कीर्ति बहुत खुश थी। खुश क्यों न हो,आज बड़े दिनों बाद उसे उसकी मनमर्जी से घूमने की इजाजत जो मिली थी।
कीर्ति,सोनल, रिया,रूपा सब झील के किनारे बैठे हुए थे।
आज मैं बहुत खुश हूँ कीर्ति बोली।क्यों आज क्या खास है? अरे माँ ने मुझे पिकनिक मनाने के लिए भेज दिया यही तो खास बात है।
वरना हर साल की तरह इस बार भी मैं अकेली घर में रहती और तुम सब मजे करते।
हाँ यह बात तो सही है, आठवीं कक्षा में आकर तुझे पिकनिक मनाने का अवसर मिला।
अरे लड़कियों वहीं बैठी रहोगी क्या?आओ बोट भर जाएगी।आए दीदी सारी लड़कियाँ बोट की तरफ दौड़ पड़ती है।
तभी कीर्ति को धक्का लगता है, वो गिर जाती है। उसके सिर पर कोई कसकर हाथ मारता है।कहाँ ध्यान है, तेरा पूरा दूध गिरा दिया।
ओह यह स्वप्न था। मैं तो घर में ही हूँ.. पिकनिक का आनंद तो मेरी सहेलियाँ उठा रही है। और मैं पिकनिक की कल्पना में खुश थी।
कीर्ति!! क्या हुआ?कहाँ ध्यान रहता है तेरा.. कौनसी दुनिया में खोई रहती है यह लड़की।
कुछ नहीं माँ कुछ नहीं हुआ.....बस थोड़ी देर बाद बुलाया होता तो मैं झील की सैर भी कर आती।
कीर्ति उदास चेहरा लेकर उठकर कमरे में चली गई।
अब इसे क्या हुआ? कीर्ति की उदासी समझने की जगह सुमित्रा बड़बड़ाते हुए फैला हुआ दूध साफ करने लगी।
*अनुराधा चौहान*
कीर्ति,सोनल, रिया,रूपा सब झील के किनारे बैठे हुए थे।
आज मैं बहुत खुश हूँ कीर्ति बोली।क्यों आज क्या खास है? अरे माँ ने मुझे पिकनिक मनाने के लिए भेज दिया यही तो खास बात है।
वरना हर साल की तरह इस बार भी मैं अकेली घर में रहती और तुम सब मजे करते।
हाँ यह बात तो सही है, आठवीं कक्षा में आकर तुझे पिकनिक मनाने का अवसर मिला।
अरे लड़कियों वहीं बैठी रहोगी क्या?आओ बोट भर जाएगी।आए दीदी सारी लड़कियाँ बोट की तरफ दौड़ पड़ती है।
तभी कीर्ति को धक्का लगता है, वो गिर जाती है। उसके सिर पर कोई कसकर हाथ मारता है।कहाँ ध्यान है, तेरा पूरा दूध गिरा दिया।
ओह यह स्वप्न था। मैं तो घर में ही हूँ.. पिकनिक का आनंद तो मेरी सहेलियाँ उठा रही है। और मैं पिकनिक की कल्पना में खुश थी।
कीर्ति!! क्या हुआ?कहाँ ध्यान रहता है तेरा.. कौनसी दुनिया में खोई रहती है यह लड़की।
कुछ नहीं माँ कुछ नहीं हुआ.....बस थोड़ी देर बाद बुलाया होता तो मैं झील की सैर भी कर आती।
कीर्ति उदास चेहरा लेकर उठकर कमरे में चली गई।
अब इसे क्या हुआ? कीर्ति की उदासी समझने की जगह सुमित्रा बड़बड़ाते हुए फैला हुआ दूध साफ करने लगी।
*अनुराधा चौहान*
चित्र गूगल से साभार
सुंदर कथा।
ReplyDeleteधन्यवाद सखी
Deleteऐसे ही बहुत सारी लड़कियों के सपने पूरे नहीं होते हैं बहुत ही खूबसूरती से कीर्ति के माध्यम से आपने मध्यमवर्गीय लड़कियों के दिल की बात को प्रस्तुत किया
ReplyDeleteधन्यवाद अनिता जी
Deleteकीर्ति की उदासी समझने की जगह सुमित्रा बड़बड़ाते हुए फैला हुआ दूध साफ करने लगी..
ReplyDeleteपुरुष प्रधान समाज में लड़कियों की अनेक इच्छाएँ स्वप्न ही रह जाती हैं, फिर भी मेरा मानना है कि एक मां अवश्य ही अपनी पुत्री की उदासी समझती होगी ?
हाँ स्त्री होने के कारण वह भी इसे पूरा करने में असमर्थ हो , यह अलग बात है।
भावपूर्ण लघुकथा है आपका ।
धन्यवाद शशि भाई
Deleteजी नमस्ते,
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल सोमवार (11-11-2019) को "दोनों पक्षों को मिला, उनका अब अधिकार" (चर्चा अंक 3516) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित हैं….
*****
रवीन्द्र सिंह यादव
हार्दिक आभार आदरणीय
Deleteअत्यंत सुन्दर सृजन अनुराधा जी ।
ReplyDeleteजी हार्दिक आभार
Deleteकई लड़कियों के जीवन की कड़वी सच्चाई व्यक्त करती सुंदर रचना, अनुराधा दी।
ReplyDeleteधन्यवाद ज्योति जी
Deleteबेहतरीन सृजन बहना.
ReplyDeleteसादर
हार्दिक आभार छोटी बहना🌹
Deleteअक्सर ऐसा होता है कि जो हम पाना चाहते हैं वो सिर्फ स्वप्न देख कर रह जाते हैं। सुंदर लघुकथा।
ReplyDeleteजी हार्दिक आभार
Deleteकितने मासूम यूं ही मन मसोस कर छोटी-छोटी खुशियों से वंचित रहते हैं ।
ReplyDeleteयथार्थ पर हृदय स्पर्शी लघुकथा।
हार्दिक आभार सखी 🌹
Deleteझील में बोटिंग करने का सपना टूट गया तो क्या हुआ? कीर्ति कल के सपने में जहाज में बैठकर समुद्र की सैर कर लेगी.
ReplyDeleteधन्यवाद आदरणीय
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