Tuesday, October 30, 2018

आदत

वो हमें रुलाने की वजह ढूंढते रहे
     हमने हंसना अपनी आदत बना ली
           वो हमें हराने के मौके ढूंढते रह गए
               हमने जिद में जीतने की आदत बना ली
                                   अनुराधा चौहान

Monday, October 29, 2018

तेरा इंतज़ार


गुमसुम गुमसुम सी
मेरी हर शाम है रहती
खोई खोई सी घर दरवाजे पर
हरपल तेरा इंतज़ार मैं करती रहती 

पल पल तेरी याद सताए
रातों को नींद भी न आए
अनहोनी हरपल सताए
हर आहट पर दिल घबराए

न चिट्ठी भेजी न कोई संदेशा
कब आओगे नहीं कोई अंदेशा
भेज दो लिख कर कोई पाती
रब से मांगती तुम्हारी सलामती

तुम बिन सूना हर एक कोना 
माँ को इक पल आए न चैना
बापू सूनी राहों को निहारे
आँंखों में अपनी नमी छुपाए

भेजी है मैंने तुमको पाती
उसमें सबका प्यार बसा कर
घर का पूरा एहसास बसा कर
भेजी है मैंने घर की याद
***अनुराधा चौहान***

Friday, October 26, 2018

परिश्रम सजग बनाता है

श्रम से सजे सुंदर जीवन
श्रम पर निर्भर है हमारा कल
श्रम से कुंदन बन चमके
हर स्वाभिमानी का व्यक्तित्व
परिश्रम सजग बनाता है
खुशहाली का सूरज लाता
उन्नति का मार्ग प्रशस्त कर
जीवन में सफल बनाता
मेहनत से मिट्टी भी सोना
आलस्य से सोना भी खोता
अंत में दुखों का दुखड़ा रोता
श्रम से रहते सदा प्रगतिशील
सपनों को करते वो साकार
श्रम से जीने की राह निकलती
भविष्य को हमारे उज्जवल करती
करते जो अथक परिश्रम
तो पर्वत से राह निकलती
कठिन नहीं डगर कोई भी
नहीं मुश्किल कोई मंज़िल
मेहनत से हर कुछ संभव है
ठान ली मन में कोई मंज़िल
मेहनत से न कोई कतराना
यह जीवन का है बड़ा खज़ाना
जिसने थामा श्रम का हथियार
उसके जीवन में सुख अपार
***अनुराधा चौहान***

Tuesday, October 23, 2018

अनमोल निधि


काजल सी काली आंखों में
चंचल मन के भाव लिए

फूलों से कोमल होंठों पर
झरने से सुंदर गीत सजे

नन्हें नन्हें पांवों से वो
जब इठलाकर चलती है

मेरे मन में ममता के
भावों की सरगम बजती है

नन्ही नाजुक कोमल सी
मेरे अंगना की परी है वो

सारे जग से बड़ी ही प्यारी
मेरी अनमोल निधि है वो
***अनुराधा चौहान***

Monday, October 22, 2018

मिट्टी के घड़े सी जिंदगी


करले पूरे कुछ काम अधुरे
यह सुबह कब बीत जानी है

मिट्टी के घड़े सी जिंदगी
पता नहीं कब फूट जानी है

हाड़-मांस का सुंदर संसार
कब मिट्टी में मिल जाए

पंछी बन जीवन की ज्योति
आसमान में उड़ जाए

पाप-पुण्य के खेल में
मत जीवन को घेर

मानवता सबसे बड़ा धर्म है
नहीं रखो किसी से बैर

क्यों तेरा-मेरा करने में
अपने जीवन को यूं खोते हो

जब समय हाथ से जाता है
फिर हाथ मलते क्यों रोते हो

करो बड़ो का आदर
छोटों से करो प्यार

चार दिन की जिन्दगी है
क्यों करते वक्त बर्बाद।
***अनुराधा चौहान***

Thursday, October 18, 2018

कुचलती आशाएं



बातें मर्यादा की बड़ी बड़ी
नियत में उनके खोट भरी
राम नहीं किसी को बनना
पर सीता की चाह है रखना
आंखों में जिनके मैल भरा
वो कहां देखते पावन चेहरा
मासूम सुमनों के खिलते ही
तोड़ने आ जाती यह दुनिया
नहीं सुरक्षित नारी जीवन
कलयुग के इन हैवानों से
कितने ही युग बीत गए
बीत गईं कितनी सदियां
नारीे जीवन का अभिशाप बनी
हर युग में रावण की दुनिया
कुचलती आशाएं बेरहम दुनिया
बांध के बंधन पैरों में
करने असुरों का फिर विनाश
आ जाओ मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम
फिर से तुम उद्धार करो
काट के बेड़ियां पैरों से
***अनुराधा चौहान***

Sunday, October 14, 2018

किस्मत


किस्मत पर किसी का बस न चले
किस्मत के आगे बेबस खड़े
क्यों रोते किस्मत का रोना
किस्मत का लिखा प्रभू को भी पड़ा सहना
राम ने खोया राजतिलक
वन-वन भटके चौदह वर्ष
जनकदुलारी सीता सुकुमारी
किस्मत में लिखी जुदाई अतिभारी
राधा कृष्ण का प्रेम अमर
किस्मत में होना था उनको अलग
सती से जुदाई की पीड़ा
महादेव को भी पड़ी सहना
किस्मत किसे कहां ले जाए
यह कोई कभी समझ न पाए
कौन रंक से राजा बने
कौन राजा से रंक बन जाए
किस्मत पर किसी का बस न चले
किस्मत के आगे बेबस खड़े
***अनुराधा चौहान***


चित्र गूगल से साभार

Saturday, October 13, 2018

तुझ से ही तुझ को चुरा लूं


हर लम्हे में तुझको बसा लूं

आ पलकों में अपनी छुपा लूं

गुम न हो जाए कहीं वजूद तेरा

तुझ से ही तुझ को चुरा लूं

उम्र का सफर अब गुजरने लगा

तेरे एहसास को सांसों में बसा लूं

मोहब्बत मोहताज नहीं उमर की

चल संग तेरे हसीन लम्हें बिता लूं
***अनुराधा चौहान***

Thursday, October 11, 2018

किस पर करें भरोसा

किससे करें शिकायत किस पर करें भरोसा

हमदर्द ही अपना जब दे जाए अगर धोखा

मासूम से चेहरे पर चढ़ा मतलब का मुखोटा

सच्चों को झूठों में भी सब सच ही है दिखता

चेहरे के ऊपर मुखोटा मुखोटे में विषधर

कौन है हमारा हमदर्द कौन जाएगा हमें डस
               ***अनुराधा चौहान***

Monday, October 8, 2018

जय हनुमान

भावों के मोती
🌸🌹🌸
केसरी नंदन राम दुलारे
भक्तों के तुम रखवाले
हे वीर प्रतापी शोर्यवान
दुष्ट सदा तुमसे भय खाते
पवनपुत्र वीर बजरंगी
राम-लखन के तुम हो संगी
राम मुद्रिका सीता को दे आए
श्री राम का संदेश सुनाए
विकट रूप जब तुमने रखा
क्षण में रावण की लंका दी जला
संजीवनी को समझ नहीं पाए
पूरा पर्वत संग ले आए
गदा तुम्हारे हाथ में सोहे
राम सिया सदा मन मोहे
दिल में छवि उनकी बसाए
तुम भक्त प्रिय राम सिया के
अंजनी मां के पुत्र तुम प्यारे
भूत पिसाच नाम से भागे
भानू को देख सदा मुस्कुराते
लीला था उन्हें मधुर फल जान के
चरणों में तेरे शीश झुकाते
प्रभू सबके तुम कष्ट मिटाते
श्रीराम की जो करते पूजा
उनके शीश पर हाथ है तेरा
पवनपुत्र श्री हनुमान
करते हम तुमको प्रणाम
***अनुराधा चौहान***

Sunday, October 7, 2018

माटी


      🌹
माटी का बना
पंचतत्व शरीरा
उसी में मिला
      🌹
माटी है शान
बोलते कर्मवीर
देते हैं जान
     🌹
पावन माटी
धन्य भारत देश
करें वंदना
    🌹
पग पखारे
विशाल समंदर
माटी वंदन
     🌹
माटी आंचल
सजग हिमालय
खड़ा विशाल
      🌹
माटी के लाल
जगत मशहूर
देश की शान
***अनुराधा चौहान*** 

Saturday, October 6, 2018

विदाई


मैं बाबुल की नन्ही गुड़िया
मैं नन्ही चिरैया मईया की
खेल कूद जिस संग बड़ी हुई
मैं छोटी बहना भईया की
आज विदाई इस आंँगन से
जिसमें खेली बड़ी हुई
मत रोना भईया मेरे
मैं अपने ससुराल चली
छोड़ चली माँ-पापा को
छोड़ चली घर का हर कोना
याद अगर  मेरी आए
दुःखी होकर कोई मत रोना
रोकर मुझे विदा करोगे
मैं कैसे सह पाऊँगी
दूर होकर तुम लोगों से
मैं कैसे रह पाऊंगी
बेटी तो होती है पराई
प्रभू ने यह रीत बनाई
इस घर में खेली बड़ी हुई
हो रही आज मेरी विदाई
तुम सब तो साथ रहोगे
मैं तो अकेली हो जाऊंँगी
नए रिश्तों में शायद मैं
खुद को ही भूल जाऊंँगी
हँस कर आशीर्वाद मुझे दो
मेरा जहान आबाद रहे
उस घर में जाकर रम जाऊंँ
इतना मुझे प्यार मिले
***अनुराधा चौहान***

Thursday, October 4, 2018

सफर जिंदगी का


जिंदगी के सफर में
न हो सच्चा हमसफर
बहुत मुश्किल होता है
जीवन का यह सफर
मिलते हैं सफर में फूल
तो मिलते हैं कांटे भी
मीत मिले मन का
तो सुख-दुख आपस में बांटे भी
खड़ी हो जाती है जिंदगी
सफर में दोराहे पर
कहां से शुरू हो फिर
जो पंहूचा दे मंजिल पर
हर डगर आसान मिले
यह तो जरूरी नहीं
टूट कर संभल जाना
जीवन की रीत यही
धूप छांव जीवन के
हर डगर पर मिलती है
जब तक जिंदगी जाकर
मौत से नहीं मिलती है
होता है सफर पूरा
छूट जाते है रिश्ते
सिर्फ कर्म ही इंसान के साथ है जाते
तय करो प्यार से सफर
जब तक है जिंदगी
बाद में तो सिर्फ इंसान के नाम ही रह जाते
***अनुराधा चौहान***

यह जरूरी तो नहीं


हर सफर आसान मिले यह जरूरी तो नहीं
हर ख्बावों को परवाज मिले यह जरूरी तो नहीं
रखना पड़ता है हौंसला ख्बाव पूरे करने के लिए
हर मुकाम आसान मिले यह जरूरी तो नहीं
         ***अनुराधा चौहान***

Tuesday, October 2, 2018

राष्ट्रपिता महात्मा गांधी (बापू)

सत्य अहिंसा और धर्म का
सबको पाठ पढ़ाने वाले
राष्ट्रपिता तुम भारत के
भारत का मान बढ़ाने वाले
कष्ट सहे बहुतेरे तुमने
पर शीश न तुमने झुकने दिया
हम सब की आजादी के लिए
अपना सब कुछ बलिदान किया
अभिमान चूर कर अंग्रेजों का
भारत को स्वतंत्र किया
कर्मवीर तुम भारत के
भारत माँ सच्चे लाल
अंग्रेजों से छीन कर देदी
आजादी हमको बिना हथियार
शत् शत् नमन बापू तुमको
याद रखें सब सदियों तुमको
***अनुराधा चौहान*** 

(चित्र गूगल से साभार)

भारत के लाल





कद छोटा
मन विशाल
भारत का
सपूत महान
दिया नारा
भारत को उसने
जय जवान जय किसान
लाल था प्यारा
भारत माँ का
लाल बहादुर शास्त्री
उनका नाम
कर्म प्रधान था
व्यक्तित्व उनका
तभी पाक भी युद्ध हारा था
सच्चाई से भरा हृदय
मन में देशप्रेम की
ज्वाला थी
द्वितीय प्रधानमंत्री
वो देश के
फिर भी जीवन
सीधा-साधा था
नहीं कामना मन में कोई
सदा देश की
खातिर वो जिए
ऐसे सच्चे लाल थे देश के
सदियों तक उनकी जय गूंजे
शत् शत् नमन
***अनुराधा चौहान***
चित्र गूगल से साभार

Monday, October 1, 2018

उजड़ा गुलशन

कैसा फिजाओं
में जहर घुला
मौसम भी
सहमा सहमा हुआ
कभी गूंजती थी
इस गुलशन में
किलकारियां
मासूम परियों की
अब सब उजड़ा उजड़ा  है
गुलशन में
उदासी का पहरा है
धुंआ धुंआ सी
होती जिंदगी
प्रीत कहीं
खोती सी दिखती
संवेदनाएं भी
दम तोड़ रही
अपने पराए की
मारामारी
भाईचारे ने
जान गंवा दी
कब लौटेंगी
फिर से बहारें
कब हंसी की
गूंजे आवाजें
अब कर्म
हमें ही करना है
इस गुलशन को
महकाना है
***अनुराधा चौहान***