किस्मत पर किसी का बस न चले
किस्मत के आगे बेबस खड़े
क्यों रोते किस्मत का रोना
किस्मत का लिखा प्रभू को भी पड़ा सहना
राम ने खोया राजतिलक
वन-वन भटके चौदह वर्ष
जनकदुलारी सीता सुकुमारी
किस्मत में लिखी जुदाई अतिभारी
राधा कृष्ण का प्रेम अमर
किस्मत में होना था उनको अलग
सती से जुदाई की पीड़ा
महादेव को भी पड़ी सहना
किस्मत किसे कहां ले जाए
यह कोई कभी समझ न पाए
कौन रंक से राजा बने
कौन राजा से रंक बन जाए
किस्मत पर किसी का बस न चले
किस्मत के आगे बेबस खड़े
***अनुराधा चौहान***
चित्र गूगल से साभार
बहुत शानदार
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार नीतू जी
Deleteकिस्मत कहो या कर्म की गति सब को भुगतनी पडती है ।
ReplyDeleteसही कहा सखी ।
धन्यवाद सखी
Deleteबहुत शानदार
ReplyDeleteधन्यवाद आदरणीय लोकेश जी
Deleteकिस्मत के आगे सब बेबस है चाहे वो इंसान हो या भगवान।
ReplyDeleteसुन्दर रचना।
धन्यवाद आदरणीय
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