Saturday, July 20, 2019

जीवनभर का रोना

प्यार में पागल दिल
क्यों भूल जाता है
माँ-बाप की ममता
उनका त्याग-बलिदान
उनका मान-सम्मान
जो दिन-रात देखे सपने
क्या कोई मोल नहीं है
जो पल भर में टूटकर
बिखर जाते ज़मीं पर
रह जाते सिर झुकाए
अपनी संतान की जिद्द पर
उस हर एक पल को याद करते
जब चोट लगी बच्चों को
तब उनके दर्द में रोए
अपने सपने ताले में बंद कर
बच्चों के सपनों में खोए
करते रहे ज़रूरतें पूरी
छोड़कर अपनी जरूरतें अधूरी
सब छलनी होकर बिखर जाता
जब बच्चों से मिलता धोखा
प्यार में यह कैसी मजबूरी
माँ-बाप से बढ़ जाती दूरी
झुकाकर सिर समाज में उनका
पूरा कर लेते अपना सपना
अपने स्वार्थ के कारण
देते जीवनभर का रोना
***अनुराधा चौहान***
चित्र गूगल से साभार

7 comments:

  1. सखी अंतर्मन मंथन करती सार्थक अभिव्यक्ति।

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  2. बहुत ही सुन्दर अभिव्यक्ति बहना
    सादर

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  3. अपरिपक्वता में लिए गये निर्णय से माता पिता कितने आहत होते हैं . कथित प्रेम में डूबे युवा ये कभी नहीं समझ पाते | परिवार के मान सम्मान को रौंदकर वे ना जाने कौन सी ख़ुशी हासिल करते हैं समझ नहीं आता | सार्थक रचना प्रिय अनुराधा बहन |

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    1. हार्दिक आभार सखी 🌹

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  4. हार्दिक आभार आदरणीय

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