टीवी पर न्यूज चल रही थी।गलवान घाटी में भारत और चीन की सेना के बीच हुई खूनी झड़प में और भारतीय वीर जवानों की शहादत देख कर हर्ष और रूही बहुत दुखी हो गए।
दादी माँ देखो! फिर से हमारे जवान शहीद हो गए। क्या मिलता है इन लोगों जो हमारे देश पर हमला करते हैं?इस बार हमला चीन की ओर से हुआ है।
हम्म.. बच्चों सच में ऐसी खबरें देखकर मन बहुत दुःख होता है। हमारे देश की खासियत है कि हमारी सेना कभी भी बिना वजह किसी को हानि नहीं पहुँचाती है पर कोई विश्वासघात करके हमें हानि पहुँचाने की कोशिश करने लगता है तो फिर तगड़ा सबक सिखाती है।
दादी माँ आज हमें वीर शहीदों की कहानी सुनाइए ना!
हाँ-हाँ क्यों नहीं पर पहले दूध खतम करो! आज मैं तुम लोगों को एक ऐसे वीर सैनिक की कहानी सुनाती हूँ जो अपनी मृत्यु के पश्चात भी देश की सेवा करते रहे हैं।
क्या? मरने के बाद!! यह कैसे संभव है दादी माँ?
माँ यह कैसे संभव है? गायत्री के बेटे और बहू भी टीवी बंद करके आ गए।
हाँ बच्चों एक बार सुनकर यह बात अविश्वसनीय लगती है हर कोई इस बात पर जल्दी विश्वास नहीं करता है।पर यह एक ऐसी सच्चाई है जिसे हमारी सेना भी महसूस कर चुकी है और इस बात को मानती भी है।
अच्छा तो फिर सुनाइए!
यह कहानी है बाईस वर्षीय शहीद बाबा हरभजन सिंह जी की जिन्हें नाथूला का नायक भी कहा जाता है। हरभजन सिंह बहुत कम उम्र में देश के लिए शहीद हो गए थे।
हरभजन का जन्म 30 अगस्त 1946 में जिला गुजरांवाला (वर्तमान पाकिस्तान में) के सदराना गांव में हुआ था।हरभजन सिंह ने सन 1955 में डी.ए.वी. हाईस्कूल, पट्टी से मैट्रिक की शिक्षा पूरी की थी।
उसने बाद हरभजन सिंह 30जून 1965 को भारतीय सेना के पंजाब में सिपाही के तौर पर भर्ती हुए थे।
यह उस समय की बात है जब पाकिस्तान ने अचानक ही भारत पर आक्रमण कर दिया था।तब हरभजन सिंह भी भारत की और से युध्द में शामिल हुए थे ।
उनकी वीरता और देश के प्रति सच्ची लगन को देखते हुए बाद में उन्हें 14वी राजपूत रेजीमेंट में ट्रांसफ़र कर दिया गया।
9 फरवरी 1966 को इनका स्थानांतरण 18 राजपूत रेजिमेंट के लिए कर दिया गया।1968 में उन्हें 23वें पंजाब रेजिमेंट के साथ पूर्वी सिक्किम में भेजा गया।
कहते हैं यही वो जगह थी जहाँ बाबा हरभजन सिंह एक हादसे का शिकार होकर असमय ही इस दुनिया से चले गए।
यह 4 अक्टूबर 1968 की बात है। एक दिन जब हरभजनसिंह घोड़े के काफिले पर रसद लेकर तुकु ला से डोंगचुई ले जा रहे थे।जिस रास्ते से वो जा रहे थे वो रास्ता बेहद खतरनाक और फिसलन भरा था।
जगह-जगह से बर्फ फिसल रही थी और अचानक पूर्वी सिक्किम के नाथू ला दर्रे के पास अचानक उनके घोड़े का पैर फिसल गया उन्होंने बहुत संभलने की कोशिश की पर वो गहरी घाटी में गिर गए।
खाई बहुत संकरी और गहरी थी।उस पर ऊँचाई बहुत थी और अत्याधिक ऊँचाई से गिरने से उनकी तत्काल मृत्यु हो गई और खाई में बहने वाले पानी के अत्याधिक तेज बहाव के साथ उनका शरीर वहाँ से बहता हुआ लगभग दो किलोमीटर दूर तक चला गया।
हरभजनसिंह उस समय इस यात्रा पर अकेले जा रहे थे।इस वजह से उनके साथ हुए हादसे का जल्दी ही किसी को पता नहीं चल पाया था। जिस समय खाई में गिरे थे उनकी उम्र मात्र बाईस साल थी।
तो फिर उनको किसी ने ढूँढा नहीं दादी? उनके घरवालों को उनके विषय में कैसे पता चला?
हाँ मां बताइए ना? हमारी भी उत्सुकता बढ़ती ही जा रही है। नेहा और राजीव बोले।
बताती हूँ ध्यान से सुनो!!देर रात तक जब हरभजन सिंह वापस नहीं आए तो उनके साथी सिपाहियों ने अनिष्ट की आशंका से उनकी खोज शुरू कर दी।हर जगह उन्हें बहुत ढूँढा गया पर हरभजनसिंह का कहीं भी कुछ पता नहीं चला।
दो दिन खोजने के बाद थक-हारकर सब चुप बैठ गए।इस
घटना को घटे दो-तीन दिन हो गए थे। बाबा हरभजन सिंह को लेकर उनके साथियों और अधिकारियों के बीच तरह-तरह की बातें होने लगी। कुछ किसी हादसे में शहीद समझ रहे तो कुछ साथी भगोड़ा समझकर कहने लगे कि वो जान-बूझकर कहीं चला गया होगा अब कभी वापस नहीं आएगा।
फिर तीन दिन बाद एक रात हरभजन सिंह अपने सैनिक साथी प्रीतम सिंह के सपने में आए और आकर उन्हें अपने साथ घटित हुई घटना की जानकारी दी और कहा कि वो कहीं नहीं गए बल्कि वो अब इस दुनिया में ही नहीं है।
क्या??यह कैसे हो सकता है?
हुआ है बच्चों!उसी दिन से उनके चमत्कार शुरू हो गए थे।
उन्होंने प्रीतम सिंह से सपने में आकर कहा कि कैसे उनका पैर फिसल जाने से वह गहरी खाई में गिर गए और उनका पार्थिव शरीर पानी के तेज बहाव में बहता हुआ करीब दो किलोमीटर दूर फलां-फलां जगह पर पड़ा हुआ है।तुम लोग सुबह ही जाओ और मेरे पार्थिव शरीर को लेकर आओ और यहीं मेरा अंतिम संस्कार करो यह मेरी इच्छा है।
सुबह होते ही उन्होंने यह बात सभी साथियों को बताई तो उनकी बात पर किसी ने गौर नहीं किया उनसे कहा गया कि तुम उनके बारे में ज्यादा सोचते हो और रात को भी उन्हीं के बारे में सोचते हुए सो गए इसलिए ऐसा सपना आया है।
साथियों की बातें सुनकर प्रीतम सिंह बोले ढूँढने में हर्ज ही क्या है? माना हमने उन्हें कई जगह ढूँढ लिया है चलो एक बार वहाँ भी देख लेते हैं हो सकता है सपना सच हो?
फिर यूनिट के साथियों ने प्रीतम सिंह की बताए हुए सपने के अनुसार नाथूला दर्रे के पास नीचे खाई में खोजबीन शुरू कर दी। जल्दी ही उन्होंने उस स्थान को खोज लिया जैसा सपने में बाबा हरभजनसिंह ने बताया था ठीक वैसे ही उनका पार्थिव शरीर उस जगह से दो किलोमीटर दूर उनकी राइफल के साथ पड़ा मिला।
वीर हरभजन जी को शहीद घोषित कर दिया गया और जैसी उनकी अंतिम इच्छा थी ठीक वैसे ही पूरे राजकीय सम्मान के साथ वही पर उनका अंतिम संस्कार किया जाता है।
हरभजनसिंह ने सपने में यह भी कहा था कि उनके शव का अंतिम संस्कार नाथू ला में ही किया जाए और अंतिम संस्कार करने के बाद उस जगह पर उनकी याद में एक मंदिर बनवा दिया जाए।
पहले तो सैन्य अधिकारिओं ने इस बात को कोरा अंधविश्वास कहकर टाल दिया पर जब बाबा ने वही बात उन लोगों के सपनों में आकर कही, और वहाँ कुछ ऐसी चमत्कारी घटनाएं घटने लगीं और उन्हें भी हरभजन की आत्मा की मौजूदगी पर विश्वास होने लगा।फिर उन्होंने बाबा की बात मानकर उनकी याद में वहाँ एक मंदिर बना दिया।
बाबा हरभजन ने अपने अधिकारियों से कहा उनका शरीर नष्ट हुआ है पर आत्मा जिंदा है।रात के समय वो अभी भी अपनी ड्यूटी को पहले की तरह ही निभाएंगे।फिर बाबा हरभजन सिंह रात में नाथूला में अपनी ड्यूटी निभाने लगे।
और रात के समय सैनिकों को अपने आस-पास बाबा की मौजूदगी का अहसास होने लगा।रात को सैनिक बाबा की मौजूदगी में अपने आप को ड्यूटी पर पूरी तरह सुरक्षित महसूस करने लगे इतना ही नहीं बाबा हरभजन सिंह को जो सुविधा जीवित रहते हुए दी जाती थी वे सारी सेवाएं फिर जारी करनी पड़ी।
बाबा हरभजन को ड्यूटी पर तैनात सैनिक के रूप में जब फिर से हर महीने वेतन देने की शुरुआत हुई थी।सेना की इस बात का लोगों ने अंधविश्वास कहकर विरोध किया।तब सैनिक और अधिकारियों ने अपने एक दिन के वेतन से उनकी सैलरी निकालने की पेशकश की।
उनके बंकर की बाकायदा साफ-सफाई होने लगी।उनकी वर्दी प्रेस होना इनकी ड्यूटी का समय रात का तय कर दिया गया और बाकायदा उन्हें छुट्टियों पर भी भेजा जाने लगा था।15 सितंबर से 15 नवंबर से डिब्रूगढ़ अमृतसर एक्सप्रेस से उन्हें कपूरथला उनके घर ले जाया जाता।
उनकी माँ को दिखाई नहीं देता था पर फिर भी उन्हें 15 सितंबर का बेसब्री से इंतजार रहता था।उस दिन सुबह से ही वो हरभजन सिंह की फोटो को सीने से लगाए बैठे रहती थीं।पुरे गाँव में उनके स्वागत की तैयारी शुरू हो जाती थी।
बाबा हरभजन सिंह जब छुट्टी पर जाते तो ट्रेन में उनके नाम से टिकट भी बुक किया जाता।दो सैनिक उन्हें लेकर उनके घर कपूरथला छोड़ने जाते। बाबा की फोटो को उनकी सीट पर रखा जाता था। जब सैनिक बाबा की फोटो और उनके सभी सामान को लेकर स्टेशन पहुँचते तो पूरा गाँव बाबा के जयकारों के साथ उनके स्वागत में मौजूद रहता और फिर वहाँ से सेना की गाड़ी उनकी फोटो और सामान उनकी मां को सौंप आते थे।
दो महीने बाबा हरभजन सिंह अपने गाँव में रहते और वहाँ के लोगों की समस्याएं सुनते,चमत्कार दिखलाते।दो महीने बाद फिर उसी तरह ट्रेन से उसी आस्था और सम्मान के साथ समाधि स्थल वापस लौट आते थे।
हरभजन सिंह जितने दिन वो छुट्टी पर रहते उतने दिन सेना हाइ अलर्ट पर रहती थी और सैनिकों की चौकसी बढ़ा दी जाती।उस समय किसी भी सैनिक को छुट्टी नहीं मिलती थी क्योंकि उस समय उनकी मदद करने के लिए बाबा वहाँ मौजूद नहीं होते थे।
बाबा हरभजन सिंह के छोटे भाई बताते हैं कि एक बार रात को उनके मन में आया कि सब कहते हैं बाबा गाँव आ गए हैं अब यहीं रहेंगे।क्या यह सच है? या लोगों के मन का भ्रम है?
वो चारपाई पर बैठे यही सोच रहे थे कि अचानक उन्हें पालतू जानवरों को चारा डालते हुए बाबा हरभजन नजर आए वो अपने भाई को देख मुस्कुराए और आकर उन्हें रजाई उड़ाते हुए बोले ठंड बहुत है ओढ़ ले "क्या सोच रहा है? ज्यादा परेशान मत हो मैं अभी यहीं हूँ" तब से उनमें उनकी आस्था बढ़ गई।
बाबा हरभजन सिंह को सेना से पहले की तरह सैलरी और सुविधाएं मिलती रही और जो नियम सैनिकों के लिए थे वो उन पर भी लागू किए जाते। जब सीमा पर तनाव की स्थिति होती तो उनकी भी छुट्टियाँ भी रद्द कर किसी और समय दी जाती थी और उनके घरवालों को इसकी सूचना दे दी जाती।सब-कुछ ठीक वैसे ही हो रहा था जैसा इनके शरीर छोड़ने से पहले होता था।
बाबा हरभजन के रोज नए चमत्कारों को देखकर सैनिकों में इस कदर आस्था बढ़ी कि उन्होंने एक बंकर को ही मंदिर का रूप दे दिया। बाद में जब उनके चमत्कार बढ़ने लगे और वो जगह विशाल जनसमूह की आस्था का केन्द्र हो गया।
जब भी किसी नए सैनिक की तैनाती होती तो वह सबसे पहले बाबा के दर्शनों को जाता और उनका आशीर्वाद प्राप्त करता है।
कहते हैं अगर आपको स्वास्थ्य संबंधी कोई समस्या है तो उनके मंदिर में तीन दिन तक पानी की बोतल रख दो। तीन दिन में उस पानी में चमत्कारी गुण आ जाते हैं और उस पानी का इक्कीस दिनों तक सेवन से स्वास्थ्य लाभ होने लगता है।
अविश्वसनीय माँ पर जब इतनी मान्यता है तो नकार भी नहीं सकते।
हाँ बेटा शायद इस चमत्कार के कारण ही उनके कमरे में नाम लिखी हुई बोतलें ही बोतलें दिखाई देती हैं।वहाँ एक कापी रखी रहती है जिसमें लोग अपनी परेशानी लिखते हैं और उनका मानना है कि बाबा उनकी समस्या का समाधान भी करते हैं।
भारतीय सैनिक के बड़े-बड़े अधिकारी भी यहाँ मंदिर में आकर दर्शन करते हैं।कोई विश्वास करे या न करें पर बाबा हरभजन सिंह के मंदिर में चीनी सेना भी सिर झुकाती है। 14 हजार फीट की ऊंचाई पर मंदिर बने हुए इस मंदिर में दूर-दूर से लोग यहां बाबा हरभजन सिंह की पूजा करने आते हैं।
उसके बाद आम जनता की सहुलियत को ध्यान में रखते हुए एक मंदिर बनाया गया। ये मंदिर गंगटोक में जेलेप दर्रे और नाथुला दर्रे में करीब 13 हजार फीट की ऊंचाई पर आज भी बना हुआ है।
कहते हैं कि मरने के बाद भी उनकी आत्मा एक घोड़े पर सवार भारत-चीन बॉर्डर की निगरानी करती है।यह सिर्फ भारतीय सैनिकों ने नहीं देखा बल्कि चीनी सैनिकों का भी मानना है कि उन्होंने भी रात में बाबा हरभजन सिंह को घोड़े पर सवार होकर गश्त लगाते हुए देखा है।
वो कैसे दादी?
हुआ यूँ कि रात के समय बाबा हरभजन सिंह गश्त लगाते हुए अक्सर चीनी सीमा में घुस जाया करते थे।वो और किसी को दिखे न दिखे पर चीनी सैनिको को अपनी झलक दिखला देते ।इस बात के लिए चीनी सैनिको ने उनके बारे में चिट्ठी लिखकर भारतीय अधिकारियों से शिकायत भी की थी।
क्या बात है, अद्भुत..! नेहा बोली।
अद्भुत तो है बेटा!
फिर क्या हुआ..?
हाँ चीनी सैनिकों की चिट्ठी में लिखा था कि आपका कोई सैनिक सफेद घोड़े पर बैठकर अक्सर हमारी सीमा के अंदर तक गश्त करता है।आप जल्दी ही यह सब रोके वरना किसी दिन हालात बिगड़ भी सकते हैं।
हमारे अधिकारियों ने उन्हें कहा कि हमें नहीं पता कौन घुड़सवार है आप कहते हो तो उसे पकड़ कर दिखाओ।यह बात जब बाबा को बताई गई तो फिर बाबा हरभजन सिंह चीनी सैनिको को सपना देने लगे तब बाबा हरभजन सिंह की आत्मा के सच को चीनी सेना ने भी स्वीकार कर लिया था।
हरभजनसिंह रात को तैनाती के दौरान कई बार चीन की घुसपैठ के बारे में सपने में आकर भारतीय सैनिकों को जानकारियाँ देकर सतर्क भी किया करते थे और उनकी बात हर बार सच साबित हो जाती थी।
बाबा हरभजन सिंह के मंदिर में उनके जूते, कपड़े और भी सारी जरूरत सामान रखा गया है। बाबा को बाकायदा तीनों समय भोजन परोसा जाता है।शाम होते ही बाबा के मंदिर में किसी को भी नहीं जाने दिया जाता। भारतीय सेना के जवान उनके मंदिर की चौकीदारी करते हैं।
बाबा हरभजन के जूतों की रोज नियमित रूप से पॉलिश की जाती हैं।वहाँ पर तैनात सिपाहियों का कहना है कि आज भी रोज सुबह के समय उनके जूते भी गंदे मिलते हैं और उनके बिस्तर पर सलवटें पर दिखाई पड़ती है।
क्या बात कर रही हो माँ..!यह तो सचमुच चमत्कार हो गया।अब तो मेरा भी मन बाबा जी के बंकर और मंदिर देखने को बेचैन हो रहा है।लॉकडाउन खतम हो जाए तो हम सब वहाँ जरूर जाएंगे।
हाँ नेहा ऐसे महान देशभक्त की समाधि पर पुष्प अर्पित करने का सुख कैसे छोड़ सकते हैं? हम जरूर चलेंगे।
सच कहा बच्चों उनकी मौजूदगी को हमारी सेना ही नहीं वहाँ मौजूद चीनी सैनिकों ने माना है और यही कारण है कि दोनों देशों की हर फ्लैग मीटिंग पर एक कुर्सी बाबा हरभजन के नाम की भी रखी जाती है और उस पर उनकी फोटो भी रखी जाती है।
बाबा हरभजन सिंह के साथ जब हादसा हुआ तो वो एक सिपाही के पद पर थे।सेना के नियमों के अनुसार ही उनको सेवा में मौजूद मानकर बाबा हरभजन सिंह को पदोन्नति भी दी गई। बाबा हरभजन सिंह अब सिपाही से कैप्टन बन गए थे।
उनकी मौत को 50 साल ज्यादा समय हो चुके हैं। बाबा हरभजन सिंह भी अब रिटायर होकर अपने घर लौट आए हैं। कहते हैं आज भी बाबा हरभजन सिंह की आत्मा भारतीय सेना में अपना कर्तव्य निभा रही है। इस कारण ही बाबा हरभजन सिंह को नाथू ला का हीरो भी कहा जाता है।
कुछ लोग इस बात को कोरा अंधविश्वास समझते हैं पर सच तो यह है कि आज भी बाबा हरभजन सिंह रात के समय पहरा देते समय अगर कोई सैनिक सो जाता है तो उसे थप्पड़ मारकर जगा देते हैं।यह बात सैनिकों ने खुद कबूली है।
वीर शहीद बाबा हरभजन सिंह की आत्मा को 38 वर्ष की सेवा के बाद 2006 में सेवानिवृत्ति दे दी थी। उसके बाद जब-तक उनकी माता जी जिंदा थी तब तक उनकी पेंशन उन्हें भेजी जाती रही। उनकी माता जी की मृत्यु के बाद यह सब बंद कर दिया गया। कहते हैं सेवानिवृत्ति के बाद भी वो देश सेवा में लगे हुए अपना एहसास करवाते रहते हैं।
बाबा जी का बंकर नाम से प्रसिद्ध मंदिर में लोग आज भी श्रद्धा से शीश झुकाते हैं और उनके पैतृक गाँव में भी उन्हें बड़े ही सम्मान से पूजा जाता है। उनके छोटे भाई ने अपने घर के एक हिस्से को बाबा का मंदिर बना डाला और बाबा हरभजन सिंह की सभी चीजों को हूबहू वैसे ही रखा गया हैं जैसे उनके बंकर में हैं।
सच माँ हमारे देश के वीर सैनिक देश के लिए जीते हैं और देश पर ही मर-मिट जाते हैं। बहुत पावन है हमारे देश की मिट्टी जिसमें ऐसे अदम्य से भरे महान वीर योद्धा जन्म लेते है।देश के इन सच्चे वीर सपूतों के चरणों में मेरा "शत् शत् नमन" नेहा और राजीव बोले।
जय हिन्द जय हिन्द की सेना, दादी माँ मैं भी बड़ा होकर एक सच्चा सैनिक बनूँगा और मैं भी दादी माँ..!जोश में भरकर हर्ष रूही दोनों एक साथ बोले।
बहुत अच्छी बात है बच्चों देशभक्ति से बड़ा कुछ नहीं!अब चलो जाकर सो जाओ,रात बहुत हो गई है, मुझे भी नींद आ रही है।कल फिर दूसरी कहानी सुनाऊँगी।"जी दादी माँ" हर्ष और रूही भी सोने चले गए।
चित्र गूगल से साभार
बाबा हरभजन सिंह के विषय में"न्यूज चैनल"की रिपोर्ट देखी और फिर उस कहानी को अपने शब्दों में आप तक पहुँचाने की छोटी-सी कोशिश की है।
ओह अति रोचक
ReplyDeleteऐसी बातें अविश्वसनीय लगती है पर फिर भी एक सच्चे देशभक्त की आत्मा पर पूरा यकीन है।
आभार आपका।
सादर।
हार्दिक आभार श्वेता जी
Deleteबढ़िया पोस्ट।
ReplyDeleteअमर जवानों को नमन।
हार्दिक आभार आदरणीय
Deleteहार्दिक आभार सखी
ReplyDeleteबहुत रोचक, लाजवाब और रोंगटे खड़े कर देने वाली सूचना! नमन! शहिद बाबा हरभजन को!
ReplyDeleteहार्दिक आभार आदरणीय
Deleteबहुत ही सुन्दर रोचक लेख ...
ReplyDeleteबाबा हरभजनसिंह के बारे में कई और भी किस्से सुनने को मिलते हैं
जी सही कहा आपने..सहृदय आभार सखी।
Delete