बातें मर्यादा की बड़ी बड़ी
नियत में उनके खोट भरी
राम नहीं किसी को बनना
पर सीता की चाह है रखना
आंखों में जिनके मैल भरा
वो कहां देखते पावन चेहरा
मासूम सुमनों के खिलते ही
तोड़ने आ जाती यह दुनिया
नहीं सुरक्षित नारी जीवन
कलयुग के इन हैवानों से
कितने ही युग बीत गए
बीत गईं कितनी सदियां
नारीे जीवन का अभिशाप बनी
हर युग में रावण की दुनिया
कुचलती आशाएं बेरहम दुनिया
बांध के बंधन पैरों में
करने असुरों का फिर विनाश
आ जाओ मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम
फिर से तुम उद्धार करो
काट के बेड़ियां पैरों से
***अनुराधा चौहान***
बहुत सुन्दर... सटीक...
ReplyDeleteधन्यवाद सुधा जी
Deleteकरने रावण का फिर विनाश
ReplyDeleteजन्म लो मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम
कुचलती आशाएं बेरहम दुनिया
बांध के बंधन पैरों में
फिर से तुम उद्धार करो
काट के बेड़ियां पैरों से
बहुत ही सुंदर अभिव्यक्ति, अनुराधा दी।
धन्यवाद ज्योती जी दशहरे की हार्दिक शुभकामनाएं
Deleteवाह्ह्ह्ह! बहुत ही सुन्दर रचना। शानदार। लाजवाब।
ReplyDeleteमैने जितनी भी रचना दशहरा पे पढ़ा...उनमें से ये सबसे बढ़िया है।
सभी पंक्तियाँ पहले भी सुना है लेकिन आपने एकसाथ सभी पंक्तियों को सुन्दर ढंग से पंक्तिबद्ध किया है...और इसका अर्थ सार्थक भी है।
"...
राम नहीं किसी को बनना
पर सीता की चाह है रखना..."
बहुत-बहुत शुभकामना, अनुराधा जी!
आपका आभार आदरणीय प्रकाश जी
Deleteधन्यवाद अमित जी
ReplyDeleteवाह!!सखी ,बहुत ही उम्दा ।
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार शुभा जी
Deleteसार्थक चिंतन देती रचना ।
ReplyDeleteबहुत बहुत धन्यवाद कुसुम जी
ReplyDeleteसटीक शब्दों में सुन्दर रचना 👌
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार सखी
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