आँखों में उम्मीद है
चेहरे पर मुस्कान
पसीने से लथपथ
स्वाभिमान की मुस्कान लिए
कर्मो पर है भरोसा
करती दिनभर मजदूरी
ढोती है ईंट,गारा
धूप में तोड़ती है पत्थर
माता है पत्नी है
हर रूप में खरी है
गरीब है तो क्या हुआ
मुश्किलों से जूझती है
मुश्किलों से जूझती है
जीवन में दु:ख हो कितने भी
फिर भी हिम्मत नहीं छोड़ती
धूप और बारिश में
बोझा सिर पर ढोती
सिर पर छत टपकती
तन पर फटी साड़ी
लगी रहती श्रम में
सुबह हो या दुपहरी
घर भी संभालना है
बच्चे भी पालना है
दिन भर बहाए पसीना
चंद रुपयों की चाह रखती
हर काम में खरी है
नारी यह अटल खड़ी
हौसले को अपने
कभी कम न होने देती
यह कर्मप्रधान नारी
कर्म पर भरोसा करती
***अनुराधा चौहान***
बहुत बढ़िया है ,तभी तो नारी हिम्मत वाली है।
ReplyDeleteसहृदय आभार ज्योति जी
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