Tuesday, May 28, 2019

राई का पहाड़

बचपन से सुनते आए
पहाड़ों के किस्से
कभी असली कभी नक़ली
पहाड़ थे कई किस्म के
कभी दुःख के कभी मुश्किल के
कभी राई का पहाड़ 
बहुत सुना सोचा-समझा
पर समझ नहीं आया
प्रश्नचिंह बन खड़ा हो जाता
राई का पहाड़ होता है कैसा
बड़े हुए तो अब यह जाना
कैसे छोटी-छोटी बातों का
 बहाना लेकर
बन जाते हैं पहाड़ राई के
जो बातों ही बातों में
इतने बड़े हो जाते
फिर कोई नहीं चाहता है
चढ़ कर उतरना
सब चढ़ने के लिए तैयार रहते
यह राई के पहाड़ ऐसे होते
मुसीबत बन कर टूट पड़ते
बदल जाते हैं तकरार के साथ
दुःख का पहाड़ बनकर
***अनुराधा चौहान***
चित्र गूगल से साभार

6 comments:

  1. बहुत सुन्दर सृजन
    सादर

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  2. बहुत खूब शानदार सृजन

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  3. आपकी लिखी रचना "साप्ताहिक मुखरित मौन में" शनिवार 1 जून 2019 को साझा की गई है......... "साप्ताहिक मुखरित मौन" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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    1. जी सहृदय आभार मीना जी

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