Monday, October 22, 2018

मिट्टी के घड़े सी जिंदगी


करले पूरे कुछ काम अधुरे
यह सुबह कब बीत जानी है

मिट्टी के घड़े सी जिंदगी
पता नहीं कब फूट जानी है

हाड़-मांस का सुंदर संसार
कब मिट्टी में मिल जाए

पंछी बन जीवन की ज्योति
आसमान में उड़ जाए

पाप-पुण्य के खेल में
मत जीवन को घेर

मानवता सबसे बड़ा धर्म है
नहीं रखो किसी से बैर

क्यों तेरा-मेरा करने में
अपने जीवन को यूं खोते हो

जब समय हाथ से जाता है
फिर हाथ मलते क्यों रोते हो

करो बड़ो का आदर
छोटों से करो प्यार

चार दिन की जिन्दगी है
क्यों करते वक्त बर्बाद।
***अनुराधा चौहान***

4 comments:

  1. मिट्टी के घड़े सी जिंदगी
    पता नहीं कब फूट जानी है
    सच हैं, अनुराधा दी। बहुत सुंदर।

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  2. बहुत खूब..... आदरणीया
    यथार्थ।

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