Monday, October 29, 2018

तेरा इंतज़ार


गुमसुम गुमसुम सी
मेरी हर शाम है रहती
खोई खोई सी घर दरवाजे पर
हरपल तेरा इंतज़ार मैं करती रहती 

पल पल तेरी याद सताए
रातों को नींद भी न आए
अनहोनी हरपल सताए
हर आहट पर दिल घबराए

न चिट्ठी भेजी न कोई संदेशा
कब आओगे नहीं कोई अंदेशा
भेज दो लिख कर कोई पाती
रब से मांगती तुम्हारी सलामती

तुम बिन सूना हर एक कोना 
माँ को इक पल आए न चैना
बापू सूनी राहों को निहारे
आँंखों में अपनी नमी छुपाए

भेजी है मैंने तुमको पाती
उसमें सबका प्यार बसा कर
घर का पूरा एहसास बसा कर
भेजी है मैंने घर की याद
***अनुराधा चौहान***

2 comments:

  1. भीगे दिल की मनुहार ... इंतज़ार का अंत होगा ...

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