तिनका तिनका जोड़
इंसान बनाता आशियाना
ख्व़ाबों की खड़ी कर दीवारें
प्यार का रंग भरता
नींव जिसकी भरी समर्पण से
आशा के जलते दीप सभी
मौसम के साथ
सब लगे रंग बदलने
रिश्तों के रूप यह कैसे
शीशे से हो गए दिल सबके
ठेस लगे तो लगे बिखरने
दिल पर पत्थर रख कर
हर दीवार को ढहते देखा है
मैंने पल में रिश्तों का
संसार उजड़ते देखा है
खिंच जाती हैं दीवारें
कब न जाने और कैसे
आंगन, गलियारे,छत
सब बट जाते हैं पल में
तेरा मेरा करने में बस
अब उमर बीतती जाती है
जो सुकून मिलता था
कभी अपनों के बीच
बस यादें ही रहती हैं बाकी
खड़ी हो जाती दीवारें
बिखर जाता आशियां भी
***अनुराधा चौहान***
बहुत सुंदर जी
ReplyDeleteधन्यवाद आदरणीय
Deleteप्रिय औ अनुराधा जी -- जीवन और समाज की कटु सच्चाई को बड़ी सादगी से लिख दिया आपने | तिनका - तिनका जोड़कर बनाया आशियाना ना जाने क्यों एक दिन बंटकर अपना स्नेह भरा स्वरूप खोकर कुछ और ही बन जाता है | संवेदनशील रचना | सस्नेह --
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार रेणु जी आपकी सुंदर प्रतिक्रिया के लिए
DeleteExcellent share
ReplyDeleteGood though....
धन्यवाद जी
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