राधा तूने सायली के लिए आया इतना अच्छा रिश्ता क्यों ठुकरा दिया..? जानती नहीं कितने बड़े लोग हैं वो,बड़ा कारोबार है उनका, उन्हें घर संभालने वाली बहू चाहिए थी। बिना लेन-देन के शादी के लिए तैयार थे वो लोग,सायली को नौकरी के लिए भटकना नहीं पड़ता,वहाँ जाकर राज करती राज..! ममता ने अपनी छोटी बहन से कहा।
अरे दी..आप भी कहाँ-कहाँ से रिश्ते ढूँढकर भेजती रहती हो.. मैं आपसे पहले ही कह चुकी हूँ, मैं किसी कारोबारी के घर अपनी बेटी नहीं ब्याहने वाली, मेरी बेटी सपने साकार करने के लिए पैदा हुई है दी, घुट-घुटकर मरने के लिए नहीं..!
राधा यह सिर्फ मन बहलाने वाली बातें हैं।पैसा है तो सब-कुछ है।बेटी की ज़िंदगी संवर जाएगी समझी..!जरा सोच,तू ढूँढकर ला पाएगी ऐसा लड़का..? और फिर तेरे पास दहेज देने के लिए क्या है..? ममता ने पहले थोड़ा समझाते और बड़ी बहन के हक से डाँटते हुए कहा।
राज करने के लिए तो मेरा भी ब्याह बड़े कारोबारी से किया था दी..? क्या हुआ फिर यह तो सब आप जानती ही हैं..?अगर पिताजी ने पढ़ाई पूरी करने दी होती तो आज परिस्थिति कुछ और होती..!
राधा तू पुराने दुखड़ा मत सुनाया कर,यह सब तो नसीब का खेल है।जो तेरे साथ हुआ जरूरी नहीं सायली के साथ हो..? उस बात को लेकर सोने जैसा लड़का ठुकरा रही है..!
मेरी बेटी एक हीरा है दी अपनी ज़िंदगी खुद रोशन कर सकती है।हमेशा पढ़ाई में अव्वल रही और नौकरी भी उसे बहुत अच्छी कम्पनी में मिली है। पैसे से सुख नहीं मिलता दी आपसी प्रेम और समझ-बूझ से मिलता है।सायली को लड़का भले ही छोटी नौकरी करने वाला मिले, दोनों मिलकर साथ कमाएंगे तो ज़िंदगी अपनी मर्जी की जियेंगे..! राधा बोली।
ऐसी ज़िंदगी में क्या सुख है राधा जरा बता..? और फिर घर और ऑफिस संभालना आसान नहीं होता राधा।तू खुद सायली की कमाई पर जी रही है।पर शादी के बाद तेरा क्या होगा, कुछ सोचा है..?
सोचना क्या है दी..जब संघर्ष करते ज़िंदगी बीती है तो आगे की भी बीत जाएगी..!
जैसी तेरी मर्जी, मुझे क्या..आज देवेन्द्र जी होते तो बेटी यूँ घर न बैठी होती। मैं फोन रखती हूँ ,जब तू सायली की शादी तय कर लेना तो बुलावा भेज देना..!
अरे दी..हेलो हेलो दी..?हो गई नाराज..!यह दी भी ना..जानती नहीं क्या मेरे साथ क्या क्या हुआ था..? कितने सपने लेकर ससुराल आई थी।सब कहते थे पैसे वाले लोग हैं,राधा राज करेगी..!क्या खाक राज किया..हुंहहू राधा मुँह टेढ़ा कर बीते दिनों को याद करने लगी।
देवेन्द्र अब सारा काम राधा कर लेगी, तुम नौकरानी का हिसाब कर दो,चार लोगों के लिए नौकरानी की क्या जरूरत..?माता जी ने मातृभक्त बेटे को आदेश दिया।
जी माता जी..कल ही हिसाब कर देता हूँ.. देवेन्द्र ने जवाब दिया।
बड़े घर में राज जो शुरू हो गया था।मेरे आते ही नौकरानी गायब,ऊपर से देवर जी की फरमाइशें, भाभी जी यह चाहिए वो चाहिए। कपड़े पर कैसी इस्त्री की है..?आने दो भईया को उनको दिखाता हूँ आप कैसा व्यवहार करती हो.. नागेन्द्र की उद्दंडता पर माता जी चुप रहती थी।
देवर जी इतना चिल्लाने की जरूरत नहीं है। मुझे जैसी बनी मैंने कर दी, आपको नहीं पसंद तो बाहर करा लीजिए..!राधा के इतना कहने पर माता जी ने घर छोड़कर जाने की धमकी दे डाली। फिर जो तांडव मचा, उसने राधा के होंठ सी दिए।
चुपचाप घरवालों की गुलामी करती राधा को खुद के लिए जीने का समय नहीं मिलता था..!देवेन्द्र अपने कारोबार की सारी कमाई माता जी को सौंप अपना धर्म निभाते रहे।
नागेन्द्र की पढ़ाई पूरी होते ही नागेन्द्र भी कारोबार में हाथ बंटाने लगे। देवेन्द्र की पहचान के कारोबारी की लड़की से नागेन्द्र की शादी हो गई। राधा सोचती रह गई कि देवरानी के आने से उसका भार कम होगा,पर बड़े घर की बेटी पर माता जी के कृपा दृष्टि पड़ चुकी थी।
देवेन्द्र आप अब कुछ पैसे सायली के लिए भी जमा किया कीजिए,आगे उसकी पढ़ाई और शादी में काम आएंगे..!
क्यों कुछ कमी है तुम्हें, सायली की जरूरतों पर मैं ध्यान नहीं दे रहा..?या माता जी सब ठीक से मेनेज नहीं कर पा रही हैं क्या..? बोलो..? अगर ऐसा है तो मैं अभी उन्हें कह देता हूँ, तुम्हें घर की मालकिन बना दें.…! देवेन्द्र उखड़े अंदाज में बोले।
मेरा वो मतलब नहीं था।बस सायली के भविष्य की चिंता सता रही थी।आपको जो सही लगे कीजिए, मैं अब नहीं बोलूँगी।अगर आप कुछ पैसे तो अलग से दे सकें तो?सायली छोटी बच्ची है, स्कूल जाते समय कुछ माँग देती है तो और फिर स्कूल में रोज कुछ न कुछ खर्च लगा रहता है। माता जी को बार-बार परेशान करना अच्छा नहीं लगता..!
देवेन्द्र को यह बात समझ आ गई तो चुपचाप राधा को हर महीने सायली की फीस और स्कूल में होने वाले ऊपरी खर्चों के लिए राधा को दस हजार रुपए देने लगे। देवेन्द्र ने इस बात का जिक्र घर में नहीं किया और ना ही राधा ने किया।
राधा बचे पैसों को जमा करती रही।देवेन्द्र सब-कुछ माता जी को सौंपकर बेटी और पत्नी और अपने भविष्य को नजरंदाज करते रहे, अंत में मिला क्या..? देवेन्द्र के जाते ही देवर ने सारा कारोबार अपने कब्जे में कर लिया।
फिर वहीं हुआ जिसके लिए राधा हमेशा ही टोकती थी।मालिक बनते ही देवर का व्यवहार बदल गया। तिजोरी की चाबी अब देवरानी के साथ आ गई थी।उसे राधा और माता जी बोझ लगने लगे थे, घर में दो वक्त की रोटी भी शांति से नसीब नहीं थी।
पैसे चाहिए क्यों भाभी..?सायली की पूरे साल की फीस तो हम भर ही चुके हैं, स्कूल यूनिफॉर्म आ गई, पुस्तकें आ गईं अब और क्या चाहिए..?आपको पैसे की क्या जरूरत है.? नागेन्द्र ने कहा।
ज़िंदगी में सिर्फ यही जरूरत नहीं होती देवर जी।कई बातें बोली नहीं जा सकतीं और फिर मैं तुमसे कहाँ कुछ माँग रही हूँ।यह बिजनेस मेरे पति ने खड़ा किया था यह तो हमारा हक है।अब राधा की सहनशक्ति जवाब देने लगी थी।
तो लो संभाल लो बिजनेस..दो दिन में डूब जाएगा और तुम रास्ते पर आ जाओगी।यह लो पैसे पाँच हजार की गड्डी सामने फेंक नागेंद्र चला गया। माता जी की आँखें छलछला आईं।
राधा बहू मेरा बक्सा उठा लाओ..!
जी माता जी.. राधा अंदर से माता जी का बक्सा ले आई।यह लीजिए माता जी..!
माता जी को राधा हमेशा ही बड़े कठोर हृदय का समझती थी क्योंकि वो सुलूक ही ऐसा करतीं थीं।माता जी ने बक्सा खोलकर अपने जेवर राधा को दिए,इसे सायली के लिए रख लो बहू,अब सब कुछ बदल गया, मेरे हाथ में कुछ नहीं रहा..! मेरा देवेन्द्र तो राम था..! और यह पेपर संभालकर रख लो।यह हमारे पुराने घर के पेपर हैं जो मैंने नागेन्द्र के रंग देखकर देवेन्द्र के नाम कर दिया था।यह सिर्फ मैं और देवेन्द्र ही जानते थे..!
राधा की आँखें भर आईं.. आपने मुझे सिर पर छत दे दी वही बहुत है माता जी..! माता जी के पैरों में सिर रखकर सिसकने लगी।
रोज-रोज के क्लेश से आहत माता जी भी चल बसीं। माता जी के जाते ही राधा ने भी वो घर छोड़ दिया और पुराने घर में रहने चली आई।अब नागेन्द्र ने सायली की पढ़ाई के लिए पैसे देने बंद कर दिए।राधा ने जो भी जमा पूंजी और कुछ अपने गहने गिरवी रखकर सायली को पढ़ाया।
सायली ने भी कभी निराश नहीं किया कॉलेज में स्कॉलरशिप मिल गई तो राधा का बोझ हल्का हो गया।सायली के जॉब लगते ही राधा की परिस्थिति में सुधार होने लगा था। मेरी सायली ऐसे घर में नहीं जाएगी जहाँ उसे किसी की गुलामी करनी पड़े,नहीं-नहीं बिल्कुल नहीं..राधा बड़बड़ाई।
माँ तू किस सोच में डूबी है..?सायली ने घर में घुसते ही पूछा।
अरे तू कब आई..?
अभी आई माँ..पर तुझे मेरी फिक्र कहाँ..?माँ की गोद में सिर रखकर लेटते हुए सायली ने कहा।बता क्या हुआ..? इतना टेंशन क्यों..?
तेरी मौसी ने एक रिश्ता भेजा था। बहुत ही पैसे वाले लोग थे। बिना दहेज शादी के लिए तैयार थे।पर शादी के बाद बहू से नौकरी करवाना उनकी शान के खिलाफ था.. मैंने ऐसे रिश्ते के लिए मना कर दिया तो मौसी नाराज हो गईं।
हो जाने दे माँ.. कुछ दिन की नाराज़गी है सब ठीक हो जाएगा। हमने पापा के जाने के बाद जो सहा वो किसी को कैसे महसूस होगा..? अगर आप मेरी पढ़ाई के लिए पैसे जोड़कर न रखतीं तो शायद मैं पढ़ भी ना पाती..तू चिंता मत कर माँ सब अच्छा हो जाएगा..सायली राधा से लिपटते हुए बोली।
सायली की बातों से राधा का मन हल्का हो गया।चल तू हाथ-मुँह धोकर आ, मैं खाना गरम करती हूँ.. राधा रसोई में जाते हुए बोली।
जी माँ..सायली कमरे में चली गई। राधा भी पुरानी यादों को झटककर किचन में खाना गरम करने लगी।
©® अनुराधा चौहान स्वरचित ✍️
चित्र गूगल से साभार
बहुत तरह के प्रश्न खड़े करती सुंदर कथा।
ReplyDeleteप्रेरणादायक।
हार्दिक आभार सखी
Deleteबेटियों को सर्वप्रथम उसके स्वावलंबी बनाना होगा...बहुत सुन्दर सीख देती लाजवाब कहानी।
ReplyDeleteहार्दिक आभार सखी
Deleteबहुत सुंदर रचना
ReplyDeleteहार्दिक आभार आदरणीय
Deleteआदरणीय / प्रिय,
ReplyDeleteमेरे ब्लॉग "Varsha Singh" में आपका स्वागत है। मेरी पोस्ट दिनांक 24.01.2021 "गणतंत्र दिवस और काव्य के विविध रंग" में आपका काव्य भी शामिल हैं-
httpp://varshasingh1.blogspot.com/2021/01/blog-post_24.html?m=0
गणतंत्र दिवस की अग्रिम शुभकामनाओं सहित,
सादर,
- डॉ. वर्षा सिंह
हार्दिक आभार आदरणीया
Deleteसुंदर प्रस्तुति
ReplyDeleteहार्दिक आभार आदरणीय
Deleteसारगर्भित तथ्यों को उठाती रचना..
ReplyDeleteहार्दिक आभार जिज्ञासा जी
Deleteहार्दिक आभार आदरणीय
ReplyDeleteजिंदगी की कड़वी सच्चाई व्यक्त करती सुंदर रचना, अनुराधा दी।
ReplyDeleteहार्दिक आभार ज्योति जी
Deleteबेटी स्वाबलंबि हो तो उसे किसी बैशाखी की जरूरत नहीं। बहुत प्रेरक कथानक अनुराधा जी।
ReplyDeleteहार्दिक आभार सखी।
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