कब चुपके से आकर
खड़ी हो जाती है ज़िंदगी
मौत के किनारे पर
तब इंसान बेबस
होकर रह जाता है
होकर रह जाता है
जाने वाला कब चुपचाप से
अंतिम सफर पर चल देता है
मौत के किनारे पर आकर
किसी को पता भी नहीं चलता है
यह ऐसा पड़ाव है ज़िंदगी का
जहाँ किसी अपने का साथ
सदा के लिए छूट जाता है
बस यादें जिंदा रह जाती हैं
ज़िंदगी फिर चल देती है
बीते पलों की गठरी खोल
यादों की परछाइयों के साथ
मुश्किल होता है बड़ा
यह वक्त़ जीवन का
जब ज़िंदगी से रिश्तों की कड़ी
एक-एक कर बिखरने लगती है
यहीं इंसान मजबूर हो जाता है
चाहकर भी कुछ नहीं कर पाता
अजब खेल है ज़िंदगी का भी
इंसान जब तक ज़िंदा है घर में है
दम तोड़ते ही शरीर बन जाता है
अजब ज़िंदगी तेरे गजब खेल
कहीं सुख कहीं दुःख
कहीं जीवन तो कहीं मौत से भेंट
जीवन नैया भवसागर में डोलती रहती है
किनारे को रहती है तलाशती
किस्मत किस किनारे नैया लगादे
यह किसी को भी न खबर रहती
***अनुराधा चौहान***
चित्र गूगल से साभार
भावपूर्ण अभिव्यक्ति
ReplyDeleteधन्यवाद आदरणीया
Deleteआपकी लिखी रचना आज ," पाँच लिंकों का आनंद में " बुधवार 27 मार्च 2019 को साझा की गई है..
ReplyDeletehttp://halchalwith5links.blogspot.in/
पर आप भी आइएगा..धन्यवाद।
सहृदय आभार पम्मी जी
Deleteकहीं सुख कहीं दुःख
ReplyDeleteकहीं जीवन तो कहीं मौत से भेंट
यथार्थ
बेहतरीन सृजन आदरणीया
धन्यवाद आदरणीय
Deleteसुन्दर
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार आदरणीय
Deleteबेहतरीन सखी 👌
ReplyDeleteसादर
सहृदय आभार सखी
Deleteबस यादें जिंदा रह जाती हैं
ReplyDeleteज़िंदगी फिर चल देती है
बीते पलों की गठरी खोल
यादों की परछाइयों के साथ
बहुत सुन्दर ...भावपूर्ण रचना...।
सहृदय आभार सखी
DeleteBahut khoob
ReplyDeleteबेहद आभार नीतू जी
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