पनियां भरन मैं पनघट पे जाऊं
देखूं तुझे तो सुध बिसराऊं
करके शरारत मटकी फोड़ी
माखन की करते हो चोरी
फिर भी तेरी सब लेते बलाएं
गिरधर तू कैसी लीला रचाए
बाजे जब भी तेरी मधुर मुरलिया
नाचें सारी गोकुल नगरिया
काहे करते कान्हा तुम जोरा जोरी
पतली कलाई मोरी क्यों तूने मोड़ी
मैया यशोदा कैसा तेरा कन्हाई
मार कंकरिया मेरी मटकी गिराई
पनघट पर मेरा रस्ता रोके
पानी न भरने दे मटकी छीने
मुरलिया बजाए यमुना तीरे
तन-मन भिगोए अपने ही रंग में
बड़ा ही चितचोर है श्याम सलोना
गोपियों का चैन है छीना
जादू भरी उसकी मुरली है
छवि अलौकिक मन में बसी है
***अनुराधा चौहान***
(चित्र गूगल से साभार)
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बहुत सुन्दर
ReplyDeleteधन्यवाद आदरणीय
Deleteकान्हा किसका मन नहीं मिहते .... फिर जब प्रांग आँखों के सामने आ जाये तो कान्हामय हो जाता है संसार ...
ReplyDeleteजी धन्यवाद आदरणीय
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