Saturday, October 6, 2018

विदाई


मैं बाबुल की नन्ही गुड़िया
मैं नन्ही चिरैया मईया की
खेल कूद जिस संग बड़ी हुई
मैं छोटी बहना भईया की
आज विदाई इस आंँगन से
जिसमें खेली बड़ी हुई
मत रोना भईया मेरे
मैं अपने ससुराल चली
छोड़ चली माँ-पापा को
छोड़ चली घर का हर कोना
याद अगर  मेरी आए
दुःखी होकर कोई मत रोना
रोकर मुझे विदा करोगे
मैं कैसे सह पाऊँगी
दूर होकर तुम लोगों से
मैं कैसे रह पाऊंगी
बेटी तो होती है पराई
प्रभू ने यह रीत बनाई
इस घर में खेली बड़ी हुई
हो रही आज मेरी विदाई
तुम सब तो साथ रहोगे
मैं तो अकेली हो जाऊंँगी
नए रिश्तों में शायद मैं
खुद को ही भूल जाऊंँगी
हँस कर आशीर्वाद मुझे दो
मेरा जहान आबाद रहे
उस घर में जाकर रम जाऊंँ
इतना मुझे प्यार मिले
***अनुराधा चौहान***

2 comments:

  1. बहुत ही सुन्दर और भावपूर्ण रचना

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