Tuesday, July 2, 2019

कालिंदी भाग (2)

पिछले भाग में आपने पढ़ा कालिंदी गगन के साथ अपनी दुनिया बसाने जा रही थी पर फिर अपने कदम वापस ले लेती है और बाबा के पास जाकर बैठ जाती है।

अब आगे..
सो जाओ बाबा बहुत रात हो गई, पिता को चादर उड़ा कर कालिंदी सीधे छत पर आ गई सोचने लगी, मैं अपनी खुशी के लिए क्या करने जा रही थी आज़ अगर चली जाती तो माँ का क्या होता एक ओर बाबा की बीमारी दूसरी ओर दो जवान बहनें सब तबाह हो जाता है।
पर गगन की क्या गलती गगन का ख्याल आते ही कालिंदी फूट-फूटकर रोने लगी रोते-रोते छत पर ही सो गई।
बाईस वर्ष की कालिंदी बेहद खूबसूरत थी जो भी उसे देखता वो देखता रह जाता अपने माता-पिता और दो जुड़वां बहनों जो उससे उम्र में तीन साल ही छोटी थी उनके साथ झाँसी में रहती थी
कालिंदी!! सुबह-सवेरे माँ की आवाज़ सुनकर कालिंदी की आँख खुली।झटपट वो नीचे आती है क्या बात है माँ क्या हुआ?
यह क्या तेरी आँखों को क्या हुआ यह लाल कैसे हो रही सोई नहीं थी क्या? कुछ नहीं माँ कुछ चला गया था रात को इसलिए।
अच्छा सुन जयंत आने वाला है दीदी के साथ तो नहाकर अच्छे से तैयार हो जा और हाँ वो ग्रीन वाला सूट पहनना तुम पर बहुत अच्छा लगता है।
माँ तुम यह सब क्यों कर रही हो तुम जानती हो न मैं..हाँ-हाँ जानती हूँ तुझे वो फटीचर पसंद है जिसके पास खुद का एक घर नहीं और मास्टरी करके कितना कमाएगा उतना ही जितना तेरा बाप कमाता रहा न ढंग का खाना न ढंग के कपड़े...माँ आपने फिर बाबा को ताना मारा मुझे यह सब अच्छा नहीं लगता है।
तो और क्या कहूँ जयंत दीदी का देवर है अच्छा घर अच्छा कारोबार तलाकशुदा है तो क्या हुआ पैसे वाला है।उस घर जायेगी तो नंदा और मुक्ता की किस्मत सुधर जायेगी।
मैं अनपढ़ गंवार तो कुछ कमा नहीं सकती ऐसे में तेरे पिता का इलाज का खर्चा। धीरे-धीरे करके सारे गहने बिक चुके हैं। जयंत सबकी जिम्मेदारी लेने के लिए तैयार है।
माँ तुम जयंत से मेरी शादी इसलिए करना चाहती हो कि घर में कमाई का कोई जरिया नहीं है। चिंता मत करो मैं कोई नौकरी और ढूँढ लेती हूँ। तब तक मेरी ट्यूशन की कमाई से गुजर कर लो।सब ठीक हो जायेगा माँ।
मुझे कुछ नहीं सुनना तू वही कर जो मैं कह रही हूँ तेरी शादी गगन से तो हरगिज नहीं होने दूँगी।
नहीं करूँगी माँ गगन से शादी रोते हुए कालिंदी ने कहा पर जयंत से भी नहीं शादी नहीं करूँगी यह मेरा फैसला है।
कालिंदी तेजी से अपने कमरे में चली गई बिस्तर पर गिर कर फफक कर रोने लगी,कुछ देर बाद उठी नहाकर तैयार होने लगी उसकी आँखों में किसी फैसले की झलक दिखाई दे रही थी। सफेद रंग के सूट में बहुत सुंदर लग रही थी। कानों में छोटी-छोटी बालियाँ पहनकर अपने सर्टिफिकेट की फाइल हाथ में लेकर नौकरी के लिए अपने ही कॉलेज के प्रिंसिपल से मिलने के लिए निकल गई।

क्रमशः

***अनुराधा चौहान ***

11 comments:

  1. बहुत सुन्दर गद्य रचना .अगले अंक की प्रतीक्षा रहेगी .
    हिन्दीकुंज,हिंदी वेबसाइट/लिटरेरी वेब पत्रिका

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  2. धन्यवाद रवीन्द्र जी

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  3. आगे की कहानी की.प्रतीक्षा में....

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    1. हार्दिक आभार श्वेता जी

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  4. बहुत खूब
    आगे की प्रतीक्षा में...

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    1. हार्दिक आभार सुधा जी

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  5. सुन्दर रचना आगे की अभिव्यक्ति की प्रतीक्षा में

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