Thursday, January 10, 2019

बिखरता आशियाना

तिनका तिनका जोड़
इंसान बनाता आशियाना
ख्व़ाबों की खड़ी कर दीवारें
प्यार का रंग भरता
नींव जिसकी भरी समर्पण से
आशा के जलते दीप सभी
मौसम के साथ 
सब लगे रंग बदलने
रिश्तों के रूप यह कैसे
शीशे से हो गए दिल सबके
ठेस लगे तो लगे बिखरने
दिल पर पत्थर रख कर
हर दीवार को ढहते देखा है
मैंने पल में रिश्तों का
संसार उजड़ते देखा है
खिंच जाती हैं दीवारें
कब न जाने और कैसे
आंगन, गलियारे,छत
सब बट जाते हैं पल में
तेरा मेरा करने में बस
अब उमर बीतती जाती है
जो सुकून मिलता था
कभी अपनों के बीच
बस यादें ही रहती हैं बाकी
खड़ी हो जाती दीवारें
बिखर जाता आशियां भी
***अनुराधा चौहान***

6 comments:

  1. प्रिय औ अनुराधा जी -- जीवन और समाज की कटु सच्चाई को बड़ी सादगी से लिख दिया आपने | तिनका - तिनका जोड़कर बनाया आशियाना ना जाने क्यों एक दिन बंटकर अपना स्नेह भरा स्वरूप खोकर कुछ और ही बन जाता है | संवेदनशील रचना | सस्नेह --

    ReplyDelete
    Replies
    1. बहुत बहुत आभार रेणु जी आपकी सुंदर प्रतिक्रिया के लिए

      Delete