"प्रभा मौसम बहुत सुहाना हो रहा है और वीकेंड भी आ रहा है।आज रात को मैंने और मेरे कुछ दोस्तों ने घूमने का प्लान बनाया है। तुम फटाफट बैग्स पैक कर लो आज ही निकलेंगे..! विकास ने ऑफिस का बैग टेबल पर रखते हुए कहा।
"विकास आप बहुत भींगे हुए हो। पहले जल्दी से कपड़े चैंज कर आओ वरना ठंड लग जाएगी। मैं चाय बनाकर लाती हूँ ।फिर बात करते हैं...!प्रभा ने टॉवेल पकड़ाते हुए कहा।
"ओके माई डियर...! विकास कमरे की ओर चला गया।
"आज मौसम बहुत ठंडा हो रहा है।साथ में कुछ गरम खाने के लिए बना लेती हूँ। विकास को अच्छा लगेगा...!" प्रभा चाय के साथ पकोड़े तलने लगी।
"वाह पकोड़े...!!!!प्रभा तुम कैसे मेरे मन की बात समझ लेती हो यार? सच्ची आज ऑफिस से निकला तो यही सोचकर निकला था कि तुम्हारे लिए बाबूलाल की दुकान से गर्मागर्म पकौड़े ले जाऊँगा।पर यह कमबख्त बरसात तेज होती गई तो चुपचाप घर चला आया..!यह कहकर विकास पकोड़ों का आनंद लेने लगा।
"अच्छा? और इस तेज बारिश में आपको तो ऐसे मौसम में घूमने जाना है...?प्रभा व्यंग्य से हँसी और चाय की चुस्कियांँ लेने लगी।
"हाँ जाना है ना, इसमें हँसने वाली क्या बात है? बहुत दिनों बाद अकेले रहने का मौका मिला है तो कहीं एंजॉय करके आते हैं।तुम बैठी क्यों हो?अब चलो जल्दी से पैकिंग शुरू कर दो..!"विकास ने पूछा।
"सॉरी विकास..पर हम कहीं नहीं जा रहे।अभी बरसात बहुत तेज है जब बरसात कम होगी तब घूमने का सोचेंगे..!प्रभा ने कहा।डेढ़ साल भर पहले ही विकास की शादी हुई तभी घूमने गए थे। विकास को मौका मिला तो फिर से घूमने जाने का प्लान बना लिया।दो दिन के लिए प्रभा के सास-ससुर अपने किसी रिश्तेदार के यहाँ गए थे।
"तुम बहुत बोरिंग हो प्रभा..हुंहू! विकास ने गुस्सा होते हुए कहा।
"विकास आप बेकार ही नाराज होने लगे।जोर देखो बारिश का..? कम होता तो मौसम सुहाना लगता।ऐसी बरसात सिर्फ रुलाती है..!प्रभा बोली।
"अरे यार इस समय सभी लोग वाटरफॉल देखने और बारिश एंजॉय करने जाते हैं।हम अकेले नहीं, हमारे साथ आशीष और शशांक भी अपनी वाइफ को लेकर जा रहे हैं..!"
"वो जाते हैं तो जाने दो!मैं इतनी बारिश में न खुद जाऊँगी और ना आपको जाने दे सकती।विकास पापा जी कहकर गए हैं कि उनकी अनुपस्थिति में कहीं जाना नहीं।कभी कभी बड़े कुछ कहकर जाते हैं तो उसके पीछे कोई न कोई कारण अवश्य होता है..! हमें भी उनका कहा नहीं टालना चाहिए। वैसे भी सबसे ज्यादा दुर्घटनाएँ भी इसी समय बहुत होती हैं।बुरा वक्त कहकर नहीं आता। तुम देख रहे हो ना पिछले दो दिन से बहुत ज्यादा बरसात हो रही है?प्रभा बोली।
"पर मैंने उन्हें हाँ कर दी है..!
"तो क्या हुआ? कोई बहाना बनाकर मना भी तो किया जा सकता है..?या फिर सीधे सीधे कह दो मैंने आने से मना कर दिया है..!प्रभा ने कहा।
"ठीक है मना कर देता हूँ।पर आज के बाद कहीं चलने को मत कहना..! विकास ने फोन करके दोस्तों को मना कर दिया कि प्रभा इतनी तेज बारिश में वाटर फॉल्स देखने का रिस्क नहीं लेना चाहती।
"विकास आप बेकार ही नाराज हो रहे हैं। जोरदार बरसात देखने में अच्छी लगती है पर होती नहीं। आप समझदार हो फिर भी? मैं तो आपसे इतना ही कहूँगी घर पर बैठकर बरसात का आनंद लो घूमने का रिस्क नहीं।जब कम होगी तब चलेंगे...!
"मुझे अब कहीं नहीं जाना..! विकास रूठकर अंदर चला गया।
"लो अब बच्चों जैसे रूठ गए।खैर कोई नहीं मैं मना लूँगीं..!प्रभा मुस्कुराते हुए चाय के कप रखकर विकास की पसंद का खाना बनाने लगी।
"विकास आइए खाना लगा दिया है..!प्रभा ने आवाज लगाई। विकास...? प्रभा समझ गई विकास ऐसे नहीं आने वाला तो खुद कमरे में जाकर उसे मनाकर ले आई। खाना खाने के दौरान पूरे समय विकास चुप रहा और प्रभा ने भी कुछ नहीं कहा।
दूसरे दिन दोपहर में विकास अनमना सा बैठा टीवी देख रहा था।घूमने की बात से अभी तक उसका मूड खराब ही था।
विकास जरा न्यूज लगाओ देखें बारिश ने कहाँ कहाँ कहर बरपाया है...!प्रभा ने कहा।
विकास ने न्यूज लगाई वैसे ही उसके मुँह से "अरे बाप रे"निकल गया।
"क्या हुआ विकास..? प्रभा ने चौंककर पूछा।
टीवी में न्यूज थी। बरसात के मौसम मे वाटरफॉल में नहाने का लुत्फ उठाने गए पर्यटक अचानक से जलस्तर बढ़ जाने से फंस गए और कुछ तेज बहाव में बह गए। जिन्हें बचाने के लिए युद्धस्तर पर रेस्क्यू ऑपरेशन चल रहा है।"इस जगह ही हम सब जाने वाले थे प्रभा..?
"क्या.??ऐसी बारिश में घूमने का निर्णय ही बेवकूफी भरा था। देखा हो गया ना काण्ड ? इसलिए मैं जाने से मना कर रही थी। तुम्हारी जिद की वजह से आज हम भी पता नहीं किस हाल में होते?अब सोच क्या रहे हो?फोन करो आशीष वगैरह ठीक तो हैं..?
"सच्ची यार.. गुस्से में मैंने तुम्हें क्या कुछ नहीं कह दिया। आज तुम्हारे सही निर्णय के कारण ही हम घर पर सुरक्षित हैं। मैं अभी उन लोगों को कर पता करता हूँ। विकास ने फोन करके पता किया तो पता चला आशीष और शशांक के घरवालों ने भी प्रभा के मना करने पर उन्हें नहीं जाने दिया था इसलिए वो भी घर पर सुरक्षित थे और न्यूज देखकर प्रभा को धन्यवाद दे रहे थे।
"क्या हुआ सब ठीक है..? प्रभा ने पूछा।
"तुम्हारी वजह से आज हम सब सुरक्षित हैं प्रभा..!"
"मैं समझी नहीं..?"
"तुम्हारे मना करने पर आशीष और शशांक के घरवालों को भी एहसास हुआ कि यह घूमने का सही समय नहीं है। उन्होंने भी उन लोगों को मना कर दिया था..! विकास ने फोन पर हुई सारी बातें बताईं।
"थैंक गॉड..वो लोग भी सुरक्षित हैं।अब तो आप नाराज़ नहीं हो ना..? प्रभा ने मुस्कुराते हुए पूछा।
"नो डियर अब जब तक तुम नहीं कहोगी,हम कहीं घूमने का प्लान नहीं करेंगे..! विकास बोला।
"मैं नहीं पापा जी!वो ही कह गए थे कि बारिश में कहीं भी घूमने गए तो मुझसे बुरा कोई नहीं होगा और विकास को भी समझा देना...! प्रभा हँसते हुए बोली।
"क्या..? ओह तभी मैं सोचूं तुम इतनी समझदार कबसे हो गई..?यह सुनकर प्रभा हँसने लगी और उसे हँसता देख विकास भी हँसने लगा।
©®अनुराधा चौहान'सुधी'स्वरचित