच्छा कारोबार तलाकशुदा है तो क्या हुआ पैसे वाला है।
उस घर जायेगी तो नंदा और मुक्ता की किस्मत सुधर जायेगी।
मैं अनपढ़ गंवार तो कुछ कमा नहीं सकती ऐसे में तेरे पिता का इलाज का खर्चा। धीरे-धीरे करके सारे गहने बिक चुके हैं। जयंत सबकी जिम्मेदारी लेने के लिए तैयार है।
माँ तुम जयंत से मेरी शादी इसलिए करना चाहती हो कि घर में कमाई का कोई जरिया नहीं है। चिंता मत करो मैं कोई नौकरी और ढूँढ लेती हूँ। तब तक मेरी ट्यूशन की कमाई से गुजर कर लो।सब ठीक हो जायेगा माँ।
मुझे कुछ नहीं सुनना तू वही कर जो मैं कह रही हूँ तेरी शादी गगन से तो हरगिज नहीं होने दूँगी।
नहीं करूँगी माँ गगन से शादी रोते हुए कालिंदी ने कहा पर जयंत से भी नहीं शादी नहीं करूँगी यह मेरा फैसला है।
कालिंदी तेजी से अपने कमरे में चली गई बिस्तर पर गिर कर फफक कर रोने लगी,कुछ देर बाद उठी नहाकर तैयार होने लगी उसकी आँखों में किसी फैसले की झलक दिखाई दे रही थी।
सफेद रंग के सूट में बहुत सुंदर लग रही थी। कानों में छोटी-छोटी बालियाँ पहनकर अपने सर्टिफिकेट की फाइल हाथ में ले नौकरी की तलाश में कालिंदी स्कूटी लेकर अपने कॉलेज के लिए निकल जाती है और सीधे प्रिंसिपल मैडम से मिलने पहूँचती है।
मैं अंदर आ सकती हूँ मैम! अरे कालिंदी आओ बैठो कैसे आना हुआ ?मैम कल आपने फोन किया था मैं अपने सर्टिफिकेट लेकर आपसे मिलूँ अकाउंट टीचर की नौकरी के लिए?
ओह हाँ आओ बैठो मुझे तुम्हारे पिताजी के बारे मेें पता चला अब कैसी तबियत है उनकी ? जी मैम अभी तो कुछ सुधार नहीं हुआ डॉक्टर कह रहे हैं वक्त लगेगा पर ठीक हो जायेंगे।
और तुम अपनी एमकॉम की पढ़ाई छोड़ने की सोच रही हो क्यों?
मैम बाबा बीमार हैं ऊपर से नंदा,मुक्ता की पढ़ाई...हम्म इसलिए ही मैंने फोन किया था मुग्धा ने बताया मुझे। सुनो कालिंदी बीकॉम के अकाउंट टीचर अचानक नौकरी छोड़कर चले गए हैं ।
मैंने सोचा तुम हमेशा से कॉलेज में अकाउंट में अव्वल रही हो तुम्हें भी नौकरी जरूरत भी है और हमें भी एक शिक्षक की,अगर तुम पढ़ाने लगो तो तुम्हारी दोनों बहनों की भी पढ़ाई में रुकावट नहीं आएगी और हाँ एक साल की फीस भी माफ हो जाएगी,तुम्हारी पढ़ाई भी नौकरी के साथ-साथ पूरी हो जाएगी।
ओह मैम आपने तो मेरी मुश्किल हल कर दी आपसे मिलने के बाद मैं नौकरी की तलाश में जाने वाली थी ।
बहुत-बहुत धन्यवाद मैम,सच मैं बता नहीं सकती मैं कितनी खुश हूँ । आप तो मेरे लिए भगवान बन गई थेंक यूंँ सो मच मैम
‌मैम कब से क्लास लेनी है.. आज़ से ही पढ़ाना शुरू कर दो। तुम्हें रागिनी सब समझा देगी यह लो मेरा लेटर उन्हें दे देना जी मैम आपका बहुत बहुत धन्यवाद।
प्रिंसिपल के रूम से बाहर आकर कालिंदी ने रागिनी मैम से मिलकर क्लास का जानकारी ली आज कालिंदी के मन से एक बोझ हल्का हो गया था।
अभी क्लास शुरू होने में समय था कालिंदी कॉलेज की केंटीन के लगी बेंच पर बैठ गई।
कॉलेज में जब भी वक्त मिलता वह अक्सर गगन के साथ यहीं आ बैठती थी।गगन कालिंदी का सीनियर था कॉलेज में पढ़ाई पूरी करने के बाद यहीं अकाउंट पढ़ाने लगा था।
अकाउंट टीचर तो गगन था यह ख्याल आते ही कालिंदी घबरा गई गगन ने नौकरी छोड़ दी क्यों ,किसलिए ? कहीं गगन यह शहर छोड़कर तो नहीं जा रहा यह ख्याल आते ही कालिंदी की आँखों में नमी तैरने लगी।
तभी किसी ने कंधे पर हाथ रखा बिना देखे ही कालिंदी के मुँह से निकला गगन..!! गगन ही था कालिंदी को देखकर मिलने आया था वो मैंने तुम्हें कॉलेज में आते देखा तो मिलने चला आया।
मुझे अकाउंट टीचर की जॉब के लिए प्रिंसिपल मेम ने बुलाया था अकाउंट टीचर की जगह ख़ाली है,मैं अकाउंट पढ़ाने लगूँ।
अररे.. वाह!! यह तो बहुत अच्छी बात है बधाई हो।
पर यह विषय तो तुम पढ़ाते थे न गगन कालिंदी ने गगन की आँखों में देखते हुए पूछा फिर तुमने अचानक नौकरी क्यों छोड़ दी ?
कालिंदी मैंने एक बड़ी कम्पनी से जॉब के लिए अप्लाई किया था वहाँ से फोन आया तो मैंने यह जॉब छोड़ दी गगन ने शून्य में देखते हुए कहा शायद कुछ छिपाना चाह रहा था इसलिए कालिंदी से नजर नहीं मिला पा रहा था।
कुछ देर मौन के बाद कालिंदी..हम्म कहो...मैं रात के विषय में कोई बात नहीं करूँगा,क्योंकि मुझे पता था तुम्हारा यही फैसला होगा पर उस समय तुम कुछ सुनने को तैयार नहीं थी। तुम कुछ कर न लो गुस्से में इसलिए मैंने तुम्हारी बात मान ली थी।
मुझे नहीं जानना तुम्हारे मन में क्या चल रहा है।पर जब तक ज़िंदगी है तुम्हारा इंतज़ार करूँगा।बस यही कहने आया था चलता हूँ तुम्हारा हर फैसला मंजूर है मुझे कोई मदद चाहिए तो बताना।
गगन उठकर तेजी से चला जाता है कालिंदी को अपने आँसू दिखाकर कमजोर नहीं करना था कालिंदी डबडबाई आँखों से उसे जाते देखती रही। तभी घंटी बजने लगती है कालिंदी उठकर क्लास रूम में चली गई।
मेम मैं अंदर आ सकता हूँ..आओ गगन मेम आप कालिंदी को कभी मत बताना यह नौकरी मैंने उसके लिए छोड़ी है और उसकी बहनों की एक साल की फीस भर दी है।
नहीं गगन मैंने कालिंदी को इस बारे में कुछ नहीं बताया.. मैं जानती हूँ वो बहुत स्वाभिमानी लड़की है और कितना भी परेशान रहेगी पर किसी से कोई भी मदद नहीं लेगी ..तुम इस बात की चिंता मत करो उसे कुछ पता नहीं चलेगा।
तुम बहुत अच्छे हो गगन और कालिंदी अकाउंट में बहुत ही होनहार अगर उसकी काबिलियत से बच्चों को कुछ सीखने मिले तो कॉलेज के लिए गर्व की बात होगी...जी धन्यवाद मेम मैं चलता हूँ।
गगन को कहीं से भी नौकरी के लिए फोन नहीं आया था उसने यह नौकरी कालिंदी के लिए छोड़ी थी और खुद अपने लिए नौकरी की तलाश में था
गगन नहीं चाहता था कालिंदी नौकरी के लिए इधर-उधर भटकती फिरे और कोई उसकी मासूमियत का फायदा उठाने की कोशिश करे।
उधर घर पर दीदी (कालिंदी की मौसी) अपने देवर को लेकर आ चुकी थी। गायत्री,नंदा,मुक्ता बार-बार कालिंदी का फोन लगा रहे थे। कालिंदी ने फोन स्विच ऑफ कर पर्स में रख दिया।
क्लास" ए" में लेक्चर खत्म करने के बाद कालिंदी क्लास" बी "को पढ़ाकर कालिंदी मुग्धा के घर के लिए निकल गई।
मुग्धा कालिंदी की बचपन की सहेली थी जब से बाबा बीमार हुए वो मुग्धा साथ ही बच्चों को ट्यूशन पढ़ाने लगी थी।
मुग्धा शौकिया तौर और कालिंदी मजबूरी में... परिवार की ज़रूरतें जो पूरी करने थी। अरे कालिंदी तुम तो कल रात गगन के साथ.....
कालिंदी कॉलेज से निकलकर मुग्धा के पास पहुँचती है। अरे कालिंदी तुम यहाँ तुम तो कल रात गगन के साथ.....क्या हुआ सब ठीक तो है ?
सब ठीक है कल रात मैंने अपना फैसला बदल लिया मुझे समझ आ गया है हालात से डरकर नहीं डटकर सामना चाहिए।
अब मैं बाबा की सारी जिम्मेदारी उठाऊँगी,नंदा,मुक्ता भी आगे पढ़ेंगी ।माँ नहीं चाहती मैं गगन से शादी करूँ, नहीं करूँगी पर उस अधेड़ जयंत से तो हरगिज नहीं।
पता नहीं मौसी ने क्या पट्टी पढ़ाई माँ को कि उन्हें वो अधेड़ जयंत अच्छा लगने लगा।
तभी मुग्धा के फोन पर नंदा का फोन आता है। मुग्धा दी कालिंदी दीदी का फोन बंद आ रहा है और यहाँ घर पर बवाल मचा हुआ है नंदा ने रोते हुए कहा।
क्या हुआ..? नंदा साफ-साफ कहो... तुम रो क्यों रही हो बाबा ठीक है..? क्या बात हो गई रो मत मैं घर आ रही हूँ  कालिंदी ने मुग्धा से फोन लेकर नंदा से कहा और तुरंत घर के लिए निकल गयी।
उधर घर पर मैं तो पहले से ही कहती थी गायत्री तेरी बेटी के लक्षण ठीक नहीं हैं,सुबह से शाम हो गयी कुछ खबर नहीं। भाग गयी होगी इतना अच्छा रिश्ता लाई थी तुम सब मजे करते।
मेरी तो किस्मत ही खराब है अभाव में जीती आई अभाव में ही मरना लिखा है।तू क्यों मरे अभाव में अभी भी कुछ नहीं बिगड़ा जयंत को कालिंदी पसंद थी ना यह मुक्ता भी तो उसी की परछाई है क्या कहते हो जयंत।
जैसा आप ठीक समझो भाभी जयंत ने गंदी नज़र से मुक्ता को देखते हुए कहा।पर दीदी मुक्ता बहुत छोटी है अभी और जयंत बहुत बड़े हैं उससे... कुछ छोटी नहीं उन्नीस बरस की हो गयी है कोई ज्यादा फर्क नहीं गायत्री पंद्रह,सोलह साल कोई ज्यादा नहीं, पहले के जमाने में भी ऐसे ही शादियाँ होती थी।
गायत्री हाँ कर दे इतना पैसे वाला रिश्ता बार-बार नहीं मिलता मुक्ता यह सुनकर कर चक्कर खाकर गिर पड़ी और नंदा ने मुग्धा को फोन लगा दिया।
गायत्री के दिमाग में सिर्फ दीदी की सीख का असर था माँ की ममता जाने कहाँ चली गयी।
मुक्ता को रोके के लिए तैयार करके मौसी ने सगाई की रस्में शुरू ही की थीं कि कालिंदी ने तेजी से आकर सारा सामान उठाकर फेंक दिया।
गायत्री तो कालिंदी का यह रूप देख दंग रह गयी डरी-सहमी रहने वाली कालिंदी इतनी उग्र भी हो सकती है।यह क्या बदतमीजी है।
 गायत्री तुम्हारे घर में मेरा ऐसा अपमान... चलो जयंत यहाँ से..हाँ हाँ जाओ मौसी तुम्हें रोका भी किसने है।
तड़ाक.…. कालिंदी के गाल पर गायत्री ने जोर का चाँटा मारते हुए कहा यह कौन-सा तरीका है मौसी से बात करने का.. कौन-सी मौसी..? माँ!!मौसी का मतलब भी पता है क्या मौसी मतलब माँ जैसी पर इनमें ऐसा कुछ नहीं है।
यह जयंत से मेरी शादी इसलिए कराना चाहती थी ताकि शादी के बाद भी मैं इनसे दबी रहूँ और जयंत की दौलत पर इनके ऐश होते रहें... हैं ना मौसी.. सही कह रही हूँ ना।
आज़ जब मैं गायब थी तो इन्हें लगा मैं भाग गयी हूँ तो यह मुक्ता की बलि चढ़ाने लगी क्योंकि इन्हें मालूम है नंदा किसी से भी न तो डरती है न ही दबती है और मुक्ता सीधी है तो यह उसे आसानी से अपने काबू में कर सकती हैं।
माँ होश में आओ आप माँ हो अपनी बेटियों का भविष्य तबाह करके खुश रह पाओगी बोलो। गायत्री कुछ देर तक चुपचाप बैठी रही शायद अपनी गलतियों का अहसास होने लगा था उन्हें...
गायत्री को भी अब सब सच समझ आने लगा था उसने तुरंत अपनी बेटियों की तरफदारी करते हुए दीदी को घर से निकल जाने को कहा।
बस बहुत हुआ दीदी मैं आपका अपमान करूँ इससे पहले चले जाइए यहाँ... गायत्री तू कालिंदी की बातों पर भरोसा कर अपनी ज़िंदगी बर्बाद कर रही है।
अभी-भी कुछ नहीं बिगड़ा मैं जयंत को मना लू़ँगी..तू शादी की तैयारी कर.. मैंने कहा न दीदी निकल जाइए मेरे घर से!! चलो भाभी यहाँ से...तुझे तो मैं देख लूँगा कालिंदी।
हाँ जब देखना तब हम भी देख लेंगे कहते हुए नंदा ने मौसी और जयंत के बाहर निकलते ही दरवाजा बंद कर दिया।
दीदी!!! रोते हुए मुक्ता कालिंदी के गले लग जाती है।
बस बस चुप हो जा मेरे होते हुए कोई मेरी बहनों का बुरा नहीं कर सकता है।
वाह..ताली बजाते हुए नंदा आती है और कालिंदी के गले लग जाती है।
 दीदी आप तो बड़ी छुपी रुस्तम निकली.. मतलब तू क्या कहना चाहती है नंदा.. अररे दीदी डर-डर कर रहने वाली आप इतनी बड़ी हिटलर निकलोगी हमें पता ही नहीं था। वाह क्या कमाल किया आपने आज़ मजा आ गया मौसी और जयंत की शक्ल देखने लायक थी।
बस कर नंदा यूँ बड़ों का मज़ाक नहीं उड़ाते हैं माँ क्या हुआ आप चुप क्यों हो ?
क्या बोलूँ मैं स्वार्थ में इतनी अँधी हो गई थी अपनी ही बच्ची की ज़िंदगी तबाह करने जा रही थी। गायत्री रोने लगती है माँ चुप हो जाओ"अंत भला तो सब भला"।
 कैसे भूल जाऊँ मैंने दीदी की बातों में आकर तेरे बाबा से झगड़ा नहीं किया होता तो आज़ वह बिस्तर पर न होते मैं गुनाहगार हूँ तुम सबकी।
शांत हो जाओ माँ सब ठीक हो जाएगा..बाबा.. बाबा से याद आया माँ.. इतना सब घर में हो रहा बाबा शांत कैसे... कालिंदी तुरंत बाबा के पास दौड़ी बाबा!! बाबा..राजवीर बहुत गहरी नींद में सो रहे थे। बाबा उठो...माँ बाबा.. गायत्री सिर झुका लेती है।
माँ आप कुछ छुपा रही हो बोलो क्या बात है..वो दीदी ने इन्हें प्रसाद में नींद की दवा दी थी ताकि रस्मों के बीच कोई विघ्न न आए।
माँ..!!! और तुमने खिलाने दी माँ तीनों बहनों के मुँह से एक साथ एक ही बात निकली। फफक कर रो पड़ी गायत्री मुझे माफ़ कर दो मेरे बच्चों मुझे माफ़ कर दो।
कालिंदी माँ को चुप कराती है सब भूल जाओ माँ आज के बाद इस घर में कोई पुरानी बातें नहीं करेगा।
 तुम दोनों कल से कॉलेज जाना शुरू करो..पर दी फीस.. तुम लोगों की एक साल की फीस प्रिंसिपल मैम ने माफ़ कर दी है। और मुझे कॉलेज में अकाउंट टीचर की नौकरी भी देदी है...अब सब ठीक हो जाएगा ।
माँ बाबा को फिजियोथैरेपिस्ट के पास रोज लेकर जाने की जिम्मेदारी अब आपकी है।
धीरे-धीरे सब चीजें सँभलने लगती हैं वक़्त भी अपनी रफ्तार से भागता रहता है।इस तरह पाँच साल बीत गए आज़ नंदा,मुक्ता दोनों ही एक बड़ी कम्पनी में इंटरव्यू के लिए गए हुए थे, राजवीर ठीक हो चुके थे।
बीमारी के कारण नौकरी तो छूट गयी थी पर घर पर ही बच्चों को ट्यूशन पढ़ाने लगे थे।
कालिंदी उसी कॉलेज में आज़ भी अकाउंट पढ़ाने जाती थी और उसी बेंच पर गगन की याद में कुछ पल बिताया करती थी
मुग्धा की शादी हो चुकी थी
गायत्री बार-बार कालिंदी से शादी करने की बात कहती तो कालिंदी हर बार मना कर देती।गगन के बारे में कुछ जानकारी नहीं थी कि वो कहाँ है।
कालिंदी बड़ी बेचैनी से खिड़की पर खड़ी दोनों बहनों का इंतजार कर रही थी इस बात से बेखबर कि दो आँखें उसको भी देख रहीं थीं।यह गगन था जो उसके घर से कुछ दूर कार में बैठा हुआ था।
आँखों पर काला चश्मा,ग्रे कलर का सूट फ्रेंच कट दाढ़ी गगन किसी हीरो से कम नहीं दिख रहा था पुराने गगन से बिल्कुल अलग कालिंदी भी एक नज़र में धोखा खा जाए।
गगन कुछ देर तक कालिंदी को देखता रहा कालिंदी को भी कुछ अहसास हुआ कि कार में बैठा शख्स उसे ही देख रहा है तो वह घर के अंदर आ गई कालिंदी को क्या पता कि गाड़ी के अंदर गगन हो सकता है।
कौन था वो जो इस तरह कार खड़ी करके मुझे देख रहा था
कालिंदी सोच में पड़ गयी।
उधर गगन भी कालिंदी के अंदर जाते ही वहाँ से चला जाता है। नौकरी चली जाने के बाद गगन नौकरी के लिए कई इंटरव्यू दे चुका था पर कहीं भी नौकरी नहीं लग पा रही थी माँ-बाप तो थे नहीं अकेला रहता था और टयुशन का ही सहारा था।
एक दिन एक ऐसी घटना घटी जिसने गगन की ज़िंदगी ही बदल कर रख दी।
गगन के.जी.कंपनी में इंटरव्यू के लिए जा रहा था। हाइवे पर खड़ा टेक्सी का इंतज़ार कर रहा था तभी एक बेकाबू कार ने सिग्नल तोड़ते हुए एक कार को टक्कर मारी तेजी से निकल गई।
कार में सवार दंपती बुरी तरह घायल हो गए थे भीड़ सेल्फी लेने में मगन थी।गगन तुरंत उन लोगों को लेकर हॉस्पिटल भागा दोनों की हालत गंभीर थी ऑपरेशन होना था बिना पैसे डॉक्टर इलाज को तैयार नहीं थे।
गगन ने जितने पैसे उसके पास थे वो डॉक्टर को दिए,बोला आप ऑपरेशन शुरू कीजिए तब-तक वह और पैसे लेकर आता है। गगन ने अपनी माँ के जेवर गिरवी रख पैसे जमा किए। ऑपरेशन खत्म हो चुका था गगन उन लोगो के होश में आने का इंतजार कर रहा था।
मिस्टर गगन उन दोनों को होश आ गया आप उन से मिल सकते डॉक्टर ने गगन से कहा।
तुरंत गगन उन लोगों से मिला और उनका सामान पर्स और मोबाइल उन्हें सौंप दिया।
कैसे हैं आप लोग माफ़ कीजिए आपके घरवालों को खबर नहीं कर पाया आपके मोबाइल टूट गए थे।
आपका बहुत बहुत धन्यवाद बेटा... मैं कीर्ति.. यह गौरव हैं मेरे पति हम लोग अकेले रहते हैं हमारा कोई रिश्तेदार नहीं। आपका नाम..? जी मैं गगन..गगन अग्रवाल!! आप ने हमारी जान बचाई उसके लिए आपका बहुत बहुत धन्यवाद गगन जी।
सबसे पहले तो आप मुझे गगन कहिए" जी"मत लगाइए आप बहुत बड़ी हैं मुझसे और धन्यवाद की कोई जरूरत नहीं हर जिम्मेदार नागरिक का फर्ज होता है मुसीबत में फंसे लोगों की मदद करे।
बहुत अच्छे विचार हैं तुम्हारे क्या करते हो जी फिलहाल तो बेरोजगार हूँ नौकरी तलाश रहा हूँ। आज़ सुबह इंटरव्यू के लिए जा रहा था तो आपको घायल देख यहाँ ले आया।
 तभी डॉक्टर आते हैं अभी कैसा लग रहा है।आप लोगों की किस्मत अच्छी थी जो मिस्टर गगन आप लोगों को वक़्त पर अस्पताल ले आए और आपके ऑपरेशन का पूरा खर्च उठाया।
डॉक्टर के जाने के बाद गगन मेरे पर्स में मेरा एटीएम कार्ड है जरा निकाल दो।यह लीजिए गगन कार्ड निकाल कर देता है। सुनो बेटा गौरव ने गगन को कार्ड देते हुए कहा मेरा पासवर्ड लिखो और जितना पैसा तुम्हारा खर्च हुआ है वह निकाल कर ले आओ।
यह आप क्या कह रहे हैं और ऐसे कैसे आप मुझे पासवर्ड बता सकते हैं आप तो मुझे जानते नहीं फिर मुझ पर भरोसा कैसे कर सकते हैं।
 गौरव बोले तुम हमें जानते थे क्या बेटा फिर भी तुमने अपने पैसे खर्च किए ना। तो फिर हम...बस कीजिए आप दोनों वरना मैं यहाँ से चला जाऊँगा।
कीर्ति और गौरव के.जी.कंपनी के मालिक थे आज हॉस्पिटल से डिस्चार्ज होने के बाद गगन उन्हें उनके घर छोड़ने आता है तो उनका आलीशान बंगला देखकर दंग रह जाता है। अंदर बैठक में एक चौदह, पंद्रह वर्ष के लड़के की बड़ी-सी तस्वीर लगी थी जिस पर हार टंगा हुआ था।
तस्वीर देख गगन ठिठक कर रुक गया यह...मेरा बेटा नियति ने हमसे छीन लिया आज तुम्हारे जैसा ही होता।ओह माफ करना मैंने आप लोगों को दुखी कर दिया.. अच्छा मैं चलता हूँ।
गगन वापस जाने के लिए मुड़ा ही था गौरव ने आवाज़ दी रुको..गगन। कल आकर मुझसे मिलना यह मेरी कम्पनी का कार्ड है.. गगन कार्ड देखते ही अरे.  इसी कंपनी में तो इंटरव्यू के लिए...आप.....मैं इसका मालिक हूँ के.जी यानि कीर्ति और गौरव। और इस घटना से गगन की ज़िंदगी बदलने लगी।
आज कंपनी का एमडी बन चुका है गगन के सब-कुछ है बस कालिंदी को छोड़कर गगन इन पाँच सालों में कालिंदी से मिला नहीं पर फिर भी उसकी पल-पल की खबर रखता था।
 कभी कालिंदी किसी मुश्किल में दिखाई देती तो किसी न किसी रूप में उसके पास मदद भेजता रहता था।
आज भी कॉलेज की तरफ से के.जी. कंपनी में नंदा और मुक्ता इंटरव्यू के लिए गयी हैं वो सब गगन की ही रची योजना थी कितना सच्ची और पाक मोहब्बत है गगन की.. इधर कालिंदी भी मन ही मन गगन की यादों में टूटती-बिखरती है पर सबके सामने अपने जज़्बातों को छुपा लेती है।
तभी डोरबेल बजती गायत्री दरवाजा खोलती है और दोनों बहनें माँ से लिपटकर नाचने लगी.. अरे-अरे क्या हुआ तुम दोनों को..? माँ हमें जॉब मिल गयी राजवीर की खुशी का ठिकाना नहीं रहा उसने तीनों बेटियों को गले से लगा लिया।अब मुझे मेरी बेटियों की चिंता नहीं है।सब अपने पैरों पर खड़ी हो गयी।
कालिंदी बेटा अब तू भी शादी के लिए मान जा कब-तक यूँ अकेली रहेगी। कालिंदी बिना कुछ कहे वहाँ से उठकर चली जाती है और खिड़की में खड़ी होकर गगन की यादों में खो जाती है।
गायत्री की आँखों से आँसू बहने लगे मेरी गलतियों की सजा मेरी बेटी भुगत रही है।
गायत्री के आँखों से आँसू बहने लगे सोचने लगी काश गगन मिल जाता तो उससे माफी माँगकर कालिंदी और गगन की शादी करा देती,पर गगन अपनी ज़िंदगी में आगे बढ़ गया होगा अपना घर बसा चुका होगा।
क्या सोच रही हो माँ..! कुछ नहीं कालिंदी कुछ भी तो नहीं गायत्री आँसू छुपाकर मुस्कुराते हुए बोली।
तो फिर आओ आज़ बहुत खुशी का दिन पार्टी तो बनती है क्यों सही कहा ना नंदा,मुक्ता हाँ दी सही कहा। थोड़ी देर के लिए ही सही  कालिंदी ने माँ का मन दूसरी बातों में उलझा दिया।
एक महिना बीत गया इतवार का दिन... डोरबेल बजती है मैं देखती हूँ माँ कालिंदी दरवाजा खोलती है सामने मुग्धा खड़ी थी।
तू... मेरी जान... कब आई कहाँ है आजकल बिट्टू कैसा है विकास कैसे हैं..? कालिंदी एक साँस में कई सवाल कर देती है। अरे अंदर तो आने दे उसे गायत्री बोली दरवाजे पर ही सारे सवाल करेगी।
हाँ आंटी देखो न मेरी चिंता नहीं विकास कैसे बिट्टू कैसा है मुझे गले लगाना भूल गई। शिकायत भरे लहजे में बोलते हुए मुग्धा गायत्री से गले मिलती है कैसी है बेटा अच्छी हूँ आप कैसी हैं।
मैं भी अच्छी हूँ।
जाओ दोनों कमरे में जाकर बात करो मैं चाय नाश्ता लेकर आती हूँ, जी आंटी मुग्धा कालिंदी के साथ दोनों कमरे में आ जाती हैं। मुग्धा,गगन,कालिंदी तीनों ही बचपन के साथी थे। मुग्धा... बहुत दिनों बाद तुझे देख पुराने दिन याद आ गए ...हम्म मुझे भी।
कालिंदी तूने अपने बारे में क्या सोचा...किस बारे में.. लाइफ में आगे बढ़ने के बारे में..तू मुझसे मिलने आई है या सलाह देने कालिंदी थोड़ा चिढ़ कर बोली।
अररे बाबा नाराज क्यों होती है कब-तक यूँ अकेली रहेगी बता..इतने सालों में गगन मिला तुझे क्या पता वो यहाँ है भी या नहीं।
वो यहीं है मेरे आस-पास मुझे उसका अहसास है बस सामने नहीं आना चाहता...पर यह तेरा वहम भी तो हो सकता है क्या पता वो शादी कर चुका हो मुग्धा बोली।
नहीं उसने वादा किया है मुझसे मेरा इंतजार करेगा कालिंदी ने कहा। तो मिलने तो आता फोन तो करता... मैंने कसम दी थी जब-तक मैं न कहूँ वो मेरे घर पर नहीं आए और फोन भी न‌ करे.. मैं ही उसे फोन करूँगी.. तो किया कभी... नहीं हिम्मत नहीं हुई।
मौसम बहुत सुहाना हो रहा था माँ चाय-नाश्ता रख गई दोनों सहेलियाँ बालकनी में पुरानी बातों में मग्न थी, तभी गगन की कार वहाँ से गुजरी कालिंदी को देखकर गगन ने कार रोकी ही थी कि कालिंदी की उस पर निगाह पड़ी।
आज इसकी खैर नहीं..तू रुक मैं अभी आती हू़ँ..अरे क्या हुआ बता तो सही.. अरे इस कार वाले ने दिमाग खराब कर रखा है जब भी यहाँ से निकलता है कार साइड में लगाकर मेरी खिड़की में देखता है ‌। अभी बैठे देखा फिर कार रोक दी...अरे जाने दे ना यार तू है ही इतनी खूबसूरत कि कोई भी पागल हो जाए।
घूमने चले कालिंदी..कहाँ... वहीं अपनी फेवरेट जगहों पर बहुत दिन बाद तो मिले हैं बिट्टू भी दो साल का हो गया माँ आराम से सँभाल लेगी।
 पहले घूमेंगे, फिर शापिंग मॉल और बाद में डिनर के लिए आज का दिन तेरे नाम।
दोनों घूमने निकल पड़ती हैं फिर जैसे ही शापिंग मॉल के अंदर जाने लगी कि कालिंदी उस कार को भी शापिंग मॉल के पार्किंग एरिया में रुकते देखती है।
 मुग्धा यह तो हमारा पीछा करते हुए यहाँ भी आ गया कौन है यह... क्या चाहता है।
तू अंदर चल कालिंदी में इसको सबक सिखाकर आती हूँ.. मुग्धा गगन की और चल देती है...
कालिंदी को शापिंग मॉल के अंदर जाने के लिए कहकर मुग्धा पार्किंग एरिया में पहुँची तो देखा कार ख़ाली थी और लॉक थी।कहाँ गया अभी तो गाड़ी में ही था... वॉचमैन... सुनो.. जी मैडम जी कहिए...आप बता सकते हो..अभी-अभी इस गाड़ी में जो साहब थे वो किधर गए।
जी मैडम वो क्या खड़े हैं उधर... कौन जो फोन पर बात कर रहे हैं वो.. जी हाँ वही है। ओके थेंक यूँ.. गगन फोन पर बात करने में मगन, मुग्धा की ओर पीठ करके खड़ा था, इसलिए मुग्धा को देख नहीं पाया ना ही मुग्धा गगन को मुग्धा उसकी तरफ़ बढ़ती है।
ऐ मिस्टर सुनिए... मैं आपसे ही बोल रही हूँ...गगन ने बिना देखे ही रुकने का इशारा किया और बात करने में व्यस्त रहा।यह देख मुग्धा को गुस्सा आया वो सीधे गगन के सामने आकर बोली तुम्हारी क्या प्राब्लम है क्यों मेरी सहेली का पीछे लगे हो,और तो और पीछा करते हुए यहाँ..... मुग्धा गगन को पहचानते हुए बोलते-बोलते रुक गई उसकी आँखों में नमी तैरने लगी।
एक मिनट मैं आपसे बाद में बात करता हूँ। गगन कुछ क्षण तक मुग्धा को देखता रह गया। मुग्धा तू.. गगन तुम... फिर दोनों एक-दूसरे के गले लग गए।
 कैसी है.. बढ़िया हूँ देख लो हँसकर मुग्धा ने कहा फिर थोड़ी देर इधर-उधर की बातें करने के बाद,एक बात पूछूँ गगन..हम्म... तुम कालिंदी को छुप-छुपकर क्यों देखते हो सामने आकर बात क्यों नहीं करते।
कालिंदी की कसम रोके है मुझे...गगन नम आँखों से बोला.. बहुत इंतज़ार कर लिया मैंने मुग्धा अब इंतज़ार नहीं होता.. मिलना चाहता हूँ उससे,उसे गले लगाना चाहता हूँ उसने बहुत आसानी से कह दिया था,अपनी दुनिया बसा लो मुझे भूल जाओ.. मेरी तो दुनिया ही वहीं है जहाँ कालिंदी है।
इसी आस में रोज गुजरता हूँ कालिंदी मुझे आवाज़ देकर रोक ले।ओह यह बात है..पर कालिंदी तो अपने गगन का इंतजार कर रही है।
यह गगन तो एकदम अलग है। मैं भी तुम्हें एक बार में पहचान ही नहीं पाई थी,तो फिर कार के आधे खुले ग्लास के पीछे बैठे यह काले चश्मे वाले को कालिंदी कैसे पहचानें भला कि उसे देखने वाला उसका गगन है वो गगन जो सीधा-साधा साधारण कपड़े पहनने वाला साधारण इंसान था।
तुम तो फिल्मी हीरो जैसे बन गए,यह चमत्कार कैसे हुआ.. मुझे जानना है..बताता हूँ बहुत लंबी कहानी है।
गगन कालिंदी से अलग होने से लेकर आज तक की सारी कहानी सुनाता है। मुग्धा की आँखों से आँसू बहने लगे, ऐसा प्यार तो कहानियों में पढ़ा था आजतक आज़ देख भी लिया।
मिलोगे कालिंदी से...? अंदर मेरा इंतजार कर रही है... नहीं जब-तक कालिंदी खुद अपने प्यार का इजहार नहीं करती तब-तक नहीं मुझे मेरी वही कालिंदी चाहिए जो मेरे लिए सब-कुछ छोड़कर भागने वाली थी।
तभी मुग्धा के फोन पर कालिंदी का फोन आता है एक मिनट में आई कालिंदी..... कालिंदी मेरा इंतज़ार कर रही है.. मैं चलती हूँ गगन..अब तुम दोनों को मैं मिलवाऊँगीं मेरा वादा है मुझे अपना नंबर दे देदो अब मैं इस शहर से तभी जाऊँगी जब मेरे दोनों बेस्ट फ्रेंड एक हो जाएंगे बाय गगन जल्दी मुलाकात होगी... मुग्धा शापिंग मॉल के अंदर चली गई।
मुग्धा गगन से मिलकर कालिंदी के पास चली जाती है। गगन वापस अपने घर आज बहुत सुकून महसूस कर रहा था गगन कोई तो है जिसने उसके दिल का दर्द समझा।
कहाँ रह गई थी... कौन था वो... इतनी देर क्यों लगी आने में.. अरे अरे रुक तो सही साँस तो लेने दे।
कोई नहीं था जब पार्किंग एरिया में पहुँची तो वो कार में नहीं था वॉचमैन से पूछा उसने जिधर बोला उधर देखने गई वहाँ कोई नहीं था,वापस आई तो कार भी नहीं थी उसे शायद पता चल गया कि हमें उस पर शक हो गया है।
अच्छा है खुद ही चला गया...चल शापिंग करते हैं मुग्धा मन ही मन माफ़ करना कालिंदी मैंने तुझसे झूठ बोला सच बताती तो पता नहीं तू कैसे रिएक्ट करती।जब तू खुद गगन से मिलने के लिए बेताब होगी तब वह तेरे सामने होगा मेरा वादा है खुद से और गगन से।
रात के नौ बजे थे मुग्धा अपने पापा की गाड़ी से कालिंदी को घर छोड़कर अपने घर के लिए निकल जाती है।घर पर माँ उसका इंतज़ार कर रही थी बिट्टू सो गया था।
माँ बिट्टू ने परेशान तो नहीं किया.. परेशान तो नहीं किया पर बार-बार तुझे पूछ रहा था। मुग्धा ने प्यार से बिट्टू का माथा चूमा और माँ के साथ बैठक में आ गई।
माँ कॉफी पीने का मन कर रहा है आप पियोगी....हाँ बना ले गायत्री बहन कैसी हैं अब सब ठीक है।
सब ठीक है नंदा,मुक्ता भी नौकरी करने लगी हैं अंकल भी पूरी तरह स्वस्थ हो गए हैं।
जानकर खुशी हुई और कालिंदी....उसकी शादी के बारे में करता सोचा उन्होंने... मुग्धा कॉफी लेकर आ जाती है।माँ कालिंदी,गगन के अलावा किसी और से शादी नहीं करना चाहती।
ऐसे कब तक बैठी रहेगी कालिंदी तूने समझाया नहीं आखिर छोटी बहनों की शादी भी तो करनी है गायत्री जी को।गगन  शादी कर चुका होगा नहीं तो क्या लौटकर नहीं आता ।
नहीं माँ गगन ने भी शादी नहीं की वो मजबूर है नहीं तो अब-तक लौट आता कालिंदी ने कसम जो दे रखी है।
तुझे कैसे पता यह सब... तू मिली उससे... हाँ आज... फिर मुग्धा ने माँ को सारा सच बता दिया।
तो क्या सोचा इस बारे में कैसे मिलाएगी.... पता नहीं माँ सब सिर के ऊपर से जा रहा है पर कुछ न कुछ तो करना पड़ेगा दोनों ही मेरे बेस्ट फ्रेंड है।
मैं सोने जा रही हूँ रात बहुत हो गई अभी सो जाओ कल बात करेंगे इस बारे में..हम्म ठीक है माँ..तभी मुग्धा के मोबाइल पर विकास का फोन आता है।
किसका फोन है... विकास का माँ...आप जाओ मैं बात करके आती हूँ.. हैलो.. हैलो..क्या हैलो.. डियर सूखा-सुखा हैलो माँ के घर जाकर पतिदेव को भूल गई।
नहीं नहीं ऐसी बात नहीं है मैं खुद इस समय बहुत कमी महसूस कर रही हूँ तुम्हारी..क्यों क्या हुआ बिट्टू तो ठीक है माँ-पापा..? वो सब ठीक वो मेरी सहेली कालिंदी..हाँ क्या हुआ उसे..बताती हूँ सुनो...सारी बात जानकर ओह यह बात है फिर क्या सोचा कैसे मिलवाओगी।
पता नहीं कुछ आइडिया ही नहीं मिल रहा.. अभी सो जाओ सुबह सोचना शांति से और मैडम जी कालिंदी के प्रेम में पति का जन्मदिन याद है या भूल गई परसों आ रही हो न वापस या मुझे अकेले जन्मदिन मनाना पड़ेगा।
मिल गया आइडिया....यह पहले दिमाग में क्यों नहीं आया..ग्रेट मुग्धा तू ग्रेट है.. मैडम अकेले ही खुश होती रहोगी या हमें कुछ बताओगी.. क्या आइडिया मिला..? तुम्हारा जन्मदिन हाँ तुम्हारे जन्मदिन पर हम मिलवाएंगे दोनों को तुम दोगे न मेरा साथ.. हम जन्मदिन की पार्टी माँ के यहाँ रखें और.... वाह आइडिया तो अच्छा है मैं तैयार हूँ अच्छा अभी सो जाओ।
सुबह-सवेरे माँ...!आज विकास आने वाले हैं.. रात को मैंने उन्हें सारी बातें बताई..कल जन्मदिन है उनका और मैंने विकास ने यह तय किया है कि....ओह वाह क्या बात है बहुत बढ़िया सोचा तो देर किस बात की शुरू कर दे तैयारी।
बस माँ नंदा और मुक्ता आ जाएँ हमारी फैमिली, कालिंदी की फैमिली और गगन की फैमिली के सदस्य रहेंगे और कोई नहीं होगा।
एक मिनट मुग्धा गगन की फैमिली पर वो तो अकेला था ना... फिर यह फैमिली..? अरे माँ फिर गगन ने जो कुछ बताया मुग्धा माँ को बताती है।
गगन है ही इतना नेकदिल गायत्री जी समय पर उसे समझ नहीं पाईं। थोड़ी देर में नंदा और मुक्ता आ जाते हैं जन्मदिन की तैयारी मैं जुट जाते हैं सारी तैयारियाँ करने के बाद।
अच्छा दी..अब चलते हैं कल सुबह जल्दी आकर पूरी सजावट करते हैं।बाय दी..बाय आंटी.. नंदा सुनो कालिंदी को कुछ मत कहना मुग्धा ने पीछे से आवाज देकर कहा।
आज सुबह से ही चहल-पहल थी कालिंदी भी मदद के लिए आ गई थी। पार्टी की तैयारियाँ हो चुकी विकास भी आ गया था हँसी-मजाक के दौर चल रहा था।
दिन निकल गया विकास की फैमिली भी आ गई थी। कालिंदी के माता-पिता भी आ गए थे। गगन भी कीर्ति जी और गौरव जी के साथ आया पर कालिंदी,गगन को न देख पाए इसलिए पास के रूम में उसे रुकने को कहा।
कालिंदी हल्के पिंक कलर का सूट पहने खुले बालों में बेहद खूबसूरत लग रही थी।पर चेहरे पर हल्की-सी उदासी की झलक भी स्पष्ट दिखाई दे रही थी। आज़ कालिंदी को बहुत बेचैनी महसूस हो रही थी वो खिड़की में आकर खड़ी हो जाती है।
मुग्धा आती है क्या हुआ कालिंदी यहाँ क्यों खड़ी चल केक काटने का समय हो गया सब आ गए।
सॉरी मुग्धा पर न जाने क्यों मुझे गगन का एहसास हो रहा है जैसे वो यहीं कहीं है.. मेरे करीब..बस सामने नहीं आ रहा..यह तेरा वहम है ऐसा कुछ नहीं चल विकास इंतज़ार कर रहे हैं।
केक कटने के बाद सब विकास को शुभकामनाएँ देते हैं पर कालिंदी अपने में ही खोई गुमसुम-सी बैठी थी।क्या
हुआ साली साहिबा.. नाराज़ हैं क्या मुझसे आपने तो मुझे जन्मदिन की शुभकामनाएँ भी नहीं दी।
कालिंदी चौंक कर वो माफ़ करना मेरा ध्यान... बहुत बहुत शुभकामनाएँ जीजू..अब शुभकामनाओं से काम नहीं चलेगा आपको कोई गीत गाना पड़ेगा आपकी यही सजा है।
मैं... गीत नहीं-नहीं.. मुझे नहीं आता मुग्धा बोलो.. मुग्धा ने ही बताया तुम बहुत अच्छा गाती हो।सब गाने के लिए जोर देने लगते हैं।
कालिंदी बहुत बेचैन हो रही थी गगन के लिए उसे गगन के अपने करीब होने का एहसास हो रहा था।
लाइट्स ऑफ हो जाती हैं सिर्फ एक गोल लाइट कालिंदी के ऊपर थी मुग्धा गगन को लेकर आ जाती है कालिंदी अंधेरे के कारण उसे देख नहीं पाती।गाना शुरू होता है.…

क्यों होता है मुझे बार-बार
तू पास है मेरे यह एहसास
ख्यालों में तेरे डूबी रहती हूँ
हर पल तुझे ही खोजती हूँ
ख़ामोशियाँ यह कहती बार-बार
तू दूर नहीं यहीं है मेरे पास
तेरी बातें तेरी यादें
तेरी नजदीकियों का एहसास
आजा आजा बस एक बार एक बार
देख लूँ तुझे जी भरकर एक बार
मेरी हर कसम से तू आजाद
आजा.. कालिंदी बीच में ही रुक जाती है उसका दर्द आँसुओं में बहने लगता है तभी...
तेरी आँखों में आँसू
मुझे अच्छे नहीं लगते... गगन यह तो गगन की आवाज़ है कालिंदी चौंक कर इधर-उधर देखने लगती पर अंधेरे में कुछ नहीं दिखाई देता बस गाने की आवाज़ आती है।

तेरी आँखों में आँसू
मुझे अच्छे नहीं लगते
तू जो हँसती है तो
फूल चमन में खिलते हैं
तेरे होने से मैं, मेरे होने से तू
दो जिस्म एक जान है हम
तू इस दिल की धड़कन है
अब तो मान लें बस एक बार
कहदो,कहदो बस एक बार
करती हो मुझसे अब भी प्यार..…
गगन कालिंदी के समीप जाकर घुटने के बल बैठ कर पूछता है "विल यू मैरी मी"लाइट्स ऑन हो जाती है कालिंदी एकटक गगन को देखती रह जाती है।
बोलो न कालिंदी... मुझसे शादी करोगी... कालिंदी चुप रहती है वो तो बस गगन को ही देखे जा रही थी। तभी चुलबुली नंदा पास आकर बोली दीदी हाँ कर दो वरना मैं अपना हाथ आगे कर दूँगी।
कालिंदी ने शरमाकर हाथ आगे बढ़ा दिया गगन ने रिंग पहना दी।सब तालियाँ बजाने लगे कालिंदी और गगन ने सभी बड़ों का आशीर्वाद लिया। कालिंदी मुग्धा के गले लग जाती है।थेंक यू मुग्धा मुझे मेरी ज़िंदगी से मिलाने के लिए।
गायत्री ने दोनों बच्चों को जी भर कर आशीर्वाद दिया शुभ मुहूर्त में दोनों की शादी हो गई कालिंदी गगन की दुल्हन बनकर कीर्ति और गौरव के साथ उनके घर में रहने लगी।
***अनुराधा चौहान***स्वरचित

Monday, July 8, 2019

कालिंदी अंतिम भाग

मुग्धा गगन से मिलकर कालिंदी के पास चली जाती है। गगन वापस अपने घर आज बहुत सुकून महसूस कर रहा था गगन कोई तो है जिसने उसके दिल का दर्द समझा।
कहाँ रह गई थी... कौन था वो... इतनी देर क्यों लगी आने में.. अरे अरे रुक तो सही साँस तो लेने दे।
कोई नहीं था जब पार्किंग एरिया में पहुँची तो वो कार में नहीं था वॉचमैन से पूछा उसने जिधर बोला उधर देखने गई वहाँ कोई नहीं था,वापस आई तो कार भी नहीं थी उसे शायद पता चल गया कि हमें उस पर शक हो गया है।
अच्छा है खुद ही चला गया...चल शापिंग करते हैं मुग्धा मन ही मन माफ़ करना कालिंदी मैंने तुझसे झूठ बोला सच बताती तो पता नहीं तू कैसे रिएक्ट करती।जब तू खुद गगन से मिलने के लिए बेताब होगी तब वह तेरे सामने होगा मेरा वादा है खुद से और गगन से।
रात के नौ बजे थे मुग्धा अपने पापा की गाड़ी से कालिंदी को घर छोड़कर अपने घर के लिए निकल जाती है।घर पर माँ उसका इंतज़ार कर रही थी बिट्टू सो गया था।
माँ बिट्टू ने परेशान तो नहीं किया.. परेशान तो नहीं किया पर बार-बार तुझे पूछ रहा था। मुग्धा ने प्यार से बिट्टू का माथा चूमा और माँ के साथ बैठक में आ गई।
माँ कॉफी पीने का मन कर रहा है आप पियोगी....हाँ बना ले गायत्री बहन कैसी हैं अब सब ठीक है।
सब ठीक है नंदा,मुक्ता भी नौकरी करने लगी हैं अंकल भी पूरी तरह स्वस्थ हो गए हैं।
जानकर खुशी हुई और कालिंदी....उसकी शादी के बारे में करता सोचा उन्होंने... मुग्धा कॉफी लेकर आ जाती है।माँ कालिंदी,गगन के अलावा किसी और से शादी नहीं करना चाहती।
ऐसे कब तक बैठी रहेगी कालिंदी तूने समझाया नहीं आखिर छोटी बहनों की शादी भी तो करनी है गायत्री जी को।गगन  शादी कर चुका होगा नहीं तो क्या लौटकर नहीं आता ।
नहीं माँ गगन ने भी शादी नहीं की वो मजबूर है नहीं तो अब-तक लौट आता कालिंदी ने कसम जो दे रखी है।
तुझे कैसे पता यह सब... तू मिली उससे... हाँ आज... फिर मुग्धा ने माँ को सारा सच बता दिया।
तो क्या सोचा इस बारे में कैसे मिलाएगी.... पता नहीं माँ सब सिर के ऊपर से जा रहा है पर कुछ न कुछ तो करना पड़ेगा दोनों ही मेरे बेस्ट फ्रेंड है।
मैं सोने जा रही हूँ रात बहुत हो गई अभी सो जाओ कल बात करेंगे इस बारे में..हम्म ठीक है माँ..तभी मुग्धा के मोबाइल पर विकास का फोन आता है।
किसका फोन है... विकास का माँ...आप जाओ मैं बात करके आती हूँ.. हैलो.. हैलो..क्या हैलो.. डियर सूखा-सुखा हैलो माँ के घर जाकर पतिदेव को भूल गई।
नहीं नहीं ऐसी बात नहीं है मैं खुद इस समय बहुत कमी महसूस कर रही हूँ तुम्हारी..क्यों क्या हुआ बिट्टू तो ठीक है माँ-पापा..? वो सब ठीक वो मेरी सहेली कालिंदी..हाँ क्या हुआ उसे..बताती हूँ सुनो...सारी बात जानकर ओह यह बात है फिर क्या सोचा कैसे मिलवाओगी।
पता नहीं कुछ आइडिया ही नहीं मिल रहा.. अभी सो जाओ सुबह सोचना शांति से और मैडम जी कालिंदी के प्रेम में पति का जन्मदिन याद है या भूल गई परसों आ रही हो न वापस या मुझे अकेले जन्मदिन मनाना पड़ेगा।
मिल गया आइडिया....यह पहले दिमाग में क्यों नहीं आया..ग्रेट मुग्धा तू ग्रेट है.. मैडम अकेले ही खुश होती रहोगी या हमें कुछ बताओगी.. क्या आइडिया मिला..? तुम्हारा जन्मदिन हाँ तुम्हारे जन्मदिन पर हम मिलवाएंगे दोनों को तुम दोगे न मेरा साथ.. हम जन्मदिन की पार्टी माँ के यहाँ रखें और.... वाह आइडिया तो अच्छा है मैं तैयार हूँ अच्छा अभी सो जाओ।
सुबह-सवेरे माँ...!आज विकास आने वाले हैं.. रात को मैंने उन्हें सारी बातें बताई..कल जन्मदिन है उनका और मैंने विकास ने यह तय किया है कि....ओह वाह क्या बात है बहुत बढ़िया सोचा तो देर किस बात की शुरू कर दे तैयारी।
बस माँ नंदा और मुक्ता आ जाएँ हमारी फैमिली, कालिंदी की फैमिली और गगन की फैमिली के सदस्य रहेंगे और कोई नहीं होगा।
एक मिनट मुग्धा गगन की फैमिली पर वो तो अकेला था ना... फिर यह फैमिली..? अरे माँ फिर गगन ने जो कुछ बताया मुग्धा माँ को बताती है।
गगन है ही इतना नेकदिल गायत्री जी समय पर उसे समझ नहीं पाईं। थोड़ी देर में नंदा और मुक्ता आ जाते हैं जन्मदिन की तैयारी मैं जुट जाते हैं सारी तैयारियाँ करने के बाद।
अच्छा दी..अब चलते हैं कल सुबह जल्दी आकर पूरी सजावट करते हैं।बाय दी..बाय आंटी.. नंदा सुनो कालिंदी को कुछ मत कहना मुग्धा ने पीछे से आवाज देकर कहा।
आज सुबह से ही चहल-पहल थी कालिंदी भी मदद के लिए आ गई थी। पार्टी की तैयारियाँ हो चुकी विकास भी आ गया था हँसी-मजाक के दौर चल रहा था।
दिन निकल गया विकास की फैमिली भी आ गई थी। कालिंदी के माता-पिता भी आ गए थे। गगन भी कीर्ति जी और गौरव जी के साथ आया पर कालिंदी,गगन को न देख पाए इसलिए पास के रूम में उसे रुकने को कहा।
कालिंदी हल्के पिंक कलर का सूट पहने खुले बालों में बेहद खूबसूरत लग रही थी।पर चेहरे पर हल्की-सी उदासी की झलक भी स्पष्ट दिखाई दे रही थी। आज़ कालिंदी को बहुत बेचैनी महसूस हो रही थी वो खिड़की में आकर खड़ी हो जाती है।
मुग्धा आती है क्या हुआ कालिंदी यहाँ क्यों खड़ी चल केक काटने का समय हो गया सब आ गए।
सॉरी मुग्धा पर न जाने क्यों मुझे गगन का एहसास हो रहा है जैसे वो यहीं कहीं है.. मेरे करीब..बस सामने नहीं आ रहा..यह तेरा वहम है ऐसा कुछ नहीं चल विकास इंतज़ार कर रहे हैं।
केक कटने के बाद सब विकास को शुभकामनाएँ देते हैं पर कालिंदी अपने में ही खोई गुमसुम-सी बैठी थी।क्या
हुआ साली साहिबा.. नाराज़ हैं क्या मुझसे आपने तो मुझे जन्मदिन की शुभकामनाएँ भी नहीं दी।
कालिंदी चौंक कर वो माफ़ करना मेरा ध्यान... बहुत बहुत शुभकामनाएँ जीजू..अब शुभकामनाओं से काम नहीं चलेगा आपको कोई गीत गाना पड़ेगा आपकी यही सजा है।
मैं... गीत नहीं-नहीं.. मुझे नहीं आता मुग्धा बोलो.. मुग्धा ने ही बताया तुम बहुत अच्छा गाती हो।सब गाने के लिए जोर देने लगते हैं।
कालिंदी बहुत बेचैन हो रही थी गगन के लिए उसे गगन के अपने करीब होने का एहसास हो रहा था।
लाइट्स ऑफ हो जाती हैं सिर्फ एक गोल लाइट कालिंदी के ऊपर थी मुग्धा गगन को लेकर आ जाती है कालिंदी अंधेरे के कारण उसे देख नहीं पाती।गाना शुरू होता है.…

क्यों होता है मुझे बार-बार
तू पास है मेरे यह एहसास
ख्यालों में तेरे डूबी रहती हूँ
हर पल तुझे ही खोजती हूँ
ख़ामोशियाँ यह कहती बार-बार
तू दूर नहीं यहीं है मेरे पास
तेरी बातें तेरी यादें
तेरी नजदीकियों का एहसास
आजा आजा बस एक बार एक बार
देख लूँ तुझे जी भरकर एक बार
मेरी हर कसम से तू आजाद
आजा.. कालिंदी बीच में ही रुक जाती है उसका दर्द आँसुओं में बहने लगता है तभी...
तेरी आँखों में आँसू
मुझे अच्छे नहीं लगते... गगन यह तो गगन की आवाज़ है कालिंदी चौंक कर इधर-उधर देखने लगती पर अंधेरे में कुछ नहीं दिखाई देता बस गाने की आवाज़ आती है।

तेरी आँखों में आँसू
मुझे अच्छे नहीं लगते
तू जो हँसती है तो
फूल चमन में खिलते हैं
तेरे होने से मैं, मेरे होने से तू
दो जिस्म एक जान है हम
तू इस दिल की धड़कन है
अब तो मान लें बस एक बार
कहदो,कहदो बस एक बार
करती हो मुझसे अब भी प्यार..…
गगन कालिंदी के समीप जाकर घुटने के बल बैठ कर पूछता है "विल यू मैरी मी"लाइट्स ऑन हो जाती है कालिंदी एकटक गगन को देखती रह जाती है।
बोलो न कालिंदी... मुझसे शादी करोगी... कालिंदी चुप रहती है वो तो बस गगन को ही देखे जा रही थी। तभी चुलबुली नंदा पास आकर बोली दीदी हाँ कर दो वरना मैं अपना हाथ आगे कर दूँगी।
कालिंदी ने शरमाकर हाथ आगे बढ़ा दिया गगन ने रिंग पहना दी।सब तालियाँ बजाने लगे कालिंदी और गगन ने सभी बड़ों का आशीर्वाद लिया। कालिंदी मुग्धा के गले लग जाती है।थेंक यू मुग्धा मुझे मेरी ज़िंदगी से मिलाने के लिए।
गायत्री ने दोनों बच्चों को जी भर कर आशीर्वाद दिया शुभ मुहूर्त में दोनों की शादी हो गई कालिंदी गगन की दुल्हन बनकर कीर्ति और गौरव के साथ उनके घर में रहने लगी।
***अनुराधा चौहान***स्वरचित


Sunday, July 7, 2019

कालिंदी भाग (8)

कालिंदी को शापिंग मॉल के अंदर जाने के लिए कहकर मुग्धा पार्किंग एरिया में पहुँची तो देखा कार ख़ाली थी और लॉक थी।कहाँ गया अभी तो गाड़ी में ही था... वॉचमैन... सुनो.. जी मैडम जी कहिए...आप बता सकते हो..अभी-अभी इस गाड़ी में जो साहब थे वो किधर गए।
जी मैडम वो क्या खड़े हैं उधर... कौन जो फोन पर बात कर रहे हैं वो.. जी हाँ वही है। ओके थेंक यूँ.. गगन फोन पर बात करने में मगन, मुग्धा की ओर पीठ करके खड़ा था, इसलिए मुग्धा को देख नहीं पाया ना ही मुग्धा गगन को मुग्धा उसकी तरफ़ बढ़ती है।
ऐ मिस्टर सुनिए... मैं आपसे ही बोल रही हूँ...गगन ने बिना देखे ही रुकने का इशारा किया और बात करने में व्यस्त रहा।यह देख मुग्धा को गुस्सा आया वो सीधे गगन के सामने आकर बोली तुम्हारी क्या प्राब्लम है क्यों मेरी सहेली का पीछे लगे हो,और तो और पीछा करते हुए यहाँ..... मुग्धा गगन को पहचानते हुए बोलते-बोलते रुक गई उसकी आँखों में नमी तैरने लगी।
एक मिनट मैं आपसे बाद में बात करता हूँ। गगन कुछ क्षण तक मुग्धा को देखता रह गया। मुग्धा तू.. गगन तुम... फिर दोनों एक-दूसरे के गले लग गए। कैसी है.. बढ़िया हूँ देख लो हँसकर मुग्धा ने कहा फिर थोड़ी देर इधर-उधर की बातें करने के बाद,एक बात पूछूँ गगन..हम्म... तुम कालिंदी को छुप-छुपकर क्यों देखते हो सामने आकर बात क्यों नहीं करते।
कालिंदी की कसम रोके है मुझे...गगन नम आँखों से बोला.. बहुत इंतज़ार कर लिया मैंने मुग्धा अब इंतज़ार नहीं होता.. मिलना चाहता हूँ उससे,उसे गले लगाना चाहता हूँ उसने बहुत आसानी से कह दिया था,अपनी दुनिया बसा लो मुझे भूल जाओ.. मेरी तो दुनिया ही वहीं है जहाँ कालिंदी है।
इसी आस में रोज गुजरता हूँ कालिंदी मुझे आवाज़ देकर रोक ले।ओह यह बात है..पर कालिंदी तो अपने गगन का इंतजार कर रही है।
यह गगन तो एकदम अलग है। मैं भी तुम्हें एक बार में पहचान ही नहीं पाई थी,तो फिर कार के आधे खुले ग्लास के पीछे बैठे यह काले चश्मे वाले को कालिंदी कैसे पहचानें भला कि उसे देखने वाला उसका गगन है वो गगन जो सीधा-साधा साधारण कपड़े पहनने वाला साधारण इंसान था।
तुम तो फिल्मी हीरो जैसे बन गए,यह चमत्कार कैसे हुआ.. मुझे जानना है..बताता हूँ बहुत लंबी कहानी है।गगन कालिंदी से अलग होने से लेकर आज तक की सारी कहानी सुनाता है। मुग्धा की आँखों से आँसू बहने लगे, ऐसा प्यार तो कहानियों में पढ़ा था आजतक आज़ देख भी लिया।
मिलोगे कालिंदी से...? अंदर मेरा इंतजार कर रही है... नहीं जब-तक कालिंदी खुद अपने प्यार का इजहार नहीं करती तब-तक नहीं मुझे मेरी वही कालिंदी चाहिए जो मेरे लिए सब-कुछ छोड़कर भागने वाली थी।
तभी मुग्धा के फोन पर कालिंदी का फोन आता है एक मिनट में आई कालिंदी..... कालिंदी मेरा इंतज़ार कर रही है.. मैं चलती हूँ गगन..अब तुम दोनों को मैं मिलवाऊँगीं मेरा वादा है मुझे अपना नंबर दे देदो अब मैं इस शहर से तभी जाऊँगी जब मेरे दोनों बेस्ट फ्रेंड एक हो जाएंगे बाय गगन जल्दी मुलाकात होगी... मुग्धा शापिंग मॉल के अंदर चली गई।.... क्रमशः
***अनुराधा चौहान***

कालिंदी भाग (7)


गायत्री के आँखों से आँसू बहने लगे सोचने लगी काश गगन मिल जाता तो उससे माफी माँगकर कालिंदी और गगन की शादी करा देती,पर गगन अपनी ज़िंदगी में आगे बढ़ गया होगा अपना घर बसा चुका होगा।
क्या सोच रही हो माँ..! कुछ नहीं कालिंदी कुछ भी तो नहीं गायत्री आँसू छुपाकर मुस्कुराते हुए बोली।तो फिर आओ आज़ बहुत खुशी का दिन पार्टी तो बनती है क्यों सही कहा ना नंदा,मुक्ता हाँ दी सही कहा। थोड़ी देर के लिए ही सही  कालिंदी ने माँ का मन दूसरी बातों में उलझा दिया।
एक महिना बीत गया इतवार का दिन... डोरबेल बजती है मैं देखती हूँ माँ कालिंदी दरवाजा खोलती है सामने मुग्धा खड़ी थी।तू.. मेरी जान... कब आई कहाँ है आजकल बिट्टू कैसा है विकास कैसे हैं..? कालिंदी एक साँस में कई सवाल कर देती है। अरे अंदर तो आने दे उसे गायत्री बोली दरवाजे पर ही सारे सवाल करेगी।
हाँ आंटी देखो न मेरी चिंता नहीं विकास कैसे बिट्टू कैसा है मुझे गले लगाना भूल गई। शिकायत भरे लहजे में बोलते हुए मुग्धा गायत्री से गले मिलती है कैसी है बेटा अच्छी हूँ आप कैसी हैं।
मैं भी अच्छी हूँ।
जाओ दोनों कमरे में जाकर बात करो मैं चाय नाश्ता लेकर आती हूँ, जी आंटी मुग्धा कालिंदी के साथ दोनों कमरे में आ जाती हैं। मुग्धा,गगन,कालिंदी तीनों ही बचपन के साथी थे। मुग्धा... बहुत दिनों बाद तुझे देख पुराने दिन याद आ गए ...हम्म मुझे भी।
कालिंदी तूने अपने बारे में क्या सोचा...किस बारे में.. लाइफ में आगे बढ़ने के बारे में..तू मुझसे मिलने आई है या सलाह देने कालिंदी थोड़ा चिढ़ कर बोली।अररे बाबा नाराज क्यों होती है कब-तक यूँ अकेली रहेगी बता..इतने सालों में गगन मिला तुझे क्या पता वो यहाँ है भी या नहीं।
वो यहीं है मेरे आस-पास मुझे उसका अहसास है बस सामने नहीं आना चाहता...पर यह तेरा वहम भी तो हो सकता है क्या पता वो शादी कर चुका हो मुग्धा बोली। नहीं उसने वादा किया है मुझसे मेरा इंतजार करेगा कालिंदी ने कहा। तो मिलने तो आता फोन तो करता... मैंने कसम दी थी जब-तक मैं न कहूँ वो मेरे घर पर नहीं आए और फोन भी न‌ करे.. मैं ही उसे फोन करूँगी.. तो किया कभी... नहीं हिम्मत नहीं हुई।
मौसम बहुत सुहाना हो रहा था माँ चाय-नाश्ता रख गई दोनों सहेलियाँ बालकनी में पुरानी बातों में मग्न थी, तभी गगन की कार वहाँ से गुजरी कालिंदी को देखकर गगन ने कार रोकी ही थी कि कालिंदी की उस पर निगाह पड़ी।
आज इसकी खैर नहीं..तू रुक मैं अभी आती हू़ँ..अरे क्या हुआ बता तो सही.. अरे इस कार वाले ने दिमाग खराब कर रखा है जब भी यहाँ से निकलता है कार साइड में लगाकर मेरी खिड़की में देखता है ‌। अभी बैठे देखा फिर कार रोक दी...अरे जाने दे ना यार तू है ही इतनी खूबसूरत कि कोई भी पागल हो जाए।
घूमने चले कालिंदी..कहाँ... वहीं अपनी फेवरेट जगहों पर बहुत दिन बाद तो मिले हैं बिट्टू भी दो साल का हो गया माँ आराम से सँभाल लेगी। पहले घूमेंगे, फिर शापिंग मॉल और बाद में डिनर के लिए आज का दिन तेरे नाम।
दोनों घूमने निकल पड़ती हैं फिर जैसे ही शापिंग मॉल के अंदर जाने लगी कि कालिंदी उस कार को भी शापिंग मॉल के पार्किंग एरिया में रुकते देखती है। मुग्धा यह तो हमारा पीछा करते हुए यहाँ भी आ गया कौन है यह... क्या चाहता है।
तू अंदर चल कालिंदी में इसको सबक सिखाकर आती हूँ.. मुग्धा गगन की और चल देती है...क्रमशः...
***अनुराधा चौहान***


Friday, July 5, 2019

कालिंदी भाग (6)

कालिंदी अपनी बहनों के इंतज़ार में खिड़की में खड़ी इस बात से अनजान कि दो आँखें उसे देख रही थी।यह गगन ही था जो उसके घर से कुछ दूर कार में बैठा हुआ था।आँखों पर काला चश्मा,ग्रे कलर का सूट फ्रेंच कट दाढ़ी गगन किसी हीरो से कम नहीं दिख रहा था पुराने गगन से बिल्कुल अलग कालिंदी भी एक नज़र में धोखा खा जाए।
गगन कुछ देर तक कालिंदी को देखता रहा कालिंदी को भी कुछ अहसास हुआ कि कार में बैठा शख्स उसे ही देख रहा है तो वह घर के अंदर आ गई कालिंदी को क्या पता कि गाड़ी के अंदर गगन हो सकता है।
कौन था वो जो इस तरह कार खड़ी करके मुझे देख रहा था
कालिंदी सोच में पड़ गयी।
उधर गगन भी कालिंदी के अंदर जाते ही वहाँ से चला जाता है। नौकरी चली जाने के बाद गगन नौकरी के लिए कई इंटरव्यू दे चुका था पर कहीं भी नौकरी नहीं लग पा रही थी माँ-बाप तो थे नहीं अकेला रहता था और टयुशन का ही सहारा था।
एक दिन एक ऐसी घटना घटी जिसने गगन की ज़िंदगी ही बदल कर रख दी।
गगन के.जी.कंपनी में इंटरव्यू के लिए जा रहा था। हाइवे पर खड़ा टेक्सी का इंतज़ार कर रहा था तभी एक बेकाबू कार ने सिग्नल तोड़ते हुए एक कार को टक्कर मारी तेजी से निकल गई।
कार में सवार दंपती बुरी तरह घायल हो गए थे भीड़ सेल्फी लेने में मगन थी।गगन तुरंत उन लोगों को लेकर हॉस्पिटल भागा दोनों की हालत गंभीर थी ऑपरेशन होना था बिना पैसे डॉक्टर इलाज को तैयार नहीं थे।
गगन ने जितने पैसे उसके पास थे वो डॉक्टर को दिए,बोला आप ऑपरेशन शुरू कीजिए तब-तक वह और पैसे लेकर आता है। गगन ने अपनी माँ के जेवर गिरवी रख पैसे जमा किए। ऑपरेशन खत्म हो चुका था गगन उन लोगो के होश में आने का इंतजार कर रहा था।
मिस्टर गगन उन दोनों को होश आ गया आप उन से मिल सकते डॉक्टर ने गगन से कहा। तुरंत गगन उन लोगों से मिला और उनका सामान पर्स और मोबाइल उन्हें सौंप दिया।
कैसे हैं आप लोग माफ़ कीजिए आपके घरवालों को खबर नहीं कर पाया आपके मोबाइल टूट गए थे।
आपका बहुत बहुत धन्यवाद बेटा... मैं कीर्ति.. यह गौरव हैं मेरे पति हम लोग अकेले रहते हैं हमारा कोई रिश्तेदार नहीं। आपका नाम..? जी मैं गगन..गगन अग्रवाल!! आप ने हमारी जान बचाई उसके लिए आपका बहुत बहुत धन्यवाद गगन जी। सबसे पहले तो आप मुझे गगन कहिए जी मत लगाइए आप बहुत बड़ी हैं मुझसे और धन्यवाद की कोई जरूरत नहीं हर जिम्मेदार नागरिक का फर्ज होता है मुसीबत में फंसे लोगों की मदद करे।
बहुत अच्छे विचार हैं तुम्हारे क्या करते हो जी फिलहाल तो बेरोजगार हूँ नौकरी तलाश रहा हूँ। आज़ सुबह इंटरव्यू के लिए जा रहा था तो आपको घायल देख यहाँ ले आया। तभी डॉक्टर आते हैं अभी कैसा लग रहा है।आप लोगों की किस्मत अच्छी थी जो मिस्टर गगन आप लोगों को वक़्त पर अस्पताल ले आए और आपके ऑपरेशन का पूरा खर्च उठाया।
डॉक्टर के जाने के बाद गगन मेरे पर्स में मेरा एटीएम कार्ड है जरा निकाल दो।यह लीजिए गगन कार्ड निकाल कर देता है। सुनो बेटा गौरव ने गगन को कार्ड देते हुए कहा मेरा पासवर्ड लिखो और जितना पैसा तुम्हारा खर्च हुआ है वह निकाल कर ले आओ।
यह आप क्या कह रहे हैं और ऐसे कैसे आप मुझे पासवर्ड बता सकते हैं आप तो मुझे जानते नहीं फिर मुझ पर भरोसा कैसे कर सकते हैं। गौरव बोले तुम हमें जानते थे क्या बेटा फिर भी तुमने अपने पैसे खर्च किए ना। तो फिर हम...बस कीजिए आप दोनों वरना मैं यहाँ से चला जाऊँगा।
कीर्ति और गौरव के.जी.कंपनी के मालिक थे आज हॉस्पिटल से डिस्चार्ज होने के बाद गगन उन्हें उनके घर छोड़ने आता है तो उनका आलीशान बंगला देखकर दंग रह जाता है। अंदर बैठक में एक चौदह, पंद्रह वर्ष के लड़के की बड़ी-सी तस्वीर लगी थी जिस पर हार टंगा हुआ था।
तस्वीर देख गगन ठिठक कर रुक गया यह...मेरा बेटा नियति ने हमसे छीन लिया आज तुम्हारे जैसा ही होता।ओह माफ करना मैंने आप लोगों को दुखी कर दिया.. अच्छा मैं चलता हूँ।
गगन वापस जाने के लिए मुड़ा ही था गौरव ने आवाज़ दी रुको..गगन। कल आकर मुझसे मिलना यह मेरी कम्पनी का कार्ड है.. गगन कार्ड देखते ही अरे.  इसी कंपनी में तो इंटरव्यू के लिए...आप.....मैं इसका मालिक हूँ के.जी यानि कीर्ति और गौरव। और इस घटना से गगन की ज़िंदगी बदलने लगी।
आज कंपनी का एमडी बन चुका है गगन के सब-कुछ है बस कालिंदी को छोड़कर गगन इन पाँच सालों में कालिंदी से मिला नहीं पर फिर भी उसकी पल-पल की खबर रखता था। कभी कालिंदी किसी मुश्किल में दिखाई देती तो किसी न किसी रूप में उसके पास मदद भेजता रहता था।
आज भी कॉलेज की तरफ से के.जी. कंपनी में नंदा और मुक्ता इंटरव्यू के लिए गयी हैं वो सब गगन की ही रची योजना थी कितना सच्ची और पाक मोहब्बत है गगन की.. इधर कालिंदी भी मन ही मन गगन की यादों में टूटती-बिखरती है पर सबके सामने अपने जज़्बातों को छुपा लेती है।
तभी डोरबेल बजती गायत्री दरवाजा खोलती है और दोनों बहनें माँ से लिपटकर नाचने लगी.. अरे-अरे क्या हुआ तुम दोनों को..? माँ हमें जॉब मिल गयी राजवीर की खुशी का ठिकाना नहीं रहा उसने तीनों बेटियों को गले से लगा लिया।अब मुझे मेरी बेटियों की चिंता नहीं है।सब अपने पैरों पर खड़ी हो गयी।
कालिंदी बेटा अब तू भी शादी के लिए मान जा कब-तक यूँ अकेली रहेगी। कालिंदी बिना कुछ कहे वहाँ से उठकर चली जाती है और खिड़की में खड़ी होकर गगन की यादों में खो जाती है।
गायत्री की आँखों से आँसू बहने लगे मेरी गलतियों की सजा मेरी बेटी भुगत रही है काश गगन मिल जाता तो मैं उससे माफी मांगकर उसे..... क्रमशः
***अनुराधा चौहान***