Monday, August 5, 2019

पारो भाग ( 3)

शिवा पारो को जाते हुए देखता रहता है फिर खेतों में पिता की मदद करने लग जाता है।
दुष्यंत जिसे अपने से छोटे लोगों से हमेशा नफ़रत रही है स्कूल में भी उसका पारो से अक्सर झगड़ा हो जाता करता था।
तब उस अपने आस-पास शिवा और पारो कतई बर्दाश्त नहीं होते थे,पर अब उमर का तकाजा था सोलह बरस की उमर में लड़के-लड़कियों की एक-दूसरे के प्रति आकर्षक की भावनाएं जागने लगती हैं,वही तीनों के साथ हो रहा था।
दुष्यंत को पारो की सुंदरता अपनी और आकर्षित कर रही थी,वो उससे बात करने के लिए मिलने के मौके तलाश रहा था।
दुष्यंत जमींदार का बिगड़ैल लड़का था जो एक बार ठान लिया वो चाहिए ही चाहिए।वो पारो पर छुप-छुपकर निगाह रखने लगा।
कब और किस वक़्त उसे पारो अकेली मिलेगी।तो वह उससे बात कर सकें।
एक दिन पारो सुखिया को खाना देकर वापस आ रही थी और उस वक़्त शिवा अपने घर गया हुआ था, दुष्यंत ने पारो का रास्ता रोक लिया।
कहाँ जा रही है पारो...?जरा रुक जा..इतनी भी क्या जल्दी है जाने की..? कभी मुझसे भी बात कर लिया कर...दुष्यंत पारो से बेशर्मी से बोला।
कुए में गिरने जा रही हूँ तू चलेगा साथ...? और यह क्या रास्ता रोकने का का नया नाटक है तेरा... वैसे तो कभी बात नहीं करता था आज क्या हुआ..?
अरे अरे तू तो गुस्सा होने लगी मैंने तो बस यूँ ही पूछ लिया था तुझे बुरा लगा तो माफ़ कर दे ,बेशर्मी से हँसते हुए दुष्यंत ने कहा।
पारो वहाँ से चली गई। तेरी सारी हेकड़ी निकालूँगा एक दिन पारो..! दुष्यंत मन ही मन बड़बड़ाता हुआ वहाँ से जाने के लिए मुड़ता है।
और पीछे से अचानक उसके सामने कुंती आकर खड़ी हो जाती है। दोनों हाथ कमर पर रख कर दुष्यंत से पूछती है,यह सब क्या चल रहा है दुष्यंत...?"कहाँ कुछ भी तो नहीं"दुष्यंत सफाई से झूठ बोल गया।
तुम्हें क्या लगता है मैं अंधी हूँ..? मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा है देख दुष्यंत तेरे पर न सिर्फ मेरा हक है... ज्यादा चालाकी मत करना मुझसे... वरना बापू से सब बता दूँगी।
अरे अरे तू तो नाराज़ हो गई ऐसा कुछ भी नहीं है बापू के नाम से दुष्यंत घबड़ाकर बोला,तू तो मेरी अच्छी दोस्त है, तुझसे झूठ काहे बोलूँगा,अच्छा चलता हूँ एक जरूरी काम से जाना है,दुष्यंत झूठ बोलकर वहाँ से चला जाता है।
दुष्यंत के पिता बीरपाल और कुंती के पिता सागौन की लकड़ी बेचने का कारोबार करते हैं इस कारोबार में दोनों बराबर के हिस्सेदार हैं ।
कुंती के पिता के पास बीरपाल से कहीं ज्यादा संपत्ति थी। कुंती के पिता रामव्रत की पत्नी जानकी अपने माता-पिता की इकलौती संतान थी। इसलिए जानकी के माता-पिता की संपत्ति भी रामव्रत को मिली उससे वो बीरपाल से ज्यादा धनवान हो गया था।
कुंती भी अकेली संतान थी। दुष्यंत दो भाई एक बहन थे बड़ा विश्वजीत बहुत ही समझदार और पढ़ने में तेज था,शहर पढ़ने गया और एक दुर्घटना का शिकार होकर इस दुनिया से चला गया।
इसलिए दुष्यंत को बीरपाल ने शहर पढ़ाई करने नहीं भेजा था।बहन बड़ी थी उसकी शादी हो चुकी थी।
बीरपाल एक लालची किस्म का इंसान था इसलिए उसने बचपन में ही दुष्यंत और कुंती का रिश्ता पक्का कर दिया था, इसलिए कुंती उस पर अपना एकाधिकार समझती थी। और बात-बात में बापू की धमकी देकर दुष्यंत को दबाती थी।
बीरपाल की पत्नी सुगना ने दुष्यंत को समझा रखा था,अगर उसकी वजह से नाराज़ होकर रामव्रत ने यह रिश्ता तोड़ दिया तो उसके बापू उसे घर से निकाल देंगे।
यही कारण था दुष्यंत कुंती को देखकर सकपका गया था और सफाई से झूठ बोल कर वहाँ से निकल गया।
पर सही मायने में प्यार सिर्फ पारो और शिवा के बीच जन्म ले रहा था। कुंती तो पिता के द्वारा तय रिश्ते को ही प्यार समझ रही थी, दुष्यंत मतलब के लिए कुंती से अपनापन दिखा रहा था।
दुष्यंत कुंती को बहलाकर चला गया, कुंती गुस्से में बड़बड़ाती हुई वहाँ से घर के लिए चली और रास्ते में अचानक से शिवा से टकराकर गिरने लगी, तो शिवा ने संभाल लिया।
शिवा से आँखें मिलते ही कुंती एक क्षण के लिए सुध-बुध खो बैठी, अजीब से अहसास दिल में हिलोरें लेने लगे।
तुम ठीक हो..?चोट तो नहीं लगी..? शिवा की आवाज से कुंती हड़बड़ा गई, नहीं-नहीं चोट नहीं लगी..! मैं ठीक हूँ।
शिवा वहाँ से चला गया पर कुंती जब-तक शिवा आँखों से ओझल नहीं हो गया, उसे देखती रही।
यह कैसा अहसास हुआ मुझे, ऐसा लगा जैसे मन में तरंगें उठने लगी थी। दुष्यंत के साथ मुझे कभी ऐसा नहीं लगा, कुछ तो बात है शिवा में तभी पारो इसकी दीवानी हो रही है।
दुष्यंत पारो के पीछे पड़ा हुआ था,इधर कुंती के मन में शिवा का अहसास रोमांच जगाने लगा था
क्रमशः
***अनुराधा चौहान***

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