उमड़-घुमड़ के आए बदरा
नीले अम्बर पर गए बिखर
काली घटाएँ मन हर्षाएँ
शीतल पवन तन-मन सहलाए
दामिनी तड़के बार-बार
वर्षा की उठी मन में आस
अब बरसे अब बरसे
नयना दर्शन को तरसे
बैरी पवन दे गई धोखा
झूम झूमकर चले पवन हिलोरें
जाने कहाँ बादलों को ले गए
दिखने लगा नीला आकाश
सूरज निकला मुस्कान सजाकर
जैसे जीता हो जंग कोई
बिखर गई धूप सुनहरी
तीखी तपन बदन झुलसाए
सबके मन लगे कुम्लहाने
अब तो बरस जा न करा इंतज़ार
गर्मी से हो रहा हाल-बेहाल
मेघराज कृपा करो आकर
काली घटाओं का पहनकर ताज
बदरा बरसे झूम-झूमकर
गर्मी से कुछ मिले निजात
***अनुराधा चौहान***
तपती धरा को और गर्मी से आहत हर तन मन को बस अब वर्षा की आस।
ReplyDeleteबहुत सुंदर रचना सखी।
सहृदय आभार सखी
Deleteबहुत खूबसूरत अभिव्यक्ति...
ReplyDeleteधन्यवाद कैलाश जी
Deleteधन्यवाद शिवम् जी
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