Sunday, August 23, 2020

अन्नदाता नूरी कंवर

गायत्री आराम कुर्सी पर बैठी कोई पुस्तक पढ़ रही थी।पास में ही उनका मोबाइल रखा हुआ था।जिसे अभी कुछ महीने पहले ही बहू नेहा ने गिफ्ट किया था।

पुस्तक पढ़ने में मगन गायत्री को बरतन गिरने का स्वर सुनाई दिया। उठकर बाहर आई तो बहू उदास बैठी थी।बच्चों ने खाने की थाली फेंक दी थी।

बहू यह सब??

माँ अब आप ही इन्हें समझाइए।एक तो लॉकडाउन के चलते कोई सामान जल्दी नहीं मिल रहा है। ऊपर से इन दोनों की नई-नई फरमाइशें, यह नहीं खाना वो नहीं खाना। दिनभर ऑफिस और बच्चों की जिद के आगे नेहा रुआँसी हो गई।

अच्छा तुम जाओ मेरे लिए हल्दी वाला दूध ले आओ।इन्हें मैं समझाती हूँ।बड़े समझदार बच्चे हैं,प्यार से समझाओ तो सब समझ जाते हैं।

हर्ष! तुम और रूही चलो मेरे साथ आज मैंने न्यूज पेपर पर बेहद हृदयस्पर्शी खबर पढ़ी है।चलो तुम लोगों को भी सुनाती हूँ।

जी दादी माँ हम अभी चलते हैं।हर्ष रूही को साथ लेकर गायत्री के कमरे में आ गया।

दादी माँ जल्दी सुनाओ ना!आप किस खबर की बात कर रही हो?मचलते हुए हर्ष ने पूछा।

ठहरो तो जरा! मोबाइल उठाते हुए गायत्री बोली।जैसा कि तुम दोनों को पता है कि कोरोनावायरस के कहर से पूरी दुनिया में हाहाकार मचा हुआ है। कोरोनावायरस की चैन को तोड़ने के लिए हमारे प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी ने देश में लॉकडाउन लगा दिया है।

सभी लोगों के काम-काज बंद हो गए हैं।जिस वजह से रोज कमाने खाने वाले गरीब लोगों के जीवन पर रहने और खाने का संकट गहरा गया है।

हम्म वो तो हमें पता है पर आप यह बताइए,आप जिस खबर को बताने जा रही हैं,वो खबर आपको कहाँ से और कैसे पता चली।

मेरे मोबाइल से! मैं मोबाइल में ई न्यूज पेपर पढ़ा करती हूँ,उसी से पता चला।

आज मैं तुम्हें बड़ौदा शहर में रहने वाली किन्नर नूरी कंवर के बारे में बताने जा रही हूँ।आशा है नूरी कंवर के बारे में जानने के बाद तुम दोनों फिर कभी अन्न का अनादर नहीं करोगे!

तो सुनो नूरी कंवर की कहानी जो पूर्णतः सच्ची और सीख लेने लायक है।

गुजरात के बड़ौदा में रहने वाली किन्नर नूरी कंवर को एक दिन किसी बच्चे के रोने की आवाज सुनाई दी। पहले तो उन्होंने उस तरफ ध्यान नहीं दिया।

आमतौर पर बच्चे किसी न किसी बात पर जिद करके रोते ही है। लेकिन थोड़ी देर में उसे पीटने की आवाज और उसका करुण क्रंदन नूरी कंवर की आत्मा को भेदने लगा।
नूरी से रहा नहीं गया, उसने उस घर के सामने जाकर उस बच्चे की माँ से कहा।क्यों रुला रही है रे।कब से रोए जा रहा है तेरा बच्चा,चुप क्यों नहीं कराती।

यह सुनते ही बच्चे की माँ रो पड़ी और रोते-रोते उसने नूरी कंवर से कहा। कैसे चुप कराऊँ ? खाना माँग रहा है घर में खाने को कुछ भी नहीं और ना ही पैसा बचा।

कहते हुए वो औरत आँखों में आँसू लिए अपने बच्चे को पीटने लगी ताकि वो कैसे भी चुप हो जाए।

इस घटना ने नूरी कंवर के मन में हलचल मचा दी।उसका भावुक हृदय उस मासूम बालक की पीड़ा से व्यथित हो गया।
रुक जाओ बहन न मारो बच्चे को! जानती हूँ इस महामारी ने सभी लोगों की हालत खराब कर दी!बहन तुम चिंता मत करो यह लो कुछ पैसे! खाने की व्यवस्था करो, मैं जल्दी ही तेरे यहाँ राशन भिजवाती हूँ!

उन्होंने तुरंत उस परिवार की मदद की।घर वापस आकर सोचने लगी ऐसे और भी कई घर होंगे जहाँ बच्चे भूख से बिलख रहे होंगे।

नूरी कंवर सोच-विचार में लगी वो किस प्रकार से इन लोगों की मदद कर सकती है।लॉकडाउन के चलते रोज कमाने खाने वाले मजदूरों की रोजी-रोटी छिन गई थी।

ऐसे में इस घटना से बेचैन नूरी कंवर ने भूखे बेबस गरीबों की मदद करने का निर्णय लिया, और इस कार्य को पूरा करने में जुट गई।नूरी कंवर ने सबसे पहले इस बारे में अपनी बहनों से बात की।

बहनों आज एक मार्मिक दृश्य ने मुझे झकझोर कर रख दिया है। मुझे तुम लोगों का साथ चाहिए! क्या तुम लोग मदद के लिए तैयार हो? नूरी कंवर ने अपनी किन्नर बहनों से पूछा।

ऐसा क्या देख लिया आपने जो आप इतनी व्यथित हो रही हैं दीदी?

मैंने एक घर में बिलखते बच्चे की आवाज सुनी पूछने पर पता चला बच्चे ने दो दिन से कुछ नहीं खाया वो भूख से तड़प कर रो रहा था और उसकी माँ उसे चुप कराने के लिए पीट रही थी।उनके घर में खाने को अन्न का एक दाना भी न था।

यहाँ आस-पास पता नहीं और ऐसे कितने घर हैं, जिनके चूल्हा बुझा पड़ा है! क्या तुम लोग उन लोगों का पता लगा सकते हो? हमें उनके पास खाने की सामग्री पहुँचानी होगी!

ठीक है हम तो तैयार हैं! पर अभी लॉकडाउन में यह सब कैसे संभव होगा दीदी? लॉकडाउन में बाहर कैसे निकला जाए?

हम परमीशन लेकर ही सब काम करेंगे और लॉकडाउन के नियमों का पालन भी करेंगे!नूरी कंवर अपने और अपने साथियों के लिए ई-पास की व्यवस्था और सामान पहुँचाने के लिए रिक्शे की व्यवस्था कर लेती है।

उसके बाद नूरी कंवर ने अपनी किन्नर बहनों के साथ मिलकर घर-घर खाने की सामग्री पहूँचाने का काम शुरू कर दिया।शुरुआत के कुछ दिनों में उन्होंने पका हुआ खाना घर-घर पहुँचाया।पर रोज-रोज इतने लोगों को खाना पकाकर देना आसान नहीं था।

फिर क्या उन्होंने खाना देना बंद कर दिया दादी?हर्ष ने पूछा।

नहीं! ऐसा कुछ नहीं हुआ, आगे की कहानी सुनो! गायत्री ने कहा।

सुनो बहनों!रोज पका हुआ खाना देना संभव नहीं क्योंकि कोई लेता है कोई नहीं ऐसे बर्बादी होती है।!तुम सब एक काम करो एक महीने में एक परिवार को कितना राशन लगेगा,उस हिसाब से पैकेट बना लो!वो लोग अपने हिसाब से बनाएंगे और खाएंगे।

नूरी ने हर हाल में गरीबों की मदद करने का दृढ़ निश्चय कर लिया था।उसने दाल-चावल,आटा,शक्कर तेल मसाले आदि सामान के एक-एक महीने की सामग्री के पैकेट बनाए।

पास और परमिशन लेकर रिक्शे की मदद से किन्नर बहनों के साथ मिलकर जो पहली लिस्ट तैयार की थी। उसके अनुसार घर-घर जाकर जरूरतमंद लोगों को  महीने भर की खाद्य-सामग्री पहुँचाने लगी।

लॉकडाउन के कारण दुकानें बंद थीं। शादी-विवाह,सगाई, जन्मोत्सव, गोदभराई जैसे मांगलिक कार्यक्रमों में गा-बजाकर पैसे कमाने वाले किन्नर समुदाय की कमाई भी पूरी तरह से बंद थी।

हमेशा से हमारे देश में किन्नर समाज को तिरस्कृत नज़रों से देखा जाता रहा।आज वही किन्नर समाज गरीबों का अन्नदाता बनकर सामने आया और लोगों की उनके प्रति  क्या सोच है,इस बात की परवाह किए बिना अपने संकल्प को ईमानदारी से पूरा करने लगे।

बड़ौदा के इस किन्नर समाज के पास पैसों की तंगी होने लगी थी। भूखों का पेट भरने का संकल्प लिए नूरी ने अब अपने गहने को बेचना शुरू कर दिया।

गरीबों की अन्नदाता बनी नूरी कंवर ने जिस काम को करने का बीड़ा उठाया था।वह उस कार्य को किसी भी हालत में पूरा करना चाहती थी और उसके लिए बची हुई धनराशि काफी नहीं थी।

नूरी कंवर को सोने के गहनों का बड़ा शौक था। उन्होंने एक-एक करके अपने गहनों को गिरवी व बेचना शुरू कर दिया।

मदद के पहले चरण में अपने साथियों की मदद से ढूँढ़-ढूँढ़कर गरीब परिवारों की सूची बनाई गई ।उस सूची के अनुसार उन सभी पाँच सौ गरीब परिवारों तक राशन पहुँचाया गया।

धीरे-धीरे उनकी सूची बढ़ती गई और अब उनकी लिस्ट में एक हजार के करीब गरीब परिवार शामिल हो गए थे।नूरी कंवर अपनी बहनों के साथ मिलकर जरूरतमंदो की हरसंभव मदद करने की कोशिश में लगी हुई थी।

एक इंटरव्यू के दौरान नूरी कंवर से पूछा गया कि उन्होंने अपने गहने भी गिरवी रखे हैं? तो वे कहती हैं"हमारे सामने धन की कमी एक जटिल समस्या थी!लोगों की बेबसी,उनके आँसू भी हमसे देखे नहीं जा रहे थे।

क्या बात कर रही हो दादी?उन लोगों ने दूसरों को खाना खिलाने के लिए अपने गहने बेच दिए?रूही और हर्ष दोनों आश्चर्य से पूछने लगे।

हाँ मेरे बच्चों!हम लोग उन्हें पाँच रुपए देने में भी मुँह टेढ़े-मेढ़े करते हैं,उन्हें हिकारत से देखते हैं,इन सब बातों को परे रखकर नूरी कंवर और उनकी बहनें निस्वार्थ भाव से सेवा में लगीं थीं।

हाँ दादी आप सही कह रही हो!

आगे सुनो बच्चों!!

नूरी कंवर ने कहा हमारे पास पैसे जमा करने के लिए कोई दूसरा विकल्प ही नहीं था।हमें सिर्फ गहने ही दिखाई दे रहे थे। गहनों का क्या है, भगवान ने चाहा तो गहने हम बाद में भी बनवा लेंगे।

गहने हम किन्नर समाज के लिए बहुत मायने रखते हैं।यह गहने हम किन्नरों के बुढ़ापे का सहारा होते हैं। बुढ़ापे में हमको संभालने वाला कोई नहीं होता है,ऐसे में यह गहने ही हमारे काम आते हैं।

इस समय गहनों के प्रति लालच रखती तो अपने गरीब भाई-बहनों की मदद नहीं कर पाती।

कोई हमारे बारे में कुछ भी सोचता हो, हमें परवाह नहीं! हमें गरीब भाई-बहनों की परवाह है और रहेगी! हमारी आँखों के सामने कोई भूख से तड़प कर मर जाए तो हम कैसे भी सहन नहीं कर सकते। भूखें बच्चों का रोना सुनकर हम कैसे सुकून से दो वक़्त की रोटी कैसे खा सकते थे?

लॉकडाउन के कारण हमारी भी कमाई बंद हो गई है और परिस्थितियाँ ऐसी बन गई हैं, जिसे देखते हुए हमारे लिए सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण भूखों का पेट भरना था!

ऐसे समय में गहने बचाने से ज्यादा हमें गरीबों के लिए खाना जुटाने की चिंता थी।हम लोग यही प्रयास कर रहे हैं कि ज्यादा से ज्यादा लोगों की मदद कर सकें।

हमने उन गरीब परिवारों को अपने फोन नंबर भी दिए हैं। अगर कोई सामान खत्म हो जाए तो हमें पहले ही बता दें तो हम इंतजाम कर देंगे!

नूरी कंवर और उसके साथी उन सभी परिवारों को अपना फोन नंबर भी देते जा रहे थे ताकि जब उनके पास राशन-पानी खत्म होने लगे तो वो लोग फोन करके उन्हें पहले से बता दे।

नूरी कंवर और उसके साथियों ने अपनी इस मुहिम में लॉकडाउन के लिए सरकार द्वारा बनाए सभी नियमों का ईमानदारी से पालन करते हुए सामाजिक दूरी का पूरा ख्याल रख रहे थे।

नूरी कंवर के साथी लोगों को घर के अंदर ही रुकने की आवाज लगाते और राशन के पैकेट उनके दरवाजे पर रख देते थे।जिसे उनके जाने के बाद वो लोग उठा लेते थे।
नूरी कंवर ने बड़े ही चाव से गहने बनवाए थे और उन गहनों को गरीबों का पेट भरने के लिए बेच दिया।वो गहने उन्हें बेहद प्यारे थे।खासकर वो हार जिसे बनवाने के लिए उन्होंने बड़ी मेहनत से एक-एक पैसा जोड़ा था।

नूरी कंवर ने निस्वार्थ भाव से गरीब परिवारों तक भोजन पहुँचाकर समाज में मानवता की अद्भुत मिसाल कायम की,साथ ही साथ समाज को भी यह संदेश भी दिया, कुछ करने के लिए पैसा नहीं दिल बड़ा होना चाहिए।

आज जहाँ एक तरफ लॉकडाउन के चलते गरीब परिवार के लिए जीवनोपयोगी वस्तुएं जुटाना मुश्किल हो रहा था। वहाँ नूरी कंवर जैसे मानवता के फरिश्ते बनकर अपना सब-कुछ बेचकर उन गरीब परिवारों तक अपनी मदद पहुँचाकर उनका पेट भरने का प्रयास कर रहे हैं।

आज कोरोनावायरस के चलते देश में जो हालात बन गए हैं। ऐसे में वह इंसान बहुत भाग्यशाली है, जिसे घर बैठे पेट भर खाना खाने को मिल रहा है।

तुम दोनों को पता नहीं है! हमारे देश में कोरोना के चलते कितने गरीब परिवार दाने-दाने के लिए मोहताज हो रहे हैं।उनसे उनके काम छिन गए हैं।

कोरोनावायरस एक ऐसी महामारी है जिसका अभी तक कोई तोड़, कोई दवा नहीं मिल रही है।ऐसे में हमें पता नहीं आगे और भी विकट परिस्थितियों का सामना करना पड़ जाए?

ऐसे में समझदारी संभल कर चलने में है।जिस खाने को तुम लोग यह कहकर फेंक देते हो,वो तुम्हारी पसंद का नहीं बना है! उस खाने को पाने के लिए आज भी कितने घरों के बच्चे भूख से तड़प रहे हैं।

कुछ लोगों के पास न धन बचा न काम,वो क्या करें?हर किसी के पास तो नूरी कंवर जैसे फरिश्ते मदद के लिए नहीं पहुँच सकते?

इसलिए हम सबका फर्ज बनता है ना हम अन्न बर्बाद करें और ना करने दें! हम सभी को यह भी ध्यान रखना होगा कि हमारे आस-पास भी कोई भूखा न रहे।

दादी माँ हमें माफ़ कर दो।अब हमें खाने की अहमियत समझ आ गई है।हम समझ गए हैं कि अन्न के बिना जीवन संभव नहीं है। हमें आपकी कहानी का अभिप्राय भी समझ आ गया है।

हम लोग आज के बाद कभी भी अन्न का अनादर नहीं करेंगे।जो भी माँ बनाएगी प्यार से खाएंगे। और आज से यह भी कोशिश करेंगे कि हमारी जानकारी में अगर कोई परिवार भूख से बेहाल होगा तो उस तक भोजन पहुँचाएंगे।
***अनुराधा चौहान'सुधी'***

नोट-नूरी कंवर के सराहनीय कार्य के बारे में सभी जानकारी द बेटर इंडिया और दैनिक भास्कर ई न्यूज पेपर से लेकर अपने शब्दों में अलग रूप देकर ज्यादा से ज्यादा पाठकों तक पहुँचाने की छोटी-सी कोशिश है।

9 comments:

  1. प्रियाअनुराधा जी , बहुत प्रेरक कहानी है। इसीलिए घर में बड़ों का होना जरूरी है। गायत्री जी ने बड़े ही तोरिके से बच्चों को समझाया और नूरी कंवर के जज़्बे को सलाम है। हल्की फुलकी सार्थक कथा 👌👌👌👌👌 हार्दिक शुभकामनायें 🌹🌹🙏🙏🌹🌹

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  2. हार्दिक आभार सखी 🌹

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    1. हार्दिक आभार आदरणीय

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  4. Replies
    1. हार्दिक आभार आदरणीय

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  5. बहुत ही प्रेरणादायक सृजन सखी ।धन्य है नूरी कँवर जी का जज्बा 🙏🏼

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