Thursday, May 5, 2022

ज़िंदगी के बाईस बसंत



"रत्ना आज बहुत जोरों से भूख लगी है।चाय के साथ कुछ स्नैक्स भी ले आना..!"सौरभ ने ऑफिस से आते ही ऑफिस बैग रत्ना के हाथ में देकर टीवी ऑन किया और सोफे पर पसर गया।रत्ना बिना बोले चुपचाप अंदर चली गई।

"ऑफिस और आराम! मैं तो कहीं दिखती ही नहीं?आज मुझे सौरभ से बात करनी ही होगी..! रत्ना बड़बड़ाते हुए चाय और नाश्ता रेडी करने लगी।

"सौरभ चाय..!"

"हम्म रख दो..! रत्ना की ओर देखे बिना सौरभ ने जबाव दिया।

रत्ना ने चिढ़कर रिमोट उठाया और टीवी ऑफ कर दिया।

"यह क्या था..? सौरभ ने गुस्से से पूछा।

"तो क्या करूँ..? मैं पूरे दिन घर में अकेले बोर होती रहती हूँ इसी उम्मीद के साथ कि शाम को तुम आओगे तो हम दोनों कुछ वक्त साथ गुजारेंगे। मगर तुम हो कि तुम आते ही टीवी में नजरें गड़ा लेते हो।क्यों करते हो ऐसा..?

"कभी खुद को ठीक से देखा है..? नहीं देखी तो जाओ और आईने के सामने खुद को देखो ज़रा ?अस्त व्यस्त साड़ी,उलझे से बाल, मुस्कुराहट का तो कहीं नामोनिशान नहीं..? चेहरे पर जब देखो बारह बजे रहते हैं...!सौरभ चिढ़कर बोला।

"तो मेकअप करके बैठूँ..?घर में कौन सज-सँवर होकर बैठता है जरा बताना..?

"क्यों सजना सँवरना गुनाह है क्या..? मैं तुमसे मेकअप पोतने को नहीं कह रहा हूँ। थोड़ा तो खुद पर ध्यान दो। क्या तुम मेरे लिए चेहरे पर मुस्कान नहीं सजा सकती..? क्या वो औरतें नहीं जो ऑफिस से आने के बाद भी अपनी थकान भूलकर हमेशा चेहरे पर मुस्कान लिए रहती हैं ? 

"वही औरतें सज सँवर पाती हैं जिन्हें कोई काम नहीं होता।मैं घर के काम करूँ या शृंगार करूँ..?

"जानता हूँ कितना काम है..! सौरभ धीरे से बोला।

"कुछ कहा तुमने..?

"रत्ना इस बड़े से घर में हम दो ही प्राणी हैं फिर भी तुम्हें समय नहीं मिलता..? तुम्हारी इसी शिकायत पर माँ ने काम वाली भी लगा दी थी पर फिर भी..? छोड़ो जाने दो, तुमसे बहस में कोई नहीं जीत सकता..! सौरभ कपड़े चैंज करने के लिए उठकर कमरे में जाने लगा।

"कामवाली के अलावा भी घर में कई काम होते हैं सौरभ..!अब रत्ना झगड़े के मूड में आ गई थी।

"कहा ना..बात खत्म करो!तुम ही मेहनत करती हो। और जो घर और बाहर दोनों जगह काम करती हैं वो सिर्फ खुद को मेनटेन रखने का ही काम करती हैं।हम मर्दों को भी ऑफिस में काम का कितना प्रेशर रहता है । कभी कभी बॉस की गालियाँ भी सुननी पड़ती हैं।पर फिर भी चेहरे से जताते नहीं और एक तुम रोनी सूरत बनाए रहती हो। रत्ना पहले तुम्हारे चेहरे को देखकर ही सारी थकान दूर हो जाती थी और अब..! सौरभ कुछ सोचकर चुप हो गया।

"और अब क्या..?कह दो दिल में जो जहर भरा है..!रुँआसी रत्ना की आवाज भारी हो गई।

"रत्ना प्लीज़ रोना मत शुरू करना। मैंने जो सच है वही कहा है। पहले तुम्हें शिकायत थी मम्मी और शिल्पा के कारण तुम्हें खुद के लिए समय नहीं मिल पाता इसलिए तुम खुद पर ध्यान नहीं दे पाती।अब तो मम्मी भी नहीं है।शिल्पा की शादी हो गई, मुकुल हॉस्टल में रहकर पढ़ाई पूरी कर रहा है।अब क्या वजह है..? सौरभ ने पूछा।

"सौरभ बढ़ती उम्र के साथ तुम सठियाने लगे हो..? बाइस साल हो चुके हैं हमारी शादी को,याद है या नहीं..? रत्ना ने कहा।

"मुझे सब याद है रत्ना..! जिंदगी के यह बाइस बसंत मुझे पतझड़ से कम नहीं लगे..!

"पतझड़ से क्या मतलब..? क्या तुम इतने सालों से मजबूरी में यह रिश्ता निभा रहे हो सौरभ..? सीधे सीधे क्यों नहीं कहते कि अब मुझसे मन भर गया..? रत्ना रोने लगी।

"बस शुरू हो गया तुम्हारा रोना ..?बस इसलिए मैं कुछ नहीं कहकर खुद को व्यस्त रखता हूँ..!

"मैं ही हमेशा ग़लत होती हूँ क्या..?

मैंने कब कहा तुम ग़लत हो..? मैं तुमसे थोड़ा सा अटेंशन ही तो माँग रहा हूँ।रत्ना सच में मैं तुमसे बहुत प्यार करता हूँ। मैं चाहता हूँ तुम हमेशा फूलों की तरह खिली खिली रहो।

"ऐसे..यह ताने सुनकर..?

ताने नहीं मेरी ख्वाहिश है रत्ना..!अरे बढ़ती उम्र के साथ पति-पत्नि के रिश्ते की खूबसूरती दिन पर दिन निखरती जाती है।मैं हर दिन इसी उम्मीद से घर लौटता हूँ कि आज तुम मुस्कुरा कर मेरा स्वागत करोगी।पर तुम्हारा भावहीन चेहरा देखकर  चुपचाप टीवी देखने लगता हूँ।एक बार पिछले बाइस साल में लौटकर देखो रत्ना तुमने कुढ़न ने ज़िंदगी के कई सुनहरे लम्हों को खो दिया है...!इतना कहकर सौरभ अपने कमरे में चला गया।

"सौरभ..! रत्ना ने हाथ बढ़ाकर रोकना चाहा पर नहीं रोक पाई।आज पहली बार तो नहीं,यह बात सौरभ कई बार कह चुके हैं। क्या सच में मैं ही जिम्मेदार हूँ..? रत्ना बीते लम्हों में साथ बिताए खुशी के लम्हे ढूँढने लगी।

सौरभ और रत्ना की अरेंज मैरिज थी। सौरभ जब पहली बार रत्ना से मिला तो उसे देखते ही हाँ कर दी थी।

"इस रिश्ते के लिए मेरी हाँ है। और आपका मेरे बारे में क्या ख्याल है..?सौरभ ने पूछा।

जबाव में रत्ना ने शरमाते हुए हाँ में सिर हिला दिया।

"रत्ना मम्मी को अर्थराइटिस की प्रॉब्लम है। अभी तो शिल्पा है तो उन्हें सहारा मिल जाता है। तुम सब सँभाल लोगी ना..? मैं मम्मी और शिल्पा छोटी सी फैमिली है मेरी..! सौरभ ने धीरे से कहा।

"आपकी फैमिली अब से मेरी भी फैमिली है सौरभ जी..! रत्ना का जवाब सुनकर सौरभ ने बाहर आकर मम्मी के कान में अपना निर्णय बता दिया।

"सौरभ ने हाँ कर दी भाईसाहब,अब बिटिया से भी पूछ लीजिए..! मालती ने कहा।यह सुनकर रत्ना की माँ अंदर गईं और आकर सबको मिठाई खिलाने लगी।

यह लीजिए मुँह मीठा कीजिए समधिन जी। हमारी बिटिया ने हाँ कर दी..!बड़ो के आशीर्वाद के साथ रत्ना और सौरभ शादी के पवित्र बंधन में बँध गए।

अभी हँसी-खुशी छः महीने ही बीते थे कि रत्ना ने सौरभ को हर बात के लिए टोकना शुरू कर दिया।

"शिल्पा आज घर पर कैसे..?

भैया वो मम्मी का दर्द बढ़ गया था तो उन्हें डॉक्टर के पास ले जाने के लिए जल्दी घर आ गई..!

"ठीक है मैं भी चलूँ..?

"नहीं भैया आप आराम करो, मैं दिखा लाती हूँ..! शिल्पा मालती को लेकर अस्पताल के लिए निकल गई।सौरभ ने रत्ना को छेड़ने के लिए पीछे से जाकर रत्ना को बाँहों में जकड़ लिया।

"अरे अरे पागल हो गए हो क्या..? रत्ना ने सौरभ को दूर हटाते हुए कहा।

सौरभ रोमांटिक मूड में था तो रत्ना की बेरुखी अनदेखा कर फिर से अपने करीब खींचने लगा।

"सौरभ मुझे इसके अलावा भी कई सारे काम हैं। अभी यह लोग आते ही खाना माँगेंगे। सुबह से रात हो जाती पर काम ही नहीं खत्म होता। तुम शिल्पा से कहो अपना टिफिन खुद बनाया करें। मैं कोई नौकरानी नहीं जो सुबह जल्दी उठकर उसके लिए टिफिन बनाऊँ..!

"कैसी बातें कर रही हो रत्ना..?क्या हुआ अगर दो परांठे उसके लिए भी बना दिए..? मेरे लिए तो बनाती हो ना..? तुम से किसी ने कुछ कहा क्या..? सौरभ ने पूछा।

"सौरभ कोई क्यों कुछ कहेगा? सबकी जरूरत जो पूरी हो रही है..!

"रत्ना क्यों थोड़े से काम के लिए सबके मन में खटास पैदा करना चाहती हो। तुम्हें पता है ना दो महीने बाद शिल्पा की शादी है..?

"हाँ तो ..?ससुराल में तो उसे अपना काम खुद करना ही होगा।तो अभी से क्यों नहीं..? रत्ना और सौरभ की झड़प चालू थी।माँ की फाइल घर पर छूट गई थी। उसे लेने आई शिल्पा दोनों की बहस सुनकर चुपचाप चली गई।

"अच्छा अभी मूड मत खराब करो यार। मैं मौका देखकर बात करता हूँ शिल्पा से,अब खुश..? सौरभ रत्ना को गले लगाते हुए बोला।

"दूर हटो सौरभ,कहा ना अभी नहीं..! रत्ना रसोई में बर्तन साफ करने लगी। सौरभ चुपचाप टीवी देखने लगा। शिल्पा किसी से कुछ कहे बिना सुबह उठते अपना और सौरभ का टिफिन बनाने लगी।

"शिल्पा कुछ हुआ है क्या..?

"कहाँ माँ..?

"रत्ना की जगह आजकल तुम टिफिन बनाने लगी..?

"माँ लेट न हो जाऊँ इस चिंता में जल्दी नींद खुल जाती है तो टिफिन बना लेती हूँ। वैसे भी मेरे जाने के बाद तो भैया को भाभी के ही हाथ का बना टिफिन ले जाना है..!

"हम्म वो तो है..! शिल्पा की बात सुनकर मालती भावुक होकर बोली। रत्ना टिफिन का काम कम होने से फिर खुश रहने लगीं।दो महीने बाद शिल्पा भी शादी करके अपने ससुराल चली गई। रत्ना की फिर से सुबह उठकर वही दिनचर्या शुरू हो गई।

एक शाम किचन में आकर"रत्ना मेरे साथ कमरे में चलो ।मैं  तुम्हारे लिए कुछ लाया हूँ..! सौरभ ने रत्ना के गालों से चिपकी लट पीछे करते हुए कहा।

"मेरे पास अभी टाइम नहीं है।यह सिंक देखो,बस बर्तन बाहर गिरने ही वाले हैं। इन्हें साफ करूँ या तुम्हारे साथ चलूँ..? रत्ना तुनक कर बोली।

"अरे यार मूड मत खराब करो। एक बार चलो ना,सच गिफ्ट देखोगी सब थकान दूर हो जाएगी..! सौरभ ने शिल्पा की कमर में हाथ डालकर कहा।

"फिर वही बात..?कितनी बार कहा एक नौकरानी रख लो तो मेरा कुछ काम कम हो जाए पर नहीं..! रत्ना ने सौरभ को बिना देखे बर्तन साफ करने शुरू कर दिए। सौरभ ने कमरे में आकर रत्ना के लिए खरीदे झुमके और गजरा दोनों साइड टेबल पर रख दिए और कपड़े बदलकर मम्मी के पास बैठ गया।

"सौरभ क्या हुआ..? मालती सौरभ का उदास चेहरा देखकर सब समझ गई थी।

"कुछ नहीं मम्मी..बस थोड़ी थकान हो रही है..!

"अच्छा सुन..! मैं कई दिनों से नोटिस कर रही हूँ कि बहू काम के कारण तेरी ओर ध्यान नहीं दे पा रही इसलिए मैंने आज खन्ना जी की मेड से बात कर ली है ।कल से दोनों टाइम के बर्तन और झाड़ू पोंछा कपड़े सब कर जाया करेगी..!

"आप सब जानती हैं मम्मी ..? सौरभ ने चौंककर पूछा।

" हम्म मालती ने हाँ में सिर हिलाया। सौरभ वैसे भी रत्ना माँ बनने वाली है।उसे आराम की जरूरत है। मुझे तो यह दर्द न चैन से जीने देता है और न मरने, बच्चे के जन्म के समय बाई से मुझे सहारा हो जाएगा..!

"ठीक है मम्मी..!मालती की तकलीफ़ बढ़ती जा रही थी। घुटनों के दर्द की वजह से चलना दुश्वार हो रहा था। मुकुल के जन्म की खुशी ज्यादा दिन नहीं ठहरी। मुकुल के जन्म के छः महीने बाद रत्ना मायके गई थी। एक दिन बाई काम पर नहीं आई तो मालती अपने कपड़े धोकर सुखाने के लिए बाथरूम से निकली तो फिसलकर गिर पड़ी।

"सौरभ...!मालती जोरों से चिल्लाई पर घर में कोई नहीं था जो उनकी आवाज सुनता। सिर में गहरी चोट लगने से खून बहने लगा था।दर्द से कराहती मालती बेहोश हो गई।

"आज मम्मी पहली बार घर में अकेली हैं। मैं एक फोन कर लेता हूँ..! सौरभ लंच करने के बाद मालती का फोन ट्राई करने लगा। उसे क्या पता कि घर में मालती बेहोश पड़ी हुई है।

"मम्मी फोन नहीं उठा रहीं..? सौरभ मालती के फोन ना उठाने पर टेंशन में आ गया।"खन्ना आँटी को बोलता हूँ..!

"आँटी मम्मी आपके यहाँ हैं..?

"नहीं सौरभ.. मालती यहाँ नहीं आई। थोड़ी देर पहले मैं भी सरसों का साग और मक्के की रोटी लेकर गई थी तुम्हारे यहाँ पर शायद वो घर पर भी नहीं है..?

"नहीं आँटी मम्मी अकेले कहीं नहीं जाती। मैं अभी घर आ रहा हूँ ।देखता हूँ क्या बात है..!घर के मेन डोर तीन चाबियाँ थीं जिसमें से एक सौरभ घर में रखता था।एक अपने पास और एक रत्ना को मायके जाते समय दे दी थी।

"मम्मी...!ताला खोल सौरभ मालती के कमरे में आया तो खून से लथपथ मालती को देखकर उसकी चीख निकल गई।

"क्या हुआ सौरभ..? अरे यह क्या हुआ आँटी को ? सौरभ तुम आँटी को लेकर बाहर आओ मैं गाड़ी निकालता हूँ। विक्की ने कहा।

"मम्मी आपको कुछ नहीं होगा। मैं आ गया हूँ ना!बस अभी हम अस्पताल चलेंगे.. मम्मी आँखें खोलो.. सौरभ रोते हुए मालती को उठाकर बाहर भागा। विक्की ने तुरंत गाड़ी निकाली और दोनों मालती को अस्पताल के लिए लेकर निकल गए। मिसेज खन्ना ने शिल्पा को फोन कर सब बता दिया और शिल्पा ने रत्ना को फोन कर दिया।

"सौरभ हिम्मत रखिए.. मम्मी को कुछ नहीं होगा..! रत्ना ने सौरभ के कंधे पर हाथ रखते हुए कहा तो सौरभ फफककर रो पड़ा।

"मेरी ग़लती के कारण मम्मी की यह हालत हो गई रत्ना। आज मेड नहीं आएगी यह पता होने पर भी मैं उन्हें अकेला छोड़ ऑफिस चला गया। मम्मी का यह हाल मेरी ग़लती से हुआ है..! सौरभ ने रोते हुए कहा।

"भैया..!!

"शिल्पा तू..? शिल्पा को देखते ही सौरभ उठकर उससे लिपट गया।

"भैया खन्ना आँटी ने फोन कर सब बता दिया है। मम्मी ठीक तो हो जाएंगी ना भैया..?

"पता नहीं अंदर क्या चल रहा है..? मम्मी रिकवर कर रही हैं या नहीं..?मेरा दिल बैठा जा रहा है..! सौरभ ने कहा।

तभी आइसीयू का दरवाजा खुला और डॉक्टर बाहर निकल कर आए।"सॉरी हमने उन्हें बचाने का हर संभव प्रयास किए  पर खून अधिक बह जाने के कारण उन्हें बचा नहीं पाए।यह सुनते ही सौरभ और शिल्पा फूट-फूटकर रो पड़े। मालती के तेरहवी तिथि के बाद शिल्पा अपनी ससुराल लौट गई।अब रत्ना भी सौरभ को समय देने लगी थी।बस कुछ समय सौरभ और रत्ना के बीच सब ठीक रहा।

"रत्ना कहाँ चलीं ?चाय रखकर वापस जाती रत्ना का हाथ पकड़कर सौरभ बोला।"यार कभी तो मेरे पास भी बैठ लिया करो..!

"अभी नहीं सौरभ.!! अभी मुझे मुकुल का होमवर्क पूरा करवाना है।खाना भी बनाना है। उसे खाना खिलाकर समय पर सुलाना है..!

"बस पाँच मिनट यार!! अभी तो बस सात बजे हैं..? तुम्हारे साथ वक्त बिताना अच्छा लगता है रत्ना। सौरभ ने कहा।

"तो ट्यूशन लगा दो मुकुल की..? तुम्हें क्या पता उसे होमवर्क कराने में कितनी मेहनत करनी पड़ती है..?

"ट्यूशन..?अभी पाँचवी क्लास में है बच्चा और उस पर ट्यूशन की भी बोझ डाल दूँ..?जाओ मत बैठो, तुम होमवर्क कराओ जाओ..! सौरभ अखबार उठाकर पढ़ने लगा। ऐसे ही समय पंख लगाकर गुजरता रहा।कभी खुशी से तो कभी मजबूरी और कभी जबरदस्ती दोनों अपनी जरूरतें पूरी करते रहे।

"रत्ना यह देखो क्या लाया हूँ..!

"क्या है..? साड़ी अरे वाह..!

"रत्ना आज हमारी शादी को अठारह साल पूरे हो गए तो मैंने सोचा आज कहीं घूमने चलते हैं।सारा दिन साथ बिताएंगे और खाना भी बाहर खाएंगे..! सौरभ ने कहा।

"वाह कितनी सुंदर है। बाहर..? सौरभ मैं तो तुम्हारे साथ आज माँ के यहाँ बसंत नगरी जाने का प्लान बनाए थी।कल मुकुल हॉस्टल जा रहा है इसलिए माँ मुकुल के साथ कुछ समय बिताना चाहती हैं।मैंने माँ को फोन करके बता दिया था कि हम वहीं पार्टी करेंगे तो भाभी ने हमारी शादी की सालगिरह के सेलीब्रेशन के लिए बहुत सारी तैयारियाँ कर रखीं हैं..!

"रत्ना तुम जानती हो ना यह दिन मेरे बहुत खास है?इसे मैं सिर्फ तुम्हारे साथ बिताना चाहता था।तुम्हें एक बार तो मुझसे पूछना चाहिए था..! सौरभ धीरे से बोला।

"सॉरी सौरभ..अब मना कैसे करूँ..?चलो ना चलते हैं..! रत्ना सौरभ के गले में बाहें डालकर बोली। सौरभ को तो बस रत्ना का प्यार चाहिए था।वो उसकी प्यार भरी मनुहार ठुकरा नहीं सका और हाँ कर दी।

"कैसी लग रही हूँ..? रत्ना सौरभ की दी हुई साड़ी पहन कर तैयार हो गई।

"बहुत ज्यादा सुंदर..!!रत्ना मैं तुम्हें हमेशा ही इस रूप में देखना चाहता हूँ। तुम ऐसे ही बनठन कर रहा करो..! सौरभ खुश होकर बोला।

"ऐसे..? सौरभ घर के काम से फुर्सत कहाँ मिलती है..? अभी मुकुल आगे की पढ़ाई करने हॉस्टल जा रहा है।तब काम कम हो जाएगा तो तुम्हारी यह इच्छा भी पूरी कर दूँगी।चलें..?

"हम्म चलो..मुकुल क्लास से वहीं आने वाला है..?

"हाँ मैंने उसे सुबह ही बता दिया बस तुम्हें ही बताना भूल गई थी..! रत्ना ने दरवाजा लॉक किया और सौरभ ने गाड़ी बाहर निकाल ली, दोनों बसंत नगरी के लिए निकल गए।रात भर खूब एंजॉय किया। सौरभ मायके में रत्ना के चेहरे की चमक देखकर हतप्रभ था। मुकुल दूसरे दिन अपने मामा के साथ दिल्ली के लिए निकल गया।बेटे की याद में रत्ना उदास रहने लगी।

"रत्ना यह क्या शक्ल बनाए रहती हो..? मुकुल तो अब पहले की तरह हमारे साथ रहे,यह मुमकिन नहीं। तुम्हें खुद को बदलना होगा।अभी पढ़ाई, फिर नौकरी कहाँ ले जाए ?या फिर विदेश..? अरे यार खुश रहो, मुस्कुराओ,देखो ज़िंदगी कितनी खूबसूरत है..!

"आपको तो मेरी शक्ल से ही चिढ़ है..? मुकुल अपनी माँ को छोड़कर कहीं नहीं जाने वाला। देखना पढ़ाई पूरी होते ही यहीं नौकरी ढूँढेगा..! सौरभ कुछ नहीं बोला।

तभी डोरबेल बज उठी और उसकी आवाज से रत्ना ख्यालों से बात निकल आई। रत्ना ने उठकर दरवाजा खोला तो बाहर मिसेज खन्ना खड़ी थी।

"अरे आँटी आप ? आइए अंदर आइए।आप कहीं बाहर जा रही हैं क्या..? मिसेज खन्ना को तैयार देख रत्ना ने पूछा।

"नहीं क्यों..?

"वो आपको तैयार देखा बस इसलिए..!

"मैं तो हमेशा ही ऐसे ही रहती हूँ,कभी गौर नहीं किया क्या ? मैं यह प्रसाद देने आई थी। विक्की वैष्णो देवी के दर्शन करके आया है।

"पैंसठ साल की उम्र में खन्ना आँटी खुद को इतना मेनटेन रखती हैं तो मैं क्यों नहीं..? रत्ना ने खुद को जाकर आईने में निहारा।उलझे और अधपके बाल,अस्त व्यस्त साड़ी, खन्ना आँटी के मुकाबले अपने आप को देख पैंतालीस की उम्र में साठ वाली फीलिंग आने लगी।

"सही तो कहते हैं सौरभ, मैंने ज़िंदगी के बाईस बसंत कुढ़-कुढ़कर निकाल दिए।सच कैसी लगने लगी हूँ मैं..? मैंने ना तो अपने छोटे से परिवार को सही से सँभाला न कभी खुद की केयर की। रत्ना ने सौरभ का हेयर कलर उठाया और अपने बालों को कलर कर सूखने छोड़ दिया और रात का खाना बनाने लगी।

"खाना तो बन गया।अब बाल धोकर तैयार हो जाती हूँ फिर सौरभ को जगाऊँगी।सौरभ रत्ना की बहस से बचने के लिए कमरे में आकर सो गया था।

रत्ना ने बाल सुखाकर खुद को आईने में देखा तो अपने चेहरे में फर्क देखकर मुस्कुरा उठी। उसने बालों को सँवारकर जूड़ा लगाया और होंठों पर हल्की सी लिपस्टिक लगाकर साड़ी का पल्लू ठीक किया ही था कि "यह हुई ना बात.. वाह यह है मेरी असली रत्ना..! सौरभ ने आकर उसे बाहों में जकड़ लिया।

"सौरभ छोड़िए ना..! रत्ना शरमाते हुए बोली।

"बस यही छोटा सा बदलाव चाहता था रत्ना।देखो कोई है जो खूबसूरती में तुम्हें टक्कर दे सके..?लगता है इस बार बसंत समय से पहले ही अपनी महक बिखेरने लगा..!

"हाँ सौरभ मैं तुम्हारी बातों की सच्चाई समझ गई। मैं पिछले बाईस बसंत की भरपाई तो नहीं कर सकती पर अब आने वाला हर बसंत ऐसे ही महकेगा..! 

तय कर लिया है मैंने

सदा रंग प्रेम है रंगना

कभी ना लागे अब फीका

खुशियों का यह अँगना

रिश्ता तेरा मेरा..रिश्ता तेरा मेरा.. गुनगुनाते हुए रत्ना सौरभ के सीने से लग गई।

©® अनुराधा चौहान'सुधी'स्वरचित







23 comments:

  1. जी नमस्ते ,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शुक्रवार(०६-०५-२०२२ ) को
    'बहते पानी सा मन !'(चर्चा अंक-४४२१)
    पर भी होगी।
    आप भी सादर आमंत्रित है।
    सादर

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    1. हार्दिक आभार सखी।

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  2. सार्थक सन्देश देती सुंदर कहानी !!

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    1. हार्दिक आभार आदरणीया।

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  3. Replies
    1. हार्दिक आभार आदरणीय।

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  4. अनुराधा जी, कहानी तो अच्छी है पर इसमें सब कुछ पति के हिसाब से ही हो रहा है. पहले औरत पर ज़िम्मेदारियों का बोझ पर बोझ लादते चलो फिर उस से पूछो कि तू बन-संवर कर क्यों नहीं रहती?
    मेरे विचार से पतिदेव को धता बता कर रत्ना को अपने हिसाब से आगे की ज़िंदगी जीनी चाहिए थी न कि उसके इशारे पर सभा की परी बन कर.

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    1. हार्दिक आभार आदरणीय।

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  5. सुंदर कथा सकारात्मक अंत।
    जीवन को सफल बनाना हो तो कुछ त्याग कुछ तालमेल बस।

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    1. हार्दिक आभार सखी।

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  6. Replies
    1. हार्दिक आभार आदरणीय

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  7. वाह!सखी ,सुंदर कहानी ..।

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    1. हार्दिक आभार सखी।

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  8. Replies
    1. हार्दिक आभार आदरणीया

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  9. बहुत सुन्दर कहानी

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  10. हार्दिक आभार आदरणीया दी।

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  11. छोटी-मोटी इधर-उधर की बातों को छोड़ दें, एक दूसरे की भावनाओं को समझ लें और एक दूसरे का ख्याल रखे तो आपसी रिश्तों में मिठास घुली रहती है, पति-पत्नी में सहयोगत्मक भावना जरुरी है, .. .. थोड़ी देर ही सही लेकिन रत्ना ने जीवन वसंत को समझ लिया
    बहुत अच्छी प्रेरक कहानी है

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    1. हार्दिक आभार आदरणीया।

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  12. बहुत सुन्दर भावपूर्ण कहानी ।

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  13. बहुत सुन्दर कहानी अनुराधा जी !
    वाकई बहुत से लोग स्वभाव से ही नाखुश होते हैं चलो रत्ना को अपनी गलती समझ तो आई ।
    लाजवाब कहानी।

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