अरे सिस्टर तुमने इसमें आज की तारीख क्या लिखी है..? रवि ने स्नेहा सामने एक पेपर रखते हुए बोला।
12 दिसंबर लिखी डॉक्टर..?कहती हुई स्नेहा पास के बेड पर लेटे पेशेंट का बीपी चैक करने लगी।
"नहीं तुमने जल्दबाजी में बारह दिसंबर की जगह बारह नवंबर लिख दिया था मैंने सही कर लिया यह तुम सँभालो..!
ओके थैंक्स..! स्नेहा ने पेपर फाइल में लगा दिया।
रवि सिटी हॉस्पिटल के डायलिसिस सेंटर में जूनियर डॉक्टर था और स्नेहा वहाँ नर्स का काम करती थी।आज12 दिसंबर है। यह सुनते ही पास के बेड पर लेटी दीक्षा की आँखें भर आईं।
"आपको क्या हुआ दीक्षा..?आप तो इस वार्ड की सबसे हिम्मती पेशेंट हो।फिर आँख में आँसू कैसे?कहीं दर्द हो रहा है..? मौसी गरम पानी की थैली लेकर आओ।बस एक घंटा और फिर आपका डायलिसिस खत्म।
"नहीं सिस्टर गरम पानी की जरूरत नहीं है। मुझे कहीं तकलीफ नहीं..!
"फिर आँखों में नमी कैसी..?
"12 दिसंबर सुनकर कुछ यादें ताजा हो गईं बस और कुछ नहीं...!"
"सच में कोई तकलीफ नहीं दीक्षा..!
"हाँ सिस्टर सच कोई तकलीफ नहीं है..!
"दीक्षा पिछले पाँच सालों से तुम्हारा मुस्कुराता चेहरा देखने की आदत हो गई है।यहाँ मौजूद हर पेशेंट हर बार डायलिसिस के समय कभी दर्द तो कभी कुछ तकलीफ तो कभी ज़िंदगी से मायूस होकर टूटता नजर आता है।पर तुम हर बार इस तकलीफ को झेल ज़िंदगी की डोर कसकर पकड़ लेती हो। कैसे कर लेती हो ऐसा...?
"सिस्टर यह जंग अपने लिए नहीं अपने बेटे के लिए लड़ रही हूँ। ईश्वर कृपा से वो अपने पैरों पर खड़ा हो जाए। फिर यह साँसे रुकें तो रुक जाए..! चिरपरिचित मुस्कुराहट के साथ दीक्षा बोली।
"ऐसा मत सोचो दीक्षा.. ईश्वर तुम्हें ऐसे ही हिम्मत देता रहे...!
"सिस्टर जरा उन्नीस नंबर बेड के पेशेंट को देखो शायद उसका बीपी डाउन हो रहा ...!रवि एक न्यू पेशेंट को चैक करते हुए बोला।
"यस डॉक्टर ...! सिस्टर उन्नीस नंबर बेड के पेशेंट को चैक करने चली गई।
"मौसी इनके पैरों के नीचे गरम पानी की थैली लगाकर सिकाई करो।डरो मत आपकी पहली डायलिसिस है इसलिए थोड़ी तकलीफ़ होगी फिर सब आदत में आ जाएगा।
"मेरी बेटी को बहुत तकलीफ़ हो रही है। मैं उसे ऐसे नहीं देख सकती। आप जितना जल्दी हो उसे मेरी किडनी लगा दीजिए डॉक्टर ताकि वो जल्दी ठीक हो जाए ..!
"मैडम किडनी ट्रांसप्लांट के लिए बहुत लंबा प्रोसेस करना पड़ता है।तब तक हमारे पास सिर्फ डायलिसिस एकमात्र विकल्प है। थोड़ी हिम्मत तो रखनी होगी..!
"पर डॉक्टर...?
"उधर देखिए..!"नए पेशेंट को सांत्वना देते हुए डॉ रवि ने दीक्षा की और इशारा किया।उस पेशेंट जैसा बनो।वो खुद भी हँसती रहती है और सभी से सकारात्मक बातें कर उन्हें हिम्मत देती रहती है..!
"उसे कितना समय हो गया डॉक्टर..?
"पाँच साल....!यह सारे मरीज कोई पाँच साल तो कोई छः और कुछ पिछले कुछ सालों से यहाँ डायलिसिस करा रहे हैं।वो तो मात्र तेरह साल का बच्चा है और बदकिस्मती से उसकी माँ कैंसर पेशेंट है और पिता शराबी है।उसे भी कोई डोनर नहीं मिला।अब हर किसी को आपकी बेटी की तरह समय पर किडनी डोनर मिलता फिर भी देखिए सब ज़िंदगी के लिए अपनी अपनी किस्मत से लड़ रहे हैं..! आप भी हिम्मत रखिए सब ठीक हो जाएगा..!
"डॉक्टर ट्रांसप्लांट के बाद मेरी बेटी ठीक तो हो जाएगी..? पेशेंट की माँ ने पूछा।
"जरूर स्वस्थ होगी। उसके लिए समय पर दवा और परहेज कराना आपकी जिम्मेदारी है।ऑपरेशन के डर से लड़ने का काम इन्हें ही करना है..!"
"यह लोग सब मरीजों को मेरा एग्जाम्पल क्यों देते हैं। मेरे पास क्या अलादीन का चिराग है जो जिन्न निकल मेरी तकलीफ दूर कर देता है?यह क्या जाने ?कैसे अपना दर्द को छुपाने के लिए मैं हँसती रहती हूँ। किसे पता इस तकलीफ से निकलने के लिए मैं भी ईश्वर से लड़ाई लड़ रही हूँ...! दीक्षा ने घड़ी देखी अभी भी डायलिसिस प्रोसेस खत्म होने में एक घंटे का समय था।वो गहरी साँस लेकर आँखे बंद कर अपनी ज़िंदगी के उतार चढ़ाव याद करने लगी।
"सुरेश..सुनो,उठो.. सुरेश...!" लगभग हाँफती सी दीक्षा अपने पति सुरेश को जगाने का प्रयास कर रही थी।
"क्या है..?सोने क्यों नहीं देती..? सुरेश ने झल्लाकर कहा और करवट बदल ली।
"सुरेश्श.मुझे साँस लेने को नहीं हो रहा..! बड़ी मुश्किल से दीक्षा ने कहा।
"साँस नहीं ले पा रही..?अच्छा है मर जाओ।रोज रोज की परेशानी एक बार में खत्म,जब देखो यह हो रहा है। वो हो रहा,यहाँ दर्द वहाँ दर्द.. मैं तंग आ गया तुमसे और तुम्हारे बहानों से..!"
दीक्षा की हालत बिगड़ रही थी। वो कैसे भी करके उठी और अपने ससुर के कमरे तक पहुँचकर उन्हें पुकारने लगी।
"बाबूजी..!जीतू..!"
"बहू..? तुम इस वक्त..? क्या हुआ..?ऐ जीतू उठ देख माँ को क्या चाहिए..?पोते को जगाते हुए रमाकांत ने कमरे की लाईट जलाई।
"आओ यहाँ बैठो। इतना हाँफ क्यों रही हो..? क्या हुआ? सुरेश ने झगड़ा किया क्या..?"
"माँ आपको इतना पसीना.. जीतू ने तुरंत एसी ऑन किया और दौड़कर पानी ले आया।
"बाबूजी पता नहीं साँस लेने में दिक्कत हो रही है..!"
"अरे बाप रे..! जीतू तू बहू को लेकर आ, मैं तब तक गाड़ी निकालता हूँ। रमाकांत ने शर्ट पहनी पर्स पेंट में रखा और घर से निकल गए।
"चलो माँ..!जीतू ने माँ को सहारा दिया और पीछे पीछे चल दिया ।रात के एक बज रहे थे। जीतू के पुकारने के बावजूद सुरेश अभी भी दीक्षा की चिंता छोड़ गहरी नींद में सो रहा था।
दीक्षा की हालत देखकर डॉक्टर ने सबसे पहले उसे आईसीयू में भर्ती करके ऑक्सीजन लगाने को कहा। ऑक्सीजन लगते ही दीक्षा को चैन आ गया।
"अब कैसा लग रहा है..?"
"बहुत आराम मिला डॉक्टर..!"
"आपको पहले भी ऐसा हो चुका है..?"
"ना डॉक्टर साहब, पिछले कुछ दिनों से बार बार बुखार आ जाता है। पैरों में भी दर्द रहने लगा है और कमजोरी महसूस होती रहती है..!"
"और यह साँस लेने में दिक्कत कबसे..?"
"वो आज ही अचानक होने लगी..!"
"ओके आप आराम कीजिए। हमें आपके कुछ टेस्ट करने होंगे, तभी पता चलेगा इस तकलीफ की वजह क्या है।..!"डॉक्टर ने नर्स को कुछ टेस्ट करवाने के लिए लिखकर दे दिए और बाहर आकर रमाकांत से बात करने लगे।
"हार्ट की और अस्थमा जैसी तो कोई समस्या नहीं है। फिर भी उनका ऑक्सीजन लेवल डाउन ही हो रहा है।अभी तो हमने ऑक्सीजन लगा दिया है।और उन्हें आराम भी मिल गया।पर यह समस्या क्यों हुई इसलिए हमने दीक्षा के कुछ टेस्ट किए हैं। एक घंटे में रिपोर्ट आ जाएगी फिर देखते हैं क्या करना है..?
"धन्यवाद डॉक्टर साहब..! रमाकांत चिंतित दिखाई देने लगे।
"दादू टेंशन न लो,माँ ठीक है। जरूर पापा ने कोई टेंशन दिया होगा इसलिए एकदम से तबियत बिगड़ गई..!"
"कैसे गधे की तरह घर पर सो रहा है।यहाँ मेरी बहू इतनी सीरीयस है।क्या करूँ सुरेश का..? रमाकांत गुस्से में दोनों हाथों को रगड़ते हुए बोले।
"दादू शांत हो जाइए।आप बीमार हो गए तो माँ का इलाज कैसे होगा..? पापा से तो कोई उम्मीद नहीं कर सकता और मैं अभी किसी में भी नहीं..!
रमाकांत जितने सीधे और सुलझे इंसान थे। सुरेश उतना ही जिद्दी और गुस्सैल स्वभाव का था।उसे दीक्षा की तकलीफ से कभी कोई फर्क नहीं पड़ता था।उसे तो उसका हर काम समय पर और हर वस्तु हाथ में चाहिए रहती थी।
"दीक्षा के साथ आप लोग हैं..?तभी वार्डबॉय ने आकर पूछा।
"जी हाँ कहिए..?"
"सर ने आपको अपने केबिन में बुलाया है। पेशेंट की रिपोर्ट आ गई है..!
"ईश्वर करे रिपोर्ट अच्छी आए।चल जीतू..! रमाकांत ने जीतू का हाथ कसकर पकड़ लिया।
"आइए बैठिए..!" डॉक्टर ने बैठने का इशारा किया।
"डॉक्टर साहब रिपोर्ट सही है ना..?"
"नहीं...!"
"नहीं..? क्यों डॉक्टर ऐसा क्या निकल आया..?
"रिपोर्ट के मुताबिक दीक्षा की किडनी खराब हो रही हैं...!
"क्या..? रमाकांत कुर्सी से उठ खड़े हुए।
"प्लीज बैठिए..!" डॉक्टर ने टोका।
"इनकी तबियत कब से खराब है…..?"
"आज अचानक बिगड़ गई डॉक्टर। इससे पहले तो कुछ दिनों से कमजोरी और पैरों मे दर्द की शिकायत सुनी थी।वो भी मेरे पोते ने बताया तब, वो तो मुझे पता ही नहीं चलने देती। अगर स्थिति उसके काबू में होती तो आज भी नहीं पता चलता..!"
"उनको क्रोनिक किडनी डिजीज की प्रॉब्लम हो गई है। उनका क्रिएटिनिन लेवन फाइव प्वाइंट सिक्स पहुँच गया है।पोटेशियम लेवल भी बहुत हाई है जिसके चलते उन्हें साँस लेने में दिक्कत होने लगी। आप लोगों की किस्मत अच्छी थी जो समय रहते समस्या पता चल गई नहीं तो कुछ भी हो सकता था..!"
"डॉक्टर साहब दीक्षा ठीक तो हो जाएगी..?"
"देखिए अब यह बीमारी पूरी तरह से ठीक होने वाली नहीं,हाँ हम इसे सही खानपान और दवाईयों से कंट्रोल कर सकते हैं।आप लोगों को उनके खाने-पीने, और आराम का ध्यान रखना होगा...!
"दीक्षा का आहार कैसा हो,वो भी आप समझा दीजिए डॉक्टर साहब..!
"अब वो किडनी पेशेंट हैं। ऐसे में उन्हें ऐसा आहार मिले जिसमें सोडियम, पोटेशियम, प्रोटीन आदि की मात्रा कम रहे।भोजन सादा और कम मसाले का हो तो हम इस समस्या को कंट्रोल में रख सकते हैं। थोड़ी सी चूक हुई तो हमारे पास डायलिसिस के अलावा कोई विकल्प नहीं..!
"डायलिसिस..?" जीतू यह सुनकर घबरा गया।
"हाँ आप सभी को अब इसके लिए मन मजबूत करके रखना होगा। भगवान न करे यह स्थिति जल्दी आए।पर एक न एक दिन आनी ही है।पर जब भी आए तो उन्हें संभालने के लिए आप लोग मजबूत रहें..!
"जी डॉक्टर..!"रमाकांत थके कदमों से बाहर निकल आए।
"दादू माँ को कुछ हो गया तो मेरा क्या होगा..?सत्रह साल का जीतू रुँआसा होकर पूछने लगा।
"कुछ नहीं होगा बच्चे.. मैं हूँ ना..! दीक्षा अभी भी सो रही थी। शायद दवा का असर था। सुबह के चार बजने वाले थे। जीतू बैंच पर अधलेटा सो रहा था। रमाकांत सुरेश को फोन लगाने लगे।
तीन-चार बार ट्राई करने पर सुरेश ने फोन उठाया तो रमाकांत गुस्से से बरस उठे और तमाम खरी-खोटी सुना डाली।
"बाबूजी मुझे चार बातें सुनाकर आपकी बहू ठीक हो जाएगी क्या..?यह सब उसके कर्मों का फल है जो वो भुगत रही है।रोज कहीं सिरदर्द तो कहीं पैरदर्द,वो अब सही में भगवान न बीमारी दे दी।कल मरती है तो आज ही मर जाए, मैं तो तंग आ गया इस मरीज से...! इतना कहकर सुरेश ने फोन कट कर दिया।
"मैं इस नालायक का बाप हूँ यह सोचकर आज मुझे खुद पर शर्म आ रही है..!"रमाकांत की आवाज से जीतू जाग गया था।
"दादू शांत हो जाइए। इतना गुस्सा आपकी सेहत के लिए ठीक नहीं,आपका बीपी बढ़ जाएगा। आपको कुछ हो गया तो मैं और माँ..!कहते कहते जीतू दादू से लिपटकर भावुक हो उठा।
"तेरी माँ को कुछ नहीं होगा। मैं उसका इलाज बड़े से बड़े हॉस्पिटल में करवाऊँगा..!
"दादू आप घर चले जाइए।माँ के पास सुबह सात बजे से पहले किसी को जाने नहीं देंगे तो मैं यहाँ बैठता हूँ..!"
"नहीं मैं ठीक हूँ। डॉक्टर से मिलकर ही जाऊँगा।देख लूँ वो क्या कहते हैं..? शाम तक दीक्षा की रिपोर्ट पहले से बेहतर आई।दो दिन बाद दीक्षा घर आ गई।
"आज खाना नहीं मिलेगा क्या..?" दीक्षा को सोते देख सुरेश चिल्लाने लगा।
"मुझे बहुत चक्कर आ रहे हैं सुरेश।थोड़ा आराम कर लूँ फिर बनाती हूँ..!"
"आराम ही तो करती हो। आराम के अलावा तुम्हें और कुछ आता ही कहाँ है..?
"पापा आप माँ पर क्यों चिल्ला रहे हो..?माँ खाना बन गया है आप आराम करो। मैं पापा की थाली लगा देता हूँ..!
"किसने बनाया खाना..?"
"मैंने माँ..आज कॉलेज की छुट्टी थी तो मैंने जो समझ आया बना लिया..!दवाईयों का हैवी डोज और बदले हुए खानपान से दीक्षा कमजोरी महसूस करने लगी थी।घर के कामकाज और खाना बनाने के लिए रमाकांत ने फुलटाइम कामवाली रख ली।जो सुरेश को पसंद नहीं आया।
"मैं इस कामवाली के हाथ का बना खाना नहीं खाने वाला। तू उठ बहुत आराम कर लिया चल मेरे लिए कचौरियाँ बनाकर ला..! सुरेश ने देखा रमाकांत घर पर नहीं है तो मौके का फायदा उठाकर दीक्षा पर चिल्लाने लगा।
जीतू के बारहवीं के एग्जाम चल रहे थे। घर में क्लेश न हो इस डर से दीक्षा ने हिम्मत करके आलू की कचौरियाँ बनाईं तो सुरेश ने खीर की फरमाइश कर दी।
"इसके साथ मेरे लिए खीर भी बना दे तो कचौरी खाऊँगा..!
"सुरेश अब मुझसे सच में काम नहीं हो पाता नहीं तो खीर बना देती।जिद मत करो ऐसे ही खालो प्लीज। तुम मेरी तकलीफ समझते क्यों नहीं..?
"ले रख अपनी कचौरी मुझे नहीं खाना..!" दीक्षा ने मना किया तो उसने कचौरी भी खाने से मना कर दिया और बाहर चला गया।यह देख दीक्षा रोने लगी।
"माँ आपको कचौरी बनाना ही नहीं चाहिए था। उन्हें तो बस आपको सताने का मौका चाहिए और आप भी उन्हें इतना महत्व क्यों देती हो..?
"तो क्या करूँ..?यह सब बातें तो मेरी ज़िंदगी का हिस्सा बन चुकी हैं। मेरी किस्मत जो उनसे जुड़ी है..!" दीक्षा की हालत दिन पर दिन गंभीर हो रही थी। सुरेश उसकी तकलीफ नजरंदाज कर उसे उतनी अधिक मानसिक यातना दे रहा था।
"ईश्वर से तो डरो सुरेश।इस तरह किसी कमजोर को सताना मर्दानगी नहीं होती। मैं मौत के कगार पर खड़ी आज भी बस थोड़े से प्यार के लिए तरस रही हूँ। तुम मुझसे प्यार भरे शब्द नहीं कह सकते तो जहर तो न उगलो..!
"प्यार और तुझसे..? चेहरा देख अपना,जरा सा काम क्या कहो तुरंत बीमारी का चोला ओढ़ लेती हो और प्यार चाहिए इसे..! मेरी तो किस्मत फूटी थी जो तुझसे शादी की..!
"मेरे बीमार मन को शब्दों की मार न मारो सुरेश। ईश्वर न करे कहीं मेरे दुखी मन की हाय तुम्हें लग जाए..! कहते कहते दीक्षा रो पड़ी।दीक्षा का क्रिएटिनिन लेवल अत्यधिक बढ़ जाने से आज वो पहली बार डायलिसिस कराकर आई थी जिस वजह से उसे चक्कर और पैरों में असहनीय पीड़ा हो रही थी।
"तेरी हाय हा हा हा..तू मुझे हाय लगाएगी..?तू हा हा हा हा..." सुरेश ठठाकर हँसा।"अरे तुझे तो मेरी हाय लगी है। अभी तो तू जाने क्या क्या भुगतेगी देखती रह...! सुरेश शराब की बोतल मुँह से लगाकर पीने लगा।
"बिना पानी शराब मत पियो सुरेश।लीवर खराब हो जाएगा।कल तुमने जिद में कितनी मिठाई खाई। इस बार तुम्हारा शुगर लेवल कितनी बढ़ा आया।यह सब कितना घातक है, पता है ना तुम्हें..?"
"तूने क्यों नहीं कर लिया परहेज..?यह सब सुरेश कहाँ सुनने वाला था।जब भी कभी रमाकांत बाहर जाते सुरेश नशे में चूर होकर हर वो काम करता जो उसे नहीं करने चाहिए थे।
"तुम अपना ज्ञान अपने पास रखो। तुम्हारे ज्ञान की जरूरत तुम्हें है ..? मैं तेरी तरह मरीज नहीं जो कुछ हो जाएगा..! सुरेश की नहीं सुनने और अनाप-शनाप खाने पीने वाली आदत के चलते एक दिन सुरेश का शुगर लेवल हाई हो गया और उसे पैरालिसिस का अटैक पड़ गया।
"जीतू जल्दी आओ...! कमजोर दीक्षा सुरेश को दशा देख घबरा गई।
सुरेश बेहोश हो गया।उसे फौरन अस्पताल में भर्ती कराया गया। रिपोर्ट में पता चला कि ज्यादा पीने से और शुगर लेवल हाई हो जाने से लीवर और किडनी दोनों पर बुरा असर हो गया है।एक तो पैरालाइज्ड ऊपर से उसका डायलिसिस होगा ?यह सुनते ही सुरेश सदमे में चला गया।
"यह सब इसी का किया धरा है। इसने जरूर मुझे खाने में कुछ दे दिया इसलिए इसकी बीमारी मुझे लग गई।मुझे डायलिसिस नहीं करानी। मुझे हॉस्पिटल में नहीं रहना मुझे घर जाना..! सुरेश हठ पकड़कर बैठ गया था।
"दीक्षा को हर बात का दोष देना बंद करो सुरेश।यह उसने नहीं तुम्हारी बुरी आदतों और जिद का नतीजा है।अब तो अपनी हठ छोड़ दो। क्यों इन बुढ़ी हड्डियों को जिम्मेदारी के बोझ से दबा रहा है...!
रमाकांत की डाँट से सुरेश चुप बैठ गया।उसे बार बार दीक्षा की कही बात याद आ रही थी।'कहीं मेरे दुखी दिल की हाय तुम्हें न लग जाए सुरेश'!सबके कहने पर सुरेश डायलिसिस के लिए तैयार हो गया।
"मैं भी साथ चलूँगी..!" हॉस्पिटल जाते समय दीक्षा भी जिद करके साथ हो ली थी।डायलिसिस के लिए जाते समय भी अपनी आदत से मजबूर सुरेश ने दीक्षा को तंज कसा।"दीक्षा आज सच में मुझे तुम्हारी हाय लग गई..!
"सुरेश ऐसा न कहो..!" तड़पकर दीक्षा बोली।"उस दिन गुस्से और दर्द की वजह से मेरे मुँह से वो शब्द निकल गए थे।मैं कभी सपने में भी तुम्हारे लिए बुरा नहीं सोच सकती। मेरी ईश्वर से यही प्रार्थना है कि वो तुम्हें मेरी बची उम्र दे दे और तुम जल्दी स्वस्थ हो जाओ..!"
"डायलिसिस की प्रक्रिया शुरू भी नहीं हुई थी कि सुरेश को दिल का दौरा पड़ गया।उसे फौरन आईसीयू में शिफ्ट किया गया। डॉक्टर्स के सारे प्रयास विफल हो गए।
"आइ एम सॉरी..हम सुरेश को नहीं बचा पाए..! जैसे ही डॉक्टर ने आकर कहा तो रमाकांत ने लड़खड़ाकर जीतू को पकड़ लिया।
"सारे दुख सारी तकलीफें सिर्फ मेरे हिस्से क्यों प्रभु..? सुरेश सही कह रहा था कि उसे मेरी ही हाय लग गई..?यह सोचकर दीक्षा और टूट गई।वो ईश्वर से अपने लिए मुक्ति माँगते हुए रो पड़ी।
"माँ शांत हो जाइए। आप हिम्मत खो देंगी तो मेरा क्या होगा ? मैं तो अनाथ हो जाऊँगा..! कहते हुए जीतू रोने लगा।जीतू को रोते देख दीक्षा ने खुद को संभाल लिया पर सुरेश के अंतिम शब्दों की मार उसे तिल तिल मार रही थी।
"दीक्षा... दीक्षा..क्या सोच रही हो...?स्नेहा की आवाज से दीक्षा सोच के दायरे से बाहर निकल आई।
"ना नहीं कुछ नहीं..!हो गया डायलिसिस..?"
"हाँ हो गया..!स्नेहा बगल वाले बेड के पेशेंट के पास चली गई।
"मैं हूँ ना तेरे पास..डर मत कुछ नहीं होगा।बस हिम्मत करके चुपचाप लेटी रहो..!यह सुनकर दीक्षा ने बगल वाले बेड की और देखा।वहाँ अभी अभी कोई नई लेडी पेशेंट आकर लेटी थी।उसका पति उसके पैरों को सहलाते हुए उसे हिम्मत दे रहा था।यह देखकर दीक्षा को सुरेश की याद आ गई।वो ठंडी साँस भरकर बड़बड़ाई ।"काश कभी मेरे हिस्से ऐसा प्यार आया होता..?
"माँ कहाँ खोई हो...?घर चलें..! जीतू दीक्षा को लेने आ गया था।
"हम्म..चलो..! मैं ही ऐसी फूटी किस्मत लिखाकर आईं हूँ।मेरे पति ने मुझे कभी नहीं समझा और अंतिम समय में भी अपने शब्दों की मार से ऐसे घाव दे गया जो आज भी नासूर बन चुभते हैं ।
क्यों सुरेश क्यों..? क्यों इतनी नफरत थी मुझसे..?आज बारह दिसंबर आज ही के दिन हमारी शादी हुई थी। मुझे हमेशा याद रहा पर तुम्हें जब जब याद आया तब तब एनिवर्सरी पर मुझे थप्पड़ ही उपहार में मिले। दिल में उठती कसक से दीक्षा के आँसू बहने लगे।
"आज बहुत दर्द हो रहा है माँ..?"
"यह दर्द कभी कम हुआ जो अब होगा ?"
"मतलब..?"
क्या मतलब समझाती दीक्षा।"तू घर चल तुझे भूख लगी होगी..!" इतना कहकर दीक्षा ने अपनी आँखें मूँद ली और कार की सीट से टिककर बैठ गई।
अनुराधा चौहान 'सुधी'स्वरचित
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