Monday, October 1, 2018

उजड़ा गुलशन

कैसा फिजाओं
में जहर घुला
मौसम भी
सहमा सहमा हुआ
कभी गूंजती थी
इस गुलशन में
किलकारियां
मासूम परियों की
अब सब उजड़ा उजड़ा  है
गुलशन में
उदासी का पहरा है
धुंआ धुंआ सी
होती जिंदगी
प्रीत कहीं
खोती सी दिखती
संवेदनाएं भी
दम तोड़ रही
अपने पराए की
मारामारी
भाईचारे ने
जान गंवा दी
कब लौटेंगी
फिर से बहारें
कब हंसी की
गूंजे आवाजें
अब कर्म
हमें ही करना है
इस गुलशन को
महकाना है
***अनुराधा चौहान***

12 comments:

  1. Replies
    1. बहुत बहुत आभार आदरणीय

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  2. बहुत सुन्दर रचना सखी

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  3. सुंदर प्रस्तुति

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  4. सुंदर लिखा है

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  5. वाह!बहुत सुंदर !!चलो मिलकर महकाएं गुलशन को ।

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