Thursday, October 18, 2018

कुचलती आशाएं



बातें मर्यादा की बड़ी बड़ी
नियत में उनके खोट भरी
राम नहीं किसी को बनना
पर सीता की चाह है रखना
आंखों में जिनके मैल भरा
वो कहां देखते पावन चेहरा
मासूम सुमनों के खिलते ही
तोड़ने आ जाती यह दुनिया
नहीं सुरक्षित नारी जीवन
कलयुग के इन हैवानों से
कितने ही युग बीत गए
बीत गईं कितनी सदियां
नारीे जीवन का अभिशाप बनी
हर युग में रावण की दुनिया
कुचलती आशाएं बेरहम दुनिया
बांध के बंधन पैरों में
करने असुरों का फिर विनाश
आ जाओ मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम
फिर से तुम उद्धार करो
काट के बेड़ियां पैरों से
***अनुराधा चौहान***

14 comments:

  1. बहुत सुन्दर... सटीक...

    ReplyDelete
  2. करने रावण का फिर विनाश
    जन्म लो मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम
    कुचलती आशाएं बेरहम दुनिया
    बांध के बंधन पैरों में
    फिर से तुम उद्धार करो
    काट के बेड़ियां पैरों से
    बहुत ही सुंदर अभिव्यक्ति, अनुराधा दी।

    ReplyDelete
    Replies
    1. धन्यवाद ज्योती जी दशहरे की हार्दिक शुभकामनाएं

      Delete
  3. वाह्ह्ह्ह! बहुत ही सुन्दर रचना। शानदार। लाजवाब।
    मैने जितनी भी रचना दशहरा पे पढ़ा...उनमें से ये सबसे बढ़िया है।
    सभी पंक्तियाँ पहले भी सुना है लेकिन आपने एकसाथ सभी पंक्तियों को सुन्दर ढंग से पंक्तिबद्ध किया है...और इसका अर्थ सार्थक भी है।

    "...
    राम नहीं किसी को बनना
    पर सीता की चाह है रखना..."

    बहुत-बहुत शुभकामना, अनुराधा जी!

    ReplyDelete
    Replies
    1. आपका आभार आदरणीय प्रकाश जी

      Delete
  4. आंखों में जिनके मैल भरा
    वो कहां देखते पावन चेहरा
    मासूम सुमनों के खिलते ही
    तोड़ने आ जाती यह दुनिया...
    सटीक प्रहार मैम, बेहद नपे हुए शब्दाघात किया आपने... वाह

    ReplyDelete
  5. वाह!!सखी ,बहुत ही उम्दा ।

    ReplyDelete
    Replies
    1. बहुत बहुत आभार शुभा जी

      Delete
  6. सार्थक चिंतन देती रचना ।

    ReplyDelete
  7. बहुत बहुत धन्यवाद कुसुम जी

    ReplyDelete
  8. सटीक शब्दों में सुन्दर रचना 👌

    ReplyDelete