Thursday, February 27, 2020

घूँघट

प्रिया बात को समझो..! हमें हमेशा यहाँ नहीं रहना है.. मैं तुम्हारे ऊपर कोई रोक लगाता हूँ.? नहीं ना, फिर यह गुस्सा कैसा..?
चलो माँ को सॉरी बोलकर बात ख़त्म कर दो.!क्यों अमर? गलती बता दो..! मैं माफी माँगने के लिए तैयार हूँ।
प्रिया की अमर से मुलाकात लंदन में हुई थी।प्रिया बचपन से ही लंदन में पली-बढ़ी और अमर लंदन की उसी कंपनी में नौकरी करता था जहाँ प्रिया भी नौकरी करती थी।
प्रिया पहली बार ससुराल आई थी।अमर के कहने पर उसने साड़ी पहन रखी थी।
अमर की माँ ने नई बहू के स्वागत में बहुत सारी तैयारियाँ कर रखी थी और रिश्तेदारों को बुला रखा था।
प्रिया घर आ गया,जरा घूँघट कर लो..!घूँघट..?हाँ वो फिल्मों में दुल्हन मूँह ढाँकती है वैसे..! तुम पहली बार घर आ रही हो इसलिए..!यह कहकर अमर प्रिया को घूँघट ओढ़ा देता है।
द्वार पर माँ आरती थाल सजाए खड़ी थी। गृह-प्रवेश की रस्म के बाद मुँह दिखाई,प्रिया को मुँह ढाँके घबराहट होने लगी थी।
गोमती तेरा बेटा बहू तो बहुत सुंदर ले आया..!जा ढोलक ले आ कुछ गाना-बजाना भी हो जाए..!बुआ ने आदेश दिया।
प्रिया इन सब रस्मों से बेचैन होने लगी थी।उसे ऐसे माहौल की आदत नहीं थी।इसी बेचैनी में उसने थोड़ा-सा मुँह खोल लिया, जिसे देख बुआ ने बवाल मचा दिया।
हँसी-खुशी का माहौल खराब हो गया। गोमती ने बुआ को मनाने की बहुत कोशिश की पर वो नहीं मानी तो माँ ने प्रिया को डाँटकर कमरे में भेज दिया।
तब कहीं जाकर बुआ ने और रिश्तेदारों ने खाना खाया और जाते-जाते गोमती को बहू को सख्ती से संभालने की हिदायत दे गए।
मानता हूँ प्रिया तुम्हारी गलती नहीं है..! और फिर दो दिन बाद हम चले जाएंगे..! फिर कितने दिन बाद माँ से मिलना हो..?माँ की खुशी के लिए मान जाओ।
प्रिया अमर की बात सुनकर फिर से घूँघट ओढ़कर सास से माफी माँगने उनके कमरे में पहुँची।
माँ..!!अरे बहू वहाँ क्यों खड़ी हो..?आओ बेटा अंदर आ जाओ..!यह घूँघट क्यो..? वो माँ रात को..
सिर से घूँघट हटा दो..!समझती हूँ तुम्हे आदत नहीं है..!माँ मुझे माफ़ कर दो..!प्रिया बोली।
किस गलती के लिए..? प्रिया बेटा तुम मेरी बेटी हो बहू नहीं..! गोमती ने सिर से घूँघट हटाते हुए कहा।जिज्जी घर की बड़ी हैं ..! इसलिए उनको कुछ न कह सकी।
बेटा इज्जत दिल से होती है घूँघट से नहीं..!पर समाज में रहना है तो नियम मानने पड़ेंगे...!पहली बार ससुराल आई हो..!बहू के स्वागत में कुछ रीत तो निभानी थी।
इसलिए कल रिश्तेदार बुलाए थे,पर अब जितने भी दिन हो..? तुम्हें जैसे रहना हो वैसे रहो..!बस खुश रहो..!
माँ..!प्रिया रोते हुए गोमती के गले लग गई ,आँखों से आँसू के साथ गलतफहमी भी दूर हो गई।
बस माँ सारा प्यार भाभी पर लुटा दोगी या हमारे लिए भी थोड़ा रखोगी..!अमर के साथ दोनों छोटे भाई आकर प्रिया को छेड़ते हुए बोले।
***अनुराधा चौहान***
चित्र गूगल से साभार

9 comments:

  1. बहुत प्यारी कथा है अनुराधा जी | काश हर सास गोमती की तरह अपनी बहू की भावनाओं का ख्याल रखे | वैसे घूंघट की परम्परा समाज से धीरे- धीरे गायब हो रही है जो संतोष का विषय है | पहले समय में एक नारी की सारी उम्र घुंघट में ही निकल जाती थी | हार्दिक स्नेह सखी इस सुंदर कहानी के लिए |

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    1. हार्दिक आभार प्रिय रेनू जी,आपकी प्रतिक्रिया पाकर मेहनत सफल हो गई।

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  2. हार्दिक आभार सखी

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  3. बहुत ही सुंदर सीख देती कहानी ,सादर नमन अनुराधा जी

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  4. बहुत ही सुन्दर और सार्थक लघुकथा... घूँघट तो अब हट ही रहा है पर सास का ये स्नेहपूर्ण व्यवहार आपकी कहानी को हटकर बनाता हो बहुत हुआ सास बहू का मनमुटाव अब की शिक्षित सास बहूओं की मनस्थिति समझती हैं...
    वाह!!!

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  5. बहुत सुंदर सद्भावों को दर्शाती सुंदर कथा सखी।

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